बोलचाल की भाषा क्या है ?
बोलचाल की भाषा का सामान्य परिचय
आमतौर से सामान्य भाषा के अन्तर्गत भाषा के कर्इ Reseller उभर कर आते हैं। डॉ. भोलानाथ के According, ये Reseller प्रमुखत: चार आधारों पर आधारित हैं- History, भूगोल, प्रयोग और निर्माता। इनमें प्रयोग क्षेत्र सबसे विस्तृत है। जब कर्इ व्यक्ति-बोलियों में पारम्पारिक सम्पर्क होता है, तब बोलचाल की भाषा का प्रसार होता है। Second Wordों में, आपस में मिलती-जुलती बोली या उपभाषाओं में हुए व्यवहार से बोलचाल की भाषा को विस्तार मिलता है। इसे ‘सामान्य भाषा’ के नाम से जाना जाता है। पर किसी भी भाषा की भाँति यह परिवर्तनशाील है, समकालीन, प्रयोगशील तथा भाषा का आधुनिकतम Reseller है।
साधारणत: हिन्दी की तीन शैलियों की Discussion की जाती है। हिन्दी, उर्दू और हिन्दुस्तानी। शिक्षित हिन्दी भाषी अक्सर औपचारिक स्तर पर (भाषण, कक्षा में अध्ययन, रेडियो वार्ता, लेख आदि में) हिन्दी या उर्दू शैली का प्रयोग करते हैं। अनौपचारिक स्तर पर (बाजार में, दोस्तों में गपशप करते समय) प्राय: हिन्दुस्तानी का प्रयोग करते हैं। जिसमें हिन्दुस्तानी के दो Reseller पाये जाते हैं। Single Reseller वह है जिसमें अंगे्रजी के प्रचलित Word हैं और Second में अगृहीत अंग्रजी Word का प्रचलन है। बोलचाल की हिन्दी में ये सारी शैलियाँ मौजूद रहती हैं। Meansात् इसमें सरल बहुप्रचलित Wordों का प्रयोग होता है। चाहे वह तत्सम प्रधान हिन्दी हो या परिचित उर्दू अथवा अंग्रजी-मिश्रित हिन्दुस्तानी, व्याकरण तो हिन्दी का ही रहता है।
बोलचाल की भाषा बड़े पैमाने पर विस्तृत क्षेत्र में प्रयुक्त होती है। भक्तों द्वारा, साधु-संतों द्वारा, व्यापारियों के जरिए, तीर्थस्थानों में, मेला-महोत्सव में, रेल के डिब्बों में, सेना द्वारा, शिक्षितों में, मजदूर और मालिक के बीच, किसान और जमींदार के बीच बोलचाल की भाषा बड़ी तेजी से फैलने लगती है। यह प्रेम की, भार्इ-चारे की, इस मिट्टी की तथा हमारी संस्कृति की भाषा है। चूंकि Indian Customer संस्कृति सामासिक संस्कृति के Reseller में समूचे विश्व में शुमार होती है, इसमें भाषार्इ अनेकResellerता का दृष्टिगत होना स्वाभाविक है। हमारी संस्कृति की भाँति हमारी भाषा हिन्दी भी अनेकता को अपने में समाहित कर राष्ट्रीय Singleता की पहचान कराती है। बहुभाषी राष्ट्र की विविधता, सांस्कृतिक विशालता And भौगोलिक वैभिन्न्य के कारण सृष्ट बहुविध Wordों में से कर्इ मधुर क्षेत्रीय Word हमारी बोलचाल की भाषा में समाये हुए हैं। इससे सहजता, बोधगम्यता के साथ-साथ Single अपनापन भी अनायास आ जाता है।
संसार की प्रत्येक बोलचाल की भाषा आगे चलकर मानक भाषा बन जाती है। इसकी सबसे बड़ी विशेषता है इसकी सहजता और सरलता। मौखिक प्रयोग के कारण कहीं कहीं शुद्धता भले ही न हो, पर बोधगम्यता और सम्प्रेषणीयता में यह सबसे आगे है। जो भाषा जितनी सम्प्रेषणीय है, वह उतनी ही समर्थ है। सम्प्रेषणीयता के बिना भाषा की उपयोगिता कहाँ रह जायगी ? सच पूछिये तो भाषा Second के लिए अभिप्रेत है। वक्ता और श्रोता के बिना भाषा की कोर्इ परिचिति नहीं है। इसी सम्प्रेषण के चलते मनुष्य अपने आसपास से लेकर सारे संसार से जुड़ता है। अपने को अच्छी तरह अभिव्यक्त करने हेतु वह अन्यन्त प्रभावशाली ढंग से भाषा का प्रयोग करता है।
सतत परिवर्तनशील होने के कारण भाषा में भिन्नता पायी जाती है। भाषा पर क्षेत्रीय प्रभाव को भी झूठलाया नहीं जा सकता। लेकिन यह भी सत्य है कि भाषा की इन विविधताओं के बावजूद उसका Single मानक Reseller होता है। फिर भी ‘भाषा बहता नीर’ कभी स्थिर कैसे रह सकता है। जन-जन तक फैलकर सबसे घुलमिल कर उसका Single मौखिक Reseller सदा बरकरार रहता है, जो सरल, सहज, बोधगम्य और मधुर भी है।