शोध प्राReseller का Means, प्रकार And महत्व
- एफ.एन. करलिंगर (1964 : 275) के According, ‘‘शोध प्रारुप अनुसंधान के लिए कल्पित Single योजना, Single संCreation तथा Single प्रणाली है, जिसका Only प्रयोजन शोध सम्बन्धी प्रश्नों का उत्तर प्राप्त करना तथा प्रसरणों का नियंत्रण करना होता है।’’
- पी.वी. यंग (1977 : 12-13) के According, ‘‘क्या, कहाँ, कब, कितना, किस तरीके से इत्यादि के सम्बन्ध में निर्णय लेने के लिए Reseller गया विचार अध्ययन की योजना या अध्ययन प्राReseller का निर्माण करता है।’’
- आर.एल. Singleॉफ (1953:5) के According, ‘‘निर्णय लिये जाने वाली परिस्थिति उत्पन्न होने के पूर्व ही निर्णय लेने की प्रक्रिया को प्रारुप कहते हैं।’’
‘‘क्या तथ्य इकट्ठा करना है, किनसे, कैसे और कब तक इकठ्ठा करना है और प्राप्त तथ्यों को कैसे विश्लेषित करना है कि योजना शोध प्रारुप है।’’ (www.ojp.usdoj.gov/BJA/evaluation/glossary) स्पष्ट है कि शोध प्राReseller प्रस्तावित शोध की ऐसी Resellerरेखा होती है, जिसे वास्तविक शोध कार्य को प्रारम्भ करने के पूर्व व्यापक Reseller से सोच-समझ के बाद तैय्यार Reseller जाता है। शोध की प्रस्तावित Resellerरेखा का निर्धारण अनेकों बिन्दुओं पर विचारोपरान्त Reseller जाता है। इसे सरलतम Reseller में पी.वी. यंग (1977) ने शोध सम्बन्धित विविध प्रश्नों के द्वारा इस तरह स्पष्ट Reseller है-
- अध्ययन किससे सम्बन्धित है और आँकड़ों का प्रकार जिनकी Need है?
- अध्ययन क्यों Reseller जा रहा है?
- वांछित आँकड़े कहाँ से मिलेंगे?
- कहाँ या किस क्षेत्र में अध्ययन Reseller जायेगा?
- कब या कितना समय अध्ययन में सम्मिलित होगा?
- कितनी सामग्री या कितने केसों की Need होगी?
- चुनावों के किन आधारों का प्रयोग होगा?
- आँकड़ा संकलन की कौन सी प्रविधि का चुनाव Reseller जायेगा?
इस तरह, निर्णय लेने में जिन विविध प्रश्नों पर विचार Reseller जाता है जैसे क्या, कहाँ, कब, कितना, किस साधन से अध्ययन की योजना निर्धारित करते हैं। (पी.वी. यंग 1977: 12-13) न्यूयार्क यूनिवर्सिटी की फैकल्टी क्लास वेबसार्इट (वॉट इज सोशल रिसर्च, चैप्टर 1 : 9-10) में शोध प्राReseller और शोध प्राReseller बनाम पद्धति विषय पर विधिवत विचार व्यक्त Reseller गया है। उसे हम यहाँ प्रस्तुत कर रहे हैं। उसके According शोध प्राReseller को भवन निर्माण से सम्बन्धित Single उदाहरण के द्वारा आसानी से समझा जा सकता है। भवन निर्माण करते समय सामग्री का आर्डर देने या प्रोजेक्ट पूर्ण होने की तिथि निर्धारित करने का कोर्इ औचित्य नहीं है, जब तक कि हमें यह न मालूम हो कि किस प्रकार का भवन निर्मित होना है। पहला निर्णय यह करना है कि क्या हमें अति ऊँचे कार्यालयी भवन की, या मशीनों के निर्माण के लिए Single फैक्टरी की, Single स्कूल, Single आवासीय भवन या Single बहुखण्डीय भवन की Need है। जब तक यह नहीं तय हो जाता हम Single योजना का खाका तैय्यार नहीं कर सकते, कार्य योजना तैय्यार नहीं कर सकते या सामग्री का आर्डर नहीं दे सकते हैं। इसी तरह से, सामाजिक अनुसन्धान को प्राReseller या अभिकल्प की Need होती है या तथ्य संकलन के पूर्व या विश्लेषण शुरू करने के पूर्व Single संCreation की Need होती है। Single शोध प्राReseller मात्र Single कार्य योजना (वर्क प्लान) नहीं है। यह प्रोजेक्ट को पूर्ण करने के लिए क्या करना है कि कार्य योजना का विस्तृत description है। शोध प्राReseller का प्रकार्य यह सुनिश्चित करना है कि प्राप्त साक्ष्य हमें प्रारम्भिक प्रश्नों के यथासम्भव सुस्पष्ट उत्तर देने में सक्षम बनाये।
कार्य योजना बनाने के पूर्व या सामग्री आर्डर करने के पूर्व भवन निर्माता या वास्तुविद् को Firstत: यह निर्धारित करना जरूरी है कि किस प्रकार के भवन की जरूरत है, इसका उपयोग क्या होगा और उसमें रहने वाले लोगों की क्या Needएं हैं। कार्य योजना इससे निकलती है। इसी तरह से, सामाजिक अनुसन्धान में निदर्शन, तथ्य संकलन की पद्धति (उदाहरण के लिए प्रश्नावली, अवलोकन, दस्तावेज विश्लेषण) प्रश्नों के प्राReseller के मुद्दे All इस विषय के कि ‘मुझे कौन से साक्ष्य इकट्ठे करने हैं’, के सहायक/पूरक होते हैं।
गेराल्ड आर. लेस्ली (1994 : 25-26) का कहना है कि, ‘‘शोध प्राReseller ब्लू प्रिन्ट है, जो परिवर्त्यों को पहचानता और तथ्यों को Singleत्र करने तथा उनका description देने के लिए की जाने वाली कार्य प्रणालियों को अभिव्यक्त करता है।’’ शोध प्रारुप को अत्यन्त विस्तार से समझाते हुए सौमेन्द्र पटनायक (2006 : 31) ने लिखा है कि, ‘‘शोध प्रारुप Single प्रकार की Resellerरेखा है, जिसे आपको शोध के वास्तविक क्रियान्वयन से First तैयार करना है। योजनाबद्ध Reseller से तैयार Single खाका होता है जो उस रीति को बतलाता है जिसमें आपने अपने शोध की कार्य योजना तैयार की है। आपके पास अपने शोध कार्य पर दो पहलुओं से विचार करने का विकल्प है, नामत: अनुभवजन्य पहलू और विश्लेषणपरक पहलू। ये दोनों ही पहलू Single साथ आपके मस्तिष्क में रहते हैं, जबकि व्यवहार में आपको अपना शोध कार्य दो चरणों में नियोजित करना है : Single सामग्री संग्रहण का चरण और दूसरा उस सामग्री के विश्लेषण का चरण। आपकी मनोगत सैद्धान्तिक उन्मुखता और अवधारणात्मक प्रतिदर्शताएँ आपको इस शोध सामग्री के स्वReseller को निर्धारित करने में मदद करती हैं जो आपको Singleत्र करनी है और कुछ हद तक यह समझने में भी कि आपको उन्हें कैसे Singleत्र करना है। तदोपरान्त, अपनी सामग्री का विश्लेषण करते समय फिर से आमतौर पर समाजिक यथार्थ सम्बन्धी सैद्धान्तिक और अवधारणात्मक समझ के सहारे आपको अपने शोध परिणामों को स्पष्ट करने में और प्रस्तुत करने के वास्ते शोध सामग्री को वर्गीकृत करने में और विन्यास विशेष को पहचानने में दिशानिर्देशन मिलता है।’’
यंग (1977 :131) का कहना है कि, ‘‘जब Single सामान्य वैज्ञानिक मॉडल को विविध कार्यविधियों में परिणत Reseller जाता है तो शोध प्रारुप की उत्पत्ति होती है। शोध प्रारुप उपलब्ध समय, कर्म शक्ति And धन, तथ्यों की उपलब्धता उस सीमा तक जहाँ तक यह वांछित या सम्भव हो उन लोगों And सामाजिक संगठनों पर थोपना जो तथ्य उपलब्ध करायेंगे, के अनुReseller होना चाहिए।’’ र्इ.ए. सचमैन (1954 :254) का कहना है कि, ‘‘Singleल या ‘सही’ प्रारुप जैसा कुछ नही है शोध प्रारुप सामाजिक शोध में आने वाले बहुत से व्यावहारिक विचारों के कारण आदेशित समझौते का प्रतिनिधित्व करता है। . . . . (साथ हीद्ध अलग-अलग कार्यकर्त्ता अलग-अलग प्रारुप अपनी पद्वतिशास्त्रीय And सैद्धान्तिक प्रतिस्थापनाओं के पक्ष में लेकर आते हैं . . . . Single शोध प्रारुप विचलन का अनुसरण किए बिना कोर्इ उच्च विशिष्ट योजना नही है, अपितु सही दिशा में रखने के लिए मार्गदर्शक स्तम्भों की श्रेणी है।’’ Second Wordों में, Single शोध प्रारुप काम चलाऊ होता है। अध्ययन जैसे-जैसे प्रगति करता है, नये पक्ष, नर्इ दशाएं और तथ्यों में नयी सम्बन्धित कड़ियाँ प्रकाश में आती हैं, और परिस्थितियों की माँग के According यह आवश्यक होता है कि योजना परिवर्तित कर दी जाये। योजना का लचीला होना जरूरी होता है। लचीलेपन का अभाव सम्पूर्ण अध्ययन की उपयोगिता को समाप्त कर सकता है।
शोध प्रारुप के उद्देश्य
मैनहार्इम (1977 : 142) के According शोध प्रारुप के पाँच उद्देश्य होते हैं-
- अपनी उपकल्पना का समर्थन करने और वैकल्पिक उपकल्पनाओं का खण्डन करने हेतु पर्याप्त साक्ष्य इकठ्ठा करना।
- Single ऐसा शोध करना जिसे शोध की विषयवस्तु और शोध कार्यविधि की दृष्टि से दोहराया जा सके।
- परिवत्र्यों के मध्य सहसम्बन्धों को इस तरह से जाँचने में सक्षम होना जिससे सहसम्बन्ध ज्ञात हो सके।
- Single पूर्ण विकसित शोध परियोजना की भावी योजनाओं को चलाने के लिए Single मार्गदश्र्ाी अध्ययन की Need को दिखाना।
- शोध सामग्रियों के चयन की उचित तकनीकों के चुनाव द्वारा समय और साधनों के अपव्यय को रोकने में सक्षम होना।
Single अन्य विद्वान ने शोध प्राReseller के उद्देश्यों का History Reseller है-
- शोध विषय को परिभाषित, स्पष्ट And व्याख्या करना।
- दूसरों को शोध क्षेत्र स्पष्ट करना।
- शोध की सीमा And परिधि प्रदान करना।
- शोध के सम्पूर्ण परिदृश्य को प्रदान करना।
- तरीकों (modes) और परिणामों को बतलाना
- समय और संसाधनों की सुनिश्चितता।
शोध प्राReseller के घटक अंग
शोध प्रारुप के उद्देश्यों से यह स्पष्ट है कि, यह शोध की वह युक्तिपूर्ण योजना होती है, जिसके अन्तर्गत विविध परस्पर सम्बन्धित अंग होते हैं, जिनके द्वारा शोध सफलतापूर्वक सम्पादित होता है। पी.वी. यंग (1977 :13) ने शोध प्रारुप के अन्तर्गत निम्नांकित घटक अंगों का History Reseller है जो अन्तर्सम्बन्धित होते हैं तथा परस्पर बहिष्कृत नही होते हैं-
- प्राप्त किये जाने वाले सूचनाओं के स्रोत,
- अध्ययन की प्रकृति,
- अध्ययन के उद्देश्य,
- अध्ययन का सामाजिक-सांस्कृतिक संदर्श,
- अध्ययन द्वारा समाहित भौगोलिक क्षेत्र,
- लगने वाले समय के काल का निर्धारण,
- अध्ययन के आयाम,
- आँकड़ा संकलन का आधार,
- आंँकड़ा संकलन हेतु प्रयोग की जाने वाली प्रविधियाँ।
उपरोक्त शोध प्राReseller के अन्तर्सम्बन्धित और परस्पर समावेषित अंगों की संक्षिप्त विवेचना यहाँ आवश्यक प्रतीत होती है।
1. सूचना के स्रोत
कोर्इ भी शोध कार्य सूचना के अनेकों स्रोत पर निर्भर करता है। मोटे तौर पर सूचना के इन स्रोतों को हम दो भागों में रख सकते हैं। (i) प्राथमिक स्रोत और (ii) द्वैतियक स्रोत।
प्राथमिक स्रोत वे हैं जिनका शोधकर्ता पहली बार स्वयं प्रयोग कर रहा है, यानि शोधकर्ता ने अपने अध्ययन क्षेत्र में जा कर जिस तकनीक या उपकरण अथवा विधि का प्रयोग कर मौलिक तथ्य प्राप्त Reseller है, वह प्राथमिक तथ्य कहलाता है। वही दूसरों के द्वारा जो सूचना प्रकाशित या अप्रकाशित अथवा अन्य तरीकों से सर्व उपलब्ध हो, और जिसका उपयोग शोधकर्ता कर रहा हो वह द्वैतियक सूचना का स्रोत होता है। Historyनीय है कि बहुधा द्वैतियक सूचना का स्रोत Single समय में किसी शोधकर्ता का प्राथमिक सूचना स्रोत होता है। Meansपूर्ण तथ्यों की खोज में लगे समाजशास्त्री उस प्रत्येक सूचना के स्रोत का उपयोग करने में हिचकिचाहट महसूस नहीं करते हैं जिनसे भी शोध कार्य में जरा भी प्रमाण या सहायता मिलने की संभावना होती है। सूचना के इन स्रोत को विधिक विद्वानों ने अलग-अलग प्रकारों में रखकर विश्लेषित Reseller है। बैगले (1938 : 202) ने सूचना के दो प्रमुख स्रोत का History Reseller है- (i) प्राथमिक स्रोत और (ii) द्वैतियक स्रोत।
पी.वी. यंग (1977 : 136) का कहना है कि सामान्यत: सूचना के स्रोत दो होते हैं- (i) प्रलेखीय और (ii) क्षेत्रीय स्रोत। सूचना के प्रलेखीय (डॉक्यूमेन्टरी) स्रोत वे होते हैं, जो कि प्रकाशित और अप्रकाशित प्रलेखों, रिपोर्टों, सांख्यिकी, पाण्डुलिपियों, पत्रों, डायरियों इत्यादि में निहित होते हैं। दूसरी तरफ, क्षेत्रीय स्रोत के अन्तर्गत वे जीवित लोग सम्मिलित होते हैं, जिन्हें उस विषय का पर्याप्त ज्ञान होता है या जिनका सामाजिक दशाओं और परिवर्तनों के लम्बे समय तक का घनिष्ठ सम्पर्क होता है। ये लोग न केवल वर्तमान घटनाओं को विश्लेषित करने की स्थिति में होते हैं अपितु सामाजिक प्रक्रियाओं की अवलोकनीय प्रवृत्तियों और सार्थक मील का पत्थर को बताने की स्थिति में भी होते हैं।
लुण्डबर्ग (1951 : 122) ने सूचनाओं के दो स्रोत का History Reseller है- (i) ऐतिहासिक स्रोत, और (ii) क्षेत्रीय स्रोत।
2. अध्ययन की प्रकृति –
पी.वी. यंग (1977 : 14) का कहना है कि, ‘‘अध्ययन की विशिष्ट प्रकृति का निर्धारण शुरू में और ठीक ठीक कर लेना चाहिए, विशेषकर जब सीमित समय और कर्मशक्ति गलत शुरूआत को रोक रहे हों। शोध केस की प्रकृति पर ही अपने को केन्द्रित करते हुए उन्होंने मटिल्डा वाइट रिले (1963 : 3-31) की पुस्तक में विविध विद्वानों के अध्ययनों के History का उदाहरण देते हुए उन्होंने इस विषय को स्पष्ट Reseller है। क्या यह अध्ययन Single व्यक्ति से सम्बन्धित है (जैसा शॉ की ‘दी जैक रोलर’ में है) कर्इ लोगों से सम्बन्धित है (विलियम वार्इट की पुस्तक ‘स्ट्रीट कार्नर सोसायटी’ के विश्लेषण में डॉक, मार्इक और डैनी) या क्या अध्ययन किसी छोटे समूह पर संकेन्द्रित है (जैसा कि पॉल हैरे And अन्य के अध्ययन ‘स्माल ग्रुप’ या बहुत अधिक केसों पर संकेन्द्रित है, जैसा कि यौन व्यवहार सम्बन्धित किन्से का अध्ययन। इस अनुभव के साथ की प्रत्येक शोध अध्ययन जटिल होता है, उसकी विशिष्ट प्रकृति का यथाशीघ्र निर्धारण कर लेना चाहिए।
3. शोध अध्ययन का उद्देश्य –
अध्ययन के उद्देश्यों का निर्धारण शोध प्राReseller का महत्वपूर्ण अंग है। अध्ययन की प्रकृति और प्राप्त किये जाने वाले लक्ष्यों के According उद्देश्य भिन्न-भिन्न होते हैं। कुछ शोध अध्ययनों का उद्देश्य descriptionात्मक तथ्य, या व्याख्यात्मक तथ्य या तथ्य जिनसे सैद्धान्तिक Creation की व्युत्पत्ति हो, या तथ्य जो प्रKingीय परिवर्तन या तुलना को बढ़ावा दे, को इकट्ठा करना होता है।
अध्ययन का जो भी उद्देश्य हो अपने शोध की प्रकृति के अनुReseller शोध कार्य की तैय्यारी आवश्यक है। शोध उद्दे
श्य के अनुReseller उपकल्पना का निर्माण और उसके परीक्षण की तैय्यारी या शोध प्रश्नों का निर्माण Reseller जाता है।
4. सामाजिक-सांस्कृतिक परिस्थिति –
क्षेत्रीय अध्ययनों में उत्तरदाताओं की सामाजिक सांस्कृतिक परिस्थिति को जानना आवश्यक होता है। हम All जानते हैं कि स्थानीय आदर्श भिन्न-भिन्न होते हैं। इनमें इतनी ज्यादा भिन्नत सम्भव है जिसकी हम कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। व्यवहार प्रतिResellerों को समझने के लिए स्थानीय आदर्शों को जानना जरूरी है। पी.वी. यंग (1977 : 15) ने इस सन्दर्भ में उचित ही लिखा है कि ‘‘Single व्यक्ति का निवास स्थान (प्राकृतिक वास) उसके जीवन के Single भाग से इतना घनिष्ठ होता है कि उसकी उपेक्षा करने का मतलब शून्य में अध्ययन करना है।’’ उनका यह भी सुझाव महत्त्वपूर्ण है कि, ‘‘प्रत्येक सामाजिक-सांस्कृतिक क्षेत्र का अध्ययन उसके प्राकृतिक और भौगोलिक पक्ष के सन्दर्भ में भी Reseller जाना चाहिए।’’
5. सामाजिक-कालिक सन्दर्भ –
यह निर्विवाद सत्य है कि किसी व्यक्ति पर, समुदाय पर, समाज पर ऐतिहासिक काल विशेष का प्रभाव व्यापक Reseller से पड़ता है। किसी देश के कुछ निश्चित ऐतिहासिक काल को ही यहां सामाजिक-कालिक सन्दर्भ Word से सम्बोधित Reseller जा रहा है। कर्इ बार Indian Customer अध्ययनों में औपनिवेशिक काल के प्रभावों का History इसी का उदाहरण माना जा सकता है। अण्डमान-निकोबार द्वीप समूहों में बन्दी उपनिवेश काल या भारतवर्ष में वैदिक काल, मुगल काल इत्यादि कुछ विशिष्ट ऐतिहासिक कालों का समाज पर प्रभाव से हम All परिचित हैं। इसलिए व्यक्ति को उसके सामाजिक-कालिक सन्दर्भ यानि समय और स्थान के ऐतिहासिक विन्यास में देखा जाना चाहिए।
6. अध्ययन के आयाम और निदर्शन कार्यविधि –
सामाजिक शोध में अक्सर यह सम्भव नहीं होता है कि सम्पूर्ण समग्र से प्राथमिक तथ्य संकलन का कार्य Reseller जाये। ऐसी परिस्थिति में समग्र की कुछ इकार्इयों का वैज्ञानिक आधार पर चयन कर लिया जाता है और तथ्य संकलन की उपयुक्त विधि के द्वारा उनसे प्राथमिक तथ्य इकट्ठे कर लिये जाते हैं। ये कुछ चुनी हुर्इ इकार्इयां ही निदर्शन कहलाती हैं। अच्छे निदर्शन को सम्पूर्ण समग्र का प्रतिनिधित्व करना चाहिए ताकि प्राप्त सूचनायें विश्वसनीय हों तथा सम्पूर्ण समग्र का प्रतिनिधित्व कर सकें (यद्यपि निदर्शन के कुछ प्रकारों में इसकी कुछ कम संभावना होती है)। इकार्इयों का चयन निष्पक्ष Reseller से पूर्वाग्रह रहित होकर करना चाहिए। सम्पूर्ण समूह जिसमें से निदर्शन लिया जाता है ‘पापुलेशन’, ‘यूनिवर्स’ (समग्र) या ‘सप्लार्इ’ के नाम से जाना जाता है। निदर्शन के कर्इ प्रकार होते हैं। मोटे तौर पर निदर्शन को दो प्रकारों- संभावनात्मक और असंभावनात्मक में रखा जाता है। जब समग्र की प्रत्येक इकार्इ के चुने जाने की समान सम्भावना हो तो उसे संभावनात्मक निदर्शन कहते हैं और यदि ऐसी समान संभावना न हो तो उसे असंभावनात्मक निदर्शन कहते हैं। संभावनात्मक और असंभावनात्मक निदर्शन के अन्तर्गत आने वाले विविध प्रकारों को प्रस्तुत Reseller जा सकता है-
निदर्शन
संभावनात्मक निदर्शन |
असंभावनात्मक निदर्शन |
---|---|
(क) दैव निदर्शन | (क) सुविधानुसार निदर्शन (या देखा और साक्षात्कार लिया निदर्शन) |
(ख) क्रमबद्ध दैव निदर्शन | (ख) सोद्देशपूर्ण निदर्शन (नियत मात्रा) |
(ग) स्तरीत दैव निदर्शन | (ग) कोटा निदर्शन |
(घ) समूह दैव निदर्शन | (घ) स्नोबाल निदर्शन |
(ड़) स्वनिर्णय निदर्शन |
निदर्शन, इसके प्रकार, निदर्शन आकार, गुण And सीमाओं पर विस्तृत Discussion अन्यत्र अध्याय में की गर्इ है। यहाँ यह Historyनीय है कि शोध प्राReseller को बनाते समय निदर्शन तथा उसके आकार पर उपलब्ध समय और साधनों की सीमाओं के अन्तर्गत व्यापक सोच-विचार Reseller जाता है। अध्ययन के उद्देश्यों के According तथा समग्र की संख्या तथा विशेषताओं के According निदर्शन का प्रकार तथा आकार अलग-अलग होता है। उत्तम And विश्वसनीय परिणाम प्राप्त करने के लिए यथेष्ट And उत्तम निदर्शन का होना जरूरी होता है।
सामाजिक शोध कार्यों में सबसे जटिल प्रश्न यह उत्पन्न होता है कि निदर्शन का आकार क्या होगा? कितने लोगों को उत्तरदाताओं के Reseller में चयनित Reseller जायेगा? सम्पूर्ण समग्र का अध्ययन अक्सर समय और साधनों की सीमाओं के चलते सम्भव नहीं होता है। समुचित निदर्शन के निर्धारण की समस्या Single जटिल समस्या है। यद्यपि कर्इ विद्वानों ने इस सन्दर्भ में अपने-अपने सुझावों को दिया है तथा सांख्यिकीविदों ने तो इसका सूत्र भी बना रखा है, परन्तु इसके बावजूद भी समस्या किसी न किसी Reseller में बनी ही रहती है।
पी.वी. यंग (1977 : 17) यह मानती हैं कि, ‘‘Single परिपक्व शोधकर्ता द्वारा भी इस प्रश्न के उत्तर को देना कठिन है कि कितने केसों की जरूरत है।’’ पी.वी. यंग (1977 :17) ने अपनी पुस्तक में सांख्यिकीविद् मारग्रेट हगुड़ (1953) द्वारा सुझाये निदर्शन के आधारों का History Reseller है। हगुड़ (1953 : 272) ने निदर्शन चयन के निम्नांकित सुझाव दिए हैं’- ‘‘(1) निदर्शन को समग्र का प्रतिनिधित्व करना चाहिए ;Meansात् उसे पूर्वाग्रह रहित होना चाहिएद्ध; (2) विश्वसनीय परिणाम प्राप्त करने के लिए निदर्शन पर्याप्त आकार का होना चाहिए (Meansात् दोष की विशिष्ट सीमा तक जैसे मापा जाय);(3) निदर्शन इस तरह से संरचित Reseller जाये कि कुशल हो (Meansात वैकल्पिक प्राReseller की तुलना में)।’’
7. तथ्य संकलन के लिए प्रयुक्त तकनीक –
शोध प्राReseller का Single महत्वपूर्ण अंग तथ्य संकलन की तकनीक है। शोध कार्य प्रारम्भ करने के पूर्व ही इस महत्वपूर्ण विषय पर शोध की प्रकृति और उत्तरदाताओं की विशेषताओं के परिपे्रक्ष्य में व्यापक सोच-विचार के बाद यह निर्णय लिया जाता है कि प्राथमिक तथ्य संकलन का कार्य किस प्रविधि के द्वारा Reseller जायेगा। Historyनीय है कि तथ्य संकलन की विविध प्रविधियां हैं- जैसे अवलोकन, साक्षात्कार, प्रश्नावली, अनुसूची, वैयक्तिक अध्ययन (केस स्टडी) इत्यादि। इन All प्रविधियों की अपनी-अपनी विशेषताएँ तथा सीमाएँ हैं। तथ्य संकलन की सही तकनीक का प्रयोग शोध की गुणवत्ता, विश्वसनीयता तथा वैज्ञानिकता निर्धारित करता है। Historyनीय है कि इन प्रविधियों का प्रयोग प्रत्येक समाज And उत्तरदाताओं पर नहीं Reseller जा सकता है।
शोध प्राReseller का महत्व
उपरोक्त विस्तृत व्याख्या से शोध प्राReseller के महत्व का स्पष्ट अनुमान हो जाता है। ब्लैक और चैम्पियन (1976=76.77) के Wordों में कहा जाये तो-
- शोध प्रारुप से शोध कार्य को चलाने के लिए Single Reseller रेखा तैयार हो जाती है।
- शोध प्राReseller से शोध की सीमा और कार्य क्षेत्र परिभाषित होता है।
- शोध प्राReseller से शोधकर्ता को शोध को आगे बढ़ाने वाली प्रक्रिया में आने वाली समस्याओं का पूर्वानुमान लगाने का अवसर प्राप्त होता है।
शोध प्राReseller बनाम तथ्य संकलन की पद्धति
शोध प्राReseller और तथ्य संकलन की पद्धतियों के सन्दर्भ में Historyनीय है कि शोध प्राReseller आँकड़े या तथ्य इकट्ठे किये जाने वाली पद्धति से अलग होता है। ‘‘यह देखना असामान्य नहीं है कि शोध प्राReseller को तथ्य संकलन के तरीके के Reseller में देखा जाता है बजाये इसके कि जाँच की तार्किक संCreation के।’’
शोध प्राReseller और तथ्य संकलन की पद्धति में समानता का भ्रम होने का कारण कुछ विशेष प्राResellerों को किसी विशेष तथ्य संकलन की पद्धति से जोड़कर देखना है। उदाहरण के लिए वैयक्तिक अध्ययनों को सहभागी अवलोकन और क्रास सेक्शनल सर्वे को प्रश्नावलियों से समीकृत Reseller जाता है। वास्तविकता यह है कि किसी भी प्राReseller के लिए तथ्य किसी भी तथ्य संकलन की पद्धति से इकट्ठा Reseller जा सकता है। विश्वसनीय तथ्य महत्वपूर्ण होते हैं न कि उन्हें इकट्ठा करने का तरीका। तथ्य कैसे इकट्ठा Reseller गया, यह प्राReseller की तार्किकता के लिए अप्रासंगिक/असम्बद्ध है।
न्यूयार्क यूनिवर्सिटी की फैकल्टी क्लास वेबसाइट (पृ. 10) में ‘शोध प्राReseller क्या है?’ अध्याय के अन्तर्गत शोध प्राReseller और तथ्य संकलन की पद्धतियों में सम्बन्ध को दर्शाया गया-
इसी तरह से प्रारुपों को अक्सर गुणात्मक और गणनात्मक शोध पद्वतियों से जोड़ा जाता है। सामाजिक सर्वेक्षण और प्रयोगों को अक्सर गुणात्मक शोध के मुख्य उदाहरणों के रुप में देखा जाता है और उनका मूल्यांकन सांख्यिकीय, गुणात्मक शोध पद्वतियों और विश्लेषण की क्षमता और कमजोरियों के विरुद्ध Reseller जाता है। दूसरी तरफ वैयक्तिक अध्ययन को अक्सर गुणात्मक शोध के मुख्य उदाहरण के Reseller में देखा जाता है- जोकि तथ्यों के विवेचनात्मक उपागम का प्रयोग करता है, ‘चीजों’ का अध्ययन उनके सन्दर्भ के अन्तर्गत करता है और लोग अपनी परिस्थितियों का जो वस्तुगत Means लगाते हैं को विचार करता है। किसी विशिष्ट शोध प्रारुप को गुणात्मक या गणनात्मक पद्वति से जोड़ना भ्रान्तिपूर्ण या गलत है। वैयक्तिक अध्ययन प्रारुप की Single सम्मानित हस्ती यिन (1993) ने वैयक्तिक अध्ययन के लिए गुणात्मक/गणनात्मक विभेद की अप्रासंगिकता पर जोर दिया है। उनका कहना है कि वैयक्तिक अध्ययन पद्वति तथ्य संकलन के किसी विशिष्ट स्वReseller को अन्तर्निहित नहीं करती है। वह गुणात्मक या गणनात्मक कोर्इ भी हो सकती है
न्यूयार्क यूनिवर्सिटी की फैकल्टी क्लास वेबसाइट (पृ. 11.12) में ‘शोध प्राReseller क्या है?’ अध्याय के अन्तर्गत व्याख्या में संशयवादी उपागम को अपनाने की Need का History करते हुए लिखा गया है कि, ‘‘शोध प्रारुप की Need शोध के संशयवादी उपागम के तने और इस दृष्टिकोण से कि वैज्ञानिक ज्ञान हमेशा अस्थायी होता है, से निकलती है। शोध प्रारुप का उद्देश्य शोध के बहु साक्ष्यों की अस्पष्टता को कम करना होता है।’’
हम हमेशा कुछ साक्ष्यों को लगभग All सिद्धान्तों के साथ निरन्तर पा सकते हैं। जबकि हमें साक्ष्यों के प्रति संशयपूर्ण होना चाहिए और बजाये उन साक्ष्यों को प्राप्त करना जो हमारे सिद्धान्त के साथ निरन्तर उपलब्ध हों। हमें ऐसे साक्ष्यों को प्राप्त करना चाहिए जो सिद्धान्त के अकाट्य परीक्षण को प्रदान करते हों।
शोध प्रारुप निर्मित करते समय यह आवश्यक है कि हमें आवश्यक साक्ष्यों के प्रकारों को चिन्हित कर लेना चाहिए जिससे कि शोध प्रश्नों का उत्तर विश्वासोंत्पादक हो। इसका तात्पर्य यह है कि हमें मात्र उन साक्ष्यों को इकट्ठा नहीं करना चाहिए जो किसी विशिष्ट सिद्धान्त या व्याख्या के साथ लगातार बने हुए हों। शोध इस प्रकार से संरचित Reseller जाना चाहिए कि उससे साक्ष्य वैकल्पिक प्रतिद्वन्दी व्याख्या दें और हमें यह चिन्हित करने में सक्षम बनाये कि कौन सी प्रतिस्पर्द्धी व्याख्या आनुभविक Reseller से ज्यादा अकाट्य है। इसका यह भी तात्पर्य है कि हमें अपने प्रिय सिद्धान्त के समर्थन वाले साक्ष्यों को ही मात्र नहीं देखना चाहिए। हमें उन साक्ष्यों को भी देखना चाहिए जिनमें यह क्षमता हो कि वे हमारी वरीयतापूर्ण व्याख्या को नकार सकें।
शोध प्रारुप के प्रकार
शोध प्रारुपों के कर्इ प्रकार होते हैं। विविध विद्वानों ने शोध प्रारुपों के कुछ तो Single समान और कुछ अलग प्रकार के प्रकारों का History Reseller है। उदाहरण के लिए सुसन कैरोल (2010:1) ने शोध प्रारुप के आठ प्रकारों का History Reseller है। ये हैं-
- ऐतिहासिक शोध प्रारुप (Historical Research Design)
- वैयक्तिक और क्षेत्र शोध प्रारुप (Case and Field Research Design)
- descriptionात्मक या सर्वेक्षण शोध प्रारुप (Descriptive or Survey Research Design)
- सह सम्बन्धात्मक या प्रत्याशित शोध प्रारुप (Correlational or Prospective Research Design)
- कारणात्मक, तुलनात्मक या Single्स पोस्ट फैक्टों शोध प्रारुप (Causal Comparative or Ex- Post Facto Research Design)
- विकाSeven्मक या समय श्रेणी शोध प्रारुप (Developmental or Time Series Research Design)
- प्रयोगात्मक शोध प्रारुप (Experimental Research Design)
- अर्द्ध प्रयोगात्मक शोध प्रारुप (Quasi Experimental Research Design)
न्यूयार्क यूनिवर्सिटी की फैकल्टी क्लास वेबसाइट (2010 : 10) में ‘शोध प्राReseller क्या है?’ अध्याय के अन्तर्गत चार प्रकार के शोध प्रारुपों का History Reseller गया है-
- प्रयोगात्मक (Experimental)
- वैयक्तिक अध्ययन (Case Study)
- अनुलम्ब प्राReseller (Longitudinal)
- अनुप्रस्थ काट प्रारुप (Cross-Sectional Design)
कुछ विद्वानों ने अनेकों प्रकारों का History Reseller है। जो कुछ भी हो मोटे तौर पर शोध प्रारुपों को चार महत्वपूर्ण प्रकारों में विभक्त Reseller जा सकता है-
- descriptionात्मक प्रारुप या वर्णनात्मक शोध प्रारुप।
- व्याख्यात्मक प्रारुप
- अनवेषणात्मक प्रारुप, और
- प्रयोगात्मक प्रारुप
किसी विशिष्ट प्राReseller का चयन शोध की प्रकृति पर मुख्यत: निर्भर करता है। कौन सी सूचना चाहिए, कितनी विश्वसनीय सूचना चाहिए, प्राReseller की उपयुक्तता क्या है, लागत कितनी आयेगी, इत्यादि कारकों पर भी प्राReseller चयन निर्भर करता है।
descriptionात्मक या वर्णनात्मक शोध प्राReseller
जैसा कि नाम से ही स्पष्ट है इस प्रारुप में अध्ययन विषय़ के सम्बन्ध में प्राप्त All प्राथमिक तथ्यों का यथावत् description प्रस्तुत Reseller जाता है। इस प्रारुप का मुख्य उद्देश्य अध्ययन की जा रही इकार्इ, संस्था, घटना, समुदाय या समाज इत्यादि से सम्बन्धित पक्षों का हूबहू वर्णन Reseller जाता है। यह प्राReseller वैसे तो अत्यन्त सरल लगता है किन्तु यह दृढ़ And अलचीला होता है इसमें विशेष सावधानी अपेक्षित होती है। इस बात पर विशेष ध्यान दिया जाना चाहिए कि निदर्शन पर्याप्त And प्रतिनिधित्वपूर्ण हो। प्राथमिक तथ्य संकलन की प्रविधि सटीक हो तथा प्राथमिक तथ्य संकलन में किसी भी प्रकार से पूर्वाग्रह या मिथ्या झुकाव न आने पाये। अध्ययन समस्या के विषय में व्यापक तथ्यों को इकठ्ठा Reseller जाता है, इसलिए ऐसी सतर्कता बरतनी चाहिए कि अनुपयोगी And अनावश्यक तथ्यों का संकलन न होने पाये। अध्ययन पूर्ण And यथार्थ हो और अध्ययन समस्या का वास्तविक चित्रण हो इसके लिए विश्वसनीय तथ्यों का होना नितान्त आवश्यक है।
वर्णनात्मक शोध का उद्देश्य मात्र अध्ययन समस्या का description प्रस्तुत करना होता है। इसमें नवीन तथ्यों की खोज या कार्य-कारण व्याख्या पर जोर नहीं दिया जाता है। इस प्रारुप में किसी प्रकार करके प्रयोग भी नही किए जाते हैं। इसमें अधिकांशत: सम्भावित निदर्शन का ही प्रयोग Reseller जाता है। इसमें तथ्यों के विश्लेषण में क्लिष्ट सांख्यिकीय विधियों का भी प्रयोग सामान्यत: नहीं Reseller जाता है।
इसमें शोध विषय के बारे में शोधकर्ता को अपेक्षाकृत यथेष्ट जानकारी रहती है इसलिए वह शोध संचालन सम्बन्धी निर्णयों को First ही निर्धारित कर लेता है। वर्णनात्मक शोध प्राReseller के अलग से कोर्इ चरण नही होते हैं। सामान्यत: सामाजिक अनुसंधान के जो चरण हैं, उन्हीं का इसमें पालन Reseller जाता है। सम्पूर्ण Singleत्रित प्राथमिक सामग्री के आधार पर ही अध्ययन सम्बन्धित निष्कर्ष निकाले जाते हैं And Needनुसार सामान्यीकरण प्रस्तुत किये जाने का प्रयास Reseller जाता है।
1. व्याख्यात्मक शोध प्राReseller –
शोध समस्या की कारण सहित व्याख्या करने वाला प्राReseller व्याख्यात्मक शोध प्रारुप कहलाता है। व्याख्यात्मक शोध प्रारुप की प्रकृति प्राकृतिक विज्ञानों की प्रकृति के समान ही होती है, जिसमें किसी भी वस्तु, घटना या परिस्थिति का विश्लेषण ठोस कारणों के आधार पर Reseller जाता है। सामाजिक तथ्यों की कार्य-कारण व्याख्या यह प्राReseller करता है। इस प्रारुप में विविध उपकल्पनाओं का परीक्षण Reseller जाता है तथा परिवत्र्यों में सम्बन्ध और सहसम्बन्ध ढूढ़ने का प्रयास Reseller जाता है।
2. अन्वेषणात्मक शोध प्राReseller –
जब सामाजिक अनुसंधान का मुख्य उद्देश्य अध्ययन समस्या के सम्बन्ध में नवीन तथ्यों को उद्घाटित करना हो तो इस प्रारुप का प्रयोग Reseller जाता है। इसमें अध्ययन समस्या के वास्तविक कारकों And तथ्यों का पता नही होता है। अध्ययन के द्वारा उनका पता लगाया जाता है। चूँकि इसमें कुछ ‘नया’ खोजा जाता है इसलिए इसे अन्वेषणात्मक शोध प्रारुप कहा जाता है। इस प्राReseller द्वारा सिद्धान्त का निर्माण होता है। 34 कभी-कभी अन्वेषणात्मक और व्याख्यात्मक शोध प्रारुप को Single ही मान लिया जाता है। कर्इ विद्वानों ने तो व्याख्यात्मक शोध प्रारुप का History तक नहीं Reseller है। सूक्ष्म दृष्टि से देखा जाये तो यह कहा जा सकता है कि जिस सामाजिक शोध में कार्य- कारण सम्बन्धों पर बल देने की कोशिश की जाती है, वह व्याख्यात्मक शोध प्रारुप के अन्तर्गत आता है, और जिसमें नवीन तथ्यों या कारणों द्वारा विषय को स्पष्ट Reseller जाता है, उसे अन्वेषणात्मक शोध प्रारुप के अन्तर्गत रखते हैं। इसमें शोधकर्ता को अध्ययन विषय के बारे में सूचना नही रहती है। द्वैतियक स्रोतों के द्वारा भी वह उसके विषय में सीमित ज्ञान ही प्राप्त कर पाता है। अज्ञात तथ्यों की खोज करने के कारण या विषय के सम्बन्ध में अपूर्ण ज्ञान रखने के कारण इस प्रकार के शोध प्रारुप में सामान्यत: उपकल्पनाएँ निर्मित नहीं की जाती हैं। उपकल्पनाओं के स्थान पर शोध प्रश्नों का निर्माण Reseller जाता है और उन्हीं शोध प्रश्नों के उत्तरों की खोज द्वारा शोध कार्य सम्पन्न Reseller जाता है।
विलियम जिकमण्ड (1988 : 73) ने अन्वेषणात्मक शोध के तीन उद्देश्यों का वर्णन Reseller है (1) परिस्थिति का निदान करना (2) विकल्पों को छाँटना तथा, (3) नये विचारों की खोज करना। सरन्ताकोस (1988) के According सम्भाव्यता, सुपरिचितिकरण, नवीन विचार, समस्या के निरुपण तथा परिचालनीकरण के कारण अन्वेषणात्मक शोध प्रारुप को अपनाया जाता है। वास्तव में जहोदा तथा अन्य (1959 : 33) ने ठीक ही कहा है कि, ‘‘अन्वेषणात्मक अनुसन्धान अनुभव को प्राप्त करने के लिए आवश्यक है जो कि अधिक निश्चित खोज के लिए उपयुक्त उपकल्पना के निर्माण में सहायक हो।’’
सामाजिक समस्या के अन्तर्निहित कारणों को खोजने के कारण कारण इस प्रारुप में लचीलापन होना जरुरी है। इसमें तथ्यों की प्रकृति अधिकांशत: गुणात्मक होती है, इसलिए अधिक से अधिक तथ्यों And सूचनाओं को प्राप्त करने की कोशिश की जाती है। तथ्य संकलन की प्रविधि इसकी प्रकृति के अनुReseller ही होनी चाहिए। समय और साधन का भी ध्यान रखना चाहिए।
3. प्रयोगात्मक शोध प्रारुप –
ऐसा शोध प्रारुप जिसमें अध्ययन समस्या के विश्लेषण हेतु किसी न किसी प्रकार का ‘प्रयोग’ समाहित हो, प्रयोगात्मक शोध प्रारुप कहलाता है। यह प्रारुप नियंत्रित स्थिति में जैसे कि प्रयोगशालाओं में ज्यादा उपयुक्त होता है। सामाजिक अध्ययनों में सामान्यत: प्रयोगशालाओं का प्रयोग नही होता है। उनमें नियंत्रित समूह और अनियंत्रित समूहों के आधार पर प्रयोग किये जाते हैं। इस प्रकार के प्रारुप का प्रयोग ग्रामीण समाजशास्त्र और विशेषकर कृषि सम्बन्धी अध्ययनों में ज्यादा होता है। वैसे औद्योगिक समाजशास्त्र में वेस्टन इलेक्ट्रिक कम्पनी के हाथोर्न वक्र्स में हुए प्रयोग काफी चर्चित रहे हैं। ग्रामीण प्रयोगात्मक अध्ययनों में प्रयोगों के आधार पर यह पता लगाया जाता है कि संचार माध्यमों का क्या प्रभाव पड़ रहा है, योजनाओं का लाभ लेने वालों और न लेने वालों की सामाजिक-आर्थिक प्रस्थिति में क्या अन्तर आया है, इत्यादि इत्यादि। इसी प्रकार के बहुत से विषयों/प्रभावों को इस प्राReseller के द्वारा स्पष्ट करने की कोशिश की जाती है। परिवत्र्यों के बीच कारणात्मक सम्बन्धों का परीक्षण इसके द्वारा प्रामाणिक तरीके से हो पाता है।