निर्देशन के सिद्धान्त And तकनीकी
निर्देशन की मान्यतायें
आज के भौतिकवादी जीवन में हताशा, निराशा And कुसमायोजन की समस्याओं ने भयावह Reseller ले लिया है। इन All समस्याओं ने जीवन के प्रत्येक चरण में निर्देशन की Need को जन्म दिया। निर्देशन प्रक्रिया कुछ परम्परागत मान्यताओं पर निहित होता है। ये मान्यतायें हैं-
- व्यक्ति भिन्नताओं का होना-व्यक्ति अपनी जन्मजात योग्यता, क्षमता, अभिवृतियों And रूचियों के साथ अन्य व्यक्तियों से अलग होता है। यह भिन्नता उसकी समस्याओं की भिन्नता को जन्म देती है। यह उसके व्यवहार And व्यक्तित्व के स्वReseller को निर्मित करती है इसलिये उसके भिन्नता की उपेक्षा नहीं की जा सकती है और निर्देशन प्रक्रिया में इसको ध्यान में रखा जाता है।
- अवसरों की विभिन्नता-व्यक्ति अपने वंशानुक्रम And वातावरण की भिन्नता को लेकर उत्पन्न होता है। यह विविधता उसके शैक्षिक, सामाजिक तथा व्यावसायिक अवसरों की अनेकResellerता में प्राय: देखी जा सकती है, वास्तव में इन अवसरों की भिन्नता सम्पूर्ण जीवन में विविधता ला देती है और यह निर्देशन प्रक्रिया की प्रमुख मान्यता भी है।
- वैयैयक्तिक विकास को सम्भावित माना जा सकता है-हमारे वैयक्तिक विकास की प्रक्रिया तथा भावी उपलब्धियों के सम्बन्ध में योग्यता परीक्षणों, अभिक्षमता परखों, रूचियों And व्यक्ति के व्यक्तित्व मापनी तथा पूर्व की उपलब्धियों के आधार पर भविश्य कथन सम्भव है।
- सामन्जस्य व्यक्ति की मूलभूत Need-Human जीवन की सफलता उसकी सामन्जस्य योग्यता पर निर्भर करती है और मनुश्य अधिक समय परिस्थितियों के साथ संघर्श करके उसमें सामन्जस्य करने का प्रयास करता है। सामन्जस्य व्यक्ति की मूल Need है।
- वैयैयक्तिक व सामाजिक विकास हेतु सामन्जस्य And परिस्थितियों की विविधता के साथ तालमेल आवश्यक है-वैयक्तिक And सामाजिक विकास अन्त:सम्बन्धित होते हैं वैयक्तिक उन्नति व्यक्ति की योग्यताओं, अभिक्षमताओं And रूचियों तथा बाह्य अवसरों में तालमेल And समुचित सामन्जस्य पर निर्भर करता है। सामन्जस्य की प्रक्रिया को सहज निश्कंटक तथा सरल बनाने में औपचारिक And अनौपचारिक Reseller में उपलब्ध निर्देशन में सहायक होते है। निर्देशन की सम्पूर्ण प्रक्रिया उपरोक्त All मान्यताओं पर निर्भर है। Human जीवन की सफलता उसके सामन्जस्य क्षमता पर निर्भर करती है और इसके लिये वह निरन्तर प्रयासरत रहता है। आज के युग में विविध प्रकार के मनोवैज्ञानिक तनाव And विसंगतियों जिस हद तक हमारी सामाजिक व्यवस्था पर कुठाराघात करती है तब निर्देशन की Need स्वयं उपस्थित हो जाती है।
निर्देशन के सिद्धान्त
निर्देशन में व्यक्ति के विकास और समाजहित दोनों पर ही ध्यान दिया जाता है। वास्तव में निर्देशन की प्रक्रिया उन All कार्यो And प्रयासों का संगठन है जिसमें व्यक्ति को सामन्जस्य समाहित विशिष्ट तकनीकों के प्रयोग द्वारा परिस्थितियों को संभालने, Single व्यक्ति को उसके अधिकतम विकास तक पहुॅचाने जिसमें उसका शारीरिक, व्यक्तित्व, सामाजिक, व्यवसायिक, सांस्कृतिक And आध्यात्मिक विकास हो, सम्मिलित है। निर्देशन कुछ निश्चित सिद्धान्तों पर कार्य करता है। इसके प्रमुख सिद्धान्तों को लेस्टर डी0 क्रो And एलिस क्रो ने अपनी Creation ‘‘एन इण्ट्रोडक्षन टु गाइडेन्स’’ में described Reseller है। इनका description नीचे दिया जा रहा है।
- व्यक्ति का सम्पूर्ण प्रदर्शित व्यक्तित्व And व्यवहार Single महत्वपूर्ण घटक होता है। निर्देशन सेवाओं में इन तत्वों के महत्व को दिया जाना चाहिये।
- Human की All विभिन्नताओं को स्तरानुसार And Needनुसार महत्व देना चाहिए।
- व्यक्ति को प्रेरक, उपयोगी तथा प्राप्त होने योग्य उद्देष्यों के निResellerण में मदद करना।
- वर्तमान उपस्थित समस्याओं के उचित समाधान हेतु प्रशिक्षित And अनुभवी निर्देशनदाता द्वारा यह दायित्व निभाना जाना चाहिए।
- निर्देशन को बाल्यावस्था से प्रौढ़ावस्था तक अनवरत Reseller से चलने वाली प्रक्रिया के Reseller में प्रस्थापित करना।
- निर्देशन की प्रक्रिया को सर्वसुलभ बनाया जाना चाहिये जिससे कि वह Need को न बताने वाले व्यक्ति को भी मिल सके।
- विविध पाठ्यक्रमों के लिये गठित अध्ययन सामग्रियों तथा शिक्षण पद्धतियों में निर्देशन का दृष्टिकोण झलकना चाहिये।
- शिक्षकों And अभिभावकों को निर्देशनपरक उत्तरदायित्व सौपा जाना चाहिये।
- निर्देशन को आयु स्तर पर निर्देशन की विशिष्ट समस्याओं को उन्हीं व्यक्तियों को सुपुर्द करना चाहिये जो इसके लिये प्रशिक्षित हो।
- निर्देशन के विविध पक्षों को प्रशासन बुद्धिमतापूर्वक And व्यक्ति के सम्यक अवबोध के आधार पर करने की दृश्टि से व्यक्तिगत मूल्यांकन And अनुसंधान कार्यक्रमों को संचालित करना चाहिये।
- वैयक्तिक And सामुदायिक Needओं के अनुकूल निर्देशन का कार्यक्रम लचीला होना चाहिये।
- निर्देशन कार्यक्रम का दायित्व सुयोग्य And सुप्रशिक्षित नेतृत्व पर केन्द्रित होना चाहिये।
- निर्देशन के कार्यक्रमों का सतत् मूल्यांकन करना चाहिये। और इस कार्यक्रम में लगे लोगों का इसके प्रति अभिवृित्त्ायों का भी मापन होना चाहिये क्योंकि इनका लगाव ही इस कार्यक्रम की सफलता का राज होता है।
- निर्देशन कार्यक्रमों का सम्यक संचालन हेतु अत्यन्त कुषल And दूरदर्षिता नेतृत्व अपेक्षित है।
निर्देशन के मूलभूत सिद्धान्त
निर्देशन के अधिकांश सिद्धान्तों के विषय में ऊपर पढ़ चुके है। यह स्पष्ट हो गया कि यह निर्देशन कार्मिकों, प्रKingों, शिक्षकों, विषेशज्ञों And निर्देशन का लाभ उठाने वाले सेवार्थियों का आपसी सहयोग उनकी निष्ठ तथा प्रेरणा पर निर्भर करता है। निर्देशन के मूलभूत सिद्धान्त हैं जिनपर यह कार्य करता है।
- निर्देशन जीवन पर्यन्त चलने वाली प्रक्रिया है जो कि जीवन के प्रत्येक चरण में उपयोगी होती है।
- निर्देशन व्यक्ति विषेश पर बल देता है। यह प्रक्रिया व्यक्ति को स्वतन्त्रता देते हुये उसे अपनी समस्याओं को सुलझाने हेतु उसकी Needओं के According ही सहयोग देता है।
- निर्देशन स्व निर्देशन पर बल देता है। यह प्रक्रिया सेवाथ्री को स्वयं अपनी दक्षता विकसित करने योग्य बनाती है।
- निर्देशन सहयोग पर आधारित प्रक्रिया है Meansात् यह सेवा प्रदाता And सेवाथ्री के आपसी तालमेल पर निर्भर करता है।
- निर्देशन Single पूर्व नियोजित And व्यवस्थित प्रक्रिया है। यह अपने विविध चरणों से आगे बढ़ती हुयी संचालित की जाती है।
- निर्देशन में सेवाथ्री से सम्बन्धित आवश्यक जानकारी को पूरी तरह से व्यवस्थित And गोपनीय रखी जाती है।
- यह कम से कम संसाधनों के अनुप्रयोग द्वारा अधिक से अधिक निर्देशन सेवाओं को उपलब्ध कराने के सिद्धान्त पर निर्भर करती है।
- निर्देशन के लिये जो भी संसाधन उपलब्ध हैं, के गहन Reseller में उपयोग का सिद्धान्त अपनाया जाता है।
- निर्देशन के कार्यक्रमों का सेवाथ्री की Needओं के अनुकूल संगठन कर Needओं की संतुश्टि पर ध्यान केन्द्रित Reseller जाता है।
- निर्देशन प्रक्रिया सेवाओं के विकेन्द्रीकरण पर बल देती है।
- निर्देशन सेवाओं में समन्वय लाने का कार्य Reseller जाता है।
निर्देशन की प्रविधियॉ
निर्देशन प्रक्रिया में सबसे अधिक आवश्यक होता है सेवाथ्री की व्यक्तिगत विशेषताओं , योग्यताओं या इच्छाओं को जानना। इनको जाने बिना परामर्ष द्वारा दिया जाने वाला सहयोग अप्रभावी हो जाता है। विद्यार्थियों की पृष्ठभूमि जानने की Need को बताते हुये रीविस And जुड ने इस प्रकार व्यक्त Reseller कि-’’छात्रों’’ की पृष्ठभूमि तथा उनके अनुभवों के सम्बन्ध में ज्ञान प्राप्त किये बिना उनके विकास में पथ प्रदर्शन करने का प्रयत्न असम्भव के लिये प्रयत्न करने के समान है।’’ जोन्स ने कहा है कि-’’चुनाव करने में जो सहायता दी जाये उसका आधार व्यक्ति से सम्बन्धित पूर्ण ज्ञान, उनकी प्रमुख Needये तथा उनके निर्णय को प्रभावित करने वाली परिस्थितियों का ज्ञान होना चाहिये।’’ निर्देशन हेतु निम्न सूचनायें प्राप्त की जाती है-सामान्य सूचनाये, पारिवारिक व सामाजिक वातावरण, स्वास्थ्य, विद्यालयी History और कक्षा कार्य का आलेख साफल्य, मानसिक योग्यता, अभियोग्यता, रूचियों, व्यक्तित्व, समायोजन स्तर And भविश्य की योजना। सूचनायें प्राप्त करने की दो विधियॉ हैं- 1. प्रमापीकृत परीक्षाये 2.अप्रमापीकृत परीक्षाये ।
वृतान्त अभिलेख-
यह अवलाकेन विधि की Single शाखा है। यह व्यक्तित्व अध्ययन में भी सहायक है। अध्यापक द्वारा छात्रों के प्रतिदिन के कार्यो का निरीक्षण Reseller जाये और उसको लिख ले। रेटस ल्यूइस के According-किसी छात्र के जीवन की महत्वपूर्ण घटना का प्रतिवेदन ही वृतान्त अभिलेख है। यह वास्तविक स्थिति में बच्चे के चरित्र तथा व्यक्तित्व सम्बन्धी अभिलेख होता है। इसमें सहयोग प्राप्त करना, प्राReseller तैयार करने, मुख्य अभिलेख प्राप्त करना व संक्षिप्तीकरण आदि चरण होते है।
आत्मकथा-
यह Single आत्मनिष्ठ विधि है। यह दो प्रकार की होती है-निर्देशित व व्यक्तिगत History। निर्देशित आत्मकथा में व्यक्ति अपने सम्बन्ध में लिखने के लिये स्वतन्त्र नहीं होता है। यह Single प्रश्नावली के Reseller में होती है। व्यक्तिगत History में किसी प्रकार के निर्देष नहीं होते है। छात्र अपने सम्बन्ध में सब कुछ लिखता है। इस प्रकार का description या गाथा क्रमबद्ध या व्यवस्थित नहीं होता है।
क्रम निर्धारण मान-
इस विधि से व्यक्तित्व तथा निश्पति का मापन होता है। यह Single आत्मनिष्ठ विधि है जिसमें वैद्यता तथा विष्वसनीयता कम पायी जाती है। रूथ स्ट्रैंग के According निर्देशित परीक्षण ही क्रम निर्धारण मान है। इसके प्रकार है- रेखांकित मापदण्ड 2. संख्यात्मक मापदण्ड 3. संचयी अंकविधि 4. पदक्रम मापदण्ड रेखांकित मापदण्ड का व्यापक Reseller में होता है इसमें Single रेखा बनी रहती है इसको कर्इ भागों में विभक्त Reseller जाता है। निर्णायक को इनमें से ही किसी Single पर चिन्ह लगाना होता है। संख्यात्मक मापदण्ड में अंकों को निश्चित उद्दीपकों के साथ सम्बन्धित कर देते हैं। इस मापदण्ड में छात्रों को गुणों के आधार पर अंक मिलते हैं। संचयी अंक विधि में व्यक्ति के गुणो का मूल्यांकन करके अंक प्रदान कर दिये जाते है। पदक्रम मापदण्ड में नियमानुसार उच्च से निम्न स्तर की ओर क्रम से स्थान दिये रहते हैं।
व्यक्ति-वृत अध्ययन-व्यक्ति-
वृत अध्ययन विधि का प्रयागे भी व्यक्ति से सम्बन्धित सूचनाये Singleत्रित करने के लिये Reseller जाता है। इस विधि का First उपयोग 19वीं शताब्दी के अन्तिम चरण में सुव्यवस्थित Reseller से हुआ। इसमें व्यक्ति से सम्बन्धित All सूचनायें Singleत्रित तथा व्यवस्थित की जाती है। छात्रों की कठिनाइयों के कारण ज्ञात करने के लिये उन सूचनाओं का अध्ययन Reseller जाता है।
समाज भिति-
Human Single सामाजिक प्राणी है। उसको समाज के अन्य व्यक्तियों के साथ रहना पड़ता है। एण्ड्रू And विली के According ‘‘समाजभिति Single रेखाचित्र है जिसमें कुछ चिन्ह और अंक किसी सामाजिक समूह के सदस्यों द्वारा सामाजिक स्वीकृति या त्याग का ढंग प्रदर्षित करने के लिये प्रयुक्त होते हैं। इसके द्वारा Single समूह के सदस्यों की पारस्परिक भिन्नता का पता लगाया जा सकता है। इसमें प्रमुख Reseller से दो विधियॉ काम में लायी जाती है-1. प्रश्नावली 2. निरीक्षण। समाजभिति का अध्ययन व्यक्तियों के पारस्परिक सामाजिक सम्बन्धों को प्रकट करता है।
प्रश्नावली-
यह Single आत्मनिष्ठ विधि है। गुड एव हैट ने प्रश्नावली की परिभाशा इस प्रकार दी है-सामान्यत: प्रश्नावली Word प्रश्नो के उत्तर प्राप्त करने की योजना की ओर संकेत करता है। व्यक्ति को स्वयं प्रश्नावली फार्म भरना होता है।’’ इसके दो Reseller होते है- अ) प्रमापीकृत प्रश्नावली-यह इन्वेन्ट्री कहलाती है इसको व्यक्तित्व के जॉच के लिये प्रयोग में लाया जाता है। प्रश्नावली-इस प्रश्नावली द्वारा व्यक्ति की साधारण सूचनायें प्राप्त की जाती हैं। प्रश्नावली के दो प्रकार होते हैं-
- बन्द प्रश्नावली-इसमें व्यक्ति हाँ या नही में उत्तर देता है स्वय कुछ नहीं लिखता।
- खुली प्रश्नावली-इस प्रकार की प्रश्नावली में प्रश्नो के आगे उत्तर लिखने के लिये रिक्त स्थान रहता है। इस विधि से प्रश्नावली बनाने व प्राप्त उत्तरों की व्याख्या करने में समय लगता है।
साक्षात्कार-
साक्षात्कार Single उद्देष्यपूर्ण संवाद है। विंघम और मूर के According यह Single गंभीर संवाद है जो साक्षात्कारजन्य संतोश की अपेक्षा Single निश्चित उद्देष्य की ओर उन्मुख होता है। साक्षात्कार आयोजित करने के उद्देश्य-परिचयात्मक, तथ्याश्रित, मूल्यांकनपरक, ज्ञानवर्धक तथा चिकित्सकीय प्रकृति वाली सूचनाए Singleत्र करना। इसकी दूसरी विषेशता है-साक्षात्कारकर्ता तथा जिससे साक्षात्कारदाता के मध्य परस्पर संबंध स्थापित होना है। इस अवसर का उपयोग साक्षातकर्ता से मित्रवत् अनौपचारिक बातचीत के लिए Reseller जाना चाहिए। उसे आत्मविष्वासपूर्ण मुक्त तथा वातावरण में बातचीत करने की अनुमति दी जानी चाहिए।
विभिन्न प्रकार के साक्षात्कार
जिन-जिन उद्देष्यों को ध्यान में रखकर साक्षात्कार Reseller जाता है उनके According ही साक्षात्कार भिन्न-भिन्न प्रकार के होते हैं। यदि किसी पद के लिए किसी प्रत्याषी का चयन करना है तो यह नियोजन या रोजगार संबंधी साक्षात्कार होगा। यदि साक्षात्कार का उद्देश्य तथ्य संग्रह या उनकी संपुश्टि करना है तो इसे तथ्यान्वेशी साक्षात्कार कहा जाएगा। इस प्रकार साक्षात्कारों का वर्गीकरण उनके उद्देश्यनुसार होता है। Second प्रकार के विभाजन का आधार साक्षात्कार करने वाले और साक्षात्कार देने वाले व्यक्तियों के मध्य संबंधों के स्वReseller के आधार पर ही साक्षात्कारों को वर्गीकृत Reseller जा सकता है। यदि साक्षात्कार में उपबोधक की मुख्य भूमिका है तो इसे उपबोधक केंद्रित साक्षात्कार कहा जाएगा। यदि यह उपबोधक-प्राथ्री को प्रमुखता देता है तो इसे उपबोध् ान-प्राथ्री केंद्रित साक्षात्कार कहा जाता है। कभी-कभी साक्षात्कार करने के तरीके से भी साक्षात्कार के प्रकार का निर्धारण होता है। साक्षात्कार के प्रमुख प्रकार हैं :-
- स्थान/रोजगार साक्षात्कार : इस प्रकार के साक्षात्कार का उद्देश्य पद के लिए प्रत्याशी की पात्रता का आकलन करना है। इसमें साक्षात्कारकर्ता अधिक बोलता है यानी प्रश्न पूछता जाता है और उसकी तुलना में साक्षात्कार देने वाला कम बोलता है यानी प्रश्न पूछता जाता है और उसकी तुलना में साक्षात्कार देने वाला कम बोलता है यानी वह केवल पूछे गये प्रश्नो के उत्तर ही देता है।
- तथ्यान्वेशी साक्षात्कार : अन्य स्रोतों से सकं लित आकंडा़े सूचनाओं तथा तथ्यों की संपुश्टि करना तथ्यान्वेशण साक्षात्कार का उद्देश्य होता है।
- निदानात्मक साक्षात्कार : इस प्रकार के साक्षात्कार का उद्देश्य समस्या के निदान खोजकर उसका उपचार करना है। इसमें साक्षात्कारकर्ता द्वारा साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति की समस्या का निदान करके उसके लक्षणों को ज्ञात करने का प्रयत्न Reseller जाता है। यानी साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति की समस्या का हल करने के लिए आवश्यक सूचनाओं का संकलन Reseller जाता है।
- उपबोधन प्रधान साक्षात्कार : उपबोधन प्रधान साक्षात्कार का उद्देष्य देने वाले व्यक्ति की अंतर्दृश्टि का विकास करना होता है। इस प्रकार के साक्षात्कार प्रारंभ सूचना के संकलन कार्य से होता है। फिर निर्देशन प्रक्रिया के साथ-साथ अग्रसर होता हुआ वह समस्या के मनोवैज्ञानिक उपचार के Reseller में समाप्त हो जाता है।
- व्यक्तिगत तथा सामूहिक साक्षात्कार : जब Single समहू में बहुत से लोगों का साक्षात्कार जिया जाए, तो इसे सामूहिक साक्षात्कार कहते हैं। किंतु मूलReseller में All प्रकार के सामूहिक साक्षात्कार व्यक्तिगत साक्षात्कार ही हुआ करते हैं, क्योंकि सामूहिक साक्षात्कार भी तो व्यक्ति के Reseller में साक्षात्कार देने वाले व्यक्तियों का ही साक्षात्कार है। सामूहिक साक्षात्कार का उद्देश्य समूह की सामान्य समस्याओं का संकलन करना और उनकी जानकारी प्राप्त करना है। व्यक्तिनिष्ठ साक्षात्कार में विषेश से संबंधित समस्याओं की ओर ही झुकाव रहता है। काल रोजर्स का व्यक्तिनिष्ठ साक्षात्कार के विषय में भिन्न मत हैं। उनका मत है कि व्यक्तिनिष्ठ साक्षात्कार का केंद्र बिंदु व्यक्ति को प्रभावित करने वाली समस्या नहीं है बल्कि उसका केंद्र बिंदु तो स्वयं व्यक्ति ही है। व्यक्तिनिष्ठ साक्षात्कार का उद्देष्य व्यक्ति विषेश की किसी Single समस्या का निराकरण करना नहीं होता अपितु साक्षात्कार देने वाले को इस प्रकार सहायता प्रदान करना है कि वह खुद ही इतना सक्षम हो जाए कि वह वर्तमान की और भविश्य में आने वाली All समस्याओं का कुषलतापूर्वक और समायोजित ढंग से सामना कर सके।
- सत्तावादी तथा गैैर-सत्तावादी साक्षात्कार (Authoritarian v/s Non authoritarian) सत्तावादी साक्षात्कार में सेवाथ्री तथा उसकी समस्याए पीछे छूट जाती हैं और साक्षात्कारकर्ता अपनी उन्नत स्थिति का लाभ उठाकर साक्षात्कार प्रक्रिया में हावी हो जाता है। गैर-सत्तावादी साक्षात्कार में साक्षात्कारकर्ता की अधिनायक जैसी भूमिका का वर्जन होता है। भले ही साक्षात्कार देने वाला व्यक्ति साक्षात्कारकर्ता को सत्ता संपन्न समझे फिर भी इस प्रकार के साक्षात्कार में साक्षात्कारकर्ता Single अधिनायक की भॉँति व्यवहार नहीं करता । वह सेवाथ्री की भावनाओं का आदर करता है, उनकी वर्जना नहीं करता। वह साक्षात्कार लेते समय कर्इ प्रकार की तकनीकों का उपयोग करता है, जैसे प्रत्याषी/उम्मीदवार को सुझाव देना, उत्साहित करना, उपबोधन देना, आष्वासन प्रदान करना, व्याख्या करना तथा सूचना प्रदान करना।
- निदेशित व अनिदेशित साक्षात्कार : निदेशित साक्षात्कार के अंतर्गत साक्षात्कारकर्ता सेवाथ्री को निर्देशन देता है। कभी वह सुझाव देकर, प्रोत्साहित कर अथवा डरा-धमकाकर अपने उपबोधन से मार्ग प्रषस्त करता है। किंतु अनिदेशित, साक्षात्कार में यह मान लिया जाता है कि साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति में स्वयं विकास और अभिवृद्धि करने की क्षमता विद्यमान है। अनिदेशित साक्षात्कारों में सेवाथ्री को अपनी भावनाओं और संवेगों को प्रकट करने की पूर्ण स्वतंत्रता रहती है। साक्षात्कार लेने वाला सेवाथ्री के भूतकाल में न तो झॉँककर देखने का प्रयत्न करता है और न ही उसे कोर्इ सुझाव देता है। वह प्राथ्री को पुनर्षिक्षित करने या परिवर्तित करने का प्रयत्न भी नहीं करता।
- संरचित व असंरचित साक्षात्कार : संरचित साक्षात्कार में निश्चयात्मक प्रश्नों की Single श्रंखला पूर्वनिश्चित होती है। साक्षात्कारकर्ता प्रश्न करते समय स्वयं को केवल उन्हीं बिंदुओं तक सीमित रखता है जिनकी साक्षात्कार के समय Discussion करना चाहता है। संरचित साक्षात्कार मे निश्चित प्रश्न ही पूछे जाते हैं जबकि असंरचित साक्षात्कार में ऐसा कोर्इ प्रतिबंध नहीं होता। उसमें साक्षात्कार लेने वाला अपने विचार व्यक्त करने में पूर्ण स्वतंत्र होता है। Discussion का विषय पूर्व निर्धारित नहीं होता। असंरचित साक्षात्कार में कभी-कभी ऐसी सूचनाए भी प्राप्त होती हैं जो देखने में महत्वहीन या तुच्छ लगें किंतु जब उनकी व्याख्या की जाती है तो वे अत्यधिक उपयोगी सिद्ध होती हैं।
- किसी भी साक्षात्कार की सफलता में निम्नलिखित बातों पर विषेश ध्यान दिया जाए: साक्षात्कार की परिस्थिति ऐसी हो जहॉँ अधिक अनुभवी और प्रशिक्षित व्यक्ति Second की बात भली प्रकार सुनने को तत्पर रहे।
- उपबोध्य को साक्षात्कार और उपबोधन की Need महसूस होनी चाहिए।
- उपबोधन प्रारंभ करने के पूर्व सेवाथ्री के संबंध में अपेक्षित All तथ्यों की पूरी जानकारी उपबोधक के सामने रहे।
- उपबोधक और उपबोध्य में सौहार्द पूर्ण संबंध स्थापित हो जाना चाहिए। यह Single प्रकार से उपबोधक विष्वास तथा समादरपूर्ण संबंध है जो कि विष्वास और Safty की भावना पर आधारित है।
- साक्षात्कार का प्रारंभ पारस्परिक मधुर और स्नेहपूर्ण अभिवादनों से होना चाहिए। इसमें ऐसी प्रतीत नहीं होनी चाहिए कि सेवाथ्री उपबोधक के अधीन है या कि Single व्यक्ति Second पर हावी है।
- Discussion को मूल मुद्दे तक ही सीमित रखना चाहिए।
- जब उपबोध्य अपनी बात कहना चाहे तो उसे अपनी बात कहने की अनुमति मिलनी चाहिए। उपबोध्य का विरोध करके अथवा उसको नीचा दिखाने से उपबोधक को कुछ भी हाथ लगने वाला नहीं है।
- साक्षात्कार का लक्ष्य उपबोध्य में समस्या को समझने की अंतदरृश्टि पैदा करना तथा उससे संबंधित परिणामों तक पहुचना होना चाहिए।
- निर्णय लेने में उपबोध्य को अग्रिम भूमिका निभाने का अवसर देना चाहिए।
- साक्षात्कार की समाप्ति Creationत्मक सुझावों से होनी चाहिए।
साक्षात्कार से लाभ
साक्षात्कार व्यक्ति के अध्ययन हेतु काम आने वाली Single अमानकीकृत तकनीक है। छात्रों को उपबोधन प्रदान करने में साक्षात्कार का प्राय: उपयोग होता है। यह वह तकनीक है जिसके अभाव में उपबोधन का कार्य संभव नहीं है। यह Single मूल्यवान तकनीक है जिससे सूचनाओं की प्राप्ति, समूह को सूचनाए प्रदान करना तथा नए कर्मचारी का चयन करना संभव होता है And व्यक्ति को समायोजन करने तथा समस्या के समाधान में सहायता प्रदान की जाती है। निर्देशन और उपबोधन की तकनीक के Reseller में साक्षात्कार के लाभ हैं :-
- निर्देशन की अन्य तकनीकों से जो कार्य संभव नहीं है उन्हें सम्पन्न करने हेतु निर्देशन-कार्य में व्यापक Reseller से प्रयुक्त होने वाली यह उत्तम तकनीक है। उदाहरणार्थ, व्यक्ति के निजी जीवन से संबधित अधिकतर ऑँकड़ों/सूचनाओं का अपेक्षाकृत अल्प समय और कम श्रम से संकलन करने में यह प्रविधि कारगर सिद्ध होती है।
- यह बहुत लचीली तकनीक है। विभिन्न पृश्ठभूमि के All प्रकार के व्यक्तियों की All परिस्थितियों में यह तकनीक बहुत उपयोगी है।
- यह बहुतेरे उद्देष्यों की पूरक है। आप अपना उद्देष्य निर्धारित कर तद्नुसार साक्षात्कार कर सकते हैं। तथ्यान्वेशी साक्षात्कार का आयोजन करना चाहें तो आप छात्र के माता-पिता, मित्र, संबंधी, अध्यापक अथवा जो भी व्यक्ति उसके अधिक सम्पर्क में आया हो, उससे साक्षात्कार करें।
- इसका बहुत अधिक उपचारात्मक मूल्य भी है। साक्षात्कारकर्ता और साक्षात्कार देने वाले व्यक्ति के मध्य में साक्षात्कार आमने-सामने का संबंध स्थापित करता है। प्रत्यक्ष संबंध स्थापित होने से सेवाथ्री की समस्या के प्रति अंतदर्ृश्टि का विकास होता है। साक्षात्कारकर्ता को सेवाथ्री के संबंध में जो जानकारी प्राप्त होती है उसका बहुत उपचारात्मक महत्व है।
- समस्या के निदान में साक्षात्कार सहायक है। प्राथ्री द्वारा अनुभूत समस्या के कारणों का उद्घाटन करने में यह बहुत सहायक है। इसलिए कुछ मनोवैज्ञानिक साक्षात्कार को निदान और उपचार के बहुत उपयोगी तकनीक मानते हैं।
- आमने सामने के सम्पर्क से सेवाथ्री के व्यक्तित्व के संबंध में बहुत से महत्वपूर्ण सूत्र हाथ लग जाते हैं। मुख-मुद्रा, भावभंगिमा तथा बैठने का ढंग आदि मनोभावों की प्रतीति कराने में सहायक हैं तथा भावना और अभिवृत्ति को अप्रत्यक्ष Reseller से उद्घाटित कर देते हैं।
- साक्षात्कार सेवाथ्री के लिए भी उपादेय है। इससे उसे अपनी समस्या तथा स्वयं के बारे में विचार करने में सहायता मिलजी है। साक्षात्कार ही वह सर्वाधिक उपयोगी परिस्थिति होती है, जब सेवाथ्री अपने बारे में, अपनी योग्यताओं, कौषलों, अभिरूचियों तथा अपने कार्यजगत के बारे में समुचित समझ प्राप्त करता है। 8. साक्षात्कार के माध्यम से उपबोधक तथा सेवाथ्री दोनों में ही अपने-अपने विचार तथा अभिवृत्तियों को पारस्परिक संवाद द्वारा प्रकट करने की इच्छा जाग्रत होती है।
Single तकनीक के Reseller में साक्षात्कार की सीमाए
- साक्षात्कार Single व्यक्तिनिष्ठ तकनीक है। सेवाथ्री के बारे में सूचनाओं का संकलन करने में इसके अंदर वस्तुनिष्ठता की कमी है। साक्षात्कार के माध्यम से संकलित सूचनाओं की व्याख्या में साक्षात्कारकर्ता का व्यवहार पक्षपात और पूर्वाग्रहों से ग्रस्त हो सकता है।
- व्यक्तिगत पक्षपात हो तो साक्षात्कार कम विष्वसनीय और अवैध होगा।
- साक्षात्कार के परिणामों की व्याख्या करना बहुत कठिन है।
साक्षात्कार की उपयोगिता सीमित है। साक्षात्कार की सफलता साक्षात्कारकर्ता के व्यक्तित्व के गुणों पर निर्भर करती है। वह किस प्रकार से साक्षात्कार ले रहा है। यदि साक्षात्कारकर्ता Singleपक्षीय बातचीत के द्वारा Singleाधिकार बनाए हुए है और सेवाथ्री जो कुछ कह रहा है, उसे सुना-अनसुना कर रहा है तो ऐसी स्थिति में साक्षात्कार का मूल्य समाप्त हो जाता है।
निर्देशन में सूचना सकंलन की प्रमापीकृत विधियॉ
निर्देशन कार्यक्रमों में प्रमापीकृत परीक्षाओं को महत्वपूर्ण स्थान दिया गया है। क्योंकि-
- प्रमापीकृत परीक्षायें निश्पक्ष And वस्तुनिष्ठ विधि है।
- इसमें सूचनायें Singleत्रित करने में समय लगता है।
- परीक्षाओं द्वारा व्यक्तित्व सम्बन्धी समस्याओं का अप्रत्यक्ष Reseller से पता लगाना सम्भव है। प्रमापीकृत परीक्षाओं की उपयोगिता अधिक है परन्तु इनकी कुछ परिसीमायें हैं। जो कि वैधता, विष्वसनीयता, उपयोगिता तथा प्रतिदर्शी के क्षेत्रों में पायी जाती हैं। इनका विभाजन Reseller जाता है :-
- बुद्धि परीक्षायें
- साफल्य परीक्षण
- अभियोग्यता परीक्षायें
- रूचि परीक्षायें
- व्यक्तित्व परीक्षायें
बुद्धि परीक्षण-
First 1875 में व्यक्तिगत भदे पर ध्यान केिन्द्रत Reseller गया और फिर अनेक प्रयोग व्यक्तिगत विभेद पर किये गये। इनमें कैटिल And गाल्टन के नाम प्रमुख हैं। और बुद्धिमापन का कार्य मुख्य Reseller में बिने ने प्रारम्भ Reseller। 1905 में First बुद्धि परीक्षण निकाला गया और 1908 And 1911 में इस परीक्षण का संषोधन Reseller गया और फिर बिने ने सहयोगियों से साथ मिलकर ‘‘स्टेनफोर्ड-बिने टेस्ट’’ निकाला। उनके According-
मानसिक आयु (M.A.)
बुद्धि लब्धि (I.Q.)= X —————-100
वास्तविक आयु (C.A.)
बुद्धि परीक्षण के इस टेस्ट को कर्इ देशों में अनुवाद Reseller गया यह मुख्यत: दो प्रकार में विकसित हुये।
- शाब्दिक बुुद्धि परीक्षण-भारत में 1922 में First बुद्धि परीक्षण का निर्माण Reseller गया जब डॉ0 सी0एच0 राइस ने First ‘‘हिन्दुस्तानी ‘बिने’ परफारमेन्स पाइन्ट स्केल’’ का निर्माण Reseller। वी0वी0 कामथ ने सन् 1935 को फिर दूसरा प्रयास Reseller। बाद में पं0 लल्ला शकर झा ने सन् 1933 में ‘‘सिम्पल मेन्टल टेस्ट’’ को बनाया। 1936 में डॉ0 एस0 जलोटा ने सामूहिक बुद्धि परीक्षण का निर्माण Reseller। सन् 1937 में श्री एल0 के0 शाह ने सामूहिक मानसिक योग्यता परीक्षण का निर्माण Reseller। सन् 1950-60 के मध्य केन्द्रीय शिक्षा संस्थान (CIF) दिल्ली तथा मनो-वैज्ञानिक शाला इलाहाबाद ने विभिन्न आयु वर्ग के बालकों के लिये सामूहिक शाब्दिक बुद्धि परीक्षण अलग-अलग तैयार किये। शाब्दिक बुद्धि परीक्षण का निर्माण Wordों के माध्यम से Reseller जाता जिसमें किसी भाशा लिपि का प्रयोग होता है।
- अशाब्दिक बुद्धि परीक्षण-वे बुद्धि परीक्षण जिनमें परीक्षण के निर्माण में किसी भाशा लिपि को माध्यम नहीं बनाया जाता अशाब्दिक बुद्धि परीक्षण कहलाते हैं। भारत में First अहमदाबाद के प्रो0 पटेल ने गुडएनफ को बनाया। बड़ोदरा की प्रमिला पाठक ने ‘‘ड्रा ए मैन टेस्ट’’ का Indian Customer परिस्थितियों के लिए अनुकूलन Reseller। सन् 1938 में मेन्जिल्य ने Single मौलिक अशाब्दिक परीक्षण बनाया। 1942 में विकरी तथा ड्रेयर ने भी Single परीक्षण बनाया। 1967 में एस0 चटर्जी व एम0 मुकर्जी ने Single परीक्षण बनाया।
निष्पादन परीक्षण-
इसके अतिरिक्त कुछ एसे भी परीक्षण बने जाे कि निश्पादन पर आधारित थे इनमें प्रमुख गोडार्ड फार्म बोर्ड, गुडएनफ का ड्राइंग ए मैन टैस्ट, कोहलर ब्लॉक डिजाइन टेस्ट इत्यादि हैं। इन All परीक्षणों को Indian Customer Needओं के According Resellerान्तरित कर लिया गया।
ये मुख्यत: सुविधा व सरलता के आधार पर निम्न प्रकार के होते हैं।
- व्यक्तिगत परीक्षण-यह परीक्षण Single समय में Single ही व्यक्ति पर प्रशासित किये जा सकते हैं। बिने के परीक्षण व्यक्तिगत परीक्षण थे। इनमें मुख्यत: बिने स्टेनफोर्ड, वैष्लर वैल्यू, बर्ट के तर्कषक्ति मिनेसोटा पूर्व विद्यालय परीक्षण।
- समूहिक परीक्षण- इन परीक्षणा के Single ही समय पर परे समहू पर प्रशासित किये जा सकता हैं ये परीक्षायें अत्यन्त उपयोगी हैं। जैसे कि आर्मी अल्फा परीक्षण, आर्मी वीटा परीक्षण, आर्मी जनरल, क्लासीफिकेषन, क्हूलमैन एण्डरसन बुद्धि परीक्षण।
- शक्ति परीक्षण – इस परीक्षण के द्वारा व्यक्ति की किसी Single विषेश क्षेत्र से सम्बन्धित शक्ति की परीक्षा ली जाती है। इसमें समय निर्धारित नहीं होता।
- गति परीक्षण – इनमें शक्ति परीक्षण के विपरीत प्रश्न जटिलता में समान हाते े हैं और समय निर्धारित होता है।
- शाब्दिक परीक्षण – इनको हल करने हेतु Wordों का प्रयागे Reseller जाता है।
- क्रियात्मक परीक्षण – इस प्रकार की परीक्षाओं में समस्या का समाधान Wordों द्वारा प्रकट नहीं करना पड़ता है बल्कि उसे कुछ कार्य द्वारा हल करना पड़ता है जैसे-चित्र विधान चित्रपूर्ति, त्रुटि निकालना, वर्ग निर्माण इत्यादि।
रूचि परीक्षण –
रूचि को हम शाब्दिक Reseller में सम्बन्ध की भावना कह सकते हैं। बिंघम ने रूचि को परिभाशित करते हुए लिखा कि-’’रूचि किसी अनुभव में लिप्त हो जाने व चालू रखने की प्रवृत्ति है।’’ रूचि वास्तव में कोर्इ पृथक इकार्इ न होकर Human व्यवहार का Single अहम पहलू है। रूमेल रेमर्ज व गेज ने लिखा कि-रूचियॉँ सुखद व दुखद भावनाओं तथा पसन्द न पसन्द व्यवहार के आकर्शण व विकर्शण की प्रतिच्छाया के Reseller में दर्षित होती है।’’
वास्तव में यह माना गया कि रूचियों का जन्म मनोशारीरिक कारणों से होता है और उसके विकास पर वातावरण And वंशानुक्रम दोनों का प्रभाव पड़ता है। सुपर ने स्पष्ट Reseller कि रूचियॉँ जन्मजात न होकर मुख्य Reseller में अर्जित होती है। रूचियॉँ मुख्यत: निम्न प्रकार की होती है।
- प्रदर्र्शन रूचि – वे रूचियॉँ जिन्हें व्यक्ति अपने Wordों से व्यक्त न करके व्यवहार से व्यक्त करता है
- अभिव्यक्ति रूचि –जिन रूचियों को व्यक्ति Wordों के माध्यम से व्यक्त करता है।
- प्रपत्रित रूचि-जिन रूचियों का ज्ञान प्रमापीकृत रूचि प्रपत्रों तथा परीक्षणों के मायम से होता है उन्हें प्रपत्रित रूचि कहते हैं।
- परीक्षित रूचि-जिन रूचियों का नाम विभिन्न निश्पति परीक्षणों से हो व व्यक्ति का किसी विषय में ज्ञान व ज्ञान की उपलब्धि समान हों वे परीक्षित रूचि होती है।
रूचि मापन – उपयुक्त व्यवसाय निर्धारित करने तथा उपयुक्त निर्देशन दने े के लिये रूचि मापन आवश्यक है। रूचि परीक्षण का First निर्माण 1919 में ‘‘कार्नीगे इन्स्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी’’ में प्रारम्भ हुआ। इसके पष्चात् मूर ने 1921 में इन्जीनियर्स की रूचियों का पता लगाने हेतु रूचि तालिका बनायी। 1924-25 में क्रेग ने विभिन्न प्रकार की रूचियों के मापन हेतु रूचि तालिका बनायी। कुछ प्रमुख रूचि परीक्षण हैं-
- स्ट्रांग की व्यावसायिक रूचि परीक्षण-स्टने फोर्ड विष्वविद्यालय के र्इ0 क0े स्ट्रांग ने व्यावसायिक रूचि परिसूची का निर्माण व प्रमापीकरण Reseller। इसमें अनेक प्रकार के 420 पद हैं। ये पद विभिन्न व्यवसायों, मनोरंजन क्रियाओं, विद्यालय विषय And व्यक्तिगत विषेशताओं से सम्बन्धित हैं। इस परिसूची के पॉँच प्रतिReseller हैं – First पुरूशों को, द्वितीय स्त्रियों को, तृतीय पुरूशों को, चतुर्थ स्त्रियों के लिये (जो अध्ययनरत हों) अन्तिम व पंचम पुरूशों के लिये है।
- हेपनर की व्यावसायिक रूचि पर लब्धि-हेपनर ने व्यावसायिक रूचि लब्धि के हेतु Single महान कार्य Reseller। हेपनर ने चार प्रमुख कार्यक्षेत्रों की चेकलिस्ट बनायी। इसमें प्रोफेषन (24), वाणिज्य आकुपेषन (24), दक्ष व्यापार (20) तथा स्त्रियों से सम्बन्धित व्यवसाय 24 सम्मिलित हैं।
- क्लीटन की व्यावसायिक रूचि तालिका-क्लीटन ने स्त्री व पुरूशा े के लिये अलग-अलग रूचि तालिका बनायी है पुरूशों के प्रतिReseller में 630 पद हैं जिनकी जॉँच की जाती है। स्त्रियों के लिये भी 630 पद हैं।
- कूडर अधिमान लेखा-कूडर द्वारा निर्मित इस लेखा के कर्इ प्रतिReseller हैं जिसमें 168 पद हैं। प्रत्येक पद में तीन क्रियायें करनी पड़ती हैं। इन क्रियाओं को फिर मान के अनुReseller चयनित Reseller जाता है। इस पूरे लेखे में कुल मिलाकर 10 रूचि मापदण्ड हैं। अन्य रूचि तालिकायें हैं।
- मानसून अक्यूपेशनल इन्टरेस्ट ब्लेंक
- ओब्रेलन वोकेशनल इन्टरेस्ट इन्क्वायरी
- ली – थोरोप इन्वेन्टरी
- थस्र्टन इन्टरेस्ट सीड्यूल
निष्पति And व्यक्तित्व परीक्षण
निष्पति विद्यालय में विषय सम्बन्धी अर्जित ज्ञान की परीक्षा है। वास्तव में निष्पति या दक्षता परीक्षा किसी व्यक्ति द्वारा सीखे गये कार्य या दक्षता के स्तर को जानने हेतु संचालित की जाती है। निष्पति परीक्षण को साफल्य परीक्षण भी कहते हैं।
निष्पति परीक्षा के प्रकार-
- वे परीक्षायें जो किसी व्यवसायगत दक्षता को मापने हेतु बनायी जाती हैं व्यवसाय परीक्षा कहलाती है।
- वे परीक्षायें जो विद्यालय के पाठ्यक्रम में किसी Single विषय के अर्जित ज्ञान को नापने हेतु बनायी जाती है। विद्यालय निश्पति परीक्षण कहलाते हैं।
व्यक्तित्व परीक्षण
व्यक्तित्व वास्तव में वह समग्रता है जिसमें व्यक्ति के सम्पूर्ण वाह्य And आन्तरिक गुण व अवगुणों का समावेशित दिग्दर्षन होता है। व्यक्तित्व में वे All मानसिक प्रक्रियायें सम्मिलित हैं जो क्रियाषील व्यक्ति के व्यक्तित्व पर प्रभाव डालती है। निर्देशन And परामर्ष में व्यक्तित्व के अध्ययन में बड़ा महत्व है। व्यक्तित्व Word की उत्पित्त्ा लेटिन Word ‘‘परसोना’’ से हुयी है। इसका अभिप्राय मुखौटा होता था। व्यावहारिकवादी केम्प के According-’’व्याक्तित्व आदतों की उन अवस्थाओ का समन्वय है जो वातावरण के साथ व्यक्ति के विशिष्ट समायोजन का प्रतिनिधित्व करती है।’’ वारेन और कारमीकल के According-’’मनुश्य की विकासावस्था के किसी भी स्तर पर मनुश्य की समस्त अवस्था ही व्यक्तित्व है।’’ इसी प्रकार से मोर्टन प्रिन्स ने व्यक्तित्व सम्बन्धी अपनी विचारधारा प्रकट करतें हुये कहा कि-’’व्यक्तित्व All जैविक जन्मजात प्रवृित्त्ायों, इच्छाओं, भूख And मूल प्रवृित्त्ायों का योग है तथा इसमें अनुभव से प्राप्त अर्जित प्रवृित्त्ायॉँ भी निहित हैं।’’ वुडवर्थ ने इसे वह व्यवहार कहा जो किसी को प्रिय लगता है किसी को अप्रिय। परन्तु व्यक्तित्व की All परिभाशाओं में आलपोर्ट की परिभाशा सर्वश्रेश्ठ मानी जाती है जिसमें वे कहते हैं-’’व्यक्तित्व मनोदैहिक व्यवस्थाओं का वह गत्यात्मक संगठन है जो वातावरण के साथ उसके अपूर्व अभियोजन का निर्धारण करता है।’’ व्यक्तित्व का विकास में वंशानुक्रम And वातावरण दोनों ही निर्धारक कहलाते हैं।
व्यक्तित्व मापन-
व्यक्तित्व मापन का History पुराना है जिसमें चहे रा देखकर व्यक्तित्व की पहचान की जाती थी कुछ समय बाद लिखावट देखकर व्यक्तित्व के पहचान करने की विधि का भी निर्माण हुआ जो ग्राफोलोजी कहलाती है। व्यक्तित्व का मापन की विधियों की सूची नीचे दी जा रही है।
- रोशार्क परीक्षण-इस परीक्षण का निर्माण स्विटजरलैण्ड निवासी हरमन रोर्षाक ने Reseller। इसमें 10 कार्ड है जो विभिन्न आकार व रंग के स्याही के धब्बों से परिपूर्ण हैं। 10 कार्ड में से 5 कार्ड काले, 2 पर काले व लाल तथा 3 पर रंग-बिरंगे धब्बे हैं। यह 1921 में प्रकाशित हुआ। इसका प्रयोग व्यक्तिगत होता है और इसके द्वारा व्यक्ति के गुणों व सामान्य प्रवृत्तियों का पता लगाया जा सकता है।
- टी0 ए0 टी0 परीक्षण – यह प्रासंिगक अन्तबोध परीक्षण भी कहलाता है। इसका निर्माण मुरे ने 1938 में Reseller। इसके अन्तर्गत चित्र श्रंखला में 20 चित्रों के कार्ड हैं जिसे प्रस्तुत करने पर परीक्षाथ्री के विभिन्न मानसिक अवस्थाओं, भावों, प्रवृत्तियों And अनुभूतियों को मालूम हो जाता है। परीक्षाथ्री द्वारा चित्र वर्णन का विष्लेशण Reseller जाता है और उसके व्यवहार, अभिवृत्ति कल्पना शक्ति, विचारों व गुणों का पता लगाया जाता है।
- Word साहचर्य विधि-इस विधि का प्रयोग गाल्टन ने अपनी मनोविज्ञान प्रयोगशाला में 1879 में Reseller। गाल्टन के साथ बुण्ट ने दिया। इसमें 75 Wordों की Single सूची बनायी गयी है। साहचर्य Wordों के स्मरण से कुछ मानसिक चित्र व प्रतिमायें मस्तिश्क में अंकित हो जाती है। इसे साहचर्य काल कहा गया इसके माप हेतु क्रोनोमीटर का प्रयोग Reseller गया फिर उसका विष्लेशण Reseller और निश्कर्श प्रतिपादित किये गये। गाल्टन के पष्चात युग ने 100 Wordों की Single सूची तैयार की। युग ने इस परीक्षण से संवेगात्मक ग्रन्थियों को पता लगाने का प्रयास Reseller।
- वाक्यपूर्ति परीक्षण-इस परीक्षण विधि का First प्रयागे पाइन तथा टेण्डलर ने 1930 में Reseller। इसमें 20 वाक्य थे। इसके उपरान्त हीलर, कैमरोन, लार्ज, थार्नडाइक व एसेनफोर्ड ने इस विधि में संषोधन Reseller। इस विधि में विष्वसनीयता 0.83 पायी गयी है।
- खेल तथा डा्रामा विधि-यह व्यक्तित्व मापन की सर्वोत्तम विधि है क्योंकि परीक्षाथ्री इसमें अपनी भावनाओं का स्वतंत्र प्रदर्षन करता है। इस विधि के निर्माता प्रसिद्ध मनोवैज्ञानिक जे0 एल0 मोरेनो थे। इसमें रोगग्रस्त व्यक्ति को प्रमुख भूमिका दी जाती है।
अभियोग्यता परीक्षण-
आप पूर्व में व्यक्तित्व मापन के विषय में पढ़ चुके हैं निर्देशन के क्षेत्र में अभियोग्यता का ज्ञान परामर्षदाता को परामर्ष देने में सहायक होता है। वारेन ने अभियोग्यता को पारिभाशित करते हुए लिखा है कि अभियोग्यता वह दशा या गुणों का Reseller है जो व्यक्ति की उस योग्यता की ओर संकेत करती है जो प्रशिक्षण के बाद ज्ञान, दक्षता या प्रतिक्रियाओं को सीखता है। टै्रक्सलर ने लिखा – अभियोग्यता व्यक्ति की दशा, गुण या गुणों का संग्रह है जो सम्भावित विस्तार की ओर संकेत करती है जो कि व्यक्ति कुछ ज्ञान, दक्षता या ज्ञान और दक्षता का मिश्रण प्रशिक्षण द्वारा प्राप्त करेगा। वास्तव में अभियोग्यता वर्तमान दशा है जो व्यक्ति की भविश्य क्षमताओं की ओर संकेत करती है। सुपर ने विशिष्टता, Singleात्मक Creation, सीखने में सुविधा स्थिरता अभियोग्यता की चार विषेशतायें बतायी हैं।
- अभियोयता परीक्षायें- विद्वानों ने निम्न प्रकार की अभियोग्यता पराीक्षाओं का निर्माण Reseller है जो कि अधिकांषत: विभिन्न व्यवसायों से सम्बन्धित है इनमें से कुछ के विषय में हम जानेंगें।
- कलर्कियल एपटीट्य्यूूट टेस्ट कल्कि व्यवसाय हेतु अभियोग्यता परीक्षा- लिपिक अभियोग्यता परीक्षा में कार्यालयों के विविध कार्यों को सुचारू Reseller से करने हेतु विभिन्न गुणों को मापा जाता है। इसमें मुख्यत: गति And शुद्धता को मापा जाता है।
- मिनिसोटा वोकेशनल टेस्ट फॉर क्लर्कियल वक्र्स – इस परीक्षण को व्यक्तिगत व सामूहिक दोनों परीक्षणों के लिये उपयोग Reseller जाता है। इसके प्रयोग से टाइपिंग, पत्रों को छॉँटना फाइलों का कार्य तथा बुक कीपिंग आदि अभियोग्यता का मापन होता है।
- नेशनल इन्सटीट्य्यूट ऑफ इन्डस्ट्रियल साइकोलेलॉजी क्लर्किर्ययल टेस्ट –यह ब्रिटिष नेषनल इन्सटीट्यूट ऑफ इन्डस्ट्रियल साइकोलॉजी द्वारा निर्मित है इसे Seven भागों में बॉँटा गया है।
- यान्त्रिक अभियोग्यता – विभिन्न यान्त्रिक अवयवो का मिश्रण ही यान्त्रिक अभियोग्यता है। इसमें स्थान, हस्त निपुणता, शक्ति, गति, धैर्य आदि यान्त्रिक योग्यतायें आती हैं। जैसे कि –
- मिनिसोटा मेकेनिकल एपटीट्य्यूड टेस्ट – इस परीक्षा का निर्माण First जूनियर हार्इस्कूल के छात्रों के लिये हुआ इसमें 33 यान्त्रिक वस्तुयें तीन सन्दूकों में रखी रहती है।
- स्टेनक्विस्ट टेस्ट फॉर मेकेनिकल एपटीट्य्यूड – इस परीक्षण का निर्माण स्टैनक्विस्ट नामक व्यक्ति ने Reseller। इस परीक्षा में भी निश्चित समय मे निश्चित यान्त्रिक विधियों द्वारा कुछ हिस्सों को जोड़ने के लिये कहा जाता है।
- -ओरूरकी मेकेनिकल एपटीट्य्यूड टेस्ट-यह परीक्षा इस सिद्धान्त पर आधारित है कि जो व्यक्ति यान्त्रिक अभियोग्यता रखते हैं वे उन व्यक्तियों की अपेक्षा मषीन सम्बन्धी ज्ञान शीघ्र सीख लेते हैं।
- संगीत अभियोग्यता-संगीत अभियोग्यता का ज्ञान यान्त्रिक Reseller, चित्राकंन का Reseller, व व्याख्यात्मक Reseller से प्रकट होने पर होता है।
- सीशोर म्यूजिकल टेस्ट – इस परीक्षण का निर्माण सीशारे द्वारा Reseller गया। इस परीक्षण के अन्तर्गत संगीत अनुभूति संगीतात्म क्रियायें, संगीतात्मक बुद्धि तथा संगीतात्मक भावनाओं को जानने का प्रयास Reseller जाता है।
- कला अभियोग्यता – इसके परीक्षण हेतु दो विधियॉँ अपनायी जाती है Single तो मौलिक चित्र बनाना दूसरा पूर्व निर्मित चित्रों के गुण व दोशों का विवेचन करवाया जाता है। कुछ प्रसिद्ध कला अभियोग्यता परीक्षण हैं – हार्न की कला अभिरूचि सूची, नौबर की कला अभियोग्यता परीक्षण, मैकऐडोरी का कला परीक्षण।