शीत Fight के कारण और इसके प्रभाव
शीत Fight के कारण
द्वितीय विश्व Fight में, सोवियत संघ, अमेरिका , इग्लैण्ड And फ्रांस, धुरी राष्ट्रों- जर्मनी, इटली And जापान के विरूद्ध, Single साथ थे। परंतु सोवियत सघ And इन तीन राष्ट्रों में वैचारिक मतभेद था- साम्यवाद And पूंजीवाद। अत: ये चार राष्ट्र, मजबूर होकर Single साथ थे, पर अन्दर ही अन्दर, वैचारिक मतभेद के कारण, सोवियत संघ And तीनों पूंजीवादी राष्ट्र Single Second के विरोधी थे। अत: ये तीनों पूंजीवादी राष्ट्र, Fight के दौरान, ऐसी कूटनीतिक चालें चलते रहे, कि हिटलर और सोवियत संघ, दोनों आपस में लड़कर Single Second का विनाश कर दें। लेकिन, द्वितीय विश्व Fight में हिटलर का, Humanता के विनाश का अभियान इतना खतरनाक था कि, उसने इन दो विरोधी विचारधाराओं को Humanता को बचाने के खातिर, Singleजुट होने के लिए मजबूर Reseller था।
परिणाम स्वReseller 26 मर्इ, 1942 को सोवियत संघ तथा ब्रिटेन ने जर्मनी के विरूद्ध Single आपसी सहयोग की बीस वष्रीय संधि पर हस्ताक्षर किए। सोवियत संघ ने, पश्चिमी देशों का विश्वास जीतने के लिए 22 मर्इ, 1944 को पूंजीवादी विरोधी संस्था ‘कम्युनिस्ट इन्टरनेशनल’ संस्था को भंग कर दिया। सोवियत संघ, हिटलर की बढ़ती ताकत और कम्युनिस्टों के प्रति नफरत से चिन्तित था, अत: उसने वैचारिक मतभेदों को दरकिनार कर, पश्चिमी राष्ट्रों के साथ मिलकर, स्वयं And Humanता को बचाने के लिए, सहयोग का प्रयास Reseller। हिटलर ने 1941 में, सोवियत संघ पर, पूरी सैनिक शक्ति के साथ, पूरे पश्चिमी मोर्चे से, Single साथ आक्रमण कर, तवाही मचा दी। अत: 1942 और 1945 के बीच मित्र राष्ट्रों में कर्इ सम्मेलन हुए, जिसमें मुख्य थे – हॉट िस्प्रंग, मॉस्को, काहिरा, तेहरान, ब्रिटेन बुड्स, डाम्बर्टन ओक्स, माल्टा तथा सेनफ्रांसिस्कों। लेकिन, इन वार्ताओं में, पर्दे के पीछे बोय जाने वाले, शीत Fight के बीच स्पष्ट दिखार्इ पड़ते हैं। अत: शीत Fight की धीमी शुरूआत, 1942 में ही हो चुकी थी। वचन देने के बाद भी, पश्चिमी राष्ट्रों, अमेरिका और ब्रिटेन ने (फ्रांस हिटलर के कब्जे में था), सोवियत संघ की शुरूआती तबाही की आग में अपनी रोटियां सेंकीं। द्वितीय मोर्चा, इन देशों ने, जानबूझकर नहीं खोला And इसे लम्बे समय तक टालते गए।
सोवियत संघ ने स्वयं को ठगा समझा And स्वयं के संसाधनों को Singleत्रित कर, हिटलर की भारी तबाही के बाद, जो मॉस्को-राजधानी तक पहुंच चुका था, पीछे धकेलना शुरू Reseller और जर्मनी की राजधानी बर्लिन जा कर उसका अन्त Reseller। सोवियत बढ़ती शक्ति को देख, ये दोनों राष्ट्र स्तब्ध रह गए And इस डर से कि, अब सोवियत संघ पूरे यूरोप पर कब्जा कर, समाजवाद फैला देगा, अन्तत: 5 जून, 1944 को द्वितीय मोर्चा खोल, फ्रांस के नारमंडी क्षेत्र में अपनी सेनाएं जर्मनी के िरूद्ध उतरी।
(1) ‘द्वितीय मोर्चे का प्रश्न –
जैसा कि हमने ऊपर देखा, शीत Fight का कारण Single Second के प्रति बढ़ता हुआ सन्देह और अविश्वास था। 1942 से ही सोवियत संघ और इग्लैण्ड-अमेरिका में वैचारिक वैमनस्यता के चलते, मतभेद शुरू हो गया था। इसका कारण इग्लैण्ड-अमेरिका द्वारा ‘द्वितीय मोर्चे’ का न खोला जाना था। जब 1941 में, हिटलर ने सोवियत संघ पर पूरे पश्चिमी मोर्चे से, अपनी पूरी ताकत के साथ आक्रमण Reseller, उस समय स्टालिन ने वादे के According, इग्लैण्ड-अमेरिका से पश्चिम में हिटलर के विरूद्ध, द्वितीय मोर्चा खोलने का बार-बार आग्रह Reseller, ताकि सोवियत संघ पर जर्मनी के प्रहार में कमी आ सके और सोवियत संघ को, इस अचानक हुए भारी प्रहार से, संभलने का मौका मिल सके। लकिन अमेरिका और इग्लैण्ड इस आग्रह को बार-बार टालते रहे। ऐसा वे जानबूझकर इस लिए कर रहे थे, ताकि नाजी-जर्मनी उनके वैचारिक दुश्मन, सोवियत संघ की साम्यवादी व्यवस्था का काम तमाम कर दे, जो वे पिछले बीस वर्षों से करना चाहते थे।
1944 में, सोवियत संघ ने अपनी संपूर्ण समाजवादी व्यवस्था की शक्ति को Singleत्रित कर, हिटलर को मॉस्कों से पीछे धकेलना शुरू Reseller, तब पश्चिमी खेमे में हड़कम्प मच गया कि, अब सोवियत संघ हिटलर से अकेला ही निपटने में सक्षम है। And अब उन्हें संदेह होने लगा कि, यदि उन्होंने जल्दी दूसरा मोर्चा नहीं खोला तो, सोवियत संघ पूरे यूरोप पर कब्जा कर, साम्यवादी सरकारें स्थापित कर देगा और पूंजीवाद का अन्त ज्यादा दूर नहीं होगा। अन्तत: इग्लैण्ड-अमेरिका ने पांच जून, 1944 को फ्रांस के नारमण्डी प्रान्त में, जर्मनी के विरूद्ध अपनी सेनाएं उतारी।
स्टालिन ने फिर भी इसका स्वागत Reseller। अभी भी हिटलर की नब्बे प्रतिशत शक्ति का सामना सोवियत सेनाएं कर रही थीं। मात्र, दस प्रतिशत ही, पश्चिम की ओर भेजी गयी, जिसमें, शुरू में, प्रत्यक्षदर्शियों के According, आंग्ल-अमेरिकन ‘सैनिक टिड्डी-दल की तरह, हिटलर के प्रहार से इधर-उधर भाग रहे थे। लेकिन अब देर हो चुकी थी, स्टालिन का विश्वास इन देशों से ऊठ चुका था।
(2) Single-Second के विरूद्ध प्रचार अभियान –
Fight के तुरन्त बाद, सोवियत संघ ने अपने मिडिया में पश्चिमी राष्ट्रों के विरूद्ध, उनकी विश्व में साम्राज्यवादी नीतियों का खुलकर खुलासा Reseller And उन पर, संयुक्त राष्ट्र संघ के And अन्य अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर खुलकर प्रहार Reseller। एटम बम से हुए विनाश And उपनिवेशवाद और साम्राज्यवाद के विरूद्ध प्रचार अभियान, पूरे विश्व में तेज कर दिया। इससे पश्चिमी राष्ट्रों की प्रतिक्रिया भी ऐसी ही थी और उन्होंने भी अमेरिका के नेतृत्व में, सोवियत विरोधी प्रचार अभियान अपने मीडिया व अन्तर्राष्ट्रीय मंचों पर तेज कर दिया। साम्यवाद का नकली खतरा जन-मानस के दिमाग में भरने का प्रयास Reseller, जो सत्य नहीं था। यह सिलसिला ‘पूरे शीत Fight’ काल में जारी रहा। अत: इस, Single-Second के विरूद्ध, कुप्राचार से भी शीत Fight की आग को हवा मिली।
(3) एटम बम का अविष्कार –
अमेरिका द्वारा अणु बम्ब हासिल करना भी शीत Fight का Single प्रमुख कारण था। ऐसा माना जाता है कि, अणुबम ने नागासाकी और हिरोशिमा का ही विध्वंस नहीं Reseller, बल्कि Fightकालीन मित्रता का भी अन्त कर दिया। जब अमेरिका में अणुबम पर अनुसंधान चल रहा था, तो इसकी प्रगति से, इंग्लैण्ड को पूरी तरह परिचित रखा था, लेकिन, सोवियत संघ से यह राज छुपाकर रखा गया। इससे सोवियत संघ बेहद नाराज हुआ और इसे Single धोर विश्वासघात माना। उधर अमेरिका को यह अभिमान हो गया कि, उसके पास अणुबम होने से वह विश्व की सर्वोच्च शक्ति बन गया है And सोवियत संघ उससे दब कर रहेगा। पर जल्द ही, उसकी इन आशाओं पर पानी फिर गया, जब 1949 में, सोवियत संघ ने भी अणुबम अपने यहां बना लिया। अत: Single-Second के विरूद्ध अविश्वास और भी गहरा होता चला गया। इसने, Single अनवरत शस्त्रीकरण की होड़ को जन्म दिया And पूरे विश्व को, ‘Third विश्व Fight’ के भय से आन्तकित रखा। खासकर प्रमाणु Fight के खतरे से, जो सन् 1990 तक, इतना Singleत्रित कर लिया था कि, पूरे Earth के गोले और उस पर रहने वाले प्रत्येक Human व जीवों को पच्चास से सौ बार खत्म Reseller जा सकता है। अत: इससे भी दोनों राष्ट्रों में मनमुटाव बढ़ा।
(4) पूर्वी यूरोप में साम्यवादी सरकारों की स्थापना –
जब 1944 में, सोवियत संघ ने अपने देश को हिटलर से पूर्ण Reseller से आजाद कर लिया तो, उन्होंने Fight नहीं रोका, बल्कि सोवियत सेनाएं अब यूरोप के अन्य राष्ट्र, जो हिटलर के कब्जे में थे, And घोर यातनाएं सह रहे थे, उनको आजाद करने आगे बढ़ी, जहां जनता ने उन्हें अपनी आजादी का मसीहा समझा, And उनका भव्य स्वागत हुआ। यह समाजवादी सेनाओं का, इन देशों की And Human जाती को हिटलर के चंगुल से निकालने का, अभियान था। सोवियत सेनाओं ने, अब पीछे मुड़कर नहीं देखा And पूर्वी यूरोप के Single के बाद Single देश को हिटलर के चंगुल से आजाद कर, वहां जनता को अपनी पसन्द की साम्यवादी सरकारों को सत्ता में आने का अवसर दिया। ये देश थे – पोलैण्ड, हंगरी, बल्गारिया, रोमानिया, अल्बानियां, चेकोस्लोवाReseller, यूगोस्लाविया और अन्तत:, मित्र राष्ट्रों द्वारा जर्मनी पर कब्जे के बाद, सोवियत हिस्से में – पूर्वी जर्मनी। इन सब देशों में, साम्यवादी दलों द्वारा सरकारें बनार्इ गर्इं And अब समाजवाद Single विश्व व्यवस्था बन गर्इ। इससे, पश्चिमी राष्ट्र काफी बौखला उठे और सोवियत संघ पर याल्टा संधि के उलंघन का आरोप लगाया पर, जैसा कि हमने देखा, इस वातावरण में इन समझौतों के कोर्इ विशेष मायने नहीं थे।
(5) र्इरान से सोवियत सेनाएं न हटाना –
Fight के समय मित्र राष्ट्रों की Agreeि से, सोवियत संघ ने उत्तरी र्इरान पर कब्जा कर लिया था, ताकि दक्षिण की ओर से, उनका देश Windows Hosting रह सके। और दक्षिण र्इरान में आंग्ल-अमेरिकन कब्जा था। Fight समाप्त होते ही आंग्ल-अमेरिकन सेनाएं हटा ली गयीं, पर Safty की दृष्टि से सोवियत संघ ने, अपनी सेनाएं कुछ समय के बाद हटार्इं। इससे भी दोनों खेमों में अनबन रहीं And इस Fight का Single कारण बना। इस Fight के और भी कर्इ छोटे-मोटे कारण साहित्य में देखने को मिलते हैं। यहां हमने मात्र कुछ-प्रमुख कारणों की ही सारगर्भित Discussion की है, ताकि पाठकों को इन्हें समझने में विशेष कठिनार्इ न हो।
शीत Fight के प्रभाव
(1) विश्व का दाे गुटो में विभाजित होना –
शीत Fight के परिणामस्वReseller, विश्व दाे गुटो में विभाजित हो गया था। Single गुट पूंजीवादी देशों का था, जिसका नेतृत्व अमेरिका करता था, दूसरा गुट समाजवादियों का था जिसका नेतृत्व सोवियत संघ करता था। अब विश्व की समस्याओं को इसी गुटबन्दी के आधार पर देखा जाने लगा था। इसी कारण अनेक अन्तर्राष्ट्रीय समस्याएं उलझी पड़ी थी। द्वितीय महाFight के बाद विकसित, द्वि-ध्रुवीय राजनीति के परिणामस्वReseller, इन गुटो में शामिल राष्ट्रों को अपनी स्वतंत्रता के साथ समझौता करना पड़ा। रूमानिया, बुलगारिया जैसे राष्ट्रों को सोवियत दृष्टिकोण से सोचने के लिए मजबूर होना पड़ा और फ्रांस व ब्रिटेन को अमेरिका नजरिये से दुनिया देखने को विवश होना पड़ा। शीत Fight की बदौलत अपनी द्विगुटीय विश्व राजनीति ने मध्यम मार्ग की गुजाइश को समाप्त कर दिया और इस भावना को जन्म दिया कि, जो हमारे साथ नहीं, वह हमारा शत्रु है।
(2) आणविक Fight की सम्भावना का भय –
शीत यद्धु के परिणामस्वReseller, आणविक अस्त्र-शस्त्रों का निर्माण Reseller गया। अमेरिका ने सन् 1945 में एटम बम का पहली बार प्रयोग जापान के हिरोशिमा तथा नागासाकी पर Reseller। शीतFight के वातावरण में यह अनुभव Reseller जाता है कि, अगला विश्व Fight भयंकर और विनाशकारी, आणविक Fight होगा। क्यूबा संकट के समय, आणविक Fight की सम्भावना बढ़ गयी थी। इसी प्रकार जनवरी, फरवरी, 1991 में खाड़ी Fight के समय भी आणविक Fight का खतरा पैदा हो गया। खाड़ी Fight की जो स्थिति थी, उसके सन्दर्भ में अधिकांश देश आणविक Fight के खतरे से भयभीत थे। आणविक शस्त्रों के परिप्रेक्ष्य में, परम्परागत अन्र्तराष्ट्रीय राजनीतिक व्यवस्था की संCreation ही बदल गयी है।
(3) आतंक और अविश्वास के दायरे में विस्तार –
शीत यद्धु ने राष्ट्राें काे भयभीत Reseller, आतंक और अविश्वास का दायरा बढ़ाया। अमेरिका और सोवियत संघ के मतभेदों के कारण अन्र्तराष्ट्रीय संबंधों में गहरे तनाव, वैमनस्य, मनोमालिन्य, प्रतिस्पर्धा और अविश्वास की स्थिति आ गयी। विभिन्न राष्ट्र और जनमानस इस बात से भयभीत रहने लगे कि, कब Single छोटी सी चिनगारी Third विश्व-Fight का कारण बन जाये ? शीत यद्धु ने ‘Fight के वातावरण’ काे बनाये रखा। नहे रू ने ठीक ही कहा था कि, हम लागे ‘निलम्बित मृत्ृत्यु दण्ड’ के यगु में रह रहै है।
(4) सैनिक संधियों व सैनिक गठबंधन का बाहुल्य –
शीतयद्धु ने विश्व में सैि नक सन्धियों And सैनिक गठबन्धनों को जन्म दिया। नाटो, सीटो, सैण्टो तथा वार्सा पैकट जैसे गठबन्धनों का प्रादुर्भाव, शीत Fight का ही परिणाम था। इसके कारण शीत Fight में उग्रता आयी, उन्होंने नि:शस्त्रीकरण की समस्या को और अधिक जटिल बना दिया। वस्ततु : इन सैनिक संगठनो ने प्रत्येक राज्य को द्वितीय विश्व-यद्धु के बाद ‘निरन्तर Fight की स्थिति’ में रख दिया।
(5) अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का यान्त्रिकीकरण –
शीत यद्धु का स्पष्ट अथर् लिया जाता है कि, दुनिया दो भागों में विभक्त है – Single खेमा देवताओं का है तो, दूसरा दानवों का; Single तरफ काली भेड़ें हैं तो, दूसरी तरफ All सफेद भेड़ें हैं। इसके मध्य कुछ भी नहीं है। इससे जहाँ इस दृष्टिकोण का विकास हुआ कि, जो हमारे साथ नहीं है, वह हमारा विरोधी है, वहीं अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति का Singleदम यान्त्रिकीकरण हो गया।
(6) अन्तर्राष्ट्रीय राजनीति में सैनिक दृष्टिकाण का पोषण –
शीत यद्धु से अन्तरार्ष्ट्रीय राजनीति में सैनिक दृष्टिकोण का पोषण हुआ। अब शान्ति की बात करना भी सन्दहेास्पद लगता था। अब ‘शान्ति’ का अथर् ‘Fight’ के सन्दभर् में लिया जाने लगा। ऐसी स्थिति में शान्तिकालीन युग के अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में संचालन दुष्कर कार्य समझा जाने लगा।
(7) संयुक्त राष्ट्रसंघ का शक्तिहीन होना –
शीत यद्धु के कारण संयुक्त राष्ट्रसघ के कार्य संचालन में अवरोध उत्पन्न हुआ है। महाशक्तियों के पारस्परिक तनाव, हित के कारण संयुक्त राष्ट्रसंघ पाँच महाशक्तियों की राजनीति का अखाड़ा बन गया। इसकी बैठकों में कोरे वाद-विवाद होते रहे किन्तु, उनको मानता कोर्इ नहीं था।
(8) Humanीय कल्याण के कार्यक्रमाें की उपेक्षा –
शीत यद्धु के कारण, विश्व राजनीति का केन्द्रीय बिन्दु Safty की व्यवस्था तक ही सीमित रह गया। इससे Humanीय कल्याण के कार्यक्रमों की उपेक्षा हुर्इ। शीत Fight के कारण ही तीसरी दुनिया के अविकसित और अर्द्ध-विकसित देशों की भुखमरी, बीमारी, बेरोजगारी, अशिक्षा, आर्थिक पिछड़ापन, राजनीतिक अस्थिरता आदि अनेक महत्वपूर्ण समस्याओं का उचित निदान यथासमय सम्भव नही हो सका, क्यों की महाशक्तियों का दृष्टिकोण मुख्यतः ‘शक्ति की राजनीति’ तक ही सीमित रहा।
उपर्युक्त All परिणाम शीत Fight के नकारात्मक परिणाम कहे जा सकते हैं।