पुनर्जागरण के कारण And विशेषताएं
पुनर्जागरण से तात्पर्य
ऐतिहासिक दृष्टि से पुनर्जागरण की कोर्इ सहज And स्पश्ट परिभाषा नहीं दी जा सकती है। अनेक Historyकार इसे सांस्कृतिक पुनर्जागरण स्वीकार करते हैं। व्यापक Means में सांस्कृतिक पुनर्जागरण का अभिप्राय उन समस्त परिवर्तनों से है, जो मध्ययुग से आधुनिक युग के बीच पश्चिमी यूरोप में हुए थे, Meansात सामंतवाद की अवनति, प्राचीन साहित्य का अध्ययन, राष्ट्रीय राज्यों का उत्थान, आधुनिक विज्ञान का प्रारंभ, गतिशील अक्षरों, बारूद And कुतुबनुमा का अविष्कार, नये व्यापारिक मार्गों की खोज, पूँजीवाद का विकास And अमेरिका का अविष्कार इत्यादि All परिवर्तनों से इसका तात्पर्य है। सीमित Means में इसका अभिप्राय चादैहवीं सदी से सोलहवीं के मध्य लौकिक भावनाओं की वृद्धि, सांसारिक विशय में अभिरुचि, पश्चिमी यूरोप के राजनीतिक, सामाजिक, धार्मिक ओर आर्थिक क्षेत्रों में हुए मुख्य परिवर्तनों से इसका तात्पर्य है। प्राचीन रोमन तथा यूनानी विद्या And कला की ओर लोगों को पुन: रुचि And मध्ययुग के अंत से आधुनिक युग के प्रारंभ के बीच हुए समस्त बौद्धिक And मानसिक विकास का बोधक सांस्कृ तिक पनु र्जागरण है। सांस्कृतिक पनुर्जागरण का तात्पर्य कुछ गैर -सांस्कृतिक तथ्यों से भी है, जैसे यूरापे के क्रूसेड्स, नये देशों And व्यापारिक मार्गों की खोज, कृशि संबंधी परिवर्तन, सामतंवाद का पतन, नगरों का उत्थान, पोप तथा पवित्र रोमन साम्राज्य की अवनति, राजनीतिक तथा धार्मिक परिवर्तन, ज्योतिश की उन्नति इत्यादि।
पुनर्जागरण के कारण
मध्ययुग के अंत में आक्रमणकारी-मुसलमानों And तुर्कों के विरूद्ध रोम के पोप की अध्यक्षता में धर्म-Fight या क्रूसेड्स से परिणामस्वReseller यूरोप के निवासियों के भौगोलिक ज्ञान And जीवन-प्रणाली के स्तर में पर्याप्त वृद्धि हुर्इ। अत: यूरोप के बौद्धिक तथा मानसिक क्षेत्रों में अनेक महत्वपूर्ण परिवर्तन आरंभ हो गये। मध्ययुग के अंत And आधुनिक युग के प्रारंभ में यूरोपीय व्यापार-वाणिज्य की वृद्धि, शिक्षा प्रसार, नये-नये, स्वतंत्र And अर्द्ध-स्वतंत्र नगरों का उत्थान, Creationत्मक प्रयोग तथा विज्ञान-विकास, अरबवासियों के प्रभावस्वReseller प्राचीन आध्यात्मिक ज्ञान And कला में नवजीवन का संचार, कुस्तुन्तुनिया के पतन से प्राचीन संस्कृति की वृद्धि, यूरोपवासियों के भौगोलिक ज्ञान में प्रशंसनीय विकास, छापेखाने के अविष्कार से प्राचीन विद्या And कला के प्रसार में पर्याप्त वृद्धि इत्यादि तत्थों के परिणामस्वReseller ही यूरोप में सांस्कृतिक पुनर्जागरण का प्रारंभ हुआ। सांस्कृतिक पुनर्जागरण का आरंभ सबसे First इटली में ही हुआ, क्योंकि इटली में ही प्राचीन रोमन सभ्यता के अवशेष थे And First इटली के निवासियों ने ही प्राचीन यूनानी रोमन साहित्य तथा संस्कृति का पुन: अध्ययन आरंभ Reseller। प्रारंभ में सांस्कृतिक पुनर्जागरण आन्दोलन इटली तक ही सीमित था, परंतु कालांतर में समस्त पचिशमी यूरोप पर इसका प्रभाव पड़ा।
पुनर्जागरण की विशेषताएं –
सांस्कृतिक पुनर्जागरण के महान पे्रणेता इटली के महाकवि दाँते थे, जिसकी प्रमुख Creation इटालियन भाषा में रचित थी। दाँते यूरोप के महान साहित्यिक तथा वैज्ञानिक थे। वर्जिल, सीजर And सिसेरो इत्यादि दाँते के मुख्य पथ-प्रदशर्क थे। प्राचीन सभ्यता And संस्कृति के पुन: अध्ययन तथा प्राचीन साहित्य And लेखकों की प्रशसां में दाँते की अपेक्षा पटे ्रार्क का काफी महत्व था। उसने मध्ययुगीन धर्म-प्रधान शिक्षा And साहित्य का परित्याग Reseller। उसने प्राचीन रोमन तथा यूनानी साहित्य के महत्व तथा सौंदर्य की ओर समकालीन लोगो का ध्यान आकर्शित Reseller And उसने समकालीन शिक्षित लोगों में रोमन तथा यूनानी संस्कृति के प्रति विशेश रुचि And ज्ञान-संचय करने की प्रवृित्त जागृत की। अत: पेट्रार्क को ही सांस्कृतिक पुनर्जागरण का महान पथ-प्रदशर्क कहा जाना युक्तिसंगत होगा। सांस्कृतिक पुनर्जागरण के अंतर्भूत मुख्य परिवर्तनों, तथ्यों And विकसनों में प्रमुख विशेषताएं दृष्टिगोचर होती हैं –
(1) Humanवाद-
सांस्कृतिक पनुर्जागरण ने यूरोप के विद्वानों And साहित्य-सेवियों में ‘साहित्यकता’ व ‘प्राचीनता’ के प्रति रुचि उत्पन्न की। अब लोग प्राचीन रोमन तथा यूनानी सभ्यता की सर्वोत्कृश्ट आदशर् के Reseller में ग्रहण करने लगे। साहित्य And प्राचीनता के प्रति यह रुचि तथा प्रवृित्त उन्नीसवीं सदी तक चलती रही And समस्त यूरोपीय साहित्य, स्थापत्य-कला And विविध कलाओं की ॉौली भी इसके द्वारा पुर्णतया प्रभावित हुर्इ। दूसरी ओर, साहित्य व प्राचीनता की पुन: प्रशंसा के साथ-साथ पुनर्जागरण ने यूरोपीय विद्वानों And साहित्य-प्रेमियों में ‘Humanवाद’ या Humanवादी प्रवृत्तियों को जागृत Reseller। Humanवाद का तात्पर्य ‘उन्नत ज्ञान’ से है Meansात् यह धारणा कि प्राचीन साहित्य में ही समस्त गुण, Humanता, सौंदर्य, माधुर्य तथा जीवन की वास्तविक सार्थकता निहित है, And दूसरी ओर, आध्यात्मिकता, धर्म-शास्त्र And वैराग्य में कोर्इ महत्त्ाा व सार्थकता नहीं होती है। यूरोप के विद्वान जिन्होनं े प्राचीन रोमन And यूनानी सभ्यता, संस्कृति, साहित्य, प्राकृतिक जीवन के सौंदर्य And माधुर्य तथा Humanवादी विशयों के महत्व पर जोर दिया And जिन्होंने प्राचीन ज्ञान को ही Human-उत्थान हेतु नितांत आवशयक अंग बताया, वे Humanवादी कहलाते हैं। इन Humanवादी विद्वानों ने बड़े उत्साह And लगन के साथ प्राचीन ग्रंथों की खोज शुरू की। इन्है। Kingओ, प्रभावशाली And धन-सम्पन्न व्यक्तियों तथा विद्यापे्रमी लोगों की ओर से पर्याप्त प्रोत्साहन, संरक्षण And सहयोग प्राप्त हुए। अत: पनु र्जागरण ने ही लोगों में बौद्धिक उत्सुकता, आलोचनात्मक प्रवृित्त तथा ज्ञान-संचय की अभिरुचि उत्पन्न की।
(2) कला –
जिस प्रकार यूरोप के विद्वानों ने 14वीं सदी से लेकर 16वीं सदी तक प्राचीन रोमन And यूनानी साहित्य के प्रति बड़ी अभिरुचि दिखायी, उसी प्रकार कलाकारों And शिल्पियों ने भी प्राचीन ललित कलाओं से प्रेरणा प्राप्त की And संतति के लिए नये आदशर् से इसका विकास Reseller। मध्ययुगीन यूरोप की कला मुख्यतया र्इसार्इ धर्म से संबंधित थी, परन्तु साहित्य And प्राचीन सभ्यता के प्रभावस्वReseller पंद्रहवीं And सोलहवीं सदियों में यूरोपीय कला का महान् Resellerांतर व परिवर्द्धन हुआ। अब कला पर साहित्य व प्राचीनता की छाप स्पश्टतया दिखायी देने लगी And कला के All क्षेत्रों-ं स्थापत्य-कला, मूर्तिकला, चित्रकला And संगीत में प्राचीनता के आदर्श अपनायेजाने लगे And इनकी अद्वितीय उन्नति हुर्इ। मध्ययुग में जहाँ यूरोप में लाके भाषाओं का प्रारंभिक विकास प्रारंभ हुआ, वहाँ साथ ही, इटली में कर्इ महत्वपूर्ण साहित्य की Creation हो चुकी थी, परंतु पंद्रहवीं सदी में इटालियन विद्वानों द्वारा प्राचीन लैटिन And यूनानी साहित्य के प्रति अत्याधिक रुचि-प्रदशर्न के कारण इटालियन लोकभाषा का विकास अवरूद्ध हो गया। इस युग के प्रसिद्ध इटालियन साहित्यकार And विद्वान लैटिन And यूनानी साहित्य के महान उपासक थे, परंतु अपनी राष्ट्रीय भाषा व साहित्यां े के प्रति बड़े उदासीन थे। यद्यपि पटे ्रार्क इटालियन भाषा में सुंदर कविताओं की Creation कर सकता था, परंतु वह ऐसी Creation करने में हीनता का बाध्े ा करता था। दूसरी ओर , लैटिन भाषा में लिखने में उस े गर्व था। इन विद्वानों ने होरेस, सिसेरो And वर्जिल की Creationओं का अनुसरण Reseller And उन्होंने प्राचीन साहित्य के गौरव And वास्तविक सौंदर्य का द्वार प्रशस्त कर दिया। प्राचीन यूनानी तथा लैटिन साहित्य And ग्रंथों की खोज And वैज्ञानिक अध्ययन के परिणाम स्वReseller विद्वानों में वैज्ञानिक आलाचे ना की प्रवृत्ति जागतृ हइुर् । इस युग में Kingओं या सेनापतियों की प्रशस्ति की अपक्ष्े ाा विद्वानों And कलाकारों के जीवन चरित्र लिखे And पढ़े जाने लगे।
(3) धार्मिक क्रांति व प्रोटेस्टेंट धर्म का उत्थान-
आधुनिक युग के प्रारंभ के नवोत्थान-जनित प्राचीन सभ्यता And संस्कृति का पुन: विकास, सुदूरस्थ भौगोलिक खोजों, लोकभाषाओं And राष्ट्रीय साहित्य के सृजन की भांति ही समानReseller से महत्वपूर्ण And युगांतरकारी विशेशता वैज्ञानिक अंवेशण तथा वैज्ञानिक उन्नति मानी जाती है। वस्तुत: सोलहवीं सदी का यूरोप न केवल, अपने महान कलाकारों, विद्वानों And Humanवादियों के कारण ही, वरन् साथ ही साथ अपने महान् वैज्ञानिकों के कारण भी बड़ा महत्वपूर्ण माना जाता है। इन वैज्ञानिकों ने समस्त विज्ञानजगत में अपने महान अन्वेषणों द्वारा अपूर्व And महान् क्रांति उत्पन्न कर दी। मध्ययुगीन यूरोपीय समाज की रूढ़िवादिता, प्रगतिशीलता, धार्मिक कÍरता, अंधविशवास तथा विज्ञान के प्रति व्यापक उदासीनता के कारण मध्ययुग में वैज्ञानिक अंवेशण And प्रगति संभव न थी। किन्तु मध्यकाल के उत्त्ारार्द्ध And आधुनिक युग के प्रारंभ में विज्ञान के क्षेत्र में अनेक अनुसंधान, अंवेशण तथा परिवर्तन हुए। अत: वैज्ञानिक उन्नति होने लगी, समाज का स्वस्थ विकास होने लगा, मनुश्यों में स्वतंत्र चिंतन-प्रवृित्त, वैज्ञानिक दृष्टिकोण And वैज्ञानिक आलोचनाएँ आरंभ हुर्इ। अत: सर्वत्र क्रियाशीलता, गतिशीलता And प्रगति आरंभ हुर्इ।
प्राचीन यूनानी सभ्यता व संस्कृति के पुनर्जागरण के प्रयासों के परिणामस्वReseller विस्तृत पाइथागोरस के गणित संबंधी ‘सिद्धांतों’ का पुन: अध्ययन होने लगा। खगोल विद्या के क्षेत्र में कोपरनिकस, टाइको ब्राच,े केल्पर And गैलीलियो इत्यादि वैज्ञानिकों द्वारा प्रतिपादित सिद्धांतो, निश्कर्शों, अन्वेषणों व प्रयोगो का पुन: अध्ययन होने लगा। सोलहवीं सदी में ‘खगोल विद्या’ ने ‘प्राचीन सभ्यता And संस्कृति के पुनर्जागरण’ से प्रेरणा प्राप्त की And अपने विकास के मार्ग को प्रशस्त कर दिया। विज्ञान, गणित, यंत्र-विद्या And पदार्थ-शास्त्र इत्यादि की बड़ी क्रांतिकारी And जन उपयोग प्रगति आरंभ हो गयी। समकालीन पूँजीवाद के विकास के परिणामस्वReseller बड़ े पैमाने पर खनिज-विज्ञान का प्रयोग Reseller जाने लगा, अत: कालातं र में धातु-विज्ञान का भी विकास होने लगा। सोलहवीं सदी में चिकित्साशास्त्र का विकास अपेक्षाकृत कम हुआ। इस क्षत्रे में पैरासैल्ििसयस, वास्लस And हार्वे इत्यादि चिकित्सा-शास्त्रियों ने बड़े महत्वपूर्ण कार्य किए। वनस्पति-विज्ञान And प्राणी विज्ञान के क्षेत्रों में भी नवीन अन्वेषण And अनुसंधान आरंभ हो गय।े 14वीं सदी में यूरोप में बारूद के आविष्कार And तत्जनित बारूद के प्रयोग साधनों के संबंधों में ज्ञान-वृद्धि के परिणामस्वReseller तोपें और बंदूकें बनने लगी। इन्होंने Fight-प्रणाली में आमूल परिवर्तन उत्पन्न कर दिए, सांमतों की शक्ति को क्षीण बना दिया, दुर्गों And ॉास्त्रास्त्र-सज्जित सैनिकों की उपयाेि गता को व्यर्थ कर दिया। अब Kingओं की सेनाएँ बड़ी शक्तिशाली बन गर्इं। Kingओं ने अपनी सैनिक शक्ति And मध्यम वर्ग के सहयागे के बल पर सुदृढ़ केन्द्रित तथा सार्वभौम सरकारें कायम कर लीं। अत: यूरोप में सामंतवाद की अवनति And राजतंत्रवाद तथा निरंकुश राजसत्त्ाा की उन्नति होने लगी। आधुनिक काल के प्रारंभ में गतिशील अक्षरों And छापेखाने के आविष्कार के परिणामरूवReseller स्वतंत्र चिंतन And ज्ञान-प्रसार में अभतू पूर्व वृद्धि हुर्इ। आधुनिक युग के प्रारंभ में प्रमुख अन्वेशणों में छापेखाने का अन्वेशण अत्यंत महत्वपूर्ण समझा जाता है, क्योंकि आधुनिक यूरोपीय History पर इसका अत्यंत गहन प्रभाव पड़ा। गतिशील अक्षरों And छापेखाने के सहयोग से ही सन् 1454 में First ‘बार्इबिल’ का लैटिन संस्करण पक्र ाशित हुआ। अब अधिकाधिक संस्था में And सुलभ पुस्तकें छापी जाने लगी। अत: ज्ञान व विद्या की परिधि अब सीमित न रही, वरन् सर्वसाधारण के लिए विस्तृत हो गयी।
(4) भौगालिक खोजें –
आधुनिक यूरोप के प्रारंभ में सांस्कृतिक पनु र्जागरण के विकास के साथ ही भौगोलिक खाजे ें भी बड़ी महत्वपूर्ण विशश्ेाता मानी जाती है। सोलहवीं सदी के प्रारभं में विविध देशों के लागे अपने में ही सीमित थे And इन दिनों ‘विशव-Singleता की सभ्यता’ जसै ी कोर्इ धारणा न थी। परंतु सोलहवीं सदी के भौगोलिक अविष्कारों And खाजे ों के परिणामस्वReseller संसार के विविध क्षत्रे परस्पर जुड़ गए। अत: आधुनिक युग में यूरोपीय विस्तार के फलस्वReseller ‘विशव-सभ्यता’ का सृजन संभव हो सका। आधुनिक युग के प्रारंभ में यूरोपीय Kingओं द्वारा विशवव्यापी भौगोलिक खाजे ों And प्रसार के दो मुख्य कारण थे- First, आर्थिक And द्वितीय, धार्मिक। आर्थिक उद्देशयों की पूर्ति हेतु ही यूरोपवासियों ने संसार के विविध क्षेत्रों से संबंध स्थापित करना चाहा। निकट-पूर्व में (Meansात पूर्वी यूरोप में) उस्मानिया तुर्कों की प्रगति व आधिपत्य-स्थापन के परिणामस्वReseller पूर्वी देशों के साथ यूरोपीय व्यापार-संबंधों का विच्छेद हो गया। तुर्कों की Fightप्रियता, व्यापारिक मार्गों की कठिनाइयाँ And आपित्त्ायाँ इत्यादि व्यापार की अभिवृद्धि में बड़ी घातक सिद्ध हुर्इं। अत: अब भूमध्यसागर का व्यापारिक महत्व घटने लगा And नयी भौगोलिक खोजों या व्यापारिक मार्गों के परिणामस्वReseller अटलाण्टिक महासागर का महत्व बढ़ने लगा। सौभाग्यवश इस समय तक ‘कम्पास’ का अंवेशण हो चुका था, अत: दिशाओं का सही ज्ञान प्राप्त Reseller जा सकता था। पंद्रहवीं सदी के उत्त्ारार्द्ध में बड़े उत्साह And लगन के साथ नये व्यापार मार्गों की खाजे ें आरंभ की गयीं। पश्चिमी यूरोप के महत्वाकाक्ष्ं ाी राश्ट्रों या Kingओं ने अपने आर्थिक तथा व्यापारिक स्वार्थों And उद्देशयों की पूर्ति हेतु इन नाविकों And साहसिकों को पर्याप्त प्रात्े साहन तथा सहायता पद्र ान की। इन भौगोलिक खोजों का मुख्य उद्देशय व्यापार था, परंतु इसके परोक्ष उद्देशय उपनिवेश-स्थापन, धर्म-प्रचार And साम्राज्य-विस्तार व राष्ट्रीय गौरव की वृद्धि इत्यादि भी थे।