समाज का Means, परिभाषा, सिद्धान्त And तत्व

समाज Word संस्कृत के दो Wordों सम् And अज से बना है। सम् का Means है इक्ट्ठा व Single साथ अज का Means है साथ रहना। इसका अभिप्राय है कि समाज Word का Means हुआ Single साथ रहने वाला समूह। मनुष्य चिन्तनशील प्राणी है। मनुष्य ने अपने लम्बे History में Single संगठन का निर्माण Reseller है। वह ज्यों-ज्यों मस्तिष्क जैसी अमूल्य शक्ति का प्रयोग करता गया, उसकी जीवन पद्धति बदलती गयी और जीवन पद्धतियों के बदलने से Needओं में परिवर्तन हुआ और इन Needओं ने मनुष्य को Single सूत्र में बाधना प्रारभ्म Reseller और इस बंधन से संगठन बने और यही संगठन समाज कहलाये और मनुष्य इन्हीं संगठनों का अंग बनता चला गया। बढ़ती हुर्इ Needओं ने Human को विभिन्न समूहों And व्यवसायों को अपनाते हुये विभक्त करते गये और मनुष्य की परस्पर निर्भरता बढ़ी और इसने मजबूत सामाजिक बंधनों को जन्म दिया।

वर्तमान सभ्यता मे Human का समाज के साथ वही घनिष्ठ सम्बंध हो गया है और शरीर में शरीर के किसी अवयव का होता है। विलियम र्इगर महोदय का कथन है- Human स्वभाव से ही Single सामाजिक प्राणी है, इसीलिये उसने बहुत वर्णों के अनुभव से यह सीख लिया है कि उसके व्यक्तित्व तथा सामूहिक कार्यों का सम्यक् विकास सामाजिक जीवन द्वारा ही सम्भव है। रेमण्ट महोदय का कथन है कि- Singleांकी जीवन कोरी कल्पना है। शिक्षा और समाज के सम्बंध को समझने के लिये इसके Means को समझना आवश्यक है।

  1. एडम स्मिथ-  मनुष्य ने पारस्परिक लाभ के निमित्त जो कृत्रिम उपाय Reseller है वह समाज है।
  2. डॉ0 जेम्स-  मनुष्य के शान्तिपूर्ण सम्बन्धों की अवस्था का नाम समाज है।
  3. प्रो0 गिडिंग्स-  समाज स्वयं Single संघ है, यह Single संगठन है और व्यवहारों का योग है, जिसमें सहयोग देने वाले व्यक्ति Single-Second से सम्बंधित है।
  4. प्रो0 मैकाइवर-  समाज का Means Human द्वारा स्थापित ऐसे सम्बंधों से है, जिन्हें स्थापित करने के लिये उसे विवश होना पड़ता है।
  5. ओटवे के According- समाज Single प्रकार का समुदाय या समुदाय का भाग है, जिसके सदस्यों को अपने जीवन की विधि की समाजिक चेतना होती है और जिसमें सामान्य उद्देश्यों और मूल्यों के कारण Singleता होती है। ये किसी-किसी संगठित ढंग से Single साथ रहने का प्रयास करते हैं किसी भी समाज के सदस्यों की अपने बच्चों का पालन-पोषण करने और णिक्षा देने की निश्चित विधियां हेाती है।
संक्षेप में यह कहा जा सकता है, समाज Single उद्देश्यपूर्ण समूह हेाता है, जो किसी Single क्षेत्र में बनता है, उसके सदस्य Singleत्व And अपनत्व में बंधे हेाते हैं।

Human And समाज के सम्बन्ध के प्रमुख सिद्धान्त

Human And समाज अन्योन्याश्रित है पर समाजशास्त्री इस सम्बंध के विषय में पृथक-पृथक विचार रखते हैं, इनके विचारों को नीचे प्रस्तुत Reseller जा रहा है।

1. सामाजिक संविदा का सिद्धान्त – 

यह अत्यन्त पा्र चीन सिद्धान्त है। इस सिद्धान्त को मानने वाले महाभारत कौटिल्य के Meansशास्त्र, शुक्रनीतिसार, जैन और बौद्ध साहित्य आदि All इस सिद्धान्त का समर्थन करते हैं आधुनिक पाश्चात्य् दार्शनिक में टामस हाब्स, लाक और रूसो इस मत का प्रबल समर्थक है। इस सिद्धान्त के According समाज नैसर्गिक नहीं बल्कि Single कृत्रिम संस्था है। मनुष्यों ने अपने स्वार्थ के लिये समाज का नियंत्रण स्वीकार Reseller है। इस सिद्धान्त के According Singleांकी जीवन के कठिनाइयों And दबंगो के दबाव को झेलते हुये व्यक्ति ने स्वयं को संगठित कर लिया और इन संगठनों को समाज की संज्ञा दी गयी। प्रसिद्ध शिक्षाशास्त्री अरस्तु के कथन को मैकाइवर व पेज ने अपनी Creation सोसाइटी में लिखा कि- मनुष्य Single सामाजिक प्राणी है। मनुष्य Safty आराम, पोषण, शिक्षा, उपकरण, अवसर तथा उन विभिन्न सेवाओं के लिये जिन्हें समाज उपलब्ध कराता है, समाज पर निर्भर है।

2. समाज का अवयवी सिद्धान्त- 

इस सिद्धान्त का अन्तनिर्हित अथर् है समाज Single जीवित शरीर है और मनुष्य उसका अंग है। इस सिद्धान्त के समर्थक मानते हैं कि समाज विभिन्न अंगों में विभाजित है और All अंग अपने प्रकार्यों के माध् यम से समाज को जीवन व गति प्रदान करते हैैं। समाज Resellerी शरीर में व्यक्ति कोशिका की तरह है, और इसके अन्य अवयव समितियां तथा संस्थायें है। वास्तव में यह सिद्धान्त आज के युग में प्रासांगिक है इसके According समाज Human के ऊपर है, यह बात सच है कि मनुष्य समाज का अंग है, और समाज को शरीर मानकर और मनुष्य को कोशिका मानकर Human अस्तित्व को स्वीकारना ठीक नहीं है। सत्यकेतु विद्यलंकार ने स्पष्ट Reseller है कि समाज हमारे स्वभाव में है अत: स्थायित्व उसका स्वभाविक गुण है। शरीर सिद्धान्त के According समाज में स्वतंत्र Reseller से व्यक्तियों की कोर्इ स्थिति नहीं है, जिसे स्वीकारना भी सम्भव नहीं है।

3. मनुष्य And समाज में आश्रिता- 

व्यक्ति व समाज Single-Second के पूरक है व्यक्ति मिलकर समाज का निर्माण करते हैं और समाज व्यक्ति के अस्तित्व And Need को पूरा करता है, ये दोनों परस्पर आश्रित हैं। व्यक्तियों के योग से समाज उत्पन्न होता है। हैवी हस्र्ट तथा न्यू गार्टन ने अपनी पुस्तक सोसाइटी एण्ड एजुकेशन में समाजीकरण की व्याख्या करते हुये लिखा है सामाजीकरण वह प्रक्रिया है जिसके माध्यम से बच्चे अपने समाज के स्वीकृत ढंगों को सीखते है, और इन ढंगों को अपने व्यक्तित्व का Single अंग बना देते हैं। सामाजिक संस्था का सदस्य होने के कारण व्यक्ति का व्यक्तित्व And अस्तित्व दोनो Windows Hosting रहता है, और व्यक्ति का स्व समाज के स्व के अधीन हो जाता है। स्वस्थ समाज वही है, जो लेाकतांत्रिक व्यवस्था में विश्वास करता है समाज में स्वतंत्रता व्यक्ति की उन्नति का आधार बनता है। समाज और व्यक्ति के मध्य अक्सर संघर्ण उत्पन्न हो जाता है। उसका कारण व्यक्ति की इच्छायें And समाज की उससे अपेक्षाये होती है।

समाज के प्रमुख तत्व 

समाज के निर्माण के कर्इ तत्व है, इसे जानने के बाद ही समाज का Means पूर्णतया स्पष्ट हो जायेगा-

  1. समाज की आत्मा से मनुष्य का अमूर्त सम्बंध है। समाज Single प्रकार से भावना का आधार लेकर बनता है। व्यक्ति समाज के अवयव के Reseller में है। व्यक्तियों के बीच की विविधता समाज में समन्वय के Reseller में परिलक्षित होती है। कोहरे राबर्टस के According-’’तनिक सोचने पर यह स्पष्ट हो जाता है कि समाज के अभाव में व्यक्ति Single खोखली संज्ञा मात्र है। Human कभी अकेले नहीं रह सकता वह समाज का सदस्य बनकर रह जाता है। Human का अध्ययन Human समाज का अध् ययन है, व्यक्ति का विकास समाज में ही सम्भव है।’’ रॉस ने स्पष्ट Reseller-’’समाज से अलग वैयक्तिकता का कोर्इ मूल्य नहीं रह जाता है और व्यक्तित्व Single Means ही न संज्ञा मात्र है।’’ 
  2. समाज में हम की भावना होती है। इस भावना के अन्तर्गत व्यक्तिगत मैं निहित होता है, और यही सामाजिक बंधन को जन्म देता है। पर समाज के सम्पूर्ण बंधन स्वार्थपूर्ण हेाते हैं। 
  3. समाज में समूह मन व समूह आत्मा होती है।, यह सम्बंध पारस्परिक चेतना से युक्त हेाती है, समूह मन में यह चेतना होती है और उनके यह व्यवहार में प्रकट होती है। 
  4. समाज में अपनी Safty की भावना पायी जाती है, इसके लिये वह अपने अस्तित्व की रक्षा के लिये सदैव प्रयत्नशील रहता है, और समाज अपनी निजता को बनाये रखने के लिये नियम कानून रीति रिवाज संस्कृति व सभ्यता को विकसित व निर्मित करता है। 
  5. समाज की आर्थिक स्थिति उसके सदस्यों की आर्थिक स्थिति पर निर्भर करती है तो उनसे आर्थिक स्थिति की विविधता पायी जाती है परन्तु इन सबके बाद भी उनमें Single समाज अधिकार भावना पायी जाती है, कि हम समाज के सदस्य है। 
  6. समाज के जीवन And संस्कृति सभ्यता के कारण व्यक्तियों के आचार-विचार व्यवहार मान्यताओं में Singleा पायी जाती है। जिसे हम जीवन का सामान्य तरीका के Reseller में देख सकते हैं। 
  7. समाज निश्चित उद्देश्यों को रखकर निर्मित होते है, जिसमें पारस्परिक लाभ, मैत्रीपूर्ण व शान्तिपूर्ण जीवन आदर्शों And कायर्ेां की पूर्ति आदि के Reseller् में देखे जा सकते है। 
  8. समाज में स्थायित्व की भावना होती है क्येांकि All सदस्य कर्इ पीढ़ियों से उसी समाज के आजीवन सदस्य रहते हैं, इससे समाज बना रहता है। 
  9. समाज कर्इ समूहों के संगठन होते है जिनमें अन्योन्याश्रितता होती है।

    You may also like...

    Leave a Reply

    Your email address will not be published. Required fields are marked *