सर्पगंधा की खेती कैसे करें
यूं तो भारतवर्ष के विभिन्न भागों में पाया जाने वाला सर्पगंधा औषधीय दृष्टि से विश्व भर में सर्वश्रेष्ठ माना जाता है परन्तु देश के विभिन्न भागों में पाए जाने वाले सर्पगंधा देहरादून क्षेत्र में बोर्इ जाने वाली सर्पगंधा में अजमेलीन समूह के एल्केलाइड अधिक पाए जाते हैं जबकि बिहारी मूल की सर्पगंधा में सर्पेन्टाइन समूह के एल्केलाइड अधिक पाए जाते हैं। सर्पगंधा का नाम ‘‘सर्पगंधा’’ क्यों पड़ा होगा, इसके पीछे कर्इ मत हैं। ऐसा माना जाता है कि क्योंकि प्राचीन समय से ही सर्पगंधा का उपयोग सांप काटे के इलाज के लिए Reseller जाता रहा है। इसलिए इसका नाम सर्पगंधा पड़ा होगा। हालांकि सबसे ज्यादा उपयुक्त मत इसके संस्कृत नाम का लगता है जिसमें सर्पगंधा का अभिप्राय ‘‘सर्पान् गन्धयति अर्दयति इति’’ है, Meansात् ‘‘वह वस्तु (बूटी) जो सर्पों को पीडित करे अथवा सर्पों को दूर भगाए’’। क्योंकि सर्पगंधा की गंध से सांप दूर भागते हैं अत: संभवतया इसी वजह से इसका नाम सर्पगंधा पड़ा होगा। इसका व्यवसायिक नाम ‘‘रावोल्फिया’’ सोलहवीं शताब्दी के Single जर्म पादपविज्ञानी तथा चिकित्सक लियोनार्ड रावोल्फिया के नाम पर पड़ा हुआ माना जाता है।
विभिन्न चिकित्सा कार्यों हेतु भारतवर्ष में सर्पगंधा का उपयोग लगभग 400 वर्षों से Reseller जा रहा है। यद्यपि परम्परागत चिकित्सा पद्धतियों में इसका उपयोग सांप अथवा अन्य कीड़ों के काटने के इलाज हेतु, पागलपन And उन्माद की चिकित्सा हेतु तथा कर्इ अन्य रोगों के निदान हेतु Reseller जाता रहा है परन्तु वर्ष 1952 में जब सीबा फार्मेस्यूटिकल्स स्विटजरलैण्ड के शिलर तथा मुलर नामक वैज्ञानिकों ने सर्पगंधा की जड़ों में ‘‘रिसरपिन’’ नामक एल्कोलाइड उपस्थित होने की खोज की तो यह पौधा सम्पूर्ण विश्व की नज़रों में आ गया। फलत: उच्च रक्तचाप की अचूक दवार्इ माने जाने वाले इस पौधे का जंगलों से अंधाधुंध विदोहन प्रारंभ हो गया जिससे शीघ्र ही यह पौधा लुप्तप्राय पौधों की श्रेणी में आ गया। वर्तमान में यह पौधा भारत सरकार द्वारा अधिसूचित किए गए लुप्तप्राय तथा प्रतिबन्धित पौधों की श्रेणी में शामिल है जिसके कृषिकरण को बढ़ावा देने हेतु प्रत्येक स्तर पर सर्र्पगंध्ंधा के विभिन्न प्रज्रजातियोंं के पुष्प प्रयास किए जा रहे हैं।
सर्पगंधा लगभग 2 से 3 फीट तक उंचार्इ प्राप्त करने वाला Single अत्यधिक सुन्दर दिखने वाला बहुवर्षीय पौधा है जिसे कर्इ लोगों द्वारा घरों में सजावट कार्य हेतु भी लगाया जाता है। भारतवर्ष के कर्इ प्रदेशों में ‘‘पागलपन की बूटी’’ अथवा ‘‘पागलों की दवार्इ’’ के नाम से जाने जाने वाले इस पौधों का औषधीय दृष्टि से प्रमुख उपयोगी भाग इसकी जड़ होती है जो 2 वर्ष की आयु के पौधे में 30 से 50 से0मी0 तक विकसित हो जाती है लगभग छ: माह की आयु प्राप्त कर लेने पर पौधों में हल्के गुलाबी रंग के अति सुन्दर फूल आते हैं तथा तदुपरान्त उन पर मटर के दाने के आकार के फल आते हैं जो कच्ची अवस्था में हरे रहते हैं तथा पकने पर ऊपर से काले दिखते हैं। इन फलों को मसलने पर अंदर से सफेद भूरे रंग के चिरौंजी के दानों जैसे बीज निकलते हैं। यूं तो सर्पगंधा की कर्इ प्रजातियां जैसे राबोल्फिया, वोमीटोरिया, रावोल्फिया, कैफरा, रावोल्फिया टैट्रफाइला रावोल्फिया, कैनोन्सिस आदि भी पार्इ जाती हैं परन्तु सर्वाधिक मांग And उपयोगिता वाली प्रजाति राबोल्फिया सर्पेन्टाइना ही हैं इसके अतिरिक्त भी सर्पगंधा की कर्इ जातियां हैं जो भारत के विभिन्न भागों में पार्इ जाती है। उदाहरणार्थ इसकी राबोल्फिया कानेसेंस नामक जाति बंगाल में प्रचुरता से मिलती है जबकि राबोल्फिया डेन्सीफ्लोय नामक प्रजाति खासीपर्वत, पश्चिमी घाट तथा कोंकण प्रदेश में ज्यादा पार्इ जाती हैं इसी प्रकार इसकी Single अन्य जाति राबोल्फिया मीक्रान्था है जो कि मालावार के समुद्रतटीय मैदानों में अधिक पार्इ जाती है तथा दक्षिणी भारत के बाजारों में इसकी जड़ें बिकने के लिए आती हैं।
सर्पगंधा की रासायनिक संCreation
सर्पगंधा में लगभग 30 एल्केलाइड्स पाए जाते हैं जिनमें प्रमुख हैं- रिसरपिन, सर्पेन्टाइन, सर्पेन्टाअनाइन, अजमेलाइन, अजमेलिसाइन, रावोल्फिनाइन, योहिम्बाइन, रेसिनेमाइन, डोज़रपिडाइन आदि। ये एल्केलाइड्स सर्पगंधा की फसल मुख्यतया सर्पगंधा की जड़ों में होते हैं। तथा पौधे की सूखी जड़ों में इनकी उपस्थिति 1. 7 से 3 प्रतिशत तक पार्इ जाती है। इसकी जड़ों से तैयार की जाने वाली भस्म में पोटेशियम, कार्बोनेट, फास्फेट, सिलिकेट, लोहा तथा मैंगेनीज़ पाए जाते हैं।
सर्पगंधा के औषधीय उपयोग
सर्पगंधा Indian Customer चिकित्सा पद्धतियों में प्रयुक्त होने वाले प्राचीन And प्रमुख पौधों में से Single हैं परम्परागत ज्ञान के साथ-साथ- आधुनिक चिकित्सा विज्ञान के According भी यह विभिन्न विकारों के निदान में उपयोगी सिद्ध हुआ है। आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों में भारतवर्ष में जनसामान्य में इसे लोकप्रिय बनाने का श्रेय कोलकाता के सुप्रसिद्ध आयुर्वेदिक चिकित्सक डा. गणपत सेन तथा डा. चन्द्रा बोस को जाता है। वर्तमान में जिन प्रमुख चिकित्सीय उपयोगों हेतु सर्पगंधा प्रमुखता से प्रयुक्त की जा रही है, वे निम्नानुसार हैं-
उच्च रक्त चाप के निवारण हेतु
उच्च रक्त चाप अथवा हार्इ ब्लडप्रेशर के उपचार हेतु सर्पगंधा सम्पूर्ण विश्व भर में सर्वोत्तम औषधि मानी जाती है। इसके उपयोग से उच्च रक्तचाप में Historyनीय कमी आती है, नींद भी अच्छी आती है तथा भ्रम आदि मानसिक विकार भी शांत होते हैं। वर्तमान चिकित्सा पद्धतियों में, विशेषतया अमेरिका में इसके उन तत्वों को अलग (आर्इसोलेट) कर लिया जाता हैं जो उच्च रक्तचाप को नियंत्रित करते हैं तथा इन्हीं तत्वों का उपयोग Reseller जाता है। इस प्रकार किन्हीं तत्वों को आर्इसोलेट करके सर्पगंधा के उन्हीं तत्वों का सेवन करने के दुष्प्रभाव नहीं देखे जाते। प्राय: उच्च रक्तचाप में इसकी जड़ के चूर्ण का आधा छोटा चम्मच (Single ग्राम की मात्रा में) दिन में दो या तीन बार सेवन करने से उच्च रक्तचाप से सामान्यता आती है।
अनिद्रा के उपचार हेतु
अनिद्रा की स्थिति में नींद लाने हेतु सर्पगंधा काफी उपयोगी औषधि है। खांसी वाले रोगियों की अनिद्रा के निदान में भी यह अत्यधिक प्रभावी हैं अनिद्रा की स्थिति में निद्रा लाने हेतु इसकी जड़ का 0.60 से 1. 25 ग्राम चूर्ण किसी सुगंधीय द्रव्य के साथ मिलाकर देना प्रभावी रहता है। वैसे रात को सोते समय इसके 0.25 ग्राम पावडर का सेवन घी के साथ करने से बहुत जल्दी नीद आ जाती हैं वैसे चिकित्सक के परामर्श पर ही इसका उपयोग करना हितकर है।
उन्माद के उपचार हेतु
परम्परागत चिकित्सा में सर्पगंधा बहुधा ‘‘पागल बूटी’’ अथवा पागलपन की दवा के Reseller में भी जानी जाती हैं उन्माद और अपस्मार में जब रोगी बहुत अधिक उत्तेजित रहता है तो मन को शांत करने के लिए इसका उपयोग Reseller जाता है इससे मन शांत रहता है तथा धीरे-धीरे मस्तिष्क के विकार दूर हो जाते हैं। इस विकार के उपचार हेतु सर्पगंधा की जड़ का Single ग्राम चूर्ण, 250 मि.ली. बकरी के दूध के साथ (साथ में गुड़ मिलाकर) दिन में दो बार दिया जाना उपयोगी रहता हैं परन्तु यह केवल उन्हीं मरीजों को दिया जाना चाहिए जो शारीरिक Reseller से हष्ट पुष्ट हों। शारीरिक Reseller से कमजोर मरीजों तथा ऐसे मरीज़ जिनका रक्तचाप First से असामान्य Reseller में नीचा हो (लो ब्लड प्रेशर वाले), को यह नहीं दिया जाना चाहिए।
अनिद्रा, उन्माद तथा उच्च रक्तचाप जैसे महत्वपूर्ण विकारों के निवारण के साथ-साथ शीतपित्त (यूर्टीकेरिया) बुखार, कृमिरोगों के निवारण, सर्पविष And अन्य कीड़ों के काटने के उपचार आदि जैसे अनेकों विकारों के निवारण हेतु भी इसे प्रयुक्त Reseller जाता है।
नि:सन्देह सर्पगंधा Single अत्यधिक औषधीय उपयोग का पौधा है जिसका उपयोग केवल परम्परागत ही नहीं बल्कि आधुनिक चिकित्सा पद्धतियों में भी बखूबी से Reseller जाता हैं इस पौधे के संदर्भ में सर्वाधिक महत्वपूर्ण पक्ष यह है कि इसका उपयोग तो विश्व के All देशों द्वारा Reseller जाता है चाहे वे विकसित देश हों अथवा अविकसित, परन्तु इसकी आपूर्ति का मुख्य स्त्रोत भारतवर्ष ही हैं हालांकि कुछ मात्रा में पाकिस्तान, बर्मा, थार्इलैण्ड, श्रीलंका आदि देशों से भी इसकी आपूर्ति होती है परन्तु भारतवर्ष में उपजी सर्पगंधा को ज्यादा अच्छा माना जाता है। Single अनुमान के According विश्व भर में सर्पगंधा की सूखी जड़ों की वार्षिक मांग लगभग 20.000 टन की हैं इसी प्रकार देशीय बाजार में इसके Single्सट्रेक्ट तथा एलकोलाइड्स निकालने हेतु लगभग 650 टन जड़ों की वार्षिक मांग है। जबकि समस्त स्त्रोतों को मिला करे इसकी कुल आपूर्ति मात्र 350 टन प्रतिवर्ष की है (फारूखी And श्री रामू, 2001) Historyनीय है कि फाउण्डेशन फॉर रीवाइटलार्इजेशन ऑफ लोक हेल्थ ट्रेडीशन्स बंग्लौर द्वारा किये गये Single सर्वेक्षण के आधार पर उनके द्वारा सर्पगंधा को सर्वाधिक मांग वाले 20 प्रमुख Indian Customer औषधीय पौधों (Top twenty indian medicinal Plants in trade) में स्थान दिया गया है। ऐसी स्थिति में इसकी सुनिश्चित आपूर्ति तभी हो सकती है यदि इसके कृषिकरण को बहुत बड़े स्तर पर प्रोत्साहित Reseller जाए।
सर्पगंधा की खेती की विधि
सर्पगंधा Single बहुवर्षीय औषधीय पौधा है जिसकी खेती इसकी जड़ों की प्राप्ति के लिए की जाती है कर्इ जगहों पर इसे दो वर्ष की फसल के Reseller में लिया जाता है तथा कर्इ जगहों पर 3-4 वर्ष की फसल के Reseller में। इसी प्रकार विभिन्न स्थानों पर इसकी फसल से होने वाली प्राप्तियों में भी भिन्नता होती है। Single अच्छी फसल प्राप्त करने के लिए इसकी कृषि तकनीक से संबंधित विकसित किए गए प्रमुख पहलू अपनाना होगा।
सर्पगंधा की फसल की अवधि-
सर्पगंधा बहुवर्षीय फसल है तथा इसे 2 माह से 5 वर्ष तक के लिए खेत में रखा जाता है। परन्तु इन्दौर में हुए शोध कार्यों से यह पता चलता है कि 18 माह की अवधि के उपरान्त फसल को उखाड़ लिया जाना चाहिए। हांलांकि यह भी पाया गया है कि जितने ज्यादा समय तक पौधा खेत में लगा रहेगा उसी के अनुReseller जड़ों की मात्रा में बढ़ोत्तरी होती जाएगी तथा दो साल की फसल की अपेक्षा तीन साल की फसल से ज्यादा उत्पादन नर्सरी में तैयार हो रहे सर्पगंधा के पौधे मिलता है, परन्तु अंतत: यह निष्कर्ष निकाला गया है कि इसकी खेती 30 माह Meansात् ढार्इ वर्ष की फसल के Reseller में की जाए जिससे एल्केलाइड भी पूर्णतया विकसित हो जाएं तथा उत्पादन भी अधिक हो।
खेती के लिए उपयुक्त जलवायु
Indian Customer महाद्वीप का मूल निवासी पौधा होने के कारण सर्पगंधा की खेती हेतु भारतवर्ष के विभिन्न क्षेत्रों की जलवायु काफी उपयुक्त पार्इ जाती है। यूं तो ऐसे क्षेत्र जहां की जलवायु में ज्यादा उतार चढ़ाव न हों वे इसके लिए ज्यादा उपयुक्त हैं, परन्तु फिर भी देखा गया है कि यह 100 से लेकर 450 तक के तापमान में सफलतापूर्वक उगार्इ जा सकती है। वैसे तो यह खुले क्षेत्रों में ज्यादा अच्छी प्रकार पनपता है परन्तु आंशिक छाया वाले क्षेत्रों में भी इसका अच्छा विकास होता है। ज्यादा पाले तथा सर्दी के समय इसके पत्ते झड़ जाते हैं तथा बसन्त आते ही पुन: नर्इ कोपलें आ जाती हैं। यद्यपि जलभराव वाले क्षेत्रों के लिए यह उपयुक्त नहीं है। परन्तु यदि 2-3 दिन तक जल भराव वाली स्थिति बनती है तो ऐसी स्थितियां यह सहन करने की क्षमता रखता है। प्रकृति Reseller में तो यह 250 से 500 सेमी. वार्षिक वर्षा वाले क्षेत्रों में अच्छी प्रकार उगता And बढ़ता देखा गया है। इस प्रकार सामान्य परिस्थितियों में सम्पूर्ण Indian Customer महाद्वीप की जलवायु, ऊपरी उत्तरांचल, ऊपरी हिमाचल, कश्मीर तथा किन्हीं उत्तर पूर्वी राज्यों तथा राजस्थान And गुजरात के रेगिस्तान वाले क्षेत्रों को छोड़कर शेष भारत की जलवायु इसकी खेती के लिए उपयुक्त है। अभी वर्तमान में इसकी आपूर्ति मुख्यतया उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड, उड़ीसा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, आसाम, पश्चिमी बंगाल, आंध्र प्रदेश, तमिलनाडु, कर्नाटक, केरल तथा महाराष्ट्र आदि राज्यों में हो रही है जो स्वाभाविक Reseller से इसकी खेती के लिए उपयुक्त क्षेत्र माने जा सकते हैं। कटिंग (कलम) से तैयार Reseller गया सर्पगंधा का पौधा
उपयुक्त मिट्टी
सर्पगंधा की जड़ें भूमि में 50 सेंमी. तक गहरी जाती हैं अत: इसकी खेती ऐसी मिट्टियों में ज्यादा सफल हागी जिनमें जड़ों का सही विकास हो सके। इस दृष्टि से 6.5 पी.एच. वाली रेतीली दोमट तथा काली कपासिया मिट्टियां इसकी खेती के लिए ज्यादा उपयुक्त हैं।
सर्पगंधा की उन्नत प्रजातियाँ
सर्पगंधा की खेती से संबंधित जवाहर लाल नेहरू कृषि विश्वविद्यालय द्वारा काफी अच्छा कार्य Reseller गया हैं तथा विश्वविद्यालय द्वारा सर्पगंधा की Single उन्नत प्रजाति विकसित की गर्इ है जिसे ‘‘आर.एस.1’’ का नाम दिया गया है। इस प्रजाति में Seven माह पुराने बीजों में भी 50 से 60 प्रतिशत तक उगाव होना पाया गया है तथा इस प्रजाति में 10 क्विंटल प्रति Singleड़ सूखी जड़ों का उत्पादन रिपोर्ट Reseller गया है। सर्पगंधा की इस प्रजाति के 18 माह के पौधों से प्राप्त जड़ों में 1.64 प्रतिशत से 2.94 प्रतिशत तक एल्कोलाइड होना पाया गया है।
बिजार्इ की विधि
सर्पगंधा की बिजार्इ हेतु मुख्यतया तीन विधियां प्रचलन में हैं- 1. तने की कलम से प्रवर्धन, 2. जड़ों से प्रवर्धन, 3. बीजों से बिजार्इ करने की प्रक्रियाएं निम्नानुसार है-
तने की कलमो से प्रवर्धन :-इस विधि में सर्पगंधा की 6 से 9 इंच लम्बी ऐसी काट ली जाती हैं जिनमें कम से कम 3 नोड्स हो। इस सदर्भ में नर्म लकड़ी वाली कलमों की बजाय सख्त लकड़ी (हार्डवुड) वाली कलमें ज्यादा उपयुक्त रहती हैं। इन कलमों को 30 पी.पी.एम. वाले एन्डोल एसिडटिक एसिड वाले घोल में 12 घंटे तक डुबोकर रखने के उपरान्त इनकी बिजार्इ करने के अच्छे परिणाम देखे गए हैं। इस प्रकार इस घोल में इन कलमों को शोधित करने के उपरान्त इन्हें माह मर्इ-जून में नर्सरी में लगा दिया जाता है। तथा नर्सरी में नमी बनार्इ रखी जाती है। यूं तो इनमें 3-4 दिन में उगाव प्रारंभ हो जाता है परन्तु ट्रांसप्लांटिंग के लिए पौधे लगभग 70-75 दिन में ही तैयार हो पाते हैं। प्राय: इस विधि से 40 से 65 प्रतिशत कलमों में ही उगाव हो पाता है।
जड़ों की कटिंग्स (रूट कटिंग्स)प्रवर्धन :- जड़ों की कटिंग्स से पौधों का प्रवर्धन तने की कटिंग्स की तुलना में ज्यादा सफल रहता है। इस विधि से Single से दो इंच लंबी टेप रूट्स की कटिंग्स को खाद, मिट्टी तथा रेत मिश्रित पौलीथीन की थैलियों में इन्हें इस प्रकार रखा जाता है कि पूरी कटिंग मिट्टी से दब जाए तथा यह मिट्टी से मात्र 1 से.मी. ही ऊपर रहे। इस प्रकार लगार्इ गर्इ 50. प्रतिशत कटिंग्स लगभग Single माह के अंदर अंकुरित हो जाती है। परीक्षणों में देखा गया है कि इस प्रकार मार्च-जून माह में लगार्इ गर्इ लगभग 0.5 डायमीटर की कटिंग्स में 50 से 80 प्रतिशत तक उगाव हो जाता है। इस प्रकार से बिजार्इ करने हेतु Single Singleड़ की बिजार्इ करने के लिए लगभग 40 कि.ग्रा. रूट कटिंग्स की Need होती है। हालांकि इस विधि से बिजार्इ करने पर तने की कलमों से बिजार्इ करने की अपेक्षा अधिक उत्पादन मिलता है परन्तु सर्वाधिक उत्पादन तो बीज से बिजार्इ करने पर ही प्राप्त होता है।
बीज से बिजार्इ करना : व्यवसायिक खेती की दृष्टि से सर्पगंधा के प्रवर्धन का सर्वोत्तम तरीका इसका बीजों से प्रवर्धन करना होता है, हालांकि बीजों से प्रवर्धन करने के रास्ते में सबसे बड़ी समस्या बीजों की उगाव क्षमता की है क्योंकि Single तो वैसे भी बीजों का उगाव कम (10 से 60) प्रतिशत ही होता है।, Second बीज जितने पुराने होंगे उनकी उगाव क्षमता उतनी घटती जाएगी। वैसे यदि Singleदम ताजे बीजों की बिजार्इ की जाए तो उगाव क्षमता ज्यादा रहती है तथा 6 माह से ज्यादा पुराना बीज नहीं लेना चाहिए।
बीज प्राप्त करने तथा इनका ऊपरी छिलका (काले रंग वाला आवरण) उतार लेने के उपरान्त इनको नर्सरी में तैयार Reseller जाता है। इसके लिए लगभग 9 इंच से 1 फीट ऊंची उठी हूर्इ (रेज़्ड) बैड्स बना ली जाती हैं। इन बीजों को रात भर पानी में भिगोकर रखा जाता है तथा कुछ बीज जो पानी के ऊपर तैरते दिखार्इ देते हैं उन्हें निकाल दिया जाता है। बिजार्इ से पूर्व इन बीजों को थीरम (3 ग्राम प्रति किलो ग्राम की दर से) उपचारित Reseller जाना उपयोगी रहता है। Single Singleड़ की खेती के लिए लगभग 500 वर्ग फीट की नर्सरी पर्याप्त होती है। नर्सरी के बजाय बीजों को पोलीथीन की थैलियों में डालकर भी पौध तैयार की जा सकती है। नर्सरी अथवा पौलीथीन की थैलियों में हल्की नमी बनाकर रखना चाहिए। नर्सरी बनाए जाने का सर्वाधिक उपयुक्त समय अप्रैल-मर्इ माह का होता है। बीज से पौध तैयार करने में Single Singleड़ के लिए 2 से 3 कि.ग्रा. बीज की Need होती है। प्राय: 20 दिन के उपरान्त बीजों से उगाव होना प्रारंभ हो जाता है तथा उगाव की प्रक्रिया 50 दिन तक चलती है। नर्सरी में लगाए गए पौधों पर जब 4 से 6 तक पत्ते आ जाएं तो उन्हें सुविधापूर्वक उखाड़ करके मुख्य खेत में लगा दिया जाता है। मुख्य खेत में लगाने से पूर्व इन छोटे पौधों को गौमूत्र से उपचारित करना लाभकारी रहता है।
खेत की तैयारी
सर्पगंधा की फसल को कम से कम दो वर्ष तक खेत में रखना होता है। अत: मुख्य खेत की तैयारी पर विशेष ध्यान दिया जाना आवश्यक है। इसके लिए First खेत तैयार करते समय गहरी जुतार्इ करके खेत में दो टन केंचुआ खाद अथवा चार टन कम्पोस्ट खाद तथा 15 किग्रा. बायोनीमा जैविक खाद प्रति Singleड़ की दर से मिला दी जानी चाहिए। तदुपरान्त 45-45 सेमी. की दूरी पर खेत में 15 सेमी. गहरार्इ के कुंड बना दिए जाते हैं।
कर्इ बार बिना कुंड बनाए सीधे बजार्इ भी की जा सकती हैं। ऐसी स्थिति में खेत में खुरपी की सहायता से लगभग 6 इंच गहरार्इ के गड्ढे बनाकर नर्सरी में तैयार किए गए पौधों को 30-30 सेमी. की दूरी पर रोपित कर दिया जाता है। इस प्रकार लगाए जाने पर लाइन से लाइन की दूरी 45-45 से.मी. तथा पौधे से पौधे की दूरी 30-30 सेमी. रहती है। रोपण के तत्काल बाद पौधों को सिंचार्इ दे देनी चाहिए।
सिंचार्इ की व्यवस्था
सर्पगंधा लम्बे समय (2 साल से अधिक) की फसल है अत: इसकी अच्छी बढ़त के लिए सिंचार्इ की व्यवस्था होना आवश्यक है किन्तु सिंचार्इ देने में ज्यादा उदारता नहीं बरतनी चाहिए तथा पौधों को तरसा-तरसा करके पानी देना चाहिए। यदि पौधे को किन्हीं निश्चित अंतरालों पर अपने आप पानी दे दिया जाए तो जड़ें पानी की तलाश में नीचे नहीं जाएंगी Meansात् जड़ों का सही विकास नहीं हो पाएगा। अत: सर्पगंधा के पौधों की सिंचार्इ के संदर्भ में विशेष ध्यान रखने की Need होती है तथा सिंचार्इ तभी की जानी चाहिए जब पौधों को इसकी वास्तविक Need हो तथा पौधे लगभग मुरझाने से लग जाऐं।
सर्पगंधा के साथ अंर्तवर्तीय फसल
सर्पगंधा की खेती जहां कर्इ अन्य फसलों के साथ ली जा सकती है वहीं इसके बीज में कर्इ अन्य औषधीय तथा अन्य फसलें भी ली जा सकती हैं। अंतर्वतीय फसल के Reseller में इसके साथ सोयाबीन की कम फैलने वाली प्रजातियों की खेती काफी उपयुक्त रही हैं इसी प्रकार इसकी खेती बाइबिडंग तथा आंवला आदि जैसे बहुवर्षीय पौधों के साथ-साथ सफेद मूसली, कालमेघ तथा भुर्इ आंवला आदि जैसे कम अवधि के औषधीय पौधों के साथ भी सफलतापूर्वक ली जा सकती है।
सर्पगंधा की फसल के प्रमुख रोग तथा बीमारियाँ
सर्पगंधा की जड़ों पर कर्इ प्रकार के कश्मि तथा नीमैटोड्स विकसित हो सकते हैं। जिससे जड़ों के ऊपर छल्ले जैसे बन जाते हैं। इनसे Safty सर्पगंधा की सूखी जड़े़ं के लिए प्रति Singleड़ 15 कि.ग्रा. बायोनीमा भूमि में डालना लाभकारी रहता है। पौधों के पत्तों पर पत्ती लपेटने वाले कीड़ों (केटरपिलर्स) का प्रकोप भी हो सकता है जिसके लिए 0.2 प्रतिशत रोगोर का स्पे्र Reseller जा सकता है। इसी प्रकार सिरकोस्पोरा रावोल्फार्इ नामक फफूँद द्वारा पौधे की पत्तियों पर धब्बे डाले जाने की स्थिति में मानसून से पूर्व 0.2 प्रतिशत डायथेन जेड-78 अथवा डायथेन एम-45 का छिड़काव करना लाभकारी रहता है। इस ्रपकार यूं तो यह फसल बहुधा कीड़ों तथा बीमारियों के प्रकोप से मुक्त रहती है परन्तु फिर भी उपरोक्तानुसार described कुछ रोग फसल पर आ सकते हैं। जिनसे समय रहते Safty की जाना आवश्यक होती हैं। विभिन्न जैविक विधियों जैसे नीम की खली का घोल, जैविक कीटनाशकों जैसे बायोपैकुनिल तथा बायोधन का स्प्रे तथा गोमूत्र का छिड़काव भी फसल को विभिन्न बीमारियों से Safty प्रदान करता है।
फसल की वृद्धि तथा इसकी परिपक्वता
रोपण के लगभग छ: माह के उपरान्त सर्पगंधा के पौधों पर फूल आने प्रारंभ हो जाते हैं जिन पर फिर फल तथा बीज बनते हैं। इस संदर्भ में यदि फसल के प्रारंभिक दिनों में बीज बनने दिए जाए तो जड़ों का विकास प्रभावित हो सकता है क्योंकि ऐसे में सारी खाद्य सामग्री (फूड मेटेरियल) फलों तथा बीजों को चली जाती है तथा जड़ें कमजोर रह सकती हैं। अत: पहली बार आने वाली फूलों को नाखून की सहायता से तोड़ दिया जाता है तथा आगे आने वाले फूलों, फलों तथा बीजों को फलने तथा बढ़ने दिया जाता है। इनमें से पके हुए फलों को सप्ताह में दो बार चुन लिया जाता है। यह सिलसिला पौधों को अंतत: उखाड़ने तक निरन्तर चलता रहता है। इसी बीच माह जून-जुलार्इ में प्रति Singleड़ Single टन केंचुआ खाद तथा 15 कि.ग्राबाय ोनीमा जैविक खाद ड्रिलिंग करकें खेत में पौधों के पास-पास डाल दी जानी चाहिए।
जैसा कि पूर्व में described है, यूं तो सर्पगंधा की 18 माह की फसल में इसकी जड़ों में पर्याप्त तथा वांछित एल्केलाइड विकसित हो जाते हैं परन्तु पर्याप्त मात्रा में जड़ें प्राप्त करने के लिए इसे 2-3 अथवा 4 साल तक खेत में रखा जाता है। वैसे इसके लिए सर्वाधिक उपयुक्त अवधि 30 माह तक की है। अत: जब फसल 30 माह अथवा ढ़ार्इ वर्ष की हो जाए तथा सदी के मौसम में (दिसम्बर-जनवरी) में जब पौधों के पत्ते झड़ जाएं तब जड़ों को खोद लिया जाना चाहिए। वैसे भी जड़ों की हारवेस्टिंग सर्दी के समय करना ही ज्यादा उपयुक्त होता है क्योंकि उस समय इनमें एल्केलाइड्स की मात्रा अधिकतम होती है।
जड़ेंं उखाड़ने में विशेष सावधानियाँ
सर्पगंधा की फसल के संदर्भ में इसकी जड़ों को उखाड़ने में कुछ विशेष सावधानियां रखने की Need होती है। क्योंकि इसकी जड़ों की छाल में सर्वाधिक एल्केलाइड्स की मात्रा होती है तथा जड़ों का 40 से 55 प्रतिशत भाग इस छाल का ही होता है अत: यह विशेष ध्यान रखने की Need होती है कि जड़ों को उखाड़ते समय इनके साथ लगी छाल को हानि न पहुंचे। अत: जड़ों को सावधानी पूर्वक उखाड़ा जाना चाहिए। जड़ों को उखाड़ने के लिए कुदाली का उपयोग भी Reseller जा सकता है तथा सब-सायलर का भी।
उखाड़ने से पूर्व खेत में Single हल्की सिंचार्इ कर दी जाए तो जड़ों को उखाड़ना आसान हो जाता है। उखाड़ने के उपरान्त जड़ों के साथ लगी रेत अथवा मिट्टी को सावधानी पूर्वक साफ करना आवश्यक होता है। यह भी यह ध्यान रखने की Need होती है कि जड़ों की छाल को क्षति न पहुंचे। साफ कर लेने के उपरान्त इन्हें अच्छी प्रकार सुखाया जाता है। सुखाने के उपरान्त जड़ों में 8 प्रतिशत से अधिक नमी नहीं बचनी चाहिए। सूखने पर ये जड़ें इतनी सूख जानी चाहिए कि तोड़ने पर ये ‘‘खट’’ की आवाज से टूट जाऐं। इन सूखी हुर्इ जड़ों को सूखी जगह पर जूट के बोरों में रख कर संग्रहित कर लिया जाता है।
सर्पगंधा की खेती से कुल प्राप्तियां
विभिन्न विधियों से लगार्इ जाने वाली सर्पगंधा की फसल से मिलने वाली जड़ों की मात्रा में पर्याप्त भिन्नता पार्इ जाती है। इस संदर्भ में तने की कलमों की अपेक्षा जड़ की कलमों (रूट कटिंग्स) तथा जड़ की कलमों की अपेक्षा बीज से लगार्इ गर्इ फसल में जड़ों की मात्रा ज्यादा पार्इ जाती है। इसी प्रकार यूं तो 18 माह की फसल में पर्याप्त तथा उपयुक्त एल्केलाइड्स विकसित हो जाते हैं। परन्तु इन्हें जितने ज्यादा समय तक खेत में लगा रहने दिया जाए उतनी ही उत्तरोत्तर जड़ों की मात्रा बढ़ती जाती है। परीक्षणों में यह पाया गया है कि दो वर्ष की फसल से प्रति Singleड़ 880 किग्रा. तथा तीन वर्षा की फसल से 1320 किग्रा. सूखी जड़ें प्राप्त हुर्इ हैं। इस प्रकार यदि 30 माह की फसल के According अनुमान लगाया जाए तो Single Singleड़ से लगभग 1000 किग्रा. अथवा 10 क्विंटल सूखी जड़ों की प्राप्ति होगी। वैसे यदि 8 क्विंटल जड़ें भी प्राप्त हों तथा जड़ों की प्राप्ति हो तथा जड़ों की बिक्री दर 80 रू. प्रति किग्रा. मानी जाए तो इस फसल से किसान को लगभग 65000 रू. की प्राप्तियां होगी। इसके साथ-साथ किसान को लगभग 25 किग्रा. बीज भी प्राप्त होंगे जिसकी 1500 रू. प्रति कि.ग्रा. की दर से बिक्री भी मानी जाए तो इससे किसान को लगभग 35000रू. की अतिरिक्त प्राप्तियां होंगी। इस प्रकार इस 30 माह की फसल से किसान को लगभग 1 लाख रू. प्रति Singleड़ की प्राप्तियां होंगी। इनमें से यदि विभिन्न कृषि क्रियाओं पर होने वाला 24000 रू. का खर्च कम कर दिया जाए तो सर्पगंधा की फसल से किसान को प्रति Singleड़ 77500रू. का शुद्ध लाभ होने की संभावना है।