वर्ग संघर्ष का Means, परिभाषा And प्रक्रिया

वर्ग निर्माण के आधार (Basis of Class Formation) – आदिम समुदायों में कोई भी वर्ग नहीं होता था और मनुष्य प्रकृति प्रदत्त
वस्तुओं को अपनी Needओं की पूर्ति के लिए प्रयोग करते थे। जीवित
रहने के लिए आवश्यक वस्तुओं का वितरण बहुत कुछ समान था क्योंकि
प्रत्येक व्यक्ति अपनी-अपनी Needओं की पूर्ति प्रकृति द्वारा प्रदत्त
वस्तुओं से कर लेता था। Second Wordों में, प्रकृति द्वारा जीवित रहने के साधनों
का वितरण समान होने के कारण वर्ग का जन्म उस समय नहीं हुआ था पर
शीघ्र ही वितरण में भेद या अन्तर आने लगा और उसी के साथ-साथ समाज
वर्गों में विभाजित हो गया। मार्क्स के According समाज स्वयं अपने को वर्गों में
विभाजित हो गया। मार्क्स के According समाज स्वयं अपने को वर्गों में
विभाजित कर लेता है- यह विभाजन धनी और निर्धन, शोषक और शोषित
तथा King और शासित वर्गों में होता है।

  • आधुनिक समाज में आय के साधन के आधार पर तीन महान् वर्गों का
    History Reseller जा सकता है। इनमें First वे हैं जो श्रम शक्ति के
    अधिकारी हैं, Second वे हैं जो पूंजी के अधिकारी हैं और Third वे जो
    मजींदार हैं। इन तीन वर्गों की आय के साधन क्रमश: मजदूरी, लाभ
    और लगान हैं। मजदूरी कमाने वाले मजदूर, पूंजीपति और जमींदान
    उत्पादन के पूंजीवादी तरीके पर आधारित आधुनिक समाज के तीन
    महान् वर्ग हैं।
  • आधुनिक युग में, मार्क्स के According, इन तीनों वर्गों का जन्म बड़े
    पैमाने पर पूंजीवादी उद्योग-धन्धे के पनपने के फलस्वReseller हुआ है।
    पूंजीवादी क्रान्ति का यही प्रत्यक्ष प्रभाव और सर्वप्रमुख परिणाम है।
    Single राष्ट्र में औद्योगीकरण तथा श्रम विभाजन के फलस्वReseller First
    औद्योगिक तथा व्यावसायिक श्रम कृषि श्रम से और गांव शहर से
    पृथक हो जाता है। इसके फलस्वReseller अलग-अलग स्वार्थ समूहों का
    भी जन्म होता है। श्रम विभाजन और भी अधिक विस्तृत Reseller से लागू
    होने पर व्यावसायिक श्रम भी औद्योगिक श्रम से पृथक हो जाता है।
    साथ ही श्रम विभाजन के आधार पर ही उपर्युक्त विभिन्न वर्गों में
    निश्चित प्रकार के श्रम में सहयोग करने वाले व्यक्तियों में भी विभिन्न
    प्रकारर के विभाजन हो जाते हैं। इन विभिन्न समूहों की सापेक्षिक
    स्थिति, कृषि, उद्योग तथा वाणिज्य का वर्तमान स्तर व्यक्तियों के
    आपसी सम्बन्धों को भी निश्चित करता है। इस प्रकार यह स्पष्ट है
    कि वे व्यक्ति, जो उत्पादन कायर्स में क्रियाशील हैं, कुछ निश्चित
    सामाजिक तथा राजनीतिक सम्बन्ध को स्थापित करते हैं। इस प्रकार
    वर्गों का जन्म जीविका-उर्पाजन के आर्थिक साधन के According होता
    है। अत: हम यह कह सकते हैं कि विभिन्न प्रकार के उत्पादन कार्यों
    में लगे हुये व्यक्ति समूहों में बंट जाते हैं। पर इन सबकी Only
    पूंजी श्रम ही होती है और अपने श्रम को बेचकर ही वे अपना पेट
    पालते हैं; इस कारण उनको मेहनतकश या श्रमिक-वर्ग कहा जाता
    है। इसके विपरीत समाज में Single और वर्ग होता है जोकि पूंजी का
    अधिकारी होता है और वह उसी से अन्य लोगों के श्रम को खरीदना
    है। यही पूंजीपति वर्ग है।

अत: मार्क्स का मत है कि मूल Reseller से आर्थिक उत्पादन के प्रत्येक स्तर पर
समाज के दो वर्ग प्रमुख होते हैं। उदाहरणार्थ, दासत्व युग में दो वर्ग दास और
उनके स्वामी थे, सामन्तवादी युग में दो प्रमुख वर्गों की सर्वप्रमुख विशेषता यह
होती है कि इनमें से Single वर्ग के हाथों में आर्थिक उत्पादन के समस्त साधन
केन्द्रीकृत होते हैं जिनके बल पर यह वर्ग Second वर्ग का शोषण करता रहता है
जबकि वास्तव में यह दूसरा वर्ग है। आर्थिक वस्तुओं या मूल्यों का उत्पादन
करता है। इससे इस शोषित वर्ग में असंतोष घर कर जाता है और वह
वर्ग-संघर्ष के Reseller में प्रकट होता है।

समाज में वर्ग संघर्ष की प्रक्रिया निरन्तर Reseller से चलती रहती है, इस तथ्य को
स्पष्ट करते हुए मार्क्स ने कहा कि ‘दुनिया के आज तक के समाजों का History
वर्ग संघर्ष का History है।’ यह स्वतन्त्र व्यक्ति और दास, भूस्वामी And अर्द्ध दास,
उच्च तथा सामान्य वर्ग, उद्योगपति And श्रमिक के बीच चलने वाला संघर्ष का
History है। इस संदर्भ में वर्ग संघर्ष की सम्पूर्ण प्रक्रिया का विश्लेषण आवश्यक
है।

सर्वहारा वर्ग का विकास

सर्वहारा वर्ग का विकास संघर्ष की प्रक्रिया की आरम्भिक अवस्था है, इस
अवस्था में शोषित लोग धीरे-धीरे Single Second से सम्बद्ध; होने लगते हैं। आरम्भ में
व्यक्तिगत हितों के कारण श्रमिक Single Second से अलग ही रहते हैं। किन्तु मजदूरी
की सामान्य समस्याओं को लेकर उनके हित सामान्यत: बनने लगते हैं। सर्वहारा
वर्ग के विकास के समय श्रमिक व्यक्तिगत प्रतिस्पर्द्धा को भूलकर अपनी
समस्याओं पर विचार करने लगते हैं।

सम्पत्ति का बढ़ता हुआ महत्व

किसी भी समाज के लोगों की सम्पत्ति या धन के सम्बन्ध में क्या
मनोवृत्ति है। इसी आधार पर ही लोगों के सामाजिक व्यवहार निर्धारित होते हैं।
मार्क्स के According जिस वर्ग में सम्पत्ति स्वामित्व की लालसा होती है। वह
पूंजीपति बन जाता है और अन्य लोग सर्वहारा वर्ग में शामिल हो जाते हैं।

आर्थिक शक्ति से राजनीतिक शक्ति का उदय

उत्पादन के साधनों पर स्वामित्व होने के कारण पूंजीपतिवर्ग को
राजनैतिक शक्ति बढ़ने लगती है तथा वह इसका उपयोग सामान्य जनता के
शोषण के लिए करने लगते हैं।

वर्गों का धु्रवीकरण

पूंजीपति वर्ग शीघ्र ही आर्थिक और राजनैतिक Reseller से सशक्त होकर
श्रमिकों And समाज के अन्य लोगों के शोषण में लीन हो जाता है और जो श्रमिक
अपनी निम्न आर्थिक स्थिति के कारण अपनी Need की पूर्ति नहीं कर पाते
वे भी धीरे-धीरे इससे जागरूक होकर संगठित होने लगते हैं।

दरिद्रीकरण में वृद्धि

मार्क्स का विचार है कि पूंजीपति वर्ग द्वारा श्रमिकों के आर्थिक शोषण के
कारण उनकी आर्थिक दशा निरन्तर बिगड़ती चली जाती है। दूसरी ओर पूंजीपति
वर्ग श्रमिकों से अतिरिक्त श्रम लेकर अपने अतिरिक्त मूल्य में वृद्धि करता रहता
है। इस तरह धीरे-धीरे कालान्तर में समाज के पूंजीपति वर्ग पूरा समाज का
संसाधन अपनी गिरफ्त में ले लेते हैं और श्रमिक तीव्र निर्धनतर के कुचक्र में फंस
जाता है।

अलगाव

कार्य स्थल पर मशीनों की स्थिति And वहां पर मजदूरों के स्वास्थ्यवर्द्धक
माहौल तथा उत्पादक प्रशासन की सहयोगात्मक परिस्थितियां अच्छी न होना तथा
मजदूर गरीबी के कारण अपने द्वारा उत्पादित वस्तुओं का उपभोग न कर सकने
की क्षमता के कारण उत्पादन प्रणाली से उनका अलगाव होने लगता है।

वर्ग Singleता And क्रान्ति

औद्योगिक विकास के अगले स्तर में न केवल सर्वहारा वर्ग की सदस्य
संख्या बहुत बढ़ जाती है। बल्कि यह वर्ग Single बहुत बड़े जनसमूह के Reseller में
परिवर्तित होने लगता है। जब इस वर्ग की सदस्य संख्या बढ़ती है तब वह अपने
आपको अत्यधिक शक्तिशाली अनुभव करने लगता है तथा समान समस्या And
समान हित होने के कारण सर्वहारा वर्ग में Singleता स्थापित होने लगती है तथा
कुछ समय बाद श्रमिक संगठित होकर पूंजीपतियों के विरूद्ध हिंसक संघर्ष आरम्भ
कर देते हैं तथा समाज की सम्पूर्ण आर्थिक संCreation को बदल देते हैं।

सर्वहारा का अधिनायकवाद

सर्वहारा वर्ग द्वारा जब क्रान्ति की जाती है तो इससे पूंजीवादी व्यवस्था
Destroy होकर समाज की सम्पूर्ण शक्ति सर्वहारा को प्राप्ति होती है और सर्वहारा का
अधिनायकत्व स्थापित हो जाता है।

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