पाठ्यक्रम का Means, परिभाषा And प्रकृति
पाठ्यक्रम के Means को और अच्छी तरह समझने के लिए हमें शिक्षा के विकास पर भी Single दृष्टि डालनी आवश्यक है। आदिकाल में शिक्षा का स्वReseller पूर्णतया अनौपचारिक होता था Meansात् शिक्षा किसी विधि And क्रम से बँधी हुई नहीं थी। उस समय बालकों की शिक्षा उनके परिवार And समाज की जीवनचर्या के मध्य चलती रहती थी तथा बालक उसमें भागीदारी बनकर प्रत्यक्ष अनुभव एंव निरीक्षण के माध्यम से तथा अपने बड़ों एंव पूर्वजों के अनुभव सुनकर शिक्षा प्राप्त करता था, किन्तु सभ्यता के विकास के साथ – साथ Human के ज्ञानराशि के संचित कोष में निरन्तर वृद्धि होती गयी तथा मनुष्य के जीवन में जटिलतायें And विविधतायें आती गयीं। परिणामस्वReseller व्यक्ति के पास समय और साधन का अभाव होने लगा तथा उसकी शिक्षा अपूर्ण रहने लगी। अत: प्रत्येक विकासशील समाज ने अपने बालकों को समुचित शिक्षा प्र्रदान करने के उद्देश्य से इसे विधिवत् And क्रमबद्ध बनाने के प्रयास प्रारम्भ किये। विद्यालयों का उद्भव तथा उनकी स्थापना इन्हीं प्रयासों का परिणाम है। इस उसने समाज को उपयोगी And महत्वपूर्ण ज्ञान अपने बालकों को समुचित ढंग से नहीं दे पा रहा था। उसने उसकी जिम्मेदारी अनुभवी विद्वानों को सौंप दी। इन विद्यालयों द्वारा बालकों को जीवन के उद्देश्यों को प्राप्त करने तथा उन्हें समुचित ढंग से शिक्षा प्रदान करने हेतु जो ज्ञानराशि निश्चित And निर्धारित की गयी तथा की जाती है उसे ही ‘पाठ्यक्रम’ का नाम दिया गया है। इस प्रकार हम यह कह सकते है। कि पाठ्यक्रम अध्ययन का ही Single क्रम है, जिसके According चलकर विद्यार्थी अपना विकास करता है। अत: यदि शिक्षा की तुलना दौड़ से की जाये तो पाठ्यक्रम उस दौड के मैदान के समान है जिसे पार करके दौड़ने वाले अपने निश्चित लक्ष्य तक पहुँच जाते है।
पाठ्यक्रम की परिभाषा
विद्यालयों का प्रमुख कार्य बालकों को शिक्षा प्रदान करना होता है और इसको पूर्ण करने के लिए वहाँ पर जो कुछ Reseller जाता है उसे ‘पाठ्यक्रम’ का नाम दिया गया है। इसीलिए ‘पाठ्यक्रम’ को परिभाषित करते हुए Single विद्वान ने इसे हृाट ऑफ एजूकेशन (What of Education) कहा है। First दृष्टि में यह परिभाषा बहुत अधिक सरल एंव स्पष्ट प्रतीत होती है, परन्तु इस ‘हृाट’ की व्याख्या करना तथा कोई निश्चित उत्तर प्राप्त करना बहुत कठिन कार्य है। इस सम्बन्ध में अमेरिका के ‘नेशनल एजूकेशन एसोसिएशन’ ने अपनी टिप्पणी इस प्रकार की है – ‘‘विद्यालयों का कार्य क्या है ? यह Single ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर कई बार अनेक ढंग से दिया जा चुका है, फिर भी बार – बार उठाया जाता है। कारण स्पष्ट है, यह Single ऐसा शाश्वत प्रश्न है जिसका उत्तर अन्तिम Reseller से कभी दिया भी नहीं जा सकता है। यह Single ऐसा प्रश्न है जिसका उत्तर प्रत्येक समाज And प्रत्येक पीढ़ी की बदलती हुई प्रकृति एंव Needओं के According बदलता रहता है।’’
इसी प्रकार शिक्षा के History से भी इस बात की पुष्टि होती है कि समय के साथ – साथ पाठ्यक्रम में भी परिवर्तन होते रहे हैं तथा इसमें कभी व्यापकता और कभी संकीर्णता आती रही है, परन्तु शिक्षाविदों को जब इस बात का आभास मिला कि विद्यालयों में शिक्षित युवक सदैव अपने भावी जीवन में सफल नहीं हो पाते हैं तब यह निष्कर्ष निकाला गया कि जीवन की तैयारी के लिए पढ़ना-लिखना ही सब कुछ नहीं है। मनोविज्ञान के विकास ने भी इस धारणा को बल प्रदान Reseller कि मात्र अध्ययन-अध्यापन पर ही पूरा दबाव रखना बालकों के विकास की दृष्टि से न केवल Singleांगी है, बल्कि अन्य प्रवृत्तियों के समुचित विकास के अभाव में हानिप्रद भी हो सकता है। इस दृष्टिकोण का प्रभाव विद्यालयों के कार्यक्रमों पर पड़ा और उनमें व्यापकता आनी प्रारम्भ हुई। अत: विद्यालयों में पाठ्य-विषयों के साथ-साथ ऐसी प्रवृत्तियों का समावेश भी Reseller जाने लगा, जिनसे बालकों में बौद्धिक ज्ञान के साथ-साथ स्वास्थ्य, सौन्दर्य-बोध, सृजनात्मकता तथा अन्य Humanीय And सामाजिक गुणों का समुचित विकास भी हो सके। इस प्रकार विभिन्न उतार-चढ़ाव के बाद वर्तमान शताब्दी में पाठ्यक्रम की व्यापकता की दृष्टि से अनेक विद्वानों ने इसको अपने-अपने ढंग से परिभाषित करने का प्रयास Reseller है।
बबिट महोदय के According – ‘‘उच्चतर जीवन के लिए प्रतिदिन और चौबीस घण्टे की जा रही समस्त क्रियायें पाठ्यक्रम के अन्तर्गत आ जाती है।’’
Single अन्य विद्वान ले के According – ‘‘पाठ्यक्रम का विस्तार वहाँ तक है, जहाँ तक जीवन का।’’
परन्तु इन विचारों को पाठ्यक्रम की समुचित परिभाषा मानना तर्कसंगत नहीं लगता है, क्योंकि पाठ्यक्रम का सम्बन्ध शिक्षा के औपचारिक अभिकरण विद्यालय से है तथा विद्यालय ही पाठ्यक्रम की सीमा भी है। इस दृष्टि से पाठ्यक्रम को विद्यालय के घेरे में ही परिभाषित करना उचित लगता है।
वाल्टर एस. मनरो के Wordकोष के According – ‘‘पाठ्यक्रम को किसी विद्यार्थी द्वारा लिये जाने वाले विषयों के Reseller में परिभाषित नहीं Reseller जाना चाहिए। पाठ्यक्रम की कार्यात्मक संकल्पना के According इसके अन्तर्गत वह सब अनुभव आ जाते है जो विद्यालय में शिक्षा के लक्ष्यों की प्राप्ति के लिए प्रयुक्त किये जाते है।’’
इस संकल्पना के According पाठ्यक्रम विकास के अन्तर्गत प्रयुक्त किये जाने वाले अनुभवों के आयोजन में पाठ्यक्रम को व्यवस्थित करने, उसे क्रियान्वित करने तथा उसका मूल्यांकन करने सम्बन्धी पक्ष सम्मिलित होते है।
ब्लांडस के शिक्षा कोष के According – ‘‘पाठ्यक्रम को क्रिया And अनुभव के परिणाम के Reseller में समझा जाना चाहिए न कि अर्जित किये जाने वाले ज्ञान और संकलित किये जाने वाले तथ्यों के Reseller में। विद्यालय जीवन के अन्तर्गत विविध प्रकार के कलात्मक, शारीरिक And बौद्धिक अनुभव तथा प्रयोग सम्मिलित रहते है।’’
राबर्ट एम. डब्ल्यू. ट्रेवर्स से अपनी पुस्तक ‘इण्ट्रोक्शन टू रिसर्स’ में पाठ्यक्रम की गत्यात्मकता पर बल देते हुए लिखा है- ‘‘Single शताब्दी पूर्व पाठ्यक्रम की संकल्पना उस पाठ्य-सामग्री का बोध कराती थी जो छात्रों के लिए निर्धारित की जाती थी, परन्तु वर्तमान समय में पाठ्यक्रम की संकल्पना में परिवर्तन आ गया है। यद्यपि प्राचीन संकल्पना अभी भी पूर्णResellerेण लुप्त नहीं हुई है, लेकिन अब माना जाने लगा है कि पाठ्यक्रम की संकल्पना में छात्रों की ज्ञान – वृद्धि के लिए नियोजित All स्थितियाँ, घटनायें तथा उन्हें उचित Reseller में क्रमबद्ध करने वाले सैद्धांतिक आधार समाहित रहते है।’’
सी.वी. गुड द्वारा सम्पादित शिक्षा कोष में पाठ्यक्रम की तीन परिभाषायें दी गई है, जो इस प्रकार है –
- ‘‘अध्ययन के किसी प्रमुख क्षेत्र में उपाधि प्राप्त करने के लिए निर्धारित किये गये क्रमबद्ध विषयों अथवा व्यवस्थित विषय-समूह को पाठ्यक्रम के नाम से अभिहित Reseller जाता है।’’
- ‘‘किसी परीक्षा को उत्तीर्ण करने अथवा किसी व्यावसायिक क्षेत्र में प्रवेश के लिए किसी शिक्षालय द्वारा छात्रों के लिए प्रस्तुत विषय-सामग्री की समग्र योजना को पाठ्यक्रम कहते है।’’
- ‘‘व्यक्ति को समाज में समायोजित करने के उद्देश्य से विद्यालय के निर्देशन में निर्धाति शैक्षिक अनुभवों का समूह पाठ्यक्रम कहलाता है।
कनिंघम के According ‘‘पाठ्यक्रम कलाकार (शिक्षक) के हाथ में Single साधन है जिससे वह अपनी सामग्री (शिक्षार्थी) को अपने आदर्श (उद्देश्य) के According अपनी चित्रशाला (विद्यालय) में ढाल सके।’’
डीवी के According-’’सीखने का विषय या पाठ्यक्रम, पदार्थो, विचारों और सिद्धांतों का चित्रण है जो निरंतर उद्देश्यपूर्ण क्रियान्वेषण से साधन या बाधा के Reseller में आ जाते हैं।’’
सैमुअल के According –’’पाठ्यक्रम में शिक्षार्थी के वे समस्त अनुभव समाहित होते हैं जिन्हें वह कक्षाकक्ष मे, प्रयोगशाला में, पुस्तकालय में, खेल में मैदान में, विद्यालय में सम्पन्न होने वाली अन्य पाठ्येतर क्रियाओं द्वारा तथा अपने अध्यापकों And साथियों के साथ विचारों के आदान-प्रदान के माध्यम से प्राप्त करता है।’’
होर्नी के Wordों में –’’पाठ्यक्रम वह है जो शिक्षार्थी को पढ़ाया जाता ह। यह सीखने की क्रियाओं तथा शान्तिपूर्वक अध्ययन करने से कहीं अधिक है। इसमें उद्योग, व्यवसाय, ज्ञानोपार्जन, अभ्यास तथा क्रियायें सम्मिलित होती है। इस प्रकार यह विक्षार्थी के स्नायुमण्डल में होने वाले गतिवादी And संवेदनात्मक तत्वों को व्यक्त करता हैं समाज के क्षेत्र में यह उन सब की अभिव्यक्ति करता है जो कुछ जाति ने संसार के सम्पर्क में आने से किये हैं।’’
माध्यमिक शिक्षा आयोग के According –’’पाठ्यक्रम का Means केवल उन सैद्धान्तिक विषयों से नहीं है जो विद्यालयों में परम्परागत Reseller से पढ़ाये जाते हैं, बल्कि इसमें अनुभवों की वह सम्पूर्णता भी सम्मिलित होती है, जिनको विद्यार्थी विद्यालय, कक्षा, पुस्तकालय, प्रयोगशाला, कार्यशाला, खेल के मैदान तथा शिक्षक And छात्रों के अनेक अनौपचारिक सम्पर्को से प्राप्त करता है। इस प्रकार विद्यालय का सम्पूर्ण जीवन पाठ्यक्रम हो जाता है जो छात्रों के जीवन के All पक्षों को प्रभावित करता है और उनके संतुलित व्यक्तित्व के विकास में सहायता देता है।
वेण्ट और क्रोनोबर्ग के According –’’पाठ्यक्रम का पाठ्यवस्तु का सुव्यवस्थित Reseller है जो बालकों की Needओं की पूर्ति हेतु तैयार Reseller जाता है।’’
फ्रोबेल के मतानुसार –’’पाठ्यक्रम सम्पूर्ण Human जाति के ज्ञान And अनुभव का प्रतिReseller होना चाहिए।’’
पाठ्यक्रम की प्रकृति
शिक्षा जीवनपर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है, जिसके द्वारा व्यक्ति के व्यवहार में निरंतर परिवर्तन And परिमार्जन होता है। व्यक्ति के व्यवहार में यह परिवर्तन अनेक माध्यमों से होते हैं, किन्तु मुख्य Reseller से इन माध्यमो को दो Resellerों में वर्गीकृत Reseller जा सकता है – औपचारिक And अनौपचारिक। औपचाारिक Reseller के अंतर्गत वे माध्यम आते हैं जिनका नियोजन कुछ निश्चित उद्देश्यों की पूर्ति के लिए व्यवस्थित ढंग से संस्थापित संस्थाओं में Reseller जाता है। इस प्रकार की संस्थाओं को विद्यालय कहा जाता है, किन्तु व्यक्ति के परिवर्तन की प्रक्रिया विद्यालय And विद्यालयी जीवन में ही पूर्ण नहीं हो पाती है, बल्कि वह विद्यालय से बाहर तथा जीवन भर चलती रहती है। अत: व्यक्ति के व्यवहार में होने वाले अनेक परिवर्तन विद्यालय की सीमा से बाहर की परिस्थितियों के परिणामस्वReseller होते हैं। चूँकि ऐसी परिस्थितियाँ सुनियोजित ढंग से प्रस्तुत नहीं की जाती हैं, अत: वे अनौपचारिक माध्यम के अंतर्गत आती हैं। विद्यालय में विद्यार्थियों को जो कुछ भी कक्षा And कक्षा के बाहर प्रदान Reseller जाता है, उसका निश्चित उद्देश्य होता है And उसे किसी विशेष माध्यम से ही पूरा Reseller जाता है। हमारी कुछ संकल्पनायें होती हैं कि Single विशेष कक्षा उत्तीर्ण 10 करने के बाद विद्यार्थी के व्यवहार में अमुक परिवर्तन आ जायेगा, परन्तु यह परिवर्तन किस प्रकार लाया जायेगा? किसके द्वारा लाया जायेगा? और कितना लाया जायेगा? आदि ऐसे अनेक प्रश्न हैं, जिनका समाधान पाठ्यक्रम जैसे साधन से प्राप्त होता है। अत: पाठ्यक्रम का संबंध शिक्षा के अनौपचारिक माध्यम से है।
पाठ्यक्रम का क्षेत्र
सामान्य बोलचाल की भाषा, में विद्यालयों में विद्यार्थियों को शिक्षित करने हेतु जो कुछ Resellerजाता है, उसे पाठ्यक्रम के नाम से जाना जाता है। विभिन्न शिक्षाशास्त्रियों ने पाठ्क्रम को कुछ निश्चित Wordों में बाँधने अथवा परिभाषित करने का प्रयास भी Reseller है, किन्तु पाठ्यक्रम के विस्तार क्षे? की सीमायें सुनिश्चित कर पाना अत्यन्त कठिन कार्य है। फिर भी कतिपय Humanीय शैक्षिक And सामाजिक प्रवृत्तियों के आधार पर पाठ्यक्रम के विस्तार क्षेत्र की सीमाओं को चिन्हांकित करने का प्रयास Reseller गया है।
यदि हम पाठ्यक्रम के History पर Single दृष्टि डालें तो स्पष्ट Reseller से पता चलता है कि पाठ्यक्र के अंतर्गत सम्मिलित किये जाने वाले ज्ञान का स्वReseller And विस्तार अनिवार्य Reseller से संबन्धित समाज द्वारा मान्य शैक्षिक उद्देश्यों पर निर्भर करता है। इसीलिए देश और काल की भिन्नतार के According वहाँ के पाठ्यक्रमों में भिन्नता भी पायी जाती है। Indian Customer संदर्भ में यदि हम वैदिक काल की शिक्षा पर दृष्टिपात करें तो पाते हैं कि वैदिक काल में Indian Customer शिक्षा के प्रमुख उद्देश्य ईश्वर भक्ति And धार्मिक भावना को दृढ़ करना, बालकों का चरित्र निर्माण And उनके व्यक्तित्व का विकास करना तथा सामाजिक कुशलता में वृद्धि करना था। इस दृष्टि से उस समय का पाठ्यक्र भी अत्यन्त विस्तृत था। उसमें परा विद्या Meansात् धार्मिक साहित्य का अध्ययन तथा अपरा विद्य Meansात् लौकिक And सांसारिक ज्ञान दोनों का ही समावेश था। उस समय शिक्षा कार्य गुरूकुलों में होता था तथा शिक्षार्थी पूरे शिक्षाकाल में गुरूकुल या गुरू-परिवार के समस्य के Reseller में रहता था। वह गुरू से ज्ञान प्राप्त करने के साथ-साथ गुरू And गुरू-पत्नी की सेवा, आश्रम की सफाई, पशुओं की देखभाल तथा भिक्षाटन के माध्यम से कर्त्तव्यपालन, सेवाभाव, विनयशीलता तथा अन्य चारित्रिक गुणों की शिक्षा भी प्राप्त करता था। कभी-कभी शिक्षा प्राप्त करने हेतु शिष्यों को देशाटन पर भी जाना पड़ता था। इस प्रकार वैदिककालीन पाठ्यक्र में पठन-पाठन के साथ-साथ विद्यार्थियों को व्यावहारिक अनुभव प्राप्त करने के समुचित अवसर भी प्राप्त होते थे तथा उसका सम्पादन भी अध्ययन कक्षों और समय के घण्टों में सीमित नहीं था।
इसी प्रकार यदि हम यूरोप के History का अध्ययन करें तो वहाँ के पाठ्यक्र के सीमा क्षेत्र का आभास मिलता है। प्राचीन यूनान के नगर राज्य स्पार्टा को प्राय: Fightरत हरना पड़ता था, अत: वहाँ पर बालकों के शारीरिक विकास And शस्त्र विद्या पर अधिक ध्यान दिया जाता रहा, जबकि एथेन्स नगर राज्य में शान्ति And स्थायित्व होने वे वहाँ पर साहित्य, दर्शन And ललित कलाओं को अधिक महत्त्व दिया जाता था। प्रारंभ में यूरोप और अमेरिका में भी शिक्षा का उद्देश्य छात्रों को पढ़ाने, लिखने And सामान्य गणना कर सकने के योग्य बना देना मात्र था। अत: उस समय पाठ्यक्रम भी 3 R’s तक सीमित था। यह स्थिति Single लम्बी अवधि तक बनी भी रही, क्योंकि पाश्चात्य देशों में भी पाठ्यक्रम के अंतर्गत उन्हीं प्रवृत्तियों का समावेश Reseller जाता रहा जो कक्षा के अंदर पाठ पढ़ाते समय आयोजित की जाती थी। कालान्तर में भारत में भी अनेक राजनीतिक कारणों से पाठ्यक्रम का Reseller पश्चिमी देशों जैसा ही हो गया तथा गुरूकुलों And आश्रमों के स्थान पर पाठशालाओं का उदय हुआ जिनका कार्य केवल पाठ पढ़ने-पढ़ाने तक ही सीमित रह गया। इस प्रकार पठन-पाठन से इतर प्रवृत्तियों को पाठशाला के क्षेत्र से बाहर की चीज माना जाने लगा।
शिक्षा के History से भी इस बात का पता चलता है कि समय के साथ-साथ पाठ्यक्रम में भी परिवर्तन होते रहे हैं तथा इसमें कभी व्यापकता और कभी संकीर्णता भी आती रही है। इसका बहुत अच्छा उदाहरण खेलकूद प्रवृत्ति की धारणा है। हमारे देश में अभी कुछ समय First तक अध्ययन And खेलकूद खेलकूद प्रवृत्ति को Single-Second का विरोधी माना जाता था, किन्तु बाद में जब इसका आभास हुआ कि विद्यालयों से निकले हुए युवक वास्तविक जीवन में असफल भी हो रहे हैं तब यह धारणा विकसित हुई कि जीवन की तैयारी के लिए पढ़ना-लिखना ही सब कुछ नहीं है।
मनोविज्ञान के विकास से भी बालकों की अन्य प्रवृत्तियों के समुचित विकास को महत्त्व मिला तथा यह माना जाने लगा कि केवल पठन-पाठन पर ही ध्यान देना बालकों के विकास की दृष्टि से Singleांगी है। इस नवीन दृष्टिकोण का प्रभाव विद्यालयों के कार्यक्रमों पर पड़ा और उनमें व्यापकता विकसित हुई। अत: विद्यालयों में पाठ्य-विषयों के साथ-साथ ऐसी प्रवृत्तियों का समावेश भी Reseller जाने लगा जिनसे बालकों में बौद्धिक ज्ञान के साथ-साथ ऐसी प्रवृत्तियों का समावेश भी Reseller जाने लगा जिनसे बालकों में बौद्धिक ज्ञान के साथ-साथ स्वास्थ्य, सौन्दर्य-बोध, सृजनात्मकता तथा अन्य महत्त्वपूर्ण गुणों का विकास भी हो सके।
इस प्रकार हम देखते हैं कि पूर्व में पाठ्यक्रम की संकल्पना में परिवर्तन आते रहे हैं, किन्तु बीसवीं सदी के उत्तरार्द्ध से पाठ्यक्रम का क्षेत्र निरंतर व्यापकता की ओर बढ़ रहा है तथा इसके अंतर्गत विविध प्रवृत्तियों का समावेश होता चला जा रहा है। इसके क्षेत्र के विस्तार की गति वर्तमान समय में इतनी तेज है कि उसकी सीमा को चिन्हांकित करते ही उसमें कई अन्य प्रवृत्तियों का समावेश हो जाता है। इसी स्थिति को देखकर बबिट महोदय ने कहा भी है- ‘‘उच्चतर जीवन के लिए प्रतिदिन और चौबीसों घण्टे की जा रही समस्त क्रियायें पाठ्यक्रम के अंतर्गत आ जाती हैं।’’
प्रारंभ में पाठ्यक्रम का सीमा-क्षत्र विषयों की निर्धारित पाठ्यवस्तु तक ही सीमित था तथा शिक्षा का उद्देश्य सूचनात्मक ज्ञान प्राप्त करना होता था, किन्तु बीसवीं सदी के पूर्वार्द्ध में शैक्षिक मनोविज्ञान, शैक्षिक समाजशास्त्र And शैक्षिक दर्शनशास्त्र आदि व्यवहार संबंधी विज्ञानों का तीव्र गति से विकास हुआ जिसका प्रभाव पाठ्यक्रम निर्माण पर भी पड़ा। साथ ही शिक्षण अधिगम के क्षेत्र में किये गये अनुसंधानों का भी पाठ्यक्रम के विकास पर महत्त्वपूर्ण प्रभाव पड़ा। पूर्व में यह धारणा महत्त्वपूर्ण थी कि यदि शिक्षक अपने विषय ज्ञान का अच्छा ज्ञाता है तथा विषयवस्तु पर उसका स्वामित्व है तो वह सफल शिक्षण भी कर सकता है तथा वह ज्ञान बालकों को भी प्रदान कर सकता है, किन्तु यह धारणा प्राय: गलत सिद्ध होती हुई देखी गयी। मनोवैज्ञानिक अनुसंधानों से इस तथ्य की पुष्टि हो गयी है कि जब तक शिक्षार्थी नवीन ज्ञान को प्राप्त करने के लिए मानसिक Reseller से तैयार न हो, उसे कुछ भी सिखाया नही जा सकता है। साथ ही किसी नवीन ज्ञान को प्राप्त कर लेना ही बालक के लिए पर्याप्त नहीं होता। जब तक बालक उस नवीन ज्ञान को प्राप्त करने के लिए मानसिक Reseller से तैयार न हो, उसे कुछ भी सिखाया नहीं जा सकता है। साथ ही किसी नवीन ज्ञान को प्राप्त कर लेना ही बालक के लिए पर्याप्त नहीं होता । जब तक बालक उस नवीन ज्ञान को आत्मSeven् नहीं कर लेता तब तक व्यावहारिक दृष्टि से उसकी कोई उपयोगीता नहीं होती है। इस प्रकार विभिन्न शोधों के द्वारा इस तथ्य की पुष्टि हो गयी कि अधिगम का परिपक्वता से संबंध होता है तथा अधिगम में व्यक्तिगत भेदों And प्रत्यक्ष अनुभव की विशेष भूमिका होती है। इस दृष्टिकोण ने विद्यालयों के कार्यो में महत्वपूर्ण परिवर्तन ला दिया। अब विद्यालयों का कार्य बालको को ज्ञान देने के स्थान पर ऐसी स्थितियाँ प्रस्तुत करना माना जाने लगा है जो बालकों को स्वानुभव द्वारा ज्ञान प्राप्त करने में सहायक सिद्ध हो सकें। इस धारणा के फलस्वReseller क्रिया आधारित पाठ्यक्रम की सफल्पना प्रस्तुत की गयी, जिसमें पाठ्यवस्तु के महत्व को बनाये रखते हुए उसके चयन And क्रियान्वयन के आधार को परिवर्तित कर दिया गया।
अनुभव And क्रिया आधारित पाठ्यक्रम को साकार Reseller देने की दिशा में First प्रयास करने का श्रेय संयुक्त राज्य अमेरिका के वर्जीनिया राज्य को है, जहाँ पर शिक्षाविदों ने शिक्षा के लक्ष्य को सूचनात्मक ज्ञान से हटाकर ‘सम्पूर्ण व्यक्तित्व निर्माण’ की और निर्देशित Reseller। इन शिक्षाविदों ने दो प्रमुख प्रश्नों-बालक को किस प्रकार का व्यक्ति बनना चाहिए ? तथा उसे सामाजिक प्राणी होने के कारण किस प्रकार का व्यवहार करना चाहिए ? के विस्तृत उत्तरो के आधार पर शिक्षा के लक्ष्यों को निर्धारित Reseller। इन शिक्षाविदों ने यह अनुभव Reseller कि शिक्षा के निर्धारित लक्ष्यों की पूर्ति हेतु समुचित परिवेश सामाजिक जीवन के स्वाभाविक कार्यो को पूरा करने में ही मिल सकता हैं अत: पाठ्यक्रम को ऐसे कार्यो पर आधारित करने का निश्चय Reseller गया, जिसके फलस्वReseller विषयवस्तु के Reseller में प्रतिष्ठित पाठ्यक्रम का स्थान ऐसी अभिवृत्तियों, अवबोधनों, योग्यताओं And क्षमताओं आदि ने ले लिया जो सामान्य सामाजिक जीवन के लिए उपयोगी सिद्ध हो सकें। इस प्रकार पाठ्यक्रम ‘पाठ्य-सामग्री की सूची के स्थान पर अधिगमानुभवों के Reseller में परिभाषित Reseller जाने लगा और उसे इस संकल्पना के Reseller में प्रतिष्ठा भी प्राप्त हुई।
इस प्रकार वर्तमान समय में विद्यालय का कार्यक्षेत्र समयबद्ध पठन-पाठन के सीमित घेरे से निकलकर Single व्यापक Reseller धारण कर चुका है तथा इसमें निरंतर वृद्धि भी होती जा रही है, जिसके कारण इसकी सीमायें निश्चित कर पाना बहुत कठिन होता जा रहा है। चँूकि विद्यालयों में आयोजित की जाने वाली All प्रवृत्तियाँ पाठ्यक्रम का ही अंग होती है। अत: पाठ्यक्रम के विस्तार क्षेत्र का निर्धारण करना भी उतना ही कठिन कार्य है। फिर भी शिक्षाविदों ने पाठ्यक्रम को उसके अन्तर्गत सम्पादित किये जाने वाले कार्यो के आधार पर सीमांकित करने का प्रयास Reseller है।
माइकेल पेलार्डी के According-’’सामान्यतया पाठ्यक्रम को विद्यार्थी के उन समस्त अनुभवों के Reseller मे परिभाषित Reseller जाता है। जिनका दायित्व विद्यालय अपने उपर लेता है। इस Reseller में पाठ्यक्रम का तात्पर्य प्राय: उन क्रमिक कार्यो से है जो इन अनुभवों से पूर्व इनके होने के साथ-साथ तथा इन अनुभवों के बाद आयोजित किये जाते है।’’ इन कार्यो को आठ वर्गो में समाहित Reseller जा सकता है-
- लक्ष्यों And उददेश्यों का निर्धारण,
- बालकों के संज्ञानात्मक विकास का पोषण,
- बालकों के मनोवैज्ञानिकों And सामाजिक स्वास्थ्य का संवर्धन,
- अधिगम हेतु व्यवस्था,
- शैक्षणिक स्त्रोतों का उपयोग,
- छात्रों का व्यक्तिगत बोध तथा उनके अनुReseller शिक्षण व्यवस्था,
- समस्त कार्यक्रमों And बालकों के कार्यो का मूल्यांकन,
- नवीन प्रवृत्तियों का साहचर्य
इन उपर्युक्त कार्यो को सम्पादित करने के लिए विद्यालयों में जिन प्र्रवृत्तियों का आयोजन Reseller जाता है। उनके प्रकार And संख्या में बहुत विविधता पायी जाती है किन्तु व्यापक दृष्टिकोण के आधार पर इन्हे तीन प्रमुख वर्गो में वर्गीकृत Reseller जाता है-
- शैक्षिण क्रियायें,
- पाठ्य-सहगामी क्रियायें,
- रूचि कार्य।
शैक्षिण प्रवृत्तियाँ अथवा क्रियायें –
यद्यपि विद्यालयों के समस्त क्रियाकलापों के साथ-साथ शिक्षा -क्षेत्र की All प्रवृत्तियाँ वे जहाँ भी, जिस Reseller में भी चाहे जब भी आयोजित की जाती हों, शैक्षिण ही होती है किन्तु सामान्य Reseller से उन्हीं प्रवृत्तियों को शैक्षिण कहा जाता है। जिनका नियोजन कुछ निश्चित लक्ष्यों की पूर्ति हेतु निर्धारित पाठ्य-विषयों के पठन-पाठन की दृष्टि से Reseller जाता है। इन प्रवृत्तियों का आयोजन मुख्य Reseller से व्यावहारिक ज्ञान Meansात् प्रायोगिक कार्यो का पाठ्यक्रम में समावेश होने तथा नवीन शिक्षण विधियों द्वारा बालकों की सक्रियता पर अधिक बल देने के फलस्वReseller प्रयोगशालायें, कार्यशालायें तथा पुस्तकालय आदि शैक्षिण प्रवृत्तियों के कार्यस्थल बन गये है। इसके साथ ही अब अधिगम अनुभवों Meansात् विद्यार्थियों द्वारा वास्तविक परिस्थितियों में प्रत्यक्ष Reseller से ज्ञान प्राप्त करने पर भी अधिक बल दिया जाने लगा है। इस उददेश्य की पूर्ति हेतु विभिन्न भौगोलिक,वैज्ञानिक,औद्योगिक,धार्मिक,ऐतिहासिक,व्यावसायिक And सांस्कृतिक महत्व के स्थानों के भ्रमण And सर्वेक्षण आदि भी आयोजित किये जाते है। जहाँ पर छात्र जाकर वास्तविक स्थितियों का प्रत्यक्ष अनुभव करते है। अत: इन्हें भी शैक्षिक प्रवृत्तियों में ही सम्मिलित Reseller जाता है।
पाठ्य-सहगामी क्रियायें
प्रारम्भ में पाठ्यक्रम का क्षेत्र विभिन्न विषयों की पाठ्य-वास्तुओं के अध्ययन-अध्यापान तक ही सीमित माना जाता था। विद्यालयों में आयोजित होने वाली अन्य प्रवृत्तियों जैसे- खेलकूद, व्यायाम, सांस्कृतिक क्रियाकलाप आदि को पाठ्येतर क्रियायें माना जाता था परन्तु पाठ्यक्रम के व्यापक दृष्टिकोण के आधार पर अब इन प्रवृत्तियों को पाठ्य-सहगामी क्रियाओं के नाम से जाना जाता है। वर्तमान समय में विद्यालयों में शिक्षकों के निर्देशन में विभिन्न प्रकार की पाठ्य-सहगामी क्रियायें आयोजित की जाती है जिन्हें कुछ प्रमुख वर्गो में निम्नलिखित Reseller में वर्गीकृत Reseller जा सकता है-
- शारीरिक विकास संबंधी क्रियायें- इसके अन्तर्गेत शारीरिक प्रशिक्षण (पी.टी.) व्यायाम, खेलकूद, टे्रकिंग, पर्वतारोहण, हाइकिंग, तैराकी, नौकायन आदि क्रियाओं के साथ-साथ स्वास्थ्य परीक्षण रोगों से बचने के उपाय, शुद्धता And स्वच्छता का ध्यान, शुद्ध And पौष्टिक आहार (मध्यान्ह भोजन) आदि बातों को समाहित Reseller जाता है।
- साहित्यिक क्रियायें- इसके अन्तर्गत भाषण कला, वाद-विवाद, विचार-गोष्ठी, कार्य-संगोष्ठी, कविता-पाठ, अन्त्याक्षरी, परिDiscussion, वार्ता, आशुभाषण, पत्रिका प्रकाशन, लेखन, समाचार And पत्रवाचन तथा पुस्तकालय And वाचनालय के उपयोग आदि से संबंधित प्रवृत्तियों का समावेश Reseller जाता है।
- सांस्कृतिक क्रियायों- इसके अन्तर्गत Singleल अभिनय, मूल अभिनय, नाटक प्रहसन, संगीत, नृत्य And अन्य मनोरंजनात्मक क्रियायें सम्मिलित होती है।
- सृजनात्मक क्रियायें- इस वर्ग में बालकों की Creation संबंधी प्रवृत्तियों जैसे चित्रकारी, पच्चीकारी, दस्तकारी, बागवानी, उपयोगी वस्तुओं का निर्माण And नवीनता की खोज आदि को समाहित Reseller जाता है।
- सामाजिक क्रियायें- विद्यालयों द्वारा बालकों के माध्यम से सफाई अभियान साक्षरता का प्रसार स्वास्थ्य संबंधी जानकारियों का प्रचार सामाजिक कुरीतियों And अंधविश्वासों को दूर करने के लिए प्रचार अभियान आदि को संचालित करना इसके अन्तर्गत आता है।
- राष्ट्रीय क्रियाकलाप- इसके अन्तर्गत दिवसों And राष्ट्रीय नेताओं की जंयतियों को मनाना, राष्ट्रीय कैडेट कोर (एन.सी.सी.) स्काउटिंग, रेडक्रॉस, राष्ट्रीय सेवा योजना (एन.एस.एस.) आपातकाल में देश And समाज सेवा तथा आन्तरिक Safty में सहयोग, साम्प्रदायिक सद्भव में सहयोग तथा राष्ट्रीय कार्यक्रमों के प्रचार-प्रसार में सहयोग आदि प्रवत्तियाँ आती हैं।
रूचि कार्य
इसके अन्तर्गत वे प्रवृत्तियाँ आती है जिनका आयोजन विद्यालयों द्वारा बालकों की रूचियों का समुचित विकास करने के उददेश्य से Reseller जाता है। इस प्रकार की प्रवृत्तियों में विभिन्न वस्तुओं जैसे-टिकट, सिक्के, पत्थर आदि का संग्रह करना, चित्र And कार्टून बनाना, फोटोग्राफी करना, बेकार पड़ी चीजों से उपयोगी वस्तुयें बनाना, विभिन्न प्रकार के चित्रों के एलबम तैयार करना आदि शामिल है। यद्यपि विद्यालयों में आयोजित की जाने वाली प्रवृत्तियों को उपर्युक्त तीन वर्गो में विभाजित करने का प्रयास Reseller गया है। किन्तु सही मायने में न तो इन प्रवृत्तियों की पूर्ण सूची तैयार की जा सकती है और न ही उन्हें निश्चित Reseller से किसी Single वर्ग में रखा ही जा सकता है।
उदाहरणार्थ- वाद-विवाद, परिDiscussion, पैनल Discussion आदि प्रवृत्तियों को पाठ्य-सहगामी प्रवृत्तियों के अन्तर्गत साहित्यिक प्रवृत्तियों में सम्मिलित Reseller जाता है किन्तु यदि इन्हीं प्रवृत्तियों को निर्धारित पाठ्यक्रम के किसी प्रकरण के अध्ययन-अध्यापन की विधि के Reseller में प्रयोग Reseller जाता है। तब यही शैक्षिक प्रवृत्तियाँ हो जाती है। इसी प्रकार व्यवस्था परिवर्तन के फलस्वReseller भी इनमें परिवर्तन होता रहता है। उदाहरणार्थ- खेल पाठ्य-सहगामी प्रवृत्तियों के अन्तर्गत आता है, किन्तु कुछ राज्यों ने इसे अब Single अनिवार्य विषय के Reseller में पाठ्यक्रम में Single निश्चित स्थान प्रदान Reseller है। अत: अब यह शैक्षिक प्रवृत्तियों में सम्मिलित हो गया है।
वास्तव में पाठ्यक्रम के विकास का History Human जीवन के विकास की प्रक्रिया का ही परिणाम है। Human द्वारा प्रकृति पर विजय प्राप्त करने का अभियान, नवीन खोज And आविष्कार, निरन्तर परिवर्तित होने वाली सामाजिक-आर्थिक परिस्थितियाँ, ज्ञान का विस्फोट तथा विभिन्न राजनैतिक विचारधाराओं आदि के द्वारा Human को सदैव नई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। इन चुनौतियों का सफलतापूर्वक समाधान निकालने के लिए Human को अपनी वर्तमान अवस्था में यथोचित परिवर्तन-परिवर्द्धन करते रहना पड़ता है। समाज का भी यह प्रयास रहता है। कि वह बालकों को जीवन में ठीक प्रकार से समायोजित हो सकने हेतु उपयुक्त शिक्षा की व्यवस्था कर सके। अत: तदनुसार शिक्षा के उद्देश्यों And पाठ्यक्रम में उपयुक्त परिवर्तन And परिवर्द्धन की प्रक्रिया चलती रहती है। उदाहरणार्थ, प्रजातान्त्रिक शासन प्रणाली की स्थापना के परिणामस्वReseller विभिन्न देशों में नागरिकता की शिक्षा की Need उत्पन्न हुई। औद्योगिक प्रगति के कारण बढ़ती हुई दुर्घटनाओं से बचाव हेतु पाठ्यक्रम में Safty शिक्षा तथा मालिक-मजदूर के झगड़ों के निराकरण हेतु पाठ्यक्रमों में समाजवादी दृष्टिकोण का समावेश Reseller गया। वैज्ञानिक प्रगति तथा आवागमन के साधनों के विकास के फलस्वReseller विभिन्न देशों को Single Second के नजदीक जाने का अवसर प्राप्त हुआ, उन्हें Single-Second के भूभागों And वैभव-सम्पन्नता की जानकारी प्राप्त हुई। अत: विकसित देशों ने Second छोटे देशों And राज्यों को अपने अधिकार में करने तथा उपनिवेश स्थापित करने प्रारम्भ किये, जिसके कारण छोटी-छोटी लडाइयों के साथ-साथ दो विश्वFightों से भी विश्व Human जाति को गुजरना पड़ा। इसके समाधान हेतु अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव And विश्व शांति स्थापित करने के प्रयास किये जाने लगे। परिणामस्वReseller पाठ्यक्रमों में राष्ट्रीय And भावात्मक Singleता तथा नागरिकता की शिक्षा के साथ-साथ अन्तर्राष्ट्रीय सद्भाव And विश्व-बन्धुत्व की शिक्षा का भी समावेश Reseller गया।
पाठयक्रम के क्षेत्र विस्तार के सम्बन्ध में Single महत्वपूर्ण बात यह भी है कि प्रारम्भ में शिक्षा समाज के अभिजात्य वर्ग तक ही सीमित थी। इस वर्ग को जीविकोपार्जन की कोई चिंता नहीं होती थी तथा वह अपने बालकों को अपने वर्गीय हितों को ध्यान में रखते हुए ही शिक्षा प्रदान करने का प्रयास करता रहा। इसके फलस्वReseller पाठ्यक्रम भाषा, साहित्य, History, ललित कलाओं तथा सामान्य शिष्टाचार तक ही सीमित था किन्तु शिक्षा का प्रसार धीरे-धीरे मध्यम And निम्न वर्ग तक हो गया। इस मध्यम वर्ग को अपनी रोजी-रोटी कमाने हेतु व्यवसाय की अधिक चिन्ता रहती थी। अत: पाठ्यक्रम में बौद्धिक ज्ञान के साथ-साथ व्यावसायिक विषयों का समावेश भी कर दिया गया। अठारहवीं शताब्दी में यूरोप की औद्योगिक क्रांति ने पाठ्यक्रम मे अधिक से अधिक वैज्ञानिक And औद्योगिक विषयों को सम्मिलित करने के लिए All को बाध्य कर दिया। बाद में व्यवसायों की संख्या बहुत अधिक बढ़ जाने के कारण व्यवसाय विशेष में विशिष्टता प्राप्त करने की होड़ में अनुकूल विषय के चयन की Need अनुभव की जाने लगी। इस उद्देश्य की पूर्ति हेतु पाठ्यक्रम में विभिन्न विकल्पों And धाराओं की व्यवस्था की गयी। छात्र अपनी योग्यताओं,क्षमताओं And अभिरूचियों के According सही विषय को चुन सकें, इसके लिए निर्देशन And परामर्श कार्यक्रम को भी पाठ्यक्रम में सम्मिलित Reseller गया। चूँकि बालक को व्यावसायिक जीवन के साथ-साथ पारिवारिक, सामाजिक And वैयक्तिक जीवन में भी समुचित समायोजन की Need होती है। अत: निर्देशन And परामर्श का कार्यक्षेत्र व्यावसायिक के साथ साथ वैयक्तिक क्षेत्र तक फैल गया। तथा इससे सम्बन्धित विषयों जैसे-अवकाश के शिक्षा यौन शिक्षा आदि को पाठ्यक्रम का अंग माना जानो लगा। इसी प्रकार वर्तमान युग में जनसंख्या वृद्धि,महानगरों को घनी आबादी And गन्दी बस्तियों आदि के कारण Human को विभिन्न प्रकार के प्रदूषणों के खतरे का सामना करना पड़ रहा है जिससे अनेक प्रकार की बीमारियाँ उत्पन्न हो रही है। अत: अब पाठ्यक्रम में जनसंख्या शिक्षा, स्वास्थ शिक्षा And पर्यावरण शिक्षा को स्थान देना अनिवार्य होता जा रहा है। इसके साथ ही आधुनिक युग अन्तरिक्ष युग And कम्प्यूटर युग के Reseller में विकसित हो रहा है। अत: अब पाठ्यक्रम में अन्तरिक्ष सम्बन्धी ज्ञान तथा कम्प्यूटर सम्बन्धी ज्ञान का अधिक से अधिक समावेश करने में काफी तत्परता से प्रयास किये जा रहे है। परिणामस्वReseller नित्य नये विषयों के नाम सुनने में आ रहे है। इस प्रकार हम देखते है कि Human जीवन से सम्बन्धित हर Single पक्ष का पाठ्यक्रम पर प्रत्यक्ष प्रभाव पड़ता है Meansात पाठ्यक्रम में संशोधन And संवर्धन की प्रक्रिया तब तक चलती रहेगी जब तक Human का अस्तित्व है।