वित्तीय नियोजन क्या है ?
वित्तीय नियोजन का Means
वित्तीय नियोजन का आशय उपक्रम के मूल उद्देश्य की प्राप्ति हेतु वित्तीय क्रियाओं का अग्रिम निर्धारण है। वित्तीय नियोजन के Means के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों के विचारों में भिन्नता पार्इ जाती है। वित्तीय नियोजन के सम्बन्ध में विभिन्न विद्वानों के विचारों को दो वर्गों मे विभाजित Reseller जा सकता हैं -(1) संकीर्ण Means में वित्तीय नियोजन तथा (2) विस्तृत Means में वित्तीय नियोजन।
(1) संकीर्ण Means में वित्तीय नियोजन :-
इस Means में वित्तीय नियोजन का तात्पर्य संस्था के लिए आवश्यक पूँजी के पूर्वानुमान से लगाया जाता है। इस विचार के समर्थकों के According वित्तीय नियोजन का तात्पर्य संस्था की पूँजी संCreation निश्चय करने से होता है Meansात् संस्था पूँजी का कितना भाग अंश पूँजी से तथा कितना भाग ऋण पूँजी से प्राप्त करें। यह विचारधारा त्रुटिपूर्ण है। क्योंकि यह वित्तीय नियोजन के केवल Single पक्ष पर विचार करती है कि संस्था अपनी पूँजी किन साधनों से प्राप्त करे। यह विचार संकीर्ण भी हैं, क्योंकि इसके द्वारा संस्था की वित्त सम्बन्धी समस्त समस्याओं का अध्ययन And विशलेषण सम्भव नहीं है।
(2) विस्तृत Means में वित्तीय नियोजन :-
विस्तृत Means में वित्तीय नियोजन का तात्पर्य व्यवसाय के लिए वित्तीय उद्देश्यों का निर्धारण, वित्तीय नीतियों का निर्माण तथा वित्तीय प्रविधियों का विकास करना है। इस Means में वित्तीय नियोजन के अन्तर्गत फर्म के लिए आवश्यक साधनों का अनुमान लगाने, उनको प्राप्त करने के लिए विभिन्न साधनों का चुनाव करने तथा वित्तीय नीतियों का निर्धारण And लागू करने को शामिल Reseller जाता हैं। आर्थर एस. डेविंग के मतानुसार वित्तीय नियोजन में तीन बातें सम्मिलित की जाती हैं –
- पूँजीकरण – पूँजी का आवश्यक मात्रा का अनुमान लगाना।
- पूँजी संCreation – पूँजी के विभिन्न स्रोत निश्चित करना तथा पूँजी में विभिन्न प्रतिभूतियों का पारस्परिक अनुपात निश्चित करना।
- पूँजी का प्रबन्ध – यह देखना कि पूँजी का लाभप्रद And उचित ढ़ंग से प्रयोग हो रहा है।
डेविंग की वित्तीय नियोजन की उपरोक्त धारणा काफी उचित है, परन्तु यह वित्तीय नियोजन स्वभाव व कार्य-क्षेत्र को स्पष्ट नहीं करती हैं। इस सम्बन्ध में वाकर And बॉघन की परिभाषा अधिक उपयुक्त है। उनके Wordों में ‘‘वित्तीय नियोजन वित्त कार्य से सम्बन्धित है, जिसमें फर्म के वित्तीय लक्ष्यों का निर्धारण, वित्तीय नीतियों का निर्माण And अनुमान तथा वित्तीय प्रविधियों का विकास सम्मिलित है। विस्तृत Means में वित्तीय नियोजन में बातें सम्मिलित होती हैं –
(1) वित्तीय लक्ष्यों का निर्धारण – वित्तीय योजना का पहला तत्व फार्म के दीर्घकालीन तथा अल्पकालीन वित्तीय लक्ष्यों का निर्धारण करना होता है। वित्तीय लक्ष्य के निर्धारण में वित्त कार्य में संलग्न व्यक्तियों को दिशा-निर्देश मिलता रहता है। फर्म का दीर्घकालीन वित्तीय लक्ष्य उसके उत्पादक साधनों का अधिकतम तथा मितव्ययी उपयोग करना होना चाहिए जिससे फर्म की सम्पत्तियों का मूल्य अधिकतम हो सके तथा फर्म का अल्पकालीन वित्तीय उद्देश्य फार्म की प्रक्रिया के लिए आवश्यक तरलता की व्यवस्था करना होना चाहिए।
(2) वित्तीय नीतियों का निर्माण – वित्तीय नियोजन दूसरा महत्वपूर्ण पहलू ऐसी वित्तीय नीतियों का निर्माण करना है जिससे वित्तीय लक्ष्यों की पूर्ति हो सके। इस सम्बन्ध में वित्तीय नीतियाँ महत्वपूर्ण हैं –
- पूँजी की आवश्यक मात्रा निश्चित करने वाली नीतियाँ,
- पूँजी प्रदान करने वाले पक्षों से फर्म के सम्बन्ध निश्चित करने वाली नीतियाँ,
- स्वामी पूँजी And ऋण पूँजी का अनुपात निर्धारित करने वाली नीतियाँ,
- विभिन्न स्रोतों से पूँजी प्राप्त करने के सम्बन्ध में निर्णय लेने में सहायक नीतियाँ
- आय के वितरण में सहायक नीतियाँ, तथा
- स्थायी सम्पत्तियों व चालू सम्पत्तियों के कुशल प्रबन्ध में सहायता देने वाली नीतियाँ।
ये नीतियाँ वित्त विभाग में विभिन्न स्तरों पर काम करने वाले अधिकारियों द्वारा बनायी जाती है। इन नीतियों के पालन में पूँजी के अनुकूलतम तथा कुशलतम प्रयोग में सहायता मिलती है।
(3) वित्तीय प्रविधियों का विकास – वित्तीय नियोजन का तीसरा पहलू वित्तीय प्रविधियों का विकास करना है। इस कार्य के लिए वित्त कार्य को छोटो टुकड़ों में बाँटना, उन कार्यों को अधीनस्थ अधिकारियों को सौंपना तथा वित्तीय निष्पादन की व्यवस्था करना होता है। वित्तीय निष्पादन के लिए प्रमाप निर्धारित किये जाते हैं तथा वास्तविक प्रगति को के सन्दर्भ में जांच कर विचलन ज्ञात किये जाते है। विचलनों And विसंगतियों को रोकने के लिए नियन्त्रण आवश्यक है। वित्तीय नियन्त्रण के लिए बजटरी नियन्त्रण, लागत नियन्त्रण, वित्तीय description विश्लेषण And निर्वचन आदि विधियों का प्रयोग Reseller जाता है।
वित्तीय नियोजन की प्रकृति अथवा विषय-वस्तु
Single सम्पूर्ण वित्तीय योजना में इन विषयों का समावेश Reseller जाता हैं –
(1) पूर्वानुमानित वित्तीय description –
इस स्थिति description, आय description, रोकड़ प्रवाह description तथा कोष प्रवाह description मुख्य है। इन description में फर्म के वित्तीय लक्ष्य सन्निहित होंगे, अत: ये निष्पक्ष पूर्वानुमान नहीं कहे जा सकत हैं। परन्तु फिर भी जहाँ तक सम्भव हो, पूर्वानुमानों को र्इमानदारी से बनाया जाना चाहिए।
(2) पूँजी निवेश प्रस्ताव –
प्रस्तावित पूँजी निवेश को विभाजन अथवा व्यापार के प्रकार के According अथवा प्रतिस्थापन, विस्तार अथवा नये प्रदार्थों पर निवेश के आधार पर प्रदर्शित Reseller जा सकता है। प्रत्येक निवेश के कारणों का History Reseller जायेगा तथा उन नीतियों की ओर संकेत Reseller जायेगा जिनकी सहायता से वित्तीय लक्ष्य को प्राप्त Reseller जावेगा। स्मरण रहे कि ये प्रस्ताव All स्तर के प्रबन्धकों के परस्पर विचार विनिमय के बाद ही प्रस्तुत किये जाने चाहिए। इससे All प्रन्धक जान पायेंगे कि उन्हें क्या करना है तथा योजना का निष्पादन All की भागीदारी के कारण अधिक प्रभावी होगा।
(3) नियोजित वित्त व्यवस्था –
किन साधनों से वित्त जुटाया जाये, यह Single जटिल प्रश्न हैं। इसके लिए अनेक कामों पर ध्यान देना होता है। यदि कम्पनी उदार लांभांश नीति का अनुसरण रकती है तथा निवेश Needएं भारी है, तो बाह्य साधनों से वित्त जुटाना आवश्यक हो जाता है। यदि वर्तमान आय में गिरावट की प्रवृत्ति है तो समस्या अधिक गम्भीर होती है तथा कम्पनी को अल्पकालीन ऋण अथवा परिवर्तनशील ऋणपत्र निर्गमन करना अभीष्ट माना जाता है।
इसके विपरीत कुछ कम्पनियों के समक्ष निवेश के अवसर शून्य होते है किन्तु उनके रोकड़ प्रवाह यथेष्ट होते हैं तथा लाभांश नीतियाँ भी अनुदार होती है। ऐसी कम्पनियों की वित्तीय योजनाएँ Single रूढ़ि की भाँति होती है तथा प्रबन्धकों के समक्ष तनावपूर्ण स्थितियाँ नहीं आती है।
(4) वित्तीय प्रविधियों का विकास –
इसके अन्तर्गत वित्तीय कार्यों को छोटे-छोटे उपविभागों में बाँटा जाता है। इसके पश्चात इन कार्यों का अधिकारियों में बाँटकर उनका निष्पादन And नियन्त्रण Reseller जाता है। इसके लिए बजटरी नियन्त्रण, लागत नियन्त्रण प्रमाप लागत, सीमान्त लागत And वित्तीय लेखों के निर्वचन And विश्लेशण आदि तकनीकों का प्रयोग Reseller जाता है।
(5) वित्तीय का निर्धारण –
वित्तीय नियोजन के अन्तर्गत पूँजी की मात्रा निश्चित करने, ऋण व स्वामित्व पूँजी का परस्पर अनुपात निश्चित करने, पूँजी के विभिन्न स्रोतों का चुनाव करने, आय का description करने तथा स्थिर व परिवर्तनशील सम्पत्तियों के कुशल प्रबन्ध करने सम्बन्धी नीतियाँ सम्मिलित हैं।
आर्थर एस डेविग ने वित्तीय नियोजन मे तीन बातों का समावेश बताया है –
- पूँजी की आवश्यक मात्रा नियोजन मे निम्न तीन बातों का समावेश बताया हैं
- पूँजी के प्रबन्ध And नियन्त्रण की नीतियाँ निर्धारित करना, तथा
- पूँजी के स्रोतों का निर्धारण And उनका पारस्परित अनुपात निश्चित करना।
वित्तीय नियोजन के प्रकार
समय अवधि के According वित्तीय नियोजन तीन प्रकार का होता है –
(1) अल्पकालीन वित्तीय नियोजन –
सामान्यता Single व्यवसाय मे Single वर्ष की अवधि के लिए जो वित्तीय योजना बनार्इ जाती है, वह अल्पकालीन वित्तीय योजना कहलाती है। अल्पकालीन वित्तीय योजनाएँ मध्यकालीन तथा दीर्घकालीन योजनाओं का ही भाग होती हैं अल्पकालीन वित्तीय योजना में प्रमुख Reseller से कार्यशील पूँजी के प्रबन्ध की योजना बनार्इ जाती है तथा उसकी विभिन्न अल्पकालीन साधनों से वित्तीय व्यवस्था करने का कार्य Reseller जाता है। विभिन्न प्रकार के बजट And प्रक्षेपित लाभ-हानि description, कोषों की प्राप्ति And उपयोग का description तथा चिट्ठा बनाये जाते हैं।
(2) मध्यकालीन वित्तीय नियोजन –
Single व्यवसाय में Single वर्ष से अधिक तथा पाँच वर्ष से कम अवधि के लिए जो वित्तीय योजना बनार्इ जाती है, उसे मध्यकालीन वित्तीय नियोजन कहते हैं। मध्यकालीन वित्तीय योजना सम्पतियों के प्रतिस्थापन, रख-रखाव, शोध And विकास कार्यो को चलाने, अल्पकालीन उत्पादन कार्यों की व्यवस्था करने तथ बढ़ी हुर्इ कार्यशील पूँजी की विशिष्ट Needओं को पूरा करने के लिए बनायी जाती है।
(3) दीर्घकालीन वित्तीय नियोजन –
Single व्यवसाय में पाँच वर्ष अथवा अधिक अवधि के लिए बनार्इ गर्इ वित्तीय योजना दीर्घकालीन वित्तीय योजना कहलाती है। दीर्घकालीन वित्तीय योजना विस्तृत दृष्टिकोण पर आधारित योजना होती है जिसमें संस्था के सामने आने वाली दीर्घकालीन समस्याओं के समाधान हेतु कार्य Reseller जाता है। इस योजना में संस्था के दीर्घकालीन वित्तीय लक्ष्यों को प्राप्त करने हेतु पूँजी की मात्रा, पूँजी ढाँचे, स्थायी सम्पत्तियों के प्रतिस्थापन, विकास And विस्तार हेतु अतिरिक्त पूँजी प्राप्त करने आदि को शामिल Reseller जाता है।
Single सुदृढ़ वित्तीय नियोजन की विशेषताएँ
किसी भी व्यवसाय का भविष्य And उसकी सफलता बहुत बड़ी सीमा तक उसकी वित्तीय योजना पर निर्भर करती है। अत: Single व्यवसय की वित्तीय योजना बहुत अधिक सावधानीपूर्वक तैयार की जानी चाहिए। Single श्रेष्ठ वित्तीय योजना में विशेषताएँ होती है।
- सरलता – व्यवसाय की वित्तीय योजना जटिल नहीं होनी चाहिए। व्यवसाय की वित्तीय योजना सरल होनी चाहिए जिससे विनियोक्ता विनियोग के लिए सहज ही आकर्षित हो सकें। बहुत अधिक प्रकार की प्रतिभाव नहीं होनी चाहिए अन्यथा व्यवसाय का पूँजी ढाँचा जटिल हो जावेगा। व्यवसाय की वित्तीय योजना होनी चाहिए जिससे वर्तमान में ही नहीं बल्कि भविश्य में भी व्यवसाय की Needओं के According प्राप्त वित्त प्राप्त Reseller जा सके।
- लोचशीलता – Single व्यवसाय की वित्तीय योजना लोचशील होनी चाहिए जिससे तेजी मन्दी के समय व्यवसाय की वित्तीय Needओं के According समायोजन Reseller जा सके। व्यवसाय की वित्तीय योजना इस प्रकार निर्मित की जानी चाहिए जिससे कम लाभ के समय व्यवसाय पर स्थायी भार अधिक न हो। व्यवसाय की वित्तीय योजना मे समता अंश, पूर्वाधिकार अंश तथा ऋण पत्र का सन्तुलित भाग होना चाहिए तथा उसमें परिवर्तन करने की पर्याप्त व्यवस्था होनी चाहिए।
- दूरदर्शिता – Single व्यवसाय की वित्तीय योजना इस प्रकार की होनी चाहिए जिससे उसकी वर्तमान Needओं का ही नहीं बल्कि भविष्य की Needओं का ध्यान रखा गया हो। व्यवसाय की स्थायी तथा कार्यशील दोनों ही प्रकार की Needओ की पूर्ति का ध्यान रखा जाना चाहिए। व्यवसाय की वित्तीय योजना अधिक दूरदश्र्ाी होनी चाहिए। प्रवर्तकों को उपक्रम की अल्पकालीन And दीघ्रकालीन Needओं का अनुमान लगाने के लिए पूर्वानुमानों का प्रयोग करना चाहिए।
- तरलता – व्यवसाय के सफलतापूर्वक संचालन के लिए यह आवश्यक है कि व्यवसाय में सदैव पर्याप्त तरलता उपलब्ध रहे। अनेक बार तरलता के अभाव में व्यवसाय अपनी देनदारियों का समय पर भुगतान नहीं करना है जिसका उसकी ख्याति तथा स्थायित्व पर बुरा प्रभाव पड़ता है तथा अनेक बार व्यवसाय की सधन करना पड़ता है।
- उपयोगिता – व्यवसाय की वित्तीय योजना ऐसी होनी चाहिए जो व्यवसाय में उपलबध विभिन्न वित्तीय साधनों का श्रये उपयोग कर सके। स्थायी तथा कायर्श् ाील पूँजी के मध्य उचित सम्बन्ध होना चाहिए। व्यवसाय के पन्ू जीकरण तथा अतिपूँजीकरण की स्थिति नहीं होनी चाहिए।
- पूर्णता – वित्तीय योजना हर दृष्टि से पूर्ण होनी चाहिए उसमें All भावी आकस्मिकताओं का ध्यान रखना चाहिए। भविय में घटित होने वाली घटनाओं का पूर्वानुमान लगा कर उनके लिए वित्त की पर्याप्त व्यवस्था की जानी चाहिए।
- मितव्ययी – वित्तीय योजना का निर्माण इस प्रकार Reseller जाना चाहिए जिससे पूँजी प्राप्त करने And उसका विनियोग करने में कम से कम व्यय हो। पूँजी निर्गमन के विभिन्न खर्चे जैसे – अभिगोपन, कमीशन, दलाली, बट्टा छपार्इ, इत्यादि कम से कम होने चाहिए।
- संचार – Single श्रेष्ठ वित्तीय नियोजन विनियोजकों तथा वित्त पूर्तिकर्ताओं को उपयुक्त सूचना का साधन होना चाहिए। इससे संस्था की योजना व कार्यों में उनका विश्वास बढ़ता है जो फर्म के लिए मनोवैज्ञानिक Reseller से लाभदायक होता है।
- सुगमता से लागू Reseller जाना – वित्तीय योजना तब ही श्रेष्ठ कही जा सकती है जब उसको सुगमता से लागू Reseller जा सके तथा उसके लाभ संस्था को प्राप्त हो।
- नियन्त्रण – वित्तीय नियोजन And उससे निर्मित पूँजी ढँाचा ऐसा होना चाहिए। जिससे संस्था का नियन्त्रण बाहरी लोगों के हाथों में जाने से रोक लगे तथा नियन्त्रण बनाये रखने के लिए यह भी आवश्यक है कि अंश पूँजी छितरी हुर्इ हो।
- कम जोखिम – वित्तीय योजना इस तरह बनार्इ जानी चाहिए कि संस्था की जोखिम लगातार कम होती जाए।
वित्तीय नियोजन के उद्देश्य –
- Single निश्चित अवधि के लिए स्थार्इ पूॅंजी व कार्यशील पूॅंजी की मात्रा का निर्धारण करना;
- Single न्यायोचित ऋण-समता मिश्रण का प्रयोग करते हुए यह निर्णय करना कि विभिन्न स्रोतों से कितना धन Singleत्रित Reseller जाए,
- यह सुनिश्चित करना कि वांछित धन की पूर्ति समय ओर न्यूनतम लागत पर हो जायेगी;
- पर्याप्त नकद धन होने को सुनिश्चित करना ताकि वांछित भुगतान करने में कोर्इ त्रुटि न हो और बिना किसी कठिनार्इ के आकस्मिक खर्चों का (यदि कोर्इ हो) भुगतान हो सके; तथा
- इस बात को सुनिश्चित करना कि कोष का अधिकतम प्रयोग इस प्रकार हो कि किसी भी समय पर न तो व्यवसाय में धन की कमी हो और नहीं दृष्टिगोचर हो।