प्रबोधन युग के प्रमुख विचारक

प्रबोधन युग के प्रमुख विचारक

By Bandey

अनुक्रम

फ्रांसीसी Historyकार परम्परागत Reseller से प्रबोधन के काल को 1715 ई0 जब लुई XIV की मृत्यु हुई थी और 1789 ई0 जब फ्रांस की क्रांति की शुरूआत हुई थी, जबकि कुछ आधुनिक Historyकार 1620 के दसक से प्रबोधन के युग का प्रारंभ मानते हैं जब वैज्ञानिक क्रान्ति का प्रारंभ हुआ था। प्रबोधन के कुछ प्रमुख व्यक्तियों में जिन लोगों के नाम शामिल हैं उनमें महत्वपूर्ण हैं, फ्रांस के मॉण्टेस्क्यू (1689-1755); वॉल्टेयर (1694-1778); दिदरो (1713-1784); रूसो (1712-1778); कांडिलैक (1714-1780) और काण्डोर्सेट (1743-1794); ब्रिटेन के डेविड ह्यूम (1711-76) और एडम स्मिथ (1723-1790); जर्मनी के लेसिंग (1729-1781), और काण्ट (1724-1804); इटली के गैम्बटिस्टा विको (1668-1744); बेकारिया (1734-1794) और पगानो (1748-1799)।

प्रबोधन का युग अपने पूर्वगामी वैज्ञानिक क्रान्ति से अत्यन्त निकटता से संबंधित था। कुछ पूर्व के दार्शनिकों जिन्होंने प्रबोधन को प्रभावित Reseller उनमें बेकन (1562-1626), देकार्ट (1596-1650), जॉन लॉक (1632-1704); स्पीनोजा (1632-1677); पियरे बेयल (1647-1706) और सर आइजक न्यूटन (1642-1727) शामिल हैं।


प्रबोधन के युग का सबसे महत्वूर्ण प्रकाशन ‘इनसाइक्लोपीडिया’ था, जिसे दिदरो, डि एलम्बर्ट तथा 150 वैज्ञानिकों And दार्शनिकों के Single दल द्वारा संकलित Reseller गया था, यह 1751 और 1772 के बीच 35 खण्डों में प्रकाशित Reseller गया था। इसके द्वारा प्रबोधन के विचार सम्पूर्ण यूरोप और उसके बाहर भी प्रसारित हुए। इनसाइक्लोपीडिया के अलावा जो अन्य महत्वपूर्ण पुस्तकें थीं उनमें वाल्टेयर द्वारा लिखित ‘लेटर्स ऑन इंग्लिश’, रूसो द्वारा लिखित ‘डिस्कोर्स ऑन इक्वैलिटी’, तथा ‘सोशल काण्ट्रेक्ट’, मॉण्टेस्क्यू की ‘स्पिरिट ऑफ लॉ’ शामिल थी।

प्रबोधन से संबंधित विचार

प्रबोधन युग के दार्शनिकों ने सर्वाधिक महत्व स्वतन्त्रता, विकास, तर्क, सहिष्णुता और चर्च तथा राज्य की बुराइयों को समाप्त करने में दिया। हांलाकि इन उददेश्यों को प्राप्त करने के साधनों में उनके विचारों में वैभिन्य मिलता है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण से उत्पन्न चिंतन ने इस युग के विचारों को परिवर्तित कर दिया था, अब धर्मनिरपेक्ष चिंतन और विवेकपूर्ण पूछताछ को बढ़ावा दिया जाने लगा। इस काल के लेखक सामाजिक बुराइयों को उद्घाटित करने लगे। उन्होंने तर्क, सहिष्णुता और Humanता को सबसे आगे रखा। प्रबोधन युग में आम जनता के विचारों और दृष्टिकोण में विज्ञान तथा तर्क को बढ़ावा देने के कारण इतना अधिक परिवर्तन आ गया कि अनेकों लोग इसे बौद्धिक क्रान्ति भी कहने लगे। इस युग में चिंतन का केन्द्र मनुष्य था और Human कल्याण को परम लक्ष्य माना गया। यह माना गया कि राज्य, चर्च तथा अन्य संस्थाओं को निरंतर Human कल्याण के लिए प्रयत्नशील रहना चाहिए। अब Human गरिमा, Humanीय अधिकार तथा Humanीय आदर्शों को स्थापित Reseller जाने लगा, इन्होंने मध्यकालीन परंपराओं, सामंतवादी समाज, रूढ़िवादी धर्म और निरंकुश राजतन्त्र All का तिरस्कार करना प्रारंभ Reseller।

इस युग का यह सामान्य विचार था कि विश्व Single विशाल मशीन की भांति है जो कुछ प्राकृतिक नियमों के According संचालित होती है, ये नियम शाश्वत And अपरिवर्तनीय हैं। मनुष्य को चाहिए कि वह इन प्राकृतिक नियमों का पता लगाये, अपने क्रियाकलापों को इन नियमों के According संचालित करे और इन नियमों का अतिक्रमण करने का प्रयत्न न करे। बुद्धि और तर्क द्वारा इन प्राकृतिक नियमों का ज्ञान प्राप्त Reseller जा सकता है, जो नियम तर्क And बुद्धि की कसौटी में खरे उतरते हैं, वे ही सही है और मनुष्यों के लिए श्रेयस्कर हैं, लेकिन जो तर्क, बोधगम्य न होकर केवल प्राचीन मान्यताओं, विश्वासों और परम्पराओं पर आधारित हैं वे मनुष्य के लिए हितकारी नहीं हो सकते हैं। मनुष्य Single बुद्धिवान प्राणी है जिसके द्वारा वह प्राकृतिक नियमों का ज्ञान प्राप्त कर सकता है। All मुनष्य Single समान उत्पन्न होते हैं, उनमें जो अन्तर मिलता है वह केवल शिक्षा और उन्नति के समान अवसर न मिल पाने की वजह से है। समाज में All मनुष्यों का समान स्थान और महत्व होता है।

प्रबोधन युग के प्रमुख विचारक

प्रबोधन का युग बौद्धिक क्रियाकलाप का युग है, इस युग में अनेकों दार्षनिकों, लेखकों, वैज्ञानिकों ,विचारकों And चिंतकों ने जनसामान्य के मध्य ज्ञान, बुद्धि, तर्क के प्रति जागृति उत्पन्न करने का कार्य Reseller था। कुछ प्रमुख विचारकों के विशय में आपको यहां पर जानकारी दी जा रही है-

पियरे बेयल

फ्रांस का पियरे बेयल, लुई ग्प्ट का समकालीन था। वह सत्य का पक्षपाती था और वैज्ञानिक चिंतन पर विश्वास रखता था। उसका मानना था कि किसी भी धर्म के अनुयायियों को अपने विरोधियों के साथ शक्ति का प्रयोग नहीं करना चाहिए, क्योंकि इसमें प्रतिक्रिया होती है जिसका कोई अंत नहीं होता। अपनी पुस्तक ‘व्हॉट होली कैथोलिक फ्रांस अण्डर दी रिजीम ऑफ लुई फोरटीन्थ रियली इज?’ में उसने लुई ग्प्ट द्वारा नॉट की घोषणा की आलोचना की है। उसकी, ‘हिस्टोरिकल एण्ड क्रिटिकल डिक्शनरी’ में उसने वैज्ञानिकों, Historyकारों, धर्मशास्त्रियों और दार्शनिकों के जीवन तथा उनकी कृतियों And विचारों का सूक्ष्म विवेचन Reseller है।

मॉण्टेस्क्यू

मॉण्टेस्क्यू भी फ्रांस का Single प्रसिद्ध विचारक था। ‘पर्शियन लेटर्स’ नामक उसकी पुस्तक फ्रांस के तत्कालीन धर्म, रीति-रिवाजों, परम्पराओं तथा निरंकुश शासन पर व्यंग करती है। उसकी सर्वाधिक प्रसिद्ध Creation, ‘स्पिरिट ऑफ लॉज’ है। इसमें सामाजिक, भौगोलिक, राजनीतिक तथा आर्थिक शक्तियों के संबंधों पर Discussion की गयी है। साथ ही दासता, धार्मिक अत्याचार और निरंकुशतावाद पर आक्रमण Reseller गया है। उसने King के दैवी अधिकारों की निंदा की है और संवैधानिक राजतन्त्र का समर्थन Reseller है। इस पुस्तक में उसने ‘शक्ति पार्थक्य’ के सिद्धान्त को भी प्रतिपादित Reseller है। स्पिरिट ऑफ लॉज की गणना विश्व के महानतम् ग्रन्थों में की जाती है।

वॉल्टेयर

फ्रांस का वॉल्टेयर Single महान् लेखक, कवि, दार्शनिक, पत्रकार, नाटककार, आलोचक और व्यंगकार था। उसने अपने लेखन द्वारा राज्य और चर्च में व्याप्त भ्रष्टाचार, अभिजात्य वर्ग के विशेषाधिकार इत्यादि की घोर आलोचना की। उसकी कुछ प्रमुख पुस्तकों में, ‘लैटर्स ऑन इंग्लिश’, ‘एज ऑफ लुई ग्प्ट’, ‘ट्रिटाइज ऑन टॉलरेन्स’ हैं। वॉल्टेयर को समस्त यूरोप में विवेक, प्रबुद्धता और प्रकृति के सिद्धान्त के प्रचार-प्रसार का श्रेय दिया जा सकता है। उसने निरन्तर अन्याय, कटटरता, विशेषाधिकार और धार्मिक दुराग्रह का प्रभावशाली ढंग से विरोध Reseller, उसके समय के लोग सम्मान से उसे ‘King वॉल्टेयर’ कहते थे।

जीन जैकस रूसो

जीन जैकस रूसो को फ्रांस का सबसे प्रबुद्ध दार्शनिक माना जाता है। उसने अनेक निबन्ध, लेख तथा उपन्यासों के साथ-साथ स्वयं की जीवनी भी लिखी। उसकी सर्वाधिक प्रसिद्ध पुस्तक, ‘सोशल काण्ट्रेक्ट’ है। इसी पुस्तक कें प्रारंभ में लिखा गया है कि, ‘मनुष्य स्वतन्त्र पैदा होता है परन्तु वह सर्वत्र जंजीरों में जकड़ा हुआ है।’ इस पुस्तक के According आदिम काल में मनुष्यों को स्वतन्त्रता, समानता और भ्रातृत्व प्राप्त था, लेकिन जैसे-जैसे मनुष्य सभ्य होता गया उसने Single समवेत शक्ति उत्पन्न करने के लिए समझौता Reseller और इस प्रकार राज्य का जन्म हुआ। रूसो के According राज्य का जन्म सत्ता तथा उन लोगों के बीच Single समझौता था, जिन्होंने उसका निर्माण Reseller था। अत: सत्ताधिकारी यहां तक कि स्वयं King भी जनता के प्रतिनिधि हैं। अत: यदि जनता के प्रतिनिधि स्वतन्त्रता, समानता और बन्धुत्व-भाव में हस्तक्षेप करते हैं तो जनता को चाहिए कि वह उन्हें बदल दे। रूसो निरंकुश राजतन्त्र का घोर विरोधी था। वह जनतन्त्र को आदर्श शासन प्रणाली मानता था। रूसो की महानता के विषय में नेपोलियन ने कहा था कि, ‘रूसो का जन्म न होता तो फ्रांस की राज्य क्रांति का होना असंभव था’।

दिदरो

दिदरो भी फ्रांस का Single प्रमुख दार्शनिक था। वह ‘इनसाइक्लोपीडिया’ का प्रमुख संकलनकर्ता था। All मध्यकालीन संस्थाओं का उसने घोर विरोध Reseller था, उसका मानना था कि समस्त कटुता को निरकुंश Kingों And पादरियों ने उत्पन्न Reseller था। उसकी इनसाइक्लोपीडिया में धार्मिक असहिष्णुता, अन्धविश्वास, दासों के व्यापार, पादरियों का भ्रष्ट जीवन, अवांछित करों और अभिजात वर्ग के विशेषाधिकारों को निशाना बनाया गया है। इस ग्रन्थ में विज्ञान और तर्कवाद को सर्वाधिक महत्व दिया गया है।

क्वेसने

क्वेसने फ्रांस का Single भू-Meansषास्त्री था , उस काल में भू-Meansषास्त्रियों का मानना था कि भूमि और कृशि ही धन के वास्तविक स्रोत होते हैं , क्योंकि व्यापार में केवल स्थान परिवर्तन के कारण वस्तु का मूल्य बढ़ता है और उसे धन का उत्पादन नहीं कहा जा सकता है।वास्तव में देखा जाय तो All चीजें प्रकृति की ही देन हैं,अत: धन का मूल स्रोत तो प्रकृति ही है, जहां से हमें कृशि उत्पाद, मत्स्य उत्पाद और खनिज पदार्थ प्राप्त होते हैं और वास्तव में ये ही धन उत्पन्न करते हैं अत: राज्य को चाहिए कि वह उत्पादन के इन क्षेत्रों में हस्तक्षेप न करे और उन्मुक्त व्यापार को प्रोत्साहित करे। क्वेसने का मानना था कि किसानों पर कर्ज का बोझ कम होना चाहिए क्योंकि यदि किसान गरीब है तो राज्य के साथ-साथ King भी गरीब हो जायेगा।

प्रबोधन का प्रभाव

18वीं सदी बुद्धिवाद और तर्कवाद की सदी थी, जैसा कि ऊपर बताया गया है विभिन्न दार्शनिकों, विद्वानों ने अपने लेखन द्वारा इस काल में व्यापक जनजागृति उत्पन्न कर दी थी। यह स्वाभाविक है कि इस जागृति का प्रभाव यूरोप के विभिन्न Kingों में भी पड़ा। इस काल के प्रमुख King जिनमें इस जागृति का प्रभाव पड़ा था, उनमें रूस की साम्राज्ञी कैथरीन, ऑस्ट्रिया का सम्राट जोसेफ द्वितीय, प्रशा का King फ्रेडरिक द्वितीय, स्पेन का King चाल्र्स तृतीय, पुर्तगाल का King जोसेफ First, स्वीडन का King गुस्ताव तृतीय तथा टस्कनी का King चाल्र्स इमैन्युअल तृतीय प्रमुख थे। यद्यपि ये All King स्वेच्छाचारी और निरंकुश थे और अपनी इच्छा को ही कानून मानते थे पर जागृति की लहर ने इन्हें प्रबुद्ध निरंकुश बना दिया, इन्होंने अपने-अपने देशों की राजनीतिक, आर्थिक और सामाजिक अवस्था को नये विचारों के According परिवर्तित करने का प्रयास Reseller। All ने कम या अधिक मात्रा में प्रशासनिक सुधारों को क्रियान्वित Reseller। कानूनी कार्यप्रणाली में SingleResellerता लाने का प्रयास Reseller, कानूनों को संहिताबद्ध Reseller, कर-पद्धति को न्याय संगत बनाया। जन साधारण की शिक्षा व्यवस्था, कृषि दासों के प्रति Humanीयता, साहित्य का विकास, चिकित्सालयों का निर्माण आदि कार्यों को Reseller जाने लगा।

धर्म And अध्यात्म का क्षेत्र भी दार्शनिकों की आलोचना का प्रमुख क्षेत्र था, अत: यहां भी व्यापक प्रभाव पड़ना स्वाभाविक था। इस युग के प्रारंभ में लोगों की जो धार्मिक मान्यताऐं थी वे वस्तुत: इसाई धर्मग्रन्थों में लिखी बातों पर आधारित थीं और उनका कोई वैज्ञानिक आधार नहीं था। बौद्धिक क्रान्ति ने लोगों को यह समझाया कि इन प्रमाणों का तब तक कोई मूल्य नहीं जब तक कि उनमें लिखी बातें तर्क And बुद्धि की कसौटी में खरी न उतरें, इन ग्रन्थों की उन बातों को छोड़ने को कहा गया जो तार्किक न हों, बातों को स्वीकार करने से First उनकी सत्यता परीक्षण And तर्क से जांचना आवश्यक हो गया।

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