भारत में विज्ञापन का उद्धव, विकास And उद्देश्य
प्रचार माध्यम के Reseller में प्राचीन मंदिर, स्मारक, महल, पिरामिड आदि All आज भी उनके निर्माताओं के जीवित विज्ञापन हैं जो उनकी उदारता, दयालुता, कलाप्रियता तथा महानता की कहानी आज भी कहते हैं। उच्चरित Wordों के Reseller में First विज्ञापन यूनान के आरम्भिक प्रजातंत्र के चुनावों में प्रयुक्त हुए है उस समय के उम्मीदवार अपने विज्ञापन-कर्ताओं को भीड़ में घुसाकर परस्पर बातचीत करके लोगों को अपने पक्ष में प्रभावित करने का प्रयत्न करते थे। लिखित विज्ञापन के Reseller में लंदन के ब्रिटिश संग्रहालय में मिश्र का विज्ञापन द्रष्टव्य है, जिसमें Single भागे हुए गुलाम को लाने की बात कही गर्इ है। विज्ञापन का Single अन्य Reseller ‘नगर उद्घोषक’ के Reseller में मिलता है, जिसमें ये लोग व्यापारी की ओर से घोषणा करते थे कि क्या चीज कहां सुलभ है।
भारत की पूर्व महान सभ्यताओं हडप्पा और मोहनजोदड़ो के उत्खनन में मिले अवशेषों में भी जो मोहरें व मुद्राएं मिली हैं वे आधुनिक ‘लोगो’ व ‘ट्रेडमार्क’ का ही प्रारम्भिक Reseller है विज्ञापनों में वर्तमान में जिस कला व प्रस्तुति के दर्शन होते हैं वही कला व प्रस्तुति तत्कालीन अवशेषों में भी दिखार्इ पड़ती है। समय के आधारभूत तथ्यों के साथ कलाएं व जनसंचार माध्यम धीरे-धीरे परिश्कृत होकर समाज में अपना स्थान बनाते रहे। आधुनिक विज्ञापन कला का सूत्रपात भारत में प्रेस के आगमन के साथ-साथ हुआ। यह प्रेस पुर्तगालियों द्वारा सन् 1556 में गोवा में लगार्इ गर्इ थी। 1877 में ‘हिकी’ ने कलकता में अपने प्रेस की बुनियाद रखी। 29 जनवरी, 1780 को उसने साप्ताहिक समाचार पत्र प्रारम्भ Reseller। इसमें ‘विज्ञापन’ भी प्रकाशित किए गए। 1784 से लेकर 19 वीं सदी के प्रारम्भ के वर्षो तक इनमें सामाजिक सरोकारों के विज्ञापन प्रकाशित होते थे। ये विज्ञापन न केवल उपभोक्ता वस्तुओं को प्रभावित करते थे बल्कि देश की तत्कालीन सामाजिक, राजनीतिक स्थिति को भी परिलक्षित करते थे। उन्नीसवीं सदी के प्रारम्भिक दशकों में छपने वाले विज्ञापनों में स्वदेशी, भारत की भूमि के प्रति प्रेम व संस्कृति सम्बन्धी अवयव होते थे। ‘भारत का उत्तर’ ‘स्वदेशी वस्तुएं खरीदें’ जैसी उक्तियां इन विज्ञापनों की बेस लाइन थीं।
1906 में धारीवाल मिल ने ऊनी वस्त्रों के Single विज्ञापन में इंगित Reseller था कि ‘भारत के लिए भारत में बना’। इसी प्रकार अनेक विज्ञापनों में ‘स्वदेशी’ का उपयोग Reseller गया। बन्देमातरम् और बंकिमचन्द्र चटर्जी के चित्र भी कर्इ विज्ञापनों के अंग बने। तब तक के विज्ञापनों में जो चित्र प्रकाशित होते थे वे अंग्रेजी महिला- पुरुषों के होते थे। 1900 में पहली बार जब Indian Customer मॉडलों का प्रवेश हुआ तब First पुरुषों का ही आगमन हुआ। महाKingओं की तस्वीरें भी प्राय: छपती थीं। मॉडल के Reseller में Indian Customer महिलाओं व लड़कियों के चित्र स्वतंत्रता के पश्चात के विज्ञापनों में ही देखने को मिलते है 1896 में मूक फिल्मों के युग की शुरूआत के बाद विज्ञापनों में रोमांस, सैक्स आदि का समावेश होने लगा। 1931 में Indian Customer फिल्म ‘आलमआरा’ में विज्ञापन प्रकाशित हुए। 1920 में कुछ विदेशी कम्पनियों ने अपने विज्ञापन कार्यालय भारत में खोले। तभी से Indian Customer विज्ञापन कला को व्यावसायिक Reseller मिला। 1930 में पहली Indian Customer एजेन्सी स्थापित हुयी जिसका नाम था ‘नेशनल एडवरटाइजिंग सर्विस’। इसके पश्चात मद्रास में मॉर्डन पब्लिसिटी कम्पनी, कलकत्ता में कलकत्ता पब्लिसिटी कम्पनी और त्रिचुरापल्ली में ओरिएंटल एडवरटाइजिंग एजेन्सी की स्थापना हुर्इ। द्वितीय विश्व Fight के दौरान सरकारी प्रचार कार्य का बड़े स्तर पर विज्ञापन हुआ। इससे समाचार-पत्रों की आय में भी खासी वृद्धि हुर्इ।
द्वितीय विश्व Fight के पश्चात तेजी से बदलते सामाजिक, आर्थिक परिवेश के फलस्वReseller विज्ञापनों के स्तर में भी महत्वपूर्ण बदलाव आया। विज्ञापनों के स्वReseller में भी क्रान्तिकारी परिवर्तन आए। वाचिक विज्ञापनों, हाथ से लिखे विज्ञापनों तथा प्रतीक विज्ञापनों का यह क्रम पन्द्रहवीं सदी के मध्य तक चलता रहा। पेटेण्ट दवाओं के विज्ञापनों की बाढ़ से विज्ञापन-कार्य सबसे अधिक बढ़ा। आज तो विज्ञापन पूरा व्यवसाय तथा Single विशिष्ट कला ही बन गया है। निरन्तर बदलाव, उन्नति और अभिनव प्रयोगों के बल पर आज विज्ञापन कला अपने विकसित और उन्नत स्वReseller में है।
आज समूची आर्थिक प्रक्रिया में विज्ञापन ने Single विशिष्ट स्थान बना लिया है। दैनिक पत्र-पत्रिकाओं, रेडियो, टेलीविजन, दीवारों, होर्डिंगों, निओन साइनों, आकाशीय अक्षर लेखन, मोबाइल, इंटरनेट, प्रचार उद्घोषणाओं, डाक से आये पत्रों, घर-घर पहुंचने वाले सैल्समैनों और न जाने ऐसे ही कितने साधनों के जरिए विज्ञापन व्यक्ति के मानस पर छाया रहता है जो विज्ञापन हम देखते है वह निर्माण प्रक्रिया के समग्र प्रयास का अत्यन्त लघु Reseller होता है। ठीक उसी प्रकार जैसे पानी में तैरते हुए बर्फ के टुकड़े का जो भाग दिखता है, वह Single बड़े आइसवर्ग का Single छोटा सा अंश होता है। समग्र Reseller में विज्ञापन को Meansशास्त्रीय, समाजशास्त्रीय, मनौवैज्ञानिक तथा प्रबन्ध-प्रणाली के Reseller में समझा जाता है। भले ही धार्मिक नेता, दार्षनिक, समाजशास्त्रीय और राजनीतिज्ञ विज्ञापन की आलोचना करें, किन्तु विज्ञापन की प्रशंसा या निन्दा समूचे औद्योगिक तंत्र तथा Means-व्यवस्था की प्रशंसा या निन्दा किये बिना नहीं की जा सकती।
आज का युग विज्ञापन का युग है। किसी भी वस्तु, व्यक्ति या जगह से हम विज्ञापन के माध्यम से ही परिचित हो जाते है विज्ञापन ने अपना आधुनिक Reseller ले लिया है और यह समाज का आर्थिक तंत्र का अभिन्न अंग बन गया है और मीडिया की तो इसे रीढ़ ही समझा जाने लगा है।
विज्ञापन के उद्देश्य
विज्ञापन हमेशा ही ‘लाभ’ के उद्देश्य को लेकर चलते हैं। यों तो अधिकांशत: यह लाभ प्रस्तुतकर्ता को वस्तु के बेचने से होने वाला मुनाफा ही होता है पर कभी-कभी जनजागरण, माहौल, सेवा के बारे में विचारधारा, सामाजिक बदलाव, वैचारिक उत्थान, सरकारी रीति-नीति का प्रचार, राजनीतिक लाभ आदि वृहद् उद्देश्यों के आधार पर भी विज्ञापन जारी किए जाते हैं। सार Reseller में आकलित करें तो विज्ञापन के उद्देश्य इस प्रकार हो सकते हैं :
- उन All संदेशो का Single अंश प्रस्तुत करना जो उपभोक्ता पर प्रभाव डालें।
- वस्तुओं, कम्पनियों व संस्थाओं के प्रतिनिधि के Reseller में प्रस्तुत होना।
- समाज की Single प्रतिनिधि संस्था के Reseller में उद्यम प्रक्रिया का Single अभिन्न अंग होना।
- वस्तु की बिक्री बढ़ाने में प्रभावशाली भूमिका निभाना।
- Single प्रभावी विपणन औजार के तौर पर लाभकारी संगठनों और प्रबन्धकों को अपना उद्देश्य पूरा करने में सहायता करना।
- समाज की उभरती व्यावसायिक Needओं को पूरा करना।
- व्यावसायिक तौर पर जारी संदेशो के जरिए उपभोक्ताओं को लाभप्रद, सम्बन्धित व निश्चित सूचना प्रदान कराना।
- आर्थिक क्रिया को विभिन्न नियमों कानूनों के According चलाना।
- नर्इ वस्तुओं और सेवाओं की सूचना देना।
- विषेश छूट और मूल्य परिवर्तन की जानकारी देना, उपभोक्ता मांग में वृद्धि करना।
- खरीदने और अपनाने की प्रेरणा देना।
इन उपर्युक्त उद्देश्यों को लेकर चलने वाली प्रक्रिया ‘विज्ञापन’ उपभोक्ता व निर्माता के मध्य की प्रक्रिया है। विज्ञापन का उद्देश्य हर स्थिति में अपने ‘संदेश’ को उपभोक्ता के मानस पटल पर अंकित करना ही होता है