Resellerक अलंकार का Means और उदाहरण
Resellerक अलंकार का Means और उदाहरण
अनुक्रम
Resellerक की विशेषता यह है कि वह विषयवस्तु का अंग बन जाता है, इसलिए उसकी Need सदा ही बनी रहती है। Meansालंकारों में प्रमुख उपमा माना जाता है, लेकिन आद्याचार्य भामह ने अपना विवेचन उपमा से प्रारम्भ न करके Resellerक से प्रारम्भ Reseller है और उसे प्रमुखता दी है। ‘‘उपमेय पर उपमान का आरोप, अभेद कथन या ताद्Reseller्य ही Resellerक कहलाता है। यह ताद्Reseller्य या अभेद गुणसाम्य के आधार पर होता है और यह गुणसाम्य ही Resellerक का मूल आधार है। निशेधरहितता का कथन अपह्नुति से पार्थक्य के लिए Reseller जाता है।’’ कहने का आशय यह है कि यहाँ उपमेय पर उपमान का आरोप Reseller जाय वहाँ Resellerक अलंकार होता है। कभी-कभी दोनों में अभेद दिखा दिया जाता है और कभी Single को Second का ही Reseller बता दिया जाता है। संस्कृत काव्यशास्त्र में Resellerक के इतने भेद बताये गये हैं कि उनसे Single स्वतंत्र अध्याय ही बन जायेगा, लेकिन मुख्य भेदों का वर्णन भी आवश्यक है। ‘‘Resellerक के तीन मुख्य भेद है: सांगResellerक, निरंगResellerक और परम्परितResellerक। जहाँ उपमान का उसके समस्त अंगों या अवयवों के साथ उपमेय और उसके अंगों पर आरोप Reseller जाता है, वहाँ सांगResellerक होता है। इसे ही सावयवResellerक भी कहते हैं। इसके भी दो Reseller हो सकते हैं: समस्तवस्तुविषयक सांगResellerक और Singleदेश विवर्ती सांगResellerक। जब उपमान के समस्त अंग Wordष: उपान्त होकर उपमेय के समस्त अंगों को अन्तर्भूत कर लें तो समस्तवस्तुविषयक भेद होता है और जब उपमान के कुछ अंग Wordष: उपान्त हों और Meansत: आक्षिप्त तो Singleदेश विवर्ती भेद कहा जाता है। निरंगResellerक में अंगों या अवयवों का आरोप नहीं होता, केवल Single ही आरोप होता है। यह भी दो प्रकार का होता है: केवल निरंग और माला निरंग। केवल निरंग में Single ही उपमेय का आरोप होता है जबकि माला निरंग में अनेक उपमानों का आरोप होता है। परम्परितResellerक में Single आरोप Second आरोप का कारण बनता है। यह अष्लिश्ट भी हो सकता है और ष्लिश्ट भी। वस्तुत: Single आरोप के कारण दूसरा आरोप अनिवार्य हो जाने पर परम्परितResellerक होता है। दूसरा आरोप Means की संगति के लिए आवश्यक होता है।’’ आजकल सांगResellerक And निरंग Resellerक ही प्रचलित हैं।
सुन्दर कविराय ने Resellerक का प्रयोग भी कम ही Reseller है, लेकिन जितना Reseller है, वह अत्यधिक सुन्दर और प्रभावी है। Single स्थान पर उन्होंने सांगResellerक का भी प्रयोग Reseller है। उदाहरण दर्शनीय है- चिबुक-कूप मद डोल-तिल, बाँधि अलक की डोरि। दृग-भिस्ती हित ललकि बल, छवि-जल भरत झकोिरे।। जिस प्रकार कोई भिष्ती अपने डोल (बाल्टी) को डोरी या रस्सी में बाँधकर अत्यन्त प्रेमपूर्वक कुँआ में डालता है और उसे झकोरता है जिससे डोल भर जाय और अंत में उस जल का पान करके आनन्द प्राप्त करता है, उसी प्रकार नेत्र Resellerी भिष्ती ने अपने तिल (आँखों का तारा) Resellerी डोल को नायिका के ठोड़ी के गड्ढ़े Resellerी कूप में डाला है और अत्यन्त प्रेम के साथ नायिका के सौन्दर्य Resellerी जल को झकझोर रहा है जिससे वह उस सौन्दर्य का पान कर सके। कहने का तात्पर्य यह है कि नायक का मन नायिका के चिबुकगर्त्त में गिर गया है और वह उसके सौन्दर्य का पान करते हुए नहीं अघा रहा है। यहाँ चिबुक के गर्त पर कूप का, डोल पर आँखों के तिल का, डोरी पर अलक का, नेत्रों पर भिष्ती तथा कान्ति पर जल का आरोप Reseller गया है। उपमेय के समस्त अंगों पर उपमान के समस्त अंगों का आरोप होने के कारण सांगResellerक अलंकार है। यह आरोप Wordष: कहा गया है। दोहा विषयवस्तु और अलंकारयोजना दोनों ही दृष्टि से महत्त्वपूर्ण बन पड़ा है और ऐसे दोहे हिन्दी काव्य में कम ही मिलते हैं। सांगResellerक की अपेक्षा निरंगResellerक अपेक्षाकृत अधिक सरल है। इसे ही सामान्य Reseller से Resellerक कहा जाता है। इसमें उपमेय पर उपमान का आरोप Reseller जाता है, लेकिन अंगों का History नहीं होता। इसका प्रयोग सांगResellerक की अपेक्षा सरल रहता है इसलिए कवि इसका अधिक प्रयोग करते हैं। सुन्दर ने भी Resellerक का प्रयोग Reseller है, लेकिन Resellerक के प्रयोग में वे कम ही उतरे हैं। Single उदाहरण प्रस्तुत है-
जकी सी रही है, तकि ‘सुन्दर’ अचंभौ अति,
हली न, चली न, बूड़ि गयी सोच-सर में।
इस छन्द में विप्रलब्धा नायिका का चित्रण Reseller गया है। कवि कहता है कि वह सोच Resellerी तालाब में डूब गयी, वह सोचमग्न हो गयी- यही कवि का भाव है, लेकिन मग्नता को पूरी तरह से दिखाने के लिए कवि Resellerक का प्रयोग करता है। जिस तरह व्यक्ति तालाब में डूब जाता है, बिल्कुल दिखाई नहीं देता, उसी प्रकार वह नायिका सोच में पूरी तरह से डूब गयी। यहाँ सोच पर तालाब का आरोप Reseller गया है, और वह वण्र्य का अंग बन गया है- यही Resellerक की विशेषता मानी गयी है- मेरे जान पंचबान, पंच-पंच बाननि के, बाधि चढ्यों दुहूँ ओर प्रेम-तरकस कों। यहाँ प्रेम पर तरकष का आरोप Reseller गया है। नायिका नायक के साथ प्रेमालाप कर रही है। उसकी भुजाओं पर उसने अपने दोनों पैर रख रखे हैं। दोनों पैरों में पाँच-पाँच अंगुलियाँ हैं। कवि सम्भावना व्यक्त करता है कि ये पाँच-पाँच अंगुलियाँ तो पाँच-पाँच बाण हैं जो प्रेम Resellerी तरकष (धनुश) पर रखकर पंचबाण (कामदेव) चला रहा है। प्रेम पर तरकष का आरोप Reseller गया है, इसलिए Resellerक अलंकार है। अलस बचन, चल बिचल हैं आभूशन, सकुचति मन-मन सुरति-कौतिग तें। नायिका नवोढ़ा है। वह समागम में संकुचित हो रही है, सकुचा रही है क्योंकि यह आश्चर्य का खेल वह पहली बार खेल रही है। उसके बचन अलसाये हुए हैं, आभूषण भी अस्तव्यस्त हो गये हैं, इसलिए वह समागम से संकुचित हो रही है। यहाँ सुरति पर कौतुक का आरोप Reseller गया है क्योकि उसको सुरत जादू जैसा ही लग रहा है।
बाधि चढ्यों दुहूँ ओर प्रेम-तरकस कों।
मेरे जान पंचबान, पंच-पंच बाननि के,
यहाँ प्रेम पर तरकष का आरोप Reseller गया है। नायिका नायक के साथ प्रेमालाप कर रही है। उसकी भुजाओं पर उसने अपने दोनों पैर रख रखे हैं। दोनों पैरों में पाँच-पाँच अंगुलियाँ हैं। कवि सम्भावना व्यक्त करता है कि ये पाँच-पाँच अंगुलियाँ तो पाँच-पाँच बाण हैं जो प्रेम Resellerी तरकष (धनुश) पर रखकर पंचबाण (कामदेव) चला रहा है। प्रेम पर तरकष का आरोप Reseller गया है, इसलिए Resellerक अलंकार है। अलस बचन, चल बिचल हैं आभूशन, सकुचति मन-मन सुरति-कौतिग तें। नायिका नवोढ़ा है। वह समागम में संकुचित हो रही है, सकुचा रही है क्योंकि यह आश्चर्य का खेल वह पहली बार खेल रही है। उसके बचन अलसाये हुए हैं, आभूषण भी अस्तव्यस्त हो गये हैं, इसलिए वह समागम से संकुचित हो रही है। यहाँ सुरति पर कौतुक का आरोप Reseller गया है क्योकि उसको सुरत जादू जैसा ही लग रहा है।