प्लेटो का जीवन परिचय And शिक्षा दर्शन
प्रभावशाली राजनीतिक परिवार के होने के बावजूद प्लेटो को राजनीति से अरूचि थी। एथेन्स की तत्कालीन राजनीतिक पतन ने प्लेटो को राजनीति से पूर्णत: विमुख कर दिया। एथेन्स जहाँ अपना प्रभाव खोता जा रहा था वहीं सैनिक शक्ति में विश्वास रखने वाले स्पार्टा का प्रभुत्व बढ़ता जा रहा था। मैसेडोनिया भी प्रगति कर रहा था। पेलेपोनेसियन Fight के कारण एथेन्स और कमजोर हो गया। प्रजातंत्र के स्थान पर एथेन्स में कुलीन तंत्र का शासन हो गया। यद्यपि प्रजातांत्रिक व्यवस्था फिर वापस आर्इ- पर इसी शासन में प्लेटो के गुरू सुकरात को मृत्यु-दंड दिया गया। इस घटना ने प्लेटो को राजनीति से पूर्णत: विरत कर दिया।
बीस वर्ष की अवस्था में प्लेटो सुकरात के सम्पर्क में आया तथा सुकरात की मृत्यु तक, यानि 399 र्इ0पू0 तक प्लेटो सुकरात का प्रिय शिष्य बना रहा। सुकरात के व्यक्तित्व And ज्ञान का प्लेटो पर अत्यधिक प्रभाव पड़ा। सुकरात के सान्निध्य में प्लेटो की दर्शन में गहरी रूचि हो गर्इ। 399 र्इ0 पू0 में जब सुकरात को मृत्युदंड दिया गया, प्लेटो की आयु 28 वर्ष की थी। गुरू की हत्या के कारण उसका एथेन्स से मोह भंग हो गया और उसने अगला दस वर्ष एथेन्स से बाहर मेगारा, मिश्र तथा इटली में बिताया। यह प्लेटो के जीवन का दूसरा भाग माना जा सकता है। मेगारा में प्रसिद्ध गणितज्ञ युक्लिड के सान्निध्य में पार्मेनाइडिस के सिद्धान्त का गहन अध्ययन Reseller। मिश्र की सभ्यता के विकास ने प्लेटो को बहुत अधिक प्रभावित Reseller। इटली में पाइथागोरस के सिद्धान्तों का अध्ययन Reseller तथा इटली में शासन व्यवस्था की बारीकियों को जाना। इस प्रकार दस वर्षो के लम्बे देशाटन और विद्वानों की संगति ने प्लेटो को बौद्धिक तौर पर और परिपक्व बनाया। एथेन्स वापस आकर प्लेटो ने अपनी विश्व-प्रसिद्ध शिक्षण संस्था ‘Singleेडमी’ की स्थापना की। प्लेटो के जीवन का यह तीसरा और सबसे अधिक Creationत्मक भाग था। अपने जीवन के अगले चालीस वर्षों तक वे इसी संस्था के माध्यम से शिक्षा देते रहे। प्लेटो की मृत्यु 347 र्इ0पू0 हुर्इ, पर Singleेडमी इसके उपरांत भी चलती रही। बाद में रोम के King की आज्ञा पर इस Singleेडमी को बन्द कर देना पड़ा।
प्लेटो का जीवन-दर्शन
प्लेटो अपने गुरू सुकरात की ही तरह यह मानते है कि समय की Need जीवन में Single नये नैतिक बन्धन (मोरल बॉन्ड) की है। प्लेटो ने जीवन के लिए Single नए नैतिक आधार को तैयार करने की कोशिश की जिसमें व्यक्ति को पर्याप्त अवसर हो तथा संस्थागत जीवन को भी उचित मान्यता मिले। प्लेटो इस नए नैतिक बन्धन का आधार विचारों तथा सार्वभौमिक And शाश्वत सत्य को मानते है। उनके According अच्छार्इ ज्ञान या पूर्ण विचारों में समाहित होता है जो कि ‘मत’ से भिन्न होता है।
प्लेटो Single आदर्शवादी चिन्तक थे जिन्होंने यथार्थ तथा अस्थायी की उपेक्षा की है तथा सार्वभौम और स्थायी पर बल दिया है। प्लेटो के लिए दृष्टिगोचर होने वाली वस्तुएँ कालसत्तात्मक (ऐहिक) है तथा अदृश्य वस्तुएँ ही नित्य हैं। उसके प्रत्यय दिव्य उपपत्तियां है, तथा इनका अनुभव ही विज्ञान अथवा ज्ञान है। इसके विपरीत वे लोग जो सिद्धान्तों का उनके मूर्त प्रतिमूर्तियों से अलग बोध नहीं रखते, ऐसे संसार में रहते हैं, जिसे प्लेटो स्वापनिक स्थिति कहते हैं। उनका वस्तुओं से परिचय मात्र ‘मत’ के समान होता है, वे यर्थाथ का बोध तो रखते है, किन्तु सत् के ज्ञान से रहित होते है।
आदर्शवादी दर्शन भौतिक पदार्थ की तुलना में विचार को स्थायी और श्रेष्ठ मानता है। प्लेटो महानतम आदर्शवादी शिक्षाशास्त्री थे। उनके According पदार्थ जगत, जिसको हम इन्द्रियों से अनुभव करते हैं, वह विचार जगत का ही परिणाम है। विचार जगत वास्तविक और अपरिवर्तनशील है। इसी से भौतिक संसार का जन्म होता है। भौतिक पदार्थों का अन्त अवश्यम्भावी है।
विचार जगत का आधार प्रत्यय है। प्लेटो के According प्रत्यय पूर्ण होता है और इन्द्रियों के सम्पर्क में आने वाले भौतिक वस्तु अपूर्ण। प्लेटो ने फेइडरस में सुकरात से कहलवाया है कि सत्य या वास्तविकता का निवास Human के मस्तिष्क में होता है न कि बाह्य प्रकृति में। (रॉस: 61) ज्ञानी Human वह है जो दृष्टि जगत पर ध्यान न देकर प्रत्ययों के ज्ञान की जिज्ञासा रखता है- क्योंकि प्रत्ययों का ज्ञान ही वास्तविक ज्ञान है। ज्ञान तीन तरह के होते है- (i) इन्द्रिय-जन्य ज्ञान (ii) सम्मति जन्य ज्ञान तथा (iii) चिन्तन या विवेक जन्य ज्ञान। इनमें से First दो अधूरा, अवास्तविक And मिथ्या ज्ञान है जबकि चिन्तन या विवेकजन्य (प्रत्ययों का) ज्ञान इन्द्रियातीत होने के कारण वास्तविक, श्रेष्ठ And अपरिवर्तनशील है। व्यक्ति किसी भी पदार्थ को अपनी दृष्टि से देखकर उसकी व्याख्या करता है।- दूसरा व्यक्ति उसी पदार्थ की उससे भिन्न Means ग्रहण कर सकता है। इस तरह से सम्मति भिन्न हो सकती है। अत: इसे ज्ञान कहना उचित नहीं है। प्लेटो ने रेखागणित के सिद्धान्तों को बेहतर ज्ञान कहा। जैसे त्रिभुज की दो भुजा मिलकर तीसरी भुजा से बड़ी होती है- यह All त्रिभुजों के लिए सही है। इससे भी अधिक श्रेष्ठ ज्ञान प्लेटो ने तत्व ज्ञान को माना।
प्लेटो ने संसार को सत् और असत् दोनों का संयोग माना है। प्रत्ययों पर आधारित होने के कारण संसारिक पदार्थ सत् है पर समResellerता का आभाव And क्षणभंगुरता उसे असत् बना देता है। प्लेटो ने दृष्टि जगत को द्रष्टा की क्रिया का फल माना है। प्लेटो आत्मा की अमरता को स्वीकार करते हुए इसे परम विवेक का अंश मानता है।
नैतिक मूल्यों के सिद्धान्त को प्लेटो के संवाद में उच्च स्थान मिला है। सोफिस्टों ने यह धारणा फैलायी थी कि गलत और सही परिस्थिति विशेष पर निर्भर करता है। जो Single समय और स्थान पर सही है वह Second समय और स्थान पर गलत हो सकता है। प्लेटो सुकरात के माध्यम से इस अवसरवादी विचारधारा का विरोध करते हुए कहते हैं कि नैतिक मूल्य शाश्वत हैं। फेडो में प्लेटो ने सम्पूर्ण सुन्दरता, सम्पूर्ण अच्छार्इ तथा सम्पूर्ण महानता की बात की है। इस संसार में जो भी सुंदर या अच्छा है वह इसी सम्पूर्ण सुन्दरता या अच्छार्इ का अंश है। सर्वोच्च सत्य से ही अन्य जीव And पदार्थ अपना अस्तित्व प्राप्त करते हैं।
यद्यपि प्लेटो ने सर्वोच्च सत्य या सत्ता को र्इश्वर या गॉड के नाम से नहीं पुकारा (रॉस,71) पर इसी परम सत्य का अंश Human की आत्मा को माना। प्लेटो के According इस संसार और जीवन से परे भी Single संसार और जीवन है जो अधिक सत्य, अधिक सुंदर तथा अधिक वास्तविक है। आदर्श जीवन का उद्देश्य शिवत्व (अच्छार्इ) And सुन्दरता प्राप्त करना बताता है ।
प्लेटो की Creationयें
शिक्षा की दृष्टि से प्लेटो की सर्वाधिक महत्वपूर्ण कृति ‘दि रिपब्लिक’ है। रूसो ने ‘दि रिपब्लिक’ का निरपेक्ष मूल्यांकन करते हुए कहा ‘‘अगर आप जानना चाहते हैं कि पब्लिक (सार्वजनिक) शिक्षा का क्या Means है तो प्लेटो का रिपब्लिक पढ़िये। जो पुस्तकों के संदर्भ में केवल नाम या शीर्षक से निर्णय लेते हैं वे इसे राजनीति से सम्बन्धित मानते हैं, जबकि शिक्षा पर कभी भी लिखी गर्इ यह सर्वोत्तम कृति है।’’ इस तरह से दि रिपब्लिक को शिक्षा शास्त्रियों ने अपने विषय का उत्कृष्टम ग्रंथ माना है। इसके प्रारम्भिक पृष्ठों में सुकरात को अपने मित्रों And शिष्यों के साथ न्याय पर आधारित राज्य की कल्पना करते दिखाया गया है। इसके लिए न्याय प्रिय नागरिक होना चाहिए। इस तरह से न्याय की प्रकृति पर विमर्श वस्तृत: शिक्षा पर विमर्श बन जाता है।
प्लेटो ने अनेक पुस्तक (संवाद) लिखे। इन संवादों को भाषा और शैली के आधार पर सर डेविड रॉस ने Backup Server को तय कर क्रमबद्ध करने का प्रयास Reseller है।
- First काल (389 र्इ0पू0 से First)- कैरेमिडेस, लैचेज, यूथाइफ्रो, हिपियस मेजर तथा मेनो।
- द्वितीय काल (389 र्इ0पू0 से 367 र्इ0पू0)- क्रेटाइलस, सिम्पोजिसम, फैडो, दि रिपब्लिक, फेयड्रस, परमेन्डिस तथा थियेटिटस।
- तृतीय काल (366 र्इ0पू0 से 361 र्इ0पू0)- सोफिस्टस तथा पोलिटिक्स
- चतुर्थ काल (361 र्इ0पू0 के उपरान्त)- दि लॉज।
इस सूची में पूर्व में लिखे संवादों जैसे दि एपोलॉजी, क्रीटो, लोइसिस, प्रेटागोरस, यूथिडेमस को नहीं रखा है क्योंकि ये संवाद प्लेटो के विचारों पर बहुत ही कम प्रकाश डालते हैं। All Creationयें संवाद या वार्त्तालाप पद्धति में हैं। संवादों में सुकरात को All ज्ञान का स्रोत दिखाकर प्लेटो अपने गुरू को अद्वितीय श्रद्धांजलि देता है।
प्लेटो का शिक्षा-दर्शन
सुकरात And प्लेटो के पूर्व सोफिस्टों का प्रभाव था पर उनकी शिक्षा अव्यवस्थित थी तथा इससे कम ही व्यक्ति लाभान्वित हो सकते थे क्योंकि सोफिस्टों द्वारा दी जाने वाली शिक्षा नि:शुल्क नहीं थी और इस शुल्क को चुकाने में कुछ ही लोग सक्षम थे। सोफिस्टों ने शिक्षा के उद्देश्य को सीधी उपयोगिता से जोड़ दिया इससे भी वे लोगों की घृणा के पात्र बने। क्योंकि ग्रीस की प्रबुद्ध जनता शिक्षा को अवकाश हेतु प्रशिक्षण मानती थी न कि जीवन के भरण-पोषण का माध्यम। पेलोपोनेसियन Fight में एथेन्स की हार को लोगों ने सोफिस्टों की शिक्षा का परिणाम माना। फलत: उनका प्रभाव क्षीण हुआ और सुकरात तथा उसके योग्तम शिष्य प्लेटो को Single बेहतर शिक्षा व्यवस्था के विकास के लिए उचित पृष्ठभूमि मिली।
Human History में शिक्षा के सम्बन्ध में First पुस्तक प्लेटो द्वारा रचित ‘रिपब्लिक’ है। जिसे रूसो ने शिक्षा की दृष्टि से अनुपम कृति माना। इसके अतिरिक्त ‘लाज’ में भी शिक्षा के सम्बन्ध में प्लेटो के विचार मिलते हैं। तत्कालीन प्रजातंत्र हो या कुलीनतंत्र, राजनीति स्वार्थ पूर्ति का साधन बन गर्इ था। “ाड़यंत्रों, संघर्षो And Fightों की जगह समदश्र्ाी शासन जो नागरिकों के बीच सद्भावना को बढ़ा सके के महान उद्देश्य की प्राप्ति के लिए प्लेटो ने Single नये समाज की Creation आवश्यक माना। इस तरह के समाज की Creation का सर्वप्रमुख साधन प्लेटो ने शिक्षा को माना। समाज संघर्ष विहीन तभी होगा जब अपने-अपने गुणों के According All लोग शिक्षित होंगे।
प्लेटो ने शिक्षा को अत्यन्त महत्वपूर्ण विषय माना है। दि रिपब्लिक में प्लेटो इसे Fight, Fight का संचालन And राज्य के शासन जैसे महत्वपूर्ण विषयों में से Single मानता है। दि लॉज में शिक्षा को First तथा सर्वोत्तम वस्तु माना है जो Human को प्राप्त करनी चाहिए। दि क्रिटो में अपनी बात पर बल देते हुए प्लेटो कहते हैं ‘‘वैसे Human को बच्चों को जन्म नही देना चाहिए जो उनकी उचित देखभाल और शिक्षा के लिए दृढ़ नहीं रह सकते।’’
जैसा कि हमलोग देख चुके हैं आदर्शवादी विचारक भौतिक जगत की अपेक्षा आध्यात्मिक या वैचारिक जगत को अधिक वास्तविक और महत्वपूर्ण मानते है। अंतिम या सर्वोच्च सत्य भौतिक जगत की अपेक्षा आध्यात्मिक या वैचारिक जगत के अधिक समीप है क्योंकि ‘सत्य’ या ‘वास्तविक’ की प्रकृति भौतिक प्रकृति न होकर आध्यात्मिक है। अत: आदर्शवादियों के लिए भौतिक विज्ञानों की जगह Humanिकी- यानि जो विषय स्वयं Human का अध्ययन करता है अधिक महत्वपूर्ण है। वस्तुनिष्ठ तथ्यों के अध्ययन की जगह संस्कृति कला, नैतिकता, धर्म आदि का अध्ययन हमें सही ज्ञान प्रदान करता है।
शिक्षा का उद्देश्य
प्लेटो शिक्षा को सारी बुराइयों को जड़ से समाप्त करने का प्रभावशाली साधन मानता है। शिक्षा आत्मा के उन्नयन के लिए आवश्यक है। शिक्षा व्यक्ति में सामाजिकता की भावना का विकास कर उसे समाज की Needओं को पूरा करने में सक्षम बनाती है। यह नैतिकता पर आधारित जीवन को जीने की कला सिखाती है। यह शिक्षा ही है जो Human को सम्पूर्ण जीव जगत में सर्वश्रेष्ठ प्राणी होने का गौरव प्रदान करता है। प्लेटो ने शिक्षा के निम्नलिखित महत्वपूर्ण उद्देश्य बताये:-
- बुराइयों की समाप्ति And सद्गुणों का विकास:- अपने सर्वप्रसिद्ध ग्रन्थ रिपब्लिक में प्लेटो स्पष्ट घोषणा करता है कि ‘अज्ञानता ही सारी बुराइयों की जड़ है। सुकरात की ही तरह प्लेटो सद्गुणों के विकास के लिए शिक्षा को आवश्यक मानता है। प्लेटो बुद्धिमत्ता को सद्गुण मानता है। हर शिशु में विवेक निष्क्रिय Reseller में विद्यमान रहता है- शिक्षा का कार्य इस विवेक को सक्रिय बनाना है। विवेक से ही Human अपने And राष्ट्र के लिए उपयोगी हो सकता है।
- सत्य, शिव (अच्छार्इ And सुन्दर) की प्राप्ति:- प्लेटो And अन्य प्राच्य And पाश्चात्य आदर्शवादी चिन्तक यह मानते हैं कि जो सत्य है वह अच्छा (शिव) है और जो अच्छा है वही सुन्दर है। सत्य, शिव And सुन्दर ऐसे शाश्वत मूल्य हैं जिसे प्राप्त करने का प्रयास आदर्शवादी शिक्षाशास्त्री लगातार करते रहे हैं। प्लेटो ने भी इसे शिक्षा का Single महत्वपूर्ण उद्देश्य माना।
- राज्य को सुदृढ़ करना:- सुकरात And प्लेटो के काल में ग्रीस में सोफिस्टों ने व्यक्तिवादी सोच पर जोर दिया था। लेकिन आदर्शवादी शिक्षाशास्त्रियों की दृष्टि में राज्य अधिक महत्वपूर्ण है। राज्य पूर्ण इकार्इ है और व्यक्ति वस्तुत: राज्य के लिए है। अत: शिक्षा के द्वारा राज्य की Singleता Windows Hosting रहनी चाहिए। शिक्षा के द्वारा विद्यार्थियों में सहयोग, सद्भाव और भातश्त्व की भावना का विकास होना चाहिए।
- नागरिकता की शिक्षा:- न्याय पर आधारित राज्य की स्थापना के लिए अच्छे नागरिकों का निर्माण आवश्यक है जो अपने कर्तव्यों को समझें और उसके अनुReseller आचरण करें। प्लेटो शिक्षा के द्वारा नर्इ पीढ़ी में दायित्व बोध, संयम, साहस, Fight-कौशल जैसे श्रेष्ठ गुणों का विकास करना चाहते थे। ताकि वे नागरिक के दायित्वों का निर्वहन करते हुए राज्य को शक्तिशाली बना सकें।
- सन्तुलित व्यक्तित्व का विकास:- प्लेटो के According Human-जीवन में अनेक विरोधी तत्व विद्यमान रहते हैं। उनमें सन्तुलन स्थापित करना शिक्षा का Single महत्वपूर्ण कार्य है। सन्तुलित व्यक्तित्व के विकास And उचित आचार-विचार हेतु ‘स्व’ को नियन्त्रण में रखना आवश्यक है। शिक्षा ही इस महत्वपूर्ण कार्य का सम्पादन कर सकती है।
- विभिन्न सामाजिक वर्गों को सक्षम बनाना:- जैसा कि हमलोग देख चुके हैं प्लेटो ने व्यक्ति के अन्तर्निहित गुणों के आधार पर समाज का तीन वर्गों में विभाजन Reseller है। ये हैं: संरक्षक, सैनिक तथा व्यवसायी या उत्पादक वर्ग। दासों की स्थिति के बारे में प्लेटो ने विचार करना भी उचित नहीं समझा। पर ऊपर described तीनों ही वर्णों को उनकी योग्यता And उत्तरदायित्व के अनुReseller अधिकतम विकास की जिम्मेदारी शिक्षा की ही मानी गर्इ।
इस प्रकार प्लेटो शिक्षा को अत्यन्त महत्वपूर्ण मानता है। व्यक्ति और राज्य दोनों के उच्चतम विकास को प्राप्त करना प्लेटो की शिक्षा का लक्ष्य है। वस्तुत: शिक्षा ही है जो जैविक शिशु में Humanीय गुणों का विकास कर उसे आत्मिक बनाती है। इस प्रकार प्लेटो की दृष्टि में शिक्षा का उद्देश्य अत्यन्त ही व्यापक है।
पाठ्यक्रम
हमलोग First ही देख चुके हैं कि आदर्शवादी शिक्षाशास्त्री Humanिकी या Human-जीवन से सम्बन्धित ज्ञान को भौतिक ज्ञान से सम्बन्धित विषयों से अधिक महत्वपूर्ण मानते हैं। उसके According जीवन के First दस वर्षों में विद्यार्थियों को अंकगणित, ज्यामिति, संगीत तथा नक्षत्र विद्या का ज्ञान प्राप्त करना चाहिए। गणित आदि की शिक्षा व्यापार की दृष्टि से न होकर उनमें निहित शाश्वत सम्बन्धों को जानने के लिए होना चाहिए। संगीत के गणित शास्त्रीय आधारों की सिफारिश करते हुए प्लेटो कहता है यह शिवम् And सुन्दरम् के अन्वेषण में Single उपयोगी सत्य है। यदि इसका अन्य उद्देश्य को ध्यान में रखकर अनुसरण Reseller जाए तो यह अनुपयोगी है।
इसके उपरांत विद्यार्थियों को कविता, गणित, खेल-कूद, कसरत, सैनिक-प्रशिक्षण, शिष्टाचार तथा धर्मशास्त्र की शिक्षा देने की बात कही गर्इ। प्लेटो ने खेल-कूद को महत्वपूर्ण माना लेकिन उसका उद्देश्य प्रतियोगिता जीतना न होकर स्वस्थ शरीर तथा स्वस्थ मनोरंजन प्राप्त करना होना चाहिए। स्वस्थ शरीर में ही स्वस्थ मस्तिष्क तथा आत्मा का निवास संभव है। प्लेटो की शिक्षा व्यवस्था में जिम्नास्टिक (कसरत) And नृत्य को महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त है। प्लेटो ने इन दोनों के समन्वय का आग्रह Reseller है। वे मानते थे कि ‘कसरत विहीन संगीतज्ञ कायर होगा, जबकि संगीत विहीन कसरती पहलवान आक्रामक पशु हो जायेगा।’ प्लेटो ने नृत्य को कसरत का ही अंग मानते हुए उसे Fightकाल और शांतिकाल- दोनों में ही उपयोगी मानते हैं।
प्लेटो ने साहित्य, विशेषकर काव्य की शिक्षा को महत्वपूर्ण माना है। काव्य बौद्धिक संवेदनशील जीवन के लिए आवश्यक है। गणित को प्लेटो ने ऊँचा स्थान प्रदान Reseller है। रेखागणित को प्लेटो इतना अधिक महत्वपूर्ण मानते थे कि उन्होंने अपनी शैक्षिक संस्था ‘Singleेडमी’ के द्वार पर लिखवा रखा था कि ‘जिसे रेखागणित न आता हो वे Singleेडमी में प्रवेश न करें।’ इन विषयों में तर्क का प्रयोग महत्वपूर्ण है- और सर्वोच्च प्रत्यय- र्इश्वर की प्राप्ति में तर्क सहायक है।
प्लेटो की शिक्षा-व्यवस्था में ‘डाइलेक्टिक’ या दर्शन का महत्वपूर्ण स्थान है। प्लेटो के ‘डाइलेक्टिक’ में नीतिशास्त्र, दर्शन, मनोविज्ञान, अध्यात्मशास्त्र, प्रशासन, कानून, जैसे विषय समाहित हैं। इनका अध्ययन उच्चस्तरीय विद्यार्थियों को कराना चाहिए। यह प्लेटो की शिक्षा-व्यवस्था का सर्वोच्च हिस्सा है। डाइलेक्टिक का अध्ययन वस्तुत: दार्शनिकों के लिए है जो राज्य का संचालन करेंगे। दार्शनिक के पाठ्यविषय में प्लेटो संगीत तथा व्यायाम जैसे विषयों को अपर्याप्त कह कर अस्वीकृत कर देता है, क्योंकि ये विषय परिवर्तनीय हैं, इसके विपरीत जिन विज्ञानों का वह अन्वेषक है उन्हें सत् की विवेचना करनी चाहिए: उनमें सर्वगत अनुप्रयोग तथा साथ ही चितनोन्मुख बनाने की क्षमता होनी चाहिए। जिस पाठ्यक्रम की संस्तुति प्लेटो ने की उसमें गणित, ज्यामिति, ज्योतिष विद्या (खगोल विज्ञान) सम्मिलित थे। हस्तकलाओं को अपमानजनक कहकर बहिष्कश्त करने में वह अपनी कुलीन वर्गीय तथा सीमित रूझान का परिचय देता है।
शिक्षा के स्तर
प्लेटो ने आधुनिक मनोवैज्ञानिकों की तरह बच्चे के शारीरिक And मानसिक विकास की अवस्था के आधार पर शिक्षा को विभिन्न स्तरों में विभाजित Reseller है। ये विभिन्न स्तर हैं- ;
- शैशवावस्था:- जन्म से लेकर तीन वर्ष शैशव-काल है। इस काल में शिशु को पौष्टिक भोजन मिलना चाहिए और उसका पालण-पोषण उचित ढ़ंग से होना चाहिए। चूँकि प्लेटो के आदर्श राज्य में बच्चे राज्य की सम्पत्ति है अत: राज्य का यह कर्तव्य है कि वह बच्चे की देखभाल में कोर्इ ढ़ील नहीं होने दे।
- नर्सरी शिक्षा:- इसके अन्र्तगत तीन से छह वर्ष की आयु के बच्चे आते हैं। इस काल में शिक्षा प्रारम्भ कर देनी चाहिए। इसमें कहानियों द्वारा शिक्षा दी जानी चाहिए तथा खेल-कूद और सामान्य मनोरंजन पर बल देना चाहिए।
- प्रारम्भिक विद्यालय की शिक्षा:- इसमें छह से तेरह वर्ष के आयु वर्ग के विद्याथ्र्ाी रहते हैं। वास्तविक विद्यालयी शिक्षा इसी स्तर में प्रारम्भ होती है। बच्चों को राज्य द्वारा संचालित शिविरों में रखा जाना चाहिए। इस काल में लड़के-लड़कियों की अनियन्त्रित क्रियाओं को नियन्त्रित कर उनमें सामन्जस्य स्थापित करने का प्रयास Reseller जाता है। इस काल में संगीत तथा नृत्य की शिक्षा देनी चाहिए। नृत्य And संगीत विद्याथ्र्ाी में सम्मान And स्वतंत्रता का भाव तो भरता ही है साथ ही स्वास्थ्य सौन्दर्य And शक्ति की भी वृद्धि करता है। इस काल में गणित And धर्म की शिक्षा भी प्रारम्भ कर देनी चाहिए। रिपब्लिक इसी अवधि में अक्षर-ज्ञान देने की संस्तुति करता है पर दि लॉज के According यह कार्य तेरहवें वर्ष में प्रारम्भ करना चाहिए।
- माध्यमिक शिक्षा:- यह काल तेरह से सोलह वर्ष की उम्र की है। अक्षर ज्ञान की शिक्षा पूरी कर काव्य-पाठ, धार्मिक सामग्री का अध्ययन And गणित के सिद्धान्तों की शिक्षा इस स्तर पर दी जानी चाहिए।
- व्यायाम (जिमनैस्टिक) काल:- यह सोलह से बीस वर्ष की आयु की अवधि है। सोलह से अठारह वर्ष की आयु में युवक-युवती व्यायाम, जिमनैस्टिक, खेल-कूद द्वारा शरीर को मजबूत बनाते हैं। स्वस्थ And शक्तिशाली शरीर भावी सैनिक शिक्षा का आधार है। अठारह से बीस वर्ष की अवस्था में अस्त्र-शस्त्र का प्रयोग, घुड़सवारी, सैन्य-संचालन, व्यूह-Creation आदि की शिक्षा And प्रशिक्षण दिया जाता है।
- उच्च शिक्षा:- इस स्तर की शिक्षा बीस से तीस वर्ष की आयु के मध्य दी जाती है। इस शिक्षा को प्राप्त करने हेतु भावी विद्यार्थियों को अपनी योग्यता की परीक्षा देनी होगी और केवल चुने हुए योग्य विद्याथ्र्ाी ही उच्च शिक्षा ग्रहण करेंगे। इस काल में विद्यार्थियों को अंकगणित, रेखागणित, संगीत, नक्षत्र विद्या आदि विषयों का अध्ययन करना था।
- उच्चतम शिक्षा:- तीस वर्ष की आयु तक उच्च शिक्षा प्राप्त किए विद्यार्थियों को आगे की शिक्षा हेतु पुन: परीक्षा देनी पड़ती थी। अनुत्तीर्ण विद्याथ्र्ाी विभिन्न प्रशासनिक पदों पर कनिष्ठ अधिकारी के Reseller में कार्य करेंगे। सफल विद्यार्थियों को आगे पाँच वर्षों की शिक्षा दी जाती है। इसमें ‘डाइलेक्टिक’ या दर्शन का गहन अध्ययन करने की व्यवस्था थी। इस शिक्षा को पूरी करने के बाद वे फिलॉस्फर या ‘दार्शनिक’ घोषित हो जाते थे। ये समाज में लौटकर अगले पन्द्रह वर्ष तक संरक्षक के Reseller में प्रशिक्षित होंगे और व्यावहारिक अनुभव प्राप्त करेंगे। राज्य का संचालन इन्हीं के द्वारा होगा।
शिक्षण-विधि
प्लेटो के गुरू, सुकरात, संवाद (डायलॉग) द्वारा शिक्षा देते थे- प्लेटो भी इसी पद्धति को पसन्द करते थे। प्लेटो ने संवाद के द्वारा Human जीवन के हर आयाम पर प्रकाश डाला है। एपालोजी Single अत्यधिक चर्चित संवाद है जिसमें सुकरात अपने ऊपर लगाए गए समस्त आरोपों को निराधार सिद्ध करते है। ‘क्राइटो’ Single ऐसा संवाद है जिसमें वे कीड़ो के साथ आत्मा के स्वReseller का विवेचन करते हैं। प्लेटो अपने गुरू सुकरात के संवाद को स्वीकार कर उसका विस्तार करता है। उसने संवाद को ‘अपने साथ निरन्तर चलने वाला संवाद’ कहा (मुनरो, 1947: 64)। सुकरात ने इसकी क्षमता All लोगों में पार्इ पर प्लेटो के According सर्वोच्च सत्य या ज्ञान प्राप्त करने की यह शक्ति सीमित लोगों में ही पायी जाती है। शाश्वत सत्य का ज्ञान छठी इन्द्रिय यानि विचारों का इन्द्रिय का कार्य होता है। इस प्रकार सुकरात अपने समय की प्रजातांत्रिक धारा के अनुकूल विचार रखता था जबकि इस दृष्टि से प्लेटो का विचार प्रतिगामी कहा जा सकता है।
सार्वजनिक शिक्षा
‘दि रिपब्लिक’ में शिक्षा के वर्गीय चरित्र को प्लेटो ने अपने अंतिम कार्य ‘दि लॉज’ में प्रजातांत्रिक बनाने का प्रयास Reseller। वे ‘दि लॉज’ में लिखते हैं ‘‘बच्चे विद्यालय आयेंगे चाहे उनके माता-पिता इसे चाहे या नहीं चाहे। अगर माता-पिता शिक्षा नहीं देना चाहेंगे तो राज्य अनिवार्य शिक्षा की व्यवस्था करेगी और बच्चे माता-पिता के बजाय राज्य के होंगे। मेरा नियम लड़के And लड़कियों दोनों पर लागू होगा। लड़कियों का बौद्धिक And शारीरिक प्रशिक्षण उसी तरह से होगा जैसा लड़कों का।’’ लड़कियों की शिक्षा पर प्लेटो ने जोर देते हुए कहा कि वे नृत्य के साथ शस्त्र-संचालन भी सीखें ताकि Fight काल में जब पुरूष सीमा पर लड़ रहे हों तो वे नगर की रक्षा कर सकें। इस प्रकार Human जाति के History में प्लेटो पहला व्यक्ति था जिसने लड़के And लड़कियों को समान शिक्षा देने की वकालत की। इस दृष्टि से वह अपने समय से काफी आगे था।
प्लेटो के शिक्षा दर्शन की सीमायें
प्लेटो के आदर्श राज्य में King बनने वाले दार्शनिकों की शिक्षा केवल Singleांगी ही नहीं है अपितु उसकी उच्च शिक्षा की योजना समुदाय के इसी वर्ग तक सीमित भी है। रक्षकगण केवल संगीत तथा व्यायाम की सामान्य शिक्षा ही प्राप्त करते हैं, और शिल्पकारों को, जिन्हें राज्य-शासन में भाग लेने की अनुमति नहीं दी गर्इ थी, या तो अपरिपक्व व्यावसायिक प्रशिक्षण अथवा ‘कोर्इ शिक्षा नहीं’ से संतुष्ट होना पड़ता है। King वर्ग तक ही शिक्षा के लाभों को सीमित रखना आधुनिक प्रजातान्त्रीय शिक्षा के विरूद्ध है।
शिक्षा And राज्य की सरकार में शिल्पकारों को भाग लेने से वंचित रखने के कारण प्लेटो के राज्य को ‘आदर्श’ की संज्ञा नहीं देनी चाहिए। न्यूमन (1887: 428) ने ठीक कहा है ‘‘सबसे अच्छा राज्य वह है जो पूर्ण स्र्वण है, वह नहीं है जो स्र्वणजटित है… दस न्यायप्रिय मनुष्यों से अच्छा राज्य नहीं हो जाता, राज्य की श्रेष्ठता का रहस्य इस तथ्य में निहित रहता है कि उसमें उचित रीति से व्यवस्थित श्रेष्ठ नागरिकों का समुदाय हो। प्लेटो ने अपने राज्य के तीन भागों में से किसी Single में भी वांछनीयतम जीवन को अनुभव किए बिना उस सब की बलि दे दी है जो जीवन को प्राप्य बनाता है।’’ इस प्रकार आदर्शवादी प्लेटो पर्याप्तResellerेण आदर्शवादी नहीं था।
प्राचीन यूनान में दास प्रथा काफी प्रचलित थी और बड़ी संख्या में दास थे पर प्लेटो उनको सिविल सोसाइटी (नागरिक समाज) का हिस्सा नहीं मानते थे, न ही उन्हें नागरिक का अधिकार देना चाहते थे। अत: उनकी शिक्षा के संदर्भ में प्लेटो कुछ नहीं कहते। वस्तुत: वे उन्हें शिक्षा का अधिकारी नहीं मानते थे और उनके लिए यह व्यवस्था की कि उन्हें पारिवारिक पेशे को ही अपनाकर घरेलू कार्यों में लगे रहना चाहिए। प्लेटो ने व्यावसायिक शिक्षा को महत्वहीन माना। उनका कहना था कि शिक्षा तो केवल चिन्तन प्रधान-विषय की ही हो सकती है। वे शारीरिक श्रम को निम्न स्तरीय कार्य मानते थे। दि लॉज में तो उन्होंने यहाँ तक प्रावधान कर डाला कि अगर नागरिक अध्ययन की जगह किसी कला या शिल्प को अपनाता है तो वह दण्ड का भागी होगा।