भूकंप का Means, परिभाषा And भूकंप के पूर्व संकेत

भूकम्प अत्यन्त विनाशक और विध्वंशकारी, प्राकृतिक आपदा है। इसका पुनर्वनुमान नहीं हो पाता है। क्योंकि इसमें कम समय में Earth के अन्तरिक भाग से अधिक मात्रा में उर्जा का निकास होता है और Earth की पपटी हिलने और कांपने लगती है जिससे जनजीवन का अधिक विनाश और हानि होती है। भूकम्प Earth का कंपन होते है। इसे ही Earth का हिलना या डोलना कहते हैं। भूकम्प में यह कंपन Earth की प्लेटों में गति के कारण कभी समानान्तर Meansात क्षैतिजीय तथा कभी लम्बवत् Meansात उध्र्वाधर दोनों दिशाओं में होता है।

परिभाषाए

बार सेस्टर के According : ‘‘भूकम्प Earth की सतह का ऐसा कंपन अथवा दोलन है जो सतह के ऊपर अथवा नीचे की चट्टानों के प्रत्यास्थ अथवा गुरूत्वाकर्षणीय संतुलन में पड़ने वाले अस्थार्इ विघ्न के कारण होता है।’’ वास्तव में चट्टानों की व्यवस्था में बड़ा विघ्न कंपन उत्पé करता है जो इस विघ्न के स्त्रोत के साथ All दिशाओं में फैल जाता है।

जब भूकम्प आता है तब भूकम्पीय लहरें चलन लगती हैं। ये लहरें अत्यन्त शक्तिशाली होती है। वह स्थान जहाँ से भूकम्पीय लहरें उत्पन्न होकर गति करना प्रारम्भ करती है उसे भूकम्प मूल कहते हैं। जहाँ पर First भूकम्पीय लहरों का अनुभव होता है उसे भूकम्प केन्द्र कहा जाता है। यह स्थान भूकम्प मूल की ठीक ऊपर होता है। भूकम्पीय लहरों का ज्ञान भूकम्प लेखन यंत्र अथवा सीस्मोग्राफ द्वारा होता है।

भूकम्प Single क्षणिक And प्रलयकारी घटना है। इसमें कम्पन कभी इतना तीव्र And विनाशकारी होता है कि धरातल पर क्षणभर में अनेक परिवर्तन घटित हो जाते हैं। नगर, गाँव और कस्बे धराशायी होकर खण्डहरों में परिवर्तित हो जाते हैं। प्रारम्भ में जब Human संस्कृति अविकसित थी तो भूकम्प का तात्पर्य सामान्य प्रकोप से लिया जाता था। लेकिन वैज्ञानिक प्रगति के साथ इस धारणा में परिवर्तन हुआ है और भूकम्प की उत्पत्ति और इसके विभिन्न लक्षणों का वैज्ञानिक विश्लेषण Reseller जाने लगा है।

भूकम्प के सामान्य लक्षण

  1. भूकम्प Earth का कम्पन है। इसके तहत Earth की पपड़ी के नीचे अचानक चट्टानों का स्थानान्तरण होता है। 
  2. भूकम्प सामान्यत: Earth के कमजोर क्षेत्र में आते हैं। ये मुख्यतय: मोड़दार पर्वतों के क्षेत्र, महाद्वीपीय तथा महासागरीय प्लेट के मिलनबिन्दु, भ्रंश तथा दरार घाटी में घाटी है। 
  3. भूकम्प Single अप्रत्याशित घटना है। इसके घटित होने के समय तथा स्थान के बारे में पूर्वानुमान और भविष्यवाणी करना विज्ञान के लिए भी चुनौती है। 
  4. भूकम्प का प्रभाव व्यापक क्षेत्र में होता है। इसमें बड़े-बड़े भवन ढह जाते हैं, लोग घायल हो जाते हैं और कुछ मृत्यु को प्राप्त हो जाते हैं।
  5. भूकम्प की उत्पत्ति कर्इ कारण ों से होती है, जैसे ज्वालामुखी क्रिया, Earth का सिकुड़ना, प्लेटों का खिसकाव तथा Earth के साथ Human की छेड़छाड़ आदि। 
  6. भूकम्प सक्रिय ज्वालामुखी क्षेत्रों में आते हैं। ऐसे भूकम्प ज्वालामुखी गैंसों के बढ़ते हुए दबाव के प्रभाव से उत्पé होते हैं। ऐसे भूकम्प सामान्यतय: कम विनाशकारी होते हैं, लेकिन कभी-कभी विनाशकारी भी हो जाते हैं। 
  7. भूकम्प चट्टानों में तनाव के कारण आते हैं। तनाव के कारण चट्टाने टूट जाती है तथा अचानक पुन: अपने स्थान पर आने की कोशिश करती हैं। इसी कारण कम्पन होता है।
  8. भूकम्प दबाव के कारण भी आता है। Earth के अन्दर दबाव की शक्तियां हमेशा कार्य करती हैं। जब दबाव की शक्तियां तीव्र हो जाती हैं तो इनका प्रभाव चट्टानों पर पड़ता है। इससे मोड़दार पर्वतों का उद्भव होता है तथा धरातल पर कम्पन भी होता है। 
  9. भूकम्प संकुचन के कारण भी आता है। ऐसा मानना है Earth अपने उद्भव काल से ठंडी हो रही है। First पपड़ी ठंडी होकर ठोस हो गर्इ। बाद में पर्वतों और सागरों का निर्माण हुआ। जब संकुचन तीव्र गति से होता है तब भूस्थल में कम्पन उत्पé होता है। 
  10. भूकम्प के केन्द्र से ऊर्जा का विस्फोट होता है। यह ऊर्जा Earth के अन्दर स्थित रेडियो Single्टिव पदार्थों से उत्पé ताप के संग्रहण से उत्पé होती है। इस विस्फोट से चट्टाने टूटने, पिघलने और पुर्नगठित होने लगती है। इस व्यापक उथल-पुथल से भूचाल आता है। 
  11. भूकम्प Humanीय क्रियाओं के कारण आता है। जब Human निर्मित जलाशयों तथा बांधों में जल अधिक मात्रा में Singleत्र कर लिया जाता है तो जलीय भार तथा दबाव के कारण तली नीचे धंसकती है तथा भूसंतुलन में अव्यवस्था हो जाती है जिससे धरातल पर कम्पन उत्पé होता है। 
  12. दिसम्बर 1967 को भारत में आए कोयना भूकम्प के कारण कुछ विद्वान जलीय भार बताते हैं।
  13. भूकम्प प्लेटों की गतिशीलता के कारण आते हैं। भूपटल अनेक प्लेटों में विभक्त है। ये प्लेट गतिशील है।इससे तीन प्रकार से भूकम्प आता है – 1. जब दो प्लेट विपरीत दिशा में गति करती है। दबाव कम होने से चट्टान टूटती है। अन्दर स्थित ऊर्जा गैस And वाष्प के Reseller में तेजी से ऊपर की ओर निकलती है तो भूकम्प की उत्पत्ति होती है। 2. जब दो प्लेट Single Second की ओर गति करती है तो परस्पर टकराती है जिससे भूकम्प का अनुभव Reseller जाता है। 3. जब दो प्लेट अलग-अलग समानान्तर गति करती है तो दबाव कम होता है जिससे अन्दर स्थित तप्त लावा और गैस का ऊपर की ओर प्रवाह होता है और भूकम्प का अनुभव Reseller जाता है।
  14. भूकम्प में उत्पé होने वाली लहरे तीन प्रकार की होती है। First P लहरें अथवा प्राथमिक लहरें, द्वितीय 5 लहरें अथवा आड़ी लहरें, और तृतीय L लहरें अथवा धरातलीय लहरें। 1. P लहरें चट्टानों में प्रवेश कर जाती है। तरल भाग में इनकी गति कम होती है। ये Earth के प्रत्येक भाग पर गति करती हुर्इ धरातल पर पहुंचती है। इनकी गति अन्य लहरों से अधिक होती है। 2- S लहरों के अणुओं की गति लम्बवत होती है। ये तरल भाग में गति नहीं करती हैं। इनकी गति जल तरंगों की भांति सीस्मोग्राफ पर अंकित होती है। 3. L लहरें Meansात धरातलीय लहरें अधिक विनाशकारी होती हैं। ये लहरें दोनों लहरों की अपेक्षा पश्थ्वी की सतह के चारों ओर धीमी गति से यात्रा करती हैं। 
  15. भूकम्प कितना शक्तिशाली है, इसको नापने के लिए रिक्टर पैमाने का प्रयोग Reseller जाता है। यह पैमाना किसी भूकम्प की नाभि से उत्सर्जित होने वाली ऊर्जा का Single अनुमान प्रदान करता है। प्रस्तुत तालिका में भूकम्प के परिमाण, उसकी आवृत्ति तथा उससे उत्सर्जित ऊर्जा को दर्शाया गया है। भूकम्प का अंकन सीस्मोग्राफ नामक यंत्र से Reseller जाता है। Earth पर आने वाले अधिकांश भूकम्प कम तीव्रता वाले होते हैं। परन्तु ये इतने हल्के होते हैं कि लोगों को इनका अहसास नहीं हो पाता है। जब भूकम्पों का परिमाण 8 से अधिक होता है तो सर्वनाश हो जाता है। जनसंख्या की वृद्धि, नगरीय सघनता और गगनचुम्बी इमारतों के कारण भूकम्प की विनाशलीला और भयंकर हो जाती है।

भूकम्प के पूर्व संकेत

भूकम्प का पूर्वानुमान लगाना सीस्मोलॉजी का विषय है। भूकम्प के पूर्व कथन और पूर्वानुमान के बारे में वैज्ञानिकों ने अभी पूर्ण Reseller से सफलता नहीं पार्इ है। 1970 के दशक में वैज्ञानिक आशावादी थे कि भूकम्प के पूर्वानुमान की वे कोर्इ प्रयोगात्मक विधि निकाल लेगें। लेकिन 1990 के दशक तक वैज्ञानिकों को लगातार सफलता नहीं मिली। यद्यपि इन्होंने कुछ बड़े भूकम्पों के पूर्वानुमान के सन्दर्भ में कुछ दावे पेश किए लेकिन वे विवादित और कसौटी पर खरे नहीं उतरे और अभी तक भूकम्प को लेकर कोर्इ सटीक भविष्यवाणी नहीं की गर्इ। अत: भूकम्प का पूर्वानुमान कुछ पूर्व संकेतों के आधार पर Reseller जा सकता है। इन अनिष्ट सूचक पूर्व संकेतों को दो भागों में विभाजित Reseller जा सकता है-

1. उपकरणीय पूर्व संकेत 

वे पूर्व संकेत जिन्हे उपकरणों के माध्यम से ज्ञात Reseller जाता है। उपकरणीय पूर्व संकेत कहलाते हैं। इन उपकरणीय संकेतों के द्वारा भूकम्प का पूर्वानुमान इस प्रकार से लगाया जा सकता है-

  1. VP/VS में परिवर्तन – VP सकं ते प्राथमिक लहर के वगे का है जबकि टै संकेत द्वितीयक लहर के वेग का है। प्रयोगों के आधार पर सिद्ध हुआ है कि दोनों लहरों के वेग का आनुपातिक मान ऋण में आता है तो चट्टानों में विघटन प्रारम्भ हो जाता है। 
  2. रेडाने का उत्सर्जन – रेडाने गैस का उपयागे भूकम्प के संकेक त के Reseller में Reseller जा सकता है। क्योंकि यह रेडियोSingle्टिव है और इसका आसानी से पता लगाया जा सकता है। अध्ययन द्वारा यह ज्ञात हुआ है कि भूकम्प आने से पूर्व चट्टानों की विघटन की प्रक्रिया से रेडोन गैस का उत्सर्जन होता है। क्योंकि यह Earth के अन्दर रेडियो Single्टिव पदार्थों के Destroy होने से बनती है। Earth के अन्दर अधिकतर चट्टानों में यूरेनियम रेडियो Single्टिव खनिज पाए जाते हैं। 
  3. VAN विधि – यह विधि P Vartosos आरै उनकी सहयोगी टीम ने खोजी है। इसके According Earth के अन्दर विद्युत चुम्बकीय तरंगों में अन्तर से भूकम्प का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। इनके According Geo electric Voltage का मापन करके भूकम्प की भविष्यवाणी की जाती है। इन्होंने Geo electric Voltage dks Seismic Electric Signal (SBS) नाम दिया है। 1990 के दशक में इस टीम ने दावा Reseller कि 5 से अधिक परिमाण वाले तथा जिनका अभिकेन्द्र 100 किलोमीटर नीचे हो ऐसे भूकम्प का वह पूर्वानुमान लगा सकते हैं। 
  4. मैग्नामीटर यंत्र के द्वारा – यह यंत्र के द्वारा भूकम्प आने के कछु दिन पूर्व ध्वनि धीरे-धीरे बढ़ता है। भूकम्प आने के तीन घंटे पूर्व ध्वनि का स्तर .01- -5Hz तक उठ जाता है। वैज्ञानिकों ने 1989 के आसपास इस यंत्र से भूकम्प के पूर्वानुमान का नया विचार दिया। 
  5. भूकम्प की प्रवृत्ति का मापन – किसी क्षत्रे की भूकम्पीय घटनाओं की नियमित मानीटरिंग, विगत भूकम्पीय घटनाओं के रिकार्ड, भूकम्पों के पुन: घटने के अन्तराल के आधार पर भूकम्प आने की सम्भावना का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। इसमें भूकम्प से सम्बन्धित विभिन्न चरों को शामिल कर सांख्यिकी विधियों का प्रयोग कर भूकम्प का पूर्वानुमान लगाया जा सकता है। 
  6. प्रत्सास्थ पुनश्चलन सिद्धान्त – रीड के पत््र यास्थ पनु श्चलन सिद्धान्त के According चट्टानें Single सीमा तक लचीली होती है। Earth पर तनाव तथा खिंचाव की शक्तियां कार्य करती हैं। इसके According भूतल पर या उसके नीचे भ्रशों के निर्माण के कारण चट्टानों की स्थायी व्यवस्था में अचानक पुन: समायोजन होने से भूकम्प का आविर्भाव होता है।
  7. भूकम्प की विशेषताओं के आधार पर – इसके तहत विश्व के विभिन्न भूकम्प क्षेत्रों को चिन्हित कर उनकी प्रवृत्ति का आकलन Reseller जाता है। हर क्षेत्र में भूकम्प की प्रवृत्ति, उसका परिमाण तथा भूकम्प की विशेषतायें अलग-अलग होती है। यदि किसी क्षेत्र की दशायें समान हो तो भूकम्प की प्रवृत्ति उसी क्षेत्र के According होगी। इस विधि को Parkfield Prediction कहा जाता है।

2. गैर उपकरणीय पूर्व संकेत :

इन संकेतों का ज्ञान उपकरणों माध्यम से नहीं बल्कि अनुभव और एहसास के जरिए होता है। इन गैर उपकरणीय में पूर्ण धारणात्मकता का महत्व है। इन गैर उपकरणीय संकेतों को इस माध्यमों से पहचाना जा सकता है –

  1. जानवरो और कीडा़ें का व्यवहार – जानवर विद्यतु चुम्बकीय तरगांें के प्रभाव के कारण व्यवहार बदल देते हैं। भूकम्प आने के तीन दिन पूर्व से जानवरों के व्यवहार में परिवर्तन होता है – 
    1. घोड़ा, गधा तथा गाय अपनी लगाम को तोड़कर ऊपरी भाग पर चढ़ने लगती हैं। 
    2. खरगोश और चूहे भवन की सीढ़ियों पर चढ़ने लगते हैं और ऊपर चढ़ने के बाद नीचे नहीं आते।
    3. बिल्ली बाक्स के ऊपर चढ़ जाती है। 
    4. कुत्ते जोर से भौकने लगते हैं। 
    5. मछलियाँ तली गर्म हो जाने के कारण जल के ऊपरी भाग में तैरती दिखार्इ पड़ती हैं। 
    6. केकड़ा तट के किनारे बैठा रहता है। 
    7. चीटियाँ अपनी छिद्र से बाहर निकल आती हैं।
  2. आकाशीय दशाओं में परिवर्तन :
    1. भूकम्प के कारण पूरे क्षेत्र के ऊपर बादल दिखार्इ पड़ने लगते हैं। 
    2. असमान्य प्रकाश लाल, नीचे, ग्रीन और गुलाबी रंग में दिखार्इ पड़ता है। 
    3. छोटा सा इन्द्रधनुष स्वच्छ आकाश में दिखार्इ पड़ता है। 
    4. आकाश में माचिस की तीली से उत्पन्न आग के समान फायरबॉल दिखार्इ पड़ती है। 
    5. वातावरण में गर्म हवा का अहसास होता है।
    6. Earth के अन्दर से ध्वनि की आवाज आती है। 
  3. पेड़़-पौधों में परिवर्तन : 
    1. वृक्ष अपने फल समय से पूर्व गिरा देते हैं। 
    2. घास और वृक्षों की शाखाएं लाल रंग में बदलकर जलने सी लगती हैं।
  4. समुद्र और झील में परिवर्तन :
    1. भूकम्प आने के दो सप्ताह पूर्व समुद्र में बाढ़ आने लगती है।
    2. भूकम्प आने के 5 घंटों पूर्व समुद्र का पानी घटने लगता है। 
    3. भूकम्प आने के 1 से 5 घंटे पूर्व समुद्र में लहरे उत्पé होने लगती हैं।
    4. समुद्र की तली के गर्म होने से समुद्र का पानी गर्म होने लगता है। 
    5. झील और समुद्र में अधिक संख्या में हवा के बुलबुले दिखार्इ पड़ते हैं। 
  5. भूमिगत जल में परिवर्तन : 
    1. जल का तापमान 1 से 2 डिग्री के बीच बढ़ जाता है। 
    2. जल में कार्बन डार्इ आक्साइड, मीथेन और रेडोन गैस की मात्रा बढ़ जाती है। 
    3. जल का स्वाद या तो मीठा हो जाएगा या खारा हो जाएगा। 
    4. पानी में सल्फर की महक आने लगती है। जल में Air Bubbles की मात्रा बढ़ जायेगी।
    5. यदि कहीं गर्म जल का सोता है तो Second गर्म सोते निकल आएंगे। 
  6. Humanीय व्यवहार में परिवर्तन : टकीर् आरै जापान के वैज्ञानिका े ने 450 भूकम्प क्षेत्रों के अध्ययन के आधार पर निष्कर्ष निकाला कि भूकम्प से पूर्व Humanीय व्यवहार में कर्इ परिवर्तन होते हैं – 
    1. विद्युत तरंगों के प्रवाह के कारण हृदय में परेशानी होने लगती है।
    2. व्यक्ति थका सा महसूस करता है। 
    3. लोगों में मचली (उल्टी) भी आने लगती है। 
    4. गर्भवती महिला के गर्भाशय में बच्चे की गति का अहसास होता है। 
    5. उच्च रक्तचाप बढ़ने लगता है। 
    6. रात्रि भर बिना कारण के जागना, गले में जलन, और नाक से रक्त बहने लगता है।
  7. विद्युत उपकरणों में व्यवधान :
    1. भूकम्प आने के कुछ समय पूर्व वायरलैस, टेलीफोन और रेडियों प्रसारण में व्यवधान आने से आवाज स्पष्ट नहीं सुनार्इ पड़ती है। 
    2. क्वार्टज घड़ियों में सुर्इ जल्दी गति करने लगती है।

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