शिक्षा दर्शन का Means, स्वReseller And Need
कुछ विचारकों के According– दर्शन ने मौलिक सिद्धान्तों की खोज होती है औन उन सिद्धान्तों को शिक्षा में व्यवहार Reseller जाता है। इस प्रकार शिक्षा दर्शन में दार्शनिक सिद्धान्तों का शिक्षा के क्षेत्र में व्यवहार किस प्रकार होता है और होना चाहिये इसे बताया जाता है।
कुछ विचारक शिक्षा को ही मुख्य मानते हैं- और उनके According दर्शन तो शिक्षा का सामान्य सिद्धान्त है। कुछ विचारक यह मानते हैं कि ‘‘दर्शन All वस्तुओं को उनके अन्तिम तर्कों And कारणों के जरिये जानने का विज्ञान है।’’ हेन्डरसन महोदय के Wordों में- ‘‘शिक्षा दर्शन, शिक्षा की समस्याओं के अध्ययन में दर्शन का प्रयोग है।’’ इस परिभाषा में पूर्णता नहीं है। हमारी दृष्टि में शिक्षा दर्शन को इस Reseller में परिभाषित Reseller जा सकता है। ‘‘शिक्षा दर्शन शिक्षाशास्त्र की वह शाखा है जिसमें शिक्षा के सम्प्रत्ययों , उद्देश्यों, पाठ्यक्रम, शिक्षण विधियों And शिक्षा सम्बंधी अन्य समस्याओं के संदर्भ में विभिन्न दार्शनिकों And दार्शनिक सम्प्रदायों के विचारों का आलोचनात्मक अध्ययन Reseller जाता है।’’
अत: शिक्षा दर्शन शिक्षा के क्षेत्र में गहनतम समस्याओं का सम्पूर्ण Reseller से अध्ययन करता है और विज्ञान के लिये उन समस्याओं को छोड़ देता है, जो तात्कालिक है और वैज्ञानिक विधि से सर्वोत्तम ढंग से अध्ययन Reseller जा सकता है। शिक्षा की प्रक्रिया के लिये आवश्यक संकेतों And साधनों को शिक्षा दर्शन Single निश्चित Reseller भी प्रदान करता है और शिक्षा प्रक्रिया के अंगो को निर्धारित भी करता है।
शिक्षा दर्शन का स्वReseller
शिक्षा दर्शन को मुख्यत: शिक्षा And दर्शन दोनों के योग के Reseller में देखा जाता है। शिक्षा दर्शन शिक्षा की Single शाखा के Reseller में है। इसमें शिक्षा प्रमुख है और दर्शन तो शिक्षा का सामान्य सिद्धान्त ही है। इसमें दर्शन का वास्तविक कार्य शिक्षा की समस्याओं को ढूढना है। इस युक्ति से तो सम्पूर्ण दर्शन ही शिक्षा दर्शन है। जॉन डी0वी0 ने स्पष्ट Reseller है कि ‘‘शिक्षा दर्शन में तो तत्कालीन सामाजिक जीवन की कठिनाइयों के प्रति उचित दृष्टिकोण बनाने की समस्या का स्पष्टीकरण होता है अत: शिक्षा दर्शन को बाह्य सिद्धान्तों का व्यवहश्त Reseller नहीं समझना चाहिये। उनके According दर्शन स्वयं ही शिक्षा का सिद्धान्तीकरण है।’’ शिक्षा दर्शन कुछ विचारकों के According Single नया क्षेत्र है जिमसें शैक्षिक समस्याओं पर दाशर्निक दृष्टिकोण से विचार Reseller जाता है।
शिक्षा दर्शन के स्वReseller पर चार दृष्टिकोण प्रचलित है-
- दर्शन के अंग स्वReseller
- शिक्षाशास्त्र के अंग स्वReseller
- शिक्षा में दर्शन के प्रयोग स्वReseller
- स्वयमेव Single स्वतंत्र विषय स्वReseller
दर्शन के अंग स्वReseller- शिक्षा दर्शन वास्तव में दर्शन होता है, क्योंिक उसमें भी अन्तिम सत्यों, मूल्यों, आदर्शों, आत्मा-परमात्मा, जीव, मनुष्य, संसार, प्रकृति आदि पर चिन्तन And उसके स्वReseller को जानने का प्रयत्न होता है, अतएव यह दर्शन Single अभिन्न अंग ही होता है और प्रारम्भिक शिक्षा दार्शनिक दर्शन पर ही बल देते रहे। कुछ विचारकों ने शिक्षा दर्शन को अंग स्वReseller ही माना है।
शिक्षाशास्त्र के अंग स्वReseller- शिक्षाशास्त्र के विकास करने वाले शिक्षाशास्त्रियों ने इस दृष्टिकोण को अपनाया है। शिक्षाशास्त्र के चार आधार स्तम्भ है जिसमें Single शिक्षा दर्शन भी है। ऐसी परिस्थिति में शिक्षा दर्शन शिक्षा शास्त्र का अभिन्न अंग बना है।
स्वमेव Single स्वतंत्र विषय स्वReseller- आधुनिक शिक्षा दर्शन ने Single स्वतत्रं विषय का Reseller ले लिया। इसमें शिक्षा को दार्शनिक दृष्टिकोण से अध्ययन Resellerजाता है, Meansात् शिक्षा को अन्तिम परिभाषा, सर्वमान्य उद्देश्य, पाठ्यक्रम And चिन्तन आधारित शिक्षा विधियों का निर्माण होता है, यही दर्शन शिक्षा के नाम से पुकारा जाता है जो केवल शिक्षाशास्त्र नहीं केवल दर्शनशास्त्र नहीं परन्तु नव-निर्मित विषय शिक्षा दर्शन हो जाता है। इस विचार से दर्शन के विभिन्न अंग ( ज्ञान दर्शन, मूल्य दर्शन, नीति दर्शन, सौन्दर्य दर्शन आदि) के समान ही शिक्षा दर्शन के भी विभिन्न अंग निश्चित किये जाते हैं। इसमें अंतिम, शाश्वत And सूक्ष्म, ज्ञान, तर्क, नैतिकता, सौन्दर्यानुभूति आदि का अध्ययन शिक्षा के Reseller, उद्देश्य, मूल्य, आदर्श, विधि, भावनात्मक दृष्टिकोण आदि प्रसंग में होता है।
शिक्षा में दर्शन के प्रयोग स्वReseller- शिक्षा दर्शन का यह स्वReseller Single प्रकार का साधन स्वReseller हेाता है वास्तव में यह स्वReseller Single और दर्शन का अंग है तो दूसरी ओर शिक्षा का Single साधन है। इसमें इसके साधन And प्रयोग तत्व पर बल दिया जाता है। इसका तात्पर्य यह होता है कि शिक्षा के अध्ययन में दर्शन के सिद्धान्त And अंग-प्रत्यंग सहायता देते हैं तभी शिक्षा की प्रक्रिया पूरी होती है। यदि दर्शन का प्रयोग न हो तो शिक्षा की निर्णयात्मक स्थिति नहीं होती है।
शिक्षा दर्शन की Need
जीवन और शिक्षा में तादात्म्य है तो जीवन दर्शन और दर्शन तथा शिक्षा दर्शन में भी वही सम्बंध है। दर्शन इसी कारण शिक्षा का Single प्रमुख आधार है। शिक्षा दर्शन की Need शिक्षा को अपनी पूर्ण व्यवस्था निर्धारण में पड़ती है।
ब्रह्मण्ड और उसमें जीवन के प्रति विभिन्न दृष्टिकोण का ज्ञान-
दर्शन हमें इस ब्रह्माण्ड और उसमें Human जीवन के रहस्य से अवगत कराता है जो रहस्य णेण रह जाता है उसे समझने के लिये अन्तदृष्टि प्रदान करता है। बिना पूर्व और वर्तमान को जाने कुछ भी सोचना गलत होता है अत: शिक्षा दर्शन विभिन्न दर्शनों के मूल सिद्धान्तों की व्याख्या करता हैं और हम इस ब्रह्माण्ड और उसमें Human जीवन के प्रति विभिन्न दृष्टिकोणों का ज्ञान प्राप्त करते हैं और सही दर्शन का चुनाव करते हैं जो हमारी संस्कण्ति की पोणक हो और वर्तमान परिस्थिति में समायोजन लायक क्षमता हममें विकसित कर सकें।
Human जीवन के विभिन्न उद्देश्यों का ज्ञान And प्राप्त करने का उपाय-
शिक्षा दर्शन अध्यापक के लिये मार्ग प्रशस्त करता है कि वह जीवन के स्वReseller और अन्तिम उद्देश्यों का विस्तश्त ज्ञान प्राप्त कर सके। इस ज्ञान के आधार पर अपने स्वयं के अनुभव And तर्क पर वह अपना दृष्टिकोण बनाता है। जैसे कि Indian Customer परिप्रेक्ष्य में देखें तो आज भी शिक्षा का उद्देश्य निष्कलंक And पवित्र जीवन की प्राप्ति है जो कि आदर्शवादियों के दृष्टिकोण से मिलता है। शिक्षा दर्शन के अध्ययन से अध्यापक Human जीवन के विभिन्न उद्देश्यों की प्राप्ति के उपायों का भी ज्ञान प्राप्त करता है और उस ज्ञान के आधार पर अपना मार्ग निर्धारण करता है।
शिक्षा के सम्प्रत्यय का ज्ञान-
शिक्षा का सम्प्रत्यय दर्शन का विषय क्षत्रे है। जिस दर्शन का इस ब्रह्माण्ड और उसमे Human जीवन के प्रति जो दृष्टिकोण हेाता है उसी के अनुReseller- ‘शिक्षा क्या है’ निर्धारित Reseller जाता है। आदर्शवाद प्लेटो के According- ‘‘शिक्षा से मेरा अभिप्राय उस प्रशिक्षण से है जो, अच्छी आदतों के द्वारा बच्चों में नैतिकता का विकास करती हैं।’’ प्रकृतिवादी एडम्स के According- ‘‘शिक्षा का सामान्य Means उन All शिक्षा पद्धतियों से है जो विद्यालयों और पुस्तकों पर निर्भर न होकर, छात्र के वास्तविक जीवन के अध् ययन पर निर्भर रहती है।’’ प्रयोजवादी जॉन रस्किन के According- ‘‘शिक्षा वह प्रक्रिया है जो बच्चों को अच्छे स्थान प्राप्त करने, बड़े और धनी व्यक्तियों के समाज में महत्वपूर्ण स्थान पाने और आराम और ऐश्वर्य का जीवन जीने के लिये तैयार करती है।’’ इस प्रकार से विर्भिन्न दार्शनिकों ने अपने दर्शन के अनुReseller शिक्षा के सम्प्रत्यय को स्पष्ट Reseller।
उद्द्देश्य निर्धारण में-
दर्शन का First भाग तत्व मीमासा होता है। रस्क का मत है कि शिक्षा के उद्देश्यों का सम्बंध जीवन के साध्यों के साथ है। दर्शन इस बात का निर्धारण करता है कि जीवन के उद्देश्य क्या होना चाहिये और इन उद्देश्यों का प्रत्याक्षीकरण शिक्षा दर्शन द्वारा होता है। टी0पी0 नन ने लिखा है- ‘‘शिक्षा की प्रत्येक योजना अन्ततोगत्वा व्यावहारिक दर्शन है और जीवन के प्रत्येक बिन्दु को आवश्यक Reseller से स्पर्श करती है।’’ अत: शिक्षा का कोर्इ भी उद्देश्य जो निश्चित Reseller से पथ प्रदर्शन करने के लिये पर्याप्त Reseller से स्थूल है, जीवन के आदर्शों से सम्बंध रखते हैं, क्योंकि जीवन के आदर्श भिन्न होते हैं, इनकी भिन्नता शैक्षिक सिद्धान्तों में अवश्य प्रतिबिम्बित होगी जैसे –
- आदर्शवाद के According सच्ची वास्तविकता, आध्यात्मिकता और विचार है। तो रॉस And रस्क के According ‘‘शिक्षा का मुख्य उद्देश्य व्यक्तित्व का उत्कर्ण And आत्मनुभूति और व्यक्तित्व का मुख्य लक्षण सार्वभौमिक मूल्य से युक्त होना।
- प्रकृतिवाद के According मनुष्य इन्द्रियों And विभिन्न शक्तियों का समन्वित Reseller है और ज्ञान And सत्य का आधार इन्द्रियानुभव होता है तो शिक्षा का उद्देश्य होना चाहिये उचित सहज सम्बद्ध क्रियाओं का निर्माण, जीवन की तैयारी, आत्मसंरक्षण, मूल प्रवृत्तियों का शोधन।
- यथार्थवाद के According- जगत में जिसका अस्तित्व है वही सत्य है। सत्य वास्तविकता का सारतत्व प्रक्रिया है। इस का प्रभाव इनके शिक्षा पर स्पष्ट परिलक्षित हुआ और शिक्षा का उद्देश्य जॉन लॉक के According- ‘‘बालक में सद्गुण, बुद्धिमान, सदाचरण तथा सीखने की शक्ति का विकास करना ही शिक्षा है।’’
- प्रयोजनवाद Means का सिद्धान्त- सत्य का सिद्धान्त, ज्ञान का सिद्धान्त और वास्तविकता का सिद्धान्त देता है और प्रयोजनवादियों के According शिक्षा के उद्देश्य स्थायी Reseller से बनाये नहीं जा सकते। उनमें समय और मनुष्य की Needओं के According परिवर्तन Reseller जाना चाहिये।
पाठ्यक्रम निर्धारण में-
दर्शन का दूसरा भाग ज्ञान मीमांसा होता है और इसमें ज्ञान के स्वReseller की व्याख्या की जाती है। शिक्षा दर्शन के लिये प्रश्न की उत्पत्ति होती है। क्या पढ़ाया जाय ? और क्यों पढ़ाया जाय? इस आधार पर शिक्षा की पाठ्यचर्या का निर्धारण भी शिक्षा दर्शन के सहयोग के बिना नहीं हो सकता क्योंकि पाठ्यचर्या शिक्षा के उद्देश्य जीवन के उद्देश्यों से प्रभावित हेाते हैं और उद्देश्यों की विविधता के कारण पाठ्यक्रम में भी विविधता होगी। पाठ्यक्रम निर्धारण में शिक्षा दर्शन विविध काल And परिस्थितियों के According पाठ्यचर्या की जानकारी देता है और अपने लिये उपयुक्त पाठ्यक्रम के चुनाव में सहयोग देता है। उदाहरणार्थ-
- आदर्शवादी शिक्षा का उद्देश्य जीवन के शाश्वत मूल्यों की प्राप्ति है, तो उन्होनें पाठ्यक्रम में Humanीय विचारों And मूल्यों को महत्वपूर्ण स्थान प्रदान Reseller जाता है, और पाठ्यक्रम विचार केन्द्रित है।
- प्रकृतिवादी बालक के स्वाभाविक विकास पर अधिक बल देता है। इनके According शिक्षा का उद्देश्य व्यक्तिकता का विकास करना है अत: पाठ्यक्रम में बालक की तत्कालीन Needओं, रूचियों, क्षमताओं आदि को आधार बनाया जाता है, पाठ्यक्रम बात केन्द्रित होता है।
- प्रयोजनवादी उपयोगिता And व्यावहारिकता पर बल देते हेैं। यह बालक को अपने मूल्यों को स्वयं निर्मित करने वाला मानते है। अत: पाठ्यक्रम में बालक की वर्तमान And भावी Needओं की पूर्ति के लिये उपयोगी क्रियाओं को स्थान दिया जाता है।
- यथार्थवादी प्रत्यक्ष पर विश्वास करते हैं, अत: पाठ्यक्रम सैद्धान्तिक के बजाय अधिक व्यावहारिक होता है और जीवन की वास्तविक क्रियाओं को अधिक महत्व दिया जाता है।
इन All के आधार पर हम यह विचार कर सकते हैं कि प्रत्येक स्तर की शिक्षा में हमारा पाठ्यक्रम विचार से आदर्शवादी, कर्म से प्रकृतिवादी And प्रयोजन से यथार्थवादी होना चाहिये।
रस्क ने स्पष्ट Wordों में कहा है कि ‘‘शिक्षा दर्शन पर पाठ्यक्रम के सम्बंध में शिक्षा जितना निर्भर है, उतनी अन्य किसी शैक्षिक प्रश्न के सम्बंध में नहीं है।’’
शिक्षण विधियों का ज्ञान-
दर्शन के ज्ञान मीमांसा के अन्तगर्त Human बुद्धि, ज्ञान और ज्ञान प्राप्त करने की विधियों पर प्रकाण डाला जाता है। शिक्षा दर्शन शिक्षा व्यवस्था हेतु उपयोगी शिक्षण विधियों की जानकारी भी देता है, और किसको कब और किस प्रकार, पढ़ाना चाहिये, इस प्रकार के विचार अनेक शिक्षा शास्त्रियों के मिलते हैं, जिससे कि अध्यापक वर्तमान परिप्रेक्ष्य में अपने आदर्श And शिक्षण उद्देश्यों के लिये उचित शिक्षण विधियों का चुनाव कर सकता है।
उदाहरणार्थ-सुकरात ने अपने दार्शनिक विचारों के अनुकूल प्रश्नोत्तर विधि को जन्म दिया। प्लेटो ने संवाद विधि अरस्तु ने आगमन And निगमन विधि को खोजा। प्रकृतिवादी रूसो ने बालक की अत्यधिक स्वतंत्रता को महत्व देते हुये स्वानुभव तथा स्वक्रिया बल दिया। मान्टेसरी ने इन्द्रिय यथार्थवाद के आधार पर इन्द्रिय प्रशिक्षण को शिक्षण पद्धति के Reseller में अपनाया। फ्राबेल ने किण्डरमार्टन पद्धति केा जन्म दिया इस प्रकार भिन्न-भिन्न शिक्षाशास्त्रियों द्वारा भिन्न पद्धति को खोजा गया शिक्षा दर्शन इन शिक्षण पद्धति के प्रयोग का कारण And महत्व की विवेचना कर हमारा दृष्टिकोण और स्पष्ट करता है।
शिक्षा में अनुशासन सम्बंधी दृष्टिकोणो का ज्ञान- शिक्षा दर्शन में विभिन्न दर्शनों एंव उनके द्वारा व्यक्त अनुशासन की समस्या And विचारों का अध् ययन Reseller जाता है। यह भावी शिक्षक को उपयुर्क्त अनुशासन विधियों को समझने तथा चुनाव करने में सहायक होती है। रस्क का कथन है- ‘‘विद्यालय कार्य के अन्य किसी भी पक्ष की अपेक्षा अनुशासन किसी व्यक्ति या युग की दार्शनिक पूर्व धारणाओं को अधिक प्रत्यक्ष Reseller से प्रतिबिम्बित करता है।
उदाहरणार्थ- आदर्शवादी मुख्यत: आत्म नियंत्रण एंव शिक्षक के प्रभाव द्वारा अनुशासन की स्थापना को महत्व देते है, तो प्रकृतिवादी प्राकश्तिक नियमों द्वारा दण्ड विधान को महत्व देते थे। प्रयोजनवादी अनुशासन स्थापना हेतु रूचि, आनन्दपूर्ण सहयोगी क्रियाओं को महत्व देते हैं। इस प्रकार अनुशासन मुख्यत: दमनात्मक, प्रभावात्मक, मुक्त्यात्मक And सामाजिक अनुशासन के Reseller में पाया जात हैं। Indian Customer परिप्रेक्ष्य में हम प्रभावात्मक, मुक्त्यात्मक And सामाजिक अनुशास को महत्व देते हैं। रस्क ने लिखा है- ‘‘प्रकृतिवादी दर्शनशास्त्र में नैतिक मानदण्डों की प्रमाणिकता को अस्वीकार करके बालक की जन्मजात मूल प्रवश्त्तियों को प्रकट होने में सहयोग देता है। प्रयोजनवादी छात्रों के आचरण को सामाजिक स्वीकृति पर ही नियत्रित करता है। दूसरी ओर आदर्शवादी Human व्यवहार को नैतिक आर्दणों के अभाव में अपूर्ण मानता है।’’
शिक्षक-शिक्षार्थी के सम्बन्धों का ज्ञान-
दर्शन की तत्व मीमांसा में मनुष्य के स्वReseller और आचार मीमांसा में करणीय और अकरणीय कर्मों की विशद व्याख्या की जाती है। शिक्षा दर्शन विभिन्न विचार धाराओं के According शिक्षक And शिक्षार्थी का स्वReseller And उनके कर्तव्य निश्चित करता हैं।
उदाहरणार्थ-प्रकृतिवादी Human का विकास मूल शक्तियों के आधार पर ही होता है। अत: वे शिक्षक का कर्तव्य शिक्षार्थी के स्वभाविक विकास में सहयोग मानते हैं। आदर्शवादी शिक्षक को महत्वपूर्ण स्थान देता है रास के According प्रकृतिवादी कंटीली झाड़ियों से सन्तुष्ट हो सकता है पर आदर्शवादी सुन्दर गुलाबी फूल ही पसन्द करता हैं। शिक्षक छात्र को उच्चतर सीमा तक पहॅुचाने का प्रयास करता है, जहां वह अपने आप नहीं पहॅुच पाता। Indian Customer शिक्षा में भी गुरू का स्थान सर्वोपरि माना गया है।
शैक्षिक प्रशासन का ज्ञान-
शिक्षा दर्शन इस बात का अध्ययन करता है कि नियोजित शिक्षा की प्रक्रिया को चलाने के लिये विद्यालयों का क्या स्वReseller होना चाहिये। शिक्षा दर्शन के अभाव में हम विद्यालय प्रशासन का स्वReseller निर्धारित नहीं कर सकते। विद्यालय का आन्तरिक प्रशासन कैसा हो और आचार्य And अध्यक्ष कैसा हो यह दर्शन का प्रश्न है। विद्यालय की आन्तरिक व्यवस्था समाज के दर्शन पर निर्भर करती है यदि समाज लोकतांत्रिक दृष्टिकोण का है तो हम यह तय कर लेते हैं कि विद्यालय की प्रशासन लोकतांत्रिक होगा।
शिक्षा की अन्य समस्याओं का दार्शनिक हल-
दर्शन के अभाव में शैक्षिक समस्याओं का वास्तविक समाधान, ढूॅढना कठिन है। शिक्षा दर्शन, दर्शन के विभिन्न विचार धाराओं को अपने कसौटी में कसकर वास्तविक हल ढूढंने में सहायक होता है विश्व परिवर्तनशील है और आजकल यह परिवर्तन बड़ी तेजी से हो रहा है। हमारी सामाजिक, धार्मिक, राजनीतिक और आर्थिक स्थिति भी तेजी से बदल रही है। विज्ञान के आविष्कारों ने हमारे जीवन को पूर्णतया बदल दिया है। शिक्षा को इसके साथ कदम मिलाकर चलना है अन्यथा हम आने वाले समय में अपने आपको Windows Hosting नहीं रख सकेंगे। पर हमें कितना बदलना है और कितना नहीं जितना बदलना है, वह क्यों और जितना नहीं बदलना है वह क्यों इस सबका उत्तर तो वही दे सकता है जिसने शिक्षा दर्शन का अध्ययन Reseller हो।