शिक्षा मनोविज्ञान की अध्ययन विधियाँ

अन्त:दर्शन विधि

अन्त:दर्शन विधि के माध्यम से व्यक्ति के चेतन मन का अध्ययन Reseller जाता है। Stout ने अन्त: दर्शन के तीन स्तर बताए है :-

  1. व्यक्ति अपने मन का अन्त: निरीक्षण करता है।
  2. उसका विश्लेषण करता है।
  3.  मानसिक प्रक्रियाओं में सुधार लाने का प्रयास करता है।

आलोचना-

  1. अन्त: दर्शन All व्यक्ति नही कर सकते। जिनमें चिन्तन की क्षमता है वहीं लोग कर सकते है।
  2. छोटे बच्चे व असामान्य व्यक्ति अन्त: दर्शन नही कर सकते।
  3. Single व्यक्ति के अन्त: दर्शन के आधार पर सामान्य नियम निकालना दुष्कर है।

निरीक्षण वधि

मनोविज्ञान में संCreationवाद के खिलाफ व्यवहारवादी विचारधारा का उदय हुआ। व्यवहारवादी विचारधारा के प्रतिपादक जान डब्लू वाटसन थे। वाटसन निरीक्षण पद्धति के पक्षधर थे। व्यवहारवादियों ने मनोविज्ञान को व्यवहार का विज्ञान बताया और कहा कि व्यक्ति के व्यवहार का उत्तेजना-प्रतिक्रिया के सन्दर्भ में वस्तुनिष्ठ अध्ययन सम्भव है। निरीक्षण विधि में अध्ययनरत घटनाओं में कार्य कर रहे चरो को बिना किसी औपचारिक परिचालन के अभिलेखित Reseller जाता है। इस विधि में मनोवैज्ञानिक Second व्यक्ति के व्यवहार का निरीक्षण करता है तथा उसके व्यक्तित्व के बारे में आंकलन करता हैं। इस विधि के तीन स्तर होते है –

  1. Second व्यक्ति के व्यवहार का निरीक्षण करना।
  2. Second व्यक्ति के व्यवहार का आंकलन करना।
  3. निरीक्षण के आधार पर Second व्यक्ति के व्यक्तित्व की व्याख्या करना। निरीक्षण दो प्रकार से Reseller जा सकता है –

      1. स्वाभाविक निरीक्षण-

      इसमें व्यक्ति या समूह को बिना किसी पूर्व सूचना के जैसे वह स्वाभाविक गतिविधियां करता है उसका निरीक्षण Reseller जाता है। उदाहरणार्थ –

      1. प्रतिदिन शिक्षक कक्षा में पढ़ाते समय अपने छात्रों की गतिविधियों का निरीक्षण करता है जैसे छात्र चीजों को वर्गीकृत कैसे करता है, स्वयं से या फूलों से क्या बाते करते है आदि।
      2. विद्यालय भवन की विशेषताओं का अध्ययन Reseller जा सकता है।
      3. अन्त: विद्यालयी प्रतियोगिताओं में खेलते वक्त कोच द्वारा खिलाड़ियों के खेलने के तरीके का निरीक्षण करके खेल की आक्रामक अथवा रक्षात्मक युक्ति की योजना बनायी जा सकती है।

          2. अस्वाभाविक या नियन्त्रित निरीक्षण –

          पी0वी0 यंग के According “नियन्त्रित निरीक्षण निश्चित पूर्वनिर्धारित योजना के According Reseller जाता है जिसमें बहुत हद तक प्रयोग की प्रक्रिया शामिल होती है।” उदाहरणार्थ- पावंलाव ने अपने प्रयोग के दौरान कुत्ते के व्यवहार का निरीक्षण नियन्त्रित परिस्थितियों में Reseller।

          किसी भी विद्यालय अथवा महाविद्यालय में पूर्व सूचना देकर Reseller जाने वाला निरीक्षण नियन्त्रित निरीक्षण होता है जैसे राष्ट्रीय अध्यापक शिक्षा परषिद द्वारा महाविद्यालय को मान्यता देने सम्बन्धी निरीक्षण अथवा माध्यमिक स्तर पर DIOS द्वारा कराया जाने वाला निरीक्षण।नियन्त्रित निरीक्षण के दौरान निरीक्षण किए जाने वाले व्यक्ति का व्यवहार बनावटी होता है उसमें स्वाभाविकता नही रहती है। संवेगो, मानसिक आघात आदि को नियन्त्रित निरीक्षण द्वारा अध्ययन नही Reseller जा सकता है।

          प्रयोगात्मक विधि

          नियन्त्रित परिस्थितियों में व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन ही प्रयोग विधि है। प्रयोगकर्ता किसी Single या अधिक चर को नियन्त्रित या परिवर्तित करके उसका प्रभाव व्यक्ति के व्यवहार पर देखता है। चर दो प्रकार के होते है –

          1. स्वतन्त्र चर –ये वो चर होते है जिनको प्रयोगकर्ता नियन्त्रित व परिवर्तित करता है जिससे Second चरों से इसके सम्बन्ध को जाना जा सके। यह सम्भावित कारण होता है जिसकी प्रयोगकर्ता खोज करना चाहता है।
          2. पराश्रित चर –वो दशाएं And विशेषताएं जो प्रयोगकत्र्ता द्वारा स्वतंत्र चर को प्रस्तुत करने हटाने व परिवर्तित करने पर दिखायी देते है, अदृश्य हो जाते है अथवा परिवर्तित हो जाते है पराश्रित चर कहलाते है। उदाहरण – लगातार मानसिक कार्य करने से थकान उत्पन्न हो जाती है। इसमें ‘लगातार मानसिक कार्य’ स्वतन्त्र चर तथा ‘थकान’ पराश्रित चर है।
          3. व्यक्तिविशेष सम्बन्धी चर –इसमें प्रयोज्य की आयु, लिंग, प्रजाति, बुद्धि, व्यक्तित्व आदि आते है
          4. परिस्थिति सम्बन्धी चर-प्रयोगात्मक परिस्थिति में कार्य कर रही चीजें आती है जैसे शोर, तापमान और आद्रता, प्रयोग के कार्य सम्बन्धी बाते, प्रयोगकत्र्ता की क्षमता And उत्साह आदि।
          5. क्रमिक चर-इसमें वे चर आते है जो क्रम से सम्बन्धित होते है। प्रयोग के दौरान जब प्रयोज्य को विभिन्न परिस्थिति में कार्य करना होता है तो उस पर थकान, अभ्यास का प्रभाव, चिन्ता, प्रेरणा, समायोजन आदि का प्रभाव पड़ता है। स्वतन्त्र चर का प्रभाव आश्रित चर पर देखने के लिए इन चरों को प्रयोगात्मक परिस्थिति से हटाने के कर्इ तरीके है जैसे –
            1. प्रयोगात्मक परिस्थिति से उस चर को हटा लेना।
            2. यदि इन चरों को हटाना सम्भव नही है तो इनको स्थिर रखा जाए।
            3. व्यक्तिविशेष सम्बन्धी चरो के प्रभाव को कम करने के लिए प्रयोगात्मक समूह And नियन्त्रित समूह के लोगों का मिलान कर लेते है।
            4. प्रयोगात्मक परिस्थिति में दिए गए प्रयोगात्मक कार्य के क्रमवार के प्रभाव को कम/खत्म करने के लिए प्रतिसंतोलन कर लेते है।
            5.  प्रयोज्यों को विभिन्न समूहों में याद्धच्छिक विधि से सम्मिलित Reseller जाता है।

                प्रयोगात्मक प्राReseller 

                1. चरों को परिभाषित करना।
                2. स्वतन्त्र चर तथा परतन्त्र चर का निर्धारण करना।
                3. प्रयोग में प्रयुक्त की जाने वाली सामग्री Singleत्रित करना।
                4. प्रयुक्त की जाने वाली प्रक्रिया का निर्धारण करना।
                5. लोगों का प्रयोगात्मक समूह के लिए चयन करना।
                6. आंकड़ो को Singleत्रित करना।
                7. Singleत्रित आंकड़ो का सांख्यिकीय विश्लेषण करना।
                8. विश्लेषण से निष्कर्ष निकालना।

                      विकाSeven्मक विधि

                      इसका प्रयोग व्यक्ति के विकास And वृद्धि का अध्ययन करने के लिए Reseller जाता है। इसके अन्तर्गत मुख्यत: तीन विधियों का प्रयोग Reseller जाता है –

                      1. क्रास सेक्शनल – इस विधि में विभिन्न आयु वर्ग के बच्चों का अध्ययन Single ही समय पर Reseller जाता है। उदाहरणार्थ स्मृति से सम्बन्धित विकाSeven्मक रूख जाने हेतु 5, 10, 15, 20, 25 व 30 आयु वर्ग के कुछ बच्चों को स्मृति स्मरण करने लिए दिया गया। और इन सबके स्मरण करने की गति व क्षमता की तुलना कर ली गयी।
                      2. लम्बर्तीय विधि – लम्बे समय तक व्यक्तियों के Single समूह का अध्ययन Reseller जाता है। उदाहरण – जॉ प्याजे ने अपने तीन बच्चों के व्यवहार का निरीक्षण लम्बे समय तक Reseller और बच्चों के संजानात्मक विकास का सिद्धान्त दिया है। इस विधि अत्यधिक समय लगता है तथा खर्च भी अधिक आता है। छोड़ने वाले छात्रों की सम्भावना भी अधिक होती है।
                      3. क्रमवार विधि – इस विधि का आरम्भ से करते है और कुछ माह व साल के बाद उसी समूह का अध्ययन करते है। कुछ समय अन्तराल पर फिर कुछ नए लोगों को अध्ययन में शामिल कर लेते है। इसमें क्रास सेक्शनल तथा लम्बवर्तीय दोनों विक्तिायों के गुण शामिल है। यह जटिल, मंहगी तथा अधिक समय लेने वाली विधि है।

                      उपचारात्मक विधि

                      इस विधि का प्रयोग छात्रों की कुण्ठाओं, भय, कल्पनाओं, ग्रन्थियों, चिन्ता, अपराधिक वृत्तियों, संवेगात्मक विघटन, हकलाना आदि व्यवहार सम्बन्धी कठिनार्इयों के कारणों को जानने के लिये Reseller जाता है। इसके आधार पर निर्देशन व परामर्श देना आसान हो जाता है। जॉ प्याजें ने बालकों के संज्ञानात्मक स्तर को जानने हेतु इसी विधि का प्रयोग Reseller है।

                      जीवनवृत्त अध्ययन विधि

                      इस विधि के अन्तर्गत किसी Single र्इकार्इ का गहन व विस्तृत अध्ययन Reseller जाता है। वह र्इकार्इ Single व्यक्ति, Single संस्था, Single घटना कुछ भी हो सकती है। गहन व विस्तृत अध्ययन करने हेतु बहु उपागमों का प्रयोग Reseller जाता है जैसे शारीरिक परीक्षण, मनोचिकित्सीय परीक्षण सामाजिक रिपोर्ट आदि। पी0वी0 यंग के According, “वैयक्तिक अध्ययन Single ऐसी पद्धति है जिसके द्वारा Single सामाजिक र्इकार्इ-चाहे वह Single व्यक्ति, Single परिवार, संस्था, संस्कृति, समूह और Single समस्त समुदाय ही हो, के जीवन का अन्वेषण तथा विश्लेषण Reseller जाता है। इसका उद्देश्य उन कारकों को निर्धारित करना होता है जो कि सम्बन्धित र्इकार्इ के व्यवहार के विषम प्रतिResellerों तथा उनके र्इकार्इ के प्रति सम्बन्ध ाों की व्याख्या उसके सम्बन्धित स्थानीय परिवेश के आधार पर प्रस्तुत करना होता है।”

                      1. व्यक्तिगत अध्ययन विधि की विशेषताएँ –

                      1. Single समय में Single र्इकार्इ का गहन, विस्तृत, सूक्ष्मतम तथा विश्लेषणात्मक अध्ययन Reseller जाता है। सामान्यत: ऐसे अध्ययन का स्वReseller गम्भीर व विषम होता है।
                      2.  प्रत्येक र्इकार्इ का क्रमबद्ध व वस्तुपरक अध्ययन Reseller जाता है।
                      3. प्रत्येक र्इकार्इ का बहुपक्षीय अध्ययन Reseller जाता है।
                      4. इसमें Single र्इकार्इ से सम्बन्धित विभिन्न अंगो व चरो का अलग-अलग descriptionात्मक अध्ययन न करके उनमें पारस्परिक अन्तर्सम्बन्धों का विश्लेषण Reseller जाता है।

                        2. व्यक्तिगत अध्ययन विधि की आधारभूत धारणाएं –

                        1. भौतिक जगत में घटनाएं स्वतन्त्र रू से घटित नही होती है वरन् उनके घटित होने का Single क्रम होता है और इस Reseller का स्वाभाविक And तर्कसंगत आधार होता है।
                        2. Single घटना के विभिन्न अंगो में यान्त्रिक क्रमबद्धता तथा पारस्परिक आश्रित अन्तर्निहित होती है।
                        3. घटना के विभिन्न अंगो में कार्यकारण सम्बन्ध होता है। वैयक्तिक अध्ययन विधि-द्वारा सामान्य व्यक्ति के व्यवहार का अध्ययन सरलता से Reseller जा सकता है। परन्तु इस विधि का अधिकतर उपयोग असामान्य व्यक्तियों के व्यवहार के अध्ययन में अत्यधिक उपयुक्त रहता है। बाल अपराधी, अपराधी, मन: स्नायु विकृति तथा स्नायु विकृति से ग्रसित लोगों के व्यवहारों का विश्लेषण करने के लिए यह विधि उपयुक्त रहती है।

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