प्राचीन Indian Customer History के पुरातात्विक स्रोत

पुरातात्विक स्रोतों के अंतर्गत सबसे महत्वपूर्ण स्रोत अभिलेख है। प्राचीन भारत के अधिकतर अभिलेख पत्थर या धातु की चादरों पर खुदे मिले हैं। अत: उनमें साहित्य की भांति हेरफेर करना संभव नहीं था। प्राचीनकाल में Kingों के द्वारा अपने आदेशों को इस तरह उत्कीर्ण करवाते थे ताकि लोग उन्हें देख सके And पढ़ सके और उनका पालन कर सके। आधुनिक युग में भी इसका प्रयोग हो रहा है। अभिलेखन के लिए कड़े माध्यम की Need होती थी इसलिए पत्थर, धातु, ईट, मिट्टी की तख्ती, काष्ठ, ताम्रपत्र का उपयोग Reseller जाता था यद्यपि अंतिम दो की आयु अधिक नहीं होती थी। भारत, सुमेर, मिस्र, यूनान, इटली आदि All प्राचीन देशों में पत्थर का उपयोग Reseller गया। किसी महत्त्व अथवा प्रयोजन के लेख को अभिलेख कहा जाता है। यह सामान्य व्यवहारिक लेखों से भिन्न होता है। प्रस्तर, धातु अथवा किसी अन्य कठोर और स्थायी पदार्थ पर विज्ञापित, प्रचार, स्मृति आदि के लिए उत्कीर्ण लेखों की गणना प्राय: अभिलेख के अंतर्गत होती है। कागज, कपड़े, पत्ते आदि कोमल पदार्थों पर मार्स अथवा अन्य किसी रंग से अंकित लेख हस्तलेख के अंतर्गत आते हैं। कड़े पत्तों (ताडपत्रादि) पर लौह शलाका से खचित लेख अभिलेख तथा हस्तलेख के बीच में रखे जा सकते हैं।

मिट्टी की तख्तियों पर बर्तनों और दीवारों पर उत्खचित लेख अभिलेख की सीमा में आते हैं। सामान्यत: किसी अभिलेख की मुख्य पहचान उसका महत्त्व और उसके माध्यम का स्थायित्व है। यद्यपि All लेखों पर उनकी तिथि अंकित नहीं है, फिर भी अक्षरों की बनावट के आधार पर उनका काल मोटे Reseller में निर्धरित हो जाता है। सबसे प्राचीन अभिलेख अशोक के हैं। केवल भूतपूर्व निजाम के राज्य में स्थित मास्कि नामक स्थान और गुज्जर्रा (मध्य प्रदेश) से प्राप्त अभिलेखों में अशोक के नाम का स्पष्ट History है।

अशोक के अन्य अभिलेखों में उसे देवताओं का प्रिय, प्रियदश्र्ाी King कहा गया है। इन अभिलेखों से अशोक के धर्म और राजत्व के आदर्श पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। गुजराती, मराठी, तमिल, तेलुगू, कन्नड़ आदि All भाषाओं की लिपियों का विकास हुआ था। केवल उत्तर पश्चिमी भारत में मिले कुछ अभिलेख ‘खरोष्ठी’ लिपि में फारसी लिपि की भांति दाई से बाई ओर को लिखी जाती थी। ब्राह्मी लिपि को सबसे First 1837 ई. में प्रिसेप नामक विद्वान ने पढ़ा था। इनके अतिरिक्त अशोक के ही कुछ अभिलेख अरामाइक लिपि में हैं।

सिक्के

पुरातात्विक सामग्री में सिक्कों का स्थान भी कुछ कम महत्त्वपूर्ण नहीं है। भारत के प्राचीनतम सिक्कों पर अनेक प्रकार के चित्र उत्कीर्ण हैं। उन पर किसी प्रकार के लेख नहीं हैं यह सिक्के आहत सिक्के कहलाते हैं। इन पर जो बने हैं उनका ठीक-ठीक Means ज्ञात नहीं। इन सिक्कों को Kingओं के अतिरिक्त संभवत: व्यापारियों, व्यापारिक श्रेणियों और नगर निगमों ने चालू Reseller था। इनसे History अतीतकारों को विशेष सहायता नहीं मिली है। अरस्तू द्वारा कहा गया है कि First सिक्के प्राचीन ग्रीस के क्यमे के डेमोदी के द्वारा गढ़े गए थे जिसने पेस्सिनस के King मिदाज्ञ से शादी की थी और जिससे आगामेमनन नाम का Single पुत्र था। हेरोडोट्स ने कहा है कि (I, 94) लाइडियन्स First थे जिन्होंने सोने और चांदी के सिक्के बनाए उनके कहने का Means है कि First दोनों सिक्के अलग-अलग कीमती धातुओं से गढ़े गए थे। बहुत से लोग उनके बयान से भ्रमित हो जाते हैं जैसा कि Historyित है इन सिक्कों को एलेक्ट्रम ;सोना और चाँदी के मिश्रण से बना Single प्राकृतिक धातुद्ध से गढ़ा गया था।

कुछ पुरातात्विक और साहित्यिक प्रमाण बताते हैं कि Indian Customer ने सबसे First, छठी और पाँचवीं सदी ई.पू. के बीच सिक्कों का आविष्कार Reseller था। हालांकि, कुछ मुद्राशास्त्री के विचार से सिक्के लगभग 600-550 ई.पूआनातोलिय में उद्भूत किए गए। विशेष Reseller से लिडिया के आनातोलिया राज्य में जो आधुनिक युग के तुर्की से मेल खाता है।

आमतौर पर सिक्के को धातु या धातु सदृश सामग्री से बनाया जाता है। सामान्यतया जिसकी बनावट गोल चिपटी होती है और यह अकसर सरकार द्वारा जारी की जाती है। प्रतिदिन के सिक्के के संचरण से लेकर बड़ी संख्या में बुलियन सिक्के के भंडारण के लिए विभिन्न प्रकार से लेनदेन में सिक्के का प्रयोग ‘पैसे’ के Reseller में होता है।

संपूर्ण History अतीत में सरकारें अपनी आपूर्ति से ज्यादा कीमती धातुओं से सिक्के बनाने के लिए जानी जाती है। सिक्के में मिश्रित अनमोल धातु के कुछ अंग को Single आधार धातु (अकसर तांबा या निकिल) से प्रतिस्थापित बदलकर सिक्के के आंतरिक मूल्य को कम Reseller गया (उससे उनके पैसे का अपमिश्रण होने लगा)। इस प्रकार सिक्कों का निर्माण करने के अधिकारी के लिए और अधिक सिक्के का उत्पादन संभव हो सका।

Indian Customer सिक्के

सिक्के ढालने का Only अधिकार भारत सरकार को है। सिक्का निर्माण का दायित्व समय-समय पर यथासंशोधित सिक्का निर्माण अधिनियम, 1906 के According भारत सरकार का है। विभिन्न मूल्यवर्ग के सिक्कों के अभिकल्प तैयार करने और उनकी ढलाई करने का दायित्व भी भारत सरकार का है। किंतु जब उत्तर-पश्चिमी भारत पर वैक्ट्रिया के हिन्द-यूनानी Kingों ने अधिकार कर लिया और सिक्का-लेखों वाले अपने सिक्के चलाए तो Indian Customer King भी सिक्का-लेख वाले सिक्के चलाने लगे। इन सिक्कों पर सिक्का-लेख के अतिरिक्त बहुध सिक्के को चालू करने वाले King की आकृति भी होती थी।

यह सिक्के प्राचीन भारत का राजनीतिक History अतीत लिखने में उपयोगी सिद्ध हुए। उदाहरण के लिए यूनान और रोम के History अतीतकारों ने केवल चार या पाँच हिंदू-यूनानी Kingों का History Reseller है किन्तु इनके सिक्कों के आधार पर इनके राज्यकाल का पूरा History अतीत लिखना संभव हो सकता है। यूनानी Kingों के बाद जिन शक और पह्लव और कुषाण Kingों ने उत्तर-पश्चिमी भारत में शासन Reseller उन्होंने भी यूनानियों के अनुReseller सिक्के चलाए। इसके बाद Indian Customer राजतंत्र और गणतंत्र राज्यों के Kingों ने भी ऐसे ही सिक्के चलाए। पांचाल के मित्र Kingों और मालव तथा यौधेय आदि गणराज्यों का पूरा History अतीत उनके सिक्कों के आधार पर ही लिखा गया। गुप्त सम्राटों का History अतीत अधिकतर उनके अभिलेखों के आधार पर लिखा गया है किंतु उनके सिक्कों से भी उनकी उपलिब्ध्यों पर पर्याप्त प्रकाश पड़ा है।

चित्रकला

चित्रकला का प्रचार भारत, चीन, मिस्र आदि देशों में अत्यंत प्राचीन काल से है। मिस्र से ही चित्रकला यूनान में गई जहाँ उसने बहुत उन्नति की। लंदन के ब्रिटिश संग्रहालय में 3000 वर्ष तक के पुराने मिस्र चित्र हैं। भारतवर्ष में भी अत्यंत प्राचीन काल से यह विद्या प्रचलित थी इसके अनेक प्रमाण मिलते हैं। रामायण में चित्रों, चित्रकारों और चित्रशालाओं का वर्णन बराबर आया है। प्राकृतिक दृश्य को अंकित करने में प्राचीन Indian Customer चित्रकार कितने निफण होते थे, इसका कुछ अभ्यास भवभूति के उत्तररामचरित के देखने से मिलता है जिसमें अपने सामने लाए हुए बनवास के चित्रों को देख सीता चकित हो जाती है। यद्यपि आजकल कोई ग्रंथ चित्रकला पर नहीं मिलता है तथापि प्राचीनकाल में ऐसे ग्रंथ अवश्य थे। कश्मीर के King जयादित्य की सभा के कवि दामोदर गुप्त आज से 2200 वर्ष First अपने कुट्टनीमत नामक ग्रंथ में चित्रविध के चित्रसूत्र नामक Single ग्रंथ का History Reseller है। अजंता गुफा के चित्रों में भारतवासियों की चित्रनिफणता देख चकित रह जाना पड़ता है।

बड़े-बड़े विज्ञ यूरोपियनों ने इन चित्रों की प्रशंसा की है। उन गुफाओं में चित्रों का बनाना ईसा से दो सौ वर्ष पूर्व आरंभ हुआ था और आठवीं शताब्दी तक कुछ न कुछ गुफाएँ नई खुदती रही हैं। अत: डेढ़-दो हजार वर्ष के प्रत्यक्ष प्रमाण तो यह चित्र अवश्य हैं। इसी प्रकार अजंता के चित्रों के मनोभावों की सुन्दर अभिव्यक्ति मिलती है। चित्रकला ने माता और शिशु या ‘मरणासन्न राजकुमारी’ जैसे चित्रों में ऐसे मनोभावों का चित्रण Reseller है जो शाश्वत हैं और जो किसी देश या काल विशेष की बपौती नहीं है।

उनसे गुप्तकाल और कलात्मक उन्नति का पूर्ण आभास मिलता है। जीवन और कला का आन्योन्याश्रय संबंध है। चित्रकला से हमें तत्कालीन जीवन की झलक देखने को मिलती है।

स्मारक और भवन

प्राचीन काल के महलों और मन्दिरों की शैली से वास्तुकला के विकास पर पर्याप्त प्रकाश पड़ता है। उदाहरण के लिए, उत्तर भारत के मन्दिरों की कुछ अपनी विशेषताएँ हैं। उनकी कला की शैली ‘नागर शैली’ कहलाती है। दक्षिण भारत के मंदिरों की कला ‘द्रविड़ शैली’ कहलाती है। दक्षिणापथ के मंदिरों के निर्माण में नागर और द्राविड़ दोनों शैलियों का प्रभाव पड़ा, अत: वह ‘वेसर शैली’ कहलाती हैं।

प्राचीन मंदिर कई अलग-अलग जगह स्थापित किए गए। प्राचीन शिव मंदिर छत्तीसगढ़ राज्य के रायपुर जिले में डमरू नगर में स्थित है। यह स्मारक छत्तीसगढ़ राज्य द्वारा संरक्षित है। पेइचिंग में बड़ी संख्या में प्राचीन वास्तु निर्माण उपलब्ध हैं किन्तु ऐसा प्राचीन निर्माण केवल Single है जिसमें हान, मान, मंगोल और तिब्बत जातियों की शैली मिश्रित है, वह है यह मंदिर यानि लामा मंदिर। यह मंदिर विश्वविख्यात तिब्बति बौद्ध धर्म के मंदिरों में से Single है जिसका क्षेत्रफल 60 हजार वर्ग मीटर है और भवनों और कमरों की संख्या Single हजार से ज्यादा है। यह मंदिर First छिंग राजवंश के मशहूर सम्राट खागसी ने अपने Fourth पुत्र यनचन के लिए वर्ष 1694 में बनवाया था।

कन्फ़्यूशियस प्राचीन मंदिर चीन का First मंदिर माना जाता है पिछले दो हजार से ज्यादा सालों में इस मंदिर में नियमित कन्फ़्यूशियस की पूजा की जाती आई है। प्राचीन चीन का दार्शनिक कन्फ़्यूशियस विश्व में सर्वमान्य महान प्राचीन दार्शनिकों में से Single थे। वह चीन के कन्फ़्यूशियस शास्त्र के संस्थापक थे। चीन के पिछले दो हजार वर्ष लम्बे प्राचीन History अतीत में विभिन्न राजवंशों ने कन्फ़्यूशियस और उसके शास्त्र का समर्थन Reseller है।

कन्फ़्यूशियस मंदिर उत्तर-दक्षिण में Single हजार मीटर लम्बा है। उसका क्षेत्रफल Single लाख वर्ग मीटर तथा मंदिर में तकरीबन पाँच सौ कमरे हैं। मंदिर का पैमाना पेंइचिंग के पुराने शाही प्रसाद के बाद चीन का दूसरा बड़ा प्राचीन निर्माण समूह है। जो चीन के प्राचीन काल के मंदिर स्थापत्य कला की आदर्श मिसाल मानी गई है। इस प्रकार स्मारकों और भवनों से वास्तुकला के विकास के अध्ययन में बहुत सहायता मिलती है।

अवशेष

बस्तियों के स्थानों के उत्खनन से जो अवशेष मिले हैं उनसे प्रागैतिहास और आद्य History अतीत पर बहुत प्रकाश पड़ा है। आदि Human ने किस प्रकार उपलब्ध् प्राकृतिक साध्नों का उपयोग करके अपने जीवन को सुखमय बनाने का प्रयत्न Reseller, इसकी जानकारी हमें उनकी बस्तियों से प्राप्त पत्थर और हड्डी के औजारों, मिट्टी के बर्तनों, मकानों के खंडहरों से ही होती है।

मूर्तियाँ

इसी प्रकार प्राचीन काल में कुषाणों, गुप्त Kingों और गुप्तोत्तर काल में जो मूर्तियाँ बनाई गई उनसे जनसाधारण की धर्मिक आस्थाओं और मूर्ति-कला के विकास पर बहुत प्रकाश पड़ा है। भारत की मूर्ति-कला की जड़ें Indian Customer सभ्यता के History अतीत में बहुत दूर गहरी प्रतीत होती है। Indian Customer मूर्तिकला आरंभ से ही यथार्थ Reseller लिए हुए हैं जिसमें Human आकृतियों में प्राय: पतली कमर, लचीले अंगों और Single तरूण और संवेदनापूर्ण Reseller को चित्रित Reseller जाता है। Indian Customer मूर्तियों में पेड़-पौधें और जीव-जन्तुओं से लेकर असंख्य देवी देवताओं को चित्रित Reseller गया है। कुषाण काल की मूर्ति-कला में विदेशी प्रभाव अधिक है। गुप्त काल की मूर्ति-कला में अंतरात्मा तथा मुखाकृति में जो सामंजस्य है वह अन्य किसी काल की कला में नहीं मिलता।

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