मनुस्मृति का Backup Server, संCreation And विषयवस्तु

वैदिक वाड़्मय में Human जाति के आदि पिता प्रजापति के Reseller में मनु का
History मिलता है। इसमें मनु का Means मनुष्य से Reseller गया है। मनु में पिता Word
Added हुआ है जिससे यह अनुमान Reseller गया है कि मनुष्य के पिता मनु हुये
जिन्होंने सृष्टि को उत्पन्न Reseller तथा मनुस्मृति की Creation की। शतपथ ब्राह्मण में
उल्लिखित History के According जल प्रलय के बाद Only मनु ही Windows Hosting बचे
थे, शेष All प्राणी Destroy हो गये थे। जल प्रलय का यह description मनु को सृष्टि के
आदि Human के Reseller में मान्यता देता है।

ऋग्वेद के Single मंत्र में मनु को Ultra site का पुत्र कहा गया है।
श्रीमद्भगवद्गीता में Ultra siteपुत्र मनु का आख्यान described है। ऋग्वेद में इन्हें First
यज्ञकर्ता कहा गया है। उन्होंने Thirty Three देवताओं के प्रति First यज्ञ Reseller।
Indian Customer वाड़्मय में Fourteen मनुओं And वैवस्वत मनु के बाद होने वाले Seven मनुओं
की Discussion की गई है। मनुस्मृति श्रीमद्भागवद् महापुराण And विष्णुपुराण आदि ग्रंथों
में First Seven मनुओं का History है। यथा- First मनुस्वायम्भुव, Second स्वरोचिषमनु,
Third उत्तम मनु, Fourth तामस मनु, Fifth रैवत मनु, Sixth चाक्षुष मनु And Sevenवें
वैवस्वत मनु हैं।

अथर्ववेद में वैवस्वत मनु को Earth का King घोषित Reseller गया है।
ऐतरेय ब्राह्मण में Single संदर्भ described है ‘देवता और असुर परस्पर Fight करते थे।
असुरों ने देवताओं को Defeat कर दिया। तब देवताओं ने कहा हमारे यहां
अराजकता के कारण असुर विजयी हुए हैं। हमें भी King की Appointment करनी
चाहिए। इस पर All Agree हो गये थे।’ इस कथानक से स्पष्ट है कि तत्कालीन
ऋषि समाज को भी अपनी Safty हेतु चरित्रवान King की Need पड़ गई
थी। इसलिए King अथवा King का मनोनयन Indispensable समझा गया।
महाभारत13 में ब्रह्मा द्वारा मनु को King बनाये जाने का History मिलता है।
रामायण में मनु को First King माना गया है।

वेदों में मंत्रद्रष्टा के Reseller में मनु का परिगणन हुआ है। ऋग्वेद के आठवें
मंडल के सत्ताइसवें इकतीसवें सूक्तों के मंत्रद्रष्टा वैवस्वत मनु ही हैं। इन सूक्तों
की विषयवस्तु मुख्यतया यज्ञ है। यह इस बात के द्योतक हैं कि मनु ने यज्ञ के
विषय में विस्तृत चिन्तन Reseller था। उनका यह चिन्तन न केवल पारलौकिक हितों
के लिए था वरन् सांसारिक समृद्धि के लिए भी था। इस दिशा में चिन्तन करके मनु
ने जो ज्ञान अर्जित Reseller वही धर्मशास्त्र के Reseller में लोगों के सम्मुख आया।
तत्कालीन Human समाज इस धर्मशास्त्र को आदर व श्रद्धा की दृष्टि से देखता था
जो ऋग्वेद की Single ऋचा से विदित होता है जिसमें प्रार्थना की है कि हम मनु के
पैतृक मार्ग से च्युत न हों। अन्यत्र Single ऋचा से स्पष्ट है कि मनु की विधि,
धार्मिक व्यवस्थायें व उनके द्वारा निर्देशित आचार न केवल आदर की दृष्टि से देखे
जाते थे अपितु समाज में लोग उनका अनुकरण भी करते थे।

मनु को जीवन प्रदायिनी औषधियों का अनुसंधानकर्ता माना गया है। जिस
औषधि की खोज मनु ने की थी और जिसका वरण उन्होंने स्वयं Reseller वह लोगों
का कष्ट निवारण करने वाली थी। इसलिए लोग उस औषधि को प्राप्त करने की
कामना करते थे।

मनु ने First King के Reseller में विधि के आधार पर जिस समाज व्यवस्था का
निर्माण Reseller था वह वर्तमान परिप्रेक्ष्य में भी प्रासंगिक है। तैत्तिरीय संहिता And
ताण्ड्य ब्राह्मण में मनु वचनों को भेषज कहा है। इससे यह निर्विवाद सिद्ध है कि
मनु की व्यवस्थायें भेषज मानी जाती थी। वैदिक वाड़्मय की इन सूचनाओं से यह
भी प्रमाणित है कि मनु ने प्राचीनकाल में ऐसे धर्म शास्त्र की Creation की थी जिसे
All जीवन प्रदायिनी औषधि मानते थे।20 पराशर स्मृति के Single श्लोक में कहा गया
है कि सतयुग में मनुस्मृति, त्रेता में गौतम स्मृति, द्वापर में शंख स्मृति और कलियुग
में पराशर स्मृति ग्रंथ मान्य हैं। इससे यह भी प्रमाणित होता है कि आदि मनु ने
किसी धर्मशास्त्र की Creation की थी। गौतम धर्मसूत्र में ‘त्रीणि Firstान्यनिर्देश्यानि मनु’
कहकर मनु का समर्थन Reseller है।

मनु को अपने पूर्व के साहित्य का पर्याप्त ज्ञान था। उन्होंने तीन वेदों-
ऋग्वेद, यजुर्वेद, सामवेद के नाम लिए हैं और अथर्ववेद को Meansवागिरसी श्रुति कहा
है। मनुस्मृति में आरण्यक, छ: वेदांगों, धर्मशास्त्रों की Discussion आयी है। मनु ने अत्रि,
गौतम, भृगु, शौनक, वशिष्ठ, वैखानस आदि धर्मशास्त्रकारों का History Reseller है।
महर्षि मनु ने धर्म के दस लक्षण बतलाये हैं। धृति, क्षमा, दम, अस्तेय, शौच,
उत्तम, इन्द्रिय निग्रह, तत्त्वज्ञान, विद्या, सत्य, अक्रोध। उनका कथन है कि Human की
मध्यम तथा अधम स्थितियां गतियों को प्राप्त होती हैं। वे सब कर्म से उत्पन्न हुर्इ हैं।
मनु कहते हैं कि यदि अधर्म का फल कर्ता को नहीं मिलता है तो उसके
पुत्रों को मिलता है। यदि पुत्रों को नहीं मिलता है तो पौत्रों को अवश्य मिलता है
क्योंकि Reseller गया कर्म कभी निष्फल नहीं होता।

आचार्य मनु ने अपने प्रसिद्ध ग्रंथ Human धर्मशास्त्र में जहां राज व्यवस्था का
History Reseller है वहां उन्होंने King को उत्पत्ति के दैवी सिद्धान्त का प्रतिपादन
Reseller है। वस्तुत: धर्म ही Human धर्म शासन का मूलमंत्र है। अत: King को देवत्व
की स्थिति प्रदान करने का तात्पर्य है उसे सर्वमान्य बनाना। इस सिद्धान्त को
प्रामाणिक Reseller देने के लिए आचार्य मनु ने यहां तक कहा है कि King आठ लोकों
के अन्य तत्त्वों से निर्मित हुआ जिनके फलस्वReseller उसमें दैवी गुण और शक्ति का
आविर्भाव हुआ। ईश्वर ने समग्र विश्व की रक्षा के निमित्त वायु, यम, वरुण, अग्नि,
इन्द्र तथा कुबेर के सर्वोत्तम अंशों से King की सृष्टि की। इस प्रकार King प्रधान
देवताओं के दिव्य गुणों का समन्वित Reseller है। यहां तक कि वह साक्षात् ईश्वर का
अवतार है। King युग प्रवर्तक होता है अत: प्रजा को उसका अनुसरण करना
चाहिए।

राजकीय सत्ता पर नियंत्रण की दृष्टि से मनु का King लौकिक नियंत्रणों से
सर्वथा मुक्त है। King को दण्ड के Reseller में अप्रतिहत, अक्षुण्ण व अंतिम सत्ता प्राप्त
है। इस सत्ता पर किसी का लौकिक नियंत्रण नहीं है और संभव भी नहीं है क्योंकि
लोक में कोर्इ भी व्यक्ति, कोई भी शक्ति, कोई भी संस्था इस सत्ता को चुनौती देने
में सक्षम नहीं है। दण्ड सारी प्रजा का शासनकर्ता है। दण्ड समस्त प्रजा का रक्षक
है। दण्ड सर्वोपरि शक्ति है। समस्त शक्तियों के निष्क्रिय रहने पर यह दण्ड ही
क्रियाशील रहता है। इस दण्ड की अनवरत क्रियाशीलता और अप्रतिहत सर्वोपरिता
Single Means में धर्म से भी महत्त्वपूर्ण है क्योंकि वास्तव में दण्ड ही धर्म का सेतु है।
दण्ड ही Humanीय कमजोरियों पर नियंत्रण करने में समर्थ है और वास्तव में इस
दण्ड के कारण ही विश्व में सब लोग अपनी सम्पत्ति का उपयोग व सुख भोग करते
हैं। मनु ने दण्ड शक्ति के अभाव की दारूण स्थिति की कल्पना करते हुए कहा है
कि King दण्ड शक्ति के माध्यम से दण्ड के योग्य व्यक्तियों को प्रताड़ित नहीं
करता तो बलवान तो दुर्बलों को आक्रान्त कर सकते हैं।

मनुस्मृति

महाभारत के According वेदों के गहन विषयों से अनजान मनुष्यों के लिए
ब्रह्माजी ने अपने मानस पुत्र मनु को वेदों के सारभूत धर्म का उपदेश Single लाख
श्लोकों में दिया था। उनका वही उपदेश ‘मनुस्मृति’ के नाम से विख्यात है। हिन्दू
धर्म का यह प्राचीन And प्रधान धर्मशास्त्र है। अभिप्रेत Means को देने वाला यह
धर्मशास्त्र बुद्धि में वृद्धि करने वाला; यश, आयु And मोक्ष प्रदान करने वाला है। इसे
Human धर्मशास्त्र, मनुसंहिता आदि नामों से भी जाना जाता है।

मनुस्मृति Single नीतिग्रंथ है। नीति के व्यापक Means में यह Human जीवन के
समस्त कार्य व्यवहार को अपने क्षेत्र में समाहित करती है। जीवन के समस्त अंगों में
सम्यक् कर्तव्यों का निर्वाह और दायित्वों का पालन व्यापक Meansों में लौकिक दृष्टि
से धर्म के Means को व्यक्त करती है। यही कारण है कि King के कर्तव्यों And
दायित्वों से सम्बन्धित प्रकरण को मनुस्मृति में राजधर्म की संज्ञा दी गई है। इसमें
धर्म के पारलौकिक महत्त्व को अपेक्षाकृत अधिक स्पष्ट Reseller गया है और ऐसा
प्रतीत होता है कि मनुष्यों के सांसारिक प्रयोजन की सिद्धि ही नहीं करता वरन् धर्म
का अनुपालन पारलौकिक कल्याण के लिए Single विश्वसनीय पृष्ठभूमि तैयार कर देता
है। ‘मनुस्मृति’ ने परमात्मा में लीन हो जाने को सम्पूर्ण जीवों के लिए निवृत्ति और
परम सुख की अवस्था माना है।

मनुस्मृति सम्पूर्ण धर्मशास्त्र है। धर्मशास्त्र के Reseller में इसकी मान्यता
जगविख्यात है। धर्मशास्त्रीय ग्रंथकारों के अतिरिक्त शंकराचार्य, शबरस्वामी जैसे
दार्शनिक भी प्रमाणResellerेण इस ग्रंथ को उद्धृत करते हैं। इसकी गणना विश्व के
चुनिन्दा उन ग्रंथों में की जाती है जिनसे Human ने वैयक्तिक आचरण और समाज
Creation के लिए प्रेरणा प्राप्त की है। न केवल भारतवर्ष में अपितु विदेशों में भी इसके
आधार पर निर्णय होते रहे हैं। अत: धर्मशास्त्र के Reseller में मनुस्मृति को विश्व की
अमूल्य निधि माना गया है। वस्तुत: इस ग्रंथ में चारों वर्णों, आश्रमों, संस्कारों तथा
सृष्टि उत्पत्ति विषय के अतिरिक्त राज्य की व्यवस्था, King के कर्तव्य, सैन्य प्रबन्धन
आदि उन समस्त विषयों की विवेचना And तदनुसार परामर्श दिया गया है जो Human
जीवन में घटने संभव हैं।

राजधर्म के अपने प्रकरण को आरंभ करते समय मनु ने राजधर्म को लौकिक
And पारलौकिक सफलताओं का साधन बतलाया है। इस ग्रंथ में राज्य की उत्पत्ति
के दैवी सिद्धान्त का स्पष्ट प्रतिपादन Reseller गया है। उनके According लोक में
अराजकता व्याप्त होने पर और बलवानों के द्वारा प्रजा को प्रताड़ित किये जाने पर
सम्पूर्ण चराचर की रक्षा के लिए ईश्वर ने King की सृष्टि की है। मनुस्मृति ने धर्म
से नियंत्रित ही काम और Means को पुरुषार्थ माना है। इसीलिए स्मृतियों को धर्मशास्त्र
कहा जाता है। यही कारण है कि मनुस्मृति काम और Means के प्रतिपादन के
अवसर पर बड़े-बड़े धार्मिक निर्देशों-नियमों का निResellerण करती है। मनुस्मृति के
Single-Single Word में वेद के Meansों का ही ग्रंथन हुआ है। इसीलिए All स्मृतियों में
मनुस्मृति प्रधान है।

मनुस्मृति का Backup Server

मनुस्मृति के Backup Server के सम्बन्ध में यद्यपि विद्वानों में मतैक्य नहीं है तथापि
कई विद्वानों के मत में यह ग्रंथ ईसा पूर्व चतुर्थ शताब्दी से प्राचीन नहीं है। इस
विषय में किये गये अन्वेषणों के आधार काल निर्णय पर की गई विवेचना के According
मनुस्मृति की सबसे प्राचीन टीका मेधातिथी की है जिसका काल है नवीं शताब्दी।
याज्ञवल्क्य स्मृति के व्याख्याकार विश्वReseller ने मनुस्मृति के लगभग दो सौ श्लोक
उद्धृत किये हैं, वे सब बारह अध्यायों में से Single हैं। दोनों व्याख्याकारों ने वर्तमान
मनुस्मृति से ही उद्धरण लिए हैं। वेदान्त सूत्र के भाष्य में कुमारिल के तंत्रवार्तिक में
मनुस्मृति को All स्मृतियों में And गौतमधर्मसूत्र से भी प्राचीन कहा है।

‘मृच्छकटिक’ ने पापी ब्राह्मण के दण्ड के विषय में मनु का संदर्भ दिया है।
‘स्मृतिचन्द्रिका’ में उल्लिखित अंगिरा ने मनु के धर्मशास्त्र की Discussion की है। अश्वघोष
की वज्रसूचिकोपनिषद् में Human धर्म के कुछ ऐसे उदाहरण हैं जो वर्तमान मनुस्मृति
में पाये जाते हैं। वाल्मीकि रामायण में मनु का वचन उद्धृत Reseller गया है। इन
साक्ष्यों से स्पष्ट है कि द्वितीय शताब्दी के बाद के लेखकों ने मनुस्मृति को
प्राचीन व प्रामाणिक ग्रंथ माना है। भारतवर्ष में ‘मनुस्मृति’ का First मुद्रण 1813
ई. में कलकत्ता में हुआ था।

मनुस्मृति की  शैली

मनु ने मनुष्य के धर्म को बताने के लिए धर्मशास्त्र में वर्ण धर्म, आश्रम धर्म,
गुणधर्म, निमित्तधर्म, साधारण धर्म का विधिपूर्वक प्रतिपादन Reseller है।
मनुस्मृति सरल And धाराप्रवाह शैली में प्रणीत है। इसका व्याकरण अधिकांश
में पाणिनी सम्मत है। इसके सिद्धान्त गौतम, बौधायन And आपस्तम्ब के धर्मसूत्रों से
बहुत कुछ मिलते हैं। भाषा And सिद्धान्तों में मनुस्मृति And कौटिलीय Meansशास्त्र में
बहुत कुछ समानता है।

मनुस्मृति की संCreation And विषयवस्तु

मनुस्मृति Indian Customer आचार संहिता का विश्वकोश है। इसके बारह अध्यायों में
लगभग 2694 श्लोक हैं जिनमें संस्कार, सृष्टि की उत्पत्ति, नित्य और नैमित्तिक कर्म,
आश्रम धर्म, वर्णधर्म, राजधर्म व प्रायश्चित्त आदि विषयों का History है। विभिन्न
अध्यायों के वण्र्य विषय इस प्रकार हैं-

  1. First अध्याय जगत् की उत्पत्ति
  2. द्वितीय अध्याय संस्कार की विधि, व्रतचर्या, उपचार
  3. तृतीय अध्याय स्नान, विवाह लक्षण, महायज्ञ, श्राद्धकल्प
  4. चतुर्थ अध्याय वृत्ति लक्षण, स्नातक व्रत
  5. पंचम अध्याय भक्ष्याभक्ष्य विचार, शौच, अशुद्धि, स्त्रीधर्म
  6. “ाष्ठम अध्याय गृहस्थाश्रम, वानप्रस्थ आश्रम, मोक्ष, संन्यास
  7. सप्तम अध्याय राजधर्म और दण्ड
  8. अष्टम अध्याय न्याय शासन
  9. नवम् अध्याय स्त्रीपुंस धर्म
  10. दशम् अध्याय चारों वर्णों के अधिकार And कर्तव्य
  11. Singleादश अध्याय दान स्तुति, प्रायश्चित्त आदि
  12. द्वादश अध्याय कर्म विवेचन And ब्रह्म की प्राप्ति।

मनुस्मृति के नौ टीकाकार हैं; यथा- मेधातिथि, गोविन्दराज, कुल्लूक भट्ट,
सर्वज्ञ नारायण, राघवानन्द, नन्दन, रामचन्द्र, मणिराम And भारुचि। इनमें मेधातिथि
प्राचीन भाष्यकार माने जाते हैं। इनकी टीका मनुभाष्य के नाम से विख्यात है।
कुल्लूक भट्ट ने मनुस्मृति पर ‘मन्वर्थमुक्तावली टीका की Creation की है। यह बहुत
संक्षिप्त तथा सारगर्भित भाषा शैली में निहित है। भाष्यकार गोविन्दराज ने ‘मनुटीका’
लिखी है। सर्वज्ञनारायण ने मनुस्मृति पर मनवर्थ निबन्ध लिखा है। राघवानन्द
सरस्वती ने ‘मन्वर्थचन्द्रिका’ नामक टीका लिखी। इसी प्रकार नन्दन ने मनुस्मृति पर
नन्दिनी नामक टीका लिखी And रामचन्द्र ने दीपिका नाम से टीका लिखी।

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