व्यक्तिगत निर्देशन क्या है ?
- मानसिक समस्या –ये समस्याएँ मूलतः मानसिक स्वास्थ्य And मनुष्य के अहम् से जुड़ी रहती है। व्यक्ति के मानसिक समस्या के निराकरण हेतु निर्देशन प्रदान करने का उद्देश्य उसे मानसिक Reseller से स्वस्थ करना होता है। मनोविश्लेषणवादियों ने मनुष्य की मानसिक समस्याओं का विस्तार से अध्ययन Reseller जिसमें फ्रायड का नाम Historyनीय है जिन्होंने Human मस्तिष्क की संCreation के तीन परत र्इद, र्इगो और सुपर र्इगो माना है। र्इद के अन्तर्गत मनुष्य की समस्त व्यक्तिगत सुख And पाशविक प्रवृित्तयों से सम्बन्धित इच्छाएँ रहती हैं जो समय-समय पर मनुष्य को उन्हें पूरा करने हेतु उकSevenी है। इसके पश्चात र्इगो आता है जिसका सम्बन्ध बाहर की दुनिया हमारी संस्कृति And सभ्यता से रहता है। सुपर र्इगो Human मस्तिष्क में स्पष्ट, अत्यन्त शिष्ट And सुधरा हुआ Reseller होता है। मनुष्य जब अपनी इच्छाओं को पूरा नही कर पाता तब वह उसकी सुपर र्इगो आवरण में चली जाती है परन्तु ये सुबुप्त इच्छाएं उसके व्यक्तित्व को प्रभावित करके समय-समय पर उसे तनावग्रस्त करती रहती है।
- पारिवारिक समस्या –मनुष्य Single सामाजिक प्राणी है। वह समाज और परिवार दोनों में समय-समय पर अपनी अहम भूमिका निभाता है। अनेक भूमिकाओं के होने के कारण उसके सामने समायोजन की समस्या खड़ी हो जाती है इसके अतिरिक्त परिवार की आर्थिक, सामाजिक And सांस्कृतिक पृष्ठभूमि उसके जीवन को प्रभावित करती है। इन्हीं के मध्य उसकी निजी समस्याएँ भी जन्म लेती है। तब उसे व्यक्तिगत निर्देशन की Need होती है।
- शारीरिक समस्या –शारीरिक समस्याओं के अन्तर्गत व्यक्ति के स्वास्थ्य में कमी, दुर्बलता And परिस्थितिजन्य समस्याएँ आती है। स्वस्थ शरीर ही स्वस्थ मस्तिष्क का भार उठा पाता है। असंतुलित आहार विद्यालय का नीरस वातावरण, आसपास के पर्यावरण में स्वास्थ्यपयोगी परिस्थितियों का अभाव, विद्यार्थियों की कमजोर आर्थिक परिस्थितियाँ तथा जन्मजात शारीरिक समस्याएँ विद्याथ्री के शारीरिक स्वास्थ्य पर नकारात्मक प्रभाव डालती है और वह कुसमायोजित हो जाता है। इसके लिए व्यक्तिगत निर्देशन की Need पड़ती है।
- सामाजिक समस्या –इनके अन्तर्गत व्यक्ति के समक्ष समुदाय, समाज से जुडी़ रूढ़ियाँ, परम्पराएँ, अंधविष्वास And कुरीतियों के कारण उत्पन्न समस्याएँ आती है जो उसके स्वभाविक विकास को रोक देती है। समाज की समस्याएँ व्यक्ति के मन: मस्तिष्क को तनावग्रस्त करने के साथ कुसमायोजित भी कर देती है।
व्यक्तिगत निर्देशन के अन्तर्गत व्यक्ति की समायोजन क्षमता बढ़ाने, निजी समस्याओं के प्रति समझ And हल ढूढ़ने आत्मबोध कराने के लिए दिया गया सहयोग सम्मिलित होता है। व्यक्ति के लिए अपनी समस्या को समझ पाना तथा Needनुसार उसका हल ढूढ़ना आसान कार्य नही है। आयु के साथ अनुभव बढ़ता है जिससे कि समस्याओं के प्रति समझ And हल ढूढ़ना भी आसान हो जाता है परन्तु बाल्यावस्था And किशोरावस्था में स्थिति भयावह हो जाती है और व्यक्तिगत निर्देशन की Need होती है।
व्यक्तिगत निर्देशन के सिद्धान्त
- समान Reseller से All छात्रों को निर्देशन प्रदान करने का सिद्धान्त –निर्देशन व्यक्तिगत Reseller से किसी Single व्यक्ति विशेष के लिए नहीं है यह सहायता All को समान Reseller से प्रदान की जाती है। इसके प्रदान किए जाने And उपलब्धता पर कोर्इ विरोधाभास नही है अन्तर मात्र समस्याओं के आधार पर होता है।
- निर्देशन की व्यापकता –निर्देशन प्रक्रिया व्यापक होती है इसमें परामर्श प्राथ्री की समस्या पर व्यापक Reseller से विचार Reseller जाता है और उसके आधार पर ही सम्पूर्ण प्रक्रिया का संचालन होता है। व्यक्तिगत निर्देशन व्यक्ति के विकास से सम्बन्धित All क्षेत्रों पर आच्छादित होता है। यह व्यक्ति के शारीरिक, मानसिक, सामाजिक And भावात्मक वृद्धि की ओर अपना ध्यान केन्द्रित करता है। इसके अतिरिक्त यह उसके जीवन से सम्बन्धित अन्य पक्षों पर भी विचार करता है। सुपर ने निर्देशन की धारणा की व्यापकता को स्पष्ट करते हुए कहा है कि ‘‘सीखने And विकास के मनोविज्ञान से यह तथ्य प्रकाश में आया है कि निर्देशन युवक और जीविका में मेल स्थापित करने तक ही सीमित नही है और ना यह व्यक्तियों की अपनी योग्यताओं And रूचियों को समझने में सहायता प्रदान करने की प्रक्रिया है और ना व्यक्तिगत विशेषताओं को शैक्षिक And व्यवसायिक अवसरों में सम्बन्धित करने व निर्णय लेने की प्रक्रिया है। यह तो वास्तव में व्यक्तिगत विकास में निर्देशित करने से सम्बन्धित है।’’
- व्यवस्थित संचालन का सिद्धान्त –व्यक्तिगत निर्देशन की सम्पूर्ण प्रक्रिया निश्चित चरणों से संचालित की जाती है इसके लिए All आवश्यक जानकारी And संसाधनों की सहायता ली जाती है जिससे कि आवश्यक लक्ष्य की प्राप्ति तत्काल हो सकें।
- लचीलेपन के सिद्धान्त –व्यक्तिगत निर्देशन का उद्देश्य व्यक्ति का विकास करना है अत: यह व्यक्ति की Need के According लचीली की जाती है और समय-समय पर इसमें मूल्यांकन करते हुए आवश्यक परिवर्तन भी Reseller जाता है।
- सहयोग का सिद्धान्त –व्यक्तिगत निर्देशन वास्तव में व्यक्ति की शारीरिक, पारिवारिक, सामाजिक And मानसिक समस्याओं से सम्बन्धित होता है। अत: यह आवश्यक होता है कि निर्देशन में उसके जीवन से सम्बन्धित लोगों का सहयोग लिया जाये जिससे कि उसकी समस्याओं से सम्बन्धित सम्पूर्ण सहयोग मिल सकें।
- गोपनीयता का सिद्धान्त –व्यक्तिगत निर्देशन मे परामर्श दाता परामर्श प्राथ्री की समस्या को समझने के लिए उससे सम्पूर्ण जानकारी प्राप्त करता है और यह तब सम्भव होता है जब वह परामर्श प्राथ्री को यह विष्वास दिला देता है कि उसके द्वारा दी गर्इ जानकारी पूर्णतया गोपनीय रखी जायेगी। ये All सिद्धान्त व्यक्तिगत निर्देशन की प्रक्रिया में समाहित होते है और लक्ष्य प्राप्त करने में सहयोग देते है
व्यक्तिगत निर्देशन के उद्देश्य
- व्यक्ति को उसकी समस्याओं को समझने And उनका विश्लेषण करने की क्षमता का विकास करना।
- व्यक्ति को अपने आस-पास के वातावरण को समझने And उनके प्रति संवेदनशील बनाना।
- व्यक्ति को परिवार, समुदाय, विद्यालय And व्यवसाय सम्बन्धी दशाओं को समझने तथा उनसे उत्पन्न व्यक्तिगत समस्याओं को हल करने में मदद देना।
- व्यक्ति की समायोजन क्षमता को बढ़ाने में उसकी मदद करना।
- व्यक्ति को अपने जीवन से सम्बन्धित निर्णय लेने And अभिक्षमता के आधार पर उनपर कार्य करने के लिए विवेकशील बनाना।
- व्यक्तिगत तनाव का पता लगाना और उचित समय पर उनके कारणों को जानना।
- व्यक्ति को अपने पारिवारिक और सामाजिक जीवन में सही भूमिका निभाने स्वस्थ सम्बन्ध बनाने उचित आर्थिक पाने And सांवेगिक संतुलन बनाए रखने आदि में मदद करना।
- Human में अपने जीवन की अनेकानेक परिस्थितियों में अपेक्षित सूझ-बूझ विकसित करने तथा क्रियाशील होकर जीवन यापन हेतु सहायता प्रदान करना।
- विद्याथ्री को परावलम्बन से हटकर स्वतंत्र निर्णय और कार्य करने में सहायता देना।
- ऐसे अवसरों की व्यवस्था करना जिसमें छात्रों के सामाजिक विकास के लिए परस्पर सम्पर्क करने का प्रोत्साहन मिलें।
- विद्याथ्री को भावनात्मक नियन्त्रण करने का अभ्यास देना। वास्तव में व्यक्तिगत निर्देशन वह सहायता है जो कि व्यक्ति में अपने जीवन के प्रति उचित समझ पैदा करते हुए कुशलतापूर्वक समायोजन के योग्य बनाता है।
व्यक्तिगत निर्देशन की Need
- व्यक्तिगत समंजन की सम्भावना बढ़ाने की दृष्टि से – परिवार के अनेकानेक सन्दर्भो तथा सामुदायिक And सामाजिक जीवन की परम्परागत जिम्मेदारियों का कुशलतापूर्वक निर्वाह करने के लिये व्यक्ति की समंजन शीलता अपेक्षित है। विशेष तौर से आज की परिवर्तित परिस्थितियों में इसका विशेष महत्व है। युवा-वर्ग समाज में सर्जनशील भूमिका कैसे निभाये, वह अपने जीवन साथी का चुनाव करने हेतु विवाह-प्रस्तावों And रस्मों को किस तरह पूरा करें And शिक्षा तथा रोजगार के अवसरों से अपना उचित संबंध कैसे स्थापित करें-इन All के लिए अपेक्षित समंजन शीलता की सम्भावना बढ़ाने की दृष्टि से व्यक्तिगत निर्देशन नितान्त आवश्यक है।
- व्यक्तिगत कुशलता विकसित करने की दृष्टि से – यहाँ व्यक्तिगत कुशलता से अभिप्राय व्यक्ति की सद्य: निर्णय लेने की क्षमता And उसके अनुकूल कार्यान्वयन की स्थिति पैदा करने की दक्षता से है। आज जीवन के हर क्षेत्र में कुशल व्यक्ति ही सफल हो सकते हैं। इस दृष्टि से व्यक्तिगत निर्देशन तथा शिक्षा के प्रकार्यो में कोर्इ भेद नहीं Reseller जा सकता। इस सम्बन्ध में याद रखना होगा कि पारिवारिक, सामुदायिक And व्यावसायिक कुशलता के स्तर भिन्न-भिन्न होते हैं तथा उन्हें विकसित करने में ‘व्यक्तिगत निर्देशन’ की भूमिका जोरदार होती है।
- आपसी तनावों तथा व्यक्तिगत उलझनों की स्थिति से बच सकने में मदद देने की दृष्टि से –आज आपसी सम्बन्धों का दायरा बढ रहा है, व्यक्ति के परस्पर तनाव And निजी उलझनों की परिस्थितियाँ जटिलतर बनती जा रही है। ऐसी परिस्थितियों का भली प्रकार सामना न कर सकने की दशा में व्यक्ति अपना सन्तुलन And मानसिक स्वास्थ्य खो बैठता है। इनसे बचने में मदद देने की दृष्टि से व्यक्तिगत निर्देशन नितान्त आवश्यक है।
- व्यक्ति के पारिवारिक And व्यावसायिक जीवन में सामंजस्य कायम करने की दृष्टि से – व्यक्ति के व्यावसायिक जीवन के सुखमय हाने का रहस्य उसके पारिवारिक जीवन में पार्इ जाने वाली मधुरता And आत्मतोष में बहुत हद तक ढूँढ़ा जा सकता है। इसी प्रकार व्यावसायिक जीवन की सफलता And उसमें उपलब्ध सामंजस्य को उसके पारिवारिक जीवन की शान्ति And सन्तुलन को महत्वपूर्ण Reseller में प्रभावित करते हुए देखा जा सकता है। यहाँ ध्यान देना होगा कि व्यक्ति का पारिवारिक And व्यावसायिक जीवन अलग-थलग होते हुए भी इनमें सम्बन्ध बढ़ाया या घटाया जा सकता हैं। व्यक्ति इन संबधों में कड़वाहट न महसूस कर सके इसके लिये सम्यक् प्रकार का व्यक्तिगत निर्देशन अपेक्षित है।
- संकट के समय या सामान्य क्षणों में अपेक्षित धैर्य तथा सन्तुलन बनाये रखने की दृष्टि से – व्यक्ति में अपेिक्षत धैर्य And सन्तुलन का होना उसके मानसिक स्वास्थ्य का परिचायक है। इसकी Need जीवन के सामन्य क्षणों के अलावा संकट की घड़ियों में विशेष Reseller से होती है। जहाँ ये गुण व्यक्ति की व्यक्तित्व सम्बन्धी विशेषताओं से सम्बद्ध हैं, वहाँ इन्हें समुचित अभ्यास द्वारा विकसित करना भी सम्भव है। इस दृष्टि से व्यक्तिगत निर्देशन का महत्व विशेष Reseller से देखा जा सकता है।
- व्यक्तिगत मामलों में सही निर्णय ले सकने की दृिष्ट से – व्यक्ति का अपने जीवन के प्रारम्भिक क्षणों से लेकर, जब वह माँ-बाप या अभिभावक पर निर्भर होता है तथा प्रौढ़ावस्था And वृद्धावस्था तक अनेक प्रकार के निर्णय लेने पड़ते हैं। उसे किस विद्यालय में प्रवेश लेना चाहिये, गृहकार्य कैसे पूरा करना चाहिये, अपने पड़ोसियों के साथ किस तरह पेश आना चाहिये, अपने माँ-बाप के प्रति आदर कैसे प्रदर्शित करना चाहिये, अपने जीवन सहचर या जीवन-सहचरी का चयन कैसे हो, उचित उद्यमों में कैसे लगा जाये तथा वृद्धावस्था में परेशानियाँ न खड़ी हों इसके लिए अपेक्षित पूर्व तैयारी क्या हो सकती है। हाँ, इतना अवष्य है कि प्रबुद्ध व्यक्ति होश सम्भालने पर अपना निर्देशन अपने विवके के आधार पर स्वयं कर लेता है।
- व्यक्ति के जीवन में सुख, शान्ति And सन्तोष का भाव लाने की दृिष्ट से – हर व्यक्ति अपने जीवन में सुख And शान्ति चाहता है। इसके लिये उसमें सन्तोष का भाव भी पैदा करना आवश्यक होता है। यह व्यक्ति की मनोवृित्त And उसके निजी मूल्यों पर निर्भर होने के साथ उचित प्रषिक्षण द्वारा विकसित Reseller जा सकता है। इस दृष्टि से ठीक प्रकार की नैतिक And धार्मिक शिक्षा तथा उस पर आधारित व्यक्तिगत निर्देशन के कार्यक्रमों की Need है।
इस प्रकार हम देखते हैं कि जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में अपेक्षित कुशलता, आत्मसन्तोष And सामंजस्य कायम करने तथा स्वस्थ, प्रभावी And सहज आत्म-विकास का मार्ग प्रशस्त करने की दृष्टि से ‘व्यक्तिगत निर्देशन’ की सेवाओं का योगदान होता है।
व्यक्तिगत निर्देशन की प्रक्रिया And कार्यतंत्र
- सौहार्द स्थापन – व्यक्ति से सौहार्दपूर्ण सम्बन्ध स्थापित करना जिससे वह निर्देशनकर्मियों से बिना किसी हिचक के खुलकर अपने बारे में अपने पारिवारिक सन्दर्भो तथा अपनी समस्याओं पर प्रकाश डाल सकें
- रूचियों And व्यक्तित्व सम्बन्धी गुणों का आकलन – व्यक्ति की रूचियों And व्यक्तित्व सम्बन्धी गुणों का पता लगाना। इस सोपान के तहत रूचियों And व्यक्तित्व विषयक पक्षों का वस्तुनिष्ठ Reseller में जायजा लेने हेतु उपयुक्त प्रकार की मापनी And परीक्षाओं का भी प्रयोग Reseller जाता है।
- समंजन And अन्य समस्याओं से सम्बन्धित स्थिति का जायजा – व्यक्ति की समंजन से सम्बन्धित तथा अन्य समस्याओं का मूल्यांकन करना। इसके लिये मनोविश्लेषण की विधियों का प्रयोग वांछनीय माना जाता है। फ्रायड, जुंग, एडलर And उनके अनुयायियों ने व्यक्तिगत निर्देशन की प्रणाली को ठोस, चिकित्Seven्मक And प्रभावी बनाने में इस दृष्टि से महत्वपूर्ण भूमिका निभार्इ है। उनके According इस सोपान के अन्तर्गत व्यक्ति के अहम् (र्इगो), इदम् (र्इड) तथा पराहम् (सुपर र्इगो) के विकास की कहानी, उनके परस्पर समायोजन तथा वस्तुस्थिति का एहसास कराया जाता है।
- उचित परामर्श उपलब्ध कराना – व्यक्ति को अपेक्षित परामर्श उपलब्ध कराना तथा उसके आधार पर उसके तथा उसके पर्यावरण के मध्य मधुर समन्वय कायम करना।
- कार्य योजेजनाओं के क्रियान्वयन में व्यक्ति की मदद करना – व्यक्ति को अपने विवेक And आत्म-मूल्यांकन के फलस्वReseller से देखी जा सकती है।
- समस्याओं के निराकरण के बारे में परिDiscussion – समय-समय पर व्यक्ति की समस्याओं के निवारण या उनके हल के बारे में विचार-विमर्ष करना। इस सोपान के अन्तर्गत निर्देशक Single कुशल चिकित्सक की भाँति सेवाथ्री से उसकी समस्याओं का सन्तोषजनक हल प्राप्त करने के बारे में पूछताछ करता रहता है तथा इस प्रक्रिया में किसी तरह की बाधा या कठिनार्इ आने पर उसे दूर करने की कोशिश करता है।
- सेवाथ्री व्यक्ति पर पडे़ परिणामों का आकलन – निर्देशकों की टीम द्वारा समस्या के स्वReseller, उसके लिए प्राप्त हल तथा व्यक्ति के समंजन में दिखार्इ पड़ने वाले परिणामों का मूल्यांकन करना, ‘व्यक्तिगत निर्देशन’ की प्रक्रिया का अन्तिम सोपान होता है। इसके जरिये व्यक्तिगत निर्देशन की सेवाओं में व्यावसायिकता का पुट आता है जिससे निर्देशनकर्मी भविष्य में अपने अनुभव के आधार पर उपयोगी युक्तियों का प्रयोग कर सकने में सफल होते हैं।
व्यक्तिगत निर्देशन का बुनियादी स्वReseller चिकित्सापरक And सुधारात्मक है। इसमें व्यक्ति के आत्म-अवबोध And संवेदनशीलता का विकास, उसकी परिस्थिति का गहरार्इ में अध्ययन तथा अपेक्षित युक्तियों का समीक्षात्मक मूल्यांकन मुख्य कार्य होते हैं। इसका कार्य-तन्त्र औपचारिक And अनौपचारिक दोनों प्रकार के सन्दर्भो से मिलकर बनता है।
- सेवाथ्री व्यक्ति पर पड़े परिणामों का आकलन
- समस्याओं के निराकरण के बारे में परिDiscussion
- कार्य-योजना के क्रियान्वयन में व्यक्ति की मदद करना
- उचित परामर्श उपलब्ध कराना
- समंजन वं अन्य समस्याओं से सम्बन्धित स्थिति का जायजा
- रूचियों वं व्यक्तित्व सम्बन्धी गुणों का आकलन
- सौहार्द स्थापन
निर्देशनकर्मी को अत्यन्त सावधानीपूर्वक जाँच-पड़ताल की भूमिका निभानी पड़ती है तथा वार्तालापों के माध्यम से सेवाथ्री के सम्बन्ध में ज्ञात तथ्यों And सूचनाओं को गापे नीय रखने की व्यावसायिक जिम्मेदारी पूर्णत: उसकी होती है। इस प्रकार ‘व्यक्तिगत निर्देशन’ व्यक्ति के विकास-पथ को सरल, सुगम And निरापद बनाने उसमें अपेक्षित मानसिक स्वास्थ्य बनाये रखने तथा अपने जीवन के विविध क्षेत्रों में समंजन लाने की दृष्टि से प्रत्येक प्रगतिशील समाज की स्वाभाविक चिन्ता, चेष्टा, आत्मचेतना And दर्शन का परिचायक है। परिवार, सामुदायिक And सामाजिक सन्दभोर्ं, मित्रों, व्यावसायिक सहकर्मियों, शिक्षकों, चिकित्सकों तथा समाजसेवी व्यक्तियों And संस्थाओं के माध्यम से इसका व्यापक जाल फैला रहता है।