लागत लेखांकन की प्रकृति, क्षेत्र, प्रविधियाँ
- सन 1965 मे भारत सरकार को यह अधिकार दिया गया कि वह किसी भी उधोग के लिए लागत लेखे रखना अनिवार्य घोषित कर सकती है। केन्द्र सरकार ने इस अधिकार का प्रयोग करते हुए अनेक उधोगो के लिए लागत लेखे रखना अनिवार्य घोषित Reseller है। इन कम्पनियों के लागत लेखों के अंकेक्षण करवाने के लिए भी भारत सरकार आदेश जारी कर सकती है।
- विभिन्न उधोगो के लिए लागत अभिलेखा नियम (Cost Accounting Rules) बनाये गये। प्रत्येक कम्पनी के लेखे इनके According ही होने चाहिए।
- धारा 209 (i) (d) में लागत लेखों को रखना वैधानिक Reseller से अनिवार्य कर दिया गया।
- लागत लेखों को अधिक उपयोगी बनाने के लिए इनका अंकेक्षण करवाने के प्रावघान बनाये गये। सन 1968 मे लागत अंकेक्षण प्रतिवेदन नियम (Cost Audit Report Rules) बनाये गयें। साथ ही धारा 227 (4A) में described MAOCARO में भी लागत लेखांकन से सम्बन्धित बिन्दुओं को जोडा गया था। अव 1 जनवरी, 2004 से MAOCARO की जगह कम्पनी ऑडिट रिपोर्ट आर्डर (CARO) लागू हो गया है।
लागत लेखांकन की प्रकृति
लागत लेखांकन की प्रकृति जानने के लिए इन्स्टीटयूट ऑफ कॉस्ट एण्ड वक्र्स Singleाउण्टेण्टस, इंग्लैण्ड द्वारा लागत लेखाशास्त्र (Cost Accountancy) की दी गर्इ परिभाषा का अध्ययन करना होगा। इस संस्था ने लागत लेखाशास्त्र की परिभाषा देने के अतिरिक्त इसकी प्रकृति की व्याख्या करते हुए कहा है कि लागत लेखाशास्त्र, लागत लेखापाल का विज्ञान कला एंव व्यवहार कहा जाता है। लागत लेखापाल ही व्यवहार मे लेखाशास्त्र की वैज्ञानिक विधियों का प्रयोग अपनी कुशलता से करता है। ज्ञान के व्यवस्थित एंव संगठित समूह को ही विज्ञान कहा जाता है। लागत लेखाशास्त्र के भी अन्य विज्ञानों की भांति कुछ मूलभूत सिद्धान्त एंव नियम है और यह लागत लेखांकन लागत निर्धारण तथा लागत नियन्त्रण आदि का संगठित ज्ञान है। इस आधार पर लागत पर लागत लेखाशास्त्र को विज्ञान की श्रेणी में रखा गया है।
लगत लेखाशास्त्र कला भी है, क्योंकि इसमें विशिष्ट रीतियॉ एंव प्राविधियां निहित हैं, जिनका उचित प्रयोग लेखापाल की कुशलता पर ही निर्भर करता है। अत: Single कुशल लागत लेखापाल को लागत के आधारभूत सिद्धान्तों का ज्ञान होने के अतिरिक्त आवश्यक प्रशिक्षण प्राप्त करना भी आवश्यक है। लागत लेखाशास्त्र व्यवहार भी है, क्योंकि लागत लेखापाल अपने कर्तव्य पालन के सम्बन्ध मे सतत प्रयास करता रहेगां। इसके लिए उसे सैद्धान्तिक ज्ञान के साथ-साथ व्यावहारिक ज्ञान, प्रशिक्षण एंव अभ्यास भी आवश्यक है, जिससे वह लागत निर्धारण, लागत लेखांकन एंव लागत नियन्त्रण सम्बन्धी जटिलताओं को सुलझा सकेगा।
विल्मट (Wilmot) ने लागत लेखाशास्त्र की प्रकृति का वर्णन करते हुए इसके कार्यो को सम्मिलित Reseller है: लागत का विश्लेषण, प्रमाप निर्धारण,पूर्वानुमान लगाना, तुलना करना, मत अभिव्यक्ति तथा आवश्यक परामर्श देना आदि। लागत लेखापाल की भूमिका Single Historyकार, समाचारदाता एंव भविष्यवक्ता के तौर पर होती है। उसे Historyकार की तरह सतर्क सही परिश्रमी एंव निष्पक्ष होना चाहिए । संवाददाता की भांति सजग, चयनशील एंव सारगर्भित तथा भविष्य-वक्ता की तरह उसको ज्ञान व अनुभव के साथ-साथ दूरदश्र्ाी एंव साहसी होना आवश्यक है।
लागत लेखांकन का क्षेत्र
लागत लेखाशास्त्र का क्षेत्र अधिक विस्तृत हो जाने के कारण ही लागत लेखांकन का क्षेत्र भी अधिक व्यापक हो गया है। इसका प्रमुख कारण यह है कि लागत एंव लाभ या आय सम्बन्धी संमक किसी न किसी Reseller में All व्यावसायिक उपक्रमों, तथा निर्माणी, व्यापारिक खनन परिवहन उपक्रम सार्वजनिक उपयोगिताएं वितीय संस्थाएं तथा गैर व्यापारिक संगठनों तथा म्युनिसिपल बोर्ड अस्पताल व विश्वविधालयों में Singleत्र किये जाते हैं जिसके आधार पर न केवल निर्मित वस्तुओं तथा प्रदान की जाने वाली सेवाइों की लागतो एंव लाभो को अनुमानित एंव ज्ञात Reseller जाता हैं और विभिन्न विकल्पों मे से उचित विकल्पों के चुनाव के सम्बन्ध में निर्णय लिए जाते हैं।
लागत लेखांकन के क्रमिक विकास का History भी इसके क्षेत्र के क्रमिक विस्तार को स्पष्ट करता है। लागत लेखांकन के उदभव के पूर्व शताब्दियों तक (443 बी.सी. से ही) निजी सार्वजनिक एंव निगम व्यवसायों में प्रबन्धकीय नियन्त्रण हेतु वितीय लेखाकन को ही पर्याप्त समझा जाता था। परन्तु व्यवसाय का निरन्तर विकास होने पर लेखांकन के नये उपायों उन प्रविधियों एंव विस्तृत सहायक अभिलेखों के बावजुद भी वितीय लेंखाकन प्रबन्ध को आवश्यक सूचनाएं प्रदान करने में सीमित एंव अपर्याप्त सिद्ध होता गया। इन डदेंश्यों की पूर्ति करने के लिए ही पिछले पांच या छ: दशको से व्यावसायियों एंव प्रबन्धको ने सहायक एंव पूरक लेंखाकन विधियों, जिन्हे लेखाकन कहा जाता है, अपनाना प्रारम्भ कर दिया।
लागत लेखांकन के उदभव एंव उसके क्षेत्र के विकास का कारण यह भी रहा है कि वितीय लेखांकन Single व्यावसायिक उपक्रम के प्रमुख कायोर्ं (वितीय, प्रशासनिक उत्पादन एंव वितरण सम्बन्धी) से सम्बन्धीत केवल ऐसी सूचनाएँ प्रदान करता है जो इन कार्यों के सामान्य नियन्त्रण में सहायक तो होती है, परन्तु उनमें इन विभागों के परिचालन कुशलता सम्बन्धी विस्तृत description का अभाव पाया जाता है। लागत लेंखाकन का विकास वितीय लेखांकन की इस सीमा को दूर करने के लिए ही हुआ है। आज यह Single सामान्य धारणा बन चुकी है कि Single व्यवसाय के स्वस्थ तथा कुशल प्रबन्ध के Single अभिन्न अंग के Reseller में लागत लेखांकन उस समय तक किसी व्यवसाय में स्थान प्राप्त करने मे सक्षम प्राप्त करने मे सक्षम नहीं हो सकता, जब तक की उसका प्रबन्ध उसके कर्मचारी बैकिगं संस्थाएं एंव अन्य लेनदार तथा सामान्य जनता, All उससे लाभान्वित नहीं होगें।
जैसा कि उपर्युक्त विवेचन से स्पष्ट है, लागत लेखांकन का विकास प्रबन्ध के Single अभिन्न एंव उसके Single प्रभावकारी उपकरण के Reseller् में हुआ है। इसका प्रमुख उदेश्य प्रत्येक वस्तु या सेवा की लागत और उनका विक्रय मूल्य निर्धारित करना है। जब व्यवसाय And समाज के व्यापक हितो को दृष्टिगत रखकर इसके विकास के कारणो की गहरार्इ से जांच की जाती है तो यह ज्ञात होता है कि इसका Single प्रमुख कारण व्यावसायिक उपक्रमों की परिचालन कुशलता में अभिवृद्धि करना भी रहा है। इसके अन्तर्गत Single निश्चित समय पर देश में तथा प्रत्येक व्यावसायिक उपक्रम के उपलब्ध साधनों का अनुकूलता उपयोग भी Reseller जा सकता है। इन उदेंश्यों को प्राप्त करने के निमित ही इसके कार्यो में लागत-विश्लेषण लागत-नियन्त्रण सूचना-प्रस्तुतीकरण, लागत-लाभ संमको का स्पष्टीकरण तथा उनके आधार पर उचित निर्णयन को अब विशेष महत्व दिया जाने लगा है।
लागत लेखांकन की प्रविधियॉं
लागत ज्ञात करने की उपर्युक्त विधियों के अतिरिक्त प्रबन्ध्को द्वारा लागत लेखांकन की प्रविधियॉं भी लागत नियन्त्रण करने तथा कुछ प्रबन्धकीय निर्णय लेने हेतु प्रयोग मे लार्इ जाती है। ये लागत ज्ञात करने की स्वतन्त्र पद्धतियॉं नही है, बल्कि मूलत: लागत प्रविधियॉं है, जो लागत ज्ञात करने की विधियों मे से किसी के भी साथ प्रबन्धको के द्वारा निर्णय लेने मे उपयोग की जा सकती है।
1. प्रमाप लेखाकंन –
प्रमाप लेखांकन का सम्बन्ध लागत ज्ञात करने के समय से है। इस प्रविधि के अन्तर्गत किसी वस्तु का निर्माण होने से पूर्व ही उसकी लागत का प्रमाप निर्धारित कर दिया जाता है। प्रमाप लागत किसी वसतू का निर्माण्पा होने से पूर्व उसकी लागत का पूर्वानुमान होती है। जब उस वस्तू का निर्माण हो जाता है तो उस वस्तू की वास्तविक लागत लागत ज्ञात कर ली जाती ह। वस्तू की वास्तविक लागत उसकी प्रमाप लागत से कम या अधिक हो सकती है। वास्तकविक लागत और प्रमाप लागत में अन्तर के कारणों का विश्लेषण Reseller जाता है और यदि वास्तविक लागत अधिक है तो उसे नियन्त्रित करने के प्रयास किये जाते हैं। इस प्रकार प्रमाप लेखांकन से आशय प्रमाप लागतो को तैयार करना उसमी वास्तविक लागतो से तुलना करना तािा अन्तर के कारणों और भार के बिन्दुओं का विश्लेषण करने से है।
2. सीमान्त लेखांकन –
किसी वस्तु की सीमान्त लागत ज्ञात करना तका यह ज्ञात करना कि किसी वस्तु के उत्पादन तथा बिक्री की मात्रा में परिवर्तन का लाभों पर क्या प्रभ्ज्ञाव पडेगा, सीमान्त लेखांकन कहलाता है। किसी सव्तु की वर्तमान उत्पादन मात्रा में Single इकार्इ की वृद्धि करने से कुल लागत में जो वृद्धि होती है, उसे उस वस्तु की सीतान्त लागत कहते हैं।
3. प्रत्यक्ष लेखांकन –
उत्पादन क्रियाओं तथा उत्पादेां की लागत में केवल प्रत्यक्ष लागतो को शामिल करना तथा अप्रत्यक्ष लागतो को लाभ-हानि खाते से अपलिखित करने के लिए छोड देना प्रत्यक्ष लेखांकन कहलाता है। यह सीमान्त लेखांकन से इस बात में भिन्न है कि कुछ स्थिर लागतो को भी उचित परिस्थितियों में प्रत्यक्ष लागत समझा जा सकता है।
4. अवशोषण लेखांकन –
यदि उतपादन क्रियांओ तथा उत्पादों की लागत में स्थिर और परिवर्तनशील All खर्चो को सम्मिलित कर दिया जाता है तो इसे अवशोषण लेखांकन कहते है। इसे सम्पुर्ण लेखांकन भी कहते है, क्योंकि इस विधि के अन्तर्गत सम्पुर्ण लागत उत्पादन का चार्ज कर दिया जाता है।
5. समReseller लेखांकन –
यदि विभिन्न संस्थाओं द्वारा Single ही प्रकार के लागत सिद्धान्तो एंव प्रक्रियाओ को अपनाया जाता है तो इसे समReseller लेखांकन कहते है। इस प्रविधि से पारस्परिक तुलना में सहायता मिलती है। इसे SingleReseller लागत लेखांकन भी कहते है।