शैक्षिक नेतृत्व का Means, Need And महत्व
वर्तमान युग में शिक्षा का क्षेत्र अत्यन्त व्यापक होता जा रहा है। शिक्षा मन्त्रालय, शिक्षा विभाग तथा शिक्षालयों में All प्रकार के व्यक्तियों को कार्य करना पड़ता है। इनमें से कुछ व्यक्ति प्रKing के Reseller में अपने कार्य का निर्वाह करते हैं तथा अन्य व्यक्तियों से आशा की जाती हैं कि वे प्रKing के आदेशानुसार कार्य करें। वस्तुत: शिक्षा के क्षेत्र में निदेशक, उपनिदेशक, विद्यालय निरीक्षक, प्रधानाचार्य, विभागामयक्ष तथा कुछ वरिष्ठ अध्यापकों को प्रKing के Reseller में ही अपने उनरदायित्वों को निभाना पड़ता है। इन प्रKingों को ही शिक्षा क्षेत्र में नेता,समस्याओं का विधिवत् ज्ञान होना ही चाहिए। पाठ्यक्रम पाठ्य पुस्तक, शिक्षण विधि, शिक्षक समस्याओं का विधिवत् ज्ञान होना चाहिए। पाठ्यक्रम, पाठ्य पुस्तक, पुस्तक, शिक्षण विधि, शिक्षण प्रविधि, शिक्षक व्यवहार, मूल्यांकन-प्रक्रिया,आदि का प्रKingों को सम्यव्फ ज्ञान होना चाहिए, परन्तु प्रश्न यह है कि क्या इन All बातों की पूर्ण जानकारी रखने पर तथा प्रसिद्ध होने पर कोई भी व्यक्ति सफल प्रKing बन सकता है? यदि यह बात पूर्णयता सही होती है तो सम्पूर्ण देश के विद्वानों तथा ज्ञानियों को खोज-खोजकर शिक्षा विभाग में प्रKing के पद पर नियुक्त करने की प्रथा अवश्य प्रचलित होती।
आकड़ें इस तथ्य को प्रमाणित करते हैं कि विद्वता तथा प्रशासन योग्यता में कोई मानात्मक सहसम्बन्ध नहीं है। इसके विपरीत यह भी देखने में आता है कि अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा शैक्षिक योग्यता में कुछ कम योग्य होने पर भी कुछ प्रKing अपने क्षेत्रों में इतने अधिक कुशल, योग्य तथा सफल होते हैं कि बड़े-बड़े विद्वान तथा प्रभावशाली व्यक्ति भी उनके व्यक्तित्व का लोहा मानते हैं। तो फिर कौन-सी ऐसी विशेषता है जिसके कारण कोई प्रKing स्थायी प्रभाव को प्राप्त कर लेता हैं तथा जिसके अभाव में वह अवकाश प्राप्ति के समय तक उदरपूर्ति तो करता है परन्तु सम्पर्क में रहने वाले व्यक्ति सदैव उसकी निन्दा And भत्र्सना ही करते रहते हैं। वास्तव में शैक्षिक प्रशासन के क्षेत्र में सफल प्रKing बनाने के लिये शैक्षिक नेतृत्व की अद्भुत शक्ति को निश्चित Reseller से अर्जित करना पड़ता हैं जिस प्रकार समाज के अन्य क्षेत्रों में नेतृत्व-शक्ति की महना को All स्वीकार करते हैं उसी प्रकार शिक्षा के क्षेत्र में शैक्षिक नेतृत्व की परमावश्यकता तथा महत्व को निर्विवाद Reseller से माना जाता हैं।
शैक्षिक नेतृत्व के लिये जन्मगत अथवा वंशानुक्रम की विशेषताओं को आजकल स्वीकार नहीं Reseller जाता अपितु व्यक्तित्व सम्बन्धी अनेक गुणों तथा अर्जित योग्यताओं को (Acquired abilities) को ही शैक्षिक नेतृत्व का आधार स्वीकार Reseller जाता है। यस्य कस्य प्रसूतों अपि गुणवान पूज्यते नर, मनुष्य कहीं भी उत्पन्न हो, इसका कोई Means नहीं, गुणवान् होने पर ही वह पूज्य होता हैं। इस सम्बन्ध में पंचतन्त्र, की उक्ति भी Historyनीय है-प्रकाश्यं स्वगुणोदयेन गुणीनां गच्छन्ति कि जन्मना, (कोई वस्तु गुणों के उदय से ही प्रकाशमान होती है, उसके उत्पनि स्थान का कोई महत्व नहीं होता)। सर्वमान्य मत यह है चूंकि समाज में रहकर अनुकूल परिस्थितियों के मिलने पर तथा आन्तरिक प्रेरणा से उत्साहित होकर कोई व्यक्ति ऐसे गुणों को अपने अन्दर समाहित कर लेता है कि समाज के अन्य व्यक्ति उसे नेता के कहने तथा मानने के लिये बामय हो जाते हैं। यही प्रक्रिया शिक्षा क्षेत्र में शैक्षिक नेतृत्व की अपने सीमित Wordों में इस प्रकार परिभाषा व्यक्त कर सकते हैं।
शैक्षिक प्रशासन के क्षेत्र में किसी विशिष्ट व्यक्ति का जनतान्त्रिक युक्त तथा सहकर्मियों के उदय को सर्वागReseller में जीतने वाला व्यवहार जो वैयक्तिक तथा अर्जित गुणों पर आधारित होता है, शैक्षिक नेतृत्व कहा जाता है।,
‘शैक्षिक नेतृत्व’ से परिपूर्ण, प्रशासन के कार्यो को उसी प्रकार करने में सक्षम होता है जैसा उस शैक्षिक समूह के व्यक्ति कराने की इच्छा रखते हैं। शैक्षिक के अन्तर्गत कार्यकुशलता, लोकप्रिय व्यवहार तथा सद्भावना आदि का बड़ा मूल्य होता है। शैक्षिक नेतृत्व, में ऐसी शक्ति होती है। जो अध्यापन की क्षमता में निसन्देह वृद्धि कर देती है। इस सम्बन्ध में अमेरिका में SSCPEA (Southern State in Cooperative Programme in Educational Administration) के अन्तर्गत अनुसंधान कार्य भी Reseller गया। जिसका निष्कर्ष है- “Competency in educational administration results when an individual exhibits behaviour that enables him to perform a particular administrative task in the most desirable manner.” –SSCPEA सारांश में कहा जा सकता है कि शैक्षिक नेतृत्व, में इन All कार्यो को करने की क्षमता होती है जो शिक्षा विभाग तथा शिक्षण संस्थाओं की उनरोनर उन्नति के लिये आवश्यक समझे जाते हैं। नेतृत्व के जितने गुण First बताये जा चुके हैं उनका शैक्षिक नेतृत्व में भी होना आवश्यक है। शिक्षण संस्थाओं के प्रशासन तथा पर्यवेक्षण सम्बन्धी All कार्यो की सफलता वस्तुत: शैक्षिक नेतृत्व पर ही आधारित होती है।
शैक्षिक नेतृत्व की Need And महत्व
कोई भी समूह अपने कार्यो का सम्पादन नेता के माध्यम से ही करना चाहता है। नेतृत्व युक्त समूह गौरव का अनुभव भी करता है। जिस समूह अथवा समाज का कोई नेता नहीं होता वह समूह दिशाहीन तथा उद्धेश्यहीन होता है। आजकल अपने देश में प्रजातन्त्र की स्थापना हो चुकी है देश में विभिन्न समाजों, सम्प्रदायों संगठनों तथा संस्थाओं की संख्या में आश्चर्यजनक वृद्धि हुई है। अतएव नेताओं की संख्या का भी उसी अनुपात में बढ़ना स्वाभाविक है Single समूह अथवा समाज में कई नेता भी उदित हो जाते हैं परन्तु इन All का सर्व प्रमुख नेता Single ही व्यक्ति होता है, अन्य सह-नेता कालान्तर में प्रमुख नेता की बातों का ही अनुमोदन करने लगते हैं। इतना निश्चित है कि समाज में नेतृत्व की Need निस्सन्देह होती है।
Need (Need) शिक्षा का क्षेत्र भी अत्यन्त महत्वपूर्ण क्षेत्र है। देश की Creationत्मक तथा विकाSeven्मक अवस्था के मूल में शिक्षा ही होती है। उत्तम शिक्षा तथा समाजोपयोगी शिक्षा की व्यवस्था शैक्षिक नेतृत्व के अभाव में कदापि नहीं हो सकती। शिक्षा विभाग के अन्तर्गत असंख्य शिक्षण-संस्थाएं समाज-कल्याण में ही सहायक होती है। इन संस्थाओं में पढ़ने वाले छात्र तथा शिक्षा प्रदान करने वाले शिक्षक दिन-रात अध्ययन-अध्यापन की प्रक्रिया में तल्लीन रहते हैं परन्तु छात्रों, अध्यापकों तथा संरक्षकों की कार्य क्षमता को उचित दिशा दिखाने के लिये शैक्षिक नेतृत्व की परमावश्यकता होती है। शैक्षिक नेतृत्व की Needओं का संक्षेप में इस प्रकार History Reseller जा सकता है-
- सामाजिक परिवर्तन के अनुकूल शिक्षा विकास (Education development according to Social change)-समाज सदैव Single-सी स्थिति में नहीं रहा करता। समाज की मान्यताओं, मूल्यों तथा धारणाओं में परिवर्तन होता रहता है। शिक्षा को सामाजिक परिवर्तन का सामान माना जाता है, साथ ही शिक्षा को सामाजिक परिवर्तन का अनुगमन भी करना पड़ता है। समाज के अनुReseller किस प्रकार की शिक्षा प्रदान की जानी चाहिए तथा शिक्षा के उद्धेश्य, पाठ्यक्रम, व्यवस्था, शिक्षण विधि आदि में किस प्रकार का परिवर्तन होना आवश्यक है, इन All बातों का ज्ञान शैक्षिक नेतृत्व को संभालने वाले व्यक्तियों को हुआ करता है। विद्यालयों, महाविद्यालयों में आवश्यक नीतियों तथा रीतियों का कार्यान्वयन शैक्षिक नेता ही कर सकते हैं। इस प्रकार के परिवर्तन को विद्यालय के वातावरण में प्रधानाचार्य के सहयोग से ही अपनाया जा सकता है।
- सामूहिक कार्यक्रमों में समन्वय (Co-ordination in group activities)-शैक्षिक समाजों में All व्यक्ति Single ही स्वभाव के नहीं होते। विद्यालयों में देखा जाता है कि कुछ अध्यापक कार्य के प्रति तल्लीन, कुछ उपयोगी तथा उन्नतिप्रद बातों का सदैव विरोमा करने वाले, कुछ Meansोपार्जन को ही अधिक महत्व देने वाले तो कुछ अध्यापक, अध्यापन कार्य के प्रति निष्ठावान् होते हैं। स्वभाव की दृष्टि से भी कुछ विनोदी, परोपकारी तथा मृदुभाषी होते हैं तो कुछ झगड़ालू, र्इष्र्यालु तथा मितभाषी होते हैं। इस विभिन्नता के रहते हुए भी विद्यालय के सामूहिक कार्य-कलापों में All अध्यापकों को Single साचें में ढालने तथा पारस्परिक Singleता And सद्भाव को बनाये रखने के लिए किसी Single योग्य नेता की Need होती है। विद्यालय के प्रधानाचार्य शैक्षिक नेतृत्व के उनरदायित्व को समझते हुए इस कार्य का कुशलतापूर्वक सम्पादन कर सकते हैं। शैक्षिक नेतृत्व, की यह अपूर्व विशेषता होती है कि व्यक्तियों की विरोधी विचारधाराओं के होते हुए भी उन्हें Single उद्धेश्य तथा Single योजना में तल्लीन रहने के लिये प्रेरित And उत्साहित कर देता है।
- नियोजन, व्यवस्था तथा संलग्नता की सफलता (Success in planning, organization and pursuasion)-शिक्षा के क्षेत्र में नवीन तथा उपयोगी कार्यो के लिये योजना का निर्माण करना होता है। कार्य सफलता के लिये संगठन की Need होती है, कार्यान्वयन में कोर्इ व्यक्ति विरोमा या उदासीनता न दिखाये, इसके लिये सजग रहना पड़ता है। वास्तव में इन कार्यो को उचित Reseller में करने के लिये योग्य नेताओं की दक्षता, प्रवीणता तथा कुशलता की Need होती है। नियोजन तथा व्यवस्था के कार्यो में All व्यक्तियों का नेता में विश्वास तथा उसके प्रति आदर की भावना होती है। विरोमा व्यक्त करने वाले व्यक्तियों का नेता व्यक्तित्व के प्रभाव से शीघ्र ही Agree कर लेता हैं तथा कार्य संचालन के लिये सुविधा प्राप्त करता है। कुछ विद्यालय के प्रधानाचार्यो का सर्वगुण-सम्पन्न व्यक्तित्व छात्रों के तथा अध्यापकों के लिये अत्यन्त आदर्शमय And प्रभावयुक्त होता है। इस प्रकार के कार्यो के नियोजन तथा प्रशासन में पूर्णतया सफल होते हैं। शिक्षा विभाग के अन्य आिमाकारिक प्रशासनिक योजनाएं भी तभी सफल होती हैं जब उनमें शैक्षिक नेतृत्व की योग्यता होती है।
- शैक्षिक स्तर की निरन्तर उन्नति (Continuous progress in Educational Standard)-शिक्षा के क्षेत्र में नवीन अनुसन्धानों, आयामों (approaches) तथा नई विधियों का बड़ा महत्व होता है। शैक्षिक नेता से यह आशा की जाती है कि वह अद्यतन (uptodate) शैक्षिक सामग्री से पूर्णतया परिचित रहे तथा अपने आश्रित व्यक्तियों को भी उनसे अवगत कराये। उत्तम शैक्षिक नेता अपने सहकर्मियों की शैक्षिक योग्यताओं की वृद्धि करने में रुचि लेता है। नेता की प्रेरणा से ही विद्यालय के अध्यापक योग्यता तथा कुशलता प्राप्त करने के लिये लालायित होते हैं। अध्यापकों का व्यक्तिगत Reseller से परीक्षाओं को उनरीर्ण करना, विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की सहायता से अवकाश लेकर अनुसंधान कार्य करना तथा All विषयों पर उत्तमोनम ग्रन्थ लेखन का कार्य करना वास्तव में शैक्षिक स्तर को उचा करना है। अनुभव के आधार पर कह सकते हैं कि किसी विद्यालय के मूल क्षेत्र में, कुछ खेलकूद की क्रियाओं में तो कुछ विद्यालय सांस्कृतिक क्रिया-कलापों में प्रसिद्ध हो जाते हैं। वास्तव में इन विशिष्ट क्षेत्रों की ख्याति प्रधानाचार्य की विशेष प्रवृनि (attitude) पर ही अवलम्बित होती है। योग्य तथा कुशल नेता विद्यालय की सर्वाद्वगीण उन्नति पर ही अपना ध्यान आकर्षित करते हैं और ऐसा करने में सफल भी होते हैं। इसके अतिरिक्त शिक्षा विभाग के आदेशानुसार तथा पर्यवेक्षकों के दिये गये सुझावों के According जैसा शैक्षिक स्तर होना चाहिये उसे निर्मित करने तथा बनाये रखने के लिये योग्य शैक्षिक नेतृत्व की ही Need होती है।
- सामाजिकता, सामाजिक जागरूकता तथा कार्यारम्भ की प्रवृनि का विकास (Development in Socialibility, social Consciousness and Initiation )-किसी समूह के व्यक्ति पारस्परिक व्यवहारों में सामाजिकता को अपनाया Meansात् जिन व्यवहारों को समाज में शिष्ट And सभ्य कहा जाता है, उन्हें अपनाने का प्रयत्न करें, इसके लिये मार्ग प्रदर्शन कुशल नेतृत्व द्वारा ही Reseller जा सकता है। समाज के नियमों में ब!माकर तथा अनुशासन का पालन करते हुए श्रेष्ठ नागरिक के गुणों को निरन्तर सीखना सामाजिक जागरूकता कहलाती है। समाज में क्या भला अथवा बुरा है, इसका ज्ञान भी व्यक्ति को होना चाहिए परन्तु व्यक्ति स्वयं ही इन All बातों को नहीं जान सकता। अतएव इन बातों की उचित जानकारी प्राप्त करने के लिये किसी योग्य नेता की Need का अनुभव करता है। इसके अतिरिक्त All व्यक्तियों में यद्यपि कार्य करने की शक्ति होती है और समय तथा अवसर मिलने पर वे उसका परिचय भी देते हैं परन्तु किसी भी कार्य को प्रारम्भ करने की अथवा उनमें योग्यता और हिम्मत नहीं होती। कार्य में पहल करने तथा अन्य व्यक्तियों को लक्ष्य प्राप्ति में जुटाने की अद्भुत योग्यता नेता में ही होती है। इसमें सन्देह नहीं कि यदि किसी समाज में नेतृत्व शक्ति द्वारा कार्यारम्भ First नहीं Reseller जाता तो वह समाज शक्ति रखते हुए भी सुप्त तथा मृतप्राय हो जाता है। सैनिकों में पराक्रम का अभाव कभी नहीं होता परन्तु अपने नेता, द्वारा कार्यारम्भ करते ही तथा नेता का संकेत मिलते ही सैनिकों में अद्भुत शक्ति का संचार होने लगता है।
Single अन्य सरल उदाहरण से इस बात को और भी अधिक स्पष्ट Reseller से समझा जा सकता है। Single विद्यालय के अध्यापक पारस्परिक सद्भावनाओं में वृद्धि करने के लिये विद्यालय के अन्दर गोष्ठी अथवा क्लब की स्थापना करना चाहते हैं, छात्रों तथा अध्यापकों की सुविधा के लिये किसी सहकारी समिति का निर्माण करना चाहते हैं तथा छात्रों में नैतिकता की भावना को जागृत करने के लिये अनेक योजनाएं भी बनाते हैं, इन कार्यो का संचालन करने के लिये कि अनेक बार विचार-क्रिमर्श करते हैं परन्तु उनका कार्यान्वयन वे तब तक नहीं कर पाते जब तक कोई वरिष्ठ अध्यापक अथवा स्वयं प्रधानाचार्य इन कार्यो को करने में पहल नहीं करता। कार्यारम्भ होने के बाद तो All व्यक्ति सक्रिय हो जाते हैं। इसमें सन्देह नहीं कि विद्यालय में सामाजिक जागरूकता तथा सामाजिकता को अपनाने के लिये शैक्षिक नेतृत्व की परमावश्यकता होती है।
शैक्षिक नेतृत्व और उसका कार्य क्षेत्र
किसी भी संगठन का कार्य-संचालन करने के लिये नेतृत्व शक्ति की उपयोगिता को स्वीकार Reseller जाता है। नेता अपनी सूझ-बूझ से अनेक कार्यो को सम्पादित करता है। शैक्षिक नेतृत्व के प्रमुख कार्यो को सम्पादित करता हैं शैक्षिक नेतृत्व के प्रमुख कार्यो के सम्बन्ध में भी विद्वानों ने विचार Reseller है। रेम्सेयर तथा अन्य (Ramseyer john. A and other) ने ओहियो (Ohia) विश्वविद्यालय के शिक्षा महाविद्यालय में शैक्षिक नेतृत्व के कार्यो के निम्नलिखित नौ क्षेत्रों को गिनाया गया है-
- कार्यो के लिये उद्धेश्यों को निश्चित करना।
- नीति निर्धारित करना।
- कार्यो का निश्चय करना।
- प्रKingीय कार्यो तथा उनके ढाचे में समन्वय करना।
- प्रभाव का मूल्यांकन।
- शिक्षा विकास हेतु सामाजिक नेतृत्व के साथ मिलकर कार्य करना।
- सामाजिक शैक्षिक सामानों का उपयोग करना।
- समाज के व्यक्तियों का सहयोग प्राप्त करना।
- सम्बन्धित तथा शैक्षिक कार्यो में सहायक व्यक्तियों से विचार-विनिमय करना।
उपर्युक्त कार्यो का सम्पादन करने में ही शैक्षिक नेतृत्व-शक्ति की परीक्षा होती है। शैक्षिक नेतृत्व द्वारा यदि उद्धेश्यों को गम्भीरतापूर्वक विचार करने के उपरान्त निश्चित Reseller जाता है तथा उसकी उपयुक्त नीतियों को निर्धारित Reseller जाता है और किये जाने वाले कार्यो का नेताओं द्वारा ठीक प्रकार अवलोकन Reseller जाता है तो कार्य-सफलता में कोर्इ सन्देह नहीं रहता। शैक्षिक नेता शिक्षण-संस्था के लिये सजग प्रहरी होता है। संस्था के लिये समाज की जो बातें अत्यन्त महत्वपूर्ण होती हैं, उनका लाभ उठाने में शैक्षिक नेता अपनी पूरी शक्ति को लगा देता है। वस्तुत: किसी विद्यालय के प्रधानाचार्य (नेता) के उपयुक्त व्यवहार को देखकर ही समाज के व्यक्ति उस विद्यालय की उन्नति में सहायक होते हैं। उसके विपरीत प्रधानाचार्य के स्वभाव तथा व्यवहार की कटुता समाज के व्यक्तियों को कट्टर शत्रु बना देती है, साथ ही इन सामाजिक व्यक्तियों को विद्यालय के प्रति उदासीन भी बना देती है कहा जा सकता है कि विद्यालय की सतत् उन्नति के मूल में शैक्षिक नेता की कार्य शैली तथा उसका कुशल व्यवहार ही होता है। नेता द्वारा अपने आश्रित व्यक्तियों के साथ शिक्षण संस्था की प्रगति के सम्बन्ध में यदाकदा विचार-विनिमय करना भी साथियों के साथ विद्यालय की उन्नति के लिये विचार करना वास्तव में सामाजिकों की सहानुभूति तथा सद्भावना को प्राप्त करना है। शैक्षिक नेतृत्व द्वारा इन All कार्यो को करने में सदैव सजग And तत्पर रहना चाहिए।
- निर्णय लेना।
- योजना बनाना।
- व्यवस्था करना।
- विचार-विनिमय करना।
- प्रभाव डालना।
- समन्वय करना।
- मूल्यांकन करना।
‘ग्रेग’ द्वारा सम्पादित शैक्षिक नेतृत्व के कार्यो तथा ‘रिम्सेयर’ के कार्यो में अधिक भिन्नता नहीं है। फ्व्यवस्था करने का कार्य भी अत्यधिक महत्वपूर्ण होता है। क्योंकि वांछित उद्धेश्यों की पूर्ति तथा नीति निर्माण की योजना वस्तुत: उचित व्यवस्था पर ही आधारित होती है। योग्य नेता द्वारा कार्य सफलता हेतु व्यवस्था पर अत्यिमाक ध्यान दिया जाता है उचित व्यवस्था ही उत्तम-अनुशासन का जन्म देती है। उदाहरणार्थ किसी विद्यालय के प्रधानाचार्य अपने साथी अध्यापकों के साथ किसी विशेष उत्सव को आयोजित करने की योग्यता बनाते हैं अथवा अध्यापकों तथा छात्रों को आयोजनों में बैठने-उठने तथा सभ्यतापूर्ण व्यवहार करने की सुशिक्षा दी जाती है। कुछ वरिष्ठ अध्यापकों को अनशासन के प्रति सजग रहने के लिये First ही तैयार कर लिया जाता है। तो सम्पूर्ण उत्सव And आयोजनों में पूर्ण सफलता मिलती है तथा विद्यालय के प्रधानाचार्य को भी अपूर्व आत्मगौरव की अनुभूति होती है।