बाल मनोविज्ञान का Means, परिभाषा And सिद्धांत
मनोविज्ञान Word में बाल ‘उपसर्ग’ लगने से बना बाल मनोविज्ञान जिसका तात्पर्य बच्चों का मनोविज्ञान या बाल व्यवहार का अध्ययन। बालकों का मनोविज्ञान बहुत रोचक है। इसमें बाल्यावस्था में होने वाले क्रमिक विकास व्यक्तित्व संबंधी विशेषताओं और मनोदशा का अध्ययन Reseller जाता है। यदि हम बाल मनोविज्ञान पर शाब्दिक दृष्टि से ही विचार करें तो कह सकते है कि – ‘‘बाल मनोविज्ञान बालक के मन का अध्ययन करता है।’’ ‘‘बाल मनोविज्ञान जन्म से किशोरावस्था तक विभिन्न विकासों का अध्ययन करता है।’’
बाल मनोविज्ञान का Means And परिभाषा:- बाल्यावस्था Human के समूचे जीवन की आधारशीला है। अत: इस अवस्था में ही उसके जीवन को विकास की सही संतुलित दिशा मिलनी चाहिए जिससे स्वस्थ Human जीवन निर्मित हो सके। वैसे प्राचीन काल से ही बचपन के महत्व को समझा जाता रहा है। भारत में धर्म ग्रंथों में भी गर्भस्थ शिशु से लेकर किशोरावस्था तक बालक के समूचे विकास के लिए कहा गया है फिर भी आधुनिक जीवन में बाल मनोविज्ञान के जन्म और विकास से यह क्षेत्र विस्तृत हो गया है। इसलिए बाल मनोविज्ञान को आज के युग की अनिवार्य Need कहा गया है।
‘‘बाल मनोविज्ञान बाल व्यवहार तथा मनोवैज्ञानिक वृद्धि से संबद्ध विज्ञान के लिए उपयोग में लाया जाने वाला Single सामान्य Word है।’’
बाल मनोविज्ञान का तात्पर्य बाल मन से है। बाल मनोविज्ञान बालक के मानसिक तथा शारीरिक दोनों के ही विकास का अध्ययन प्रस्तुत करता है। बाल मनोविज्ञान के अंतर्गत बालकों की विभिन्न प्रवृत्तियों के विकास का अध्ययन, विश्लेषण होता है। मनोविश्लेषकों ने बालकों के प्रत्येक व्यवहार और क्रियाओं का गहराई से अध्ययन Reseller और बालकों के स्वस्थ मनोविकास के लिए बाल मनोविज्ञान को समझना आवश्यक आवश्यक माना है।
बाल मनोविज्ञान डॉ. परशुराम के According – ‘‘बाल मनोविज्ञान सामान्य बालक के व्यवहारों, विचारों, भावनाओं And क्रियाओं का अध्ययन है।” बाल्यकाल को शिक्षण काल कहा गया है। इसी अवस्था में बालक भाषा, कौशल अभ्यास आदि सीखता है। शिक्षण अलग-अलग होकर बाद में समन्वित हो जाता है और विश्व ज्ञान में परिणित हो जाता है। इस तरह बाल्यावस्था के शिक्षण के आधार पर व्यक्तित्व का निर्माण होता है। Meansात् व्यक्ति बालक से ही निर्मित होता है।
अत: प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक फ्रायड ने बचपन की अनुभूतियों के आधार पर जीवन के प्रत्येक सामान्य अथवा असामान्य व्यवहार की व्याख्या की है। उनके According – वयस्क होने पर व्यक्ति कोई नया व्यवहार नहीं करता, बल्कि उनका प्रत्येक व्यवहार बचपन के किसी व्यवहार का Single Reseller होता है। इससे स्पष्ट है कि ‘‘बालकों का अपना मानसिक विकास होता है, जिसकी छाया उनकी समझ, ज्ञान अथवा कल्पना, इच्छा आदि के Reseller में दिखाई देती है। उनके इन्हीं विशिष्ट मनोवृत्तियों ने बाल मनोविज्ञान को जन्म दिया है। अत: बाल मन के स्वस्थ ज्ञान हेतु बाल मनोविज्ञान का ज्ञान अपेक्षित है।’’
बाल मनोविज्ञान की परिभाषा
क्रो And क्रो – ‘‘बाल मनोविज्ञान वह विज्ञान है जो बालकों के विकास का अध्ययन गर्भकाल से किशोरावस्था तक करता है।’’
जेम्स ड्रेवर – ‘‘बाल मनोविज्ञान मनोविज्ञान की वह शाखा है जिसमें जन्म से परिपक्वावस्था तक विकसित हो रहे Human का अध्ययन Reseller जाता है।’’ आइजनेक – ‘‘बाल मनोविज्ञान का संबंध बालक में मनोवैज्ञानिक प्रक्रियाओं के विकास से है। गर्भकालीन अवस्था, जन्म शैशवावस्था, बाल्यावस्था, किशोरावस्था और परिपक्वावस्था तक के बालक की मनोवैज्ञानिक विकास प्रक्रियाओं का अध्ययन Reseller जाता है।’’ बाल मनोविज्ञान की परिसीमा उपर्युक्त परिभाषा के आधार पर बाल मनोविज्ञान की सीमा में निम्न बातें आती है –
- विकास तथा परिपक्वता की अवस्थाएँ
- बालक के विकास पर वातावरण का प्रभाव
- बालक और समाज के उन सदस्यों के मध्य, जहाँ बालक का जन्म तथा पालन-पोषण होता है, मनोवैज्ञानिक और सामाजिक अन्योन्य क्रिया।
‘‘जन्म से पूर्व तथा जन्म के बाद बालक तथा समाज में Single स्थिर अन्योन्य संबंध रहता है। विकास के कुछ मूलभूत तत्व All व्यक्तियों के लिए समान रहते हैं।’’
बालक के विकास की भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में परस्पर संबंध बना रहता है। बालक और उसके वातावरण में परस्पर संबंध बना रहता है। दोनों Single-Second को प्रभावित करते हैं।
बालक के जीवन को समझने And उसे सही दिशा में ले जाने के लिए उपर्युक्त नियमों तथा सिद्धांतों का अध्ययन बाल मनोविज्ञान द्वारा Reseller जाता है। जिन-जिन विषयों का संबंध बाल-व्यवहार से रहता है वे सब बाल मनोविज्ञान की परिसीमा में आते हैं। जैसे – 1. बालकों की भाषा 2. संवेग 3. प्रत्यात्मक विज्ञान 4. खेल 5. व्यक्तित्व 6. चरित्र 7. कुसमायोजन 8. मानसिक व्याधियाँ
निष्कर्षत: बाल मनोविज्ञान की परिसीमा में वे All विषय आते हैं जिनका ज्ञान बाल-शिक्षा के लिए अति आवश्यक है।
बाल मनोविज्ञान के सिद्धांत
सिद्धांतों की संCreation वैज्ञानिकों के द्वारा कई कारणों से की जाती है। सामान्यतया व्यावहारिक जीवन में होने वाली क्रिया-कलापों के संचालन का कोई Singleीकृत निष्कर्ष ही सिद्धांत के Reseller में प्रतिपादित होता है। प्रमुख सिद्धांत निम्नानुसार है –
1. मनोविश्लेषणवादी सिद्धांत:- फ्रायड ने First मनोवैज्ञानिक सिद्धांत प्रतिपादित Reseller। इसमें इन्होंने बाल्यावस्था के अनुभवों के आधार पर विकास के विभिन्न आयामों का वर्णन Reseller। उनके निष्कर्षों का आधार बाल्यावस्था के First चार या पाँच वर्षों से संबंधित है।
फ्रायड के According – ‘‘बाल्यावस्था के ये नाटकीय अनुभव वाले क्षण अत्यंत महत्वपूर्ण है,जो कि Single वयस्क व्यक्ति का आधार है।’’ फ्रायड की संकल्पना के According – Single Human शिशु असीमित संभावनाओं के साथ अपनी Needओं की पूर्ति के लिए अपनी क्षमताओं का धीरे-धीरे उपयोग करना शुरू करता है।
2. मनोविश्लेषणवादी; व्यवहारवादी सिद्धांत:- इस सिद्धांत के प्रतिपादक अमेरिका के व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिक है; इसमें डोलर And नीर प्रमुख है। इस सिद्धांत के समर्थक फ्रायड के गत्यात्मकता संबंधी विचारों से अधिक Agree है। हाइटींग, चाइल्ड तथा सीयर्स And उसके साथियों द्वारा व्यवहारवादी अधिगम विश्लेषण में यह कहा गया है कि – बाल्यावस्था के विभिन्न व्यवहारों में मनोवैज्ञानिक आधार अन्तर्निहित होते हैं, परंतु नि:संदेह विश्लेषण के द्वारा निष्कर्ष Reseller में प्रतिपादित कर पाना आसान नहीं है।
3. महत्वपूर्ण आयु समूहों का सिद्धांत:- Humanीय विकास की व्यवहारवादी मनोवैज्ञानिकों के द्वारा जो मान्यताएँ प्रतिपादित की गई है, इनके कुछ निश्चित काल विभाजित किए गए हैं। आधुनिक मनोविज्ञान में अवस्थाओं की अपेक्षा काल को अधिक महत्व दिया गया है, क्योंकि किसी विशिष्ट अवस्थाओं से बालक का गुजरना Single स्वाभाविक प्रक्रिया है।
4. संज्ञानात्मक क्षेत्र सिद्धांत:- गेस्टाल्डवादी मनोवैज्ञानिकों द्वारा प्रतिपादित यह सिद्धांत इस बात पर बल देता है कि मनोवैज्ञानिक संवृद्धि लगातार चलने वाली प्रक्रिया है,जो अपनी आरंभिक अवस्था में स्वाभाविक प्रक्रिया के Reseller में शुरू होकर अंतिम परिणामों तक संचालित होती है। वे यह सिद्धांत मानते हैं कि किसी भी समस्या को First बालक Single संगठित आकार में देखता है। तत्बाद शनै:-शनै: वह उसे टुकड़ों में विभाजित कर समस्याओं को हल करने का प्रयास करता है।
5. विकास का निश्चित प्रतिReseller:- प्रत्येक जाति या नस्ल चाहे उसका संबंध पशु जगत् से हो अथवा Human जगत् से Single निश्चित प्रतिReseller (पैटर्न) के According ही विकसित होती है। जन्म से पूर्व तथा जन्म के उपरांत बालक का विकास व्यक्तित्व Reseller में तथा Single निश्चित प्रतिReseller के अनुReseller होता है। First बालक के आगे के दाँत निकलते है, उसके बाद पिछले। इसी प्रकार First बालक खड़ा होना सीखता है, फिर चलना।
इस संबंध में गेसल ने बालकों पर जो शोध कार्य Reseller है। इससे स्पष्ट होता है कि बालकों का जो व्यवहार संबंधी विकास होता है, वह Single निश्चित प्रतिReseller के अनुReseller ही होता है, उनके According कोई भी दो बालक Single जैसे नहीं होते, परंतु All सामान्य बालकों का विकास उनकी जातिगत और सांस्कृतिक विशेषताओं के According ही होता है।
6. विकास सामान्य से विशेष की ओर:- विकास की All प्रक्रियाओं में चाहे वे शारीरिक हो या मानसिक, बालक की प्रतिक्रिया में First सामान्य होती है बाद में विशेष। जन्म से पूर्व तथा जन्म के उपरांत बालक की All क्रियाओं में सामान्य से विशेष का नियम लागू होता है।
Single नवजात शिशु First First सारे शरीर को चलायमान करता है, फिर भुजाओं And पैरों को घुमाता है फिर हाथों से वस्तु उठाने का प्रयास करता है और चलने का प्रयास करता है। जब वह बोलना सीखता है तो वह निरर्थक ध्वनियाँ निकालेगा फिर यह ध्वनियाँ Wordों का Reseller धारण कर लेगी, फिर बालक धीरे-धीरे उसे समझने लगेगा।
7. विकास की गति अबाध्य है:- उपरोक्त आधार पर ज्ञात होता है कि व्यक्ति का विकास रुक-रुककर होता है परंतु वास्तव में ऐसा नहीं है। गर्भाधान से परिपक्वावस्था तक मनुष्य का विकास अविराम गति से चलता रहता है। बालक बोलना भी Singleदम नहीं सीखता First वह रोने की ध्वनि निकालता है, फिर वार्तालाप करता है अंत में Word बोलना सीखता है। विकास की प्रक्रिया निरंतर चलती रहती है।
8. विकास में व्यक्तिगत भेद स्थिर रहते हैं:- जिन बालकों का विकास प्रारंभ से ही तीव्र है, तो आगे भी तीव्र ही होगा तथा जिन बालकों का विकास शुरू से ही धीमी गति से चल रहा है, उनका आगे भी धीमी गति से ही विकास होगा। उदाहरण – मस्तिष्क की परिपक्वता 6 से 8 वर्ष की आयु में ही आ जाती है यद्यपि उसका विन्यास या संगठन बाद में भी होता रहता है। हाथों का, पैरों तथा नाक का पूर्ण विकास किशोरावस्था में हो जाता है।
कल्पना शक्ति का विकास शैशवावस्था से ही होने लगता है। तर्क शक्ति का विकास बहुत धीरे-धीरे होता है सामान्य बुद्धि का अधिकतम विकास 14 वर्ष की अवस्था के लगभग होता है।
9. विकास प्रकथनीय है:- बालक का मानसिक विकास प्रकथनीय होने से उसकी शिक्षा का आयोजन ठीक दिशा में Reseller जा सकता है और उसे वह कार्य दिया जा सकता है, जिसके लिए वह विशेष Reseller से उपयुक्त है।
गैसल ने प्रयोग के आधार पर निर्धारित Reseller है कि दोबारा परीक्षण करने पर 80 प्रतिशत बालकों के विकास की गति First परीक्षण के According ही थी। बालकों का विकास क्रम मनुष्य मात्र के विकास क्रम से सामंजस्य रखता है:- जिस प्रकार मनुष्य अपनी प्राकृतिक और बर्बर अवस्था के ऊपर उठकर सभ्य बनता है, उसी प्रकार बालक भी अपने जीवन में प्राकृतिक अवस्था को पार करके सभ्य समाज में रहने योग्य बनता है। जिस प्रकार हमारा समाज आदिम अवस्था को धीरे-धीरे छोड़कर सभ्य बना है, उसी प्रकार कोई भी बालक अपने प्राकृतिक पशु-स्वभाव को धीरे-धीरे त्यागकर आगे सामाजिक बन सकता है। वह अपना स्वभाव यकायक नहीं बदल सकता है। प्राय: देखा जाता है कि वयस्क, बालकों को समय से पूर्व ही सदाचारी बनने का प्रयत्न करते हैं।
उदाहरणार्थ एडवर्ड सप्तम की जीवन यात्रा पर नज़र डाले तो ज्ञात होता है कि – उनकी बाल्यावस्था में अध्ययन में बिल्कुल भी रुचि नहीं थी। उन्हें पढ़ना-लिखना अच्छा नहीं लगता था। परीक्षण के दौरान ज्ञात हुआ कि उनके माता-पिता उन्हें बाल्यकाल में ही विद्वान बना देना चाहते थे। अपनी इस इच्छापूर्ति के लिए उनके माता-पिता ने बहुत से अध्यापक नियुक्त कर दिए। अपने माता-पिता की आज्ञा को मानकर वे सारा समय अध्ययन में ही बिताते थे परंतु उनका मन अपने मित्रों के साथ खेलने के लिए ललायित रहता था।
परिणामस्वReseller बालक एडवर्ड सप्तम विद्वानों की संगति से दूर रहता था। इसका यही कारण था कि उनके माता-पिता उन्हें समय से पूर्व ही विद्वान बनाना चाहते थे। मनोविश्लेषकों के बाल मानस से लेकर बालकों के प्रत्येक व्यवहार और क्रियाओं का गहराई से अध्ययन Reseller और बालकों के स्वस्थ मनोविकास के लिए बाल मनोविज्ञान को आवश्यक बताया। अत: कहा जा सकता है कि –
- बालक विकासशील प्राणी है जो छोटे Reseller से बड़ी सूक्ष्मता के साथ बढ़कर प्रौढ़ावस्था को प्राप्त करता है।
- बालक Single पृथक् इकाई है। इसलिए उसकी स्मरण शक्ति अध्ययन, रुचि, भावनाएँ आदि का अध्ययन आवश्यक है।
- बालक Single ऐसे वातावरण में रहता है उसके व्यवहार तथा विकास को निरंतर प्रभावित करता रहता है। उसमें उत्तेजना के भाव उसी वातावरण से आते हैं। Second Reseller में वह अपने विकास के तत्व उसी वातावरण से ग्रहण करता है। इस अवस्था में ही उसके जीवन से विकास की सही और संतुलित दिशा मिलनी चाहिए जिससे स्वस्थ Human निर्मित हो सके।
संदर्भ –
- बाल मनोविज्ञान : बाल मन की जिज्ञासा – डॉ. चित्रा वारेरकर, आरोग्य विधि प्रकाशन, पृष्ठ 9।
- बाल मनोविज्ञान : बाल मन की जिज्ञासा – डॉ. चित्रा वारेरकर, आरोग्य विधि प्रकाशन, पृष्ठ 10।
- बाल मनोविज्ञान – लालजीराम शुक्ल, नागरी प्रचारिणी सभा, वाराणासी, पृष्ठ 2। 1. हिन्दी बाल साहित्य में मनोरंजन And नैतिकता – डॉ. रमाशंकर आर्य, आरधना ब्रदर्स, कानपुर, पृष्ठ 21, वर्ष 2014।
- व्यवसायिकरण का बोलबाला – डॉ. श्रीप्रसाद (आजकल), पृष्ठ 10।
- शिक्षा मनोविज्ञान – क्रो And क्रो, पृष्ठ 1।
- द स्टडी ऑफ मेन्टल लाइफ – जेम्स ड्रेवर, पृष्ठ 4।
- बाल मनोविकास – लालजीराम शुक्ल, नंदकिशोर एण्ड ब्रदर्स, बनारस, पृष्ठ 4, वर्ष 1952।
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- शिक्षा मनोविज्ञान – पी. डी. पाठक, विनोद पुस्तक मंदिर, आगरा, पृष्ठ 117, वर्ष 2014।
- शिक्षा मनोविज्ञान – पी. डी. पाठक, विनोद पुस्तक मंदिर, आगरा, पृष्ठ 108, वर्ष 2014।
- बाल मनोविज्ञान : बाल विकास – भाई योगेन्द्रजीत, विनोद पुस्तक मंदिर, आगरा, पृष्ठ 98, वर्ष 2006।
- बाल मनोविज्ञान : बाल विकास – डॉ. प्रीति वर्मा, डॉ. डी. एन. श्रीवास्तव, अग्रवाल पाब्लिकेशन, नई दिल्ली, पृष्ठ 11, वर्ष 2000।
- बाल मनोविज्ञान और बाल विकास – भार्इ योगेन्द्रजीत, विनोद पुस्तक मंदिर, आगरा, पृष्ठ 92, वर्ष 2006।
- बाल मनोविज्ञान और बाल विकास – डॉ. डी. एन. श्रीवास्तव, अग्रवाल पब्लिकेशन, नई दिल्ली, पृष्ठ 112, वर्ष 2000।
- 4. विकाSeven्मक मनोविज्ञान – भाई योगेन्द्रजीत, विनोद पुस्तक मंदिर, आगरा, पृष्ठ 196, वर्ष 2006।
- बाल मनोविज्ञान : बाल विकास – डॉ. डी. एन. श्रीवास्तव, डॉ. प्रीति वर्मा, विनोद पुस्तक मंदिर, आगरा, पृष्ठ 357, वर्ष 2006।