मानसिक स्वास्थ्य का Means, मानसिक Reseller से स्वस्थ व्यक्ति की विशेषताएँ
Second Wordों में मानसिक स्वास्थ्य व्यक्ति की उस स्थिति की व्याख्या है जिसमें वह समाज व स्वयं के जीवन की परिस्थितियों से निबटने के लिए, Need अनुReseller स्वयं को ढालने हेतु व्यवहारों को सीखता है।
Single अन्य मनोवैज्ञानिक कार्ल मेन्निंगर (1945) के According – ‘मानसिक स्वास्थ्य अधिकतम प्रसन्नता तथा प्रभावषीलता के साथ संसार And प्रत्येक Second व्यक्ति के प्रति Humanों द्वारा Reseller जाने वाला समायोजन है प्रसिद्ध विद्वान हारविज और स्कीड ने अपनी पुस्तक ‘अप्रोच टू मेंटल हेल्थ एण्ड इलनेस’ में मानसिक स्वास्थ्य को परिभाषित करते हुए बताया है कि इसमें कर्इ आयाम जुड़े हुए हैं – आत्म सम्मान, अपनी अंत: शक्तियों का अनुभव, सार्थक And उत्तम सम्बन्ध बनाए रखने की क्षमता And मनोवैज्ञानिक श्रेश्ठता।’ इसकी व्यावहारिक परिभाषा देते हुए पी.वी. ल्यूकन लिखते हैं कि ‘मानसिक Reseller से स्वस्थ व्यक्ति वह है जो स्वयं सुखी है, अपने पड़ोसियों के साथ शातिपूर्वक रहता है, अपने बच्चों को स्वस्थ नागरिक बनाता है और इन आधारभूत कर्तव्यों को करने के बाद भी जिसमें इतनी शक्ति बच जाती है कि वह समाज के हित में कुछ कर सके।’
मनोवैज्ञानिकों की दृष्टि में मानसिक स्वास्थ्य-
मानसिक स्वास्थ्य के संबंध में कुछ प्रमुख मनोवैज्ञानिकों के विचारों And उनके द्वारा प्रतिपादित सिद्धान्तों के अवलोकन And विश्लेषण से मनौवैज्ञानिक दृष्टि से मानसिक स्वास्थ्य को समझने में मदद मिलती है, मानसिक स्वास्थ्य की मनोवैज्ञानिक दृष्टि स्पष्ट होती है। 1. मनोगत्यात्मक दृष्टि 2. व्यवहारवादी दृष्टि 3. Humanतावादी दृष्टि 4. संज्ञानात्मक दृष्टि ।
1. मनोगत्यात्मक दृष्टि –
मनोगत्यात्मक दृष्टि मानसिक स्वास्थ्य का विचार व्यक्तित्व की गतिकी के माध्यम से करती है। व्यक्तित्व की गत्यात्मकता को दृष्टिगत रखते हुए तीन प्रकार की दृष्टियॉं इस संदर्भ में प्रमुख हैं-
- मनोविश्लेषणवादी दृष्टि- उदाहरण के लिए यदि हम प्रस़िद्ध मनोविश्लेषणवादी मनोवैज्ञानिक सिगमण्ड फ्रायड के व्यक्तित्व सिद्वान्त में मन And मानसिक स्वास्थ्य की अवधारणा पर विचार करें तो हम पाते हैं कि फ्रायड ने उसी व्यक्ति को मानसिक Reseller से स्वस्थ व्यक्ति की संज्ञा दी है जो कि अपने जीवन में द्वन्द्वों, चिन्ताओं से रहित है तथा मनोCreationओं का न्यूनतम उपयोग जिसके जीवन में दिखार्इ देता है। Second Wordों में फ्रायड के According जिस व्यक्ति की अहॅंशक्ति पर्याप्त मात्रा में बढ़ी होती है और जो व्यक्ति अपने मन के उपाहं की इच्छाओं And पराहं के फैसलों के बीच अहंशक्ति के माध्यम से समायोजन सामंजस्य बिठाने में पर्याप्त Reseller से सक्षम होता है उसे ही मानसिक Reseller से स्वस्थ कहा जा सकता है।
- विश्लेषणात्मक दृष्टि – वहीं दूसरी ओर प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक कार्ल युग के According जब तक किसी व्यक्ति के व्यक्तित्व के All पहलुओं में इस प्रकार का स्थिर समायोजन नहीं होता कि जिससे उसके वास्तविक आत्मन् को चेतन में उद्भूत होने का अवसर मिले तब तक उस व्यक्ति को मानसिक Reseller से स्वस्थ नहीं कहा जा सकता है। क्योंकि व्यक्तित्व के All पहलुओं में जब तक सामंजस्य नहीं होगा And वे साथ साथ उचित अनुपात में विकसित नहीं होंगे तब तक उनके अस्तित्व के भीतर दबे वास्तविक आत्मन् का बाहर आना संभव नहीं है। इसके लिए युंग व्यक्तित्ववादी विश्लेषण की वकालत करते हैं। व्यक्तित्व संबंधी युंग का विभाजन एंव विचार Historyनीय है। वे व्यक्तित्व को मोटे तौर पर अंतर्मुखी (introvert) और बहिर्मुखी (extrovert) दो भागों में विभाजित करते हैं। अंतर्मुखी व्यक्तित्व, दूसरों में कम रूचि लेता है और आत्मकेंद्रित क्रियाओं में सर्वाधिक संतोष का अनुभव करता है। ये लोग कोमल मन वाले, विचार प्रधान, कल्पनाशील तथा आदर्शवादी होते हैं। अत: इन लोगों का झुकाव आंतरिक जीवन की ओर होता है। इसके विपरीत बहिर्मुखी व्यक्ति बाहर की वस्तुओं में अधिक रूचि लेता है तथा सामाजिक घटनाओं And परिस्थितियों मे अधिक सुखदद And संतोषजनक अनुभव पाता है। वह व्यवहारवादी होता है तथा कठोर मन वाला यथार्थवादी होता है। वास्तव में अंतर्मुखता और बहिर्मुखता के बीच कोर्इ वास्तविक सीमारेखा नहीं हैं। स्वयं युंग के Wordों में ‘प्रत्येक व्यक्ति में अंतर्मुखता और बहिर्मुखता के अंश रहते हैं और किसी व्यक्ति में इन दोनों में से किसी Single की सापेक्ष प्रधानता से व्यक्तित्व का प्रकार बनता है।’ युंग के According जिस व्यक्ति में अंतर्मुखी And बहिर्मुखी प्रवृत्ति में सामंजस्य होता है वही मानसिक स्वास्थ्य की धुरी पर चलने वाला व्यक्ति कहा जाना चाहिए। कार्ल युंग के According प्रत्येक व्यक्ति में सामान्यत: व्यक्तित्व का आधा भाग नर और आधा भाग नारी का होता है। Meansात् प्रत्येक व्यक्तित्व में स्त्री And पुरूष की प्रवृत्तियॉं पायी जाती हैं और इन दोनों प्रकार की प्रवृत्तियों में सामंजस्य मानसिक स्वास्थ्य की दृष्टि से आवश्यक है।
- व्यक्तित्ववादी दृष्टि – Single अन्य प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक एडलर जिन्होंने व्यक्तिगत मनोविज्ञान के सिद्धान्त का प्रतिपादन Reseller है उनके According जो व्यक्ति जितना अधिक सामाजिक कार्यों में रूचि लेता है जिस व्यक्ति के जितने अधिक मित्र होते हैं And जो सामाजिक होता है वह व्यक्ति उतना ही मानसिक Reseller से स्वस्थ होता है। क्योंकि ऐसा व्यक्ति अपने को समाज का Single अभिन्न अंग समझता है And उसमें हीनभावना नहीं होती है। एडलर के अुनसार जब तक व्यक्ति के मन में हीनता की भावना भरी रहती है वह मानसिक Reseller से स्वस्थ नहीं हो पाता है। हीनभावना को बाहर करने के लिए व्यक्ति को सामाजिक होना चाहिए And उसे इसके लिए जरूरी कुशलता हासिल करने हेतु पर्याप्त Reseller से सृजनात्मक भी होना चाहिए।
2. व्यवहारवादी दृष्टि –
व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिकों के According व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य उसके व्यवहार द्वारा निर्धारित होता है। व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिकों में वाटसन, पैवलॉव, स्कीनर आदि प्रमुख हैं। यदि व्यक्ति का व्यवहार जीवन की All सम विषम परिस्थतियों में समायोजित है तो व्यक्ति मानसिक Reseller से स्वस्थ कहा जाता है वहीं यदि व्यक्ति का व्यवहार कुसमायोजित होता है तो वह मानसिक Reseller से अस्वस्थ कहा जाता है। व्यक्ति के व्यवहार का समायोजित अथवा कुसमायोजित होना उसके सीखने की प्रक्रिया And सही And गलत व्यवहार के चयन पर निर्भर करता है। यदि व्यक्ति ने सही अधिगम प्रक्रिया के तहत उपयुक्त व्यवहार करना सीखा है तो वह मानसिक Reseller से अवश्य ही स्वस्थ होगा। यदि गलत अधिगम प्रक्रिया के तहत व्यवहार करना सीखा है तो वह अस्वस्थ कहलायेगा। इनके According व्यक्ति के व्यवहार पर वातावरण का अत्यधिक प्रभाव पड़ता है, Second Wordों में व्यक्ति के व्यवहार का निर्धारण वातावरण And व्यक्ति के बीच होने वाली अंत’क्रिया से होता है। व्यवहारवादियों के According यदि उचित वातावरण में सही व्यवहार सीखने का अवसर प्रत्येक व्यक्ति को मिले तो वह मानसिक Reseller से अवश्य ही स्वस्थ होगा।
3. Humanतावादी दृष्टि –
Humanतावादी दृष्टि में भी मानसिक स्वास्थ्य की अवधारणा पर विचार Reseller गया है। इस उपागम के मनोवैज्ञानिकों में अब्राहम मैस्लों And कार्ल रोजर्स प्रमुख हैं। इनके According प्रत्येक मनुष्य में अपने स्वाभाविक विकास की सहज प्रवृत्ति होती है। साथ ही प्रत्येक व्यक्ति में अपनी प्रतिभा And संभावनाओं की अभिव्यक्ति की जन्मजात इच्छा प्रकट अथवा प्रसुप्त Reseller में विद्यमान होती है यह उसकी अंत:शक्ति का परिचायक होती है। जब तक यह सहज विकास करने की स्वाभाविक प्रवृत्ति को अपनी अभिव्यक्ति करने का मौका उचित Reseller से मिलता रहता है तब तक व्यक्ति अपने व्यक्तित्व के धनात्मक विकास की ओर अग्रसर रहता है। यदि यह निर्बाध Reseller से जारी रहता है तो अंतत: व्यक्ति अपनी All प्रतिभाओं And संभावनाओं से परिचित हो जाता है Single प्रकार से उसे आत्मबोध हो जाता है। इस Reseller में ऐसे व्यक्ति का मानसिक स्वास्थ्य उत्तरोत्तर उन्नति की ओर अग्रसर कहा जायेगा। वहीं दूसरी ओर यदि किन्हीं कारणों से यदि सहज प्रवृत्ति अवरूद्ध हो जाती है तो व्यक्ति में मानसिक अस्वस्थता के लक्षण प्रकट होने लगते हैं।
4. संज्ञानात्मक दृष्टि –
यह दृष्टि मानसिक स्वास्थ्य की मनोवैज्ञानिक दृष्टियों में सबसे नवीन है। इस विचारधारा के मनोवैज्ञानिकों में एरोन टी. बेक And एलबर्ट एलिस प्रमुख हैं। इनके According जिस व्यक्ति के विचार जीवन की प्रत्येक परिस्थिति में सकारात्मक होते हैं जो तर्कपूर्ण ढंग से धारणाओं को विश्वासों को अपने जीवन में स्थान देता है। वह मानसिक Reseller से स्वस्थ कहा जाता है। व्यक्ति का मानसिक स्वस्थता उसके चिंतन के तरीके पर निर्भर करती है। चिंतन के प्रमुख Reseller से तीन तरीके हैं पहला जीवन की हर घटना को सकारात्मक नजरिये से निहारना And दूसरा जीवन की प्रत्येक घटना को नकारात्मक तरीके से निहारना। इसके अलावा Single तीसरा तरीका है जो कि चिंतन का वास्तविक तरीका है जिसमें व्यक्ति जीवन में घटने वाली प्रत्येक घटना का पक्षपात रहित तरीके से विश्लेषण करता है जीवन के धनात्मक And नकारात्मक पहलुओं में किसी के भी प्रति उसका अनुचित झुकाव नहीं होता है। मनोवैज्ञानिकों ने चिंतन के इस Third तरीके को ही सर्वाधिक उत्तम तरीका माना है। उपरोक्त तरीकों के अलावा भी चिंतन के अन्य तरीके भी होते हैं परन्तु उनका संबंध व्यक्ति की मानसिक उन्नति And विकास से होता है जैसे सृजनात्मक चिंतन आदि।
उपरोक्त मनोवैज्ञानिक दृष्टियों के अलावा मानसिक स्वास्थ्य को देखने की अन्य दृष्टियॉं भी हैं जैसे कि योग की दृष्टि में मानसिक स्वास्थ्य, आयुर्वेद की दृष्टि में मानसिक स्वास्थ्य। योग विषय के विद्याथ्री होने के नाते मानसिक स्वास्थ्य की यौगिक दृष्टि की जानकारी होना आवश्यक है अतएव आगे की पंक्तियों में यौगिक दृष्टि में मानसिक स्वास्थ्य को स्पष्ट Reseller जा रहा है। First इस अभ्यास प्रश्न से अपनी जानकारी की परीक्षा करें।
यौगिक दृष्टि में मानसिक स्वास्थ्य
योग शास्त्रों में आधुनिक मनोविज्ञान की विभिन्न विचारधाराओं के समान मानसिक स्वास्थ्य के संप्रत्यय का विचार स्वतंत्र Reseller से कहीं भी विवेचित अथवा प्रतिपादित नहीं हुआ है। क्योंकि यहॉं व्यक्ति को समग्रता में देखने की परंपरा रही है। आधुनिक मनोविज्ञान में व्यक्ति के अस्तित्व को जहॉं मन से जोड़कर देखा जाता रहा है वहीं योग की Indian Customer विचारधारा में व्यक्ति का अस्तित्व आत्मा पर आधारित माना गया है। यहॉं मान का अस्तित्व आत्मा के उपकरण से अधिक कुछ भी नहीं है। जीवन का चरम लक्ष्य यहॉं अपने वास्तविक स्वReseller आत्म तत्व की उपलब्धि है। इसी को मोक्ष, निर्वाण, मुक्ति, आत्मसाक्षात्कार जैसी बहुत सी संज्ञाओं से विवेचित Reseller गया है। यौगिक दृष्टि से यही स्थिति व्यक्ति के अस्तित्व की पूर्णावस्था है, इसी अवस्था में व्यक्ति को मानसिक Reseller से पूरी तरह स्वस्थ कहा जा सकता है।
इस तरह यौगिक दृष्टि में मानसिक स्वास्थ्य की समस्या पर आत्यांतिक Reseller से विचार Reseller गया है, जिसकी आधुनिक मनोविज्ञान में अभी कोर्इ कल्पना भी नहीं है। महर्षि पतंजलि ने इस स्वस्थ मन:स्थिति को उपलब्ध करने का सुव्यवस्थित राजमार्ग निर्धारित Reseller है, जो अष्टांग योग के नाम से प्रख्यात् हैं इसमें मानसिक स्वास्थ्य की आदर्श स्थिति को समाधि के Reseller में परिभाषित Reseller गया है और इस तक पहुचने के विविध सोपानों पर सूक्ष्म मनोवैज्ञानिक दृष्टि से विचार Reseller गया है। आइिये इसके सांप्रत्यायिक विश्लेषण की जानकारी प्राप्त करें।
यौगिक दृष्टि में मानसिक स्वास्थ्य का सांप्रत्यायिक विश्लेषण
महर्षि पतंजलि ने समाधि को चित्त की वृत्तियों के निरोध की अवस्था माना है And यौगिक दृष्टि से यही मानसिक स्वास्थ्य की सामान्य अवस्था है। इस से पूर्व की All अवस्थाओं को चित्तवृत्तियों की विभिन्न अवस्थाओं के Reseller में मानसिक स्वास्थ्य के विभिन्न स्तर निर्धारित किये जा सकते हैं। योगदर्शन में चित्त की पॉंच अवस्थाओं का वर्णन Reseller गया है। ये पॉच अवस्थायें हैं- 1. मूढ़, 2. क्षिप्त, 3. विक्षिप्त, 4. Singleाग्र 5. निरूद्ध।
- चित्त की मूढ़ावस्था – यह चित्त की तमोगुण प्रधान अवस्था है। इस अवस्था में तमोगुण प्रबल And रजस तथा सत्व दबे रहते हैं। परिणामस्वReseller व्यक्ति निद्रा, तंद्रा, आलस्य, भय, भ्रम, मोह And दीनता की स्थिति में पड़ा रहता है। इस अवस्था में व्यक्ति की सोच-विचार करने की शक्ति सुप्त पड़ी रहती है। फलत: वह किसी भी घटना ठीक दृष्टि से प्रेक्षित नहीं कर पाता है। इस अवस्था में व्यक्ति विवेकशून्य होता है And सही, गलत का विचार नहीं कर पाता है। वह समझ ही नहीं पाता कि उसे क्या करना चाहिए And क्या नहीं करना चाहिए। पंडित श्री राम शर्मा आचार्य के According ऐसा मनुष्य ‘काम, क्रोध, लोभ, मोह के वशीभूत होकर सब तरह के अवांछनीय और नीच कार्य करता है। यह अवस्था Humanीयता से पतित व्यक्तियों, मादक द्रव्यों का सेवन किए हुए उन्मत्त And नीच मनुष्य की होती है। इस अवस्था में तमस प्रबल रहा है जिससे यह स्थिति अधम मनुष्यों की मानी जाती है’। मनोविज्ञान की दृष्टि में यह सामान्य व्यवहार से विचलित व्यक्ति की स्थिति है जिसका मानसिक स्वास्थ्य गंभीर Reseller से रूग्ण होता है। इसका उचित उपचार आवश्यक होता है।
- चित्त की क्षिप्तावस्था – चित्त की इस अवस्था में रजोगुण प्रधान होता है। इसमें सत्व और तमोगुण दबे रहते हैं। इस अवस्था में चित्त अत्यंत चंचल रहता है। मन की स्थिति बहिर्मुखी होती है। बाह्य विषयों की ओर चित्त भागता रहता है। ऐसा चित्त अशान्त, अस्थिर And बेचैन बना रहता है व मन की ऊर्जा बिखरी रहती है। मन पर कोर्इ नियंत्रण नहीं रहता है। Indian Customer दर्शन की Resellerरेखा पुस्तक के लेखक डॉ हरेन्द्र प्रसाद सिन्हा के According ‘व्यक्ति इस अवस्था में इंद्रियों, मस्तिष्क And मन की अभिरूचियों, कल्पनाओं And निर्देशों के र्इशारे पर नाचता रहता है और इन में संयम का अभाव होता है।’ परिणाम स्वReseller ऐसे मनुष्य की दशा राग-द्वेष से परिपूर्ण होती है। अत: इन्ही के अनुReseller सुख-दुख, हर्ष, विषाद, चिंता And शोक के कुचक्र में उलझा रहता है। इस अवस्था में चित्त रजोगुण प्रधान होता है। किन्तु गौणReseller से सत्व और तमस् भी उसके साथ में वास करते ही हैं। उनमें जब तमस सत्व पर हावी हो जाता है जो मनुष्य की प्रवृत्ति अज्ञान, अधर्म, अवैराग्य And अनैश्वर्य में होती है And जब सत्व तमस पर हावी हो जाता है तब यही प्रवृत्ति ज्ञान, धर्म, वैराग्य And ऎश्वर्य में होती है। इस प्रकार इस अवस्था में धर्म-अधर्म, राग-विराग, ऐश्वर्य-अनेश्वर्य तथा ज्ञान-विज्ञान में प्रवृत्ति होती है। प्राय: साधारण संसारी मनुष्यों की यह स्थिति होती है। आधुनिक मनोविज्ञान की दृष्टि में व्यक्ति का व्यवहार यदि इस स्थिति में सामंजस्यपूर्ण है तो उसे स्वस्थ And सामान्य कहा जायेगा, किन्तु प्राय: इस अवस्था में व्यक्ति नाना प्रकार के मानसिक विकारों से आक्रान्त रहता है। यौगिक दृष्टि से यह स्थिति मानसिक स्वास्थ्य की स्थिति से बहुत दूर है।
- चित्त की विक्षिप्त अवस्था – इस अवस्था में सतोगुण प्रधान रहता है। तथा रजस And तमस दबे हुए रहते हैं। आचार्य बलदेव उपाध्याय के According ‘क्षिप्तावस्था में रजोगुण की प्रधानता के कारण चित्त कभी स्थिर नहीं होता, वह सदा चंचल बना रहता है, परन्तु विक्षिप्त अवस्था में सत्व की अधिक प्रबलता के कारण कभी-कभी स्थिरता को प्राप्त कर लेता है।’ इस में वयक् िज्ञान, धर्म, वैराग्य ओर ऐश्वर्य की तरफ प्रवृत होता है। इस अवस्था में काम, क्रोध, लोभ, मोह आदि गौण होते हैं और सांसारिक विषय भोगों के प्रति अरूचि होने लगती है। व्यक्ति निष्काम कर्म करने की ओर प्रवृत्त होता है। परन्तु चित्त की यह स्थिरता स्थार्इ नहीं रहती है। जब जब रजस् हावी होता है तब तब आंशिक अस्थिरता And चंचलता आ जाया करती है। इस अवस्था में Singleाग्रता प्रारंभ हो जाती हैं और यहीं से समाधि का प्रारंभ होता है। पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य के According ‘इस चित्त की अवस्था वाला मनुष्य खुशी, प्रसन्न, उत्साही, धैर्यवान, दानी, दयालु, दयावान, वीर्यवान, क्षमाशील और उच्च विचार वाला तथा श्रेष्ठ होता है। यह अवस्था उन जिज्ञासुओं की होती है, जो अध्यात्म पथ के पथिक बनने की भावना रखते हुए उस पर चलने के लिए प्रयत्नशील रहते हैं।’ इस स्थिति की यदि आधुनिक मनोविज्ञान से तुलना करें तो इस अवस्था में पहुचा व्यक्ति सर्वथा सामान्य And मानसिक Reseller से स्वस्थ ही माना जाएगा। किन्तु यौगिक दृष्टि में यह भी मानसिक स्वास्थ्य की सामान्य अवस्था ही है And समाधि से अभी दूर है।
- चित्त की Singleाग्रावस्था – इस अवस्था में चित्त में केवल सत्व प्रधान ही नहीं होता बल्कि वह सत्व स्वReseller हो जाता है रजस And तमस केवल अस्तित्व मात्र से ही रहते हैं Meansात् क्रियाशील नहीं होते हैं। अत: तमोगुण And रजोगुण के विक्षेप अवरूद्ध हो जाने से चित्त की वृत्तियों का प्रवाह Single ही दिशा में बना रहता है, इसे ही Singleाग्र अवस्था कहते हैं। समस्त विषयों हटकर Single ही विषय पर ध्यान लग जाने के कारण यह अवस्था समाधि के लिए सर्वथा उपयुक्त है। निरंतर अभ्यास से Singleाग्रता चित्त का स्वभाव हो जाती है तथा स्वप्न में भी यह अवस्था बनी रहती है। डॉ हरेन्द्र प्रसाद सिन्हा के According ‘इस समाधि से विषयों का यथार्थ ज्ञान, क्लेशों की समाप्ति, कर्मबन्धन का ढीला पड़ना तथा निरोधावस्था में पहुचना, ये चार कर्म सम्पादित होते हैं।’ यह मानसिक स्वास्थ्य की अत्यंत ही उच्च अवस्था होती है जिसकी आधुनिक मनोविज्ञान में कोर्इ संकल्पना नहीं है।
- चित्त की निरूद्ध अवस्था – इस अवस्था में चित्त की संपूर्ण वृत्तियों का निरोध हो जाता है। चित्त में पूर्ण Reseller से स्थिरता स्थापित हो जाती है। इसमें चित्त आत्मस्वReseller में स्थित हो जाता है, जिसमें अविद्या आदि पॉंच क्लेश Destroy हो जाते हैं। अत: चित्त की समस्त वृत्तियों का निरोध होकर चित्त बिल्कुल वृत्ति रहित हो जाता है तथा आत्मा अपने स्वReseller में प्रतिष्ठित हो जाती है। उपरोक्त पॉंचो अवस्थाओं में First तीन समाधि के लिए नितान्त अनुपयोगी हैं। परन्तु अंतिम दो अवस्थाओं में समाधि का उदय होता है। के. एन. उडुप्पा And आर. एच. सिंह अपनी पुस्तक साइन्स एण्ड फिलॉसफी ऑफ इन्डियन मेडिसिन में लिखते हैं कि ‘इन अंतिम दो अवस्थाओं मे सत्व की प्रधानता रहती है, अत: इनमें कोर्इ रोग उत्पन्न नहीं होता है। विविध मानसिक रोग मन की मूढ़ And क्षिप्त अवस्थाओं में उदय होते हैं।’ आधुनिक मनोविज्ञान में First तीन भूमियों या अवस्थाओं का ही अध्ययन हुआ है और इसी के आधार पर मानसिक स्वास्थ्य सम्बन्धी सामान्य And असामान्यता की अवधारणाओं का विकास हुआ है, जबकि मानसिक स्वास्थ्य की समग्र संकल्पना इसी सीमा में बॅंधे रहने से संभव नहीं हैं समग्र मानसिक स्वास्थ्य का उद्भव तो चित्त की अंतिम दो अवस्थाओं से ही उद्भूत होगा, जिसे आधुनिक मनोविज्ञान असामान्यता की श्रेणी में विभाजित करता है। इस तरह से यौगिक दृष्टिकोण Humanीय अस्तित्व समग्रता से विचार करता है और अपनी यौगिक क्रियाओं द्वारा Humanी चेतना के गहनतम स्तरों का उपचार करते हुए यह समग्र मानसिक स्वास्थ्य का पथ प्रशस्त करता है।
मानसिक Reseller से स्वस्थ व्यक्ति की विशेषताएँ
विभिन्न मनोवैज्ञानिकों ने मानसिक Reseller से स्वस्थ व्यक्तियों के व्यवहार And जीवन के अध्ययन के आधार पर सामान्य Reseller में कर्इ विशेषताओं का पता लगाया है। इन विशेषताओं को हम मानसिक Reseller से स्वस्थ व्यक्ति की पहचान हेतु उपयोग कर सकते हैं। ताकि इनके अभाव द्वारा मानसिक Reseller से अस्वस्थ व्यक्ति का निदान भी Reseller जा सकता है।
- उच्च आत्म-सम्मान (high self esteem)- मानसिक Reseller से स्वस्थ व्यक्तियों के आत्म-सम्मान का भाव काफी उच्च होता है। आत्म-सम्मान से तात्पर्य व्यक्ति द्वारा स्वयं को स्वीकार किये जाने की सीमा से होता है। प्रत्येक व्यक्ति का स्वयं को यानि कि स्वयं के कार्यों को मापने का अपना Single पैमाना होता है जिस पर वह अपने गुणों And कार्यों, कुशलताओं And निर्णयों का स्वयं के बारे में स्वयं द्वारा बनार्इ गर्इ छवि के आलोक में मूल्यॉकन करता है। यदि वह इस पैमाने पर अपने आप को स्वयं के पैमाने पर औसत से ऊपर की श्रेणी में अवलोकित करता है तब उसे गर्व का अनुभव होता है और परिणामस्वReseller उसका आत्म सम्मान बढ़ जाता है। वहीं यदि वह स्वयं को इस पैमाने में औसत से नीचे की श्रेणी में देखता है तो उसका आत्म सम्मान घट जाता है। इस आत्म-सम्मान का व्यक्ति के आत्म विश्वास से सीधा संबंध होता है। जो व्यक्ति स्वयं की नजरों में श्रेष्ठ होता है उसका आत्म-विश्वास काफी बढ़ा चढ़ा होता है, And जो व्यक्ति किसी कार्य के कारण अपनी नजरों में गिर जाता है उसके आत्म-विश्वास में भी गिरावट आ जाती है। परिणाम स्वReseller उसके आत्म-सम्मान को ठेस पहुचती है। जब यह आत्म-सम्मान बार बार औसत से नीचे की श्रेणी में आता रहता है अथवा लम्बे समय के लिए औसत से नीचे ही रहता है तब व्यक्ति में दोषभाव जाग्रत हो जाता है तथा उसे मानसिक समस्यायें अथवा मानसिक विकृतियॉं घेर लेती हैं।
- आत्म-बोध होना (Self-awareness)- जिन व्यक्तियों को अपने स्व का बोध होता है वे मानसिक Reseller से अन्य व्यक्तियों की अपेक्षा ज्यादा स्वस्थ होते हैं। आत्म बोध से तात्पर्य स्वयं के व्यक्तित्व से संबंधित All प्रकट And अप्रकट पहलुओं And तत्वों से परिचित And सजग होने से होता है। जब हम यह जानते हैं कि हमारे विचार कैसे हैं? उनका स्तर कैसा है? हमारे भावों को प्रकृति कैसी है? And हमारा व्यवहार किस प्रकार का है? तो इससे हम स्वयं के व्यवहार के प्रति अत्यंत ही स्पष्ट होते हैं। हमें अपनी इच्छाओं, अपनी प्रेरणाओं And अपनी आकांक्षाओं के बारे में ज्ञान होता है। साथ ही हमें अपनी सामथ्र्य And कमियों का भी ज्ञान होता है। ऐसी स्थिति वाले व्यक्ति जीवन में स्वयं And स्वयं से जुड़े लोगों के सम्बन्ध में सही निर्णय लेने में सक्षम होते हैं। ऐसे व्यक्ति मानसिक उलझनों के शिकार नहीं होते And फलत: उनका मानसिक स्वास्थ्य उत्तम स्तर का होता है।
- स्व-मूल्यॉंकन की प्रवृत्ति (Tendency of self evaluation)- जिन व्यक्तियों में स्व-मूल्यॉंकन की प्रवृत्ति होती है वे मानसिक Reseller से स्वस्थ होते हैं क्योंकि स्वमूल्यॉंकन की प्रवृत्ति उन्हें सदैव आर्इना दिखलाती रहती है। वे स्वयं के गुणों And दोषों से अनवरत परिचित होते रहते हैं And किसी भी प्रकार के भ्रम अथवा संभ्रांति कि गुंजाइश भी नहीं रहती है। ऐसे व्यक्ति अपने शक्ति And गुणों से परिचित होते हैं And जीवन की विभिन्न परिस्थितियों में अपने गुण And दोषों के आलोक में फैसले करते हैं। इनमें तटस्थता को गुण होने पर अपने संबंध में किसी भी प्रकार की गलतफहमी नहीं रहती है तथा उचित फैसले करने में सक्षम होते हैं।
- Windows Hosting होने का भाव होना (Have feeling of security)- मानसिक Reseller से स्वस्थ व्यक्तियों में Safty का भाव बढ़ा-चढ़ा होता है। उनमें समाज का Single स्वीकृत सदस्य होने की भावना काफी तीव्र होती है। यह भाव उन्हें इस उम्मीद से प्राप्त होता है कि चूकि वे समाज के सदस्य हैं अतएव किसी भी प्रकार की विपरीत स्थिति उत्पन्न होने पर समाज के लोग उनकी सहायता के लिए आगे आयेंगे। समाज उनके विकास में सहायक होगा तथा वे भी समाज की उन्नति में अपना योगदान देंगे। ऐसे लोगों में यह भावना होती है कि लोग उनके भावों And विचारों का आदर करते हैं। वह दूसरों के साथ निडर होकर व्यवहार करता है तथा खुलकर हॅंसी-मजाक में भाग लेता है। समूह का दबाव पड़ने के बावजूद भी वह अपनी इच्छाओं को दमित नहीं करने की कोशिश करता है। फलत: मानसिक अस्वस्थता से सदैव दूर रहता है।
- संतुष्टि प्रदायक संबंध बनाने की क्षमता (Ability to form satisfying relationship)- मानसिक Reseller से स्वस्थ व्यक्तियों में परिवार And समाज के अन्य व्यक्तियों के साथ ऐसे संबंध विनिर्मित करने की क्षमता पायी जाती है जो कि उन्हें जीवन में संतुष्टि प्रदान करती है, उन्हें जीवन में सार्थकता का अहसास होता है And वे प्रसन्न रहते हैं। संबंध उन्हें बोझ प्रतीत नहीं होते बल्कि अपने जीवन का आवश्यक And सहायक अंग प्रतीत होते हैं। वे दूसरों के सम्मुख कभी भी अवास्तविक मॉंग पेश नहीं करते हैं। परिणामस्वReseller उनका संबंध दूसरों के साथ सदैव संतोषजनक बना रहता है।
- दैहिक इच्छाओं की संतुष्टि (Satisfaction of bodily desires)- मानसिक Reseller से स्वस्थ व्यक्तियों में अपनी शारीरिक इच्छाओं के संबंध में संतुष्टि का भाव पाया जाता है। उन्हें सदैव यह लगता है कि उनके शरीर अथवा शरीर के विभिन्न अंगों की जो भी Needयें हैं वे पूरी हो रही हैं। प्राय: ऐसे व्यक्ति शारीरिक Reseller से स्वस्थ होते हैं परिणाम स्व्Reseller वे सोचते हैं कि उनके हृदय लीवर, किडनी, पेट आदि अंग अपना अपना कार्य सुचारू Reseller से कर रहे हैं। Second Reseller में जब व्यक्ति के शरीर को आनन्द देने वाली आवश्कतायें जैसे कि तन ढकने के लिए वस्त्र, जिहवा के स्वाद पूर्ति के लिए व्यंजन, सुनने के लिए मधुर संगीत आदि उपलब्ध होते रहते हैं तो वे आनन्दित होते रहते हैं। साधन नहीं मिलने पर भी वे इनकी पूर्ति Second माध्यमों से करने में भी सक्षम होते हैं। परिणामस्वReseller मानसिक Reseller से स्वस्थ होते हैं। सरल Wordों में कहें तो वे शारीरिक इच्छाओं के प्रति अनासक्त रहते हैं सुविधा साधन मिलने पर प्रचुर मात्रा में उपभोग करते हैं नहीं मिलने पर बिल्कुल भी विचलित नहीं होते And प्रसन्न रहते हैं।
- प्रसन्न रहने And उत्पादकता की क्षमता (Ability to be productive and happy)- मानसिक Reseller से स्वस्थ व्यक्तियों में प्रसन्न रहने की आदत पायी जाती है। साथ ही ऐसे व्यक्ति अपने कार्यों में काफी उत्पादक होते हैं। उत्पादक होने से तात्पर्य इनके किसी भी कार्य के उद्देश्यविहीन नहीं होने से And किसी भी कार्य के धनात्मक परिणामविहीन नहीं होने से होता है। ये अपना जो भी समय, श्रम And धन जिस किसी भी कार्य में लगाते हैं उसमें कुछ न कुछ सृजन ही करते हैं। इनका कोर्इ भी कार्य निरर्थक नहीं होता है। सार्थक कार्यों को करते रहने से उन्हें प्रसन्नता के अवसर मिलते रहते हैं And प्रवृत्ति हो जाने पर वे खुशमिजाज हो जाते हैं। उनके संपर्क में आने पर Second व्यक्तियों में भी प्रसन्नता का भाव उत्पन्न होता है।
- बढ़िया शारीरिक स्वास्थ्य (Good physical health)- मानसिक Reseller से स्वस्थ व्यक्तियों का शारीरिक स्वास्थ्य भी उत्तम कोटि का होता है। कहा भी गया है कि स्वच्छ शरीर में ही स्वच्छ मन निवास करता है। शरीर की डोर मन के साथ बंधी हुर्इ होती है। मन को शरीर के साथ बांधने वाली यह डोर प्राण तत्व से विनिर्मित होती है। यह प्राण शरीर में चयापचय And श्वास-प्रश्वास की प्रक्रिया के माध्यम से विस्तार पाता रहता है जिससे मन को अपने कार्यों केा सम्पादित करने के लिए पर्याप्त मात्रा में ऊर्जा उपलब्ध होती रहती है। फलत: मन प्रसन्न रहता है।
- तनाव And अतिसंवेदनशीलता का अभाव (Absense of stress and hypersensitivity)- मानसिक Reseller से स्वस्थ व्यक्तियों में तनाव And अतिसंवेदनशीलता का अभाव पाया जाता है। या यॅूं कहा जा सकता है कि इनके अभाव के कारण ये व्यक्ति मानसिक Reseller से स्वस्थ होते हैं। प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक लेजारस के According तनाव Single मानसिक स्थिति की नाम है। यह मानसिक स्थिति व्यक्ति के सम्मुख समाज And वातावरण द्वारा पेश की गयी चुनौतियों के संदर्भ में इन चुनौतियों से निपटने हेतु उसकी तैयारियों के आलोक में तनावपूर्ण अथवा तनावरहित के Reseller में निर्धारित होती है। Secondं Wordों में जब व्यक्ति को चुनौती से निबटने के संसाधन And अपनी क्षमता में कोर्इ कमी महसूस होती है तब उस कमी की मात्रा के According उसे कम या ज्यादा तनाव का अनुभव होता है। वहीं जब उसे अपनी क्षमता, अपने संसाधन And सपोर्ट सिस्टम पर भरोसा होता है तब उसे तनाव का अनुभव नहीं होता है। मानसिक Reseller से स्वस्थ व्यक्तियों को तनाव नही होने के पीछे उनकी जीवन की चुनौतियों को सबक के Reseller में लेने की प्रवृत्ति होती है। ऐसे व्यक्ति जीवन में घटने वाली घटनाओं जैसे कि प्रशंसा या निन्दा से विचलित नहीं होते बल्कि वे इनका प्रति असंवेदनशील रहते हुए अपने ऊपर इनका अधिक प्रभाव पड़ने नहीं देते हैं।
- वास्तविक प्रत्यक्षण की क्षमता (Ability of realistic perception)- मानसिक Reseller से स्वस्थ व्यक्ति किसी वस्तु, घटना या चीज का प्रत्यक्षण पक्षपात रहित होकर वस्तुनिष्ठ तरीके से करते हैं। वे इन चीजों को प्रति वही नजरिया या धारणा विनिर्मित करते हैं जो कि वास्तविकता होती है। वे धारणायें बनाते समय कल्पनाओं को, अपने पूर्वाग्रहों को भावसंवेगों को अपने ऊपर हावी होने नहीं देते हैं। इससे उन्हें सदैव वास्तविकता का बोध रहता है परिणामस्वReseller मानसिक उलझनों में वे नहीं पड़ते तथा मानसिक Reseller से स्वस्थ रहते हैं।
- जीवन दर्शन स्पष्टता होना (Unambigus philosophy of life)- मानसिक Reseller से स्वस्थ व्यक्तियों में जीवन दर्शन की स्पष्टता होती है। उनके जीवन का सिद्धान्त स्पष्ट होता है। उन्हें पता होता है कि उन्हें अपने जीवन में किस तरह से आगे बढ़ना है? क्यों बढ़ना है? कैसे बढ़ना है? उनका यह जीवन दर्शन धर्म आधारित भी हो सकता है And धर्म से परे भी हो सकता है। इनमें द्वन्द्वों का अभाव होता है। इनके जीवन में विरोधाभास की स्थितियॉं कम ही देखने को मिलती हैं।
- स्पष्ट जीवन लक्ष्य होना (clear life goal)- वे लोग जिनका जीवन लक्ष्य स्पष्ट होता है वे मानसिक Reseller से स्वस्थ होते हैं। मनोवैज्ञानिक इसका कारण जीवन लक्ष्य And जीवन शैली में सामंजस्य को मानते हैं। उनके According जिस व्यक्ति के सम्मुख उसका जीवन लक्ष्य स्पष्ट होता है था तथा जीवन लक्ष्य को पूरा करने की त्वरित अभिलाषा होती है वह अपना समय निरर्थक कार्यों में बर्बाद नहीं करता है वह जीवन लक्ष्य को पूरा करने हेतु तदनुReseller जीवन शैली विनिर्मित करता है। इसे जीवन लक्ष्य को पूरा करने हेतु आवश्यक तैयारियों के Reseller में देखा जा सकता है। जीवन लक्ष्य And जीवनशैली के बीच जितना सामंजस्य And सन्निकटता होती है जीवन लक्ष्य की पूर्ति उतनी ही सहज And सरल हो जाती है। परिणामस्वReseller ऐसे व्यक्तियों को जीवन लक्ष्य की प्राप्ति अवश्य होती है। इससे उन्हें जीवन में सार्थकता का अहसास सदैव से ही रहता है तथा वे प्रसन्न रहते हैं And मानसिक Reseller से स्वस्थ रहते हैं।
- सकारात्मक चिंतन (positive thinking)- जीवन के प्रति तथा दुनिया में स्वयं के होने के प्रति सकारात्मक नजरिया रखने वाले, तथा जीवन में स्वयं के साथ घटने वाली हर वैचारिक, भावनात्मक तथा व्यवहारिक घटना के प्रति जो सकारात्मक नजरिया रखते हैं उसके धनात्मक पक्षों पर प्रमुखता से जोर देते हैं। ऐसे व्यक्ति निराशा, अवसाद का शिकार नहीं होते हैं। उनमें नाउम्मीदी And निस्सहायता भी उत्पन्न नहीं होती है परिणामस्वReseller मानसिक Reseller से स्वस्थ रहते हैं।
- र्इश्वर विश्वास (Faith on God)- जिन व्यक्तियों में र्इश्वर विश्वास कूट कूट कर भरा होता है ऐसे व्यक्ति भी मानसिक Reseller से स्वस्थ होते हैं। मनोवैज्ञानिक इसका कारण उन्हें मिलने वाले भावनात्मक संबंल And सपोर्ट को मानते हैं। उनके According र्इश्वर विश्वासी कभी भी स्वयं को अकेला And असहाय महसूस नहीं करता हैं। परिणाम स्वReseller जीवन की विषम से विषम परिस्थिति में भी अपने आत्म-विश्वास को बनाये रखता है। उसकी आशा का दीपक कभी बुझता नहीं है। अतएव वह मानसिक Reseller से स्वस्थ रहता है।
- दूसरों से अपेक्षाओं का अभाव (Absense of expectations from others)- ऐसे व्यक्ति जो अपने कर्तव्य कर्मों को केवल किये जाने वाला कार्य समझ कर सम्पादित करते हैं And उस कार्य से होने वाले परिणामों से स्वयं को असम्बद्ध रखते हैं। दूसरों से प्रत्युत्तर में किसी प्रकार की अपेक्षा अथवा आशा नहीं करते हैं वे सदैव प्रसन्न रहते हैं। मनोवैज्ञानिक इसका कारण उनके मानसिक प्रसन्नता के परआश्रित नहीं होने की स्थिति को ठहराते हैं। ये व्यक्ति दूसरों के द्वारा उनके साथ किये गये व्यवहार से अपनी प्रसन्नता को जोड़कर नहीं रखते हैं बल्कि वे दोनों चीजों को अलग-अलग रखकर चलते हैं। परिणामस्वReseller भावनात्मक द्वन्द्वों में नहीं फंसते हैं And मानसिक Reseller से स्वस्थ होते हैं।
मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले कारक
- शारीरिक स्वास्थ्य के कारक (Factors of physical health) – व्यक्ति की शारीरिक स्थिति क उसके मानसिक स्वास्थ्य के साथ सीधा संबंध होता है। Secondं Wordों में शारीरिक स्वास्थ्य व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला Single प्रमुख कारक है। हम All जानते हैं कि जब हम शारीरिक Reseller से स्वस्थ होते हैं तब हम प्राय: All समय Single आनन्द के भाव का अनुभव करते रहते हैं And हमारी ऊर्जा का स्तर हमेशा ऊॅंचे स्तर का बना रहता है। जब कभी हम बीमार पड़ते हैं या शारीरिक Reseller से अस्वस्थ हो जाते हैं उसका प्रभाव हमारी मानसिक प्रसन्नता पर भी पड़ता है हम पूर्व के समान आनंदित नहीं रहते तथा हमारी ऊर्जा का स्तर भी निम्न हो जाता है। कहने का अभिप्राय यह है कि हमारे शरीर And मन के बीच, हमारी शारीरिक स्वस्थता And मानसिक स्वस्थता के बीच परस्पर अन्योनाश्रित संबंध हैं। Single की स्थिति में बदलाव होने पर Second में स्वत: ही परिवर्तन हो जाता हैं उदाहरण के लिए कैंसर के रोगियों में निराशा, चिंता And अवसाद सामान्य Reseller में पाये जाते हैं। वहीं चिंता And अवसाद से ग्रस्त रोगियों को कर्इ प्रकार की शारीरिक बीमारियॉं हो जाती हैं।
- प्राथमिक Needओं की संतुष्टि (Satisfaction of primary needs) – Needओं की संपुष्टि भी मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला Single प्रमुख कारक है। Needयें कर्इ प्रकार की होती हैं जैसे कि शारीरिक Need, सांवेगिक Need, मानसिक Need आदि। इन All प्रकार की Needओं में प्राथमिक आवश्कताओं की संतुष्टि का स्तर मानसिक स्वास्थ्य को सर्वाधिक प्रभावित करता है। प्राथमिक Needओं में भूख, प्यास, नींद, यौन आदि आते हैं। इसके अलावा शारीरिक Safty के लिए घर आदि की जरूरत को भी प्राथमिक Needओं में ही गिना जाता है। इन Needओं की पूर्ति करने का लक्ष्य सदैव मनुष्य के सम्मुख उसके लिए अस्तित्वपरक चुनौति खड़ी करता रहा है। जब तक इन Needओं की पूर्ति सहज Reseller में होती रहती है तब तक व्यक्ति मानसिक Reseller से उद्विग्न नहीं होता है परंतु जब इन Needओं की पूर्ति में जब बाधा उत्पन्न होती है तब व्यक्ति में तनाव उत्पन्न हो जाता है। जिसके विभिन्न संज्ञानात्मक, सांवेगिक, अभिप्रेरणात्मक, व्यवहारात्मक आदि परिणाम होते हैं। इन परिणामों के फलस्वReseller व्यक्ति में चिंता, अवसाद आदि विभिन्न प्रकार की मनोविकृतियॉं जन्म ले लेती हैं।
- मनोवृत्ति (Attitude) – मनोवैज्ञानिकों ने मनोवृत्ति को भी मानसिक स्वास्थ्य के उन्नति या अवनति में परिवर्तन करने वाला Single महत्वपूर्ण कारक माना है। व्यक्ति की मनोवृत्ति उसके मानसिक Reseller से प्रसन्न रहने अथवा न रहने का निर्धारण करती है। यह मनोवृत्ति मुख्य Reseller से दो प्रकार की होती है। पहली धनात्मक मनोवृत्ति And दूसरी नकारात्मक मनोवृत्ति। धनात्मक मनोवृत्ति को सकारात्मक मनोवृत्ति भी कहा जाता है। सकारात्मक मनोवृत्ति का संबंध जीवन की वास्तविकताओं से होने के कारण इसे वास्तविक मनोवृत्ति की संज्ञा भी दी जाती है। यदि व्यक्ति में किसी कारण से वास्तविकता से हटकर काल्पनिक दुनिया में विचरण करने की आदत बन जाती है तो ऐसे व्यक्तियों में घटनाओं, वस्तुओं And व्यक्तियों के प्रति Single तरह का अवास्तविक मनोवृत्ति विकसित हो जाती है। अवास्तविक मनोवृत्ति के विकसित हो जाने से उनमें आवेगशीलता, सांवेगिक अनियंत्रण, चिड़चिड़ापन आदि के लक्षण विकसित हो जाते हैं और उनका मानसिक स्वास्थ्य धीरे धीरे खराब हो जाता है।
- सामाजिक वातावरण (Social environment)- सामाजिक वातावरण को भी मनोवैज्ञानिकों ने मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाला Single मजबूत कारण माना है। व्यक्ति Single सामाजिक प्राणी है। वह समाज में रहता है। फलत: समाज में होने वाली अच्छी बुरी घटनाओं से वह प्रभावित होता रहता है। जब व्यक्ति समाज में Single ऐसे वातावरण में वास करता है जो कि अपने घटकों को उन्नति And विकास में सहायक होता है तथा समूह के सदस्यों को भी समाज अपनी उन्नति And विकास में योगदान देने का समुचित अवसर प्रदान करता है तो वह व्यक्ति स्वयं को गौरवान्वित महसूस करता है परिणामस्वReseller ऐसे व्यक्ति को कभी भी अकेलापन महसूस नहीं होता है। वह अपने आप को समाज का Single स्वीकृत सदस्य के Reseller में देखता है जिसके अन्य सदस्य उसके भावों का आदर करते हैं। वह स्वयं भी समाज के अन्य सदस्यों के भावों का आदर करता है। ऐसे सामाजिक वातावरण में निवास करने वाले व्यक्ति मानसिक Reseller से अत्यंत स्वस्थ रहते हैं। तथा इनकी सामाजिक प्रसन्नता अनुभूति काफी बढ़ी चढ़ी रहती है। वहीं दूसरी ओर जब व्यक्ति इसके विपरीत प्रकार के समाज में निवास करता है जो कि उसकी उन्नति And विकास में सहायक हेाने के बजाय उसके उन्नति And विकास के मार्ग को अवरूद्ध ही कर देता है तो व्यक्ति की अपने अंदर छिपी असीम संभावनाओं को विकसित And अभिव्यक्त करने की Need की पूर्ति नहीं हो पाती है। परिणामस्वReseller ऐसा व्यक्ति को अपनी इच्छाओं का दमन करना पड़ता है And कालान्तर में ऐसे व्यक्ति मानसिक रूग्णता का शिकार हो जाते हैं।
- मनोरंजन की सुविधा (Facility of entertainment)- मनोवैज्ञानिकों ने मनोरंजन की उपलब्धता को भी मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले Single प्रमुख कारक के Reseller में मान्यता प्रदान की है। उनके According जिस व्यक्ति को जीवन में मनोरंजन करने के साधन या सुविधायें उपलब्ध होती हैं उस प्रकार के व्यक्ति अपने जीवन में मानसिक Reseller से स्वस्थ रहते हैं। उनके According मनोरंजन के साघन अपने प्रभाव से व्यक्ति के मन को प्रसन्नता, And आह्लाद से भर देते हैं फलत: उसमें Single प्रकार की नवीन प्रफुल्लता जन्म लेती है जो कि उसके मस्तिष्क And मन को नवीन ऊर्जा से ओतप्रोत कर देती है। तंत्रिका मनोवैज्ञानिकों के According इससे स्नायुसंस्थान को सकारात्मक स्फुरणा प्राप्त होती है फलत: उसकी सक्रियता बढ़ जाती है। स्मृति आदि विभिन्न मानसिक प्रक्रियायें सुचारू Reseller से कार्य करती हैं फलत: व्यक्ति मानसिक Reseller से स्वस्थ रहता हैं। परन्तु यदि किसी कारण से किसी व्यक्ति को उसकी इच्छानुसार पर्याप्त मनोरंजन नहीं मिल पाता है तो उससे इनमें मानसिक घुटन उत्पन्न हो जाती है जो धीरे-धीरे उनके मानसिक स्वास्थ्य को कमजोर करती जाती है।
उपरोक्त वर्णन से स्पष्ट होता है कि मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने वाले बहुत से कारक हैं। इन कारकों को नियंत्रित करके मानसिक स्वास्थ्य को उन्नत बनाया जा सकता है।