परंपरा का Means और परिभाषा
कुछ विद्वान ‘सामाजिक विरासत’ को ही परम्परा कहते हैं। परन्तु वास्तव में परम्परा के काम करने का ढंग जैविक वंशानुक्रमण या प्राणिशास्त्रीय विरासत के तरीके से मिलता-जुलता है, और वह भी जैविक वंशानुसंक्रमण की तरह कार्य को ढालती व व्यवहार को निर्धारित करती है। उसी तरह (Meansात् जैविक वंशानुसंक्रमण की तरह ही) परम्परा का भी स्वभाव बगैर टूटे खुद जारी रहने पर भूतकाल की उपलब्धियों को आगे आने वाले युगों में से जाने या उन्हें हस्तान्तरित करने का है। यह सब सच होने पर भी सामाजिक विरासत और परम्परा समान नहीं है। सामाजिक विरासत की अवधारणा परंपरा से अधिक व्यापक है। भोजन कपड़ा, मकान कुर्सी, मेज, पुस्तक, खिलौने, घड़ी, बिस्तर, जूते, बर्तन, उपकरण, मशीन, प्रविधि नियम, कानून, रीति-रिवाज, ज्ञान, विज्ञान, विचार, प्रथा, आदत, मनोवृत्ति आदि जो कुछ भी व्यक्ति को समाज से मिलता है, उस सबके योग को या संयुक्त Reseller को हम सामाजिक विरासत कहते हैं। इसका तात्पर्य यह हुआ कि सामाजिक विरासत के अन्तर्गत भौतिक तथा अभौतिक दोनों ही प्रकार की चीजें आती हैं, जबकि ‘परम्परा’ के अन्तर्गत पदार्थों का नहीं, बल्कि विचार, आदत, प्रथा, रीति-रिवाज, धर्म आदि अभौतिक पदार्थों का समावेश होता है। अत: स्पष्ट है कि परम्परा सामाजिक विरासत नहीं, ‘सामाजिक विरासत’ का Single अंग मात्र है। ‘परम्परा’ सामाजिक विरासत का अभौतिक अंग है। मशीन, मकान, फर्नीचर, बर्तन, मूर्ति, घड़ी, बिस्तर, जूते आदि असंख्य भौतिक पदार्थों की सामाजिक विरासत को हम ‘परम्परा’ के अन्तर्गत सम्मिलित नहीं करते। परम्परा हमारे व्यवहार के तरीकों की द्योतक है, न कि भौतिक उपलब्धियों की। जिन्सबर्ग के Wordों में, ‘‘परम्परा का Means उन All विचारों आदतों और प्रथाओं का योग है, जो व्यक्तियों के Single समुदाय का होता है, और Single पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित होता रहता है।’’
जेम्स ड्रीयर ने लिखा है, ‘‘परम्परा कानून, प्रथा, कहानी तथा किंवदन्ती का वह संग्रह है, जो मौखिक Reseller से Single पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तान्तरित Reseller जाता है।’’
उपरोक्त परिभाषाओं से यह स्पष्ट है कि परम्परा सामाजिक विरासत का वह अभौतिक अंग है जो हमारे व्यवहार के स्वीकृत तरीकों का द्योतक है, और जिसकी निरन्तरता पीढ़ी-दर-पीढ़ी हस्तान्तरण की प्रक्रिया द्वारा बनी रहती है।