पूंजी की लागत का Means, परिभाषा, विशेषताएँ, महत्व And वर्गीकरण
पूर्वाधिकार अंश वे है जिन पर लाभाँश की Single निश्चित पूर्व निर्धारित दर होती है। साथ ही कम्पनी के समापन पर पूर्वाधिकारी अंशधारकों को पूँजी की वापसी में वरीयता प्राप्त होती है। लाभांश की देयता का निर्धारण निदेषक मण्डल सभा में निदेषक मण्डल द्वारा Reseller जाता है। संचयी पूर्वाधिकार अंशधारकों को लाभांश का भुगतान स्थगित करने पर आगामी वर्शो में होने वाले लाभों में से भुगतान करना आवश्यक होता है। किन्तु असंचयी पूर्वाश्चिाकार अंशों की दषा में कम्पनी का लाभ कम होने पर उसे भुगतान के दायित्व से मुक्ति मिल सकती है। पूर्वाधिकारी अंश पूंजी की लागत का निर्धारण अंशों पर देय लाभांश में प्रति अंश प्राप्त शुद्ध मूल्य राशि का विभाजन करके 100 से गुणा करने के उपरान्त प्रतिशत के Reseller में Reseller जा सकता है।
व्यावहारिक तौर पर पूर्वाधिकार अंशों का निर्गमन प्रीमियम अथवा छूट पर Reseller जा सकता है। इन अंशों के निर्गमन पर होने वाले व्ययों को निर्गमन की लागत में सम्मिलित Reseller जाता है। पूर्वाधिकारी अंशों के सममूल्य को Needनुसार निम्न सूत्रों के माध्यम से समायोजित करके शुद्ध राशि (Net Proceeds) ज्ञात की जा सकती है।
पूर्वाधिकार अंशों की लागत निर्धारण में समायोजन हेतु कर (Tax) की धनराशि को सम्मिलित नहीं Reseller जाता है। क्योंकि पूर्वाधिकार अंशों पर लाभांश का भुगतान करों के भुगतान के उपरान्त Reseller जाता है।
समता अंश पूंजी धारक वास्तविक Meansों में कम्पनी के स्वामी होते हैं कम्पनी में होने वाले लाभ का अधिकतम भाग प्राय: समता अंशधारकों के मध् य वितरित करने का प्रयास निदेषक मण्डल द्वारा Reseller जाता है। किन्तु समता अंश पूंजी पर लाभांश की Single निश्चित दर का भुगतान प्रबन्ध के द्वारा Reseller जाना अनिवार्य नहीं होंता। लाभांश का भुगतान करने या न करने के सम्बन्ध में कम्पनी प्रबन्धन पूर्णReseller से स्वतंत्र है। समता अंश पूंजी पर देय लाभांश की दर अनिश्चित होने के कारण समता अंश पूंजी की लागत का आकलन करना अपेक्षाकृत कठिन होता है। किन्तु स्वाभाविक तौर पर समता अंश पूंजी को लागत रहित पूंजी (Cost free capital) नहीं कहा जा सकता। वस्तुत: समता अंश धारकों द्वारा कम्पनी में विनिवेष (Investment) लाभांश के Reseller में आय प्राप्त करने हेतु ही Reseller जाता है। प्राय: समता अंशधारक कम्पनी से अपेक्षाएं रखते है।
लाभांश पा्रप्ति विधि समता अंशधारकों को प्राप्य: लाभांश पर आधारित विधि होती है। अत: इसे लाभांश मूल्य अनुपात विधि (Dividend Price Ratio method) के नाम से भी जाना जाता है व्यावहारिक तौर पर प्रत्याषित या घोशित दर पर समता अंश पूंजी की लागत न होकर अपितु समताअंश पूंजी की लागत लाभांश प्राप्ति के बराबर होती है।
यह विधि आय मूल्य अनुपात विधि (earning price ratio method) के नाम से भी जानी जाती है, इस विधि के अन्तर्गत समता अंश पूंजी की लागत का निर्धारण अंशों पर होने वाली प्रत्याषित आय को उनके बाजार मूल्य से सम्बन्धित करके ज्ञात की जाती है। यह विधि इस मान्यता पर आधारित है कि समता अंश धारक कम्पनी के अप्रत्यक्ष तौर पर स्वामी होते हैं।
सीमाएं (Limitation) इस विधि की कतिपय सीमाएं हैं।
- इस विधि में .यह माना जाता है कि लाभांश दर में होने वाली वृद्धि, प्रति अंश अर्जन तथा प्रति अंश बाजार मूल्य में होने वाली वृद्धि के समान होगी। जब कि प्राय: व्यवहार में ऐसा नहीं होता ।
- लाभांश में वृद्धि की दर ज्ञात करना कठिन होता है।
- कम्पनी द्वारा भविष्य में होने वाले लाभांश की मात्रा में अनवरत वृद्धि का अनुमान यथार्थपूर्ण नहीं होता है। कम्पनी को भावी वर्षों में हानि होने की दषा में लाभांश की मात्र में कमी भी हो सकती है।
4. प्रतिधारित आय की लागत –
प्राय: कम्पनियाँ अपने द्वारा अर्जित समस्त लाभों में से सम्पूर्ण भाग वितरित न करके उसका कुछ भाग संगठन के विकास हेतु संचय के Reseller में रख लेती है। इसका प्रयोग वित्त की भावी मांग को पूर्ण करने हेतु Reseller जाता है। इसी से की हुर्इ आय को प्रतिधारित आय (Retained earnings) कहा जाता है। प्रतिधारित आय के Reseller में संगठन को आन्तरिक साधनों से पूँजी प्राप्त होती है। इस परिप्रेक्ष्य में आम धारणा यह है कि प्रतिधारित आय के Reseller में संग्रहीत पूंजी की कोर्इ लागत नहीं होती है। व्यवहारिक तौर पर कम्पनी को यह राशि अत्यन्त सहजता से प्राप्त होती है। तथा इसके लिए किसी भी प्रकार का निर्गमन व्यय नहीं करना पड़ता, किन्तु वास्तविक Reseller में प्रतिधारित आय की कुछ न कुछ लागत अवष्य होती है। क्योंकि अंश धारकों द्वारा अपने लिये उपलब्ध लाभ में से कुछ भाग का परित्याग करना पड़ता है। आय के Single भाग को प्रतिधारित करने से अंश धारक उस आय के पुर्नविनियोग अवसर से वंचित हो जाते हैं। वस्तुत: प्रतिधारित आय की लागत अंशधारकों द्वारा त्याग किये गये विनियोग अवसर की लागत होती है। प्रतिधारित आय की लागत आगणन हेतु दो परिस्थितियाँ विद्यमान हो सकती हैं।
- जब अंश धारक को प्राप्त लाभांश पर कर And दलाली के Reseller में कोर्इ धनराशि व्यय नहीं करना पड़ता।
- जब लाभांश की प्राप्ति पर कर भुगतान And विनियोजन पर दलाली इत्यादि का भुगतान करना पड़ता है।
First स्थिति में प्रतिधारित आय की अवसर लागत समता अंश पूंजी की लागत के समान होगी।
पूँजी की लागत का महत्व
परम्परा विचारधारा के अन्तर्गत वित्तीय प्रबन्धन के क्षेत्र में पूँजी की लागत अवधारणा को कोर्इ महत्व नहीं दिया गया। क्योंकि इस अवधारणा में कोषों के संग्रहण पर अधिक बल दिया गया। न कि कोषों के समुचित उपयोग पर। किन्तु आधुनिक विचारधारा पूँजी की लागत अवधारणा को अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान देती है। वर्तमान वैष्वीकरण (Globalisation) And मुक्तिकरण (Liberalisation) के परिवेष में विष्व समुदाय के साथ प्रतिस्पर्धा हेतु यह आवश्यक हो जाता है कि पूंजी की लागत अवधारणा को मात्र सैद्धान्तिक अध्ययन हेतु स्वीकार न करके अपितु व्यावहारिक धरातल पर लागत नियंत्रण, लाभ अधिकतमीकरण And धन अधिकतमीकरण हेतु प्रयोग में लाया जाय। पूंजी की लागत अवधारणा की सार्थकता का विवेचन निम्नलिखित “ाीर्शक के अन्तर्गत Reseller जा सकता है।
1. पूंजी व्यय सम्बन्धी निर्णयन में सहायक –
पूंजी व्यय सम्बन्धी निर्णयन में पूंजी की लागत अवधारणा महत्वपूर्ण होती है। वस्तुत: किसी भी विनियोग प्रस्ताव की स्वीकृति अथवा अस्वीकृति का आधार विनियोग की लागत होती है। वस्तुत: विनियोग की प्रत्याषित आय And पूंजी की लागत के मध्य अन्र्तसम्बन्ध होता है। यदि विनियोग से प्रत्याषित आय का वर्तमान मूल्य विनियोग की लागत (पूंजी की लागत) के समतुल्य अथवा अधिक हो तो वह विनियोग प्रस्ताव स्वीकार्य होगा, किन्तु यदि विनियोग से प्रत्याषित आय का वर्तमान मूल्य विनियोग की लागत से कम हो तो वह विनियोग प्रस्ताव अस्वीकार्य होगा।
2. वित्तीय निर्णयन में सहायक –
सगंठन के अन्तगर्त प्रबन्धकों को अनेक प्रकार की वित्तीय निर्णयन लेने होते हैं जैसे लाभांश निर्णयन, कार्यषील पूँजी नीति सम्बन्धी निर्णयन, लाभों के पुर्नविनियोग सम्बन्धी निर्णयन आदि, प्रबन्ध द्वारा इन बिन्दुओं पर निर्णय लेने से पूर्व पूंजी की लागत को ध्यान में रखा जाता है।
3. सगंठन हेतु पूंजी सरचंना का निर्धारण –
वस्ततु : विभिन्न सा्रेतों से प्राप्य पूंजी की मात्रा का निर्धारण संगठन की अनुकूलतम पूंजी संCreation हेतु आवश्यक होता है। विभिन्न विकल्पों में से अनुकूल विकल्प के चयन का आध् ाार मात्र पूंजी की लागत होती है। अपेक्षाकृत कम लागत वाली पूंजी का चयन संगठन के हित में होता है।
4. पूंजी मिलान का निर्धारण –
पूंजी मिलान दर वह दर है जिसके माध्यम से बाजार में उपलब्ध विभिन्न विनियोग विकल्पों के आर्थिक मूल्य का मूल्यांकन सहजता से Reseller जा सकता है। पूंजी मिलान दर का निर्धारण करने हेतु पूंजी की लागत का अत्यन्त महत्वपूर्ण स्थान है। अनुकूलतम पूंजी ढॉंचे के निर्धारण हेतु वित्तीय प्रबन्धक को पूंजी की लागत को न्यूनतम करने And संगठन की प्रत्याय दर को अधिकतम करने हेतु प्रभावी कदम उठाने चाहिये।
वित्तीय निर्णय में पूंजी की लागत की भूमिका
परम्परागत विचारधारा के अन्तर्गत वित्तीय निर्णयन में पूंजी की लागत का कोर्इ स्थान नहीं था किन्तु नवीन विचारधारा के अन्तर्गत वित्तीय निर्णयन में पूंजी की लागत का महत्वपूर्ण स्थान है। वस्तुत: फर्म द्वारा लिये गये विनियोग सम्बन्धी निर्णयों में पूंजी की लागत का गहरा प्रभाव पड़ता है। वित्तीय निर्णयन में पूंजी की लागत की भूमिका निम्नलिखित Reseller में स्वीकार की गयी है।
1. पूंजी बजटिग सम्बन्धी निर्णयन –
पूंजी बजटिगं सम्बन्धी निणर्यो में पूंजी की लागत की भूमिका अत्यन्त महत्वपूर्ण होती है। वस्तुत: किसी भी फर्म की पूंजी की औसत लागत प्रत्याय की उस न्यूनतम दर अथवा मिलान बिन्दु की सूचक है जिससे कम दर पर पूंजी निवेष के किसी भी प्रस्ताव को स्वीकृति नहीं दी जा सकती। किसी परियोजना में विनियोग सम्बन्धी निर्णय विनियोग के शुद्ध वर्तमान मूल्य के धनात्मक होने पर ही लिया जाता है। वस्तुत: वर्तमान परिप्रेक्ष्य में पूंजी की लागत अवधारणा वित्तीय निर्णय के मापदण्ड स्वReseller अत्यन्त उपयोगी हो चुकी है।
2. पूंजी ढाँचे के आयोजन सम्बन्धी निर्णय –
प्रत्येक औद्योगिक संगठन द्वारा संगठन के हित में अनुकूलतम पूंजी ढाँचे की संCreation का प्रयत्न Reseller जाता है। संगठन की कार्यक्षमता के समुचित विदोहन हेतु And पूंजी लागत को न्यूनतम करने हेतु अंश पूंजी तथा ऋण पूंजी का अनुकूलतम मिश्रण (Optimum mix) तैयार करने का प्रयत्न Reseller जाता है। जिससे संगठन की पूंजी की औसत लागत को न्यूनतम रखते हुए अंश पूंजी तथा ऋण पूंजी का अनुकूलतम मिश्रण तैयार करने का प्रयत्न Reseller जाता है। जिससे संगठन की पूंजी की औसत लागत को न्यूनतम रखते हुए अंशों के बाजार मूल्य को अधिकतम रखा जा सके।
3. अन्य वित्तीय निर्णयन –
अन्य वित्तीय निणर्यों के अन्तर्गत पूंजी की लागत अवधारणा का प्रमुख बिन्दु पूंजी होती है। इसके माध्यम से कार्यषील पूंजी का प्रबन्ध अत्यन्त सुचारू Reseller से Reseller जा सकता है। लाभांश And प्रतिधारण नीतियों के निर्धारण में भी पूंजी की लागत का सिद्धान्त अत्यन्त उपयोगी होता है। इसके अतिरिक्त यह सिद्धान्त फर्म की वित्तीय कार्य निश्पत्ति के मूल्यांकन में प्रभावी भूमिका का निर्वहन करता है।