सफेद मूसली की खेती कैसे करें
सफेद मूसली Single कंदयुक्त पौधा होता है, जिसकी अधिकतम ऊँचार्इ डेढ़ फीट तक होती है तथा इसकी कंदिल जड़ें (जिन्हें कंद अथवा फिंगर्स कहा जाता है) जमीन में अधिकतम 10 इंच तक नीचे जाती है। भारतवर्ष के विभिन्न भागों में जंगलों में प्राकृतिक Reseller में पाया जाने वाला यह पौधा क्लोरोफाइटम बोरिविलिएनम के नाम से जाना जाता है परंतु ‘‘इंडियन मेटीरिया मेडिका’’ में इसका नाम क्लोरोफाइटम अरुंडीनेशियम दर्शाया गया है। गुजराती भाषा सफेद मूसली का पौधा में यह पौधा धेली मूसली के नाम से, उत्तरप्रदेश में खैरुवा के नाम से, मराठी में सुफेद अथवा सुफेता मूसली के नाम से, मलयालम में शेदेवेली के नाम से, तमिल भाषा में तानिरवितांग के नाम से तथा अरबी भाषा में यह शकेक्वेले हिन्दी के नाम से जाना जाता है। उ0 प्र0 And मध्यप्रदेश के जंगलों में यह पौधा बरSeven के समय अपने आप उग जाता है तथा आदिवासी लोग इसे उखाड़ कर सस्ती दरों पर बाजार में बेच देते हैं। बहुधा यह मूसली ठीक से तैयार नहीं हो पाती (मैच्योर नहीं हो पाती),
अत: इसके औषधीय गुणों में भी कमी रहती है। इसके फलस्वReseller बाजार में इसके उचित दाम नहीं मिल पाते तथा यह बाजार में 15 से 150 रुपये प्रति किग्रा0 की दर से बेच दी जाती है जबकि अच्छी गुणवत्ता वाली विधिवत सुखार्इ हुर्इ मूसली की बाजार में 1500 रु0 प्रति कि.ग्रा. तथा इससे अधिक कीमत भी मिल जाती है।
सफेद मूसली की विभिन्न प्रजातियाँ /किस्में
मूसली की विभिन्न प्रजातियाँ पार्इ जाती हैं जैसे-क्लोरोफाइटम बोरिविलिएनम, क्लोराफाइटम ट्यूबरोजम, क्लोरोफाइटम अरुन्डीनेशियम, क्लोरोफाइटम एटेनुएटम, क्लोरोफाइटम ब्रीविस्केपम आदि, परन्तु मध्यप्रदेश के जंगलों में अधिकांशत: उपलब्धता क्लोरोफाइटम बोरिविलिएनम तथा ट्यूबरोज़म की ही है। इन दोनों में मुख्य अंतर यह है कि ट्यूबरोज़म में क्राउन के साथ Single धागा जैसा लगा होता है तथा उसके उपरांत इसकी मोटार्इ बढ़ती है, जबकि बोरिविलिएनम में कंद के फिंगर की मोटार्इ ऊपर ज्यादा होती है या तो पूरी फिंगर की मोटार्इ Single जैसी रहती है अथवा यह नीचे की ओर घटती जाती है। चूँकि ट्यूबरोज़म के संदर्भ में छिलका उतारना कठिन होता है अत: यह खेती के लिए उपयुक्त नहीं मानी जाती अस्तु अधिकांशत: क्लोरोफाइटम बोरिविलिएनम की ही खेती की जाती है।
मूसली के औषधीय उपयोग
विभिन्न दवार्इयों के निर्माण हेतु सफेद मूसली (कार्बोहाइड्रेट – 42 प्रतिशत, प्रोटीन्स – 8 प्रतिशत, फाइबर – 4 प्रतिशत, सैपोनिन्स – 17 प्रतिशत) का उपयोग हमारे देश में बरसों से होता आ रहा है। मूलत: यह Single ऐसी जड़ी-बूटी मानी गर्इ है जिसमें किसी भी प्रकार की तथा किसी भी कारण से आर्इ शारीरिक शिथिलता को दूर करने की क्षमता पार्इ गर्इ है। यही कारण है कि कोर्इ भी आयुर्वेदिक टॉनिक (जैसे-च्यवनप्राश, शिलाजीत आदि) इसके बिना संपूर्ण नहीं माना जाता। नपुंसकता दूर करने, यौनशक्ति And बलवर्धन हेतु इसका उपयोग अधिक हो रहा है। यह इतनी पौष्टिक तथा बलवर्धक होती है कि इसे ‘‘Second शिलाजीत’’ की संज्ञा दी गर्इ है तथा इसे चीन/उत्तरी अमेरिका में पाये जाने वाले पौधे जिन्सेंग जिसका वनस्पतिक नाम ‘‘पेनेक्स’’ है,Phone …………………………………. जैसा बलवर्धक माना गया है। विदेशों में इससे कैलॉग जैसे फ्लेक्स बनाए जाने पर भी कार्य चल रहा है जो नाश्ते के Reseller में प्रयुक्त किए जा सकेंगें। इसके अतिरिक्त इससे माताओं का दूध बढ़ाने, प्रसवोपरान्त होने वाली बीमारियों तथा शिथिलता को दूर करने तथा मधुमेह आदि जैसे अनेकों रोगों के निवारण हेतु भी दवार्इयाँ बनार्इ जाती हैं। इसी प्रकार ऐसी अनेकों आयुर्वेदिक, एलोपैथिक तथा यूनानी औषधियाँ हैं जो इस जड़ी-बूटी से बनार्इ जाती हैं तथा जिसके कारण यह Single उच्च मूल्य जड़ी-बूटी बन गर्इ है तथा भारत के साथ-साथ अंतर्राष्ट्रीय बाजार में भी इसकी प्रचुर माँग है। वर्तमान में सफेद मूसली का उपयोग करके प्रमुख उत्पाद And औषधियां जैसे- शिवोजाइम, Ultra siteाशक्ति कैप्सूल, सीमेन्टो टेबलेट, मेमोटोन सिरप, मूसली पाक, कामदेव चूर्ण, दिव्य रसायन चूर्ण, केसरी जीवन, जोश शक्ति आदि।
मूसली की खेती की Need क्यों ?
सफेद मूसली विभिन्न औषधियों के निर्माण हेतु प्रयुक्त होने वाली Single अमूल्य जड़ी-बूटी है जिसकी देशीय तथा अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर व्यापक माँग है। परन्तु जिस तेजी से यह माँग बढ़ रही है उसकी तुलना में इसके उत्पादन तथा आपूर्ति में बढ़ोत्तरी नहीं हो पार्इ है। अभी तक इसकी आपूर्ति का Single ही साधन था – जंगलों से इसकी प्राप्ति। परन्तु निरंतर तथा अंधाधुंध दोहन के कारण Single तो उपयुक्त गुणवत्ता वाली मूसली मिल पाना मुश्किल हो गया है, Second इसकी आपूर्ति में भी निरंतर कमी आ रही है जबकि माँग निरंतर बढ़ रही है। Single अनुमान के According अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मूसली की कुल वार्षिक उपलब्धता 5000 टन है जबकि इसकी वार्षिक माँग 35000 टन है। इस बढ़ती हुर्इ माँग की आपूर्ति तभी संभव है यदि इसकी विधिवत् खेती की जाए। हमारे देश के विभिन्न भागों में मूसली की विधिवत् खेती प्रारंभ हुर्इ है वैज्ञानिक तरीके से मूसली की खेती किसी भी प्रकार की खेती की तुलना में कर्इ गुना ज्यादा लाभकारी है तथा इसकी खेती से औसतन प्रति Singleड़ 4 से 5 लाख रुपये तक का शुद्ध लाभ कमाया जा सकता है। इसकी खेती के लिए मध्यप्रदेश, महाराष्ट्र, उत्तरप्रदेश, बिहार, उड़ीसा, हरियाणा, दिल्ली आदि प्रदेशों की जलवायु काफी अनुकूल है।
मूसली की खेती कैसे करें ?
मूसली मूलत: Single कंदरुपी पौधा है जो कि हमारे देश के जंगलों में प्राकृतिक Reseller से उगता है। स्वभाव से भी यह Single ‘‘हार्डी’’ पौधा है जिसकी विधिवत् खेती काफी सफल है। इसकी खेती से संबंधित किये गए सफल प्रयोगों के आधार पर इसकी खेती के लिए विकसित की गर्इ बायोवेद कृषि तकनीक वर्तमान में काफी लाभदायक सिद्ध हुर्इ है।
खेती के लिए उपयुक्त भूमि
मूसली मूलत: Single कन्द है जिसकी बढ़ोत्तरी जमीन के अन्दर होती है अत: इसकी खेती के लिए प्रयुक्त की जाने वाली जमीन आदर््र (नमी) होनी चाहिए। अच्छी जल निकासी वाली रेतीली दोमट मिट्टी जिसमें जीवाश्म की पर्याप्त मात्रा उपस्थित हो, इसकी खेती के लिए सर्वश्रेष्ठ मानी जाती है। भूमि ज्यादा गीली भी नहीं होनी चाहिए अन्यथा कन्द की फिंगर्स पतली रह जाएगीं जिससे इसका उत्पादन प्रभावित होगा।
फसल के लिए पानी की Need
मूसली की अच्छी फसल के लिए पानी की काफी Need होती है। जून माह में लगाए जाने के कारण जून-जुलार्इ, अगस्त के महीनों में प्राकृतिक बरSeven होने के कारण इन महीनों में कश्ित्राम Reseller से सिंचार्इ करने की Need नहीं होती, फिर भी यह ध्यान दिया जाना आवश्यक है कि जब तक फसल उखाड़ न ली जाए तब तक भूमि गीली रहनी चाहिए। अत: बरSeven के उपरांत लगभग प्रत्येक 10 दिन के अंतराल पर खेत में पानी देना उपयुक्त होगा। पौधों के पत्ते सूखकर झड़ जाने के उपरांत भी जब तक कंद खेत में हो, हल्की-हल्की सिंचार्इ प्रत्येक दस दिन में करते रहना चाहिए जिससे भूमिगत कन्दों की विधिवत् बढ़ोत्तरी होती रहे। सिंचार्इ के लिए यदि खेत में ‘‘िस्प्रंकलर्स’’ लगे हो तो यह सर्वाधिक उपयुक्त होगा परन्तु ऐसा अनिवार्य नहीं है। सिंचार्इ का माध्यम तो कोर्इ भी प्रयुक्त Reseller जा सकता है परन्तु सिंचार्इ नियमित Reseller से होते रहना चाहिए। यद्यपि सिंचार्इ Reseller जाना आवश्यक है परन्तु खेत में पानी रुकना नहीं चाहिए अन्यथा इससे फसल का उत्पादन प्रभावित होगा। सिंचार्इ के लिए कुआं, ट्यूबवेल, नहर आदि जो भी संभव हो, माध्यम का उपयोग Reseller जा सकता है।
मूसली की खेती के प्रमुख लाभ
अत्याधिक लाभकारी फसल – मात्र 6 से 8 माह में प्रति Singleड़ चार से पांच लाख रुपये का शुद्ध लाभ देने वाली और कोर्इ फसल नहीं है। इसकी किसी प्रकार की प्रोसैसिंग करने की Need नहीं-कोर्इ मशीन लगाने की जरूरत नहीं। सीधे उखाड़ कर, छील कर तथा सुखा कर बेच सकते हैं। बाजार की समस्या नहीं – व्यापक बाजार उपलब्ध है। मूसली की खेती के लिए बायोवेद कृषि तकनीक विकसित हो चुकी है। बायोवेद शोध संस्थान में मूसली की खेती के लिए प्रशिक्षण उपलब्ध है। अधिक लोगों को रोजगार उपलब्ध हो सकेगा। मौसम के परिवर्तन का फसल पर ज्यादा प्रभाव नहीं पड़ता। यदि प्रारंभिक स्तर पर किसान मंहगा बीज न ले सकें तो कम बीज लेकर इनका विकास स्वयं भी कर सकते है।
खेत की तैयारी
मूसली की फसल के लिए खेत की तैयारी करने के लिए First खेत में गहरा हल चला दिया जाता है। यदि खेत में ग्रीन मैन्यूर के लिए First से कोर्इ अल्पावधि वाली फसल उगार्इ गर्इ हो तो उसे काट कर खेत में डाल कर मिला दिया जाता है। तदुपरान्त इस खेत में गोबर की पकी हुर्इ खाद 5 से 10 ट्राली प्रति Singleड़ भुरक कर इसे खेत में मिला दिया जाता है। बायोनीमा 15 किग्रा0 And बायोधन 1/2 किग्रा0 प्रति Singleड़ की दर से डालकर बीज बोना चाहिए। Need पड़ने पर 32 किग्रा. यूरिया 24 किग्रा. डी.ए.पी. प्रति Singleड़ डालना चाहिए।
वेड्स बनाना
मूसली की अच्छी फसल के लिए खेत में बेड्स बनाये जाना आवश्यक होता है। इस संदर्भ में 1 से 1.5 फीट चौड़े सामान्य खेत से कम से कम 6 इंच से 1.5 फीट ऊँचे बेड्स बना दिये जाते है। इनके साथ-साथ पानी के उचित निकास हेतु नालियों की पर्याप्त व्यवस्था की जाती है तथा बेड्स के किनारों पर आने-जाने के लिए पर्याप्त जगह छोड़ा जाना आवश्यक होता है। यदि ज्यादा चौड़े बेड्स न बनाने हो तो आलू की तरह के सिंगल बैड्स भी बनाए जा सकते है। हालाँकि इसमें काफी ज्यादा जगह घिरेगी परन्तु मूसली उखाड़ते समय यह ज्यादा सुविधाजनक रहेगा।
मूसली की बिजार्इ हेतु प्रयुक्त होने वाला बीज अथवा प्लांटिंग मटेरियल
मूसली की बिजार्इ इसके घनकंदों अथवा ट्यूबर्स अथवा फिंगर्स से की जाती है। इस संदर्भ में पूर्व की फसल से निकाले गये कंदों/फिंगर्स का उपयोग भी Reseller जा सकता है अथवा जंगलों से भी इस प्रकार के कंद Singleत्रित किये अथवा करवाये जा सकते है। बीज के लिए ट्यूबर्स अथवा फिंगर्स का उपयोग करते हुए यह बात अवश्य ध्यान में रखनी चाहिए कि फिंगर्स के साथ पौधे के डिस्क अथवा क्राउन का कुछ भाग अवश्य साथ में लगा रहे अन्यथा पौधे के उगने में परेशानी आ सकती है। इसके साथ-साथ प्रयुक्त किये जाने वाले ट्यूबर अथवा फिंगर का छिलका भी क्षतिग्रस्त नहीं होना चाहिए। इस प्रकार मान लो Single पौधे में 20 फिंगर्स हैं तो उससे 20 बीज बन सकते हैं, परन्तु डिस्क अथवा क्राउन का कुछ भाग All के साथ लगा होना चाहिए। यदि कंद छोटे हो तो पूरे के पूरे पौधे का उपयोग भी बिजार्इ हेतु Reseller जा सकता है। ऐसा भी Reseller जा सकता है कि जब फसल उखाड़ी जाये तो पौधे के जो लम्बे-लम्बे अथवा पूर्ण विकसित फिंगर्स अथवा ट्यूबर्स हों उन्हें तो अलग करके तथा छील करके बिक्री के लिए भिजवा दिया जाये तथा जो फिंगर्स छोटे रह गये हों उन्हें बीज के Reseller में प्रयुक्त कर लिया जाये। फिंगर्स तभी तक अलग-अलग किए जा सकते हैं जब तक पौधों में से पत्ते न निकलें अन्यथा इन्हें अलग-अलग करना फायदेमन्द नहीं रहेगा। प्राय: Single ट्यूबर (बीज) का वज़न 0.5 ग्राम से 20 ग्राम तक हो सकता है परन्तु अच्छी फसल की प्राप्ति हेतु ध्यान रखना चाहिए कि प्राय: ट्यूबर 5 ग्राम से 10 ग्राम तक के वजन का हो। अच्छी फसल की प्राप्ति के लिए अच्छी गुणवत्ता तथा प्रामाणिक बीज बायोवेद शोध फार्म या विश्वासपात्र शोध संस्थान अथवा सीमैप, लखनऊ से लेना (कम से कम First फसल के लिए) अत्यावश्यक होता है।
जंगलों से प्राप्त किये जाने वाले बीज
मूसली Single उच्च मूल्य उत्पाद है इसलिए इसका बीज भी काफी मंहगा होता है। प्राय: बाजार में इसकी कीमत 300 रु0 से 600 रु0 प्रति कि0ग्रा0 तक ली जाती है। Single Singleड़ में लगभग 4 से 6 क्विंटल बीज लगेगा अत: बीज की न्यूनतम लागत लगभग 1.5 लाख रु0 आएगी जिसको खरीदना प्रत्येक किसान के लिए संभव नहीं होगा। इस समस्या का Single हल यह हो सकता है कि First वर्ष में किसान जंगलों से मूसली Singleत्रित कर लें। प्राय: बरSeven के प्रारंभ होते ही मूसली के पौधे उगने लगते हैं जिन्हें बनवासी लोग जंगलों से उखाड़ कर बेचने के लिए बाजारों में लाते हैं। इस प्रकार उनसे ये पौधे खरीद करके इनकी खेतों में ट्रांसप्लांटिंग की जा सकती है। इस प्रकार से जंगल से उखाड़ी हुर्इ मूसली काफी सस्ते दामों (प्राय: 25 रु0 से 100 रु0 प्रति किग्रा0 तक) प्राप्त हो जाती है। इस प्रकार की मूसली को सीधे (पूरे के पूरे पौधे को) खेत में लगा दिया जाता है। क्योंकि यह मूसली अपेक्षाकश्त काफी कमजोर होती है, अत: इसे पूर्णतया विकसित होने में समय लग सकता है। इस प्रकार की लगार्इ गर्इ मूसली से प्राय: First साल फसल नहीं ली जाती अथवा इसकी कीमत काफी कम मिलती है। परन्तु अगले वर्ष में ये अच्छी तरह विकसित हो जाते है तथा अच्छा उत्पादन देने के काबिल हो जाते है। Third वर्ष में तो ये बीज तथा उत्पादन दोनों के लिए तैयार हो जाते है। इस प्रकार जंगल से मूसली के पौधे प्राप्त करके मंहगें बीज की समस्या भी हल की जा सकती है। दूसरा हल यह है कि First वर्ष किसान कम मात्रा में मूसली की खेती करें। अपने यहाँ तैयार किये गये बीजों से मूसली की खेती को आगे बढ़ायें। यह सर्वोत्तम तरीका है।
क्या बीजो से भी मूसली की बिजार्इ की जा सकती है ?
मूसली के पौधे जब लगभग 2 माह से अधिक अवधि के हो जाते हैं तो उन पर First फूल तथा बाद में छोटे-छोटे बीज आते हैं जो पकने पर काले रंग के (प्याज के बीजों जैसे) हो जाते हैं। ये बीज काफी छोटे होते है तथा इनका संग्रहण काफी मुश्किल होता है। प्राय: पौधों पर पोलीथीन की थैलियाँ बाँध कर इनका संग्रहण Reseller जाता है। यद्यपि बीजो से मूसली के पौधे तैयार करने की दिशा में भी शोध कार्य चल रहे हैं परन्तु अभी इस क्षेत्र में ज्यादा सफलता प्राप्त नहीं हो पार्इ है। बीजों से पौध तैयार करने में Single परेशानी यह भी देखी गर्इ है कि इसमें पौधा तैयार होने में काफी समय (2 वर्ष तथा इससे अधिक भी) लग जाता है तथा पौधे पर्याप्त हष्ट-पुष्ट भी नहीं हो पाते। अत: अच्छी फसल की प्राप्ति हेतु तथा कम समयावधि की Need को देखते हुए सीधे डिस्क अथवा क्राउन युक्त कंदों/फिंगर्स से बिजार्इ करना ही सर्वश्रेष्ठ पाया गया है।
(अ) प्लांटिंग मेटेरियल की मात्रा: मूसली की बिजार्इ हेतु 5 से 10 ग्राम वजन की क्राउन युक्त फिंगर्स सर्वाधिक उपयुक्त रहेंगी जिनका 6’’ × 6’’ की दूरी पर रोपण Reseller जाता है। Single Singleड़ के क्षेत्र में अधिकतम 80, 000 बीज (क्राउनयुक्त फिंगर्स) लगेगें जिनमें से कुछ बीज 2 ग्राम के भी हो सकते हैं, कुछ 3 ग्राम के, कुछ 3.5 ग्राम के अथवा कुछ 10 ग्राम के। इस प्रकार Single Singleड़ के क्षेत्र हेतु लगभग 4 से 6 क्विंटल प्लांटिंग मेटेरियल की Need होगी।
(ब) बिजार्इ से पूर्व प्लाटिंग मेटेरियल का ट्रीटमेण्ट : लगाये जाने वाले पौधे रोगमुक्त रहें तथा इनके नीचे किसी प्रकार की बीमारी आदि न लगे इसके लिए प्लांटिंग मेटेरियल को लगाने से पूर्व 2 मिनट तक बाबस्टीन के घोल में अथवा Single घंटा गौमूत्र में डुबोकर रखा जाना चाहिए जिससे ये रोगमुक्त हो जाते है।
बिजार्इ की विधि
खेत की तैयारी करने के उपरांत 3 से 3.5 फीट चौड़े, जमीन से 1-1) फीट ऊँचे बैड बना लिए जाते है। बरSeven प्रारंम्भ होते ही (15 जून से 15 जुलार्इ के लगभग) इन बैड्स में लकड़ी की सहायता से (जोकि इस कार्य हेतु विशेष रुप से बनार्इ जा सकती है), कतार से कतार तथा पौधे से पौधा 6 × 6 इंच की दूरी रखते हुए छेद कर लिए जाते हैं। छेद करने के पूर्व यह देखना आवश्यक है कि हाल ही में बारिश हुर्इ हो अथवा उसमें पानी दिया गया हो (जमीन गीली होनी चाहिए)। इस प्रकार Single बैड में छ: कतारें बन जाती है। फिर इस प्रत्येक छेद में हाथ से Single-Single डिस्क युक्त अथवा क्राउन युक्त फिंगर अथवा सम्पूर्ण पौधे का रोपण कर दिया जाता है। यदि फिंगर बहुत छोटी हो तो 2-2 फिंगर्स को मिलाकर भी रोपण Reseller जा सकता है परन्तु All फिंगर्स में क्राउन का कुछ भाग संलग्न रहना चाहिए। यदि बीज बड़ा हो (5 ग्राम से अधिक हो) तो 6 × 6 इंच वाली दूरी को बढ़ाया भी जा सकता है। रोपण करते समय यह ध्यान रखना चाहिए कि फिंगर जमीन में 1 इंच से ज्यादा गहरी न जाये। फिंगर जमीन में सीधी लगार्इ जानी चाहिए Meansात् क्राउन वाला भाग ऊपर तथा फिंगर का अंतिम सिरा नीचे। रोपण के उपरान्त इस पर हाथ से ही मिट्टीडाल देनी चाहिए अथवा छेद ऊपर से बंद कर दिया जाना चाहिए। इस प्रक्रिया में प्राय: Single व्यक्ति लकड़ी से आगे-आगे छेद बनाता चलता है तथा दूसरा फिंगर्स का रोपण करता जाता है।
पौधों का उगना तथा बढ़ना
बिजार्इ के कुछ दिनों के उपरांत ही पौधा उगने लगता है तथा इसमें पत्ते आने लगते है। इसी बीच फूल तथा बीज आते हैं तथा अक्टूबर-नवम्बर माह में पत्ते अपने आप सूखकर गिर जाते हैं और पौधे के कन्द जमीन के नीचे रह जाते है।
मूसली की फसल से होने वाले उत्पादन की मात्रा
मूसली की फसल में होने वाले उत्पादन की मात्रा अनेकों कारकों पर आधारित होती है, जिनमें सर्वाधिक महत्वपूर्ण है इसका बीज ऐसा पाया गया है कि छोटे बीजों से (प्राय: 5 ग्राम से कम वजन वाले बीजों से) प्राय: 4-5 गुना बड़ा कन्द तैयार होता है, (Meansात् इसमें लगने वाली All फिंगर्स को मिलाकर कंद का वजन प्रयुक्त किये गए बीज की तुलना में 4-5 गुना बड़ा होगा) जबकि इससे ज्यादा वजन वाले कन्दों प्राय: 3 गुना बड़ा कन्दों से प्राय: 3 गुना बड़ा कन्द तैयार होता है। 2 ग्राम से लेकर 270 ग्राम तक के कन्द पाये जाते है परन्तु Single अच्छी फसल से औसतन 20-25 ग्राम वज़न वाले कन्द प्राप्त होने है। इसी प्रकार Single पौधे में लगने वाले फिंगर्स की संख्या भी 2 से लेकर 65 तक देखी गर्इ है परन्तु औसतन Single पौधे में 10 से 12 फिंगर्स होना पाया गया है। इस प्रकार ऐसा माना जाता है कि डाले गये बीज की तुलना में मूसली का 5 से 10 गुना ज्यादा उत्पादन होगा।
मूसली की फसल में होने वाली प्रमुख बीमारियाँ तथा प्राकृतिक आपदाऐ
मूसली की फसल में प्राय: कोर्इ विशेष बीमारी नहीं देखी गयी है अत: इसमें किसी प्रकार के कीटनाशकों का उपयोग करने की Need नहीं होती। क्योंकि पौधे का कन्द भूमि में रहता है अत: इस फसल पर किन्हीं प्राकृतिक आपदाओं जैसे ओलावृष्टि आदि का प्रभाव भी नहीं हो पाता। फिर भी कोर्इ रोग होने पर बायोपैकुनिल And बायोधन का पण्र्ाीय छिड़काव करना चाहिए। यदि पानी के उचित निकास की व्यवस्था न हो तथा पौधे की जड़ों के पास पानी ज्यादा दिन तक खड़ा रहे, तो पैदावार पर प्रभाव पड़ सकता है तथा कन्द पतले हो सकते है। कवक की बीमारी के कारण सड़ सकते हैं इसलिए ट्राइकोडरमा 2 से 3 कि.ग्रा. प्रति Singleड़ अथवा बायोनीमा 15 कि.ग्राप्रति Singleड़ का भू प्रयोग करना उचित होगा। वैसे यह पौधा किसी प्रकार की बीमारी अथवा प्राकृतिक आपदाओं के प्रभाव से लगभग मुक्त है।
पतली मूसली की फिंगर्स/टूयूबर्स का उत्पादन पर प्रभाव
मूसली की फसल का प्रमुख उत्पाद उसकी फिंगर्स ही है जिन्हें छीलकर तथा सुखाकर सूखी मूसली तैयार की जाती है, अत: ये फिंगर्स मोटी तथा अधिक से अधिक गूदायुक्त होनी चाहिए ताकि छीलने पर ज्यादा मात्रा में गूदायुक्त फिंगर्स प्राप्त हो सकें (फिंगर्स के पतले होने पर ज्यादा गूदा प्राप्त नहीं होगा) प्राय: भूमि के ज्यादा नर्म (पोला) होने पर फिंगर्स जमीन में ज्यादा गहरी चली जाती है तथा पतली रह जाती है। अत: खेत को तैयार करते समय इस बात का ध्यान रखा जाना चाहिए कि भूमि ज्यादा नर्म (पोली) न हो, Second यदि खुदार्इ के उपरांत पौधे में ऐसी फिंगर्स निकलती हैं तो उन्हें उत्पादन के Reseller में प्रयुक्त करने के बजाय प्लांटिंग मेटेरियल के Reseller में प्रयुक्त कर लिया जाना चाहिए।
जमीन से पौधों/कन्दों को उखाड़ना
पौधों के पत्ते सूख जाने पर (बिजार्इ से लगभग 90-95 दिन के उपरांत) ऐसा माना जाता है कि फसल तैयार हो गर्इ है तथा कन्द निकाले जा सकते है, परन्तु ऐसा कदापि नहीं करना चाहिए। पत्तों के सूखकर गिर जाने के उपरांत भी Single-दो महीने तक के लिए कन्दों को जमीन में ही रहने दिया जाना चाहिए तथा पत्तों के सूख जाने के उपरांत प्रारंभ में (कच्चे) कन्दों का रंग सफेदी लिए हुए होता है जो कि धीरे-धीरे भूरा होने लगता है। जमीन में जब कन्द पूर्णतया पक जाते हैं तो इनका रंग गहरा भूरा हो जाता है। अत: जबकंदों का रंग गहरा-भूरा हो जाए तो कुदाली की सहायता से Single-Single करके कन्दों को निकाला जा सकता है। प्राय: कंद निकालने का कार्य मार्च-अप्रैल माह में Reseller जाता है। कंदों को निकालने का कार्य हाथ से ही (ट्रैक्टर आदि से नहीं) करना चाहिए जिससे All कन्द बिना क्राउन से अलग हुए निकाले जा सकें तथा जिन कन्दों का उपयोग बीज बनाने हेतु करना हो, वे बीज के Reseller में प्रयुक्त किय जा सकें तथा जिनको तोड़कर, छीलकर तथा सुखाकर सूखी मूसली के Reseller में बेचा जाना हो, उन्हें बिक्री हेतु प्रयुक्त Reseller जा सके।
कंदों को जमीन से उखाड़ने का उपयुक्त समय
कर्इ बार फसल तैयार हो जाने के उपरांत भी किसान को कन्दों को जमीन से उखाड़ना नहीं चाहिए तथा इन्हें जमीन में ही रहने देना चाहिए। ऐसा कर्इ बार चाह कर भी Reseller जा सकता है अथवा मजबूरी वश भी हो सकता है (उदाहरणार्थ समय पर श्रमिक न मिलें अथवा किसान के पास समय न हो)। परन्तु इसमें कोर्इ ज्यादा परेशानी की बात नहीं होती क्योंकि बरSeven में ये कंद (जो उखाड़े नहीं गए थे) जमीन में पड़े-पड़े गल जायेगें तथा अगली बरSeven में इनमें से अपने आप नये पौधे निकल आयेंगे। परन्तु इसमें कमी यह रहती है कि अगला पौधा (पिछले कंद की तुलना में जो जमीन में ही गल गया था) की तुलना में मात्रा 50 से 100 प्रतिशत तक ही बढ़ पाता है। उदाहरणार्थ यदि पहला कंद 10 ग्राम का था तो यह Single साल के उपरांत यह मात्रा 15 से 20 ग्राम तक ही हो पाएगा जबकि यदि इसे उखाड़ कर लगाया जाता है तो इसमें 3 से 4 गुना की बढ़ोत्तरी हो जाती। फिर भी यह तय है कि यदि कंद न भी उखाड़ा जाये तो उसमें कोर्इ हानि नहीं होगी तथा इसमें प्रतिवर्ष अपने आप कुछ न कुछ वृद्धि होती रहेगी। ऐसी वृद्धि प्राय: Seven साल तक देखी गर्इ है तथा Seven साल के बाद इन कंदों का बढ़ना रुक जाता है।
कंदो की धुलार्इ
जमीन से कंद उखाड़ने पर उनके साथ मिट्टी आदि लगी रहती है अत: छीलने से पूर्व उन्हें धोया जाना आवश्यक होता है। इस संदर्भ में उखाड़े हुए कंदों की टोकरियों को पानी के बहाव के नीचे रखकर कंदों की धुलार्इ की जा सकती है। इसके उपरांत धुले हुए कंदोंकी छिलार्इ की प्रक्रिया प्रारंभ होती है।
मूसली के कंदों की छिलार्इ
जिन कंदों का उपयोग बीज हेतु करना हो, उन्हें छोड़कर शेष मूसली को विपणन हेतु भिजवाने से पूर्व उसके कंदों/ट्यूबर्स/ंिफंगर्स की छिलार्इ करना अथवा उनका छिलका उतारना अत्यावश्यक होता है ताकि छिलका उतारने पर यह अच्छी तरह से सूख जाए तथा इसे बिक्री हेतु प्रस्तुत Reseller जा सके। यद्यपि यह कार्य अत्याधिक आसान है तथा अकुशल श्रमिक/बच्चे भी इसे कर सकते है परन्तु यह काफी अधिक श्रमसाध्य है तथा इसमें काफी समय लगता है, क्योंकि मूसली के प्रत्येक कंद/फिंगर को छीलना पड़ता है। वर्तमान में मूसली की छिलार्इ हेतु प्रचलित प्रमुख विधियाँ निम्नानुसार हैं-
(क) पत्थर से घिसार्इ :प्राय: परम्परागत रुप से जंगलों से Singleत्रित की जाने वाली मूसली का छिलका उतारने हेतु मूसली को पत्थर से घिसा जाता है जिससे उसका छिलका उतर जाता है। परन्तु यह विधि ज्यादा उपयुक्त नहीं है, क्योंकि (1) पत्थर से घिसने पर मूसली में से कर्इ बार छिलके के साथ काफी ज्यादा मात्रा में गूदा निकल जाता है जिससे अनावश्यक हानि होती है, (2) कर्इ बार मूसली के कुछ Single स्थानों पर गूदा साथ ही रह जाता है जिससे उत्पाद की गुणवत्ता प्रभावित होती है, (3) इस प्रकार से छिली हुर्इ मूसली की बाजार में माँग भी प्राय: कम रहती है।
(ख) मूसली को गीला करके उसका छिलका उतारना :प्राय: ग्रामीण क्षेत्रों में जहाँ जंगलों से मूसली Singleत्रित की जाती है, कच्ची मूसली को जंगल से उखाड़ने के उपरान्त उनका ढेर लगा दिया जाता है तथा उन पर प्रतिदिन पानी का हल्का-हल्का छिड़काव Reseller जाता है। कुछ समय के उपरान्त यह मूसली या तो स्वयं ही छिलका छोड़ने लगती है या इसे आसानी से मसल कर छिलका निकाल दिया जाता है। यह विधि विशेष Reseller से जंगलोंसे उखाड़ी हुर्इ कच्ची मूसली का छिलका उतारने के लिए उपयोगी हो सकती है। परन्तु इस विधि से पूर्णतया पकी हुर्इ मूसली से छिलका उतारने का सुझाव देना शायद उपयुक्त नहीं होगा।
(ग) चाकू से छिलार्इ : पत्थर पर घिसार्इ की बजाए चाकू से मूसली की छिलार्इ करना ज्यादा सुविधा जनक होता है। इसमें वेस्टेज भी कम होता है तथा इससे उत्पाद भी अच्छी गुणवत्ता का तैयार होता है। यह विधि काफी आसान भी है तथा कोर्इ भी अकुशल मजदूर भी ऐसी छिलार्इ का कार्य कर सकता है। यहाँ तक कि बच्चे भी यह कार्य कर सकते है। इस प्रकार Single दिन में Single व्यक्ति लगभग 1 किलोग्राम से 5 किग्रा0 तक मूसली छील लेता है। नि:संदेह छिलार्इ का कार्य काफी श्रमसाध्य कार्य है परन्तु यह कार्य हाथ से ही Reseller जाता है तथा इसका अभी कोर्इ विकल्प उपलब्ध नहीं हो पाया है। यद्यपि इस संदर्भ में किन्हीं रसायनों के प्रयोग पर शोध चल रहा है जिनमें मूसली को भिगोने पर इसका छिलका स्वत: ही निकल सके परन्तु ऐसा अभी व्यवहारिक नहीं हो सका है। इस प्रकार के रसायनों के उपयोग से मूसली के औषधीय गुण भी प्रभावित होना संभावित हैं अत: इस दिशा में अभी विशेष प्रगति नहीं हो पार्इ है तथा अच्छी गुणवत्ता की सूखी मूसली प्राप्त करने हेतु अभी तक हाथ से छिलार्इ करना ही सर्वश्रेष्ठ विधि मानी जा रही है। इसकी छिलार्इ हेतु मशीन बनाने की दिशा में भी कार्य चल रहा है परन्तु अभी तक इस संदर्भ में कोर्इ सफलता नहीं मिल पार्इ है।
छिली हुर्इ मूसली को सुखाना
छीलने के उपरांत छिली हुर्इ मूसली को सुखाया जाता है ताकि उसमें उपस्थित नमी पूर्णतया सूख जाए। ऐसा प्राय: छिली हुर्इ मूसली को धूप में डालकर Reseller जाता है। प्राय: दो-तीन दिन तक खुली धूप में रखने से मूसली में उपस्थित नमी पूर्णतया सूख जाती है।
मूसली की पैकिंग
सूखी हुर्इ मूसली को विपणन हेतु प्रस्तुत करने से पूर्व उसकी विधिवत् पैकिंग की जाती है। यह पैकिंग प्राय: पॉलीथीन की थैलियों में की जाती है ताकि यह Windows Hosting रह सके तथा इस पर किसी प्रकार से नमी आदि का प्रभाव न पड़े।
जमीन से उखाड़ने से लेकर सुखाने तक में मूसली के वजन में कमी
जमीन से उखाड़ने के उपरांत मूसली की छिलार्इ करने तथा उसे सुखाने की प्रक्रिया में मूसली के वजन में अंतर होना स्वभाविक है परन्तु सूखने के उपरान्त बचने की मात्रा मूसली के फिंगर्स की मोटार्इ (मांसलता) पर ज्यादा निर्भर करती है क्योंकि कुछ फिंगर्स ज्यादा मोटी होती है जबकि अन्य पतली होती है। यदि फिंगर्स ज्यादा मोटी होगी तो छिलार्इ के उपरांत अंतत: सूखने पर इनका वजन उन फिंगर्स की अपेक्षा अधिक रहेगा जो पतली फिंगर्स को छीलने तथा सुखाने के उपरांत प्राप्त होगी। वैसे इसे छीलने तथा सुखाने की प्रक्रिया में ताजी मूसली (खेत से उखाड़ी हुर्इ मूसली) का लगभग 20 से 25 प्रतिशत तक सूखी मूसली के Reseller में प्राप्त होता है।
आगामी फसल हेतु मूसली के बीज का संग्रहण कैसे Reseller जाए ?
मूसली के कंदों की खुदार्इ के उपरांत कंदों के साथ लगी हुर्इ बड़ी फिंगर्स को तोड़कर, छीलकर तथा सुखाकर बिक्रय Reseller जा सकता है जबकि शेष बची हुर्इ क्राउन सहित फिंगर्स, जो प्राय: आकार में छोटी होती है, का उपयोग बीज के Reseller में Reseller जा सकता है। क्योंकि ये कंद मार्च-अप्रैल माह में निकाले जाते हैं तथा इन्हें मर्इ-जून तक Windows Hosting रखा जाना आवश्यक होता है (क्योंकि इनकी बिजार्इ मर्इ-जून में ही होगी) अत: तब तक के लिए इनका भण्डारण सावधानीपूर्ण करना आवश्यक होता है। इन कंदों को कोल्ड स्टोरेज में रखना भी ज्यादा उपयुक्त नहीं पाया गया है क्योंकि इससे पौधों का उगाव प्रभावित होता है। यद्यपि यदि बीजों के संग्रहण के लिए Single विशेष चैम्बर बनाया जा सके जिसमें 70 से 80 अंश तक आदर््रता स्थिर की जा सके तो यह सर्वश्रेष्ठ होगा परन्तु All किसानों के लिए ऐसा मँहगा चैम्बर बना पाना संभव नहीं हो पाता। अत: कम लागत में इस प्रकार की व्यवस्था स्थापित किये जाने की दिशा में शोध कार्य चल रहे है। वैसे इन कंदों को Single छाया वाले स्थान में Single गढ्डे में रखकर ऊपर से मिट्टी डालकर Windows Hosting रखे जाने हेतु प्रयोग Reseller जा सकता है।
सागौन, पापुलर अथवा पपीते के साथ अंर्तवर्तीय फसल के Reseller में मूसली की खेती
यद्यपि मूसली अपने आप में इतनी अधिक लाभकारी फसल है कि इसकी खेती मुख्य फसल के Reseller में ही की जानी चाहिए परन्तु अंर्तवर्तीय फसल के Reseller में भी इसकी खेती काफी सफलतापूर्वक की जा सकती है। अभी कर्इ कृषकों द्वारा सागौन के बीचों-बीच मूसली की खेती करके प्रारंभिक वर्ष में ही (बिना कोर्इ विशेष खर्च किये) लाभ कमाया जा सकता है। पपीते के साथ भी अंर्तवर्तीय फसल के Reseller में मूसली की खेती की जा सकती है। इस संदर्भ में विशेषज्ञों का विचार है कि टीक के बीचों-बीच 1. 5 फीट के दायरे में मूसली के 11 पौधे रोपित कर दिये जायें तथा इन पर मिट्टी चढ़ा कर इन्हें 18 महीने तक पड़ा रहने दिया जाए (First वर्ष में न निकाला जाए)। यदि ड्रिप अथवा िस्प्रंकलर्स से इनकी सिंचार्इ व्यवस्था हो सके तो यह और भी ज्यादा लाभकारी होगा। ऐसी जगह में से घास आदि निकालने की भी Need नहीं होगी। इस प्रकार 18 महीने के उपरांत बिना किसी अतिरिक्त खर्च के मूसली के पौधों में स्वत: ही 4 से 5 गुना बढ़ोत्तरी हो जाएगी। इस प्रकार टीक, नींबू, पपीता, पोपुलर आदि के साथ अंतवर्तीय फसल के Reseller में मूसली की खेती करना व्यवसायिक Reseller से काफी लाभकारी हो सकता है।
मूसली का उत्पादन तथा इसकी खेती से अनुमानित लाभ
प्राय: Single Singleड़ क्षेत्र में मूसली के लगभग 80,000 पौधे लगाए जाते है। यदि इनमें से 70,000 अच्छे पौधे भी अंत में बचते हैं जिनमें Single पौधे का औसतन वजन 30 ग्राम होता है तो किसान को लगभग 2100 किलोग्राम मूसली प्राप्त होगी जो कि छीलने तथा सूखने के उपरांत लगभग 4 क्विंटल रह जाएगी (सूखने पर मूसली का वजन 20 से 25 प्रतिशत रह जाता है)। इसके अतिरिक्त इसमें Single Singleड़ की बिजार्इ हेतु प्लांटिंग मेटेरियल भी बच जाएगा। वैसे जो लोग मूसली की वास्तविक Reseller से खेती कर रहे है वं प्रति Singleड़ औसतन 3 से 5 क्विंटल सूखी मूसली की पैदावार होना बताते हैं जबकि विशेषज्ञों का विचार है कि यदि मूसली की फसल वैज्ञानिक ढंग से सही Reseller से ली जाए तो इससे प्रति Singleड़ 16 क्ंिवटल तक सूखी मूसली प्राप्त हो सकती है। यदि वर्तमान बाजार मूल्य (जो कि 1000 रुपये से 1700 रुपये प्रति किलोग्राम तक है), के According देखा जाए तो प्राप्त 4 क्ंिवटल सूखी मूसली से औसतन 5 लाख रुपये की प्राप्तियाँ होगी। मूसली को छीलने के उपरान्त इसकी गुणवत्ता के According ग्रेडिंग की जाती है जिसमें