मुगलों के पतन के कारण
1526 र्इ. में बाबर ने मुगल साम्राज्य की नींव डाली लगभग 200 वर्षो तक भारतवर्ष में मुगलों का आधिपत्य रहा । हुमायूं के समय साम्राज्य में भयंकर संकट आया, जिससे उसे राजगद्दी छोडकर र्इरान की ओर भागना पड़ा । शासन पर शेरशाह का अधिकार हो गया, शेरशाह की मृत्यु के तुरन्त बाद हुमायूं ने अधिकार कर लिया । अकबर के समय मुगल साम्राज्य का चरम विकास हुआ, उसने हिन्दू और मुसलमानों के मध्य सहयोग की भावना पैदा की । जहांगीर और शाहजहां के काल में धार्मिक तथा राजपूत नीति में परिवर्तन हुआ, जिससे राजपूत और सिक्ख रूष्ट हो गये। औरंगजेब की नीति ने मुगल साम्राज्य को पतन के कगार पर ला खड़ा कर दिया । औरंगजेब के बाद योग्य सम्राट न होने के कारण साम्राज्य का पतन हो गया जिसके मुख्य कारण निम्न हैं-
प्रशासनिक तथा राजनीतिक कारण
- उत्तराधिकार संबंधी सुनिश्चित नियमों का अभाव- उत्तराधिकार संबंधी सुनिश्चित नियमों के अभाव से सम्राट की मृत्यु के बाद उत्तराधिकारी सिंहासन के लिए संघर्ष करने लगते थे। औरंगजेब ने अपने पिता को कैद कर तथा भाइयों की हत्या करके सिंहासन प्राप्त Reseller था । यह परम्परा आगे भी जारी रही औरंगजेब के समय में राजकुमार मुअज्जम तथा अकबर न े बहादुरशाह के समय में आजम और कामबक्श ने विद्रोह Reseller । इस प्रकार के उत्तराधिकार के लिए संघर्ष तब तक चलते रहे जब तक मुगल साम्राज्य का नामोनिशान न मिट गया ।
- औरंगजेब के अयोग्य उत्तराधिकारी- औरगं जेब के उत्तराधिकारी अयोग्य थे, वे नाम मात्र के सम्राट थे । औरंगजेब के बाद उसका बेटा मुअज्जम बहादुरशाह के नाम से आगरा की गद्दी पर बैठा उसमें शासनात्मक क्षमता की कमी थी यद्यपि वह हिन्दू तथा राजपूतों के प्रति उदार था परन्तु उपर से दुर्बल तथा वुद्ध था, उसका पुत्र जहोंदारशाह भी कमजोर King सिद्ध हुआ । परिणामस्वReseller उसका भार्इ फर्रूखसियार उसकी हत्या कर स्वयं ही गद्दी पर बैठ गया ।
- मुुगल सरदारों में पारस्परिक द्वेष भाव- सम्राट की दुबर्ल ताओं का लाभ उठाकर मुगल सरदार अनेक गुटों में विभक्त हो गये थे । नूरानी, र्इरानी, अफगानी तथा हिन्दुस्तानी सरदारों के अलग-अलग गुट थे, वे पारस्परिक द्वेष भाव से ग्रसित थे । प्रत्येक गुट अपना वर्चस्व कायम करना चाहता था, उनकी गृहबन्दी तथा खीचातानी से मुगल साम्राज्य कमजोर हो गया था ।
- मनसबदारी प्रथा मे बार-बार परिवर्तन- अकबर ने मनसबदारी प्रथा लागू की तथा औरंगजेब ने मनसबदारों की संख्या दुगुनी कर दी, पर आय में किसी प्रकार की वृद्धि नहीं हुर्इ । इसके अलावा मनसबदारों के उपर पाबंदिया थी, वे भी समाप्त कर दी गर्इ । उनका निरीक्षण करना बन्द हो गया । औरंगजेब के मरते ही वे जागीरों की मांग करने लगे ताकि उसकी आय बढ़ सके। मनसबदारों की ताकत बढ़ गर्इ तथा व े सम्राट पर अपन े रिश्तदे ारों का े वजीर बनान े हेत ु दबाव डालने लगे, क्योंकि वजीर ही जागीरें बांटता था । मनसबदारी प्रथा में भ्रष्टाचार आ गया था, जिससे मुगल सेना दुर्बल हो गर्इ थी । सेना की शक्ति मुगल साम्राज्य की धुरी थी । उसकी कमजोरी से मुगल साम्राज्य हिल उठा । अयोग्य सम्राट अपने साम्राज्य की रक्षा न कर सके ।
- निरंकुश शक्ति पर आधारित साम्राज्य- मुगल साम्राज्य के अधिकांश King निरंकुश थे । उन्होंने न तो मंत्रिमण्डल के परामर्श से काम Reseller, न जनता की इच्छा पूरी की। वह Only सैनिक शक्ति पर आधारित थी । सम्राट, साम्राज्य की आय का Single बड़ा भाग सेना में ही खर्च कर देते थे, इससे जन कल्याणकारी कार्यो की उपेक्षा हुर्इ । सत्ता तथा शक्ति पर आधारित राज्य कब तक चलता सैनिक शक्ति के कमजोर पड़ते ही मुगल साम्राज्य का पतन हो गया ।
- मुगल सेेना का अघ: पतन- मुगल सेना दिन ब दिन अनुशासनहीन होती गर्इ बड़े-बड़े सरदार भ्रष्ट हो गये । उनमें लड़ने का उत्साह जाता रहा । सेना के प्रशिक्षण के लिए कोर्इ वैज्ञानिक व्यवस्था नहीं की गर्इ । नौ सेना के विस्तार की भी उपेक्षा की गर्इ । सैनिक साज-सामान पर जोर नहीं दिया गया । यूरोपिय देशों में जहाज बन गए थे, परन्तु भारत में उसकी नकल भी नहीं की जा सकी । सीमा Safty पर भी कोर्इ विशेष ध्यान नहीं दिया गया ।
- मुहम्मदशाह की अकुुशलता- मुहम्मदशाह 30 वर्षो तक मुगल सामा्र ज्य का King बना रहा, परन्तु राजकीय अकुशलता के कारण वह साम्राज्य में नवीन प्राण नहीं फूंक सका वह स्वयं विलासी था तथा अच्छे वजीरों की सलाह न मानकर स्वाथ्र्ाी तथा भ्रष्ट लोगों के हाथों का खिलौना बना रहा । निजात-उल-मुल्क जो उसका वजीर था, सम्राट की गलत नीतियों से तंग आकर अपना पद छोड़ दिया तथा 1724 र्इ. में हैदराबाद चला गया । वैसे मुगल साम्राज्य ढहने वाला था परन्तु इस घटना ने उसे सदा के लिए ढहा दिया ।
- शक्तिशाली सूूबेदारोें की महत्वाकांक्षा- बंगाल, हैदराबाद, अवध तथा पजं ाब प्रान्तों के सूबेदार अपने प्रदेशों को सम्राट की अधीरता से मुक्त करने का प्रयत्न करने लगे थे । अवसर पाकर ये सूबेदार स्वतंत्र King बन बैठे, जिससे मुगल साम्राज्य Singleदम शक्तिहीन हो गया ।
- साम्राज्य की विशालता- आरैगंजेब घोर साम्राज्यवादी था उसने बीजापुर तथा गोलकुण्डा तक अपने साम्राज्य को विस्तृत कर लिया था । औरंगजेब के बाद उसके उत्तरा- धिकारियों के लिए इतने बड़े साम्राज्य की Safty करना असम्भव ही सिद्ध हुआ ।
- मुगल सम्राटो का व्यक्तित्व व चरित्र- परिवर्ती मुगल सम्राटों से विलासप्रियता, हरम में स्त्रियों से संपर्क के प्रति उदार थे । सुन्दरी का सानिध्य पाकर प्रशासनिक कामकाज के प्रति उनका मोहभंग होने लगा जिससे स्वाभाविक Reseller से अव्यवस्था प्रभावी हो गयी और प्रशासन में उदासीनता आ गर्इ तथा कमजोर हो गये ।
- लोकहित का अभाव- निरंकुश अनियन्त्रित राजतंत्र के दोष मुगल साम्राज्य में आ गये Kingों ने प्रजा के बौद्धिक, भौतिक, नैतिक, सांस्कृतिक प्रगति के लिए कार्य नहीं Reseller । प्रशासन भ्रष्ट, चापलूस, बेर्इमान लोगों के हाथों में चला गया, व्यापार व्यवसाय, कला, संगीत, स्थापत्य को सहारा मिलना बंद हो गया जो मुगल साम्राज्यके पतन का कारण बना ।
- मराठों का उत्कर्ष- दक्षिण में मराठों और मुगलों का संघर्ष बराबर चलता रहा, इसमें मराठा विजयी हुऐ और मुगल साम्राज्य पतन की ओर अग्रसर हुआ ।
औरंगजेब की दुर्बलता
- औरंगजेब की धार्मिक नीति- औरगं जेब की धार्मिक नीति अनुदार थी । गैर मुस्लिम जनता उससे असन्तुष्ट थी । उसने मन्दिरों को तोडकर तथा मूर्तियों को अपवित्र कर हिन्दुओं की धार्मिक भावना को चोट पहुचार्इ तथा जजिया और तीर्थयात्रा जैसे अपमानजनक कर लगाये । हिन्दुओं को उसने उच्च पदों से भी वंचित कर अपमानित Reseller, राजपूतों से शत्रुता की । वह योग्य हिन्दू तथा राजपूतों की कार्यकुशलता का उपयोग नहीं कर सका । मुसलमानों में भी शिया और सुफी मतावलम्बी उससे नाराज थे । उनके साथ भी वह द्वेषपूर्ण नीति का पालन करता था ।
- मराठों, राजपूतोंं And सिक्खों के साथ दुर्व्यवहार- औरगंजेब ने मराठों को समझने में गलती की मुगल Kingों ने शिवाजी को अपमानित कर तथा शम्भाजी की हत्या कर राजनीतिक भूल की । इस गलती के कारण औरंगजेब लम्बे समय तक दक्षिण में पड़ा रहा तथा Fight में व्यस्त रहा । इसी तरह गुरू तेगबहादुर तथा गुरू गोविन्द सिंह के पुत्र की हत्या कर उसने वीर जाति को सदा के लिए अपना दुश्मन बना लिया । मारवाड़ तथा मेवाड़ के पीछे भी उसने अपनी शक्ति का अपव्यय Reseller । राजपूत की विश्वनीय शक्ति का साम्राज्य के हित में उपयोग नहीं Reseller जा सका ।
- औरंगजेब का शंकालु स्वभाव- औरगंजेब स्वभाव से शंकाल ु था उसने विद्राहे के डर से अपने बेटों को भरपूर सैनिक प्रशिक्षण नहीं दिया । अशक्त तथा अनुभवहीन शहजादे विशाल मुगल साम्राज्य का सही हिफाजत नहीं कर सके ।
- औरंगजेब की दक्षिण नीति- औरंगजेब ने बीजापरु तथा गोलकुण्डा के मुसलमान राज्यों को मुगल साम्राज्य में मिलाकर भयंकर गलती की । इससे मराठे सीधे मुगल साम्राज्य में घुलकर लूटपाट करने लगे, बीच में कोर्इ रूकावट ही नही रहीं । औरंगजेब की नीति के कारण उसे दक्षिण में Single लम्बे और पीड़ादायक Fight में फंस जाना पड़ा । इससे मुगल साम्राज्य को सैनिक प्रशासनिक और आर्थिक Reseller से खोखला बना दिया। दक्षिण में औरंगजेब के पडे़ रहने से उत्तरी भारत के Kingों में गुटबन्दी आ गर्इ । तथा वे Single Second के खिलाफ कार्य कर साम्राज्य की शक्ति को क्षीण करने लगे ।
आर्थिक कारण
- जनता की उपेक्षा- मुगल सम्राट निरन्तर साम्राज्य विस्तार में लगे रहे । लोगों के Needओं पर उन्होंने कभी विचार नहीं Reseller, जन कल्याणकारी कार्यो की ओर उनका ध्यान ही नहीं गया । औरंगजेब ने अपने 50 वर्षो के कार्यकाल में न तो यातायात की व्यवस्था की और न शिक्षा व स्वास्थ्य की ओर ध्यान दिया । औरंगजेब ने कृषि के विकास हेतु कोर्इ भी Historyनीय प्रयास नहीं Reseller । केवल Fightों के नाम पर किसानों से भू-राजस्व वसूल Reseller । जागीरदारों की जागीरदारी भी बदली जाने लगी इससे जागीरदार कम से कम समय में अधिक से अधिक पाने का प्रयत्न करने लगे, परिणामस्वReseller वे किसानों पर जोर जुल्म करने लगे । किसानों के असन्तोष से उत्पादन कम होने लगा था । इससे राजस्व की हानि होने लगी थी ।
- कृषि की अवनति- कृषि की उन्नति की आरे मुगल साम्राज्य का बिल्कुल ध्यान नहीं गया । कृषि आय का मुख्य स्त्रोत था, फिर भी उपेक्षित रहा । कृषि की अवनति से किसान भी गरीब बने रहे । तथा बढती गरीबी से निराश होकर किसानों ने भी समय-समय पर विद्रोह किये। सतनामी, जाट, सिक्खों के विद्रोहों ने भी किसानों को नुकसान पहुंचाया । वे डाकू लुटेरों के चपेट में भी आए । कहीं-कहीं तो किसानों तथा जमीदारों ने भी डाकू तथा लुटेरों के जत्थे बना लिए थे । इस प्रकार मुगल साम्राज्य में कानून तथा व्यवस्था समाप्त हो गयी थी ।
- राजकोष का रिक्त होना- मुगल काल के All Kingों ने अपनी महत्वाकांक्षा की तृप्ति के लिए दीर्घकालीन खर्चीले Fight किये । इसके परिणामस्वReseller राजकोष रिक्त हो गया । औरंगजेब के शासन के अन्तिम वर्षो में सैनिकों को वेतन देने के लिए भी पैसा नहीं था ।