Indian Customer पुनर्जागरण क्या है ?

Means:-पुनर्जागरण को अग्रेंजी भाषा में रिनेसां कहा गया है या यों कहे कि अग्रेंजी भाषा में रिनेसां Word का पुनर्जागरण हिन्दी Resellerान्तर है । यह मूल Reseller से फ्रांसीसी भाषा का Word है जिसका Means है ‘‘फिर से जागना’’ ।
आधुनिक युग का प्रारम्भ पुनर्जागरण से प्रारम्भ होता है । किन्तु हम यहां पुनर्जागृत भारत की बात कर रहें है । 19वीं सदी के उत्तरार्द्ध में भारत में धार्मिक And सामाजिक सुधार आन्दोलन ने जन आन्दोलन का Reseller धारण कर लिया था । उन्हीं का description यहां दिया जा रहा है-

ब्रम्ह समाज And King राममोहन राय- 

22 मर्इ 1774 कां बगांल के Single ब्राम्हण परिवार में इन्होंने जन्म लिया । पिता रमाकान्त तथा माता नारिणी देवी थीं । वे अंग्रेजी भाषा के साथ फ्रेंच, ग्रीक, लेटिन, जर्मन And हिन्दू भाषा भी जानते थे । वे मूर्ति पूजा के विरोधी और Singleेश्वरवाद में विश्वास करते थे । वे र्इसा के नैतिक सन्देशों के प्रशंसक थे उनकी मान्यता थी कि विश्व के All धर्मो का उपदेश समान है । सन् 1828 र्इ. में उन्होंने ब्रम्ह समाज की स्थापना की । यही ब्रम्ह समाज कहलार्इ ।

ब्रम्हसभा- 

ब्रम्ह समाज की स्थापना का मुख्य उद्देश्य हिन्दू धर्म में सुधार And Singleेश्वरवाद का प्रचार करना था ।

ब्रम्ह समाज के सिद्धान्त-

  1. जाति, धर्म, वर्ण, प्रजाति आदि के भेद के बिना All को र्इश्वर की आराधना करनी चाहिए । 
  2. शुद्ध मन से र्इश्वर की उपासना करने से मनुष्य अच्छे कार्यो की ओर प्रवृत्त होता है तथा तृष्णा त्याग से मोक्ष प्राप्त होता । 
  3. र्इश्वर के संबंध में मान्यता है कि र्इश्वर निर्गुण निराकार व निर्विकारी है । वह देह धारण नहीं करता ।
  4. Human अपने अच्छे व बुरे कर्मो के According अच्छे या बुरे फल प्राप्त करता है । 
  5. ब्रम्ह समाज All धर्मो पर आस्था रखता है तथा उसकी मान्यता है कि All धर्म सन्मार्ग में चलने की प्रेरणा देते है ।

मूल्यांकन- 

King राममोहन राय ने First भारत में धर्म सुधार And समाज सुधार आन्दोलन प्रारंभ Reseller । वे Single दूरदर्शी And महान चिन्तक भी थे । उन्होंने आधुनिक शिक्षा का प्रबल समर्थन Reseller । पाश्चात्य शिक्षा से प्रगतिशील विचारों की जानकारी हो सके इसी लिये उसका समर्थन Reseller । वे पत्रकारिता के अग्रदूत, विश्वराजनीति के ज्ञाता तथा राष्ट्रवाद के जनक थे । उन्होंने सती प्रथा जैसी कुरीतियों का विरोध कर नारी की स्वतंत्रा व उसके अधिकारों की वकालत की ।

स्वामी दयानन्द सरस्वती And आर्य समाज-

आर्य समाज के संस्थापक स्वामी दयानन्द जी सरस्वती हैं । सन् 1824 र्इ. में गुजरात के वंकरा परगने के जिवपुर ग्राम में इनका जन्म हुआ था । बचपन का नाम मूलशंकर था । जब वे 21 वर्ष के हुये तो गृह त्याग कर दिया 15 वर्षो तक यहां वहां भ्रमण करते रहे । सन् 1860 र्इ. में उन्होंने मथुरा पहुंचकर स्वामी वृजानन्द से दीक्षा ली । वहीं संस्कृत का अध्ययन Reseller तथा वेदों का भी गहन अध्ययन Reseller । उन्होंने ‘वेदो की ओर लौटों’ का नारा बुलन्द Reseller । कहा जाता है कि बचपन में Single बार शिवरात्रि के पर्व पर Single मन्दिर में शिवलिंग पर Single चुहे को प्रसाद खाते हये देखकर उनका विश्वास मूर्तिपूजा से हट गया ।

आर्य समाज की स्थापना- 

हिन्दू धर्म की वास्तविकता को सामने लाने के लिये स्वामी दयानन्द जी ने ‘सत्यार्थ प्रकाश’ ग्रन्थ की Creation की । सन 1857 र्इ. में उन्होंने मुम्बर्इ में आर्यसमाज की स्थापना की । आगे चलकर 1877 र्इ. में लाहौर तथा 1878 र्इ. में दिल्ली में आर्य समाज की स्थापना उनके द्वारा की गर्इ । 30 अक्टूबर 1883 र्इ. को स्वामी जी का देहावसान हो गया ।

आर्य समाज के सिद्धान्त- 

स्वामीजी ने सत्यार्थ प्रकाश के आधार पर आर्य समाज के निम्न सिद्धान्त बनाये-

  1. वेद सच्चे ज्ञान के स्त्रोत हैं इसलिये इनका अध्ययन All को करना चहिये । 
  2. र्इश्वर निर्विकार, दयालु, अजर, अमर, सृष्टिकर्ता, न्यायकारी And सर्वशक्ति मान है । 
  3. किसी भी कार्य को सत्य And असत्य का विचार करके ही करना चाहिये । 
  4. All को असत्य का त्याग And सत्य को ग्रहण करना चाहिये ।
  5. Human को केवल अपनी उन्नति से ही सन्तुष्ट नहीं होना चाहिये बल्कि All की उन्नति से ही संतुष्ट नहीं होना चाहिये बल्कि All की उन्नति में अपनी उन्नति समझना चाहिये ।
  6. समस्त Human समुदाय को शारीरिक, आत्मिक तथा सामाजिक उन्नति के लिये प्रयासरत रहना चाहिये ।
  7. धर्मानुकूल आचरण करना Human का प्रमुख कर्तव्य है । इसे भूलना नहीं चाहिये । 
  8. अविद्या को समाप्त कर विद्या का प्रचार प्रसार करना चाहिये ।
  9. स्वयं के हित से संबंधित कार्य में आचरण की स्वतंत्रा रखनी चाहिये परन्तु सामाजिक कार्यो में आपसी मतभेदों को भुला देना चाहिये । 
  10.  ज्ञान की प्राप्ति से र्इश्वर का बोध होता है ।

आर्य समाज के कार्य-

स्वामी दयानन्द सरस्वती ने आर्य समाज के माध्यम से समाज को पुनर्जागृत Reseller । तत्कालीन भारत में सामाजिक, आर्थिक And राजनीतिक क्षेत्र में सुधार आदि के कार्य में महत्वपूर्ण योगदान दिया । जैसे-

  1. सतीप्रथा को समाप्त करने पर जोर दिया । बाल विवाह को सामाजिक बुरार्इ माना। विधवा विवाह का समर्थन Reseller । जाति-पांति And छुआ-छूत का अत्यधिक विरोध Reseller । 
  2. स्त्रियों को समाज में आदर मिले इसके लिए स्त्री शिक्षा पर जोर दिया । वैदिक शिक्षा के प्रसार प्रचार के लिये गुरूकुल स्थापित करवाये । इसमें हरिद्वार का गुरूकुल कांगड़ी अत्यधीक प्रसिद्ध शिक्षा का केन्द्र है । 
  3. आर्य समाज ने वेदों की ओर लौटों का नारा दिया तथा बुद्धदेववाद व अवतारवाद का खण्डन Reseller । अन्धविश्वास तथा मूर्ति पूजा का विरोध कर Single र्इश्वर की आराधना करने का सन्देश दिया । प्राचीन आर्य संस्कृति और सभ्यता को सामने रखकर Indian Customerों में आत्मसम्मान व गौरव पैदा करने का काम Reseller ।
  4. स्वामीजी ने विदेशी वस्तुओं के बहिष्कार और स्वेदीश वस्तुओं के प्रचार प्रसार जोर दिया। उन्होंने Indian Customerों को पुनर्जाग्रत करने का काम Reseller । सत्यार्थ प्रकाश में लिखा कि अच्छे से अच्छा विदेशी शासन स्वदेशी शासन की तुलना नहीं कर सकता । वे First व्यक्ति थे जिन्होंने कहा कि भारत भारतवासियों के लिये है ।

स्वामी विवेकानन्द And रामकृष्ण मिशन

स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 र्इ. केा कोलकता के Single क्षत्रिय परिवार में हुआ था । इनके बचपन का नाम नरेन्दनाथ था । पूर्व में उनकी आस्था र्इश्वर में नहीं थी परन्तु ब्रम्ह समाज की शिक्षाओं से प्रभावित हो र्इश्वर में विश्वास करने लगे । उनका साक्षात्कार 25 वर्ष की आयु में स्वामी रामकृष्ण जी से हुर्इ और वे अत्यधिक प्रभावित हुये । वे रामकृष्ण जी के पक्के परमप्रिय शिष्य बन गये तथा उनके द्वारा बताये गये मार्ग में चलने लगे । स्वामी विवेकानंद जी 31 मर्इ 1893 र्इ. को सर्व धर्म सम्मेलन में भाग लेने शिकागों (अमेरिका) गये । वहां उनके भाषण का अमेरिका की जनता पर बहुत गहरा प्रभाव पड़ा । Single समाचार पत्र ‘द न्यू हेराल्ड’ ने लिखा था कि ऐसे विद्वान के देश (भारत) में र्इसार्इ पादरी भेजना कितनी बड़ी मुर्खता है ।

रामकृष्ण मिशन-

फरवरी 1896 र्इ. में विवेकानंद जी ने अमेरिका के न्यूयार्क नगर में वेदान्त समाज की स्थापना की तथा उसी वर्ष भारत में रामकृष्ण मिशन (सेवाश्रम) की स्थापना की । रामकृष्ण मिशन के निम्नलिखित सिद्धान्त हैं-

  1. स्वामी विवेकानंद जी विभिन्न मत व सम्प्रदाय Human को Single ही स्थान में ले जाते है जैसे विभिन मार्गो से बहती हुर्इ नदियां अपने आप को समुद्र में आत्मSeven कर देती है । 
  2. हिन्दू धर्म अत्यन्त प्राचीन है । यह आध्यात्मिकता पर बल देता है तथा इसमें All धर्मावलम्बियों को समन्वित करने की शक्ति है । यह उदार है All को आश्रय देता है All को आश्रय देता है । अत: उपासना And सन्यास व समाधिकें द्वारा र्इश्वर की प्राप्ति संभव है ।
  3. रामकृष्ण मिशन मानता है कि मूर्तिपूजा से Human मन Singleाग्र होता और सरलता से अध्यात्मिक शक्ति का विकास हो सकता है इसलिये मूर्तिपूजा की जानी चहिये । 
  4. र्इश्वर Single है, वह निराकार, सृष्टिकर्ता, सर्वव्यापी तथा अन्तर्यामी है ।

सामाजिक विचार-

स्वामी विवेकानंद जी ने स्त्रियों के उत्थान के लिये स्त्री शिक्षा को अत्यधिक महत्व दिया। उनका कथन था कि संसार की जातियां नारियों को समुचित सम्मान देकर ही महान हुर्इ हैं । दरिद्रों की सेवा को उन्होंने र्इश्वर प्राप्ति का साधन बताया ।

राष्ट्रीय जागरण-

स्वामी विवेकानंद ने सम्पूर्ण Indian Customerों में नवीन चेतना व उत्साह का संचार करके राष्ट्रीय जागरण में विशिष्ट योगदान दिया । पश्चिमी भौतिकवादी सभ्यता से सावधान Reseller । वे शक्तिशाली And आत्मनिर्भर राष्ट्र की स्थापना चाहते थे । उनका विचार था कि भारत में स्थायी राष्ट्रवाद का निर्माण धार्मिकता के आधार पर ही Reseller जा सकता है । उन्होंने कहा था कि निर्भिक बनों, साहस धारण करो और गर्व के साथ कहो कि मैं Indian Customer हूॅं तथा प्रत्येक Indian Customer मेरा भार्इ है । इस प्रकार विवेकानंद ने अल्पकाल में ही अति महत्वपूर्ण कार्य किये ।

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