प्रेस And पुस्तक रजिस्ट्रीकरण अधिनियम 1867 क्या है ?
अधिनियम के तहत प्रत्येक पुस्तक तथा समाचार पत्र में मुद्रक का नाम व मुद्रण स्थल, प्रकाशक का नाम व प्रकाशन स्थल का नाम छापा जाना अनिवार्य है जिससे यह सुनिश्चित हो सके कि पत्र-पत्रिका या पुस्तक के मुद्रण व प्रकाशन का जिम्मेदार कौन व्यक्ति है। इसी प्रकार संपादक का नाम छापा जाना भी अनिवार्य है। समाचार पत्र में प्रकाशित सामग्री के आपत्तिजनक पाए जाने पर फौजदारी कानून की धारा 124 (अ) के अन्तर्गत राजद्रोह (Treason), धारा 292 के अन्तर्गत अश्लील सामग्री प्रकाशित करने तथा धारा 499 व 500 के अन्तर्गत संपादक पर मानहानि की कार्रवार्इ की जा सकती है।
इस अधिनियम के तहत यह व्यवस्था की गर्इ है कि देश भर में किसी भी भाषा में Single ही नाम के दो समाचार पत्र नहीं हो सकते तथा किसी राज्य में Single नाम के दो समाचार पत्र नहीं हो सकते भले ही वे अलग-अलग भाषाओं में ही क्यों न हो लेकिन अलग-अलग राज्यों में व अलग भाषाओं में Single ही नाम का समाचार पत्र हो सकता है।
इस अधिनियम के तहत प्रमुख प्रावधान निम्न हैं:
- प्रत्येक समाचार पत्र में मुद्रक, प्रकाशक व संपादक का नाम, मुद्रण व प्रकाशन स्थल के नाम का History होना चाहिए।
- मुद्रण के लिये जिलाधिकारी की अनुमति आवश्यक है।
- समाचार पत्र के मालिक व संपादक का नाम प्रत्येक अंक में प्रकाशित होना चाहिए।
- समाचार पत्र के नाम, प्रकाशन की भाषा, अवधि, संपादक, प्रकाशक आदि के नाम में परिवर्तन होने पर उसकी सूचना सम्बन्धित अधिकारियों को दी जानी आवश्यक है।
- Single वर्ष तक समाचार पत्र का प्रकाशन न हो पाने की दशा में जानकारी सम्बन्धी घोषणा पत्र रद्द हो जाएगा।
- प्रत्येक प्रकाशित समाचार पत्र की Single प्रति रजिस्ट्रार आफ न्यूज पेपर्स इन इंडिया को तथा दो प्रतियाँ सम्बन्धित राज्य सरकार को निशुल्क उपलब्ध करार्इ जानी चाहिए।
- रजिस्ट्रार आफ न्यूज पेपर्स इन इंडिया को वर्ष में Single बार समाचार पत्र का पूरा description प्रेषित Reseller जाय व इसे पत्र में भी प्रकाशित Reseller जाय।
इसके अतिरिक्त अनेक अन्य प्रावधान भी इस अधिनियम में किये गए हैं जिनसे समाचार पत्रों व पुस्तकों सम्बन्धी जानकारी का रिकार्ड रखा जा सके।