मजदूरी And वेतन प्रशासन का Means

Humanीय संसाधनों की अधिप्राप्ति के बाद यह अत्यन्त आवश्यक होता है कि उन्हें संगठन के प्रति उनके योगदानों के लिए न्यायोचित Reseller से पारिश्रमिक प्रदान Reseller जाये। पारिश्रमिक वह प्रतिपूरण है, जिसे Single कर्मचारी संगठन के लिए अपने योगदान के बदले में प्राप्त करता है। मजदूरी And वेतन पारिश्रमिक प्रक्रिया के प्रमुख अंग होते हैं, जिनका लक्ष्य कर्मचारियों को उनके द्वारा सम्पन्न कार्यो के लिए प्रतिपूरण प्रदान करना तथा उन्हें उनकी क्षमताओं के सर्वश्रेष्ठ प्रदर्शन हेतु अभिप्रेरित करना होता है। मजदूरी And वेतन प्रशासन को Human संसाधन प्रबन्धन के सर्वाधिक जटिल कार्यो में से Single माना जाता है। यह न केवल Human संसाधन प्रबन्धन का Single कार्य होता है, बल्कि यह संगठन तथा कर्मचारियों दोनों के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण भी होता है। मजदूरी अथवा वेतन का कर्मचारियों के जीवन में अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान होता है, क्योंकि यह उनकी आर्थिक उत्तरजीविता का प्रमुख साधन होता है तथा समाज में उनकी स्थिति के निर्धारण का अत्यन्त प्रभावी कारक होता है। यह संगठन के लिए भी महत्वपूर्ण है, क्योंकि मजदूरी And वेतन प्राय: उत्पादन लागत के सबसे बड़े घटकों में से Single होते हैं। इसके साथ ही, यह संगठन के लिए कुशल, सक्षम And योग्य कर्मचारियों को आकर्षित करने, उन्है। बेहतर कार्य-निष्पादन के लिए अभिपे्िर रत करने तथा उनकी सेवाओं को दीर्घ अवधि तक के लिए बनाये रखने के दृष्टिकोण से महत्वपूर्ण होते हैं। इसके अतिरिक्त, प्राय: कर्मचारी-प्रबन्ध की अधिकांश समस्यायें And विवाद मजदूरी And वेतन के भुगतान को लेकर ही होती हैं, अत: यह संगठन के प्रबन्धन का दायित्व है कि वह कार्यरत कर्मचारियों को पर्याप्त मजदूरी अथवा वेतन प्रदान करते हुए उन्हें सन्तुष्ट रखे। इस प्रकार, यह किसी संगठन की उत्तरजीविता तथा विकास को काफी बड़ी मात्रा में प्रभावित करते हैं।

मजदूरी And वेतन का प्रभाव आय के वितरण, उपयोग, बचत, सेवायोजन तथा मूल्यों पर भी महत्वपूर्ण होता है। यह पहलू Single विकासशील Meansव्यवस्था, जैसे – भारत में अत्यधिक महत्व रखता है, जहां कि आय के केन्द्रीकरण को क्रमिक Reseller से कम करने तथा/अथवा मुद्रा-स्फीति सम्बन्धी प्रवृत्तियों से मुकाबला करने के लिए उपाय करना अनिवार्य होता है। अत:, Single सुदृढ़ मजदूरी And वेतन नीति का निResellerण And प्रशासन किसी भी संगठन का प्रमुख उत्तरदायित्व होता है, जो कि Meansव्यवस्था के अनुReseller होना चाहिये।

मजदूरी And वेतन: Means तथा परिभाषा 

किसी कर्मचारी को उसके कार्य के बदले में जो पारितोषण प्राप्त होता है उसे मजदूरी अथवा वेतन कहा जाता है। Second Wordों में, मजदूरी अथवा वेतन Single प्रकार की क्षतिपूर्ति राशि है, जिसे Single कर्मचारी अपनी सेवाओं के बदले में अपने सेवायोजक से प्राप्त करता है। सामान्य प्रचलन में ‘मजदूरी’ तथा ‘वेतन’ Wordों को कभी-कभी समानाथ्र्ाी समझ लिया जाता है, परन्तु दोनों में कुछ अन्तर होता है, जो कि निम्नलिखित प्रकार से है :

मजदूरी : मजदूरी से आशय उस भुगतान से है, जो सेवायोजक द्वारा कर्मचारियों को उनकी सेवाओं के बदले में पारिश्रमिक के Reseller में प्रति घंटा अथवा प्रतिदिन अथवा प्रति सप्ताह अथवा प्रति द्वि-सप्ताह के आधार पर दिया जाता है। सामान्यत:, मजदूरी उत्पादन And अनुरक्षण में लगे हुए तथा गैर-पर्यवेक्षकीय अथवा ब्लू कॉलर कर्मचारियों को दी जाती है। मजदूरी अर्जित करने वाले कर्मचारियों को केवल उनके द्वारा सम्पन्न किये गये वास्तविक कार्य घंटों के लिए पारिश्रमिक का भुगतान Reseller जाता है। मजदूरी की राशि में अन्तर कार्य के घंटों में परिवर्तन के अनुReseller होता है।

वेतन : वेतन से आशय उस भुगतान से है, जो कर्मचारियों को मासिक अथवा वार्षिक आधार पर Single निश्चित राशि के Reseller में दिया जाता है। लिपिकीय, व्यावसायिक, पर्यवेक्षकीय तथा प्रबन्धकीय अथवा व्हाइट कॉलर कर्मचारी सामान्यत: वेतन भोगी होते हैं। वेतन भोगी कर्मचारियों को भुगतान कार्यानुसार नहीं, बल्कि समय (मासिक अथवा वार्षिक) के आधार पर Reseller जाता है, जो कि सामान्यत: स्थायी रहता है। मजदूरी And वेतन के बीच यह अन्तर इन दिनों Human संसाधन अभिगम के विषय में तर्कसंगत प्रतीत नही होता, जिसमें कि All कर्मचारियों को Humanीय संसाधनों के Reseller में माना जाता है तथा All को बराबरी से देखा जाता है। अत:, इन दोनों Wordों को Single Second के लिए प्रयोग Reseller जा सकता है। इस प्रकार, Word मजदूरी तथा/अथवा वेतन को किसी कर्मचारी को Single संगठन के प्रति उसकी सेवाओं के प्रतिपूरण के लिए प्रत्यक्ष पारिश्रमिक के भुगतान के Reseller में परिभाषित Reseller जा सकता है।

न्यूनतम मजदूरी, उचित मजदूरी And जीवन-निर्वाह मजदूरी 

न्यूनतम मजदूरी 
न्यूनतम मजदूरी से आशय उस मजदूरी से है जो श्रमिक And उसके परिवार को जीवित रहने का आश्वासन प्रदान करने के साथ-साथ श्रमिक की कार्य कुशलता को भी अनुरक्षित करती है। इस प्रकार, न्यूनतम मजदूरी के अन्तर्गत यह आशा की जाती है कि यह जीवन की अनिवार्यताओं को पूरा करने के अतिरिक्त श्रमिकों की कार्यक्षमताओं को भी बनाये रखेगी, Meansात् समुचित शिक्षा, शारीरिक Needयें तथा सामान्य जीवन-निर्वाह के लिए भी पर्याप्त मात्रा में सुविधायें प्रदान की जायेगीं।

उचितमजदूरी 

उचित मजदूरी उस मजदूरी के समकक्ष होती है जो श्रमिकों द्वारा समान निपुणता, कठिनार्इ अथवा अरूचि के कार्य सम्पन्न करने के लिए प्राप्त की जाती है। मार्शल के According, ‘‘किसी भी विशिष्ट उद्योग में मजदूरी की प्रचलित दर को उस समय ही उचित मजदूरी कहा जा सकता है, जबकि वह मजदूरी के उस स्तर के समकक्ष हो जो अन्य व्यवसायों में उन कार्यो को सम्पन्न करने के लिए औसत Reseller से दी जाती है, जो समान कठिनार्इ And समान अरूचि के हों तथा जिनमें समान स्वाभाविक क्षमताओं And समान व्यय के प्रशिक्षण की Need होती है।’’ 

जीवन निर्वाह मजदूरी 

जीवन निर्वाह मजदूरी से आशय कम से कम इतनी मजदूरी से है जो किसी श्रमिक की अनिवार्यताओं And आरामदायक Needओं को पूरा करने के लिए पर्याप्त हो। इसके अन्तर्गत प्राय: मजदूरी के उस स्तर का समावेश Reseller जाता है, जिससे श्रमिक केवल अपनी तथा अपने परिवार के अन्य सदस्यों की मूलभूत Needओं को ही सन्तुष्ट करने में समर्थ नहीं होता है, बल्कि उन आरामदायक Needओं को भी पूर्ण करने में समर्थ होता है, जिनसे वह समाज में Single सभ्य नागरिक की भांति जीवन व्यतीत कर सके।

मजदूरी And वेतन प्रशासन के उद्देश्य 

मजदूरी And वेतन प्रशासन के प्रमुख उद्देश्यों को निम्नलिखित प्रकार से समझा जा सकता है :

  1. समान कार्यो के लिए समान पारिश्रमिक के भुगतान को प्रदान करते हुए Single निष्पक्ष And न्यायसंगत पारिश्रमिक की व्यवस्था को विहित करना। 
  2. योग्य And सक्षम लोगों को संगठन के प्रति आकर्षित करना तथा उन्हें सेवायोजित करना। 
  3. कर्मचारियों के प्रतिस्पध्र्ाी समूहों के साथ मजदूरी And वेतन स्तरों में सामंजस्य बनाये रखने के द्वारा वर्तमान कर्मचारियों को संगठन में बनाये रखना।
  4. संगठन की भुगतान करने की क्षमता की सीमा के According श्रम And प्रबन्धकीय लागतों को नियन्त्रित करना। 
  5. कर्मचारियों के अभिप्रेरण And मनोबल में सुधार करना तथा श्रम प्रबन्ध सम्बन्धों में सुधार करना। 
  6. संगठन की समाज में Single अच्छी छवि को बनाने का प्रयास करना तथा मजदूरियों And वेतनों से सम्बन्धित वैधानिक Needओं का अनुपालन करना। 

मजदूरी And वेतन प्रशासन के सिद्धान्त 

मजदूरी And वेतन प्रशासन की योजनाओं, नीतियों तथा अभ्यास के अनेक सिद्धान्त है।। उनमें से कुछ महत्वपूर्ण निम्नलिखित प्रकार से हैं :

  1. मजदूरी And वेतन की योजनायें तथा नीतियां पर्याप्त Reseller से लचीली होनी चाहिये। 
  2. कार्य मूल्यांकन वैज्ञानिक तरीके से Reseller जाना चाहिये। 
  3. मजदूरी And वेतन प्रशासन की योजनायें सदैव सम्पूर्ण संगठनात्मक योजनाओं And कार्यक्रमों के अनुकूल होनी चाहिये। 
  4. मजदूरी And वेतन प्रशासन की योजनायें And कार्यक्रम देश के सामाजिक And आर्थिक उद्देश्यों, जैसे – आय के वितरण की समानता की प्राप्ति तथा मुद्रा स्फीति सम्बन्धी प्रवृत्तियों पर नियन्त्रण के According होनी चाहिये। 
  5. मजदूरी And वेतन प्रशासन की योजनायें And कार्यक्रम स्थानीय तथा राष्ट्रीय दशाओं के परिवर्तन के प्रति उत्तरदायी होनी चाहिये। 
  6. ये योजनायें अन्य प्रशासनिक प्रक्रियाओं को सरल बनाने तथा शीघ्र निपटाने वाली होनी चाहिये। 

प्रेरणात्मक मजदूरी योजनायें 

श्रमिकों को कार्य करने के लिए पर्याप्त प्रलोभन And प्रेरणा प्रदान करने के लिए मजदूरी भुगतान की कुछ वैज्ञानिक पद्धतियों का प्रतिपादन Reseller गया है। इसमें श्रमिक को कार्य सम्पन्न करने के लिए Single निश्चित समय दिया जाता है जिसके लिए निश्चित मजदूरी निर्धारित कर दी जाती है। यदि श्रमिक उस कार्य को निश्चित समय से पूर्व सम्पन्न कर लेता है अथवा इस निश्चित समय के दौरान अधिक उत्पादन कर लेता है तो उसे अधिक उत्पादन करने के प्रतिफल के Reseller में अतिरिक्त धनराशि का भुगतान Reseller जाता है। प्रेरणात्मक मजदूरी योजनाओं का वर्णन निम्नलिखित प्रकार से हैं :

  1. समान कार्यानुसार दर योजना : यह योजना सामान्य Reseller् ्रसे प्रयोग में लायी जाती है। इसके अन्तर्गत समय अध्ययन And कार्य मूल्यांकन के मिश्रण पर आधारित उत्पादन की प्रत्येक इकार्इ के लिए निर्धारित मूल्य पाया जाता है। उदाहरणार्थ, यदि यह मानक निर्धारित Reseller गया हो कि Single घंटे में 100 इकाइयों का उत्पादन Reseller जायेगा And प्रत्येक घंटे के लिए पांच Resellerये की आधार दर पर भुगतान Reseller जायेगा तथा यदि श्रमिक 8 घंटे के कार्य दिवस के दौरान 1000 इकाइयों का उत्पादन करता हो तो पांच Resellerये प्रति इकार्इ की दर पर उसकी सम्पूर्ण आय 5000 Resellerये होगी। सामान्य Reseller से इस व्यवस्था के अन्तर्गत अनुसूचित कार्य अवधि के लिए प्रति घंटे के According होने वाली आय का आश्वासन होता है, परन्तु अधिक उत्पादन करने पर अधिक आय का भी प्रावधान होता है।
  2. टेलर की विभेदात्मक कार्यानुसार दर योजना : वैज्ञानिक प्रबन्ध की अवधारणा के प्रवर्तक एफ.डब्ल्यू. टेलर इस योजना के प्रतिपादक है।। इस योजना को जारी रखते हुए यह आशा व्यक्त की गयी थी कि यह क्षमतावान श्रमिकों को अधिक कार्य करने के लिए प्रेरणा प्रदान करेगी। इस योजना की प्रमुख विशेषता यह है कि इस योजना में उचित कार्य का मानक निश्चित कर लिया जाता है तथा इसी के According मजदूरी का भुगतान Reseller जाता है। इसके साथ ही, इसमें मजदूरी की दो दरें पायी जाती है।। इन दोनों दरों के बीच पर्याप्त अन्तर पाया जाता है। इसके अतिरिक्त, यह योजना प्रेरणादायक होने के साथ ही दण्डात्मक भी है, क्योंकि मानक की पूर्ति न कर पाने वाले श्रमिकों को निम्न दर पर मजदूरी का भुगतान Reseller जाता है। 
  3. समूहिक कार्यानुसार दर योजना : कभी-कभी किसी श्रमिक विशेष द्वारा किये गये कार्य तथा उसके समूह द्वारा किये गये कार्य के मध्य अन्तर कर पाना कठिन होता है। ऐसी स्थिति में सम्पूर्ण कार्य-समूह के लिए Single मानक निश्चित कर दिया जाता है। इस विशिष्ट Reseller से उल्लिखित मानक से कम उत्पादन के लिए प्रति घंटा मजदूरी की दर निश्चित कर दी जाती है। इस मानक से अधिक उत्पादन के लिए Single सामूहिक बोनस निर्धारित कर दिया जाता है। यह सामूहिक बोनस इन All कार्य करने वाले श्रमिकों में समान दर पर अथवा यदि प्रत्येक घंटे के लिए विभिन्न श्रमिकों की आधार दर भिन्न हो तो इस आधार दर पर विभाजित कर दिया जाता है। 
  4. हैल्से योजना : इस योजना के अन्तर्गत पूर्व अनुभव के आधार पर उत्पादन के मानक तथा इसकी प्राप्ति हेतु अपेक्षित Single मानक समय निश्चित कर लिया जाता है। यदि श्रमिक इस मानक समय के व्यतीत हो जाने पर ही इच्छित मानक कार्य सम्पन्न कर पाता है तो उसे निश्चित न्यूनतम मजदूरी प्रदान की जाती है। परन्तु यदि वह इस समय के पूर्व ही अपने कार्य को सम्पन्न कर लेता है तो उसे बचाये गये समय के लिए Single निश्चित दर पर भुगतान Reseller जाता है। इस योजना के अन्तर्गत बचाये गये समय की गणना मानक समय से कार्य के वास्तविक घंटों को घटाने के बाद बचे हुए समय को सेवायोजक And श्रमिकों दोनों में समान Reseller से वितरित करने हेतु दो से विभाजित करते हुए की जाती है।
  5. शत-प्रतिशत अधिलाभांश योजना : यह योजना श्रमिकों को प्रेरणा प्रदान करने के लिए सबसे उपयुक्त है। इसमें मानक समय And इस समय में उत्पादित की जाने वाली मानक इकाइयों की संख्या First से तय कर ली जाती है। यदि कोर्इ श्रमिक मानक समय में निर्धारित इकाइयों से अधिक इकाइयों का उत्पादन करता है तो उसे इन अतिरिक्त उत्पन्न की गयी इकाइयों पर उसी दर से अधिलाभांश दिया जाता है, जिस दर से अन्य इकाइयों का भुगतान Reseller जाता है। 
  6. बेडो योजना : इस योजना का प्रतिपादन चाल्र्स बेडो ने Reseller था। इस योजना का प्रयोग उस समय Reseller जाता है, जबकि सम्पादित किये जाने वाले कार्य से सम्बन्धित मानकों को सावधानीपूर्वक विकसित Reseller गया हो। इसमें प्रत्येक क्रिया को बिन्दुओं द्वारा व्यक्त Reseller जाता है। कार्य से सम्बन्धित निश्चित समय के प्रत्येक मिनट को ‘Single बिन्दु’ द्वारा प्रदर्शित Reseller जाता है तथा मजदूरी की गणना इन बिन्दुओं के आधार पर की जाती है। यदि कोर्इ श्रमिक Single घंटे में 60 बिन्दुओं से अधिक कार्य करता है तो उसे अतिरिक्त भुगतान Reseller जाता है तथा यदि कोर्इ श्रमिक 60 बिन्दुओं से कम कार्य करता है तो उसे किसी अन्य कार्य में लगा दिया जाता है। श्रमिक को बचाये गये समय के Single अंश का ही भुगतान Reseller जाता है। उदाहरणार्थ, बचाये गये समय का 80 प्रतिशत लाभ श्रमिकों को तथा 20 प्रतिशत लाभ कार्य से सम्बन्धित अन्य कर्मचारियों जैसे-पर्यवेक्षकों आदि को दिया जाता है।
  7. रोवन योजना : इस योजना का प्रयोग उस समय Reseller जाता है, जबकि सम्पन्न किये जाने वाले कार्य से सम्बन्धित मानक असन्तोषजनक होते है। तथा प्रबन्धकगण श्रमिकों की सम्पूर्ण आय को सीमित करना चाहते हैं। इस योजना के अन्तर्गत प्रदान की जाने वाली मजदूरी वास्तव में लगाये गये समय के लिए देय मजदूरी तथा बोनस के बराबर होती है। इस योजना के अन्तर्गत बोनस बचाये गये समय पर आधारित न होकर सम्पादित किये गये कार्य के समय पर आधारित होता है। इस योजना के अन्तर्गत बोनस की गणना निम्नलिखित सूत्र का प्रयोग करते हुए की जाती हैं : 

   बचाया गया समय 

बोनस =——– X लगाया गया समय X दर प्रति घंटा

मानक समय 

भारत में मजदूरी नीति 

राष्ट्रीय नीतियों में से मजदूरी नीति आर्थिक And सामाजिक दोनों ही दृष्टियों से अत्यधिक महत्वपूर्ण है, क्योंकि श्रमिकों की सामान्य स्थिति, कार्य कुशलता, कार्य करने की इच्छा, कार्य के प्रति वचनबद्धता, मनोबल, श्रम-प्रबन्ध सम्बन्ध तथा श्रमिकों का सम्पूर्ण जीवन इससे प्रभावित होते हैं।

भारत में First श्रम आयोग द्वारा मजदूरी नियमन की दिशा में सरकारी हस्तक्षेप की संस्तुति की गयी। इस आयोग ने यह विचार व्यक्त Reseller कि मजदूरी भुगतान की वैधानिक व्यवस्था तथा न्यूनतम मजदूरी निर्धारण के लिए मजदूरी बोर्डो की Appointment की व्यवस्था की जानी चाहिये। इसकी संस्तुतियों के आधार पर 1936 में मजदूरी भुगतान अधिनियम के पारित किये जाने का बावजूद भी सम्बन्धित मजदूरी नीति में कोर्इ विशेष प्रगति न हो सकी। मजदूरी सम्बन्धी नीति के नियमन के क्षेत्र में द्वितीय विश्व Fight के बाद ही राज्य का सक्रिय हस्तक्षेप प्रारम्भ हुआ। श्रम जांच समिति ने मजदूरी निर्धारण के सन्दर्भ में वैज्ञानिक मनोवृत्ति के अपनाये जाने पर बल दिया। इसके द्वारा मजदूरी नीति के तीन विशिष्ट तत्व स्पष्ट किये गये :

  1. कठिन परिश्रम वाले उद्योगों, व्यवसायों And कृषि में न्यूनतम मजदूरी का वैयक्तिक Reseller से निर्धारण। 
  2. उचित मजदूरी सम्बन्धी अनुबन्धों को प्रोत्साहन। 
  3. बागानों में कार्य करने वाले श्रमिकों के लिए जीवन-निर्वाह मजदूरी प्रदान करने की दिशा में किये गये प्रयास। 

1947 के औद्योगिक शान्ति प्रस्ताव में कठोर परिश्रम की अपेक्षा करने वाले उद्योगों में वैधानिक Reseller से न्यूनतम मजदूरी निर्धारित करने And आर्थिक संगठित उद्योगों में उचित मजदूरी सम्बन्धी अनुबन्धों को प्रोत्साहित करने पर बल दिया गया। इस प्रस्ताव के अनुपालन में न्यूनतम मजदूरी अधिनियम, 1948 पारित Reseller गया तथा उचित मजदूरी समिति And लाभ-सहभाजन समिति का गठन Reseller गया।

1950 में लागू Indian Customer संविधान में described राज्य के नीति निर्देशक सिद्धान्तों के अन्तर्गत मजदूरी सम्बन्धी नीति व्यक्त की गयी है, जो कि इस प्रकार है : ‘‘स्त्रियों And पुरुषों दोनों के लिए समान कार्य के लिए समान भुगतान हो’’ (चतुर्थ भाग, अनुच्छेद 39-द) तथा ‘‘राज्य उपयुक्त विधान अथवा आर्थिक संगठन अथवा अन्य किसी प्रकार से कृषि से सम्बन्धित, औद्योगिक अथवा अन्य All श्रमिकों के कार्य, जीवन-निर्वाह मजदूरी, सभ्य जीवन स्तर And रिक्त समय तथा सामाजिक And सांस्कृतिक अवसरों के पूर्ण आनन्द को प्रदान करने वाली कार्य की शर्तो को प्रदान करने के लिए प्रयत्न करेगा’’ (अनुच्छेद 43)।

‘समान कार्य के लिए समान पारिश्रमिक’ सम्बन्धी नीति निर्देशक सिद्धान्त को, समान पारिश्रमिक अधिनियम, 1976 नामक Single विशिष्ट विधान पारित करते हुए कार्यात्मक Reseller प्रदान Reseller गया।

इसके अतिरिक्त, First पंचवश्र्ाी योजना से लेकर वर्तमान समय तक जितनी भी योजनायें लागू की गयी है उनमें मजदूरी के विषय में विशेष Reseller से प्रावधान किये गये हैं।

बोनस 

उत्पादकता में अधिकतम वृद्धि के इच्छित राष्ट्रीय उद्देश्य की प्राप्ति के लिए बोनस सहित अनेक प्रकार की योजनायें चलायी जाती रही है।। बोनस Single प्रकार का प्रलोभन है। प्रलोभन Word का प्रयोग उत्साहित करने वाली Single ऐसी शक्ति को सम्बोधित करने के लिए Reseller जाता है, जिसका समावेश Single लक्ष्य की प्राप्ति के सक साधन के Reseller में Reseller जाता है।

‘बोनस’ Word को मजदूरी के अतिरिक्त श्रमिकों के पुरस्कार के Reseller में परिभाषित Reseller जा सकता है। भारत में बोनस भुगतान का प्रारम्भ First विश्व Fight के समाप्त होने के बाद हुआ। अनेकों गोष्ठियों, समितियों, आयोगों And न्यायिक संस्थाओं ने समय-समय पर बोनस के भुगतान की संस्तुति की थी। परिणामस्वReseller 1961 में एमआर. मेहर की अध्यक्षता में बोनस आयोग का गठन Reseller गया। इस आयोग ने 1964 में अपना प्रतिवेदन प्रस्तुत Reseller। इसी वर्ष सरकार ने आयोग द्वारा प्रस्तुत किये गये प्रतिवेदन की सिफारिशों को कुछ संशोधनों के साथ स्वीकार कर लिया। आयोग द्वारा प्रस्तुत की गयी सिफारिशों की कार्यान्वित करने के लिए सरकार ने 1965 में Single अध्यादेश जारी Reseller जिसका स्थान बाद में बोनस भुगतान अधिनियम, 1965 ने लिया। इस प्रकार, बोनस के भुगतान को उत्पादकता के साथ सम्बन्धित करने तथा बोनस को प्रलोभन के Reseller में प्रयोग में लाने को वैधानिक स्वीकृति प्रदान कर दी गयी।

मजदूरी-अन्तर, मजदूरी भुगतान पद्धतियां And प्रेरणाएं 

सामान्य मजदूरियों के सम्बन्ध में उन सामान्य सिद्धान्तों की व्याख्या की गयी है जो श्रमिकों को मिलने वाले राष्ट्रीय लाभांष या आय के भाग को निर्धारित करते हैं।

सापेक्षिक मजदूरी तथा मजदूरी में अन्तरों के कारण 

सापेक्षिक मजदूरी की समस्या कुछ अलग है। इस सम्बन्ध में हमें विभिन्न रोजगारों And धन्धों या जगहों या रोजगार वर्गो तथा Single ही रोजगार या वर्ग के विभिन्न व्यक्तियों के बीच मजदूरियों में अन्तर के कारणों की व्याख्या करनी होती है। हर जगह मजदूरी की प्रवृत्ति श्रमिकों की सीमान्त उत्पादकता के करीब होने की होती है जो विभिन्न रोजगारों या वर्गो में अलग-अलग होती है। यह हर तरह के श्रमिकों की मांग उनकी कमी की मात्रा के साथ अलग-अलग होती है। यदि रोजगार के पूरे क्षेत्र में श्रमिकों की स्वतन्त्र गतिशीलता होती तो वास्तविक मजदूरी की प्रवृत्ति हर तरह के काम में लगे हुए श्रमिकों की सापेक्षिक कुशलता के अनुपात में रहने की होती तथा Single ही स्तर की कुशलता वाले श्रमिकों की वास्तविक मजदूरी (नकद मजदूरी नहीं) बराबर होनी की प्रवृत्ति रखती। वास्तविक जीवन में श्रमिक Single रोजगार से Second में खास तौर से विभिन्न वर्गो के बीच आजादी से नहीं आ जा सकते। विभिन्न वर्गो की प्रवृत्ति ‘अप्रतियोगी समूहों’ के हो जाने की ओर होती है।

व्यावहारिक जीवन में मजदूरी में अन्तर पाया जाता है जो विभिन्न रोजगार, धन्धों या जगहों में श्रमिकों के बीच या Single ही धन्धे में काम करने वाले श्रमिकों के बीच होता है। मजदूरी अन्तर पैदा करने वाले कारण इस प्रकार है। :

(1) श्रम बाजार में अप्रतियोगी समूहों के होने के कारण मजदूरी अन्तर – श्रमिक SingleReseller नहीं होते, उनमें मानसिक तथा शारीरिक गुणों तथा शिक्षा And प्रशिक्षण को देखते हुए अन्तर होता है। अत: श्रमिकों को विभिन्न वर्गो या समूहों में बांटा जा सकता है। किसी वर्ग या समूह के अन्दर श्रमिकों में प्रतियोगिता होती है, किन्तु विभिन्न समूहों के बीच प्रतियोगिता नही होती जिससे इन्ळै। ‘अप्रतियोगी समूह’ कहते है।। हर अप्रतियोगी समूह में श्रमिकों की मजदूरी उनकी मांग And पूर्ति की दशाओं के मुताबि निर्धारित होगी और इन समूहों की मजदूरियों में अन्तर होगा। अप्रतियोगी समूहों के अन्दर भी अप्रतियोगी समूह होते है। (जैसे डॉक्टरों के अप्रतियोगी समूह के अन्दर दिमाग के सर्जनों का अप्रतियोगी, समूह होता है)। विभिन्न अप्रतियोगी समूह अक्सर नीची मजदूरी वाले रोजगार से ऊंची मजदूरी वाले रोजगारों में श्रमिकों की गतिशीलता में कठिनाइयों के कारण पैदा होते है।। यह कठिनाइयां विभिन्न सामाजिक अथवा आर्थिक कारणों से हो सकती है।। यह यातायात सुविधाओं की कमी, पारिवारिक बन्धनों के होने या जाति सम्बन्धी रुकावटों And अच्छे प्रशिक्षण के साधनों की कमी, आदि के कारण भी हो सकती है। इस तरह अप्रतियोगी समूहों And उनके अन्तर्गत भी अप्रतियोगी समूहों (Single-Second के लिए आंशिक Reseller से स्थानापत्र होते हं)ै की मजदूरियों में अन्तर पाये जाते हैं।

(2) समकारी अन्तर मजदूरी के वे अन्तर जो कार्यो के अमौद्रिक लाभों के अन्तर के हरजाने का काम करते है। उन्है। समकारी अन्तर कहा जाता है। अमौद्रिक तत्व जो विभिन्न कार्यो या धन्धों में मजदूरी में अन्तर पैदा करते हैं वे ये हैं : –

  • रोजगार की प्रकृति सम्बन्धी अन्तर – जिन धन्धों में श्रमिकों का काम अस्थायी तथा अनियमित होता है उनमें मजदूरी स्थायी तथा नियमित काम करने वाले धन्धों की अपेक्षा ज्यादा होती है क्योंकि अस्थायी कार्य वाले धन्धे के श्रमिक बीच-बीच में बेरोजगार हो जाते हैं और खाली समय अपने भरण-पोषण का खर्च निकालने के लिए वे अपेक्षाकृत ऊंची मजदूरी पर काम करना चाहेंगे। 
  • कार्य की पसन्दगी अथवा सामाजिक प्रतिष्ठा सम्बन्धी अन्तर – प्राय: उन रोजगारों जहां काम आमतौर से पसन्द नहीं Reseller जाता या जिनमें सामाजिक प्रतिष्ठा होती है, Second रोजगारों की तुलना में ज्यादा मजदूरी दी जाती है, किन्तु कुछ ऐसे कार्यो में जो अकुशल श्रमिकों के द्वारा किये जाते है। जो सामाजिक या दूसरी कमजोरियों के कारण दूसरा काम नहीं कर सकते (जैसे भारत में सफार्इ कर्मचारी) मजदूरियां नीची हो सकती हैं। 
  • धन्धों की प्रकृति सम्बन्धी अन्तर – मुश्किल And खतरनाक धन्धों में आमतौर से आसानी से And Windows Hosting Reseller से किये जा सकने वाले धन्धों की अपेक्षा ज्यादा मजदूरी होती है। 
  • व्यवसाय या काम को सीखने में कठिनार्इ या लागत सम्बन्धी अन्तर –आमतौर से जो व्यक्ति कठिन धन्धों या कार्यो को अच्छी तरह से सीख सकते है। उनकी संख्या कम होती है और फलस्वReseller उनकी पूर्ति उनकी मांग से कम होती है। अत: उनकी मजदूरियां प्राय: दूसरों की तुलना में ऊंची होती है। 
  • कार्य की जिम्मेदारी And विश्वसनीयता सम्बन्धी अन्तर – कुछ कार्य ऐसे होते हैं जिनमें जिम्मेदारी तथा विश्वास की जरूरत होती है, जैसे बैंक के मैनेजर का कार्य, मिल मैनेजर का कार्य, आदि। ऐसे कार्यो के लिए आमतौर से दूसरों की तुलना में ऊंची मजदूरी होती है। 
  • भविष्य में उन्नति की आशा – जिन धन्धों में श्रमिकों के लिए भविष्य में उन्नति के अच्छे मौके होते है। उनमें शुरूआत में मजदूरी अपेक्षाकृत कम हो सकती है। 
  • सुविधाओं का होना – जिन धन्धों में श्रमिकों को नकद मजदूरी के अलावा दूसरी बहुत-सी सुविधाएं (जैसे छोटे-बड़े बच्चों की नि:शुल्क शिक्षा, नि:शुल्क चिकित्सा सम्बन्धी सुविधाएं, आवास सम्बन्धी सुविधाएं), आदि मिलती है। उनमें श्रमिकों की मजदूरी अपेक्षाकृत कम होती है। 

(3) असमकारी अन्तर – चूँकि वास्तविक जगत में All श्रमिक SingleReseller नहीं होते, उनकी मजदूरियों में All अन्तरों की व्यवस्था ‘समकारी अन्तरों’ द्वारा नहीं की जा सकती। Single ही व्यवसाय या समान कार्यो में लगे हुए श्रमिकों की मजदूरी में अन्तर की व्याख्या ‘असमकारी अन्तरों’ द्वारा की जाती है जिन्हें दो उपवर्गो में रखा जा सकता है –

  • बाजार की अपूर्णताएं – कर्इ तरह की अगतिशीलताएं (भौगोलिक, संस्थागत या सामाजिक), Singleाधिकारी प्रवृत्तियां तथा सरकारी हस्तक्षेप बाजार की अपूर्णताओं को जन्म देते है।। किसी व्यवसाय में मजबूत श्रमिक संघ के होने या श्रमिकों में Singleाधिकार की स्थिति या सरकार द्वारा न्यूनतम मजदूरी के निर्धारण, आदि के कारण मजदूरी अपेक्षाकृत अच्छी या ऊंची हो सकती है। इसके अलावा Single ही व्यवसाय में दो जगहों या क्षेत्रों में मजदूरी अन्तर श्रमिकों की भौगोलिक अगतिशीलताओं के कारण हो सकते हैं 
  • श्रमिकों के गुणों या उनकी कुशलता में अन्तर होना – विभिन्न श्रमिकों की योग्यताओं में अन्दरूनी गुणों, शिक्षा, प्रशिक्षण या उन दशाओं के कारण जिनमें कि काम Reseller जाता है अन्तर होता है। जब कुशलता ही अलग-अलग होती है, मजदूरी में अन्तर जरूर होगा। ऊपर बताये गये कारण विभिन्न रोजगारों और वर्गो की दिशा में श्रमिकों की पूर्ति के उनकी मांग के साथ समायोजन को प्रभावित करके मजदूरी अन्तर पैदा करते हैं। हर दशा में मजदूरी का निर्धारण श्रमिकों की मांग के सम्बन्ध में सीमितता की मात्रा या हर तरह के कार्य के सम्बन्ध में श्रमिकों की सीमान्त उत्पादकता द्वारा होता है।

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