व्यक्तित्व का Means, परिभाषा, प्रकार, And व्यक्तित्व का विकास

व्यक्तित्व का Means, परिभाषा, प्रकार, And व्यक्तित्व का विकास


By Bandey

अनुक्रम

व्यक्तित्व को अंग्रेजी भाषा में Personality कहते हैं जिसकी उत्पत्ति लैटिन भाषा के Persona से हुई है। ‘परसोना’ Word का Means है बाहरी वेशभूषा या मुखौटा (Mask)। इस प्रकार व्यक्तित्व का Means व्यक्ति के बदले हुए Reseller से है, जिसमें उसकी बोलचाल, वेशभूषा, व्यवहार, रंग, Reseller आदि सम्मिलित किये जाते हैं। लेकिन व्यक्तित्व को बाहर के आवरण (वेशभूषा) अथवा शारीरिक गठन के Reseller में मानना गलत है। कुछ शिक्षाविदों ने व्यक्तित्व को आन्तरिक गुणों का पुंज मात्र माना है। दार्शनिकों ने व्यक्तित्व को पूर्णता का आदर्श (Ideal of Perfection) माना है जबकि समाजशास्त्री व्यक्ति को उन गुणों का संगठन मानते हैं जो समाज में उसका पद और कार्य निर्धारित करते हैं। इस प्रकार कहा जा सकता है – ‘‘व्यक्तित्व सम्पूर्ण मुनष्य है।’’ उसकी स्वाभाविक अभिरुचि तथा क्षमताएँ उसके भूतकाल में अर्जित किये गये अधिगम-फल, इन कारकों का संगठन तथा समन्वय व्यवहार प्रतिमानों, आदर्शों, मूल्यों तथा सेवााओं की विशेषताओं से पूर्ण होता है।

शिक्षा मनोविज्ञान Human व्यवहार का अध्ययन करता है। व्यवहार व्यक्तित्व की अभिव्यक्ति है। कोई व्यक्ति जैसा भी व्यवहार करेगा वैसा ही उसका व्यक्तित्व प्रकट होगा। प्रत्येक समाज तथा विद्यालय बालकों के व्यक्तित्व के विकास में रुचि लेता है। अत: विद्यालय की शिक्षा का मुख्य उद्देश्य बालकों के व्यक्तित्व का समुचित विकास करना है। व्यक्तित्व का समुचित विकास योग्यता And समायोजन की क्षमता की पुष्टि करता है।


व्यक्तित्व की परिभाषा

  1. आलपोर्ट (Allport) के According – ‘‘व्यक्तित्व, व्यक्ति में उन मनोशारीरिक अवस्थाओं का गतिशील संगठन है जो उसके पर्यावरण के साथ उसका अद्वितीय सामंजस्य निर्धारित करता है।’’
  2. मन (Munn) के According – ‘‘व्यक्तित्व की परिभाषा, व्यक्ति की बनावट, व्यवहार के ढंग, अभिवृत्ति, रुचि, योग्यता, क्षमता और अभिरुचि आदि गुणों के संगठन के Reseller में दी जा सकती है। विशेषत: जब इसको परिस्थितियों के समायोजन के दृष्टिकोण से देखा जाता है।’’
  3. वुडवर्थ (Wood worth) के According- ‘‘व्यक्तित्व व्यक्ति के व्यवहार के समस्त गुणों को कहते हैं।’’
  4. ग्रीन लीफ (Green Leaf) के According- ‘‘आपका व्यक्तित्व प्रधानत: चार बातों से निर्धारित होता है- (i) किस प्रकार आप देखते हैं? (ii) किस प्रकार आप अनुभव करते हैं? (iii) आप क्या कहते हैं? (iv) आप क्या करते हैं?
  5. बोरिंग (Boring) के According- ‘‘व्यक्तित्व व्यक्ति के अपने वातावरण के साथ अपूर्व और स्थायी समायोजन है।’’

व्यक्तित्व के प्रकार

प्रारम्भ से ही Human समाज में देखा गया है कि हम विभिन्न व्यक्तियों को किसी न किसी श्रेणी में विभाजित करके देखते आये हैं। इस प्रकार अत्यधिक प्रचलित प्रथा रही है। ड्रामा, उपन्यास तथा कला के क्षेत्र में अच्छा, बुरा, साधु, पापी, सच्चा, झूठा आदि अनेक विशेषण लगाकर विभिन्न पात्रों का किसी न किसी श्रेणी में रखकर देखा जाता है।

जब मनोवैज्ञानिक इस प्रकार की श्रेणी बनाते हैं तब वह वैज्ञानिक आधार पर अपनी तकनीकी भाषा में Wordों का प्रयोग करते हैं जो व्यक्तिगत इच्छा या रूचि से भिन्न होते हैं। इस दिशा में मनोवैज्ञानिक कार्ल युग का वर्गीकरण सर्वविदित है। उसने ‘व्यक्तित्व’ को अन्तर्मुखी (Introvert) तथा बहिर्मुखी (Extrovert) दो वर्गों में रखा है।

व्यक्तित्व की विभिन्नता के आधार पर अनेक प्रकार से व्यक्तित्व का वर्गीकरण Reseller गया है। सामाजिकता के आधार पर युंग (Yung) ने व्यक्तियों के तीन प्राReseller माने हैं-

(i) अन्तर्मुखी (Introvert) : इस प्रकार के व्यक्ति Singleान्तप्रिय, वास्तविक जीवन से निराश And काल्पनिक संसार में विचरने वाले होते हैं। इनमें संवेगों की प्रधानता होती है। महात्मा, वैज्ञानिक And कलाकार लोगों की गणना इसी श्रेणी में की जाती है। यह दूसरों को अपने विचारों से प्रभावित करने वाले होते हैं, आदर्शवादी होते हैं। इनमें शीघ्र निर्णय शक्ति And व्यवहार कुशलता का अभाव सा रहता है। अन्तर्मुखी प्राय: आत्म-केन्द्रित होते हैं। सामाजिक परिस्थितियों से अधिक वह अपनी आन्तरिक मन:स्थिति से जुड़े रहते है उन्हें सामान्य तौर व्यवहारकुशल नही कहा जा सकता है। चिन्तन करने की प्रवृत्ति तथा शांत जीवन की इच्छा रखने वाले यह अन्तर्मुखी व्यक्तित्व के लोग सामाजिक जीवन में कम रूचि रखते हैं तथा अपने मित्रों आदि में Singleाकीपन अनुभव करते रहते हैं।

(ii) बहिर्मुखी (Extrovert) : यह अपने स्वभाव के अन्य लोगों से मिलना-जुलना पसन्द करते हैं। सामाजिक आदान-प्रदान में अधिक भाग लेते हैं। यथार्थवादी होने के कारण जीवन की परिस्थितियों का वस्तुगत Reseller से सामना करते हैं तथा भावना प्रधान होते हैं। शीघ्र निर्णय लेते हैं और उस पर तत्काल अमल करते हैं। व्यवहार कुशल तथा कर्मठ होने के कारण ऐसे लोग जीवन में व्यापारी, खिलाड़ी अभिनेता, सामाजिक तथा राजनैतिक नेता के Reseller में अधिक सफल होते हैं।

बहिर्मुखी से युंग का तात्पर्य ऐसे व्यक्तित्व से है जिसमें सामाजिक वातावरण में अधिक रूचि रखने की प्रवृत्ति होती है। फलस्वReseller ऐसे व्यक्ति सन्तुष्ट, उदार, तथा सदैव दूसरों की सहायता करने के लिए तथा उनके सुख-दुख को बाँटने के लिये तत्पर रहते है। इस कारण यह कहना उचित होगा कि उनका व्यक्तित्व बाह्य परिस्थितियों द्वारा अधिक प्रभावित होता है। उसका गठन, विभिन्न सामाजिक परिस्थितियों में सक्रिय भाग लेने के फलस्वReseller उस व्यक्तित्व से भिन्न होता है जो प्राय: अपनी भावनाओं तथा आन्तरिक मन:स्थिति से ही उलझा रहता है। नेता, राजनीतिज्ञ, समाजसेवी, अभिनेता आदि इस प्रकार के व्यक्ति होते है। जिन्हें सामाजिक जीवन में खुलकर भाग लेना पड़ता है और उनका व्यक्तित्व इस कारण खुला हुआ होता है।

इस वर्गीकरण की मान्यतायें All वैज्ञानिक को मान्य नहीं है। उनका विचार है कि सामान्य जीवन में कोई भी व्यक्ति न तो पूर्णत: बहुर्मुखी होता है, और नही अन्तर्मुखी। वास्तव मे वह उभयमुखी व्यक्तित्व होता है, और उसमें दोनों, अन्तर्मुखी तथा बहिर्मुखी लक्षण विद्यमान होते है। सामाजिक परिस्थिति के प्रति प्रतिक्रिया के फलस्वReseller उसकी अभिव्यक्ति प्रत्येक व्यक्ति भिन्न-भिन्न प्रकार से करता है।

(iii) उभयमुखी : उभयमुखी वह व्यक्ति होते हैं जो किसी भी समस्या पर Singleाग्र होकर गहराई से नहीं सोच पाते हैं और न ही उस समस्या पर विहंगम विचार कर पाते हैं। ऐसे छात्र प्रत्येक विषय का सामान्य ज्ञान ही Singleत्र कर पाते हैं जबकि अन्तर्मुखी छात्र Singleाग्र होकर गहराई तक सोचते हैं और बहिर्मुखी छात्र नया ज्ञान Singleत्र करने के लिए चहुंमुखी चिंतन करते हैं। उभयमुखी छात्र सामान्य स्तर का ज्ञान प्राप्त कर सामान्य श्रेणी में ही रह जात हैं। वह न तो प्रतिभावान बन पाते हैं और न सृजनात्मक। उभयमुखी छात्रों का चिंतन न तो किसी समस्या विशेष पर गहराई से सोच पाता है और न वृहद क्षेत्र में उसका हल ढूंढ़ पाता है, अत: वह ज्ञान के सामान्य स्तर पर ही रह जाता है And अपने स्वयं के निर्णय लेने में हमेशा पीछे रहता है वह चाहता है कि कोई आकर उससे बातचीत कर, परामर्श देकर उसे निर्णय लेने में सहायता करे।

व्यक्तित्व के लेखकों तथा विख्यात मनोविज्ञान पोषकों ने व्यक्तियों को विभिन्न प्रकार के वर्णन द्वारा हमारे सम्मुख उपस्थित करने का प्रयत्न Reseller है। इस वर्णन में इन्होंने स्पष्टत: सम्पूर्ण व्यक्तित्व की किसी मुख्य विशेषता पर अधिक बल दिया है और इसके अन्य निहित गुणों की अवहेलना की है। इनमें से कुछ सिद्धान्त प्राचीन समय से हैं:

1. चार प्रकार के स्वभाव – हिप्पोक्रेट्स (400 ई.पू.) और उसके बाद गॉलिन (100 ई) ने शारीरिक द्रवों के आधार पर व्यक्तित्व का वर्णन Reseller है। इसके According चार प्रकार के समूह इस प्रकार हैं:-

  1. मन्द – वे लोग जो धीमे, निर्बल और निरुत्तेजित होते हैं।
  2. खिन्न – वे लोग जो निराशावादी हैं।
  3. क्रोधी – वे लोग जो शीघ्र ही क्रोधित हो जाते हैं।
  4. आशामय – वे लोग जो बहुत शीघ्र ही कार्य करते हैं और प्रसन्न रहते हैं।

वास्तव में इस सिद्धान्त पर अधिक समय तक विश्वास न Reseller जा सका और हम इस प्रकार के व्यक्तियों के वर्गों को स्वीकार नहीं करते हैं। युंग के अतिरिक्त क्रेचनर, शेल्डन, टकर तथा स्टेवैन्स ने भी व्यक्तित्व का वर्गीकरण Reseller। क्रंशमर का वर्गीकरण युंग के समान है। उसने व्यक्तित्व को दो भागों में विभाजित Reseller है : प्रधान तथा गौड़। शेल्डन का वर्गीकरण आधुनिक आधुनिक मनोविज्ञान में सर्वाधिक मान्य है और इस कारण महत्वपूर्ण समझा जाता है।

2. शारीरिक प्रकार – क्रेचनर ने 400 व्यक्तियों के अध्ययन के आधार पर जो मानसिक दोषयुक्त थे, व्यक्तियों को चार समूहों में उनकी शारीरिक Resellerरेखा के According विभक्त Reseller : शेल्डन के According व्यक्तित्व तीन प्रकार के होते है – गोलाकार, आयताकार तथा लम्बाकार।

  1. सुडौलकाया – वे जो शक्तिवान होते हैं और इच्छानुसार व्यवस्थापन कर लेते हैं, कार्य में रुचि लेते हैं और दूसरी वस्तुओं की चिन्ता बहुत थोड़ी करते हैं।
  2. लम्बकाय – इस प्रकार के व्यक्ति लम्बे और पतले होते हैं दूसरों की निन्दा करते हैं, किन्तु अपनी निन्दा के प्रति सजग होते हैं। लंबाकार व्यक्तित्व के लोग शरीर में क्षीण व कमजोर होते हैं। इस कारण प्राय: अधिक संकोची, चिड़चिड़े , क्रोधी और Singleाकी जीवन के प्रति रूचि रखने वाले होते हैं।
  3. गोलकाय – इस प्रकार के लोग मजबूत तथा छोटे होते हैं और Second लोगों के साथ सरलता से मिल जाते हैं।
  4. डायसप्लास्टिक – इस प्रकार के लोगों का शरीर साधारण होता है।

3. शारीरिक गुणों के आधार पर वर्गीकरण – यह वर्गीकरण शैल्डन ने भी शारीरिक गुणों के आधार पर Reseller है। इन वर्गीकरण का आधार शैल्डन का शरीरविज्ञान तथा शरीर विकास विज्ञान के आधार पर 4000 व्यक्तियों का अध्ययन है; यथा –

  1. कोमल तथा गोलाकार – इस प्रकार के व्यक्ति अत्यन्त कोमल, किन्तु देखने में मोटे लगते हैं और इनका व्यवहार उनकी आदतों के आन्तरिक शक्तिशाली पाचन पर निर्भर होता है। गोलाकार व्यक्तित्व के लोग स्थूल शरीर के होते है और स्वभाव में हसमुख, आराम-पसन्द तथा अच्छे भोजन के प्रति आकर्षण रखने वाले होते हैं।
  2. आयताकार – ये वे लोग होते हैं जो पूर्ण Reseller से शक्तिवान होते हैं। इनका शरीर भारी व मजबूत होता है और खाल पतली होती है। आयताकार व्यक्तित्व के लोग अच्छे शारीरिक गठन के कारण आकर्षक होते हैं और स्वभाव से खूब साहसी और बाह्य जीवन के प्रति आकर्षित होने वाले होते हैं। यह मुख्यत: बहिर्मुखी व्यक्तित्व वाले होते है और सामाजिक जीवन में प्रभावशाली होते हैं।

व्यक्तित्व के प्रकार से यह अनुमान लगाना अनुचित होगा कि Human समाज में प्रत्येक व्यक्ति किसी न किसी श्रेणी या वर्ग का अवश्य होता है। हम कह सकते हैं कि किसी व्यक्ति में कुछ लक्षण प्रधान होते हैं, किसी व्यक्ति में Second अन्तर्मुखी तथा बहिर्मुखी व्यक्तित्व Single रेखा के दो अन्तिम बिन्दु माने जा सकते है। इस रेखा के आरम्भ से अन्त तक विभिन्न लक्षणों की प्रधानता के According व्यक्तित्व देखे जा सकते हैं। शारीरिक Creation तथा स्वभाव की निर्धारक सीमा के भीतर व्यक्तित्व का गठन स्पष्ट Reseller जा सकता है, परन्तु यह दोनों तत्व भी पारस्परिक Reseller से भिन्न लगते हुए भी Single-Second पर आधारित होते हैं।

व्यक्तित्व के प्रमुख प्रकार

मनोवैज्ञानिकों ने विभिन्न दृष्टिकोणों के आधार पर व्यक्तित्व के निम्नांकित प्रकार बताये हैं। उनमें से कुछ दृष्टिकोणों का वर्णन इस प्रकार है-

Indian Customer दृष्टिकोण

  1. सतोगुणी व्यक्तित्व- इसमें अध्यगुणों का पालन, उच्च आदर्श, श्रेष्ठ, मूलय, उत्तम स्वभाव And नैतिक मूल्य से युक्त व्यक्तित्व आता है।
  2. तमोगुणी व्यक्तित्व- ऐसे व्यक्ति कामी, क्रोधी, आलसी तथा अHumanीय व्यवहारों से युक्त होते हैं।
  3. रजोगुणी व्यक्तित्व- सतोगुण व तमोगुण के मध्य की स्थिति रजोगुण की होती है। अत: रजोगुणी व्यक्ति में कुछ अच्छे गुणों व कुछ बुराइयों का समावेश होता है। आयुर्वेद विज्ञान में व्यक्तित्व का विभाजन शरीर के तीन गुणों- कफ, वात, पित्त के आधार पर Reseller गया है।

पाश्चात्य दृष्टिकोण

(अ) हिपोक्रेट्स का विभाजन- पश्चिमी मनोविज्ञानियों ने व्यक्तित्व का विभाजन संवेग, विचार, कार्यों और शारीरिक, मानसिक विशेषताओं के आधार पर Reseller है। उनमें से कुछ मुख्य विद्वानों के विचार इस प्रकार हैं। ग्रीक विद्वान हिपोक्रेट्स ने संवेग के आधार पर निम्न प्रकार से व्यक्तित्व को विभाजित Reseller है-

  1. फ्लैगमैटिक प्रकार (Phlegmatic type)- इस तरह के व्यक्ति शाँत स्वभाव वाले व धैर्यवान होते हैं।
  2. मैलनकॉलिक प्रकार (Melancholic)- ऐसे व्यक्ति सुस्त, निराशापूर्ण And दु:खी जीवन वाले होते हैं।
  3. कॉलेरिक प्रकार (Choleric)- इस प्रकार के व्यक्ति शीघ्र उत्तेजनशील And अधीर स्वभाव वाले होते हैं।
  4. सैंग्विन प्रकार (Sanguine)- ऐसे व्यक्ति कर्त्तव्य परायण, कर्मशील, असहनशील तथा किसी भी कार्य को शीघ्र पूरा करने वाले होते हैं।

(ब) क्रिश्चमर का विभाजन – शरीर के आधार पर क्रिश्चरमर (Krietschmer) महोदय ने व्यक्तित्व का विभाजन इस प्रकार Reseller है-

  1. पुष्टकाय (Athletic type)- ऐसे व्यक्ति शरीर से तन्दुरुस्त, हष्ट-पुष्ट, आत्मविश्वासी व शक्ति संपन्न होते हैं।
  2. लम्बकाय (Asthenic type)- इस प्रकार के व्यक्ति दुबले-पतले, कमजोर, शीघ्र क्रोधी, चिड़चिड़े व निराश प्रकृति के होते हैं।
  3. गोलकाय (Pyknic type)- ऐसे व्यक्ति शरीर से नाटे, मोटे व गोल-गट्टे होते हैं। इनका स्वभाव प्रसéचित वाला होता है। वे अत्यधिक आरामप्रिय व मिलनसार होते हैं।
  4. मिश्रित (Dysplastic type)- ऐसे व्यक्ति उपरोक्त तीनों प्रकार के गुणों से युक्त हुआ करते हैं।

(स) स्प्रेन्जर का विभाजन- ‘स्प्रेन्जर’ (Spranger) ने व्यक्तित्व को छ: भागों में विभाजित Reseller है-

  1. आर्थिक (Economic type)- ऐसे व्यक्ति हर वस्तु का मूल्यांकन Means या धन की दृष्टि से करते हैं।
  2. सैद्धान्तिक (Theoretical)- ऐसे व्यक्ति सैद्धान्तिक व्यवहार वाले हुआ करते हैं। ये कार्य करने में विश्वास तथा तथ्य की खोज करने में लगे रहते हैं।
  3. सौन्दर्यप्रेमी (Aesthetic)- ऐसे व्यक्ति हर वस्तु को सुन्दरता की दृष्टि से परखते हैं।
  4. सामाजिक (Social)- ऐसे व्यक्ति मित्र मण्डली, समुदाय व समाज के लिए कार्य करने वाले होते हैं।
  5. राजनैतिक (Political)- ऐसे व्यक्तियों की अभिरुचि राजनीति में होती है और दूसरों पर अपना प्रभाव डालने का प्रयत्न Reseller करते हैं।
  6. धार्मिक (Religious)- ऐसे व्यक्ति के विचार धर्म से युक्त And Seven्विक हुआ करते हैं।

(द) गैरेट (Garret) व टर्मन (Terman) ने बुद्धिलब्धि (I.Q.) के आधार पर व्यक्तित्व का विभाजन Reseller है।

व्यक्तित्व के गुण

व्यक्तित्व का पूर्णReseller से वर्णन करने से First हमें उनके गुणों को समझना चाहिए। मनोवैज्ञानिकों का गुण से तात्पर्य ‘व्यवहार के ढंग’ से है। वुडवर्थ ने इसकी परिभाषा इस प्रकार दी है-’’व्यक्तित्व के गुण हमारे व्यवहार का Single मुख्य प्रकार का ढंग है; -जैसे प्रसन्नता या आत्मविश्वास आदि, जो कुछ समय तक तो हमारे व्यवहार के गुण ही होते हैं, किन्तु कुछ दिन बाद हमारे जीवन के Single आवश्यक अंग बन जाते हैं।’’ वुडवर्थ व्यक्तित्व को इन्हीं गुणों का योग बताता है लेकिन इसके साथ ही साथ वह आगे यह भी बताता है कि व्यक्तित्व का तात्पर्य इस योग से कुछ अधिक भी है, Meansात केवल योग ही व्यक्तित्व नहीं है वरन व्यक्तित्व में कुछ और भी गुण सम्मिलित होते हैं। इस प्रकार व्यक्ति जो प्रसन्न और आत्मविश्वासी है या दुखी है, इसका तात्पर्य केवल यही नहीं कि वह इस प्रसन्नता, आत्म-विश्वास या दुख का ही योग है, वरन् वास्तव में वह इससे भी कुछ अधिक है।

गॉर्डन आलपोर्ट महोदय ने व्यक्तित्व के संगठन पर जैविक शारीरिक दृष्टि से विचार Reseller है और उसका विश्वास है कि ‘‘गुण हमारे परिवर्तित हो जाने वाले सक्रिय संस्कार हैं। संस्कार कम से कम अंशत: हमारी विशिष्ट आदतों से उत्पन्न होते हैं और हमारे वातावरण के ढंग को बनाते हैं।’’

इस परिभाषा से तात्पर्य यह है कि व्यक्ति का व्यवहार उसकी आन्तरिक भावनाओं और बाह्म वातावरण के प्रभाव के द्वारा संचालित होता है। Single कठिन परिश्रम करने वाले व्यक्ति से आशा की जा सकती है कि वह सदैव कठिन परिश्रम करेगा और इसी प्रकार Single सहानुभूति दिखाने वाले से आशा की जा सकती है कि वह सहानुभूति को सदैव अपने अन्दर रखेगा। यही गुणों के संगठनों का सामान्य सिद्धान्त है।

जीवन काल के विभिन्न स्तरों पर व्यक्तित्व का विकास

शैशवास्था

इस अवस्था में शिशु स्नेह और Safty की Need का अनुभव करता है। यदि इन Needओं की पूर्ति माता-पिता द्वारा उचित ढंग से कर दी गई तो व्यक्तित्व उचित दिशा में विकसित होगा, अन्यथा विपरीत दिशा में विकास होगा। माता जब दूध पिलाना बन्द करती है तो बालक के मन को धक्का लगता है। कुछ प्रयोगों का यह निष्कर्ष निकला है कि जिन बालकों को माता शीघ्र ही दूध पिलाना बन्द कर देती हैं वे बालक आगे चलकर अपने को अWindows Hosting अनुभव करते हैं और उनमें भोजन और धनसंग्रह करने की उत्कृष्ट अभिलाषा रहती है, किन्तु यह बात सार्वभौम सत्य नहीं कही जा सकती। फिर भी शैशवकाल में बालक को जिस प्रकार का वातावरण मिलता है उसकी छाप उसके व्यक्तित्व पर अमिट पड़ती है। पिछले लगभग पचास वर्षों से शैशवकाल के महत्व को अत्यधिक स्वीकार Reseller है और इस दिशा में अनेकानेक प्रयोग चल रहे हैं।

बाल्यावस्था

लगभग छ: वर्ष से बारह वर्ष तक रहती है। इस अवस्था में बालक के वातावरण का क्षेत्र कुछ बढ़ जाता है। घर के अन्दर से निकलकर वह इसी अवस्था में समाज में पदार्पण करता है। अब वह अपने पैरों पर खड़ा होना सीखता है। भोजन, शौच, स्नान आदि में मां-बाप अब उसे सहायता नहीं देते। कुछ माता-पिता इस अवस्था में बालक की बहुत अधिक देखभाल करते रहते हैं ऐसे बालक डरपोक हो जाते हैं इसी अवस्था में बालक स्कूल जाता है और अन्य बालकों से उसका परिचय होता है। मित्र-मण्डली के प्रति अब वह अधिक स्वामिभक्ति दिखाता है। जिन बालकों को माता-पिता से प्रेम नहीं मिलता वे इस अभाव की पूर्ति मित्र-मण्डली में करना चाहते हैं। नेतृत्व, मैत्री, सहानुभूति, सहयोगिता आदि के गुण बालक मित्रमंडली में ही सीखता है। बालक आगे चलकर जो कुछ बनेगा उसमें इस मित्रमंडली का भी हाथ है। स्कूल के अध्यापक भी उस पर प्रभाव छोड़ते हैं। बहुत से बालक समाज-विरोधी कार्यों की ओर इसलिए मुड़ते हैं, क्योंकि उन्हें अध्यापकों से उचित सहानुभूति व स्नेह नहीं मिला। इस अवस्था में बालक बड़ों के सम्पर्क में भी आता है। बड़ों की अभिवृत्तियों को वह प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रीति से ग्रहण करता चलता है। जिन अनुभवों में बालक अपने ‘स्व’ का प्रकाशन देखता है और जो अनुभव उसे रुचिकर प्रतीत होते हैं वे अनुभव उसके द्वारा बार-बार दुहराए जाते हैं और कालान्तर में ये ही अभिवृत्तियों का Reseller धारण कर लेते हैं।

किशोरावस्था

Indian Customer बालकों में यह अवस्था बारह वर्ष के आसपास आती है। कुछ दिन First इसे तूफानी अवस्था कहा जाता था, किन्तु अब यह धारणा भ्रमात्मक सिद्ध हो गई है। फिर भी इस आयु में अनेक प्रकार के परिवर्तन होते हैं। उसके शरीर में यौवन छलकने लगता है। बालक And बालिकाओं के अंगों में भिन्नता आ जाती है। काम-वासना प्रस्फुटन इस अवस्था में सबसे बड़ी घटना है। बालकों में First शुक्रपात और बालिकाओं में First रजोदर्शन से दोनों की रुचियों में महान परिवर्तन हो जाता है। अब प्रेम में कामुकता का रंग चढ़ जाता है। बालक, बालिकाओं के अंगों, वस्त्रों And कार्यों में रुचि लेने लगते हैं और बालिकाएं बालकों के शारीरिक अंगों And कार्यों की ओर आकर्षित होती हैं। लैंगिक विकास में आसपास की दुनिया अब उन्हें Single-Second रंग में रंगी हुई दिखाई पड़ने लगती है और मूल्यों में भारी परिवर्तन हो जाता है। यदि किशोरों And किशोरियों की काम-भावना को दबाया जाता है तो उनमें काम गं्रथि बन जाती है और किशोर आगे चलकर शर्मीले And अपराधी बन सकते हैं। यदि किशोरों को स्वतन्त्र छोड़ दिया जाए तो वे अनेक पापाचार में लग सकते हैं। सन्तुलित व्यक्तित्व के विकास के लिए काम-भावना पर उचित नियन्त्रण रखकर उसके शोधन अथवा ऊध्र्वगमन के लिए शिक्षा देना ही अभीष्ट है। किशोरावस्था में Single प्रभाव जो सबसे अधिक है वह है मित्रमंडली का। किशोरों की गोष्ठियां बड़ी ही गुप्त होती हैं। यदि गोष्ठी बुरे किशोरों की हुई तो इसका प्रत्येक सदस्य आगे चलकर समाज के लिए Single समस्या बनेगा। यदि मित्रमंडली में अच्छे बालक हुए तो किशोर स्वावलम्बन का पाठ पढ़ता है, सहयोग करना सीखता है, प्रजातान्त्रिक प्रणाली से परिचित होता है और नेतृत्व का विकास करता है। यह निश्चित बात है कि इन सब बातों का व्यक्तित्व के विकास में प्रभाव पड़ता रहता है।

प्रौढ़ावस्था

यह अवस्था व्यक्तियों में भिन्न-भिन्न समय पर आती है। कुछ बाईस वर्ष, तो कुछ पच्चीस वर्ष के ऊपर तक का समय ले लेते हैं। इस अवस्था में व्यक्ति किसी व्यवसाय में लग जाता हैं वह जीवन में Single निश्चित दिशा की ओर उन्मुख हो जाता है। अब उसके मानसिक, शारीरिक, बौद्धिक And संवेगात्मक विकास की दिशा निश्चित हो गई होती है। परिवार, व्यवसाय और समाज के प्रति उसका समंजन हो जाता है। व्यक्ति में इस समय आदर्श And अभिवृत्तियां निश्चित हो चुकी होती हैं और इसीलिए प्रौढ़ समाज के लिए कोई विशेष समस्या नहीं खड़ी करते। यदि प्रारम्भ से विकास दूषित हो गया है तो अवश्य वे समाज के लिए समस्या उत्पन्न करेंगे। मनोविज्ञान की दृष्टि से इसमें कोई विशेष परिवर्तन या समस्या नहीं होती।

वृद्धावस्था

इस अवस्था में व्यक्ति का अनुभव बढ़ जाता है, किन्तु उसकी उपार्जन शक्ति कम जो जाती है, स्वास्थ्य बिगड़ जाता है, स्मृति मध्यम पड़ जाती है और अंग शिथिल हो जाते हैं। इस अवस्था में व्यक्ति को समाज उसी दृष्टि से नहीं देखता है जैसे उसे कभी देखा जाता था। वृद्धों में रुचियां पुरानी पड़ जाती हैं। भारत में वृद्धों के लिए अभी भी बड़ा सम्मान है। अत: यहां पर उनके लिए उतना मानसिक क्लेश नहीं होता जितना प्रगतिशील पश्चिमी देशों में होता है। पश्चिम के कुछ देशों में वृद्धावस्था Single समस्या है। यह है व्यक्तित्व के विकास का परिचय। यहां पर यह बात पुन: दोहरा देना आवश्यक है कि व्यक्तित्व के विकास में व्यक्ति की Needएं And उनकी पूर्ति, भग्नाशा, निराशा, संघर्ष, जीवन की घटनाएं All प्रभाव डालती रहती हैं। व्यक्तित्व का विकास सदा होता रहता है, किन्तु इसकी Resellerरेखा शैशवास्था And बाल्यावस्था में ही प्राय: निश्चित हो जाती हैं।

व्यक्तित्व की विशेषताएँ

  1. आत्म चेतना (Self-Consciousness)- व्यक्तित्व की सबसे First विशेषता आत्म चेतना है। आत्म चेतना वह शक्ति है जिसके द्वारा व्यक्ति अपने संबंध में जानता है कि वह क्या है? वह यह भी जानने लगता है कि Second व्यक्ति उसके बारे में क्या सोचते हैं? यह ज्ञान वास्तविक व्यवहारों को निर्धारित करता है। व्यक्ति वास्तव में वह नहीं है जो वह अपने बारे में सोचता है, व्यक्ति वास्तविक Reseller में वह भी नहीं है जो Second उसके बारे में सोचते हैं, वरन् व्यक्ति वह है जो यह जानता है कि Second मेरे बारे में क्या सोचते हैं? यह आत्म चेतना है। “I am not what I think I am, I am not what you think I am, but I am what I think you think I am.”
  2. गत्यात्मकता (Dynamicity)- अच्छे व्यक्तित्व स्थिर नहीं होते, वे Single ही सिद्धान्त या आदर्श पर अंधे होकर सदैव-सदैव के लिए नहीं चिपके रहते। अच्छे व्यक्तित्व सदैव अपना तथा बाह्य परिस्थितियों का विश्लेषण करते रहते हैं तथा Needनुसार अपने मूल्यों, विचारों, धारणाओं तथा आदर्शों में परिवर्तन करते रहते हैं। इन परिवर्तनों का उद्देश्य सदैव विकाSeven्मक होता है। परिणामस्वReseller अच्छा व्यक्तित्व हमेशा विकासोन्मुखी होता है और विकास की यह प्रक्रिया जन्म से मृत्यु पर्यन्त चलती है।
  3. शारीरिक संCreation (Pysical Construction)- अच्छे व्यक्तित्व का तीसरा चिन्ह अच्छी शारीरिक संCreation है। शारीरिक संCreation के अन्तर्गत ही हम शारीरिक स्वास्थ्य को सम्मिलित करते हैं। शारीरिक संपूर्णता जब तक नहीं होगी तब तक व्यक्ति के व्यवहार भी सामान्य नहीं होते और न उसका विकास ही संतुलित होगा।
  4. मानसिक स्वास्थ्य (Mental Health)- अच्छे व्यक्तित्व का अच्छा मानसिक स्वास्थ्य होता है। व्यक्तित्व मनोदैहिक शक्तियों का संगठन है Meansात् मानसिक व शारीरिक शक्तियों के संगठन को व्यक्तित्व कहा जाता है। अच्छे मानसिक स्वास्थ्य पर ही संवेगों का नियंत्रण, संतुलित व्यवहार, तर्क, चिन्तन आदि क्रियाएँ निर्भर हैं। अत: अच्छे व्यक्तित्व के लिये अच्छे मानसिक स्वास्थ्य होना आवश्यक है।
  5. समन्वय (Integration)- व्यक्तित्व अनेक मनोदैहिक शक्तियों का योग मात्र नहीं है, वरन् इसमें अनेकानेक शारीरिक व मानसिक क्रियाओं का अद्भुत समन्वय होता है। यह किसी Single शक्ति का अकेला विकास नहीं है और न पृथक-पृथक शक्तियाँ Single-Second से स्वतंत्र होकर ही कार्य करती है, वरन् संपूर्ण शक्तियाँ Single होकर समन्वित Reseller से कार्य करती हैं।
  6. समायोजन शक्ति (Power of Adjust)- अच्छा व्यक्तित्व आन्तरिक जीवन तथा बाह्य वातावरण के साथ अपने को समायोजित करने की शक्ति रखता है। कभी-कभी व्यक्ति के अन्तर्मन में ऐसे विचार या कल्पनाएँ आती हैं जो सामाजिक दृष्टि से उचित नहीं होती, अच्छा व्यक्तित्व इन विचारों व कल्पनाओं के साथ समायोजन स्थापित करता है। इसी प्रकार कभी-कभी व्यक्ति का सामाजिक व भौतिक वातावरण अचानक Historyनीय Reseller से बदल जाता है। अच्छे व्यक्तित्व इन परिवर्तित वातावरण के साथ ही शीघ्र अपने को समायोजित कर लेते हैं और समायोजन में उन्हें अधिक कठिनाई नहीं आती है।
  7. सामाजिकता (Sociability)- मनुष्य Single सामाजिक प्राणी है। समाज से भिé Human की कल्पना आज के युग में नहीं की जा सकती है क्योंकि समाज से बाहर उसका न तो जीवन ही संभव है और न विकास ही संभव है। उसे समाज में रहना ही है। इतना ही नही, समाज में रहकर उसे सामाजिक मान्यताओं, परंपराओं, मूल्य तथा धारणाओं व रीति-रिवाजों का पालन भी करना होगा, उसे समाज के Second सदस्यों के साथ मिलकर चलना होगा। अच्छा व्यक्तित्व इन कार्यों को सरलता से कर देता है।
  8. दृढ़ इच्छा शक्ति (Strong Will Power)- अच्छे व्यक्तित्व वाले व्यक्ति में दृढ़ इच्छा शक्ति होती है। इस शक्ति के कारण ही वह लगन के साथ कार्य करता है तथा जीवन में आने वाले अनेकानेक संघर्षों का धैर्य के साथ मुकाबला करता है।
  9. संतोष, उच्चाकांक्षा तथा उद्देश्यपूर्णता (Satisfaction, Ambitious and Purposiveness)- अच्छे व्यक्तित्व में आत्म संतोष, हर पल पर आगे बढ़ने की आकांक्षा तथा अपने प्रत्येक कार्य को किसी न किसी उद्देश्य के साथ करने की योग्यता होती है। वह कोई भी कार्य उद्देश्य विहीनता की स्थिति में नहीं कर पाता है। सुनिश्चित उद्देश्य उसके प्रत्येक कार्य तथा व्यवहार को Single निश्चित दिशा प्रदान करता है।


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