पतंजलि योग सूत्र का परिचय And परिभाषा
योग सूत्र का परिचय
आप जानते होंगे कि भारत में बहुत से सूत्र ग्रन्थ लिखे गए, जिनमें सार-Reseller में बहुत सी जानकारियाँ उपलब्ध होती हैं। इन ग्रन्थों की अपनी Single परम्परा है। योग सूत्र भी इन्हीं सूत्र ग्रन्थ परम्परा का Single हिस्सा है। जिसमें योग परक विभिन्न दार्शनिक सिद्धान्तों को सार Reseller में प्रस्तुत करने का प्रयास Reseller गया है। यहाँ योग सूत्र का विस्तृत परिचय पाने के लिए हम इसका अध्ययन बिन्दुवार करेंगे। जिससे योग सूत्र की सामान्य और प्रामाणिक जानकारी मिल पाएगी।
1. योग सूत्र के प्रणेता : पतंजलि
योग सूत्र के विद्यार्थियों के लिए यह बहुत ही आवश्यक है कि योग सूत्र का अध्ययन करने के साथ-साथ वे इसके संकलनकर्त्ता महर्षि पतंजलि के विषय में भी जाने। पतंजलि का परिचय दिए बिना योग सूत्र पर विचार करना निरर्थक होगा। इस कारण यहां पर हम प्रयास करेंगे कि विभिन्न प्रामाणिक शोधों के आधार पतंजलि विषय में क्या जानकारी उपलब्ध होती है।
कुछ लोगों का मानना है, कि पतंजलि नाम के बहुत से व्यक्ति हमारे प्राचीन History में हुए होंगे जिनको लेकर हमेशा से मतवाद होता रहा है। यहां हम इस पर अधिक विचार न कर केवल प्रामाणिक सन्दभोर्ं के आधार पर पतंजलि के व्यक्तित्व का ऐतिहासिक वृत्त जानने का प्रयास करेंगे। विद्वानों के According विभिन्न कालों में हुए पतंजलि नाम के आचार्य या फिर पतंजलि का description मुख्य Reseller से तीन सन्दभोर्ं में मिलता है-
- योग सूत्र के रचयिता।
- पाणिनी व्याकरण के महाभाष्यकार।
- आयुर्वेद के किसी संदेहास्पद ग्रन्थ के रचयिता।
इस विषय पर Single बड़ा सुन्दर और लोकप्रिय श्लोक भी प्राप्त होता है-
योगेन चित्तस्य पदेन वाचा मलं शरीरस्य च वैधकेन।
योपारोक्तं प्रवरं मुनीनां पतंजलिर्नप्रान्जलिर्नतोSस्मि।।
Meansात् मैं करबद्ध होकर ऐसे पतंजलि मुनि को प्रणाम करता हूँ, जिन्होंने योग के द्वारा चित्त शुद्धि, व्याकरण के द्वारा वचन शुद्धि और आयुर्वेद के द्वारा शरीर शुद्धि का उपाय बताया। इस प्रकार प्रचलित मान्यता में इन तीनों कार्यों के श्रेय पतंजलि को ही जाता है। यह मान्यता बहुत प्राचीन समय से चली आ रही है, जिसे भतर्ृहरि, समुद्रगुप्त, भोजराज आदि ने अनेक बार दोहराया है।
अन्य विद्वानों के मत में पतंजलि को गोनर्दीय कहकर उनको उत्तर प्रदेश राज्य के अन्तर्गत गोण्डा का निवासी भी बताया है। वहीं दूसरी ओर Single अन्य प्रचलित मान्यता के आधार पर इन्हें शेषनाग का अवतार बताया जाता है। इस सन्दर्भ में विद्वानों को मानना है कि ये कश्मीर में रहनें वाले नागू जाति के ब्राह्मणों के बीच पैदा हुए थे और मुखिया थे। अद्भुत शास्त्रज्ञान और विभिन्न भाषाओं के प्रकाण्ड विद्वान पण्डित होने के कारण इनको सहस्रजिव्हत्व (Single हजार जीभ वाला) की कल्पना में शेशावतार के Reseller में प्रसिद्धि मिल गयी होगी। इसी कारण कुछ स्थानों पर ऐसा description भी मिलता है कि पतंजलि अपने शिष्यों को पर्दे के पीछे छिपकर पढ़ाते थे, और शिष्यों के लिए कड़ा निर्देश था कि पर्दे को उठाकर न देखा जाए। इस दु:साहस का बड़ा गंभीर परिणाम हो सकता है। Single दिन अत्यन्त जिज्ञासावश Single शिष्य ने दु:साहस कर दिया और पतंजलि ने क्रुद्ध होकर अपनी Single हजार जिव्हाओं से अग्नि फेंककर सब कुछ Destroy कर दिया। भाग्यवश Single शिष्य वहाँ से बचकर भाग गया जिसके बाद में उनके द्वारा दिए गए उपदेशों का संग्रह Reseller।
Single किंवदन्ती के According ऐसा ज्ञात होता है, कि प्रात:काल नदी में अचानक से Ultra site के अघ्र्य देते समय कोर्इ बालक Single ब्राह्मण के अंजलि में आ गया और उस दृश्टान्त के कारण इनका नाम पतंजलि पड़ गया। बाद में उसी ब्राह्मण के यहां इनकी शिक्षा-दीक्षा हुर्इ। कुछ विद्वान इन्हें शुंगवंशीय महाराज पुश्यमित्र के दरबारी पण्डित के Reseller में भी बताते हैं। इस आधार पर इनका समय द्वितीय शताब्दी र्इसा पूर्व (2 Century B.C.) निर्णय Reseller जाता है। हालांकि इनके समय के विषय में भी स्थिति स्पष्ट नहीं होती है लेकिन फिर भी अधिक से अधिक सन्दर्भ हमें यही समय बताते हैं। इन All तथ्यों को जानने के बाद आपके लिए यह बहुत ही महत्त्वपूर्ण जानकारी है कि पतंजलि, योग सूत्र के मूल लेखक नहीं अपितु संकलनकर्त्ता माने जाते हैं। विद्वानों का ऐसा मानना भी है, कि उन्होंने अपने समय में प्रचलित योग की विभिन्न पद्धतियोंं का संग्रह कर उनको सूत्रात्मक Reseller में अपने ग्रन्थ में संग्रहित Reseller। सूत्र का यह लक्षण भी होता है, कि वह कम से कम Wordों में बिना कोर्इ सन्देह उत्पन्न किए बहुत बड़े सिद्धान्त को भी अपने में समेट ले। जो हमें पतंजलि कृत योग सूत्रों को देखने से पता चल जाता है।
2. योग सूत्र का ऐतिहासिक महत्त्व And स्वReseller
आप अब तक जान चुके होंगे कि विभिन्न ऐतिहासिक साक्ष्य योग की प्राचीनता को बताते हैं। उसी प्रकार यदि दार्शनिक सन्दर्भों में देखा जाए तो योग का अपना दार्शनिक महत्त्व भी है। हमारा अध्ययन यहाँ योग सूत्र को केन्द्र में रखकर Reseller जा रहा है। जिसमें जो महत्त्वपूर्ण बात हम देखते हैं वह यह है, कि जहां पर भी योग दर्शन की बात की जाती है, वहां योग सूत्र ही दिखार्इ देता है। इसका सीधा सा कारण अब तक आप लोग भी समझ गए होंगे और वह यह है कि Single मात्र पतंजलि ही ऐसे व्यक्ति थे जिन्होंने योग को व्यवस्थित स्वReseller देकर अपने ग्रन्थ के माध्यम से सूत्र Reseller में संकलित Reseller। जिसके कारण अन्य दार्शनिक विचारधाराओं में योग की स्थिति को जानने में बहुत सहायता मिली। ऐतिहासिक दृष्टिकोण से योग सूत्र की प्राचीनता स्पष्ट Reseller से बता दी गयी है। यदि बिना किसी विवाद में उलझे योग सूत्र का काल दूसरी शताब्दी र्इसा पूर्व निर्धारित Reseller जाए तो अन्य दर्शन जो कि इसके बाद विकसित हुए, उन पर इसका स्पष्ट प्रभाव देखा जा सकता है।
ऐतिहासिक Reseller से सांख्य दर्शन को योग से First बताया जाता है, परन्तु यह भी निर्विवाद Reseller से सत्य है, कि योग सांख्य दर्शन का क्रियात्मक पक्ष प्रस्तुत करता है। जिसके कारण कभी-कभी दोनों दर्शनों को Single Second का पूरक या समान तन्त्र भी कहा जाता है। दोनों ही दर्शन Single Second से काफी समानता रखते हैं। इस विषय पर विभिन्न दर्शन ग्रन्थों में विस्तृत Discussion मिलती है। तथा इस ग्रन्थ पर अनेक टीकायें भी प्राप्त होती हैं। अत: योग सूत्र के महत्त्व को अधिक गहरार्इ से जानने के लिए आपको यह जानना भी आवश्यक है कि उस पर कितनी टीकाएं उपलब्ध है। इनके आधार पर हम इस ओर स्पष्ट संकेत कर सकते हैं कि योग सूत्र की लोकप्रियता और महत्त्व कभी कम नहीं रहा। जिसके कारण हर काल में इस पर भिन्न-भिन्न Resellerों में व्याख्यायें सामने आती हैं। ये सारी व्याख्याएं योग सूत्र के Meansों को स्पष्ट करने के लिए हैं। जिनके माध्यम से सूत्र Reseller में लिखी व्यापक सैद्धान्तिक जानकारी को और अधिक स्पष्ट Reseller से समझा जा सके।
यदि आप योग सूत्र के History पर दृष्टि डालें तो पतंजलि के सूत्रों के पश्चात जिस Creation को सर्वाधिक प्रसिद्धि मिली वह थी-व्यास भाष्य। व्यास भाष्य, व्यास के द्वारा योग सूत्र की First टीका या व्याख्या थी। जिसमें योग सूत्र के शास्त्रीय और व्यावहारिक ज्ञान पर विस्तृत प्रकाश डाला गया है। इस भाष्य को ‘योग भाष्य’, ‘व्यास भाष्य’, ‘पातंजल भाष्य’ और ‘सांख्य प्रवचन भाष्य’ आदि नामों से जाना जाता है। हालांकि इस बात पर बहुत से विवाद अभी तक बने हुए हैं, कि ये व्यास कौन थे-वेद व्यास या ब्रह्मसूत्रकार बादरायण व्यास? हम यहाँ इन प्रश्नों में न उलझकर केवल यह जानने का प्रयास करेंगे कि ऐतिहासिक दृष्टि से इसका क्या महत्त्व है। यह बात अब तक आपको स्पष्ट हो गयी होगी कि पातंजल योग सूत्र पर पहली टीका व्यास द्वारा लिखी गयी। इसमें योग सूत्र में आए विभिन्न सैद्धान्तिक पक्षों पर विस्तार से Discussion की गयी है। इसका महत्त्व भी इसी से स्पष्ट हो जाता है कि इसके बाद की All Creationओं मे कहीं न कहीं इसी का अनुसरण करके व्याख्याएं प्रस्तुत की गयी है।
काल की दृष्टि से विद्वानों ने इसे दूसरी शताब्दी र्इ0 (2nd Century AD) के समय का माना है। जिससे स्पष्ट होता है, कि व्यास की यह Creation योग सूत्र पर पहला उपदेश थी क्योंकि अन्य सारी Creationएं इस समय के बाद की ही मिलती हैं। यहां आप यह बात भी समझ लें समय के विषय में उक्त जानकारी अभी तक विवादों के घेरे में हैं परन्तु प्रचलित मान्यताओं के आधार पर यही सही समय लगता है, जिससे व्यास भाष्य की Creation हुर्इ। व्यास के बाद योग सूत्र पर अन्य Creation वाचस्पति मिश्र की ‘तत्त्व वैशारदी’ उपलब्ध होती है। वाचस्पति मिश्र का समय 10वीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध का माना जाता है। इस प्रकार व्यास के कर्इ शताब्दियों बाद योग सूत्र पर दूसरी Creation उपलब्ध होता है। वाचस्पति मिश्र ने अपनी टीका में व्यास के द्वारा दी गयी व्याख्या को और अधिक स्पष्ट Reseller है, और साथ ही कर्इ अन्य महत्त्वपूर्ण सिद्धान्तों की भी विवेचना की है। वाचस्पति मिश्र के ठीक बाद लगभग 11वीं शताब्दी में धार के King भोजदेव ने योग सूत्र पर अपनी टीका लिखी। जिसे भोजवृत्ति के नाम से जाना जाता है। इसके अतिरिक्त भावागणेश ने 17वीं शताब्दी में Single और टीका लिखी। तथा नागोजी भट्ट (17वीं शताब्दी), रामानन्दयति और नारायण तीर्थ (18वीं शताब्दी) आदि ने भी टीकाएं लिखीं। आजकल उपलब्ध टीकाओं में स्वामी हरिहरानन्द अरण्य की ‘भास्वती’ नामक टीका काफी प्रसिद्ध है। इसके अलावा अंग्रेजी अनुवाद में गंगानाथ झा, राजेन्द्र लाल मिश्र और जे.एच.वुड्स ने भी बड़ा सराहनीय कार्य Reseller है।
इन All विषयों को जानने के बाद आप लोग योग सूत्र के ऐतिहासिक स्वReseller और इसके महत्त्व से भली भांति परिचित हो गए होंगे। इन सारे विषयों पर जानकारी देने का उद्देश्य केवल इतना था कि आप लोग योग सूत्र से सम्बन्धित प्रामाणिक जानकारी प्राप्त कर सकें और यदि भविष्य में इसका विशेष अध्ययन करना चाहें तो उक्त ग्रन्थों के अध्ययन से लाभान्वित हो सकें।
3. योग सूत्र की विषय वस्तु
जैसा कि आप All लोग जान गए होंगे कि योग सूत्र योग के विभिन्न बड़े-बड़े सिद्धान्तों और विषयों पर लिखा गया संक्षिप्त प्रस्तुतीकरण है। जिसमें अल्प Wordों बिना किसी संषय के योग के बड़े-बड़े दार्शनिक विचारों को बड़े ही सरल, प्रामाणिक और व्यवस्थित ढंग से प्रस्तुत Reseller गया है। इसके विषयों को चार अध्यायों के अन्तर्गत रखा गया है जिन्हें ‘पाद’ की संज्ञा दी है-
- समाधि पाद
- साधन पाद
- विभूति पाद
- कैवल्य पाद
समाधि पाद में 51, साधन पाद में 55, विभूति पद में 55 और कैवल्य पाद में 34 सूत्र हैं। कुल मिलाकर सम्पूर्ण योग सूत्र में 195 सूत्रों में उपलब्ध होता है। विषय के According इन्हीं 195 सूत्रों में योग के विभिन्न विषय संक्षिप्त Reseller में समझाए गए हैं जिन्हें समझने के लिए हम उपलब्ध टीकाओं और अनुवादों का सहारा लेते हैं। वह तो First ही बताया जा चुका है कि योग सांख्य का व्यावहारिक Reseller बताता है। सांख्य यदि दर्शन है, तो योग उसका प्रायोगिक स्वReseller बताता है। इन्हीं विषयों को लेकर योग सूत्र के चारों पादों या अध्यायों में विस्तृत Discussion मिलती है। विषय की दृष्टि से चारों अध्यायों की विषय वस्तु को संक्षिप्त Reseller से कुछ इस प्रकार समझ सकते हैं-
समाधि पाद – समाधि पाद के अन्तर्गत, समाधि से सम्बन्धित मुख्य-मुख्य विषयों को लिया गया है। जैसा कि आप नाम से ही समझ रहे होंगे। समाधि से सम्बन्धित All दार्शनिक सिद्धान्तों और विषयों को इस अध्याय के अन्तर्गत बड़े ही व्यवस्थित क्रम में बताकर बाद में समाधि की स्थिति को प्राप्त करने के लिए यौगिक पद्धतियों का वर्णन भी मिलता है। इस अध्याय में First योग की परिभाषा बतार्इ गयी है जो कि चित्त की वृत्तियों का All प्रकार से निरुद्ध होने की स्थिति का नाम है। यहां पर भाष्यों के अन्तर्गत यह भी स्पष्ट कर दिया गया है कि यह योग समाधि है। समाधि के आगे दो भेद- सम्प्रज्ञात और असम्प्रज्ञात बताए गए हैं। जिनको बाद में विस्तार से जानकारी दी गयी है। दोनों ही प्रकार की समाधियों के आन्तर भेदों को भी विस्तार पूर्वक समझाने का प्रयास Reseller गया है। समाधि की स्थिति को प्राप्त करने के साधनों के विषय में भी विस्तार से Discussion की गयी है। इसके लिए First अभ्यास और वैराग्य के नाम से दो साधन बताए गए हैं। (अभ्यास और वैरग्य का विस्तृत विवेचन चतुर्थ र्इकाइ में Reseller जायेगा) विद्वानों के According इस अध्याय के अन्तर्गत बताए अभ्यास सामान्य योगाभ्यासी के लिए नहीं अपितु उच्च कोटि के अधिकारी के लिए है। जिनका चित्त First से ही स्थिर हो चुका है, उन्हीं को ध्यान में रखकर यहाँ अभ्यासों की Discussion की गयी है। कर्इ सारे अभ्यास दिखने में जितने आसान प्रतीत होते हैं करने में उतने ही कठिन है।
र्इश्वर प्रणिधान या र्इश्वर भक्ति (र्इश्वर प्रणिधान का विस्तृत विवेचन चतुर्थ र्इकाइ में Reseller जायेगा) और र्इश्वर के स्वReseller की Discussion भी इसी अध्याय के अन्तर्गत की गयी है। र्इश्वर वर्णन के कारण ही कभी-कभी सांख्य और योग में अन्तर Reseller जाता है। सांख्य जहां र्इश्वर का वर्णन नहीं करता वहीं योग (पातंजल योग) र्इश्वर का वर्णन करने के कारण कभी-कभी सेश्वर-सांख्य के नाम से जाना जाता है।
इस प्रकार विभिन्न विषयों की विस्तार से Discussion करने के साथ-साथ योग के दार्शनिक स्वReseller को बड़े ही सुन्दर ढंग से रखने का प्रयास समाधि पाद के अन्तर्गत Reseller गया है। चित्त से लेकर समाधि के भेद-प्रभेद And चित्त निरोध आदि के उपाय आदि भी इसी अध्याय के अन्तर्गत समझाए गए हैं। जिनके अध्ययन के बाद आपको योग की दार्शनिक पृष्ठभूमि का आकलन स्वत: ही लग जाएगा। इसी अध्याय के अन्तर्गत यदि सूक्ष्म अध्ययन Reseller जाए तो योग के विभिन्न विषय जो बचे हुए 3 पादों में आने वाले हैं, उनका भी स्पष्ट-अस्पष्ट चित्र दिखार्इ दे जाता है।
साधन पाद – साधन पाद के अन्तर्गत योग को प्राप्त करने के लिए विभिन्न उपाय आदि बताये गए हैं। भाष्यकारों के According First अध्याय Meansात् समाधि पाद के अन्तर्गत बताए गए अभ्यास उत्तम अधिकार प्राप्त योगियों के लिए उपयुक्त है। जबकि मध्यम और साधारण अधिकारी उन अभ्यासों को करने में सक्षम नहीं है। इसी को ध्यान में रखकर इस अध्याय के प्रारम्भ में यह स्पष्ट कर दिया है कि मध्यम अधिकारी के लिए क्रिया योग ही सर्वोत्तम साधन है। क्रिया योग के अन्तर्गत तप, स्वाध्याय और र्इश्वर प्रणिधान का समावेश Reseller है। इसी की विस्तृत Discussion के साथ इस अध्याय की शुरुआत होती है। पंचक्लेषों की विस्तृत Discussion भी इसी अध्याय के अन्तर्गत मिलती है। यह आपको First भी बताया जा चुका है कि क्लेषों की पूर्ण निवृत्ति ही योग का साधन बनता है। बिना इनकी निवृत्ति के योग सम्भव नहीं। इसी अध्याय के अन्तर्गत आपको आगे चलकर अष्टांग योग की भी Discussion मिलेगी जिसे साधारण अधिकारी के लिए अति उत्तम साधन माना गया है। अष्टांग योग के अन्तर्गत यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि का समावेश Reseller गया है। अष्टांग योग सर्वाधिक प्रचलित साधना पद्धति है जिसको योग विषयक लगभग All अध्ययनों में देखा जा सकता है।
अष्टांग योग के विभिन्न अंगों की विवेचना के साथ-साथ यहां उनसे प्राप्त होने वाली सिद्धियों का भी वर्णन Reseller गया है। जिसके कारण यहाँ प्राप्त होने वाले अष्टांग योग के वर्णन की तुलना किसी अन्य स्थल से नहीं की जा सकती है। इस अध्याय के अन्तर्गत विभिन्न दार्शनिक विषयों का भी वर्णन Reseller गया है। जिसमें ‘दृश्टा’ और ‘दृष्य’ प्रमुख हैं। दृश्टा यहां पुरुष को And दृष्य प्रकृति को कहा गया है। इन दोनों में विवेक ज्ञान हो जाना ही योग की प्राप्ति कराता है। इन दोनों की मिली हुर्इ अवस्था के कारण ही अविद्या की स्थिति बनी रहती है। इसके अतिरिक्त ‘चतुव्र्युहवाद’ की भी स्पष्ट विवेचना इसी अध्याय के अन्तर्गत आती है। हेय-दु:ख का वर्णन, हेय-हेतु-दु:ख के कारण का वर्णन, हान-मोक्ष का स्वReseller और हानोपाय-मोक्ष प्राप्ति का उपाय सम्मिलित है। इस प्रकार यह अध्याय स्वयं में पूर्ण Reseller से योग के विभिन्न दार्शनिक पहलुओं पर विस्तृत विचार प्रस्तुत करता है। कर्मफल का सिद्धान्त भी इसी अध्याय के अन्तर्गत आता है। इन All विषयों का ठीक प्रकार से समावेश होने के कारण इस अध्याय का नाम साधन पाद बहुत ठीक जान पड़ता है।
विभूति पाद – धारणा, ध्यान और समाधि के वर्णन से “ाुरु होने वाले इस अध्याय के अन्तर्गत बड़े ही रहस्यास्पद And रोचक विषयों का समावेश देखने को मिलता है। यहां दार्शनिक विषयों का History First के अध्यायों की अपेक्षा बहुत कम देखने को मिलता है। फिर भी, दार्शनिक दृष्टि से इस अध्याय का भी महत्त्व कम नहीं है। दार्शनिक विषयों में धर्म, धर्मी आदि का स्वReseller, चित्त के परिणाम आदि की विवेचना मिलती है। इसके साथ-साथ धारणा, ध्यान और समाधि को यहां सम्मिलित Reseller से ‘संयम’ के Reseller में बताया गया है। ‘संयम’ योग सूत्र की पारिभाशिक Wordावली का प्रमुख अंग है। सामान्यतया संयम का Means नियंत्रण से होता है, परन्तु यहां इसका प्रयोग की धारणा, ध्यान और समाधि के सम्मिश्रण को बताया है।
इन All विषयों के साथ-साथ इस अध्याय का प्रमुख विषय संयमजनित विभूतियों का वर्णन है। जिस कारण इस अध्याय का नाम विभूति पाद रखा गया है। विभूति का Means यहां पर सिद्धियों से ही है। जो योग की अन्तरंग अवस्था में जाकर संयम का परिणाम बतार्इ गयी है। उदाहरण के Reseller में चन्द्रमा में संयम करने से तारों का ज्ञान, ध्रुव तारे में संयम करने से तारों की गति का ज्ञान, Ultra site में संयम करने से भुवनों का ज्ञान, कण्ठ-कूप में संयम करने से भूख-प्यास की निवृत्ति आदि-आदि विभिन्न सिद्धियॉं और विभूतियाँ संयम के परिणाम से प्रकट होनी बतार्इ गयी है। इस प्रकार इन सब विषयों के समावेश के कारण यह अध्याय अपने आप में बड़े ही रोचक ढंग से योग दर्शन की प्रस्तुति करता है। इस आषय से विभूति पाद नामक यह अध्याय अपने नाम के According अपने विषयों को भली-भांति प्रस्तुत करता है। यहाँ Single और बात बहुत ध्यान देन योग्य है, कि इन सब विभूतियों का वर्णन करने के साथ-साथ यहाँ यह भी स्पष्ट कर दिया गया है, कि यह सारी विभूतियाँ, सिद्धियाँ योग मार्ग में बाधक है। इनका साधन नहीं करना चाहिए अन्यथा योग का वास्तविक लक्ष्य समाधि को पाना संभव नहीं है। यह सारी विभूतियाँ तो केवल योग मार्ग में हमारी सही-सही स्थिति को बताती है। जिससे हम योग मार्ग में बिना किसी संदेह के आगे बढ़ सकें।
कैवल्य पाद – जैसा कि इसके नाम से ही प्रतीत हो रहा है, कि यह अध्याय योग के चरम लक्ष्य ‘कैवल्य’ की स्थिति को बताने वाला है। इस अध्याय के अन्तर्गत भी योग के दार्शनिक स्वReseller पर विस्तृत Discussion देखने को मिलती है। इस अध्याय की शुरुआत पांच प्रकार से प्राप्त होने वाली सिद्धियों के वर्णन से होती है जिसमें बताया गया है कि सिद्धियाँ जन्म से, औषधि से, मन्त्र से, तप से और समाधि के द्वारा मिलती है। जिसमें बाद में समाधि जन्य सिद्धि को शुद्ध माना है। जिसका कारण बताया गया है कि समाधि में वासनाजन्य संस्कार नहीं रहते इस कारण समाधि से प्राप्त सिद्धि भी पवित्र संस्कार वाली होती है। इस अध्याय के अन्तर्गत निर्माण चित्त, चतुर्विध कर्म, वासना आदि का बड़ा ही सुन्दर वर्णन मिलता है। इसके अतिरिक्त जीवनमुक्त की मनोवृत्ति पर भी समुचित प्रकाष डाला गया है। अन्त में कैवल्य का स्वReseller बताकर इस अध्याय की समाप्ति के साथ योगसूत्र की भी पूर्णता हो जाती है। First के अध्यायों की अपेक्षा यह अध्याय अधिक छोटा है। परन्तु, इसके बिना योग सूत्र की पूर्णता भी नहीं होती। इस कारण इस अध्याय का महत्त्व और अधिक बढ़ जाता है।
योग की परिभाषा
अभी तक आप योग सूत्र के ऐतिहासिक पक्षों के साथ-साथ बाहरी स्वReseller को भी जान गए होंगे। योग सूत्र के प्रमुख विषयों में जाने से First इसकी बहुत Need होती है, कि हम First योग सूत्र के बाहरी स्वReseller को ठीक ढंग से जाने लें। आपने अब तक योग के ऐतिहासिक पक्षों के साथ-साथ योग सूत्र के Creationकार, भाष्यकार And योग सूत्र की विषय वस्तु से भी परिचय प्राप्त कर लिया होगा। यहां पर योग सूत्र के अन्तर्गत योग की परिभाषा पर विचार करने से First हम विभिन्न मतों में योग की परिभाषा पर विचार करेंगे जिससे बाद में योग सूत्र में दी गयी परिभाषा पर विस्तृत प्रकाष डाल सकेंगे।
1. विभिन्न मतों में योग की परिभाषा
विभिन्न ग्रन्थों में योग की परिभाषा अलग-अलग ढंग से दी गयी है। जो उनके सिद्धान्तों के अनुReseller योग की स्थिति को प्रकट करती है। भगवद्गीता में योग की कुछ महत्त्वपूर्ण परिभाषाएं दी गयी हैं, जिनमें योग: कर्मसु कौशलम् और समत्त्वं योग उच्यते प्रमुख Reseller से बतायी जाती है। पहली वाली परिभाषा बड़ी गंभीर है, क्योंकि कर्मों में कुशलता ही योग है। ऐसा Means First देखने पर आता है, परन्तु ध्यान से समझने पर पता चलेगा कि कुशलता पूर्वक कर्म करना ही योग है। जिसमें आसक्तिरहित निश्काम कर्म ही इसकी श्रेणी में आते हैं।
दूसरी परिभाषा में सर्वत्र समान स्थिति में बने रहना योग है। इसका Means यह हुआ कि चाहे लाभ हो, हानि हो, सुख हो या फिर दु:ख All स्थितियों में समभाव रहना योग का लक्षण बताया गया है। यह दोनों परिभाषाएं योग की अभिव्यक्ति गीता के सन्दर्भ में करती है। गीता की प्रसिद्धि की तरह ये दोनों परिभाषाएं भी योग के क्षेत्र में बहुत प्रसिद्ध हैं। अब अन्य परिभाषाओं पर विचार करें-
First यह जान लें कि योग Word का स्वयं में क्या Means हो सकता है। योग Word पाणिनी अश्टाध्यायी में तीन स्थानों पर अलग-अलग Reseller से व्यक्त Reseller गया है। यह तो आप जानते ही होंगे कि संस्कृत के All Word किसी न किसी ‘धातु’ (Root word) से निकलते और धातु के अनुReseller ही उनके Means भी होते हैं। ठीक इसी प्रकार से योग Word भी ‘युज’ धातु से बना है। पाणिनी के धातु पाठ में इसे तीन जगह प्रयुक्त Reseller गया है। जिसमें इसे निम्न तीन प्रकार से व्यक्त कर सकते हैं-
1. युज् – समाधौ 2.युजिर् – योगे 3.युज – संयमने
इन तीनों धातुओं से योग Word के तीन Means सामने आते हैं। First युज् धातु का Means ‘समाधि’ से है Meansात योग का Means समाधि हुआ। Second प्रयोग में युज् धातु का Means ‘जोड़ने’ से है। अब योग का Means जोड़ना हुआ। Third और अंतिम प्रयोग में युज् धातु का Means संयम से है। जिसके According योग का Means संयमन होता है। लगभग All शास्त्रों में योग का प्रयोग इन्हीं तीन Meansों में Reseller जाता है। विभिन्न मतों में योग की परिभाषाएं जानकर यह आसानी से पता लगाया जा सकता है कि यहां किस Reseller में योग Word का प्रयोग और व्यवहार Reseller जा रहा है।
‘Seven्वत संहिता’ नामक ग्रन्थ में शाण्डिल्य के According- आत्मा और परमात्मा के स्वReseller को जानना योग है। इसी प्रकार सिद्धसिद्धान्त पद्धति में- आत्मा और परमात्मा का मिलन योग है। तन्त्र ग्रन्थों को देखने से पता चलता है कि वहां जीव को आत्मा और शिव को परमात्मा के Reseller में बताया गया है। तन्त्र के According जीव और शिव का SingleReseller हो जाना ही योग है।
इस प्रकार से ये परिभाषाएं लगभग Single ही ओर झुकी हुर्इ लगती हैं। अब आप यह समझ सकते हैं कि विभिन्न ग्रन्थों में योग की परिभाषा Single जैसी ही प्रतीत होती है। परन्तु, कुछ विद्वानों के मतों को देखने के बाद ऐसा लगेगा कि योग को किसी Single परिभाषा विशेष के द्वारा नहीं समझाया जा सकता। श्री
अरविन्द के According- सम्पूर्ण जीवन योग है। अरविन्द आश्रम की ही श्री माँ योग को मनोविज्ञान की दृष्टि से परिभाषित करते हुए कहती है- योग आध्यात्मिक मनोविज्ञान है। योग को इस प्रकार परिभाषित करने से यह सिद्ध होता है कि योग मन और मन की अनन्त गहरार्इ से सम्बन्धित है। मन को जानने और समझने का विज्ञान, मनोविज्ञान है और योग इस मनोविज्ञान को और अधिक समृद्ध कर देने वाला ज्ञान। इस प्रकार विभिन्न मतों में योग की परिभाषा को देखने से लगता है कि योग वहां केन्द्रिय साधन के Reseller में विद्यमान है। योग जीवनषैली, साधना और उनके दर्शन का वह हिस्सा है जिसके बिना विभिन्न दर्शन और साधना विज्ञान अधूरे से दिखार्इ देते हैं। यह आप केवल परिभाषाओं के ही माध्यम से समझ सकते हैं।
2. योग सूत्र में योग की परिभाषा
अन्य ग्रन्थों की भांति योग सूत्र क्योंकि योग पर ही आधारित है, अत: वह प्रारम्भ में ही योग को परिभाषित करता है। समाधि पाद में योग की परिभाषा कुछ इस प्रकार बतायी गर्इ है-
योगष्चित्तवृत्ति निरोध: ।। (पातंजल योग सूत्र, 1/2)
योग, चित्त वृत्तियों का निरुद्ध होना है। Meansात् योग उस अवस्था विषेश का नाम है, जिसमें चित्त में चल रही All वृत्तियां रूक जाती हैं। यदि हम और अधिक जानने का प्रयास करें तो व्यास-भाष्य मे हमें स्पष्ट Reseller से ज्ञात होता है कि योग समाधि है। इस प्रकार जब चित्त की सम्पूर्ण वृत्तियां विभिन्न अभ्यासों के माध्यम से रोक दी जाती है, तो वह अवस्था समाधि या योग कहलाती है। यहाँ ध्यान देने योग्य बात यह है, कि योग को परिभाषित करने के लिए युज् धातु के कौन से Means का प्रयोग Reseller गया है। जैसा कि आपने First देखा, युज् धातु तीन Meansों में प्रयुक्त होती है। यहाँ युज् धातु समाधि Means में प्रयोग हो रही है। अत: योग की परिभाषा के लिए यहां युज् समाधौ वाला प्रयोग ठीक है।
हमारा चित्त तरह-तरह की वस्तुओं, दृष्यों, स्मृतियों, कल्पनाओं आदि में हमेषा उलझा रहता है। इन दृष्यों, स्मृतियों, कल्पनाओं, वस्तुओं आदि को वृत्ति भी कहा जा सकता है। यहाँ पर आपको समझाने के लिए केवल इतना बताना चाहते हैं कि जब हमारा चित्त इन All वृत्तियों से बाहर आ जाता है, या जब चित्त में किसी भी प्रकार की हलचल नहीं होती तब वही स्थिति योग कहलाती है। इसमें बहुत से स्तर आते हैं। इन स्तरों को योग में विभिन्न उपलब्धियों के माध्यम से समझा जा सकता है। अंतिम उपलब्धि जिसमें की चित्त में कोर्इ भी हलचल न हो, वह Single शान्त सरोवर की भांति हो, ऐसी स्थिति को चित्त का समाधि में होना कहलाता है। यही स्थिति योग भी है क्योंकि ऊपर हम बता आए हैं कि योग को ही समाधि कहा गया है। यहां ध्यान देने की बात यह है कि योग को समाधि पातंजल योग में कहा गया है। अन्य ग्रन्थों में योग की परिभाषा उन ग्रन्थों के According अलग हो सकती है। अत: सारांश में हम यह कह सकते हैं कि पातंजल योग सूत्र में योग, चित्त की सम्पूर्ण वृत्तियों का निरोध है या चित्त का बिलकुल शान्त हो जाना है जो समाधि की अवस्था भी कहलाती है।