संस्कृति And व्यवसाय

संस्कृति व्यावसायिक पर्यावरण का बहुत ही जटिल And गूढ़ घटक है। संस्कृति के विभिन्न आयामों को भलीभांति समझना उत्पाद-विकास, उत्पाद प्रोत्साहन, व्यावसायिक रणनीति, Human संसाधन प्रबन्धन And सामाजिक, राजनैतिक पर्यावरण के प्रबन्धन के लिये बहुत ही महत्वपूर्ण है। जो व्यावसायिक संगठन संस्कृति के विभिन्न घटकों को भली-भांति अध्ययन किये बिना अपना कार्य करते हैं, वे प्राय: सफल नहीं होते। बहुराष्ट्रीय व्यावसायिक संगठन सांस्कृतिक वातावरण को Single बहुत ही परेशानी पैदा करने वाला घटक मानते है। कर्इ बार प्रबन्धकों की सफलता/विफलता संस्कृति के ज्ञान/अज्ञान के कारण होती है। सांस्कृतिक विशेषतायें व्यवसाय को प्रगतिशील रणनीति बनाने में अत्यन्त महत्वपूर्ण भूमिका निभाती है, विशेषReseller से रीति रिवाज, फैशन, परम्परायें, पसन्द, नापसन्द आदि। Single अमेरिकन कम्पनी को इटली में पापकार्न को बनाकर बेचने में इसलिए सफलता नहीं मिली क्योंकि इटली के लोग ‘पापकार्न’ को जानवरों का खाद्य पदार्थ मानते है। इसी प्रकार नेस्ले कम्पनी विभिन्न देशों में भिन्न-भिन्न प्रकार के स्वादों की कॉफी बनाकर बेचती है।

व्यवसाय का सामाजिक-संस्कृति पर्यावरण 

व्यवसाय का सामाजिक And सांस्कृतिक पर्यावरण सम्पूर्ण व्यावसायिक पर्यावरण का ही अभिन्न अंग है। कोर्इ भी व्यवसायिक इकार्इ सामाजिक घटकों तथा मूल्यों की अवहेलना करके अपने अस्तित्व को Windows Hosting नहीं रख सकती है। समाज व संस्कृति व्यवसाय का मूलभूत आधार कहे जाते है। व्यवसायिक निर्णयों को समाज की मान्यतायें, विश्वास, मूल्य तथा जीवन शैली महत्वपूर्ण Reseller से प्रभावित करती है। उपभोक्तावाद तथा सामाजिक उत्तरदायित्व की विचारधाराओं ने व्यवसाय को उपभोक्ता तथा समाज अभिमुखी बना दिया है।

समाज में रहते हुए, व्यवसाय में कार्यरत Single व्यवसायिक इकार्इ को सामाजिक तथा सांस्कृतिक मूल्यों को जानना आवश्यक हो जाता है। व्यावसायिक सफलता के लिए व्यवसायिक इकार्इ को ऐसा करना जरूरी है। सामाजिक मूल्यों का सम्बन्ध किसी व्यक्ति विशेष से न होकर सम्पूर्ण समाज से होता है। अत: ये All व्यवसायों के व्यवहारों को प्रभावित करते है। वर्तमान में कोर्इ भी व्यवसाय सामाजिक मूल्यों की अवहेलना करके अपना प्रतिष्ठित स्थान नहीं बना सकता है। जो व्यवसायी सामाजिक मूल्यों के प्रति सजग रहा है उसके व्यवसाय की गरिमा में वृद्धि हुर्इ है। सामाजिक मूल्यों में समय के According परिवर्तन भी होते रहते हैं और नयी सामाजिक मान्यताओं की स्थापना होती रहती है। नयी मान्यताओं में से कुछ प्रमुख मान्यताएँ है –

  1. व्यवसाय के प्रति First की तुलना में अधिक सद्भावना व विश्वास पाया जाता है। 
  2. व्यवसाय में प्रतियोगिता की भावना का उदय हुआ है। 
  3. व्यक्तियों के पद व घरानों के स्थान पर उनके कार्यों, योग्यताओं तथा व्यवहार का सम्मान होने लगा है।
  4. जाति, धर्म And सम्प्रदाय के स्थान पर व्यक्ति के प्रति आदर-भावना में वृद्धि हुर्इ है। 
  5. समाज में यह विश्वास बढ़ा है कि कार्य की इच्छा व क्षमता रखने वाले व्यक्तियों के लिए समाज में हमेशा ‘अवसर’ उपलब्ध रहते हैं। 
  6. शिक्षा, प्रशिक्षण तथा ज्ञानार्जन के प्रति रूचि बढ़ी है। 
  7. विज्ञान And तकनीक तथा तर्कसंगत बातों पर अधिक ध्यान दिया जाने लगा है।
  8. कार्य के नये ढंग, विधि, प्रविधि तथा तकनीक विकसित करने के लिए प्रयोग तथा शोध व अनुसंधान का महत्व बढ़ा है। 
  9. उच्च जीवन-स्तर यापन में विश्वास के फलस्वReseller नयी सामाजिक संCreation ने व्यवसाय की कार्य प्रणालियों तथा पद्धतियों में गहन व मूलभूत परिवर्तन किये हैं। 

सामाजिक मूल्यों की तरह ही सांस्कृतिक मूल्य भी व्यवसाय को नया आकार व स्वReseller देते हैं। यह सामाजिक संCreation तथा समाज के विभिन्न पक्षों को प्रभावित करते हैं। सांस्कृतिक मूल्यों की झलक व्यवसाय के दृष्टिकोण, विचारधाराओं तथा मान्यताओं And उसके द्वारा लिये गये निर्णयों में स्पष्टत: परिलक्षित होती है। सांस्कृतिक मूल्य ही मानसिक क्रान्ति, मानसिक विकास तथा मानसिकता को संवारने में सहायक होते हैं। व्यवसाय की क्रियाएँ, आचरण, कार्यशैली, भविष्य के प्रति आशा आदि जैसे पहलू सांस्कृतिक मूल्यों पर आधारित होते हैं। सांस्कृतिक मूल्य ही व्यवसाय में नैतिकता, उचित-अनुचित, सदाचार तथा समाज के प्रति उत्तरदायित्व का बोध कराते हैं। फार्मर And रिचमैन ने सामाजिक-सांस्कृतिक घटकों में इस तथ्य को महत्वपूर्ण माना है कि समाज का व्यवसाय के प्रति क्या दृष्टिकोण है? इनके विचार में समाज में व्यवसाय के प्रति निम्नलिखित दृष्टिकोण हो सकते हैं –

  1. प्रबन्ध, व्यवसाय तथा उद्यमशीलता के प्रति समाज का दृष्टिकोण। 
  2. सत्ता, अधिकार, शक्ति तथा अधीनस्थों के प्रति दृष्टिकोण। 
  3. श्रम-प्रबन्ध, पूँजी-प्रबन्ध आदि समूहों के मध्य सहयोग की सीमा। 
  4. वर्ग संCreation, वैयक्तिक गतिशीलता, सन्दर्भ समूहों के प्रति दृष्टिकोण। 
  5. कार्य सम्पादित करने, दायित्व ग्रहण करने, उपलब्धि आदि के प्रति दृष्टिकोण। 
  6. धन, भौतिक लाभों, उपयोगिताओं व सम्पत्ति के प्रति दृष्टिकोण। 
  7. परिवर्तनों, जोखिमों, साहस आदि के प्रति दृष्टिकोण। 

    सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों में समाज व संस्कृति अन्तव्र्याप्त है तथा दोनों का गहरा आपसी सम्बन्ध है। सामाजिक मूल्य, मूल Reseller से सांस्कृतिक अवधारणाओं तथा संस्कारों के प्रभाव से सृजित होते हैं। इसी तरह संस्कृति व संस्कारों का पोषण And संरक्षण सामाजिक संCreation में ही अन्तर्निहित है।

    संस्कृति का Means And परिभाषा 

     र्इ. डब्ल्यू. टेलर के According, “संस्कृति वह जटिल समग्रता है जिसमें ज्ञान, विश्वास, कला, आचार, कानून प्रथा तथा ऐसी ही अन्य क्षमताओं व आदतों को शामिल Reseller जाता है, जो मनुष्य द्वारा समाज का Single सदस्य होने के नाते प्राप्त की जाती है।” संस्कृति Human की सर्वश्रेष्ठ धरोहर है, जिसकी सहायता से वह पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे बढ़ता जा रहा है। संस्कृति के अभाव में Human समाज की Creation सम्भव नहीं है। संस्कृति Single सामाजिक विरासत है जिसे भौतिक तथा अभौतिक अथवा मूर्त व अमूर्त भागों में विभक्त Reseller जा सकता है। लोबी के According सम्पूर्ण सामाजिक परम्परा को संस्कृति कहते हैं।

    संस्कृति मनुष्य के सीखे हुए व्यवहार-प्रतिमानों का योग है। मनुष्य जिस समाज में जन्म लेता है, उसी संस्कृति को धीरे-धीरे समाजीकरण की प्रक्रिया द्वारा सीखता है। Single मनुष्य का लालन-पालन किसी सांस्कृतिक पर्यावरण में ही होता है। संस्कृति में प्रचलित रीति-रिवाजों, धर्म, दर्शन, संगीत, कला, विज्ञान प्रथाओं इत्यादि का प्रभाव मनुष्य के व्यक्तित्व पर पड़ता है। All समाजों में धर्म, परिवार, विवाह, रिश्ते-नातेदारी, प्रथाएँ इत्यादि देखने को मिलती है, चाहे इनके बाहरी आवरण में कुछ अन्तर क्यों न हो। प्रत्येक संस्कृति में कुछ तत्व ऐसे होते हैं जो All संस्कृतियों में सामान्य Reseller से पाये जाते हैं।

    संस्कृति की विशेषताएँ या प्रकृति 

     संस्कृति की विशेषताएँ या प्रकृति को इन बिन्दुओं से स्पष्ट Reseller जा सकता है :

    1. संस्कृति Human Needओं को पूरा करती है। 
    2. संस्कृति किसी समाज की Single अमूल्य धरोहर होती है।
    3. संस्कृति Human-निर्मित होती है।
    4. संस्कृति का हस्तान्तरण पीढी-दर-पीढ़ी होता रहता है। 
    5. संस्कृति वंशानुक्रमण में प्राप्त होती है। 
    6. संस्कृति सीखी व अपनायी जाती है। 
    7. संस्कृति में सामाजिक गुण शामिल रहता है।
    8. संस्कृति समूह के लिए आदर्श होती है। 
    9. प्रत्येक समाज की अपनी Single विशिष्ट संस्कृति होती है। 
    10. संस्कृति में अनुकूलन की क्षमता होती है। 
    11. संस्कृति में संतुलन And संगठन होता है। 
    12. Human व्यक्तित्व के निर्माण से संस्कृति की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। 
    13. संस्कृति Human And जीवन से ऊपर तथा श्रेष्ठ होती है। 

      संस्कृत तथा संस्कृति दोनों ही ‘संस्कार’ Word से बने हैं। ‘संस्कार’ Word का Means है कुछ कृत्यों को विधि के According करना। Single हिन्दू जन्म से ही विभिन्न प्रकार के संस्कारों को पूरा करता है जिनमें उसे अनेक प्रकार की भूमिकाएँ निभानी पड़ती हैं। संस्कृति का Means विभिन्न संस्कारों द्वारा सामाजिक जीवन के उद्देश्यों की प्राप्ति है। संस्कारों को निभाने पर ही Single Human श्रेष्ठ सामाजिक प्राणी बनता है।

      संस्कृति के प्रकार 

       संस्कृति दो प्रकार की हो सकती है : (1) भौतिक संस्कृति, तथा (2) अभौतिक संस्कृति।

      1. भौतिक संस्कृति  – 

      मनुष्य द्वारा निर्मित भौतिक तथा मूर्त वस्तुओं को भौतिक संस्कृति में शामिल Reseller जाता है। मनुष्य ने विभिन्न प्रकृतिदत्त वस्तुओं व शक्तियों को परिवर्तित करके अपनी Needओं के अनुReseller बनाया है। ये All भौतिक संस्कृति के अन्तर्गत आती है। भौतिक संस्कृति में साइकिल, स्कूटर, कार, पेन-पेन्सिल, कागज, पंखे, कूलर, फ्रिज, बल्ब, रेल, जहाज, वायुयान, टेलीफोन, मोबाइल इत्यादि All आते हैं। भौतिक संस्कृति के All अंगों व तत्वों को सूचीबद्ध करन सरल कार्य नहीं है। Human समाज के विकास के साथ-साथ भौतिक संस्कृति का भी विकास हुआ तथा पुरानी पीढ़ी की तुलना में नयी पीढ़ी के पास भौतिक संस्कृति अधिक है।

      2. अभौतिक संस्कृति –

      इस संस्कृति में सामान्यत: सामाजिक विरासत में प्राप्त विश्वास, विचार, व्यवहार, प्रथा, रीति-रिवाज, मनोवृत्ति, ज्ञान, साहित्य, भाषा, संगीत, धर्म, नैतिकता इत्यादि को शामि Reseller जाता है। ये पीढ़ी-दर-पीढ़ी आगे चलती है तथा प्रत्येक पीढ़ी में इसका अर्जन व परिवर्तन भी सम्भव होता है। यदि कोर्इ व्यक्ति अपने समाज के रीति-रिवाजों प्रथाओं, धर्म व नैतिकता के विरूद्ध कार्य करता है तो उसे आलोचना या निन्दा का शिकार होना पड़ता है। महत्वपूर्ण है कि अभौतिक संस्कृति भौतिक संस्कृति की तुलना में कम परिवर्तनशील है तथा इसमें अधिक स्थायित्व पाया जाता है।

      सांस्कृतिक के घटक 

      ‘संस्कृति’ Word के अन्तर्गत मूल्य, मापदंड, कलाकृतियां तथा लोगों के स्वीकृत व्यवहार के स्वReseller आते हैं जिनका बहुत लम्बे काल के अंतर्गत समाज में विकास हुआ है। संस्कृति की परिभाषा व्यवहार की समग्रता (totality of behaviour) के Reseller में भी दी जाती है जिसे Human समाज आपने पुरखों से सीखता है और फिर उन्हें आगे आने वाली पीढ़ी को सिखाता है। समाज में जो सांस्कृतिक परिवर्तन हुआ है तथा अभी भी जो हो रहा है उसके कारक रहे हैं- विज्ञान And प्रौद्योगिकी के क्षेत्रों में प्रगति, बड़े पैमाने के उद्योगों का विकास तथा देश के अंदर And देश के बाहर परिवहन और संचार के साधनों में सुधार। औद्योगिक प्रगति के चलते विभिन्न प्रकार की वस्तुओं और सेवाओं के लिए मांग होने लगी है, लोगों की रूचि और पसंद में परिवर्तन हुआ है तथा इन All का प्रभाव लोगों की आदतों और रीति-रिवाजों पर पड़ा है।

      1. धर्म 

      धर्म संस्कृति का अत्यंत महत्वपूर्ण तत्व है। यह Humanीय क्रियाओं के प्रति लोगों की अभिवृत्तियों, उनके नैतिक मूल्यों और आचार-नीतियों को प्रभावित करता है। भारत में व्यवसाय को इसलिए बुरा माना गया है कि इसका संबंध धन अर्जन से है जिसे धर्म अच्छा नहीं मानता। लेकिन समय बीतने के साथ-साथ इस धारणा में परिवर्तन आया है। फिर भी र्इमानदारी सच्चार्इ तथा कष्ट में पड़े हुए लोगों के प्रति सहानुभूति ऐसे मौलिक मूल्य हैं जिनका धर्म के साथ गहरा संबंध होता है और इन्हें अपनाना लोग अच्छा मानते हैं। सामाजिक शक्ति के Reseller में धर्म ने तो लोगों के बीच मजबूत संवेदात्मक बंधन की व्यवस्था की है परन्तु दूसरी ओर धार्मिक कट्टरपंथिता ने लोगों के दृष्टिकोण को फिरकावादी बना दिया है और इसके चलते लोग दूसरों के मत के प्रति हठधर्मी और असहिष्णु हो गये हैं।

      Indian Customer समाज विभिन्न धर्मों के लोगों से बना है। अलग-अलग धार्मिक समुदायों में अलग-अलग पंथ And संप्रदाय हैं। लोग अपनी आस्था के According धार्मिक अनुष्ठानों का पालन करते हैं। उनकी आस्थाओं, आदतों और रीति-रिवाजों में उनके धर्म की झलक मिलती है। धर्म निरपेक्षता को Indian Customer संस्कृति का Single महत्वपूर्ण पक्ष माना जाता है। धर्मनिरपेक्षता से आशय यह होता है कि राज्य, नैतिक सिद्धांत, शिक्षा आदि का धर्म से कोर्इ संबंध नहीं होता। भारत के संविधान में यह सुनिश्चित कर दिया गया है कि भारत के नागरिकों को अपने-अपने धर्मों को पालने का अधिकार है परन्तु राज्य का कोर्इ धर्म नहीं होगा। भारत को धर्म निरपेक्ष राज्य घोषित Reseller गया है। इस प्रकार लोग अपने निजी और सामाजिक जीवन में अपने-अपने धार्मिक अनुष्ठानों का पालन करते हैं लेकिन उनके सामाजिक दायित्वों पर धर्म का कोर्इ प्रभाव नहीं पड़ता।

      धर्म निरपेक्षता के लाभकारी प्रभावों का परीक्षण करने पर हम पाएंगे कि इसका क्या महत्व है। पहली बात तो यह है कि शिक्षा, रोजगार तथा सरकारी कार्यों से संबंधित लोगों के सार्वजनिक जीवन में धर्म के आधार पर उनके बीच कोर्इ भेदभाव नहीं Reseller जाता। दूसरी बात है कि विभिन्न धर्मों और सम्प्रदायों के अनुयायी अपनी सामान्य समस्याओं का समाधान Single साथ मिलकर करते हैं। खाद्य पदार्थों को छोड़कर अन्य वस्तुओं के व्यवसाय के संबंध में ग्राहकों के साथ धार्मिक आधार पर कोर्इ भेदभाव नहीं Reseller जाता। इसके अतिरिक्त चूँकि All धर्मों के बुनियादी मूल्य तथा आचार-नीतियां Single जैसी हैं अत: सामान्य आधार पर उनके बीच Singleता कायम रखी जा सकती है।

      2. मूल्य

      संस्कृति का Single अन्य महत्वपूर्ण तत्व मूल्य है। All समाजों के लोगों की मान्यता होती है कि कुछ आचार-विचार उनके लिए उचित होंगे। इन्हें मूल्य कहा जाता है। मूल्य प्रणाली से आशय यह होता है कि कुछ कार्यों को उनके उचित होने की प्राथमिकता और वांछनीय के सापेक्ष महत्व के आधार पर Reseller जाए। इसी के आधार पर व्यक्ति तथा व्यक्तियों का समूह अच्छे और बुरे के बीच अंतर कर पाता है। वह जान पाता है कि ‘क्या करना चाहिए’ और ‘क्या नहीं करना चाहिए’।

      सामाजिक संदर्भ में मूल्यों के सापेक्ष महत्व को समझने के लिए उन्हें विभिन्न प्रकार के वर्गों में बांटा जा सकता है। जैसे कि सैद्धांतिक मूल्य (सत्यता और तर्कसंगतता), आर्थिक मूल्य (भौतिक लाभ और व्यावहारिकता), सामाजिक मूल्य (लोगों के प्रति प्रेम, समानता), राजनीतिक मूल्य (शक्ति प्राप्त करना), धार्मिक मूल्य (नैतिकता, सद्व्यवहार) और उपयोगितावादी मूल्य (अधिक लोगों की अधिकतम भलार्इ)। किसी मूल्य विशेष को कितनी प्राथमिकता दी जाती है यह इस बात पर निर्भर करता है कि समाज में विभिन्न हितों वाले कौन से लोग हैं।

      पश्चिम के समाजों में जिन मूल्यों की प्रधानता है वे एशिया के देशों के मूल्यों से भिन्न हैं। लेकिन मूल्य स्थायी (static) नहीं होते। मध्य युग में पश्चिम के देशों में धार्मिक मूल्यों की प्रधानता थी। लेकिन अब वहां स्थिति बिल्कुल विपरीत हो गर्इ है। मध्य युग में द्रव्य और संपत्ति की प्राप्ति (आर्थिक मूल्य) को दोषपूर्ण माना जाता था लेकिन पूंजीवादी समाज का तो यह प्रमुखगुण माना जाने लगा है। आगे चलकर अल्पविकसित देशों में भी ऐसा ही हुआ। भारत के स्वतंत्र होने के बाद के पिछले 50 वर्षों के दौरान इस देश के लोगों ने पाश्चात्य मूल्यों को अपना लिया है, विशेषत: नगरी क्षेत्रों में धार्मिक और सामाजिक मूल्यों के स्थान पर लोग अब आर्थिक और राजनीतिक मूल्यों पर अधिक बल देने लगे हैं।

      प्रौद्योगिकी और सामाजिक परिवर्तन 

       सामाजिक परिवर्तनों को लाने में प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुर्इ प्रगति का बहुत बड़ा योगदान रहा है। गत्यात्मक सामाजिक वातावरण में प्रौद्योगिकी प्राय: गुणक का कार्य करती है। उदाहरणार्थ इंटर्नल कंबुशन इंजन के आविष्कार और मोटरगाड़ियों के निर्माण की तकनीक का केवल व्यक्तियों और वस्तुओं के परिवहन And लोगों की गतिशीलता पर ही असर नहीं पड़ा बल्कि इन सबका प्रभाव आवास के स्थान, उपभोग के स्वReseller और जीवन शैली पर भी पड़ा है। प्रौद्योगिकीय प्रगति का Single दूसरा महत्वपूर्ण प्रभाव यह हुआ है कि उत्पादिता में वृद्धि हो गर्इ है तथा उत्पादों की किस्मों में सुधार हुआ है। उत्पादिता में वृद्धि होने तथा अच्छी किस्म की वस्तुओं के बनने का लाभकारी प्रभाव सम्पूर्ण सामाजिक प्रणाली पर पड़ा है इन सबके फलस्वReseller अधिकाधिक लोग अब First से बेहतर और Windows Hosting जीवन जीने लगे हैं। समय के साथ-साथ प्रौद्योगिकीय प्रगति के फलस्वReseller जीवन स्तर में सुधार हुआ है, बीमारियों से मरने वालों की संख्या घटी है तथा पर्यावरण पर नियंत्रण की मात्रा बढ़ी है। आधुनिक दूर संचार प्रणाली भी प्रौद्योगिकीय प्रगति का परिणाम है। Single ही साथ दूर-दूर के क्षेत्रों तक संचार की सुविधा हो जाने से ज्ञान तथा संदेश के प्रसार का कार्य आसान हो गया है। इससे समय तथा शक्ति की बहुत अधिक बचत होने लगी है। टेलीकांफ्रेसिग तथा अन्य संचार विधियों द्वारा दूरस्थ शिक्षा प्रणाली ने ज्ञान के प्रसार में बहुत अधिक योगदान दिया है। ऑडियो-विजुअल तथा इलेक्ट्रॉनिक माध्यम (टेलीविजन) ने नये उत्पादों के विपणन तथा वर्तमान उत्पादों की सुधरी हुर्इ किस्मों के विपणन के कार्य को बहुत अधिक आसान बना दिया है।

      प्रौद्योगिकीय प्रगति के चलते श्रम की बचत करने वाले उपकरण आए हैं तथा जो काम हाथ से किए जाते थे वे अब स्वचालित मशीनों से किए जाते हैं और कार्यकुशलता बढ़ गर्इ है। इन सबके फलस्वReseller आवश्यक हो गया है कि अधिकाधिक Reseller से तकनीकी में दक्ष कामगारों को काम पर लगाया जाए। बड़े-बड़े संगठनों में लेखाकरण, भंडारण तथा आंकड़ों संबंधी जिन कार्यों को हाथ में लिया जाता था उनका वहां पर कंप्यूटरीकरण Reseller जा रहा है। पत्र व्यवहार करने तथा प्रलेखों को Single स्थान से Second स्थान पर भेजने के लिए फैक्स और इंटरनेट सुविधाओं का प्रयोग Reseller जाने लगा है। कुल मिलाकर देखने पर हम पाते हैं कि आज आधुनिक समाज की विशेषता उत्पादन, वितरण, परिवहन और संचार की ऐसी प्रणाली है जो पिछले दो सदियों में हुए प्रौद्योगिकीय परिवर्तनों पर आधारित है। इससे बहुत बड़ी संख्या में लोगों में केवल जीवन-स्तर में ही सुधार नहीं हुआ है बल्कि बहुत बड़े क्षेत्रों में First से बेहतर सुविधाओं को उपलब्ध भी कराया जाने लगा है। इन सबसे बड़ी बात यह है कि लोगों को बेहतर चिकित्सा सुविधाएं उपलब्ध करार्इ जा रही है और उनके स्वास्थ्य में सुधार हुआ है।

      लेकिन प्रौद्योगिकीय परिवर्तनों के समाज के लिए अनेक अवांछनीय परिणाम भी हुए हैं। इन परिर्वतनों के द्वारा आज जो आर्थिक संवृद्धि हो रही है उनके कुछ प्रत्यक्ष दुष्परिणाम है- दुर्लभ प्राकृतिक संसाधनों का दुResellerयोग, वनोन्मूलन (deforestation) तथा पर्यावरण का प्रदूषण। अतृपय उपभोक्तावाद के चलते भौतिक मूल्यों ने नैतिक मूल्यों को अपने वश में कर दिया है, मनुष्य पर मशीनें हावी हो गर्इ हैं तथा Humanीय मूल्यों में गिरावट आर्इ है।

      बदलती हुर्इ मूल्य व्यवस्था 

      समाज में बदलती हुर्इ मूल्य व्यवस्था के महत्व का स्पष्टीकरण करने के First व्यक्तिगत मूल्यों और सामाजिक मूल्यों के Means को स्पष्ट करना आवश्यक है।

      व्यक्तिगत मूल्यों की परिभाषा हम इस Reseller में कर सकते हैं कि किसी वस्तु या विचार के अच्छा या वांछनीय होने के संबंध में किसी व्यक्ति के आदर्श दृष्टिकोण क्या हैं इस प्रकार मूल्य के मानक या निर्देश चिह्न हैं जो किसी व्यक्ति के निर्णय, आचार And व्यवहार में उसका मार्गदर्शन करते हैं।

      सामाजिक मूल्यों से आशय होता है वांछनीय लक्ष्यों और Humanीय आचार के संबंध में लोगों का सम्मिलित विश्वास। इस प्रकार व्यक्तिवाद ऐसे सामाजिक मूल्यों की प्रणाली में वांछनीय हो सकता है। जिसमें कार्यों के संबंध तथा दूसरों के साथ प्रतिस्पर्धा के संबंध में लोग अपने व्यक्तिगत हितों को ही ध्यान में रखते हैं ऐसे ‘समाज में प्रतियोगिता में सफल होने को ही अच्छा माना जाता है। लेकिन कुछ ऐसे सामाजिक आदर्श भी हैं जो बताते हैं कि हारने वाले या जीतने वाले को किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए। लोग ऐसे व्यक्तियों को अच्छा नहीं मानते जो जीतने की स्थिति में दंभ से भर जाएं या हारने की स्थिति में बराबर शिकायत करते रहें।

      मूल्य व्यवस्था से आशय मूल्यों के सेट से होता है जिसमें विभिन्न प्रकार के मूल्यों का स्थान उनकी प्राथमिकता के According होता है। उदाहरणार्थ अलग- अलग देशों वाले लोगों के मूल्य अलग-अलग प्रकार के होते हैं। व्यवसाय के प्रबंधक आर्थिक मूल्यों (भौतिक लाभ, व्यवहार्यता) को सामाजिक मूल्यों (लोगों के लिए प्यार, समानता) से ऊँचा स्थान देते हैं और इसी आधार पर व्यवसाय संबंध् ाी निर्णय लिए जाते हैं। इसके विपरीत सामाजिक मूल्यों की व्यवस्था में सैद्धांतिक मूल्यों (सच्चार्इ, र्इमानदारी) का स्थान आर्थिक मूल्यों से ऊँचा हो सकता है। इसके अतिरिक्त सामाजिक मूल्यों की व्यवस्था में ही धार्मिक मूल्यों (नैतिकता तथा नीतिपरायणता) का स्थान अन्य मूल्यों से ऊँचा होता है।

      किसी समाज में स्थिरता अन्य बातों के अलावा उसकी मूल्य व्यवस्था पर निर्भर करती है। मूल्य व्यवस्था के सम्बन्ध में विचार किए बिना किसी समाज की प्रगति के संबंध में सोच नहीं सकते। फिर भी मूल्य और मूल्य व्यवस्था स्थिर संकल्पनाएं नहीं हैं। मूल्य व्यवस्था में परिवर्तन हो सकता है। अनेक समाजों में आधुनिक मूल्य व्यवस्था ने परंपरागत मूल्य व्यवस्था का स्थान ले लिया है। भारत में भी ऐसा ही हुआ है। नगरों में ऐसा बहुत हुआ है तथा ग्रामीण क्षेत्रों में भी इस प्रकार के परिवर्तन की प्रक्रिया दिखार्इ देने लगी है। ऐसे परिवर्तन के स्वReseller और उसके कारणों को नीचे दिया जा रहा है :-

      1. आर्थिक Reseller से विकसित देशों में शिक्षा के प्रसार तथा मूल्य व्यवस्था के संबंध में जागरूकता के साथ आर्थिक मूल्यों तथा आर्थिक लाभ की प्राप्ति को अधिक महत्व दिया जाने लगा है। उसी प्रकार राजनीतिक मूल्यों के According शक्ति की प्राप्ति को वांछनीय माना जाता है। और भारत के शिक्षित समाज का Single बहुत बड़ा भाग इससे प्रभावित हुआ है। इसके फलस्वReseller सामाजिक मूल्यों और धार्मिक मूल्यों का महत्व कम हो गया है। 
      2. आर्थिक समृद्धि के होने तथा व्यापार, द्रव्य और विनिमय के महत्व को स्वीकार करने का परिणाम यह हुआ है कि लोग अब मानने लगे हैं कि लाभ का अर्जन, धन का संचय, Resellerया उधार देना और पूंजी का निवेश कार्य समाज के लिए हानिकारक नहीं होते। लोग तो अब निजी लाभ और व्यक्तिवाद के पुजारी बन गए हैं। इसके साथ ही साथ नीतिपरायणता, र्इमानदारी तथा सच्चार्इ जैसे नैतिक मूल्यों में गिरावट के कारण सामाजिक ढाँचा टूटता हुआ नजर आ रहा है। 
      3. लोकतंत्रीय मूल्यों (समान अधिकार), के प्रति लोगों की रूचि बढ़ी है जिसके फलस्वReseller Human गरिमा की वैद्यता तथा Human अधिकारों की स्वीकृति जैसे कुछ सांस्कृतिक मूल्यों का महत्व बढ़ रहा है। 

      व्यावसायिक मूल्य 

      सामाजिक मूल्यों पर व्यावसायिक मूल्यों का बहुत अधिक प्रभाव पड़ता है। व्यावसायी वर्ग के पास सामाजिक और राजनीतिक शक्ति होती है तथा सामाजिक प्रश्नों के संबंध में वह जनमत को बदल सकता है। अत: समाज की संस्थाओं पर उसका बहुत अधिक प्रभाव होता है। All यह मानते हैं कि सरकारी नीतियों के निर्धारण में बड़ी-बड़ी व्यावसायिक प्रतिष्ठानों का भी हाथ होता है। मिलिबैंड ने लिखा है (द स्टेट इन कैपिटेलिस्ट सोसाइटी, 1969) कि ‘‘आर्थिक जीवन के महत्वपूर्ण क्षेत्रों पर व्यवसाय का नियंत्रण होने के कारण सरकार व्यवसायों पर उन नीतियों को लागू नहीं कर पाती जिनका कि वे विरोध करते हैं।’’ ब्रिटेन की लेबर पार्टी ने 1967 में अत्यधिक सुधारवादी कार्यक्रमों के साथ सरकार बनायी थी। इस संबंध में मिलिबैंड ने लिखा है कि व्यवसायी वर्ग के साथ उस सरकार को निजी तौर पर बातचीत करके उन्हें आश्वासन देना पड़ा कि आर्थिक नीतियों के निर्धारण संबंधी सरकारी योजनाओं को बनाते समय उनके विचारों को पर्याप्त Reseller से महत्व दिया जाएगा। 
      कंपनी उद्यमों में निर्णय लेने के संबंध में जिन मूल्यों का विशेष योगदान होता है वे हैं- व्यक्तिगत मूल्य, समूह मूल्य, सामाजिक-आर्थिक पर्यावरण के घटकों (ग्राहकों, सप्लायरों, प्रतियोगिता सरकारी एजेन्सियों) के मूल्य तथा समाज के सांस्कृतिक मूल्य। व्यावसायिक मूल्य उन कसौटियों से बनते हैं जो यह निर्धारित करती है कि अच्छा व्यवसाय क्या है? किन लक्ष्यों को प्राप्त करना है तथा किसके हित की प्राप्ति करनी है? व्यवसाय कार्य क्या केवल उनके मालिकों के निजी हित के लिए ही करने हैं? व्यवसाय को चलाने वालों का Only लक्ष्य क्या लाभ को अधिकतम करना ही है और इस संबंध में क्या उन्हें साधनों की अच्छार्इ-बुरार्इ पर ध्यान देने की Need नहीं होती? व्यवसाय में होने लगी समृद्धि में क्या श्रमिकों का कोर्इ अंश नहीं होता? इन सब प्रश्नों के उत्तर में हम समाज की मूल्य व्यवस्था की झलक पाते हैं। 
      सामाजिक मूल्यों में परिवर्तन के साथ तथा व्यावसायिक मूल्यों में परिवर्तन लाने की दृष्टि से भारत सरकार ने अनेक प्रकार के सामाजिक कानून बनाए हैं। ये हैं- वायु और जल प्रदूषण पर रोक और नियंत्रण, पर्यावरण का संरक्षण, श्रमिकों को उत्पादित और लाभ बोनस का भुगतान, उपभोक्ता संरक्षण और उपभोक्ता कल्याण, बेनामी सौदों पर निषेध आदि। इसके साथ ही साथ बड़े-बड़े व्यवसायिक प्रतिष्ठान भी अपने सामाजिक दायित्वों से अवगत हैं। उन्हें मालूम है कि उनका दायित्व अपने शेयर धारियों की प्रति होने के साथ ही साथ समाज तथा आम जनता के प्रति भी है।

      सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों का प्रभाव  

      यदि कोर्इ व्यवसाय सामाजिक-सांस्कृतिक पर्यावरण से दूर हो जाता है तो वह First उस देश के लोगों से तथा फिर अपने व्यवसाय से अलग हट जाता है। व्यावसायिक निर्णयों को प्रभावित करने में सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों व प्रतिमानों की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। ये मूल्य ऐसे मानक के Reseller में होते हैं जिनके आधार पर हम किसी व्यवहार, भावना, लक्ष्य तथा साधन को अच्छा या बुरा अथवा उचित या अनुचित ठहराते हैं। मूल्य Single तरह के सामाजिक माप है जिसके आधार पर किसी वस्तु का मूल्यांकन Reseller जाता है। एम0 हारलाम्बो के According, ‘‘मूल्य Single विश्वास है जिससे यह ज्ञात होता है कि क्या उचित व वांछनीय है। यह बताता है कि क्या महत्वपूर्ण है, लाभप्रद है तथा प्राप्त करने योग्य है।’’ दुर्खेम ने भी सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों को सामूहिक जीवन के लिए आवश्यक माना है। डॉ0 राधाकमल मुखर्जी का कहना है कि यदि कोर्इ समाज अपने अस्तित्व को बनाये रखना चाहता है तो उसे व्यक्तित्व के सर्वोच्च मूल्यों की नियमित Reseller से पूर्ति करनी चाहिए। संक्षेप में मूल्य वे कसौटियां हैं जो कि सम्पूर्ण संस्कृति व समाज को Means व महत्व प्रदान करती हैं। सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्य किस प्रकार से सामाजिक व व्यवसायिक जीवन पर प्रभाव डालते हैं? (How do Socio-Cultural Values affect Social and Business Life?)

      सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्य इन तरीके से सामाजिक तथा व्यवसायिक जीवन को प्रभावित करते हैं:-

      1. भौतिक संस्कृति के महत्व में वृद्धि करना : भौतिक संस्कृति के कुछ तत्व समाज के कुछ लोगों के लिए चाहे अधिक महत्व के न हों लेकिन उनके पीछे सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्य विद्यमान रहते हैं। उदाहरणार्थ- कुछ लोग कार रखना चाहते हैं क्योंकि इससे उनकी सामाजिक प्रतिष्ठा में वृद्धि होती है। ‘स्टेटस सिम्बल’ बनाने हेतु सामाजिक मूल्य इन वस्तुओं (कार, मोबाइल, टेलीविजन) की अनिवार्यता को रेखांकित करते हैं।
      2. सामाजिक नियंत्रण मे  सहायक : सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्य सामाजिक नियंत्रण में सहायक होते हैं। ये मूल्य किसी व्यक्ति या समूह को किसी कार्य को करने या न करने हेतु दबाव डालते हैं। इन मूल्यों का पालन करने वालों की प्रशंसा व सराहना तथा अवहेलना करने वालों के लिए दण्ड की व्यवस्था की जाती है। 
      3. सामाजिक क्षमता का मूल्यांकन : सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों द्वारा ही लोग यह जान पाते हैं कि दूसरों की दृष्टि में उनका क्या स्थान है ? समूह व व्यक्ति की क्षमता का मूल्यांकन सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्यों के आधार पर ही Reseller जाता है। 
      4. सामाजिक भूमिकाओं का निर्देशन- किसी विशिष्टि परिस्थिति में Single मनुष्य का व्यवहार कैसा होगा, यह सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्य निश्चित करते हैं। भारत में पति-पत्नी का सम्बन्ध ब्रिटेन में रहने वाले पति-पत्नी से भिन्न होता है क्योंकि इन दोनों राष्ट्रों की ‘मूल्य व्यवस्था’ में अन्तर होता है जो कि उक्त सम्बन्धों में भिन्नता का कारण बनता है।
      5. समाज में SingleResellerता उत्पन्न होती है – सामाजिक-सास्ं कृति मल्ू य, सामाजिक सम्बन्धों व आचरण में SingleResellerता लाते हैं। समाज विशेष में प्रचलित मूल्यों का उस समाज के All व्यक्तियों द्वारा पालन Reseller जाता है जिससे समाज के समस्त व्यवहारों में SingleResellerता आती है।
      6. व्यक्ति की Safty व प्रगति के लिए महत्वपूर्ण – सामाजिक-सास्ं कृतिक मूल्य सारे समूह व समाज की देन होते हैं। व्यक्ति उन मूल्यों को सरलता से आत्मSeven कर लेता है। व्यक्ति का समूह के साथ Singleीकरण उसकी Safty तथा सामाजिक प्रगति की दृष्टि से महत्वपूर्ण होता है। 
      7. बदलती हुर्इ परिस्थितियों में परिवर्तित मूल्यों को अपनाना- यदि सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्य समय व परिस्थितियों के According नहीं बदले जाते तो लोगों द्वारा ऐसे मूल्यों का खण्डन तथा त्याग शुरु हो जाता है। लोग समायनुकूल नये मूल्यों को अपनाने लगते हैं। Indian Customer समाज में प्रचलित बाल-विवाह, सती-प्रथा, पर्दा-प्रथा इत्यादि से सम्बन्धित पुराने रुढ़िवादी मूल्य वर्तमान परिस्थितियों में सही नहीं बैठते, इसलिए लोगों ने धीरे-धीरे इन मूल्यों का त्याग कर नये मूल्यों को अपनाया है। 
      8. सामाजिक-सांस्कृतिक मूल्य व्यक्तित्व-निर्मार्ण में सहायक- लोगों में भिन्नता समाज व संस्कृति में भिन्नता के कारण होती है। प्रत्येक मनुष्य किसी न किसी समाज व संस्कृति में जन्म लेता है और उसी में उसके व्यक्तित्व का निर्माण होता है। मनुष्य अपनी संस्कृति की प्रथाओं, रीति-रिवाजों, धर्म, दर्शन इत्यादि को अपनाता है। ये All तत्व उसके व्यक्तित्व के विकास में सहायक होते हैं।
      9. Humanीय मूल्य तथा आदर्शो के स्रोत- Human व्यवहार तथा आचरण से सम्बन्धित कुछ मूल्य व आदर्श प्रत्येक समाज व संस्कृति में पाये जाते हैं। प्रत्येक व्यक्ति उन मूल्यों व आदर्शों के According ही व्यवहार करता है, अन्यथा उसे आलोचना का शिकार होना पड़ता है। 
      10. Human Needओं की संतुष्टि में सहायक- मनुष्य की शारीरिक, सामाजिक तथा मानसिक Needओं को संतुष्ट करने में सामाजिक व सांस्कृतिक मूल्य Single बड़ी सीमा तक सहायक होते हैं। समय-समय पर नये-नये अन्वेषण व अनुसंधान होते रहे हैं जो समाज व संस्कृति का हिस्सा बनते गये। समाज व सांस्कृतिक मूल्य यह तय करने में सहायक होते हैं कि मनुष्य अपनी विभिन्न Needओं को कैसे पूरा करें।

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