यमक अलंकार का Means, परिभाषा, और उदाहरण

जहाँ किसी Word या वाक्यांश की कई बार आवृत्ति हो, किन्तु Means की विभिन्नता हो, वहाँ यमक अलंकार होता है। Word की आवृत्ति होने पर Means भिन्न होता है, अत: उसे सार्थक यमक कहा जाता है किन्तु जहाँ वाक्यांश की जोड़-तोड़ करनी पड़ती है जिससे वह Means की अभिव्यक्ति में समर्थ नहीं रहता, अत: वह निरर्थक यमक कहलाता है। इन दोनों को ही क्रमश: अभंग और सभंग कहा जाता है।’ यो तो दोनों ही Resellerों को काव्य में महत्त्व मिलता है, लेकिन सार्थक यमक ही विशेष महत्त्व रखता है। यहाँ उनके काव्य से यमक के कुछ उदाहरण प्रस्तुत हैं-

फैरिकै नारि, कह्यो चलि नारि, सु टेरन के मिस हेरन लागी।

यहाँ ‘नारि’ Word का दो बार प्रयोग Reseller गया है, लेकिन दोनों बार इसका Means अलग-अलग है। First ‘नारि’ Word का Means है ग्रीवा, गर्दन जिसे साधारण भाषा में नाड़ या नार भी कहा जाता है और Second ‘नारि’ Word का Means है नारी या स्त्री। Word बोलचाल का है जिससे यमक की सरलता और सरसता बनी हुई है।

नीची रही करि, यों बहुरी फिरि, ऊँचे को नारि न नारि उठाई।

यहाँ भी ‘नारि’ Word में यमक है और अलग-अलग Means भी इसी प्रकार है: नारि – (क) नाड़ (नार), गर्दन (ख) नारी या स्त्री।

बिनु गुन माल, उर धरी है गोपाल लाल, आँखे लाल-लाल कौंन लेखे लेखियतु है।

यहा ‘लाल’ Word का दो बार प्रयोग Reseller गया है। दोनों बार Means अलग-अलग है। गोपाल के साथ ‘लाल’ Word का Means नायक और नीचे ‘लाल-लाल’ Word लाल रंग के लिए प्रयोग Reseller गया है। Means अलग-अलग होने से यमक अलंकार है। Word प्रचलित है, इसलिए यमक में सरलता And सरसता दोनों हैं।

भागि आई भागि से, भले मैं देख आई लाल, ताको पिचकारी-दृग-चलनि उताल की।

पहली पंक्ति में ‘भागि’ Word का दो बार प्रयोग हुआ है। First ‘भागि’ Word का Means है भागकर, दौड़कर, तीव्रतापूर्वक चलकर औंर Second ‘भागि’ का Means है भाग्य। दोंनो ही Means लोकभाषा में प्रचलित हैं इसलिए यमक में सरलता और सरसता विद्यमान है।

जो पल में पल खोलिकै देखो, तो पाइतें बैठ्यो पलोटति पाइनि।

यहाँ ‘पल’ Word का दो बार प्रयोग हुआ है और Means दोनों बार अलग-अलग है। First ‘पल’ का Means है क्षण। कोष में इसका Means इस प्रकार दिया है: ‘‘समय का वह विभाग जो 24 सैकेंड के बराबर होता है। घड़ी या दण्ड़ का साठवाँ भाग।’’ Second ‘पल’ का Means है पलक। आँख को ढकने वाला चर्म या परदा जिसके उठने-गिरने से आँख खुलती और बन्द होती है। दोंनो ही Means लोक प्रचलित हैं, इसलिए यमक सरल और सरस है।

माधव मास में माधव जू बिन, राधे अराधे उमाधव जू को।

यहाँ ‘माधव’ Word का दो बार प्रयोग Reseller गया है, लेकिन दोनों बार Means अलग-अलग है। ‘माधव मास’ में ‘माधव’ Word का Means है बैसाख और Second ‘माधव’ का Means है कृष्ण। दोनों ही Means प्रचलित हैं, विशेष कठिन नहीं है। ‘उमाधव’ में ‘उ’ निकालने पर माधव बचता है लेकिन इसका Means भिन्न है। उमा+धव= उमा का पति शिव, यह ‘उमाधव’ का Means है।

ऐसे दुरादुरी ही सों सुरत जे करैं जीव, साँचो तिन जीवन को जीवन है जग में।

यहाँ निचली पंक्ति में ‘जीवन’ Word दो बार आया है, लेकिन दोनों बार Means अलग-अलग है। First ‘जीवन’ का Means है जीवों का, प्राणियों का। यह ‘जीव’ Word का बहुवचन है। Second ‘जीवन’ का Means है जिन्दगी।

सोचति यों पुनि पात झर्यो, मुख ह्वै गयो प्यारी को पात झर्यो सो।

यहाँ ‘पात झर्यो’ वाक्यांश का Means है पतझड़ और Second का Means है झड़े पत्ते के समान पीला Meansात् विवर्ण, आभा रहित। ये All उदाहरण सार्थक यमक के हैं, लेकिन निरर्थक यमक में जोड़-तोड़ करना पड़ता है। वहाँ वाक्यांश तो आवृत्त हो जाता है लेकिन यह आवृत्ति दूसरी बार या तो दो पदों के जुड़ने से बनती है या Second Word को तोड़कर बनायी जाती है। इस जोड़-तोड़ के कारण दूसरा वाक्यांश स्वतंत्र Reseller में Means नहीं दे पाता। यही कारण है कि वाक्यांश की आवृत्ति होने के बाद भी यह यमक बहुत सुन्दर नहीं प्रतीत होता। सुन्दर ने इसका भी न्यून मात्रा में प्रयोग Reseller है उदाहरणार्थ-

केसरि कै सरि तीन अबी है, काल सो होत गुलाल उडा़ ये।

यहाँ ‘केसरि’ के साथ ‘कै सरि’ को मिला देने पर यमक बनता है, लेकिन ‘कै’ और ‘सरि’ को मिलाने से Means की रम्यता समाप्त हो जाती है, केवल आवृत्ति रह जाती है।

कहि ‘सुन्दर’ नंद कुमार लिए, तन को तनकौ नहिं चैन कहूँ।

यहाँ ‘तनकौ’ (तनिक भी) के साथ ‘तन को’ दो पदों को मिला देने से यमक बनता है। Means है शरीर को। Means की दृष्टि से यह यमक बहुत सुन्दर नहीं रहता। जोड़-तोड़ के कारण निरर्थक यमक कहलाता है। सुन्दर कविराय ने यमक के सरल और सरस प्रयोग प्राय: सर्वत्र ही किये हैं जो अनायास Reseller से आये हैं, लेकिन उनका Single छन्द ऐसा भी है जहाँ उन्होंने सायास Reseller में यमक का प्रयोग Reseller है और आयासपूर्वक पद Creation होने के कारण कवित्त कुछ कठिन भी हो गया है। कवित्त इस प्रकार है-

काके गये बसन? पलटि आये बसन, सु-

मेरो कछु बस न, रसन उर लागे है

भौंहे तिरछौंहैं, कवि ‘सुन्दर’ सुजान सौंहैं,

कछू अरसौंहैं, गौंहैं जाके रस पागे हौं।

परसों मैं पाय हुते, परसों मैं पाँय गहि,

परसों ये पाय निसि जाके अनुरागे हौं।

कौन बनिताके हौ जू, कौन बनि ताकै हौ,

सु कौन बनिता के बनि, ताके संग जागे हौ।

इस कवित्त के First, Third और Fourth चरण में यमक का आयासपूर्वक प्रयोग Reseller गया है। First चरण में ‘बसन’ Word का तीन बार प्रयोग हुआ है। First ‘बसन’ का Means है: बसने के लिए, निवास के लिए। Second ‘बसन’ का Means है: वस्त्र, कपड़े। संस्कृत में ‘वसन’ Word है जो ब्रजभाषा में ‘बसन’ बन गया है। इस तरह यह Word अर्द्धतत्सम है। ये दोनों प्रयोग अभंग यमक के हैं। तीसरा सभंग या निरर्थक यमक का। यह ‘बस न’ (वश नहीं) के जोड़ से बना है। Third चरण में ‘परसों’ Word तीन बार प्रयोग Reseller गया है। First ‘परसो’ का Means है दो दिन First का दिन। लोकभाषा में Single दिन First के दिन को कल तथा दो दिन First के दिन को ‘परसों’ कहा जाता है। Second ‘परसों’ का भी यही Means है, लेकिन Third ‘परसों’ का Means है: स्पर्ष करो, छुओ। ये तीनों प्रयोग सभंग यमक के हैं, लेकिन First और Second का Means समान ही है। यदि अलग-अलग Means होता तो अधिक अच्छा होता। चतुर्थ चरण में तीन बार ‘बनिता’ Word का प्रयोग Reseller गया है। इनमें First ‘बनिता’ का Means है स्त्री। Second का Means है कौंन बनी (सुसज्जित) स्त्री को ताक (देखे) हो। Third का Means कौन बनिता (स्त्री) के बनि (होकर) उसके साथ जागे हो। यहाँ तीनों ही प्रयोग सभंग फलत: निरर्थक यमक के हैं क्योंकि यहाँ Word नहीं वाक्यांश या Wordसमूह की आवृत्ति हुई है और प्रत्येक बार यह Word समूह कई-कई पदों से मिलकर बना है। Single बार भी Single Word के Reseller में नहीं आया। यहाँ स्पष्ट है कि कवि ने आयासपूर्वक यमक का निर्माण Reseller है, फलत: वह स्पष्ट हो गया है, सरलता और सरसता तो खण्डित हुई ही है, अन्तिम चरण में तो कवि को Means के निर्वाह करने में क्लिश्टता आई है। फिर भी यह कहा जा सकता है कि यह अनुपम छन्द है और ऐसे चमत्कारी छन्दों की संख्या अल्प ही होती है।

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