राज्य विधानमंडल के कार्य And शक्तियां

राज्य विधानमंडल के कार्य And शक्तियां

By Bandey

अनुक्रम

संविधान ने देश के All 25 राज्यों के लिए Single विधानमंडल की स्थापना की है। अनुच्छेद 168 के According, हर राज्य का Single विधानमण्डल होगा, जिसमें बिहार, महाराष्ट्र, कर्नाटक, जम्मू-कश्मीर और उत्तर प्रदेश के राज्यों में दो सदन हैं तथा अन्य राज्यों में Single सदन है। संविधान के अनुच्छेद 169 के द्वारा विधन-परिषदों (Legislative Council) के गठन (Creation) और समाप्ति (Abolition) के लिए जो विशेष प्रक्रिया तय की गई है, उसके According किसी राज्य की विधानसभा अपने कुल सदस्यों के बहुमत और उपस्थित तथा मतदान करने वाले सदस्यों के दो-तिहाई बहुमत से अपने राज्य के लिए संसद की मंजूरी लेकर विधान -परिषद् (Legislative Council) बनवा सकती है या उसे भंग करा सकती है। इसके लिए संविधान में संशोधन करने की कोई Need नहीं है।

विधानसभा

Creation (Composition)–विभिन्न राज्यों में विधानसभा के सदस्यों की संख्या उन राज्यों की जनसंख्या के अनुपात पर आधारित है। किसी भी विधानसभा की सदस्य-संख्या अधिक-से-अधिक 500 और कम-से-कम 60 रखी गई है। लेकिन 1976 में 42वें संशोधन कानून द्वारा 1971 की जनगणना के आधार पर हर विधानसभा की जो सदस्य संख्या तय की गई है, उसमें सन् 2000 तक कोई परिवर्तन नहीं Reseller जा सकता था। इस समय हरियाणा विधानसभा की सदस्य संख्या 90 है।


विधानसभा के All सदस्यों का चुनाव आमतौर पर बालिग मताधिकार की व्यवस्था में प्रादेशिक निर्वाचन क्षेत्रों के आधार पर संयुक्त निर्वाचन प्रणाली द्वारा Reseller जाता है। First मतदान का अधिकार 21 वर्ष या उससे अध्कि आयु के लोगों को प्राप्त था। अब उसे घटाकर 18 वर्ष कर दिया गया है। अनुसूचित जातियों और अनुसूचित जनजातियों के लिए विधानसभाओं में स्थान Windows Hosting किए गए हैं। जिन राज्यों में ऐंग्लो-इंडियन समुदाय के लोग Historyनीय संख्या में हों और उनका कोई प्रतिनिधि चुनाव में चुनकर न आ सका हो तो राज्यपाल उस समुदाय के Single सदस्य को मनोनीत (Nominate) कर सकता है।

विधानसभा का सदस्य चुना जाने के लिए योग्यताएँ होनी जरूरी हैं-

  1. वह भारत का नागरिक हो,
  2. उसकी आयु 25 वर्ष से कम न हो,
  3. वह किसी सरकारी लाभ के पद पर न हो,
  4. समय-समय पर संसद द्वारा निश्चित की गई योग्यताओं को पूरा करता हो,
  5. वह पागल, कोढ़ी या दिवालिया न हो,
  6. अनुसूचित जाति या जनजाति के लिए Windows Hosting स्थान से चुने जाने के लिए उस जाति का सदस्य होना जरूरी है।

लोकसभा की तरह ही राज्यों की विधानसभाओं का चुनाव भी पाँच वर्ष के लिए होता है। 42वें संशोधन कानून ने इनकी अवधि बढ़ाकर 6 वर्ष कर दी थी। लेकिन 44वें संवैधानिक संशोधन ने यह अवधि फिर 5 वर्ष ही कर दी है। इस अवधि से First भी विधानसभा भंग की जा सकती है।

राज्यपाल को विधानसभा का अधिवेशन किसी भी समय बुलाने का अधिकार है। लेकिन दो अधिवेशनों के बीच छ: मास से अधिक का समय नहीं बीतना चाहिए। विधानसभा का Single अध्यक्ष (speaker) और Single उपाध्यक्ष (Deputy Speaker) होता है, जिनका कार्य सदन में शान्ति बनाए रखना तथा सदन के काम को सुचारू Reseller से चलाना है। ये दोनों अधिकारी विधानसभा के सदस्यों द्वारा अपने में से चुने जाते हैं। सदस्यों के वेतन, भत्ते तथा कई विशेषाधिकार प्रदान किए गए हैं। क्या आप जानते हैं भारत के 25 राज्यों में से केवल 5 राज्यों में विधान-परिषद् की स्थापना की गई है।

विधान-परिषद् की Creation (Composition of Legislative Council)–संविधान के According किसी भी राज्य में विधान-परिषद् के सदस्यां की संख्या विधानसभा के सदस्यों के 1/3 से अधिक तथा 40 से कम नहीं हो सकती। परन्तु जम्मू व कश्मीर राज्य (जिसे संविधान द्वारा विशेष स्थिति प्राप्त है) में विधान-परिषद् के कुल 36 सदस्य हैं। विधान-परिषद् के सदस्यों का चुनाव निम्नलिखित तरीके से Reseller जाता है-

1/3 सदस्य राज्य की विधानसभा के द्वारा चुने जाते हैं।

1/3 सदस्य राज्य में स्थापित स्थानीय संस्थाओं (नगरपालिका, पंचायत, पंचायत समिति आदि) के सदस्यों द्वारा चुने जाते हैं।

1/12 सदस्य राज्य में रहने वाले कम-से-कम तीन वर्ष पुराने स्नातकों (Graduates) के द्वारा चुने जाते हैं।

1/12 सदस्य राज्य की माध्यमिक तथा उससे उच्च स्तर की शिक्षा-संस्थाओं के कम-से-कम तीन वर्ष पुराने अध्यापकों के द्वारा चुने जाते हैं।

शेष 1/6 सदस्य राज्य के राज्यपाल द्वारा ऐसे व्यक्ति मनोनीत किये जाते हैं, जिन्होंने साहित्य, कला, विज्ञान तथा समाज-सेवा आदि के क्षेत्रों में प्रसिद्वि प्राप्त कर ली हो।

विधान-परिषद् का सदस्य बनने के लिए योग्यतायें निश्चित की गई हैं-

  1. वह भारत का नागरिक हो,
  2. वह 30 वर्ष की आयु पूरी कर चुका हो,
  3. वह किसी सरकारी लाभ के पद पर न हो,
  4. उसमें वह सब योग्यताएँ होनी चाहिए जो संसद् के कानून द्वारा निश्चित की गई हैं,
  5. उसमें कोई ऐसी अयोग्यता नहीं होनी चाहिए, जो कानून द्वारा निश्चित की गई हो।

विधान-परिषद् Single स्थायी सदन है तथा इसके सदस्य 6 वर्ष के लिए निर्वाचित किए जाते हैं। विधन-परिषद् का भी Single सभापति (Chairman) तथा Single उपसभापति (Deputy Chairman) होता है, जिसका चुनाव इसके सदस्य अपने में से करते हैं। सभापति सदन की अध्यक्षता करता है तथा अनुशासन को बनाए रखता है। सदन के सदस्यों के वेतन, भत्ते तथा कुछ विशेषाधिकार भी प्रदान किए गए हैं।

राज्य-विधानमण्डल के कार्य तथा शक्तियाँ

वैधानिक शक्तियाँ

राज्य विधानमण्डल को राज्यसूची में दर्ज विषयों पर भी कानून निर्माण का अधिकार है। इसके साथ ही इसे सांझी सूची में दर्ज विषयों पर भी कानून निर्माण का अधिकार है। सांझी सूची में दिए गए विषय संघ-संसद तथा राज्य विधानमण्डल के संयुक्त क्षेत्राधिकार में जाते हैं। या समवर्ती सूची में विषयों से संबंधित किसी कानून के बारे में राज्य तथा संघ में मतभेद हो, तो संघ का कानून मान्य समझा जाता है। साधारण विधेयक दोनों में से किसी भी सदन में प्रस्तुत किए जा सकते हैं, परन्तु वित्तीय विधेयक First विधनसभा में ही प्रस्तुत किए जा सकते हैं, विधान-परिषद् में नहीं। साधारण विधेयक दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत होने के बाद ही अधिनियम बनता है। विधान-परिषद् विधेयक को विधानसभा से प्राप्त करने की तिथि से केवल 3 महीने तक के लिए अपने पास रोक सकती है। इस अवधि के बीत जाने पर, उस विधेयक को उसके मूल स्वReseller में राज्यपाल के पास उसकी स्वीकृति के लिए भेज दिया जाता है। विधान-परिषद् द्वारा अस्वीकृत या संशोधित विधेयक को विधानसभा उसके मूल Reseller में फिर से पास करके विधान-परिषद् के पास भेज सकती है, जिसे विधान-परिषद् Single महीने तक रोक सकती है, पर इस अवधि के समाप्त होने पर यदि विधान-परिषद् उसे पास नहीं कर देती तो ऐसे बिल को विधानमण्डल के दोनों सदनों द्वारा स्वीकृत समझा जाता है और उसे राज्यपाल के स्वीकृति के लिए भेज दिया जाता है। इसे पता चलता है कि विधानसभा ही राज्य का विधानमण्डल है।

विधानमण्डल से बिल पास होकर राज्यपाल के पास भेज जाता है। राज्यपाल को निषेधाधिकार (Veto Power) भी प्राप्त है। वह बिल पर Single बार अपनी स्वीकृति देने से इनकार कर सकता है। लेकिन अगर विधनमण्डल उस बिल को दोबारा पास करके भेज दे तो राज्यपाल को अपनी स्वीकृति अवश्य देनी पड़ती है। राज्यपाल किसी बिल को राष्ट्रपति की अन्तिम स्वीकृति के लिए भेज सकता है। कुछ बिल तो अवश्य ही राज्यपाल को राष्ट्रपति के पास भेजने पड़ते हैं।

वित्तीय शक्तियाँ

प्रान्तीय बिल पर राज्य विधानमण्डल का ही अधिकार होता है, लेकिन वास्तव में विधानसभा ही इस अधिकार का प्रयोग करती है। धन बिल केवल First विधानसभा में ही प्रस्तुत Reseller जा सकता है तथा इसे विधान-परिषद् में First प्रस्तुत नहीं Reseller जा सकता। विधानसभा को प्रान्त के वित्त पर पूर्ण अधिकार होता है। उसकी अनुमति के बिना न तो कोई कर लगाया जा सकता है और न Single पैसा भी व्यय Reseller जा सकता है। धन विधेयक स्वीकृति हो जाने के बाद विधान परिषद् के पास भेज दिया जाता है, पर विधान-परिषद् की स्वीकृति आवश्यक नहीं होती। इससे अधिक समय के लिए वह इसे रोक नहीं सकती और न ही रद्द कर सकती है। विधान-परिषद् में पेश होने के 14 दिन बाद राज्यपाल के हस्ताक्षर होने पर कोई भी धन विधेयक विधि बन जाता है, चाहे विधान-परिषद् ने उसे इस अवधि में पास कर दिया हो अथवा न Reseller हो।

कार्यपालिका पर नियन्त्रण

प्रान्तों में संसदीय व्यवस्था के अनुवूफल कार्यपालिका को विधानपालिका के प्रति उत्तरदायी बनाया गया है। वास्तव में कार्यपालिका का यह उत्तरदायित्व विधानसभा के प्रति ही होता है। मन्त्री अपने पद पर तभी तक रह सकते हैं, जब तक उन्हें विधानसभा में बहुमत का विश्वास प्राप्त रहता है। ज्यों ही उन पर से बहुमत का विश्वास हट जाता है, उनके विरुद्व अविश्वास का प्रस्ताव पास कर दिया जाता है तो वह त्याग-पत्र दे देते हैं। विधानसभा कुछ अन्य प्रकार से भी नीति के बारे में जानकारी प्राप्त करने के लिए कोई भी प्रश्न पूछ सकता है, उत्तर को स्पष्ट करने के लिए पूरक प्रश्न भी पूछ जा सकते हैं। ‘काम रोको’ प्रस्ताव पेश करके भी सरकार से स्पष्टीकरण माँगा जा सकता है। अत: कहा जा सकता है कि विधानसभा को कार्यपालिका पर पूरा-पूरा नियन्त्रण प्राप्त है।

अन्य कार्य

  1. राज्य विधानमण्डल का निचला सदन (विधानसभा) राष्ट्रपति के चुनाव में भाग लेता है।
  2. राज्य के संसद के उपर सदन (राज्यसभा) में चुने जाने वाले सदस्य भी विधानसभा के सदस्यों द्वारा निर्वाचित किए जाते हैं।
  3. यद्यपि संविधान में संशोधन करने की शक्ति और उसमें First करने का अधिकार संसद को ही प्राप्त है, फिर भी अनुच्छेद 368 के According संविधान के अनुच्छेद 54, 55, 73, 162 और 241 तथा सर्वोच्च न्यायालय और उच्च न्यायालयों से संबंधित अनुच्छेदों And केन्द्र और राज्यों के संबंधों का निर्धारण करने वाली संवैधानिक व्यवस्थाओं में संसद तभी संशोधन कर पाती है जब ऐसे संशोधन विधेयक को संसद के पास होने के बाद आधे राज्यों की विधानसभाओं ने मंजूर कर लिया हो। विधान-परिषद् को इस मामले में भी कोई शक्ति प्राप्त नहीं है।
  4. विधानसभा यदि विधान-परिषद् को बनाने का प्रस्ताव या समाप्त करने का प्रस्ताव पास करे तो इस प्रस्ताव के आधार पर संसद कानून बनाकर विधान-परिषद् की स्थापना या समाप्ति करती है।

स्थिति

विधानमण्डल की शक्तियाँ तथा कार्यों के इस वर्णन के आधार पर कहा जा सकता है कि अपने राज्य के प्रशासन में इसका बड़ा महत्त्वपूर्ण हाथ है। राज्य विधानमण्डल की शक्तियों का वास्तविक Reseller में प्रयोग विधानसभा ही करती है। विधान-परिषद् इसकी जल्दबाजी पर रोक लगा सकती है पर इसके मार्ग में बाध बनकर खड़ी नहीं हो सकती। इसके द्वारा पास किए किसी साधारण विधेयक को 3 मास तक और वित्तीय विधेयक को केवल 14 दिन तक विधान-परिषद् रोक सकती है। वित्तीय विधेयक First विधानसभा में ही प्रस्तुत किये जा सकते हैं, विधान-परिषद् में नहीं। कार्यपालिका भी केवल इसके प्रति उत्तरदायी है, विधान-परिषद् के प्रति नहीं। सत्य तो यह है कि विधान-परिषद् का अस्तित्व ही विधानसभा की अपनी इच्छा पर निर्भर रहता है। वह जब चाहे उसे बना सकती है और जब चाहे उसे तोड़ सकती है। इसको इतना महत्त्व दिए जाने के कारण यह है कि इसका चुनाव राज्य की जनता द्वारा सार्वजनिक मतदान के आधार पर प्रत्यक्ष Reseller में होता है और यह उसका प्रतिनिधि सदन है। प्रांतीय संवैधानिक व्यवस्था में राज्य विधानमण्डल को महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है परन्तु इसकी शक्ति केन्द्रीय संसद की अपेक्षा काफी कम होती है। इसे केवल राज्यसूची के 66 विषयों तथा सांझी सूची के 47 विषयों पर ही कानून-निर्माण का अधिकार होता है, परन्तु इस पर भी कई Single प्रतिबन्ध हैं।

  1. राज्यसभा 2/3 बहुमत से Single प्रस्ताव पास कर किसी भी राज्यसूची के विषय को राष्ट्रीय महत्व का विषय घोषित कर सकती है तथा इस Reseller में उस विषय पर कानून निर्माण का अधिकार केन्द्रीय संसद को प्राप्त हो जाता है।
  2. साँझी सूची के विषयों पर भी अन्तिम अधिकार संसद को ही प्राप्त होता है।
  3. राज्यपाल इस द्वारा पास किसी भी बिल को राष्ट्रपति की स्वीकृति के लिये Windows Hosting रख सकता है।
  4. कुछ बिल राष्ट्रपति की पूर्व स्वीकृति से ही इसमें पेश किए जा सकते हैं।
  5. इस द्वारा निर्मित कानूनों पर न्यायिक पुनरावलोकन का अधिकार न्यायपालिका को प्राप्त है तथा न्यायपालिका किसी कानून के अधिकार बहुत बढ़ जाते हैं तथा राज्य विधानमण्डल के अधिकार कम हो जाते हैं।
  6. राष्ट्रपति कभी भी संवैधानिक आपातकाल (Art. 356) की घोषण कर इसे भंग कर सकता है।

अत: इन सब प्रतिबन्धों के कारण राज्य विधानमण्डल की स्थिति केन्द्रीय संसद की अपेक्षा कुछ कमजोर है। परन्तु इसका यह तात्पर्य नहीं कि इसकी स्थिति महत्त्वहीन है। राज्य प्रशासन में इसको महत्त्वपूर्ण स्थान प्राप्त है।

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