राजनीतिक आधुनिकीकरण का Means, परिभाषा And विशेषताएं
का कोई अस्तित्व नहीं था। Fightोत्तर अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में विश्व की राजनीतिक व्यवस्थाओंं का तुलनात्मक अध्ययन करने के लिए
अनेक दृष्टिकोणों व अवधारणाओं का जन्म हुआ। उन अवधारणाओं में से Single अवधारणा राजनीतिक आधुनिकीकरण की संकल्पना
पर आधारित है और उसका Single भाग है। यह अवधारणा राजनीतिक विकास व पाश्चात्यकरण से बिल्कुल भिन्न है। राजनीति विज्ञान
में राजनीतिक आधुनिकीकरण की अपनी विशेष पहचान है। शक्तियों का केन्द्रीयकरण, राज्य का अधिकाधिक समाज में प्रवेश, सत्ता
का स्थानान्तरण, बढ़ती जनसहभागिता और नौकरशाही का व्यापक आधार इसकी प्रमुख विशेषताएं हैं तथा अभिजन वर्ग और सरकार
राजनीतिक आधुनिकीकरण के प्रमुख अभिकरण हैं।
राजनतिक आधुनिकीकरण का Means और परिभाषा
राजनीतिक आधुनिकीकरण की अवधारणा आधुनिकीकरण की अवधारणा पर आधारित है। आधुनिकीकरण की धारणा को समझकर
ही राजनीतिक आधुनिकीकरण को समझा जा सकता है। आधुनिकीकरण की धारणा Single बहुत व्यापक और विशाल धारणा है। इसका
सम्बन्ध जीवन के हर क्षेत्र में होने वाले परिवर्तनों से है। यह राजनीतिक व्यवस्था, उत्पादन प्रणाली, सामाजिक व धार्मिक क्षेत्र, शैक्षिक
तथा सांस्कृतिक क्षेत्र All से सम्बन्धित है। विकासशील देशों के सन्दर्भ में यह सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन की प्रक्रिया का नाम
है। यह प्राचनी से नवीनता की ओर समाज का प्रस्थान है। यह Single बहुमुखी प्रक्रिया है जो आर्थिक, सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक,
शैक्षिक तथा राजनीतिक All क्षेत्रों में दृष्टिगोचर होती है। पर्यावरण And प्रकृति पर बढ़ता हुआ नियन्त्रण, तकनीकी विकास,
औद्योगिकरण, शहरीकरण, बढ़ती जनसहभागिता, बढ़ती राष्ट्रीय व प्रति व्यक्ति आय, संचार साधनों का विकास, सामाजिक
गतिशीलता, समानता के सिद्धान्त का विकास तथा राष्ट्रीय Singleता के प्रति निष्ठा आदि आधुनिकीकरण की प्रमुख विशेषताएं हैं। लरनर
ने विवेकपूर्ण परिवर्तन की प्रक्रिया को ही आधुनिकीकरण का नाम दिया है। स्मैलर ने किसी राज्य की आर्थिक उन्नति को ही आधुनिकीकरण माना है। हटिंगटन के According-”आधुनिकीकरण Single बहुदलीय प्रक्रिया है जो Human की गतिविधियों व विचारों के All
क्षेत्रों में परिवर्तन से सम्बन्धित है।” कलोडवेल्च के According- “आधुनिकीकरण वह प्रक्रिया है जो साधनों के विवेकपूर्ण उपयोग पर
आधारित होती है और जिसका उद्देश्य आधुनिक समाज की स्थापना कहा जा सकता है।” इस प्रकार कहा जा सकता है कि
आधुनिकीकरण Single जटिल प्रक्रिया है। जिसका सम्बन्ध जीवन के All क्षेत्रों में होने वाले विकास से है।
उपरोक्त विवेचन से स्पष्ट हो जाता है कि राजनीतिक आधुनिकीकरण, आधुनिकीकरण का Single पक्ष है जिसका सम्बन्ध आधुनिकीकरण
के राजनीतिक पक्ष से है। कौलमैन के According, “आधुनिकीकरण राजनीतिक पक्ष संक्रान्तिकालीन समाजों की राजव्यवस्था में होने
वाले संCreationत्मक तथा सांस्कृतिक परिवर्तनों का समुच्चय है। इस प्रक्रिया में राजव्यवस्था, उसकी उप-व्यवस्थाएं, राजनीतिक
संCreationएं, राजसंस्कृति, उनकी प्रक्रियाएं आदि शामिल होती हैं।” मोर्स ने इसे विकास तथा क्रान्ति के बीच चलने वाली प्रक्रिया बताया
है। साधारण Reseller में तो समाज मेंं सामाजिक संचालन और आर्थिक विकास के परिणामस्वReseller हुए राजनीतिक परिवर्तनों को
राजनीतिक आधुनिकीकरण का नाम दे दिया जाता है। कार्ल डॅयूश ने राजनीतिक आधुनिकीकरण का Means सहभागिता या गतिशीलता
से लिया है। जेम्स एस0 कोलमैन के According-”राजनीतिक आधुनिकीकरण ऐसे संस्थागत ढांचे का विकास है जो पर्याप्त लचीला
और इतना शक्तिशाली हो कि उसमें उठने वाली मांगों का मुकाबला Reseller जा सके।” राजनीतिक दृष्टि से आधुनिक समाज वही
हो सकता है जिसमें व्यक्ति का अभिज्ञान राजनीतिक विकास और इसके विभिन्न पक्षों से होने लगता है। अत: राजनीतिक
आधुनिकीकरण, राजनीतिक विकास से अधिक व्यापक अवधारणा है और यह पाश्चात्यीकरण से अलग अवधारणा है, क्योंकि यह
पाश्चात्यीकरण के विचरित मूल्य युक्त व उद्देश्य युक्त परिवर्तन पर आधारित है।
राजनीतिक आधुनिकीकरण की विशेषताएं
राजनीतिक आधुनिकीकरण के Means व परिभाषा से स्पष्ट हो जाता है कि विशेष लक्षणों वाली राजनीतिक व्यवस्था को ही राजनीतिक
दृष्टि से आधुनिकीकृत कहा जा सकता है। लुसियन पाई ने राजनीतिक कार्यों का विविधीकरण तथा विशेषीकरण, समानता,
राजनीतिक प्रक्रिया का लौकिकीकरण तथा परिवर्तन की क्षमता से युक्त राजनीतिक व्यवस्था को आधुनिक माना है। आइजेन्स्टेड
ने भी राजनीतिक आधुनिकीकरण की अलग विशेषताएं बताई हैं। उसकी दृष्टि में राजनीतिक व्यक्ति, कार्यों और संस्थाओं में उच्च
मात्रा का विभिन्नीकरण तथा केन्द्रीयकृत And Singleीकृत शासन व्यवस्था की विकास, केन्द्रीय प्रशासनिक And राजनीतिक संगठनों की
गतिविधियों का विस्तार तथा उनकी All सामाजिक क्षेत्रों में क्रमिक व्याप्ति,समाज की अन्तर्निहित शक्ति का अधिकाधिक समूहों तथा
व्यस्क नागरिकों में फैलाव आदि राजनीतिक आधुनिकीकरण की विशेषताएं हो सकती हैं। कार्ल डयूश तथा ऑमण्ड-पॉवेल ने भी
राज्य की लौकिक सत्ता की वृद्धि तथा शक्ति का बढ़ता केन्द्रीयकरण, संCreationत्मक विभेदीकरयण, बढ़ती जनसहकारिता, नवीन
सामाजिक संघटन, कार्यों का विशेषीकरण, अभिजन वर्ग की उपस्थिति, समान सहभागिता, हित समूहों व राजतनीतिक दलों के माध्यम
से राजनीतिक मांगों का हित स्वResellerण को राजनीतिक आधुनिकीकरण विशेषताएं बताया है। इसी तरह राबर्ट ई0 वार्ड तथा डी0ए0
रस्तोव ने भी अत्यधिक विभेदीकृत Kingीय संगठन, Kingीय संCreationओं में Singleीकरण व सामंजस्य, धर्मनिरपेक्ष प्रक्रिया, व्यक्ति की
अति विस्तृत निष्ठा, राजनीति में जनसाधारण की सक्रिय सहभागिता, समानता का सिद्धान्त तथा समता व योगयताओं के आधार पर
भूमिकाओं का वितरण को राजनीतिक आधुनिकीकरण की विशेषताएं माना है। इन All विद्वानों की बात को ध्यान में रखकर
राजनीतिक आधुनिकीकरण की विशेषताएं हो सकती हैं :-
शक्तियों का केन्द्रीयकरण
राजनीतिक आधुनिकीकरीण की महत्वपूर्ण विशेषता यह है कि इसमें Human जीवन की
गतिविधियों से सम्बन्धित सारी शक्तियां Single राज्य या व्यवस्था में केन्द्रित होने लग जाती हैं। इसका Means यह है कि राजनीतिक
व्यवस्था ही अधिकाधिक शक्तियों को नियामक व नियन्त्रक बनने लग जाती हैं। इसका प्रमुख कारण तकनीकी विकास,
अन्तर्राष्ट्रीय सम्बन्धों में बदलाव, संचार साधनों में विकास तथा प्रतिरक्षा की Need का बढ़ना है। इसमें व्यक्ति के जीवन
का राजनीेतिक पक्ष सर्वोपरिता की तरफ बढ़ना स्वाभाविक ही है। ऐसी परिस्थितियां आधुनिकीकरण के सर्वथा अनुकूल होती
है। इसका Means यह नहीं है कि राजनीतिक शक्तियों के विकेन्द्रीयकरण की कोई व्यवस्था नहीं रहती। इसमें तो राजनीतिक
विकेन्द्रीकरण के रहते हुए भी राजनीतिक शक्ति ही महत्वपूर्ण और अन्य समस्त प्रकार की आर्थिक व सामाजिक शक्तियों की
नियामक व संचालक बनी रहती है।
समाज में राज्य की अधिकाधिक पहुंच
आधुनिक युग पुलिस राज्यों का न होकर कल्याणकारी राज्यों का है। यातायात
व संचार के साधनों ने राज्य की सकारात्मक भूमिका में वृद्धि की है। आज सरकार जनकल्याण में अधिक रुचि लेने लगी है।
आज सरकार का कार्य जनता से लेना ही नहीं है, बल्कि उसे कुछ देना भी है। जब सरकार की जनता तक पहुंच वृद्धिपरक
होती है, तभी आधुनिकीकरण की स्थिति मानी जाती है। लोक कल्याण को बढ़ावा देने वाली सरकारें ही राजनीतिक
आधुनिकीकरण का प्रतिबिम्ब है। आज यह माना जाने लगा है कि आज का राज्य या सरकार की पहुंच जनता तक सम्भव
भी है और जरूरी भी है। लोक-कल्याणकारी राज्यों के विचार ने आज सरकारों के कार्यों को इतना अधिक बढ़ा दिया है
कि उसका समाज में प्रवेशन होने लगा है। आज सरकार व राज्य वहीं कार्य करते हैं जो जनता मांग करती है। आज की
सरकारें जन-सरकारें हैं और वे जन-इच्छा की ही प्रतिनिधि मानी जाती हैं। संचार के साधनों के विकास के परिणामस्वReseller
सरकार की गतिविधियों के क्षेत्र का विस्तार हुआ है। इसी कारण सरकार व राज्य समाज में अपनी इतनी अधिक पहुंच बनाने
में कामयाब हो चुके हैं कि मनुष्य का सम्पूर्ण सामाजिक व आर्थिक जीवन भी राजनीतिक शक्ति व सत्ता द्वारा संचालित होने
लगा है। यह आधुनिकीकरण की प्रमुख निशानी है।
केन्द्र और परिसर के बीच बढ़ती हुई अन्त:क्रिया
आधुनिक राजनीतिक समाजों में केन्द्र और परिसर की अन्त:क्रिया
बहुत बढ़ने लगती है। इस बढ़ती हुई अन्त:क्रिया का Means यह है कि राजनीतिक शक्ति के विभिन्न केन्द्र आपस में इतने अधिक
अन्त:क्रियाशील हो जाते हैं कि दोनों स्तर के केन्द्र निरन्तर सम्प्रेषण के माध्यमों से जुड़ जाते हैं। अगर इसको हम राजनीतिक
आधुनिकीकरण के First लक्षण ‘राज्य में शक्ति का केन्द्रीयकरण’ से सम्बन्धित करके देखें तो यह स्पष्ट हो जाता है कि
राजनीतिक आधुनिकीकरण दो तरफा चलने वाली प्रक्रिया है। यहां पर केन्द्र का Means तो राजनीतिक व्यवस्था से है और परिसर
का Means समाज से है। केन्द्र तथा परिसर अथवा राजनीतिक व्यवस्था तथा समाज से है। केन्द्र तथा परिसर अथवा राजनीतिक
व्यवस्था तथा समाज में इस अन्त:क्रिया या पारस्परिता को बढ़ाने के राजनीतिक दलों, हित समूहों तथा नौकरशाही का बहुत
अधिक योगदान रहता है। इस बढ़ती हुई पारस्परिकता वाला समाज व राजनीतिक व्यवस्था आधुनिकीकरण की निशानी है।
सत्ता का स्थानान्तरण
राजनीतिक आधुनिकीकरण की अवस्था में सत्ता के परम्परागत स्रोत निर्बल होने लगते हैं और उनका
स्थान नए स्रोत लेने लगते हैं। इसके अन्तर्गत प्राचीन राजनीतिक, सामाजिक, आर्थिक आदि सत्ताओं का स्थान राष्ट्रीय
राजनीतिक सत्ता द्वारा ले लिया जाता है। प्राचीन समाज में राजनीतिक सत्ता केस्रोत King महाKing, कबीलों के मुखिया,
धार्मिक नेता व पारिवारिक समूह थे और वे ही जनता की आस्था का केन्द्र थे, लेकिन All नवोदित राष्ट्रों में स्वतन्त्रता के
बाद से स्रोत निर्बल होने लगे और उनके स्थान पर नई राजनीतिक सत्ता के प्रति हो गई, क्योंकि इसका स्वReseller अधिक से
अधिक कल्याणकारी दिखाई देने लगा। हंटिगटन ने लिखा है-”आधुयनिक राजनीतिक समाज में धार्मिक, परम्परागत,
पारिवारिक व जातीय सत्ताओं की जगह Single लौकिकीकृत और राष्ट्रीय रजानीतिक सत्ता के द्वारा ले लिया जाता है।” अत:
सत्ता का स्थानान्तरण भी आधुनिकीकरण की महत्वपूर्ण विशेषता है।
राजनीतिक संस्थाओं का विभिन्नीकरण तथा विशेषीकरण
राजनीतिक आधुनिकीकरण की अवस्था में राजनीतिक
संस्थाओं का विभिन्नीकरण And विशेषीकरण भी होना आवश्यक माना जाता है। विकासशील देशों में विभिन्नीकरण की समस्या
तो नहीं है, लेकिन विशेषीकरण की समस्या जरूरी है। इसी कारण विकासशील देश संक्रमकालीन दौर से गुजर रहे हैं। वे
निरन्तर आधुनिक समाज की तरफ बढ़ने को प्रयासरत् हैं। आज सरकार का स्वReseller कल्याणकारी होने के कारण सरकारों
के कार्यों में आई जटिलता के लिए विभिन्नीकरण तथा विशेषीकरण का होना Indispensable माना जाने लगा है। संस्थाओं के
विभेदीकरण व विशेषीकरण के बिना सरकारों द्वारा अपने उत्तरदायित्वों का निर्वहन करना कठिन काम है। विभेदीकरण और
विशेषीकरण का साथ साथ होना भी उतना ही आवश्यक है, जितना इनका राजनीतिक व्यवस्था में अस्तित्वान होना। भारत
जैसे देशों में विशेषीकरण व विभिन्नीकरण के टूटे हुए मेल के कारण ही आधुनिकीकरण की प्रक्रिया अधर में लटकी हुई है। अत:
राजनीतिक आधुनिकीकरण के लिए राजनीतिक संस्थाओं का विभिन्नीकरण व विशेषीकरण Single साथ होना आवश्यक है।
बढ़ती राजनीतिक जनसहभागिता
राजनीतिक आधुनिकीकरण का पता इस बात से भी लगाया जा सकता है कि जनता
को राजनीतिक संस्थाओं में सहभागिता के अवसर कहां तक प्राप्त हैं। सर्वसाधारण की राजनीतिक सहभागिता के बिना
आधुनिकीकरण की बात करना निरर्थक है। विकासशील देशों में जनसहभागिता के अवसर तो जनता को प्राप्त होते ही रहते
हैं; लेकिन जनता प्राय: इस काम में उदासीनता ही दिखाती है। लोग राजनीति के प्रति इस सीमा तक लगाव नहीं रखते, जितना
आधुनिकीकरण के लिए आवश्यक है। जन-परियोजन के बिना राजनीतक आधुनिकीकरण का लक्ष्य प्राप्त नहीं Reseller जा
सकता। आधुनिक राजनीतिक व्यवस्थाएं लाभों का वितरण समाज के निचले स्तर तक पहुंचाने का लक्ष्य रखती है, लेकिन
जन-सहभागिता के अभाव में वे लक्ष्य धरे के धरे रह जाते हैं। कुछ देशों में लोगों की राजनीति के प्रति उदासीनता इस सीमा
तक पहुंच जाती है कि उससे राजनीतिक व्यवस्था को पतन की तरफ धकेला जाने लगता है। भारत में मताधिकार की व्यवस्था
द्वारा जनसहभागिता का होना आवश्यक है जो अपने उत्तरदायित्वों को समझते हुए राजनीतिक व्यवस्था के विकास में योगदान
दे। विकासशील देशों में रहने वाले राजनीतिक अस्थायित्व का यही कारण है कि जनता राजनीतिक Reseller से जागरूक नहीं
है। यदि समाज का बुद्धिजीवी वर्ग राजनीति के प्रति उदासीन रहेगा तो निष्क्रिय जनसहभागिता राजनीतिक व्यवस्था को पतन
के गर्त में धकेलने वाली हो सकती है। इसलिए राजनीतिक आधुनिकीकरण लाने व राजनीतिक व्यवस्था को विघटन से बचाने
के लिए जनता की राजनीतिक व्यवस्था के प्रति प्रबुद्ध निष्ठा का होना अनिवार्य है। प्रबुद्ध जनसहभागिता के बिना राजनीतिक
आधुनिकीकरण सम्भव नहीं है।
जनता का राजनीतिक व्यवस्था से निर्बाध लगाव
राजनीतिक आधुनिकीकरण के लिए लोगों का राजनीतिक व्यवस्था
के प्रति लगाव का होना जरूरी है। जिन देशों में जनता अपने राष्ट्रीय फर्ज के प्रति उदासीन हैं, वहां पर कभी आधुनिकीकरण
नहीं आ सकता। राष्ट्रीय अभिज्ञान और राष्ट्रीयता के अभाव में राजनीतिक व्यवस्था का विकास कभी नहीं हो सकता।
राजनीतिक व्यवस्था के प्रति अपनापन लाकर ही राजनीतिक व्यवस्था का विकास सम्भव है। इसके लिए व्यक्तियों की सोच
को बदलना जरूरी है। इसके बिना व्यक्ति की राजनीतिक व्यवस्था के बिना न तो निष्ठा आ सकती है और न ही राष्ट्रीयता
की भावना का विकास हो सकता है। जब राजनीतिक व्यवस्था में All वर्गों के लोग राष्ट्रीय अभिज्ञान व राष्ट्रीयता की भावना
से ओ्रत-प्रोत होकर चलते हैं तो उससे Single ऐसी बाध्यकारी धारा प्रवाहित होने लगती है कि राजनीतिक व्यवस्था स्वत: ही
आधुनिकीकरण की तरफ बढ़ने लगती है।
व्यापक स्तर पर आधारित नौकरशाही
भी जरूरी है। आज राजनीतिक व्यवस्था में सरकारों के कार्यों में इतनी अधिक वृद्धि होती जा रही है कि सीमित आधार वाली
नौकरशाही द्वारा उन्हें पूरा करना असम्भव है। नए दायित्वों को सरकार के पास आ जाने से अनेक देशों में अधिक से अधिक
लोकसेवकों की भर्ती की जाने लगी है। इसके लिए समाज के All वर्गों के हितों का ध्यान रखा जाता है ताकि इसका आधार
व्यापक बना रहे। लेकिन भारत जैसे देशों में नौकरशाही का आधार उस स्तर तक नहीं पहुंचा पाया है जो आधुनिकीकरण के
लिए आवश्यक है। आज भारत में नौकरशाही की निरंकुशता, बढ़ता हुआ भ्रष्टाचार, दो तिहाई नौकरशाहों का ऊपर के तबके से
होना इसकी व्यापक आधार में बाधा दर्शाता है। अत: नौकरशाही का व्यापक आधार ही आधुनिकीकरण की प्रमुख पहचान है।
समानता का सिद्धान्त आदि को भी राजनीतिक आधुनिकीकरण के लिए आवश्यक माना जाता है। जिस समाज में राजनीतिक निर्णय
तर्क-वितर्क के आधार पर लिए जाते हैं और धर्म के प्रति निरपेक्ष दृष्टिकोण अपनाया जाता है, वह राजनीतिक समाज सदैव ही
आधुनिक समाज माना जाता है। इसी तरह कानून के सामने समानता, नागरिक स्वतन्त्रताएं व समानता का अधिकार वाली राजनीतिक
व्यवस्था भी आधुनिक ही होती है।
राजनीतिक आधुनिकीकरण की उपरोक्त All विशेषताओं को तीन विशेषताओं में समेटा जा सकता है – (i) बुद्धिसंगत या तर्कपूर्ण
सत्ता (ii) विभेदीकृत राजनीतिक संCreationएं तथा (iii) राजनीतिक सहभागिता।
राजनीतिक आधुनिकीकरण को प्रभावित करने वाले तत्व
राजनीतिक आधुनिकीकरण की प्रक्रिया Single जटिल प्रक्रिया है। इसमें अनेक अभिकरणों, माध्यमों व बलों का योगदान निहित है।
इन All की सूची बनाना कठिन है, क्योंकि से तत्व प्रत्येक राजनीतिक व्यवस्था में अलग-अलग भूमिका अदा करते हैं। इनका सम्बन्ध
राजनीतिक व्यवस्था के आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक, आर्थिक और ऐतिहासिक पक्षों से भी होता है। Single जैसी शासन प्रणाली
होने के बावजूद भी राजनीतिक व्यवस्था दो अलग-अलग देशों मेंं अलग-अलग दिशा में राजनीतिक आधुनिकीकरण की तरफ भी
जा सकती है। इसके लिए राजनीतिक आधुनिकीकरण को प्रभावित करने वाले तत्व ही उत्तरदायी हैं। ये तत्व हैं :-
राजनीतिक संCreationएं
राजनीतिक संCreationएं भी राजनीतिक आधुनिकीकरण को बहुत अधिक प्रभावित करती हैं। जिन
राजनीतिक संCreationओं का स्वReseller परम्परावादी होता है, वहां राजनीतिक आधुनिकीकरण की गति धीमी रहती है। नेपाल में
परम्परागत राजनीतिक संCreationओं के कारण ही वहां पर राजनीतिक आधुनिकीकरण की गति धीमी है। इसके विपरीत भारत
में राजनीतिक संCreationओं की नवीन प्रकृति आधुनिकीकरण की दिशा में राजनीतिक व्यवस्था को ले जा रही है। भूटान तथा
मध्यपूर्व के देशों में पाया जाने वाला राजनीतिक संCreationओं का परम्परागत Reseller आज भी राजनीतिक आधुनिकीकरण में बाधक
है। इसलिए कहा जा सकता है कि जो राजनीतिक व्यवस्था परम्परागत राजनीतिक संCreationओं और बन्धनों से जकड़ी हो,
वहां पर आधुनिकीकरण की प्रक्रिया देर से आती है। अमेरिका की रजानीतिक व्यवस्था में इसका अभाव होने के कारण वहां
तीव्रता से राजनीतिक आधुनिकीकरण हुआ है।
राजनीतिक संस्कृति
राजनीतिक संस्कृति भी राजनीतिक आधुनिकीकरण की मात्रा को निर्धारित करती है। पराधीन
अड़ियल प्रकार की संस्कृति राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक समाजीकरण का मार्ग रोककर उसे आधुनिकता की तरफ जाने
से रोकती है। राजनीतिक आधुनिकीकरण पर दीर्घकालीन प्रभाव राजनीतिक संस्कृति का ही पड़ता है। परम्परागत संस्कृति
वाले देशों में राजनीतिक आधुनिकीकरण का मार्ग अधिक कठिन होता है, क्योंकि जनता परम्परागत नेतृत्व व संCreationओं से
चिपकी रहती है। भारत में स्वतन्त्रता के समय ‘हिन्दू कोड बिल’ की कुछ व्यवस्थाओं को इस कारण वापिस लेना पड़ा, क्योंकि
जनता उनके पक्ष में नहीं थी। ऐसा पराधीन व परम्परागत राजनीतिक संस्कृति के कारण ही हुआ। इसलिए राजनीतिक संस्कृति
का स्वReseller भी राजनीतिक आधुनिकीकरण का महत्वपूर्ण नियामक माना जाता है।
ऐंतिहासिक काल-नियति
राजनीतिक आधुनिकीकरण ऐतिहासिक काल-नियति के सन्दर्भ में ही सम्भव हो सकता है।
किसी भी राजनीतिक परिवर्तन को History की काल-नियति से अलग करके देखना असम्भव है। किसी भी कार्य को करने
के लिए उचित समय होता है। उस समय के विपरीत Reseller गया कार्य राजनीतिक-व्यवस्था के पतन का कारण बन जाता
है। उदाहरण के लिए यदि भारत को स्वतन्त्रता 1857 में मिल जाती तो संविधान निर्माता और उनका दृष्टिकोण बिल्कुल अलग
होता जो 1947 में था। यदि भारत का संविधान 1940 के स्थान पर 1980 में बनाया जाता तो भी परिस्थितियां अलग होने
के कारण संविधान का स्वReseller अलग ही होता। इसी तरह पंचायती राज अधिनियम 1992 की बजाय 1948 में बनाया होता
तो उसका Reseller अलग ही होता। इसलिए राष्ट्रीय History और विश्व History की धाराओं का समय-सन्दर्भ राजनीतिक
संस्थाओं को आधुनिक बनाने के प्रयास में बाधक व सहायक दोनों ही हैं। History की धारा से प्रतिकूल जाकर कोई भी
परिवर्तन असम्भव है। साम्राज्यवाद का Destroy होना उसकी ऐतिहासिक अप्रासांगिकता ही थी। अत: ऐतिहासिक काल-नियति
भी राजनीतिक आधुनिकीकरण की निर्धारक हैं।
राजनीतिक नेतृत्व
राजनीतिक नेतृत्व की प्रकृति भी राजनीतिक आधुनिकीकरण को प्रोत्साहित या अवरोधित करने वाली
दोनों होती हैं। राजनीतिक आधुनिकीकरण की प्रवृत्ति राजनीतिक नेतृत्व में अभिमुखीकरण पर आधारित है। यदि किसी देश
के राजनेता राजनीतिक आधुनिकीकरण के लिए प्रयासरत् हैं तो वहां पर राजनीतिक आधुनिकीकरण को आने से रोका नहीं
जा सकता। बंगला देश में राष्ट्रपति शेख मुजीबुर्रहमान ने राजनीतिक दलों पर प्रतिबन्ध तथा संसदीय शासन प्रणाली के स्थान
पर अध्यक्षात्मक शासन प्रण्एााली को अपनाकर अपने आधुनिकीकरण के पक्ष में विचारों का ही परिचय दिया था। पाकिस्तान
में 1962 में मोहम्मद अय्यूबखां द्वारा सैनिक शक्ति के आधार पर सत्ता हथिया लेना और फिर नया संविधान लागू करके चुनाव
कराना राजनीतिक आधुनिकीकरण का ही प्रयास कहा जा सकता है। चीन में माओत्से-तुंग द्वारा सांस्कृतिक क्रान्ति को सफल
बनाना राजनीतिक आधुनिकीकरण का ही प्रयास था। इसी तरह रूस में लेनिन द्वारा साम्यवादी शासन स्थापित करना
राजनीतिक आधुनिकीकरण का ही प्रयास था। इसके विपरीत आज भी एशिया व अफ्रीका में ऐसे देश हैं, जहां राजनीतिक
नेतृत्व की उदासीनता के कारण ही राजनीतिक आधुनिकीकरण का मार्ग अवरोधित हो रहा है। आज पाकिस्तान में तानाशाही
King परवेज मुशर्रफ द्वारा सत्ता पर अपना कब्जा बनाए रखना राजनीतिक आधुनिकीकरण के मार्ग में बाधा है। इस प्रकार
की तानाशाही व्यवस्ताएं कई देशों में हैं। इराक व अफगानिस्तान से सैनिक सत्ता को उखाड़कर नए शासन की स्थापना का
ध्येय वहां पर राजनीतिक आधुनिकीकरण लाना ही हो सकता है।
राजनीतिक व्यवस्था की प्रकृति
लोकतन्त्रीय शासन व्यवस्था वाली राजनीतिक व्यवस्था हमेशा ही राजनीतिक आधुनिकीकरण की तरफ बढ़ाने के प्रयास करती
है। इसके विपरीदत सर्वाधिकारवादी या निरंकुश राजनीतिक व्यवस्था का प्रयास हमेशा ही राजनीतिक आधुनिकीकरण के
मार्ग में बाधा पहुंचाना होता है। लोकतन्त्रीय व्यवस्था में तो निवेश या निर्गत सामाजिक व्यवस्था से ही आते-जाते हैं। इसी
कारण जनता व सरकार का निरन्तर सम्पर्क बना रहता है। इन व्यवस्थाओं में बढ़ती जन-सहभागिता भी राजनीतिक
आधुनिकीकरण की तरफ से जाने वाली होती है। इसके विपरीत सर्वाधिकारवादी व निरंकुश शासन व्यवस्थाएं राजनीतिक
आधुनिकीकरण के मार्ग में बाधा ही समझी जानी चाहिए।
काल-नियति, राजनीतिक नेतृत्व की प्रकृति तथा राजनीतिक व्यवस्था की प्रकृति राजनीतिक आधुनिकीकरण के प्रमुख नियामक
हैं। विकासशील देशों में परम्परागत राजनीतिक संस्कृति व राजनीतिक नेतृत्व की उदासीनता के कारण राजनीतिक आधुनिकीकरण
का मार्ग बाधित हो रहा है। आज विश्व में अनेक सर्वाधिकारवादी प्रकृति की राजनीतिक व्यवस्थाएं विद्यमान हैं जो राजनीतिक
आधुनिकीकरण के भविष्य को अन्धकारमय बना रही है। जब तक विश्व से तानाशाही शासन व्यवस्थाओं को उखाड़कर उन्हें जनप्रिय
व्यवस्था में नहीं बदला जा सकता, तब तक राजनीतिक आधुनिकीकरण का विश्वव्यापी Reseller हमारे सामने नहीं आ सकता।
राजनीतिक आधुनिकीकरण के अभिकरण
राजनीतिक आधुनिकीकरण Single जटिल प्रक्रिया है। इसमें अनेक अभिकरणों की भूमिका महत्वपूर्ण रहती है। इस प्रक्रिया में
ये अभिकरण ही अपना महत्वपूर्ण योगदान देते हैं :-
अभिजन वर्ग
किसी भी राजनीतिक व्यवस्था के संचालन में अभिजनों की सक्रिय भूमिका रहती है। समाज की भौतिक
परिस्थितियों, परम्परागत मूल्यों तथा मान्यताओं को नए राजनीतिक परिवेश व आकांक्षाओं के सन्दर्भ मे समाज का अभिजन
वर्ग ही उन्हें राजनीतिक आधुनिकीकरण की दिशा में प्रवृत्त करता है। अभिजन वर्ग समाज की परम्परागत मान्यताओं को
आधुनिकता के रंग में रंगने का प्रयास करता है। विकासशील देशों में इस वर्ग ने पश्चिम की राजनीतिक संCreationओं को अपनाकर
अपनी राष्ट्रीय Needओं के अनुReseller ढालने का महत्वपूर्ण कार्य Reseller है। इन्होंने अपनी बौद्धिकता और सृजनशीलता के
बल पर राजनीतिक आधुनिकीकरण के नये आयाम स्थापित किए हैं। सत्ता के वास्तविक धारक होने के कारण इस वर्ग की
ही भूमिका राजनीतिक आधुनिक के अनुकूल रही है। राजनीतिक व्यवस्था के लक्ष्यों, गन्तव्यों और साध्यों के विकल्प इसी वर्ग
द्वारा सुझाए जाते हैं ताकि राजनीतिक शक्ति को संCreationत्मक स्वReseller दिया जा सके। अभिजनवर्ग ही बदलती सामाजिक
Needओं को पहचानकर उनका राजनीतिक व्यवस्था में अनुसरण करके राजनीतिक व्यवस्था को स्थायित्व प्रदान करता
है। जिन देशों में अभिजन वर्ग ने सामाजिक परिवर्तन के प्रति अरुचि दिखाई है, वहां की राजनीतिक व्यवस्थाओं का पतन हुआ
है। इसी कारण अभिजन वर्ग को राजनीतिक व्यवस्था की जीवन शक्ति भी कहा जाता है। इस वर्ग की राजनीतिक व्यवस्था
में भूमिका नकारात्मक व सकारात्मक दोनों हो सकती हैं। अत: राजनीतिक आधुनिकीकरण को गति देने वाला प्रमुख अभिकरण
अभिजन वर्ग ही है।
सरकार
सरकारों की भी राजनीतिक आधुनिकता के अभिकरण के Reseller में विशेष भूमिका है। राजनीतिक व्यवस्था के All
कार्यों की शुरुआत सरकारों के द्वारा ही होती है। आधुनिक युग में सरकारों का स्वReseller राजनीतिक आधुनिकीकरण लाने में
अधिक सक्षम है, क्योंकि सरकारों के पास बाध्यकारी शक्ति होती है। सरकार की इस शक्ति के कारण राजनीतिक
आधुनिकीकरण के All कार्य प्राथमिकता प्राप्त कर सकते हैं। सरकारें ही आधुनिकीकरण की प्रवृत्तियों को पहल व प्रश्रय
देती हैं और उनका नेतृत्व करती हैं। सरकारें ही आर्थिक, सामाजिक, सांस्कृतिक व राजनीतिक क्षेत्रों में प्रगति के द्वार खोलकर
राजनीतिक आधुनिकीकरण की पृष्ठभूमि तैयार करती है। राजनीतिक सहभागिता के नए आयाम सरकारों की इच्छा के ही
प्रतिफल हैं। प्रतिनिधि संस्थाओं में जनता की बढ़ती भागीदारी आज राजनीतिक शक्ति की इच्छा का ही परिणाम है। आधुनिक
सरकारों ही कल्याणकारी कार्यों को शुरु करके राजनीतिक आधुनिकीकरण की दिशा निर्धारित करती है। अत: शासन प्रणाली
या सरकारें भी राजनीतिक आधुनिकीकरण की प्रमुख अभिकरण हैं।
राजनीतिक दल
राजनीतिक आधुनिकीकरण के अभिकरण के Reseller में राजनीतिक दलों की भूमिका भी महत्वपूर्ण होती है।
राजनीतिक व्यवस्था में राजनीतिक दल ऐसे अनेक कार्य करते हैं जिससे राजनीतिक आधुनिकीकरण को बढ़ावा मिलता है।
राजनीतिक व्यवस्था का कुशल संचालन राजनीतिक दलों की भूमिका पर ही निर्भर करता है। नियम-निर्माण, प्रयोग एवे अक्तिानिर्णय में राजनीतिक दल अपनी सकारात्मक भूमिका अदा करते हैं। सर्वाधिकारवादी देशों में तो साम्यवादी दल ही राजनीतिक
आधुनिकीकरण का नियामक होता है। राष्ट्रीय हित के अनुकूल विचारधारा विकसित करने तथा जनता में राजनीतिक चेतना
उत्पन्न करने में राजनीतिक दलों का ही महत्वपूर्ण योगदान रहता है। यही राजनीतिक चेतना जनसहभागिता में वृद्धि करके
लोकतन्त्रीय देशों में राजनीतिक आधुनिकीकरण का मार्ग प्रशस्त करती है।
विचारधारा
किसी भी राजनीतिक समाज को Singleता के सूत्र में बांधने के लिए विचारधारा महत्वपूर्ण कार्य करती है।
विचारधारा को अमली जामा पहचाने का कार्य राजनीतिक दल व हित समूह करते हैं। विचारधारा के आधार पर सामाजिक
परिर्तन की प्रक्रिया को दिशा देने और प्राथमिकताओं का निर्धारण Reseller जाता है। राजनीतिक दलों के माध्यम से विचारधारा
राजनीतिक आधुनिकीकरण का अभिकरण बन जाती है। इससे व्यक्तियों की अभिवृ़ित्तयों में आसानी से परिवर्तन Reseller लाया
जा सकता है। राष्ट्रीय अभिज्ञान, राष्ट्रीय Singleता, राजनीतिक सहभागिता व राष्ट्रीय हित के प्रति निष्ठा उत्पन्न करने में
विचारधारा का विशेष योगदान होता है। इस वैचारिक परिवर्तन को बुद्धिजीवी वर्ग ही विशेष दिशा प्रदान करता है ओर उसे
राजनीतिक व्यवस्था में स्थान दिलाता है। बुद्धिजीवी वर्ग की चेतना का प्रतिफल राजनीतिक विचारधारा राजनीतिक दलों के
माध्यम से राजनीतिक आधुनिकीकरण का महत्वपूर्ण अभिकरण बन जाती है।
संचार साधन
आधुनिक समय में जनसंचार के साधन जनता को राजनीतिक गतिविधियों से परिचित कराके उनको
राजनीतिक समाजीकरण की तरफ मोड़ते हैं। राजनीतिक समाजीकरण की अवस्था में पहुंचकर जनता राजनीतिक आधुनिकीकरण
की गतिविधियों की Need समझने लगती है और राजनीतिक आधुनिकीकरण की प्रक्रिया को गति मिलती है।
वैज्ञानिक And शैक्षिक विकास
की प्रक्रिया को तेज Reseller है। तकनीकी विकास का परिणाम संचार साधन आज राजनीतिक व्यवस्था में Creationत्मक परिवर्तन
और नूतन प्रवृत्तियों के वाहक बन गए हैं। इनसे मनुष्य Single Second के काफी निकट आ गया है, जहां राजनीतिक घटनाओं की
जानकारी से बच पाना उसके लिए सम्भव नहीं है। इस तकनीकी व शैक्षिक विकास ने व्यक्तियों के चिन्तन को बदलकर
राजनीतिक आधुनिकीकरण का मार्ग प्रशस्त कर दिया है।
वर्ग, शैक्षिक संस्थाओं तथा जनसंचार के साधनों का विशेष योगदान है। आज सरकारों का बदलता स्वReseller राजनीतिक आधुनिकीकरण
के नए आयाम स्थापित कर रहा है। आज आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में कुछ बाधाएं अवश्य हैं, जिसके कारण ये अभिकरण
राजनीतिक आधुनिकीकरण को घोषित दिशा में ले जोन में सफल नहीं हो रहे हैं। ऐसी समस्याएं अविकसित व विकासशील देशों
में ही अधिक हैं। अमेरिका स्थित अन्तर्राष्ट्रीय अध्ययन केन्द्र की रिपोर्ट में कहा गया है-”परिवर्तन के विस्तार And प्रगति के सम्बन्ध में अस्पष्टता, भूतकालीन परम्परावादी प्रभाव, परम्परावादी तत्वों द्वारा आधुनिकीकरण के लिए राजनीतिक प्रतिरोध, आधुनिकीकरण
के लिए पर्याप्त पूंजी का अभाव व सामाजिक संघर्ष राजनीतिक आधुनिकीकरण के मार्ग में बाधाएं हैं।” यदि आधुनिकीकरण के मार्ग
में आने वाली इन बाधाओं का निराकरण कर दिया जाए तो राजनीतिक आधुनिकीकरण के All अभिकरण अनुकूल दिशा में काम
करने लगेंगे और राजनीतिक आधुनिकीकरण का भविष्य उज्ज्वल हो जाएगा।
राजनीतिक आधुनिकीकरण पर एडवर्ड शिल्स के विचार
एडवर्ड शिल्स को राजनीतिक आधुनिकीकरण प्रमाणित व्याख्याकार माना जाता है। शिल्स ने अपनी पुस्तक ‘Political Modernization’
में आधुनिकीकरण की व्याख्या करते हुए राष्ट्रों के पांच प्रतिमान विकसित किए हैं। इस वर्गीकरण के According ही राजनीतिक आधुनिकीकरण
को सही ढंग से समझा जा सकता है। शिल्स के According राजनीतिक आधुनिकीकरण के According राष्ट्रों के पांच प्रतिमान हैं :-
- राजनीतिक लोकतन्त्र (Political Democracy)
- नाममात्री या अधिष्ठातृ लोकतन्त्र (Tutelary Democracy)
- आधुनिकीकरणशील वर्गतन्त्र (Modernizing Oligarchy)
- सर्वाधिकारी वर्गतन्त्र (Totalitarian Oligarchy)
- परम्परागत वर्गतन्त्र (Traditional Oligarchy)
राजनीतिक लोकतन्त्र
यह प्रतिमान राजनीतिक व्यवस्था के सर्वोत्तम Reseller का प्रतिनिधि है
जिसकी तरफ आधुनिकीकरणशील राष्ट्र उन्मुख है। इस प्रकार की राजनीतिक व्यवस्था ब्रिटेन और संयुक्त राज्य अमेरिका में पाई
जाती है। शिल्स ने इसे प्रतिनिधितात्मक संस्थाओं और सार्वजनिक स्वतन्त्रता के माध्यम से नागरिक शासन के Reseller में परिभाषित
Reseller है। इसकी प्रमुख विशेषताएं हैं :-
- सार्वभौम व्यस्क मताधिकार।
- राजनीतिक दलों की अनिवार्यता।
- सत्ता का कानूनी Reseller।
- न्यायपालिका की स्वतन्त्रता व निष्पक्षता।
- लोकतांत्रिक आत्मनियन्त्रण व संविधानिक सरकार।
- प्रशिक्षित व संगठित लोक सेवाएं।
- कानून का शासन
- लोकतांत्रिक मूल्यों के प्रति वचनबद्धता।
उपरोक्त All लक्षणों वाली राजनीतिक व्यवस्था ही राजनीतिक लोकतन्त्र के प्रतिमान पर खरी उतरती है।
नाममात्री या अधिष्ठातृ लोकतन्त्र
इसे संरक्षक लोकतन्त्र भी कहा जाता है। यह राजनीतिक
व्यवस्था का दूसरा श्रेष्ठ Reseller है। यह राजनीतिक लोकतन्त्र से इस बात में भिन्न है कि इसमें राजनीतिक लोकतन्त्र की संCreationत्मक
व्यवस्थाएं व्यवहारिक Reseller में सक्रिय नहीं रहती। इसमें वास्तविक सत्ता कार्यपालिका के हाथ में होती है। यह व्यवस्था उन देशोंं
का अनुकरण करने की कोशिश करती है जहां राजनीतिक लोकतन्त्र है। इसकी प्रमुख विशेषताएं हैं :-
- कार्यपालिका की श्रेष्ठता।
- विधायिका पर कार्यपालिका का नियन्त्रण।
- विरोध की व्याख्या।
- सक्षम व वफादार नौकरशाही।
- कानून का शासन।
ये विशेषताएं इस व्यवस्था में नाममात्र की ही रहती हैं। व्यवहार में तो नागरिक स्वतन्त्रताओं पर प्रतिबन्ध लगा दिया जाता है। प्रैस
की स्वतन्त्रता पर रोक लगा दी जाती है। इस प्रकार की व्यवस्था राजनीतिक प्रजातन्त्र की परिस्थितियों के अभाव में ही अपनाई
जाती है।
आधुनिकीकरणशली वर्गतन्त्र
यह व्यवस्था पूर्ण Reseller से अलोकतांत्रिक होती है। इसकी
स्थापना नागरिक और असैनिक दोनों ही क्षेत्रों में हो सकती है। इसमें सरकार सैनिक शक्ति पर ही टिकी हेाती है और सदा विरोध
और विद्रोह का भय बना रहता है। यह परम्परागत वर्गतन्त्र से अधिक है। इस राजनीतिक व्यवस्था की बागडोर या तो असैनिकों
के हाथों में हो सकती है जिनका सैनिकों पर नियन्त्रण है या उच्च सैनिक अधिकारियों के हाथों में हो सकती है। इसमें राजनीतिक
व्यवस्था को औचित्यपूर्ण बनाए रखने के लिए सैनिक King और गैर सैनिक जनता का भी सहयोग ले सकते हैं। इसकी प्रमुखता
विशेषताएं होती हैं :-
- इसमें संसद नाममात्र की संस्था होती है।
- इसमें विरोधी पक्ष को अवैध माना जाता है।
- निष्पक्ष व स्वतन्त्र चुनावों का अभाव होता है।
- सार्वजनिक संचार के साधनों पर नियन्त्रण रहता है।
- नौकरशाही की स्थिति अधिक मजबूत रहती है।
- कानून के शासन व निष्पक्ष तथा स्वतन्त्र न्यायपालिका का अभाव होता है।
सर्वाधिकारी वर्गतन्त्र
इसका सम्बन्ध फासीवाद तथा नाजीवाद जैसी शासन-व्यवस्थाओं से
होता है। चीन की साम्यवादी व्यवस्था इसका उदाहरण है। यह व्यवस्था तानाशाही शासन की सूचक है। इसमें मौलिक अधिकारों
व स्वतन्त्रता का कोई महत्व नहीं होता। यह Single दलीय शासन व्यवस्था का प्रतिफल है। इसकी प्रमुख विशेषताएं हैं :-
- वर्ग व जाति जैसी विशेषता के आधार पर सत्ता का किसी वर्ग विशेष में केन्द्रित होना।
- अनुशासित व सुसंगठित अभिजन वर्ग।
- साम्यवादीदल की सर्वोच्चता।
- विधि के शासन, स्वतन्त्र व निष्पक्ष न्यायपालिका तथा विरोधी दल का अभाव।
- साम्यवादी विचारधारा का विकास।
- संसदीय संस्थाओं का प्रदर्शनात्मक उद्देश्य।
परम्परागत वर्गतन्त्र
यह व्यवस्था परम्परागत धार्मिक विश्वासों से सम्बन्धित शक्तिशाली
राजतन्त्रीय सिद्धान्तों पर आधारित होती है। इसके अन्तर्गत King वर्ग वंशानुगत आधार पर नियुक्त Reseller जाता है। इसमें कोई
विधायिका नहीं होती। King वर्ग ही कानून का निर्माता होता है। इसमें जनसेवा का कोई महत्व नहीं होता है। सम्पूर्ण
शासन-व्यवस्था सामन्तवाद पर आधारित होती है। इस शासन में जन-सहभागिता का अभाव पाया जाता है। इस व्यवस्था की प्रमुख
विशेषताएं होती हैं :-
- इसमें King वर्ग राजनीतिक सत्ता का प्रयोग स्वयं द्वारा चुने हुए सलाहकारों की मदद से करता है।
- इसमें नौकरशाही न के बराबर होती है।
- इसमें King अपने शासन को चलाने के लिए सीमित व कुशल सेना व पुलिस की व्यवस्था करता है।
- यह व्यवस्था सामन्तवादी होती है। क्षेत्रीय स्तर पर छोटे छोटे King होते हैं।
- इसमें विरोधी पक्ष का अभाव होता है।
- इसमें जनमत का निर्माण करने वाली संस्थाएं नहीं होती।
उपरोक्त विवेचन के बाद कहा जा सकता है कि एडवर्ड शिल्स ने जिन पांच प्रतिमानों का जिक्र Reseller है, उससे पता चलता है कि
आज All व्यवस्थाएं किसी न किसी तरह एडवर्ड शिल्स के वर्गीकरण के अन्तर्गत आ जाती है। यद्यपि ऐसा वर्गीकरण एप्टर व
कार्टसीकी ने भी Reseller है, लेकिन शिल्स का वर्गीकरण ही अधिक प्रामाणिक है। इस वर्गीकरण के तुलनात्मक राजनीति के अध्ययन
में नया अध्याय जोड़ा है। इससे तुलनात्मक अध्ययन अधिक वैज्ञानिक बन गया है। इसलिए शिल्स के राजनीतिक आधुनिकीकरण
के विचार को अधिक यथार्थवादी व वैज्ञानिक माना जाता है।
राजनीतिक आधुनिकीकरण व राजनीतिक विकास में अन्तर
कुछ विद्वानों का मानना है कि राजनीतिक विकास की अवधारणा आधुनिकीकरण की अवधारणा की अपेक्षा संकुचित है। उनका मानना
है कि राजनीतिक विकास आधुनिकीकरण की प्रक्रिया का ही Single भाग है। उसका क्षेत्र केवल राजनीतिक है। राजनीतिक विकास
Single लक्ष्योन्मुख प्रक्रिया है जिसे अपना गन्तव्य या लक्ष्य ज्ञात है, जबकि आधुनिकीकरण विभिन्न दिशाओं में लाया जाने वाला व्यापक
परिवर्तन है तथा Single निरन्तर चलने वाली प्रक्रिया है। लेकिन राजनीतिक आधुनिकीकरण धारणा राजनीतिक विकास के अधिक निकट
है। राजनीतिक आधुनिकीकरण की धारणा भी आधुनिकीकरण से निकट का सम्बन्ध रखती है। इसलिए राजनीनितक विकास तथा
राजनीतिक आधुनिकीकरण दोनों का सम्बन्ध आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से है। आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में राजनीतिक विकास
Single आश्रित चर बनकर रह जाता है। लेकिन कुछ विद्वानों का यह भी मानना है कि राजनीतिक विकास आधुनिकीकरण की प्रक्रिया
का परिणाम है। इसी कारण आधुनिकीकरण को Single समाजशास्त्रीय विचारधारा माना जाता है तथा राजनीतिक विकास को
राजनीतिक विचारधारा माना जाता है। आधुनिकीकरण सामाजिक परिवर्तनों की सम्पूर्ण व्यवस्था का विश्लेषण है। राजनीतिक
विकास केवल राजनीतिक सरंचनाओं And प्रक्रियाओं पर पड़ने वाले तीव्र सामाजिक व आर्थिक परिवर्तनों से सम्बन्ध रखता है। वह
केवल उन राजनीतिक संCreationओं और शक्तियों में रुचि रखता है जो विकाSeven्मक परिवर्तनों का कार्यान्वित करने में अहम् भूमिका
अदा करते हैं। राजनीतिक आधुनिकीकरण भी इन्हीं पक्षों में रुचि लेता है, लेकिन सामान्य आधुनिकीकरण का Single भाग बनकर। यद्यपि
राजनीतिक विकास की समाजशास्त्रीय धारणा राजनीतिक आधुनिकीकरण से मिलता हे, लेकिन उसकी वैज्ञानिक धारणा उससे काफी
भिन्न है। यह राजनीति, राजनेताओं व राजनीतिक संस्थाओं को स्वतन्त्र स्थान प्रदान करती है। तुलनात्मक दृष्टि से राजनीतिक
आधुनिकीकरण विकास से अधिक व्यापकतर अवधारणा मानी जाती है। इस दृष्टि से राजनीतिक विकास अधिक प्रगतिशील,
गत्यात्मक And संकल्पनात्मक धारणा है।
हंटिगटन के According राजनीतिक विकास और आधुनिकीकरण में अन्तर है। उसकी दृष्टि में राजनीतिक विकास आधुनिकीकरण लाने
वाली प्रक्रियाओं और संCreationओं से सम्बन्ध रखता है। जाम्वाराइब ने भी राजनीतिक विकास और राजनीतिक विकास की अवधारणा
राजनीतिक आधुनिकीकरण से अधिक व्यापक ओर सर्वग्राही है, जबकि हंटिगटन के According राजनीतिक विकास की अवधारणा
आधुनिकीकरण से तो भिन्न है, लेकिन राजनीतिक आधुनिकीकरण से सम्बन्ध रखती है। जाग्वाराइब ने लिखा है-”राजनीतिक विकास
Single प्रक्रिया के Reseller में राजनीतिक आधुनिकीकरण तथा राजनीतिक संस्थाकरण का योग है। जाग्वाराइब के बाद आईजेन्सटाड
ने भी राजनीतिक विकास को अधिक व्यापक अवधारणा माना है। लेकिन वे राजनीतिक आधुनिकीकरण को अधिक व्यापक अवधारणा
मानने को तैयार नहीं हैं। ऑमण्ड तथा ल्यूशियन पाई ने भी राजनीतिक विकास के लक्ष्य व उपलक्षण बताकर इसे आधुनिकीकरण
से अधिक व्यापक धारणा माना है। आइजेन्सटाड के According प्रकार्यात्मक दृष्टि से राजनीतिक आधुनिकीकरण के तीन लक्षण हैं –
(क) विभेदीकृत राजनीतिक संस्थाएं (ख) केन्द्र सरकार की गतिविधियों का विस्तार तथा (ग) परम्परागत अभिजनों का शक्तिहीन
होना। जाग्वाराइब का कहना है कि राजनीतिक विकास में राजनीतिक आधुनिकीकरण के अलावा भी संस्थाओं और संCreationओं का
संस्थाकरण हो जाता है। उसका कहना है कि इसमें भूमिका विभेदीकरण, उपव्यवस्था स्वायत्तता और लौकिकीकरण के लक्षण भी
होते हैं। इस प्रकार राजनीतिक विकास राजनीतिक आधुनिकीकरण से आगे निकल जाता है। राजनीतिक विकास में जो विभेदीकरण
होता है वह भिन्न व व्यापक आधार लिए रहता है। पाई ने भी राजनीतिक विकास के लक्षण समानता, क्षमता और विभेदीकरण को
बताकर इसे राजनीतिक आधुनिकीकरण से अधिक व्यापक बना दिया है।
उपरोक्त विवेचन के बाद कहा जा सकता है कि राजनीतिक विकास तथा राजनीतिक आधुनिकीकरण में से किसे व्यापक अवधारणा
माना जाए, यह विवाद का विषय है। जहां जाग्वाराइब व ऑमण्ड राजनीतिक विकास की व्यापक अवधारणा बना देते हैं, वहीें पाई
के विचारों के आधार पर राजनीतिक आधुनिकीकरण की अवधारणा सीमित अवधारणा बनकर रह जाती है। यद्यपि कुछ विद्वानों ने
इस बात का खण्डन भी Reseller है कि राजनीतिक विकास राजनीतिक आधुनिकीकरण से व्यापक अवधारणा नहीं हो सकती। उनका
कहना है कि यदि राजनीतिक विकास का Means केवल पाई द्वारा बताए गए लक्षणों – समानता, क्षमता व विभेदीकरण को ही मान
लिया जाए तो यह काफी सीमित अवधारणा बनकर रह जाती है। लेकिन इस वाद-विवाद में न पड़कर उपरोक्त विवेचन के आधार
पर राजनीतिक विकास व राजनीतिक आधुनिकीकरण में स्पष्ट तौर पर दिखाई देने वाले अन्तर को ही देखना चाहिए। यद्यपि दोनों
अवधारणाएं आपस में कुछ साम्य भी रखती हैं, क्योंकि दोनों ही नवीन अवधारणाएं हैं जिनका जन्म द्वितीय विश्वFight के बाद हुआ
है। दोनों ही अवधारणाएं आधुनिकीकरण से सम्बन्ध रखती हैं, लेकिन फिर भी दोनों में निम्नलिखित अन्तर दृष्टिगोचर होते हैं :-
- राजनीतिक आधुनिकीकरण की अवधारणा Single संकुचित व सीमित अवधारणा है, जबकि राजनीतिक विकास की अवधारणा
राजनीतिक आधुनिकीकरण से व्यापक है। - राजनीतिक विकास की प्रक्रिया उल्टनीय हो सकती हैं, जबकि राजनीतिक आधुनिकीकरण की प्रक्रिया सदैव सीधी होती है
और यह कभी उल्टनीय नहीं हो सकती। - राजनीतिक विकास की अवस्थाएं सुनिश्चित होती हैं, जबकि राजनीतिक आधुनिकीकरण में क्रम और प्रतिमान ही होते हैं,
सुनिश्चित अवस्थाएं नहीं। - राजनीतिक विकास में होने वाले विकास पतन भी हो सकते हैं, लेकिन आधुनिकीकरण तो आधुनिककीकरण ही रहता है।
- राजनीतिक विकास तो कभी-कभी स्थैतिक भी हो सकता है, लेकिन राजनीतिक आधुनिकीकरण कभी स्थैतिक नहीं होता।
- राजनीतिक विकास, विकास प्रक्रिया से स्वतन्त्र होता है, जबकि राजनीतिक आधुनिकीकरण की प्रक्रिया से स्वतन्त्र न होकर
उसका Single महत्वपूर्ण भाग होता है। - राजनीतिक विकास, राजनीतिक प्रक्रियाओं और राजनीति का संस्थापन है, जबकि राजनीतिक आधुनिकीकरण का सम्बन्ध अक्रिाकतर राजनीतिक संCreationओं से ही रहता है, संस्थाओं से नहीं।
उपरोक्त विवेचन के बाद कहा जा सकता है कि राजनीतिक आधुनिकीकरण बुद्धिसंगदतता, विभिन्नीकरण, सहभाग तथा सांस्कृतिक
व सामाजिक परिवर्तन से सम्बन्धित है, जबकि राजनीतिक विकास राज व्यवस्था के औपचारिक स्वReseller व क्षमता पर अधिक जोर
देता है। राजनीतिक आधुनिकीकरण में मुख्यत: औद्योगिकरया के द्वारा सामाजिक परिवर्तन शामिल Reseller जाता है, जबकि राजनीतिक
विकास का आधार संस्थाकरण ही होता है, जिसके कारण राज-व्यवस्थाएं जनता की मांगों को पूरा करती है, संक्षेप में यह कहा
जा सकता है कि राजनीतिक विकास, राजनीतिक आधुनिकीकरण तथा राजनीतिक संस्थापन का योग है। जहां राजनीतिक विकास
की धारणा विकसित व व्यापक है, वहीं राजनीतिक आधुनिकीकरण की अवधारणा सीमित है। जहां विकास की प्रक्रिया से राजनीतिक
विकास स्वायत्त होता है, वहीं राजनीतिक आधुनिकीकरण, आधुनिकीकरण चिपका रहता है। अत: नि:सन्देह ही राजनीतिक विकास
राजनीतिक आधुनिकीकरण की अवधारणा से अधिक व्यापक है।