लोक सभा की शक्तियाँ और कार्य

लोक सभा की शक्तियाँ और कार्य

By Bandey

अनुक्रम

लोगों का सदन जिसको लोकप्रिय Reseller में लोक सभा के Reseller में जाना जाता है, संघीय संसद का First और निम्न सदन है। जैसा कि इसके नाम से ही स्पष्ट होता है, यह भारत के लोगों का प्रतिनिधित्व करता है। इसका चुनाव प्रत्यक्ष Reseller में लोगों के द्वारा Reseller जाता है। यह संघीय संसद का शक्तिशाली, लोकतन्त्रीय और सम्पूर्ण प्रतिनिधि सदन है और इस सम्बन्ध में इनकी स्थिति ब्रिटिश हाऊस ऑफ कॉमन्ष जैसी है। Indian Customer लोक सभा को दी गई शक्तियाँ ब्रिटिश हाऊस ऑफ कॉमन्ष की शक्तियों जैसी ही हैं। लोक सभा की स्थिति इतनी शक्तिशाली है कि कई विद्वान् तो इसको ही वास्तविक संसद कहना पसंद करते हैं। परन्तु यह उचित टिप्पणी नहीं। पिफर भी, इससे लोक सभा को Indian Customer संवैधानिक व्यवस्था में प्राप्त महत्त्वपूर्ण और शक्तिशाली स्थिति प्रकट होती है।

लोक सभा की Creation

1950 में जब संविधान लागू हुआ, तब लोक सभा के सदस्यों की संख्या 500 निश्चित की गई थी। 1956 में Sevenवें संशोधन के द्वारा यह संख्या 520 तक बढ़ा दी गई। पुन: 1963 में, 14वें संशोधन के द्वारा सदस्यों की संख्या 525 तक बढ़ा दी गई। इनमें से 500 सीटें राज्यों में रहते लोगों और 25 सीटें केन्द्र शासित प्रदेशों की बाँटी गई थीं। 31 वें संशोधन नियम द्वारा, लोक सभा के सदस्यों की अधिक-से-अधिक संख्या 550 निश्चित की गई परन्तु आजकल इनकी संख्या 545 है। जिनमें से 525 राज्यों में से और 20 केन्द्र शासित प्रदेशों में से चुने जाते हैं। Indian Customer संविधान के अनुच्छेद 331 के According यदि राष्ट्रपति को विश्वास हो जाए कि एंग्लो-इंडियन समुदाय को उचित प्रतिनिधित्व नहीं मिला तो वह इस समुदाय के दो प्रतिनिधि लोक सभा में मनोनीत कर सकता है। लोक सभा के सदस्यों की संख्या 2010 सन् तक 545 निश्चित की गई है। (42वें संशोधन कानून 1976 द्वारा)। लोक सभा मे भी संविधान के द्वारा निश्चित अनुपात में अनुसूचित जातियों और अनुसूचित कबीलों के लिए सीटें आरक्षित रखी गई हैं।


लोक सभा के सदस्यों का चुनाव ढंग

लोक सभा के सदस्यों का चुनाव इन सिद्वान्तों के आधार पर Reseller जाता है:

  1. सार्वभाौमिक वयस्क वोट अधिकार : 18 वर्ष या उससे अधिक की आयु वाले व्यक्ति को लोक सभा चुनाव में वोट डालने का अधिकार होता है। First आयु की यह सीमा 21 वर्ष की थी। परन्तु वोट केवल वही मतदाता डाल सकता है जिसका नाम मतदाता सूची में दर्ज हुआ हो।
  2. संयुक्त निर्वाचन-मण्डल : मतदाता संयुक्त निर्वाचन-मण्डल के आधार पर वोट डालते हैं जिसका Means है कि All मतदाता साझे उम्मीदवारों को ही वोट डालते हैं और अलग-अलग सम्प्रदायों से अपने गठबन्धन के आधार पर नहीं। समस्त देश को क्षेत्रीय चुनाव-क्षेत्रों में बाँटा जाता है और प्रत्येक चुनाव क्षेत्र के All मतदाता Single प्रतिनिधि निर्वाचित करते हैं। परन्तु कुछ चुनाव क्षेत्र अनुसूचित जातियों और कबीलों के लिए आरक्षित रखे जाते हैं। उनको आरक्षित निर्वाचन-क्षेत्र कहा है और ऐसे चुनाव क्षेत्रों में केवल अनुसूचित जाति या कबीले से सम्बन्ध रखने वाले उम्मीदवार ही चुनाव लड़ सकते हैं। परन्तु आरक्षित चुनाव क्षेत्र में भी All मतदाता वोट डालते हैं।
  3. Single-सदस्यीय चुनाव क्षेत्र : समस्त देश को उतने चुनाव क्षेत्रों में बाँटा जाता है जितने कि लोक सभा के सदस्य चुने जाने होते हैं और प्रत्येक चुनाव क्षेत्र में से Single प्रतिनिधि चुना जाता है। चुनाव क्षेत्रों की निशानदेही Single सीमाबंदी आयोग (Delimaitation Commission) करता है जिसकी स्थापना प्रत्येक जनगणना (Census) के बाद की जाती है।
  4. चुनाव-क्षेत्र क्षेत्रीय चुनाव क्षेत्र होते हैं। : चुनाव क्षेत्रों की सीमाबंदी सीमा-निर्धारण आयोग के द्वारा की जाती है। सामान्य Reseller में प्रत्येक चुनाव क्षेत्र की जनसंख्या 5 लाख से 7.5 लाख के बीच होती है।
  5. गुप्त वोट : लोक सभा के सदस्यों का चुनाव गुप्त वोट के द्वारा होता है और कोई नहीं जनता कि किस मतदाता ने किसी उम्मीदवार के पक्ष में वोट डाली है।
  6. प्रत्यक्ष चुनाव : लोक सभा के All सदस्यों का चुनाव प्रत्यक्ष ढंग से होता है। प्रत्येक मतदाता अपने चुनाव क्षेत्र में खड़े किसी भी उम्मीदवार को वोट डाल सकता है। वह उम्मीदवार जो उस क्षेत्र में खड़े प्रतियोगियों मे से सबसे अधिक मत प्राप्त करता है, उसको उस क्षेत्र के लोगों का प्रतिनिधि निर्वाचित मान लिया जाता है।

लोक सभा की सदस्यता के लिए योग्यताएँ

लोक सभा का चुनाव लड़ने के लिए व्यक्ति में योग्यताएँ होनी चाहिएं:

  1. वह भारत का नागरिक हो।
  2. उसकी आयु 25 वर्ष से कम न हो।
  3. वह संघ या राज्य सरकार के अधीन किसी लाभप्रद पद पर कार्य न कर रहा हो।
  4. वह पागल या दिवालिया न हो।
  5. उसको कानून के द्वारा किसी न्यायालय के द्वारा किसी अपराध के लिए दोषी न ठहराया गया हो।
  6. वह संसद के कानून के द्वारा निर्धारित की गर्इं योग्यताएँ पूर्ण करता हो।

लोक सभा का कार्यकाल

लोक सभा का साधारण कार्यकाल पाँच वर्ष का होता है। संकटकालीन समय के दौरान यह कार्यकाल Single वर्ष के लिए बढ़ाया भी जा सकता है परन्तु फिर संकटकालीन समय के समाप्त होने से छ: महीने के भीतर-भीतर लोक सभा के ताषा चुनाव करवाए जाना आवश्यक होता है। 42वें संशोधन द्वारा, लोक सभा का कार्यकाल 6 वर्ष तक बढ़ा दिया गया था परन्तु 44वें संशोधन के द्वारा यह कार्यकाल पुन: 5 वर्ष का कर दिया गया। राष्ट्रपति लोक सभा का कार्यकाल पूरा होने से First भी इसको भंग कर सकता है जैसा कि 1977, 1979, 1991, 1997, 1998, 1999, और 2004 में Reseller गया था। यदि लोक सभा के चुनाव, पहली लोक सभा का कार्यकाल पूरा होने से First करवाए जाएं तो उनको मध्यवर्ती चुनाव कहा जाता है। परन्तु प्रत्येक नई लोक सभा 5 वर्ष के समय के लिए निर्वाचित की जाती है। लोक सभा को भंग करते समय राष्ट्रपति प्रधानमन्त्री के परामर्श According कार्य करता है। प्रधानमन्त्री को जब तक लोक सभा में बहुमत प्राप्त हो, वह राष्ट्रपति को नया जनादेश प्राप्त करने के लिए लोक सभा भंग करने के लिए कभी भी सिफरिश कर सकता है। ऐसी प्रत्येक प्रार्थना राष्ट्रपति के द्वारा स्वीकार कर ली जाती है।

बैठके

Indian Customer संविधान के अनुच्छेद 85 के According, राष्ट्रपति किसी भी समय संसद की बैठक बुला सकता है परन्तु संसद की दो बैठकों में छ: महीनों से अधिक का अन्तर नहीं हो सकता। इसका Means यह हुआ कि Single वर्ष में लोक सभा की कम-से-कम दो बैठवेंफ होनी आवश्यक होती हैं। राष्ट्रपति के पास लोक सभा के अधिवेशन बुलाने, दीर्घकालीन समय के लिए स्थगित करने या भंग करने की शक्ति होती है।

गणपूर्ति

लोक सभा की Single बैठक के लिए कम-से-कम 1/10 सदस्यों की उपस्थिति अनिवार्य होती है। यदि लोक सभा के 1/10 सदस्य बैठक में उपस्थित न हों तो सदन का स्पीकर गणपूर्ति संख्या के कम होने के कारण बैठक को उठा सकता है।

लोक सभा के अधिकारी, स्पीकर और डिप्टी स्पीकर

स्पीकर ही लोक सभा का अध्यक्ष और अध्यक्षता करने वाला अधिकारी होता है। स्पीकर का चुनाव लोक सभा के सदस्यों के द्वारा अपने में से ही Reseller जाता है। प्रत्येक नई लोक सभा अपनी पहली बैठक में अपने में से ही Single सदस्य को स्पीकर और Second को डिप्टी स्पीकर के Reseller में निर्वाचित करती है। स्पीकर लोक सभा की बैठकों की अध्यक्षता करता है, सदन की कार्यवाही संचालित करता है और सदन में अनुशासन और मर्यादा स्थापित रखता है। सदन में उसकी सत्ता सर्वोच्च होती है। वह सदन में राजनीतिक Reseller में निष्पक्ष व्यक्ति के Reseller में व्यवहार करता है। स्पीकर की अनुपस्थिति में उसके कर्तव्य डिप्टी स्पीकर के द्वारा निभाए जाते हैं। स्पीकर और डिप्टी स्पीकर दोनों के संसद में से अनुपस्थित होने की परिस्थिति में अध्यक्ष व्यक्तियों की सूची में से कोई व्यक्ति बैठक की अध्यक्षता करता है। 14वीं लोक सभा ने श्री सोमनाथ चटर्जी को अपना स्पीकर और श्री सी. एस. अटवाल को उप-स्पीकर निर्वाचित Reseller।

लोक सभा के सदस्यों का वेतन, भत्ते और पैंशन

लोक सभा के सदस्यों को संसद के द्वारा निश्चित मासिक वेतन और भत्ते मिलते हैं और यदि Single सदस्य कम-से-कम 5 वर्ष तक लोक सभा का सदस्य रहता है तो उसको पैंशन भी मिलती है।

लोक सभा के विशेष अधिकार

लोक सभा के सदस्यों को कुछ विशेष अधिकार प्राप्त हैं। उनको सदन में अपने विचार प्रस्तुत करने की पूर्ण स्वतन्त्रता होती है। उनके द्वारा सदन में कही गई किसी भी बात पर कोई कार्यवाही नहीं की जा सकती। बैठक के दौरान, इससे 40 दिन First और बाद में उनको किसी दीवानी दोष के अधीन बंदी नहीं बन या जा सकता। फौजदारी मामलों में उनको केवल तभी गिरफ्तार Reseller जा सकता है यदि स्पीकर को इसके बारे में सूचना दी गई हो। पार्टी अनुशासन के कारण लोक सभा के सदस्य को अपने दल की नीति के According ही कार्य करना पड़ता है। अपने दल के द्वारा जारी किए गए व्हिप (Whip) के According मतदान में भाग लेना पड़ता है नहीं तो उनके विरुद्व अनुशासनिक कार्यवाही की जा सकती है।

लोक सभा की शक्तियाँ और कार्य

वैधानिक शक्तियाँ

Single साधारण बिल केवल तभी कानून बन सकता है यदि इसको संसद के दोनों सदनों के द्वारा पास Reseller गया हो। इसको लोक सभा या राज्य सभा किसी में भी पेश Reseller जा सकता है। जब यह Single सदन के द्वारा पास हो जाता है तो इसको Second सदन में भेज दिया जाता है। दोनों सदनों द्वारा पास किए जाने के बाद, राष्ट्रपति के हस्ताक्षर से यह कानून बन जाता है। चाहे कि साधारण बिल संसद के दोनों सदनों में से किसी सदन में भी पेश किए जा सकते हैं परन्तु लगभग 90: बिल लोक सभा में ही पेश किए जाते हैं। First लोक सभा इनको पास करती है और बाद में राज्य सभा। यदि राज्य सभा ऐसे किसी बिल को रद्द कर देती है या संशोधन सहित लोक सभा के पास वापस भेजा देती है तो लोक सभा पुन: बिल पर विचार करती है। यदि कोई बिल लोक सभा के द्वारा पुन: पास कर दिया जाए परन्तु राज्य सभा अभी भी इसको पास करने के लिए तैयार न हो तो गतिरोध (Deadlock) पैदा हो जाता है। यदि ऐसे गतिरोध का छ: महीने तक समाधान न हो सके तो राष्ट्रपति दोनों सदनों की साझी बैठक बुलाता है और ऐसी बैठक में जो निर्णय हो जाता है उसके According बिल के भाग्य का निर्णय हो जाता है। दोनों के साझे अधिवेशन के ढंग के द्वारा विरोध दूर करने का ढंग लोक सभा के पक्ष में रहता है क्योंकि लोक सभा के सदस्यों की संख्या राज्य सभा के सदस्यों की संख्या से अधिक लगभग दुगनी होती है और साझे अधिवेशन में, लोक सभा, अधिक सदस्यों के कारण हावी ही रहती है। दोनों सदनों की साझी बैठक की अध्यक्षता लोक सभा का स्पीकर करता है। इसके लिए साधारण कानून बनाने के सम्बन्ध में भी लोक सभा की स्थिति अच्छी और शक्तिशाली होती है।

कार्यकारी शक्तियाँ

Indian Customer संविधान के अनुच्छेद 75 (3) के According, फ्मन्त्रि-परिषद् सामूहिक Reseller में लोक सभा के प्रति उत्तरदायी है। (Council of Ministers shall be collectively responsible to the House of the people): मन्त्रि-परिषद् अपनी प्रत्येक त्रुटि, उपेक्षा और अवहेलना के All कार्यों के लिए लोक सभा के प्रति उत्तरदायी होती है। मन्त्री तब तक अपने पद पर रह सकते हैं जब तक कि उनको लोक सभा में बहुमत का विश्वास प्राप्त रहता है। प्रधानमन्त्री सामान्य Reseller में लोक सभा का ही सदस्य होता है परन्तु अब यह आवश्यक नहीं। लोक सभा कभी भी मन्त्रियों के विरुद्व अविश्वास प्रस्ताव पास करके उनको पद से हटा सकती है। इस तरह मन्त्रि-परिषद् के जीवन और मृत्यु का निर्णय लोक सभा के हाथ में होता है। लोक सभा कई ढंगों के द्वारा मन्त्रि-परिषद् को अपने प्रति उत्तरदायी बनाती है जैसा कि प्रशासन के All मामलों से सम्बन्धित प्रश्न पूछ कर, उनके द्वारा अपनाई गई नीतियों की आलोचना करके, कटौती प्रस्ताव, निंदा प्रस्ताव और अविश्वास प्रस्ताव पास करके और सरकार के साधारण बिल और धन से सम्बन्धित बिल रद्द करके। यदि लोक सभा (i) केबिनेट की किसी नीति या निर्णय को रद्द कर दे या सरकार का कोई बजट या बिल स्वीकार न करे, या (ii) प्रधानमन्त्री वे विरुद्व अविश्वास का वोट पास कर दे तो इसको समस्त मन्त्रि-परिषद् के विरुद्व अविश्वास का प्रस्ताव मान लिया जाता है और समस्त मन्त्रि-परिषद् को ही त्याग-पत्र देना पड़ता है। 12 अप्रैल, 1997 को प्रधानमन्त्री एच.डी. देवेगौड़ा के द्वारा पेश किए गए विश्वास के प्रस्ताव को लोक सभा का समर्थन न मिलने पर जून, 1996 में बनी साझे मोर्चे की पहली सरकार गिर गई थी। अप्रैल, 1999 में बी.जे.पी. गठबंधन सरकार भी लोक सभा में से Single विश्वास का प्रस्ताव प्राप्त करने में असफल रही और 17 अप्रैल, 1999 को प्रधानमन्त्री श्री अटल बिहारी वाजपेयी ने अपनी सरकार का त्याग-पत्र राष्ट्रपति को पेश कर दिया। इस प्रकार लोक सभा के पास सरकार को पद से हटाने की शक्ति होती है।

वित्तीय शक्तियाँ

वितीय मामलों के सम्बन्ध में लोक सभा को उत्तम स्थिति प्राप्त है क्योंकि वित्त से सम्बन्धित All बिल लोक सभा में ही पेश किए जाते हैं। लोक सभा के द्वारा पास किए जाने पर ऐसे बिल राज्य सभा में भेजे जाते हैं। लोक सभा के द्वारा पास Reseller गया कोई वित्तीय बिल राज्य सभा के द्वारा अधिक-से-अधिक 14 दिन के समय के लिए ही रोका जा सकता है। यदि राज्य सभा किसी वित्तीय बिल को पास करने में असमर्थ रहता है या राज्य सभा में वित्तीय बिल भेजे जाने की तिथि से 14 दिन व्यतीत हो जाएं तो यह मान लिया जाता है कि इसको संसद के दोनों सदनों ने पास कर दिया है और इसको स्वीकृति के लिए राष्ट्रपति के पास भेज दिया जाता है। कोई विशेष बिल वित्तीय बिल है या नहीं, इसका निर्णय लोक सभा का स्पीकार करता है। उसका निर्णय अंतिम होता है और इसको लोक सभा के पास कर लगाने या कोई कर समाप्त करने और राष्ट्र की वित्तीय नीतियों पर नियन्त्रण करने से सम्बन्धित मामलों पर अंतिम अधिकार होता है। लोक सभा राष्ट्र के वित्त की वास्तविक स्वामी और संरक्षिका होती है।

न्यायिक शक्तियाँ

लोक सभा कई न्यायिक शक्तियाँ भी निभाती है। राष्ट्रपति के विरुद्व दोष लगाने की कार्यवाही संसद के बहुमत से प्रस्ताव पास करके राष्ट्रपति को उसके पद से हटाया जा सकता है। इसके द्वारा भारत के उप-राष्ट्रपति के विरुद्व राज्य सभा के द्वारा लगाए गए दोषों की भी जाँच की जाती है। यह राज्य सभा के सदस्यों से मिलकर सर्वोच्च न्यायालय या किसी राज्य के उच्च न्यायालय के किसी न्यायाध्ीश को हटाने का प्रस्ताव भी पास कर सकती है। यह संयुक्त Reseller में राष्ट्रपति को विशेष प्रस्ताव के द्वारा राज्य के कुछ विशेष उच्च अधिकारियों जैसा कि अटारनी जनरल, मुख्य चुनाव आयुक्त, Indian Customer कम्पट्रोलर और आडीटर जनरल को हटाने के लिए भी प्रस्ताव पास कर सकती है। यह किसी सदस्य या किसी व्यक्ति के विरुद्व अनुशासनिक कार्यवाही कर सकती है जो सदन की मानहानि करने का दोषी हो।

निर्वाचन कार्य

लोक सभा कुछ निर्वाचन कार्य भी निपटाती है। लोक सभा राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेते हैं। लोक सभा और राज्य सभा के सदस्य भारत के उपराष्ट्रपति का निर्वाचन करते हैं। लोक सभा के सदस्य अपने में से ही दो सदस्यों को क्रमश: स्पीकर और उप-स्पीकार का निर्वाचन भी करते हैं।

संशोधन शक्तियाँ

संविधान में संशोधन बिल किसी भी सदन में पेश Reseller जा सकता है। परन्तु इसको तब ही पास समझा जाता है जब दोनों सदन इसको समान Reseller में और संविधान के अनुच्छेद 368 की व्यवस्थाओं के According पास कर देते हैं। लोक सभा और राज्य सभा, दोनों ही Single समान संविधान संशोधन की शक्तियों का प्रयोग करते हैं।

संकटकाल की स्थिति की घोषणा की स्वीकृति

Indian Customer संविधान के According राष्ट्रपति तीन प्रकार की संकटकाल स्थिति की घोषणा कर सकता हैμराष्ट्रीय संकटकाल स्थिति (अनुच्छेद 352), राज/राज्यों में संवैधानिक संकटकाल स्थिति (अनुच्छेद 356) और वित्तीय संकटकाल स्थिति (अनुच्छेद 360)। परन्तु संकटकाल स्थिति की ऐसी प्रत्येक घोषणा को करते समय लोक सभा और राज्य सभा दोनों की स्वीकृति प्राप्त करनी आवश्यक होती है। यदि संकटकाल स्थिति की घोषणा के समय लोक सभा भंग हो गई हो तो इसकी स्वीकृति राज्य सभा से करवा ली जाती है, परन्तु नई लोक सभा के अस्तित्व में आने के बाद संकटकाल स्थिति के घोषणा को 30 दिनों के भीतर इससे भी स्वीकार करवाना आवश्यक होता है, नहीं तो घोषणा को रद्द समझा जाता है।

लोक सभा की कुछ अन्य शक्तियाँ

उपर्युक्त शक्तियाँ रखने के साथ-साथ लोक सभा कुछ अन्य कार्य भी करती है: (क) राष्ट्रपति के द्वारा जारी किए गए अध्यादेशों को स्वीकार या रद्द करना, (ख) राज्यों की सीमाओं में परिवर्तन करना, नए राज्यों को बनाना और किसी राज्य का नाम बदल देना, (ग) सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालय के अधिकार क्षेत्र परिवर्तित करना, (घ) संसद और राज्य विधानपालिकाओं के सदस्य की योग्यताओं में परिवर्तन करना, (घ) संसद के सदस्यों के वेतन और भत्तों में संशोधन करना, और (च) दो या दो से अधिक राज्यों के लिए संयुक्त लोक सेवा आयोग स्थापित करना। यह राज्य विधनसभा के उपरि सदन को भंग करने या पुन: स्थापित करने के लिए भी प्रस्ताव पास कर सकती है।

लोक सभा की स्थिति

लोक सभा की शक्तियों और कार्यों का अध्ययन करने के बाद हम इस निष्कर्ष पर पहुँचते हैं कि लोक सभा Meansात् संसद, बहुत ही शक्तिशाली सदन है। मन्त्रि-परिषद् लोक सभा के प्रति उत्तरदायी होती है, राज्य सभा के प्रति नहीं। मन्त्रि-परिषद् के सदस्य लोक सभा का राष्ट के वित्त पर पूर्ण नियन्त्रण होता है। साधारण कानून बनाने के मामलों में भी लोक सभा की ही स्थिति प्रभावी है क्योंकि लगभग 90» बिल लोक सभा में ही पेश किए जाते हैं और दोनों सदनों में किसी झगड़े के समाधान के समय संयुक्त बैठक की विधि लोक सभा के ही पक्ष में है। लोक सभा कार्यपालिका पर नियन्त्रण रखती है। First प्रधानमन्त्री सामान्य Reseller में लोक सभा से ही होता था। लोक सभा अविश्वास का प्रस्ताव पास करके या सरकार की नीति या कानून को रद्द करके मन्त्रि-परिषद् को भंग कर सकती है। क्योंकि लोक सभा का निर्वाचन प्रत्यक्ष Reseller में Reseller जाता है, इसके लिए यह राष्ट्र का प्रतिनिधित्व करने वाला सदन होता है और वास्तव में ही लोक सभा Indian Customer जनता की प्रभुसत्ता को प्रकट करती है।

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