नगरीय विकास क्या है ?

भौगोलिक And प्राकृतिक भू-भाग को समाज वैज्ञानिकों ने विविध आधारों पर बाँटा है: महाद्वीप And महादेशीय आधार पर वर्गीकरण, राष्ट्र-राज्यों के आधार पर वर्गीकरण, सामाजिक-आर्थिक प्रणालियों के आधार पर वर्गीकरण, इत्यादि। समाज ऐतिहासिक विकास की प्रक्रिया को आधार बनाकर विश्व के भू-भागों को दो श्रेणियों में विभक्त Reseller जा कसता है: ग्रामीण क्षेत्र And नगरीय क्षेत्र।

नगर, नगरीयता And नगरीकरण की अवधारणा 

आज वैष्विक स्तर पर दुनिया की लगभग आधी आबादी नगरीय क्षेत्रों में निवास कर रही है। लेकिन विश्व के नगरीय रुपान्रतण का प्रतिमान अलग-अलग राष्ट्रों में समरुपीय नहीं है। Single ओर जहाँ विकसित देश- अमेरिका, यूरोप की भाँति लैटिन अमरीका And कैरिबियन द्वीप समूह में लगभग तीन चौथार्इ आबादी नगरीय क्षेत्रों में रह रही है वहीं दूसरी ओर भारत, चीन, इंडोनेशिया And अफ्रीका में लगभग दो-तिहार्इ आबादी अभी ग्रामीण क्षेत्रों में ही रह रही है। अरब राष्ट्रों की लगभग आधी आबादी ग्रामीण And शेष आधी नगरीय आबादी का प्रतिमान अलग-अलग क्षेत्रों में भिन्न-भिन्न है।

1. नगर 

नगरीय क्षेत्र‘ या ‘नगर’ कया है? इस Word का प्रयोग दो Means में होता है-जनसांख्यिकीय रुप में और समाजशास्त्रीय रुप में। First Means में जनसंख्या के आकार, जनसंख्या की सघनता, और Second Means में विशमता, अवैयक्तिकता, अन्योन्याश्रय, और जीवन की गुणवत्ता पर ध्यान केन्द्रित रहता है। जर्मन समाजशास्त्री टोनीज (1957) ने ग्रामीण और नगरीय समुदायों में भिन्नता सामाजिक संबंधो और मूल्यों के द्वारा बतार्इ है। ग्रामीण गेमिनषेफ्ट समुदाय वह है जिसमें सामाजिक बन्धन कुटुम्ब और मित्रता के निकट के व्यक्तिगत बंधनों पर आघारित होते हैं और परम्परा, सामंजस्य और अनौपचारिकता पर बल दिया जाता है जबकि नगरीय गैसिलशेफ्ट समाज में अवैयक्तिक और द्वितीयक संबंध-प्रधान होते हैं और व्यक्तियों में विचारों का आदान-प्रदान औपचारिक, अनुबन्धित और विशेष कार्य या नौकरी जो वे करते हैं उन पर आधारित होते हैं। गैसिलशेफ्ट समाज में उपयोगतावादी लक्ष्यों और सामाजिक संबंधों के प्रतिस्पर्द्धा के स्वरुप पर बल दिया जाता है।

मैक्स वेबर (1961:381) और जार्ज सिमल (1950) ज्ौसे अन्य समाजषास्त्रियों ने नगरीय वातावरण में सघन आवासीय परिस्थितियों, परिवर्तन में तेजी, और अवैयक्तिक अन्त:क्रिया पर बल दिया है। लुर्इस वर्थ ने कहा है कि समाजशास्त्रीय उद्देश्यों के लिये Single नगर की यह कह कर परिभाषा की जा सकती है कि वह सामाजिक रुप से पंचमेल/विशमरुप व्यक्तियों की अपेक्षाकृत बड़ी, सघन, और अस्थार्इ बस्ती है। रुथ ग्लास (1956) ज्ौसे विद्वानों ने नगर को जिन कारकों द्वारा परिभाशित Reseller है वे हैं जनसंख्या का आकार, जनसंख्या की सघनता, प्रमुख आर्थिक व्यवस्था, प्रशासन की सामान्य Creation, और कुछ सामाजिक विशेषतायें।

भारत में ‘कस्बे’ की जनगणना की परिभाषा 1950-51 तक लगभग Single ही रही, परन्तु 1961 में Single नर्इ परिभाषा अपनार्इ गर्इ। 1951 तक, ‘कस्बे’ में सम्मिलित थे: (1) मकानों का संग्रह जिनमें कम से कम 5000 व्यक्ति स्थार्इ रुप से निवास करते हैं, (2) प्रत्येक म्युनिसिपेलिटि/ कार्पोरेषन/किसी भी आकार का अधिसूचित क्षेत्र, और (3) सब सिविल लाइनें जो म्यूनिसिपल इकार्इयों में सम्मिलित नहीं हैं। इस प्रकार कस्बे की परिभाषा में प्रमुख फोकस जनसंख्या के आकार पर न होकर प्रशासनिक व्यवस्था पर अधिक था। 1961 में किसी स्थान को कस्बा कहने के लिये कुछ मापदण्ड लगाये गये। ये थे: (अ) कम से कम 5000 की जनसंख्या, (ब) 1000 व्यक्ति प्रति वर्ग मील से कम की सघनता नहीं, (स) उसकी कार्यरत जनसंख्या का तीन-चौथार्इ गैर-कृषिक गतिविधियों में होनी चाहिये, और (द) उस स्थान की कुछ अपनी विशेषतायें होनी चाहिये और यातायात और संचार, बैंकें, स्कूलों, बाज़ारों, मनोरंजन केन्द्रों, अस्पतालों, बिजली, और अखबारों आदि की नागरिक सुख सुविधायें होनी चाहिये। परिभाषा में इस परिवर्तन के फलस्वरुप 812 क्षेत्र (44 लाख व्यक्तियों के) जो 1951 की जनगणना में कस्बे घोशित किये गये थे उन्हें 1961 की जनगणना में कस्बा नहीं माना गया।

1961 का आधार 1971, 1981, 1991 की जनगणनाओं में भी कस्बे की परिभाषा करते समय अपनाया गया। अब जनसांख्यिकीय रुप में उन क्षेत्रों को जिनकी जनसंख्या 5000 और 20000 के बीच है छोटा कस्बा माना जाता है, जिनकी 20000 और 50000 के बीच है उन्हे बड़ा कस्बा माना जाता है।, जिनकी जनसंख्या 50000 और Single लाख के बीच है, उन्हें शहर कहा जाता है, जिनकी Single लाख और 10 लाख के बीच उन्हे बड़ा “ाहर कहा जाता है, जिसकी 10 लाख और 50 लाख के बीच है उसे विशाल नगर कहा जाता है और जिसमें 50 लाख से अधिक व्यक्ति हैं उसे महानगर कहा जाता है।

2. नगरीयता 

लुर्इस वर्थ (1938:49) ने नगरीयता की चार विशेषतायें बतलार्इ हैं:-

  1. स्थायित्व: Single नगर निवासी अपने परिचितों को भूलता रहता है और नये व्यक्तियों से संबन्ध बनाता रहता है। उसके पड़ोसियों से And क्लब आदि जैसे समूहों के सदस्यों से अधिक मैत्रीपूर्ण संबन्ध नहीं होते इसलिये उनके चले जाने से उसे कोर्इ चिन्ता नहीं होती। 
  2. सतहीपन: Single नागरिक कुछ ही व्यक्तियों से बातचीत करता है और उनसे भी उसके संबन्ध अवैयक्तिक और अनौपचारिक होते हैं। व्यक्ति And Second से अत्यन्त अलग-अलग भूमिकाओं में मिलते हं।ै वे अपने जीवन की आवश्यकतों की पूर्ति के लिये अधिक व्यक्तियों पर निर्भर होते है। 
  3. गुमनामी: नगरवासियों के Single Second से घनिश्ट संबन्ध नहीं होते। वैयक्तिक पारस्परिक परिचितता, जो अड़ोस-पड़ोस के व्यक्तियों में निहित होती है, नगर में नहीं होती। 
  4. व्यक्तिवाद: व्यक्ति अपने निहित स्वार्थो को अधिक महत्व देते हैं।

रुथग्लास (1956:32) ने नगरीयता की निम्नलिखित विशेषतायें बतलार्इ हैं: ग्तिशीलता, गुमनामीपन, व्यक्तिवाद, अवैयक्तिक संबन्ध, सामाजिक भेदीकरण, अस्थायित्व, और यांत्रिक Singleता। एन्डर्सन (1953:2) ने नगरीयता की तीन विशेषताओं को सूचीबद्ध Reseller है: समंजननीयता, गतिशीलता, और फैलाव। मार्शल क्लिनार्ड (1957) ने द्रुतगामी सामाजिक परिवर्तन, प्रतिमानों और मूल्यों के बीच संघर्श, जनसंख्या की बढ़ती हुर्इ गतिशीलता, भौतिक वस्तुओं पर बल, और अभिन्न अन्तर-वैयक्तिक सम्पर्क में अवनति को नगरीयता की महत्वपूर्ण विशेषताऐं बतलाया है। के.डेविस (1953) ने नगरीय सामाजिक व्यवस्था की आठ विशेषताओं का History Reseller है: सामाजिक विषमता (नगरीय क्षेत्रों में विभिन्न धर्मों, भाषाओं, जातियों, और वर्गों के व्यक्ति रहते हैं और वहां पर व्यवसाय में भी विशेषज्ञता होती है), द्वैतीयक संबंध, सामाजिक गतिशीलता, व्यक्तिवाद, स्थान संबंधी पृथक्करण, सामाजिक सहनशीलता, द्वैतीयक नियन्त्रण, और स्वयंसेवी संस्थायें।

लूर्इस वर्थ (1938:1-24) ने नगरीयता की चार विशेषतायें बतलार्इ हैं: जनसंख्या में भिन्नता, कार्य की विशेषज्ञता, गुमनामी, अवैयक्तिकता, और जीवन और व्यवहार का मानकीकरण।

3. नगरीकरण 

जनसंख्या का ग्रामीण क्षेत्रों से नगरीय क्षेत्रों में जाना ‘नगरीकरण’ कहलाता है। इसके परिणामस्वरुप जनसंख्या का बढ़ता हुआ भाग ग्रामीण स्थानों में रहने की बजाय शहरी स्थानों में रहता है। थौमसन वारन (एनसाइक्लोपीडिया ऑफ सोशल साइन्सेज) ने इसकी परिभाषा इस प्रकार की है: ‘‘यह ऐसे समुदायों के व्यक्तियों, जो प्रमुखरुप से या पूर्णरुप से कृषि से जुड़े हुये हैं, का उन समुदायों में जाना है जो साधारणतया (आकार में) उनसे बड़े हैं और जिनकी गतिविधियां मुख्यरुप से सरकार, व्यापार, उत्पादन या इनसे सम्बद्ध कारबारों पर केन्द्रित हैं’’। एन्डर्सन (1953:11) के According नगरीकरण Singleतरफा प्रक्रिया न होकर दोतरफा प्रक्रिया है। इसमें केवल गांवो से शहरों में जाना नहीं होता, परन्तु इसमें प्रवासी के रुखों, विश्वासों, मूल्यों और व्यवहार के संरुपों में भी परिवर्तन होता है। उसने नगरीकरण की पांच विशेषतायें बतार्इ हैं: मुद्रा Meansव्यवस्था, सरकारी प्रशासन, सांस्कृतिक परिवर्तन, लिखित अभिलेख, और अभिनव परिवर्तन।

नगर नियोजन, नगरीय नीति And नगरीय विकास 

भारत में विभिन्न दशकों में नगरीय आबादी में वृद्धि क्रम को तालिका 1 से अवलोकित Reseller जा सकता है।

तालिका संख्या 1 भारत में विभिन्न दशकों में ग्रामीण And नगरीय जनसंख्या का वितरण 

जनगणना वर्ष नगरीय आबादी (%)  ग्रामीण आबादी (%)
1921 11.4 88.6
1931 12.7 87.9
1941 13.9 86.1
1951 17.3 82.7
1961 18.1 81.9
1971 19.9 80.1
1981 23.3 76.7
1991 25.7 74.3
2001 30.5 69.5


सन् 2011 तक भारत की नगरीय आबादी लगभग 410 मिलियन हो गर्इ है जो कुल आबादी का Single तिहार्इ हिस्सा है। विगत पाँच दशकों में जहाँ भारत में आबादी की वृद्धि 2.5 गुणा रही है वहीं नगरीय आबादी में पाँच गुणा वृद्धि हुर्इ है। अनुमान है कि 2045 तक भारत में नगरीय आबादी 800 मिलियन तक हो जायेगी। 1901 में भारत में छोटे बड़े 1827 नगरीय क्षेत्र थे जिनकी संख्या 2001 में 5061 हो गर्इ है।

नगरीकरण वह प्रक्रिया है जिसका प्रादुर्भाव आर्थिक वृद्धि के परिणामस्वReseller होता है तथा यह आर्थिक संवृद्धि का निर्धारक भी है। इसके बावजूद भारत में आर्थिक वृद्धि की तुलना में नगरीकरण की वृद्धि दर धीमी रही है जिसके विविध कारक हैं: ग्रामीण उत्पादकता में अपर्याप्त वृद्धि, उद्योगों में Human श्रम की बजाय मशीन And पूँजी आधारित प्रतिकूल प्रौद्योगिकी का विकास, श्रम विधानों की कठोर प्रकृति And लघु उद्योगों के विस्तार की अपर्याप्त नीति, नगरीय अधिसंCreation पर अपर्याप्त व्यय, नगरीय भूमि हदबंदी अधिनियम And नगरीय भूमि नीति की कठोरता, इत्यादि। भारत में नगर नियोजन And नगरीय विकास की नीति की  विशेषताएं परिलक्षित हेाती हैं-

  1. नगर नियोजन की राष्ट्रीय आर्थिक नियोजन प्रक्रिया से पृथकता- भारत में नियोजन की अवधारणा प्राय: Single स्थिर धारणाा के रुप में प्रयुक्त होती आ रही है जिसके अन्तर्गत राष्ट्रीय आर्थिक नियोजन And नगरीय नियोजन पृथक-पृथक प्रक्रियायें हैं। इस मान्यता के According नगर की मास्टर योजना का निर्माण करना नगरीय विकास का प्रमुख दायित्व है। वास्तविकता यह है कि ग्रामीण And नगरीय संCreation की बदलती हुर्इ परिस्थिति में नगर नियोजन की प्रक्रिया को गतिशील, अनुकूलक, अन्त:क्रियात्मक And निरन्तर जारी रखने की Need है ताकि राष्ट्र के आर्थिक विकास, सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन And प्रबन्धन को नगरीय योजना से सम्बद्ध Reseller जा सके। नगर नियोजन की मूल समस्या केवल क्षेत्रीय नहीं है बल्कि प्रकार्यात्मक भी है। इस दृष्टि से नगर नियोजन के अन्तर्गत केवल कृषि भूमि के गैर कृषि क्षेत्रों में Creationत्मक उपयोग पर ही ध्यान केन्द्रित करने की बजाय सामाजिक-आर्थिक परिवर्तन की प्रक्रिया की जटिलताओं को अन्त:सम्बन्धित करने के प्रकार्यो को महत्व देना होगा।
  2. नगर नियोजन में समय And दूरी जैसे कारकों की उपेक्षा- नगरों के मास्टर प्लान के अन्तर्गत सम्पूर्ण नगरीय परिधि को कर्इ उपभागों में बाँटने, नियोजन कार्यालय क्षेत्र And आवासीय क्षेत्र को अलग-अलग स्थान आवंटित करने के अभियान के परिणामस्वरुप नगरवासियों का अधिकांश समय घर से कार्यालय आने जाने में ही व्यतीत हो जाता है तथा नगरीय याातायात पर भी दबाव बढ़ जाता है। अत: नगर योजना में विभिन्न परिधियों के विभाजन की प्रक्रिया में समय And दूरी जैसे आधारभूत कारकों को महत्व देना होगा।
  3. नगर योना के क्रियान्वयन में शिथिलता- भारत में नियोजन की प्रमुख समस्या यह है कि योजनाओं के क्रियान्वयन की प्रक्रिया में शिथिलता बरती जाती है जिसका परिणाम नगरीय अराजकता में वृद्धि, नगरों के हृास And मलिन बस्तियों के विकास के रुप में परिलक्षित होता है। इस शिथिलता का प्रमुख कारण यह है कि नगर नियोजकों की प्रस्थिति प्रशासन की दृष्टि में प्रKing की अपेक्षा निम्न मानी जाती है तथा किसी समस्या पर नगर नियोजक की बजाय प्रKing का निर्णय ही सर्वोपरि बन जाता है। Need है कि नगर नियोजकों को उचित महत्व दिया जाय ताकि नगरीय योजनाओं के क्रियान्वयन को प्रभावी बनया जा सके।
  4. नगर को प्रकार्यात्मक बनाने की Need की उपेक्षा- नगर नियोजन का वर्तमान स्वरुप अभिजात्यपूर्ण दृष्टि पर प्रमुखत: आधारित है जिसके अन्तर्ग्ात समृद्ध समूहों के हितों को प्राथमिकता देने तथा निर्धनों को प्राय: अपने बलबूते पर विकसित करने की योजना बनार्इ जाती है। मलिन बस्तियों में रहने वाले निर्धन नगरवासियों को शामिल करते हुए नगर को अधिक प्रकार्यात्मक And सुन्दर बनाने की Need है।
  5. स्थानीय स्वायत्त प्रशासन की उपेक्षा- नगर महापालिका अथवा नगर निगम प्रशासन की भूमिका नगरीय विकास में महत्वपूर्ण है। वित्तिय संकट, कार्य के प्रति निश्ठा का अभाव, भ्रश्टाचार, आदि के वर्तमान परिप्रेक्ष्य में स्थानीय प्रशासन की भूमिका प्राय: निश्क्रिय हो गयी है। हाल ही में 74वें संवैधानिक संषोधन के माध्यम से सरकार ने स्थानीय प्रशासन को जन प्रतिनिधित्वपूर्ण बनाने का प्रयास Reseller है। किन्तु स्थानीय प्रशासन में चुने जाने वाले ये जन प्रतिनिधि सभासद जब तक जन कल्याण हितों के प्रति समर्पित नहीं होंगे तब तक प्रतिनिधिपूर्ण स्थानीय स्वशासन को Meansपूर्ण नहीं बनाया जा सकता।

प्रशासन की दृष्टि में नगरपालिका अथवा नगर निगम प्रशासन का कार्य सामान्य प्रशासन की अपेक्षा कम महत्वपूर्ण है। इसलिए इन स्थानीय क्षेत्रों में प्राय: वही प्रKing भेजे जाते हैं जिन्हें राज्य प्रशासन में उपयुक्त स्थान नहीं मिलता। प्रशासन की यह परम्परागत दृष्टि वर्तमान परिप्रेक्ष्य में बदलनी होगी। कुशल, प्रशिक्षित And प्रबंधन की योग्यता वाले प्रKingों को स्थाीनीय प्रशासन में नियोजित करके नगरीय प्रशासन को अधिक सक्षम And उत्तरदायी बनाया जा सकता है।

नगरीय सामाजिक समूहों के लिए कल्याण कार्यक्रम 

Single कल्याणकारी राज्य के Reseller में भारत अपने नागरिकों, विशेष Reseller से दुर्बल समूहों जैसे- अनुसूचित जातियों, अनुसूचित जनजातियों, पिछड़े वगर्ेां, अल्पसंख्यकों, विकलांगों आदि के कल्याण And सामाजिक-आर्थिक विकास हेतु प्रतिबद्ध है। वृद्ध, युवा, महिला, शिशु समेत लगभग 85 प्रतिशत आबादी राज्य के समाज कल्याण कार्यक्रम की परिधि में शामिल हैं। राष्ट्रीय अनुसूचित जाति And अनुसूचित जनजाति वित्त And विकास निगम जैसे अभिकरण का गठन Reseller गया है जो इन समूहों में उद्यम And अन्य कौशल के विकास हेतु 100 प्रतिशत सरकारी अनुदान प्रदान करती है। संसद And विधानसभाओं से लेकर ग्राम स्तर तक इन दुर्बल समूहों के लिए स्थान आरक्षित किये गये हैं। शैक्षणिक संस्थाओं में भी इन समूहों के लिए आरक्षण, छात्रवृत्ति, ऋण/अनुदान के प्राविधान बनाये गये हैं। अन्य पिछड़े वर्ग के लिए 27 प्रतिशत आरक्षण का प्राविधान पृथक Reseller से क्रियान्वित Reseller गया है। 1994 में अल्पसंख्यक वित्त And विकास निगम की स्थापना के साथ अल्पसंख्यक वर्ग के पिछड़े समूहों हेतु नये 15 सूत्रीय कल्याण कार्यक्रम क्रियान्वित किये गये हैं। 1974 में शिशुओं के लिए गठित राष्ट्रीय नीति में शिशुओं का पालनपोषण राज्य का दायित्व माना गया है। संयुक्त राष्ट्र द्वारा शिशुओं के अधिकार की घोषणा के प्राReseller का अनुसरण करते हुए भारत 1986 में शिशु न्याय अधिनियम पारित करने वाला First देश बन गया है। देश भर में 450 से अधिक शिशुओं की देखभाल केन्द्र, वृद्ध आश्रम And गतिशील चिकित्सा इकाइयाँ स्थापित की गर्इ हैं। लगभग 60 से अधिक इकार्इयाँ निराश्रित शिशुओं के कल्याण हेतु कार्यरत हैं। इस प्रकार मद्य व्यसन सेवियों की रोकथाम And उनमें जागरूकता पैदा करने हेतु 359 सरकारी परामर्श केन्द्र कार्यरत हैं तथा 250 गैरसरकारी संगठन, जो इस दिशा में कार्यरत हैं उन्हें सरकार द्वारा अनुदान प्रदान Reseller जा रहा है। शिशु मत्यु दर को कम करने हेतु Windows Hosting प्रसव And मातृत्व कार्यक्रम, टीकाकरण, सामुदायिक स्वास्थ्य केन्द्रों के विस्तार, लघु वित्त योजना जैसे विविध कार्यक्रमों के माध्यम से नगरीय निर्धनों के स्वास्थ्य संवर्द्धन, परिवार कल्याण And आर्थिक स्वावलम्बन के प्रयास किये जा रहे हैं।

भारत में नगरीय विकास की नीति And कार्यक्रम विविध अवधियों में संशोधित होते रहे हैं। आरम्भिक अवस्था में नगरीय संCreation के विकास पर बल दिया गया। कालान्तर में नगरीय संCreation के विकास के साथ नगरीय जीवन शैली की गुणवत्ता को समृद्ध करने के प्रयास किये गये।

सन 2005 से जवाहर लाल नेहरू नगरीय पुनर्नवीकरण मिशन सर्वाधिक प्रभावी कार्यक्रम लागू Reseller गया जिसके माध्यम से भारत के सैकड़ों छोटे-बड़े नगरों को शामिल करते हुए नगरवासियों के जीवन को उन्नत बनाने का अभियान जारी है। नगरीय पुनर्नवीकरण मिशन कार्यक्रम के परिणामस्वReseller अन्य नीतिगत कार्यक्रम भी प्रभावित हुए हैं। मसलन ग्रामीण क्षेत्रों की जल प्रबंधन And सिंचार्इ परियोजनायें क्रमश: नगरों की ओर हस्तान्तरित हो रही हैं। वृहद् संयुक्त विनियोग के जरिये प्राकृतिक स्रोतों (लोहा, बाक्साइड, गैस इत्यादि) के दोहन कार्यक्रमों का विस्तार ग्रामीण क्षेत्रों से नगरों तक हो रहा है। नगरीय पुनर्नवीकरण मिशन कार्यक्रम के परिप्रेक्ष्य में कुछ बिन्दुओं पर गम्भीरतापूर्ण विचार करने की Need है जैसे नगरों में वाणिज्यिक संCreationओं के विस्तार विशेषकर भूमि अधिग्रहण की परियोजनाओं And नगरीय जीवन को समृद्ध करने हेतु आर्थिक विनियोग कार्यक्रमों में अन्तर करना होगा। कृषि योग्य भूमि का वाणिज्यिक हितों के लिए अधिग्रहण करने की प्रक्रिया को नियंत्रित करने की Need है। इसके अतिरिक्त गांवों में यातायात, संचार And अन्य मौलिक संCreationओं के विस्तार करते हुए उन्हें नगरीय व्यवस्था से समन्वित करना भी समीचीन होगा। नगरीय क्षेत्रों को महज जनसंख्या के घनत्व And व्यवसाय के प्राResellerों के आधार पर परिभाषित करने की वजाय ग्रामीण And नगरीय क्षेत्रों में वस्तुओं, सेवाओं And व्यक्तियों के आर्थिक विनिमय जैसे पहलुओं से भी समन्वित करते हुए पुनर्परिभाषित करने की Need है।

नगरीय पुनर्नवीकरण मिशन में सन् 2006 से 2012 की अवधि हेतु 150000 करोड़ आवंटित Reseller गया है जिसका उद्देश्य संCreationत्मक सेवाओं का समन्वित विकास करना, उन्हें तीव्र करना, नगरों And नगर परिधि क्षेत्रों का नियोजित विकास करना तथा नगरीय निर्धनों तक नगरीय सेवाओं की उपलब्धि को Windows Hosting करना है।

नगरीय विकास से सम्बद्ध समस्यायें 

भारत में नगरीय विकास की प्रक्रिया ने जहाँ Single ओर नगरों की भौतिक संCreation And जीवन की गुणवत्ता को समृद्ध Reseller है वहीं दूसरी ओर विविध समस्यायें भी उत्पन्न Reseller है, मसलन अपराध, मलिन बस्तियों की वृद्धि, अत्यधिक जनसंख्या का संचय, निर्धनता, कूड़े कचरे के निस्तारण की समस्या, इत्यादि।

(1) मलिन बस्तियों में वृद्धि- 

संयुक्त राष्ट्र की एजेन्सी यू0एन0 हैबिटाट ने मलिन बस्ती को नगर की निम्न स्तरीय आवास, गंदगी युक्त, अनौपचारिक Reseller से विकसित And अस्थायी अवधि वाली बस्ती के Reseller में परिभाषित Reseller है। संयुक्त राष्ट्र के सर्वेक्षण के According विकासशील देशों में 1990 से 2005 की अवधि में नगरीय मलिन बस्तियों के रिहायशियों की संख्या 47 प्रतिशत से घटकर 37 प्रतिशत हुर्इ है। मोटे तौर पर यह कहा जा सकता है कि मलिन बस्ती वह है जिसमें रहने वाले व्यक्तियों के लिए न सिर्फ शुद्ध पेयजल, शौचालय And वैध विद्युत आपूर्ति, मैले के निकास इत्यादि का पर्याप्त अभाव है बल्कि वहाँ का पर्यावरण भी आरोग्यकर नहीं है। भारत में नगरीकरण में वृद्धि के साथ-साथ मलिन बस्तियों की आबादी में भी तीव्र वृद्धि हो रही है।

विगत दो दशकों में मलिन बस्तियों में रहने वालों की संख्या दोगुनी बढ़ी है। 1981 में भारत में मलिन बस्तियों में रहने वालों की संख्या 27.9 मिलियन थी जो 2001 में बढ़कर 40 मिलियन हो गर्इ है। 2001 की जनगणना के According भारत के 640 नगरों में मलिन बस्तियाँ विद्यमान हैं। नगर में रहने वाला हर चौथा व्यक्ति मलिन बस्ती में रहता है। नेशनल सैम्पल सर्वे आरगाइनजेशन ने 2002 में नगरीय क्षेत्रों में 51688 मलिन बस्तियों की पहचान की थी जिसमें 50.6 प्रतिशत मलिन बस्तियों को सूचित मलिन बस्ती के Reseller में घोषित Reseller गया। 2002 के इस राष्ट्रीय सर्वेक्षण में यह पाया गया कि 84 प्रतिशत मलिन बस्तियों में जल आपूर्ति का प्रमुख श्रोत नल है किन्तु अलग-अलग राज्यों में नल के द्वारा जल आपूर्ति की स्थिति समान नहीं है। मसलन, बिहार की मलिन बस्तियों में नल के माध्यम से जल आपूर्ति लगभग नगण्य है। जबकि छत्तीसगढ़, गुजरात And उत्तर प्रदेश में लगभग 35 प्रतिशत मलिन बस्तियों में नल के माध्यम से जल आपूर्ति हो रही है। इसी प्रकार लगभग 44 प्रतिशत गैर सूचित मलिन बस्तियों में पानी And मैले के निकास की व्यवस्था नहीं है जबकि केवल 15 प्रतिशत सूचित मलिन बस्तियों में पानी And मैले के निकास की व्यवस्था नहीं है। लगभग आधी गैर सूचित मलिन बस्तियों में किसी भी प्रकार का शौचालय उपलब्ध नहीं है जबकि केवल 17 प्रतिशत सूचित मलिन बस्तियों में शौचालय अनुपलब्ध है। विश्व बैंक And यू0 एन0 हैबीटाट का लक्ष्य है मलिन बस्ती विहीन नगरीय विकास करना, जिसे महज मलिन बस्तियों को उखाड़ने की रणनीति की बजाय व्यवस्थित And नियोजित नगरीय विकास की रणनीति के जरिये प्राप्त करना अधिक प्रासंगिक होगा।

(2) अति संचयन- 

विगत कुछ दशकों में Indian Customer नगरों में जनसंख्या वृद्धि And दो पहिये, तीन पहिए And चार पहिये वाले मोटर वाहनों में अत्यधिक वृद्धि के कारण अति संचयन की समस्या भी ज्वलंत Reseller से उभरी है। वाहनों की वृद्धि के कारण यातायात की गति And समय प्रभावित हुआ है तथा यातायात जाम होना नगरीय जीवन शैली की आम विशेषता बन गर्इ है। यातायात संचयन के कर्इ नकारात्मक परिणाम हैें जैसे-वाहन चालकों And सवारियों के समय की बर्बादी, शिक्षालयों, कार्यालयों, व्यावसायिक प्रतिष्ठानों अथवा अन्य स्थानों पर पहुँचने में विलम्ब होना, उत्पादक गतिविधियों का हृास, र्इंधन की बर्बादी, वायु And ध्वनि प्रदूषण में वृद्धि, बारम्बर बे्रक, गियर बदलने आदि के कारण वाहनों की क्षतिग्रस्तता में वृद्धि, वाहन चालकों के स्वास्थ्य पर दुष्प्रभाव, इत्यादि। विश्व में सर्वाधिक सड़क दुर्घटनाएं भारत में होती हैं। हाल के सर्वेक्षण से प्राप्त तथ्य यह प्रदर्शित करते हैं कि भारत में प्रतिवर्ष Single लाख से अधिक व्यक्तियों की मौत कार दुर्घटना में होती है जो विश्व के कुल सड़क हादसों का 10 प्रतिशत है। इन समस्याओं के परिप्रेक्ष्य में यातायात की नीति को संवर्धित करने And आधुनिक बनाने के साथ सड़कों को चौड़ा करने तथा समग्र यातायात संCreation को विकसित करने की Need है ताकि वाहन सवारों And पैदल चलने वाले समस्त व्यक्तियों की गतिशीलता को Windows Hosting, अनुकूल, सुगम And अवरोधविहीन बनाया जा सके। नगरों के विकास प्राReseller में वाहनों की बढ़ती हुर्इ मांग And आपूर्ति को ध्यान में रखते हुए यातायात के प्रबन्धन And नगर नियोजन को प्राथमिकता देनी होगी। निजी वाहनों की वजाय सार्इकिल के प्रयोग को बढ़ाने, फ्लार्इ ओवर पुल निर्मित करन,े वाहनों के पार्किंग And अन्य टै्रफिक नियमों को दुरूस्त करन,े आदि कार्यक्रमों को यातायात नीति में महत्वपूर्ण बनाना होगा।

भारत में प्रति स्क्वायर किलोमीटर 336 व्यक्तियों की सघन औसत आबादी है। महानगरों And अन्य बड़े नगरों में आबादी के अति संचयन ने आवास And अन्य भौतिक संसाधनों-जल, विद्युत, शौचालय इत्यादि की आपूर्ति को न सिर्फ अपर्याप्त बना दिया है बल्कि सम्पूर्ण नगरीय जीवन शैली को ही प्रभावित Reseller है। मैकिन्से ग्लोबल इंस्टीट्यूट ने अपनी हाल के रिपोर्ट में यह अनुमान व्यक्त Reseller है कि सन् 2003 तक भारत में 70 प्रतिशत नौकरियां शहरों में निर्मित होंगी तथा शहरों में रहने वाले व्यक्तियों के लिए भारत को प्रतिवर्ष शिकागो शहर के समतुल्य Single नया शहर बनाना होगा जो वर्तमान परिस्थितियों के आधार पर सम्भव नहीं प्रतीत होता है।

(3) नगरीय निर्धनता- 

नगरीय विकास की वर्तमान प्रक्रिया ने जहाँ Single ओर नव धनिकों को उत्पन्न Reseller है वहीं दूसरी ओर निर्धनता को अधिक बढ़ाया है। भारत के नगरों में लगभग Single बड़ी निर्धन आबादी कूड़े कचरे को संग्रहित करने तथा उसके पुनर्चक्रीकरण करने के कार्य में संलग्न है। निर्धनता गंदी बस्तियों के निर्माण का आधारभूत कारक है जहाँ नैराश्य And अपराध का प्रादुर्भाव होता रहता है। नगरों में प्रवासी अधिकांश व्यक्ति असंगठित क्षेत्र में मजदूरी में संलग्न हैं जहाँ न्यूनतम मजदूरी प्राप्त नहीं होती। निर्धनता की समस्या आवश्यक Reseller से केवल कुल राष्ट्रीय उत्पाद की ही समस्या नहीं है अपितु वितरण की भी है। नगरीय निर्धनता में होने वाली क्रमिक वृद्धि को रोकने हेतु आर्थिक नियोजन And नगरीय विकास नीति को प्रभावी Reseller से संशोधित करने तथा प्राथमिकताओं को बदलने की Need है जिससे धनी And निर्धनों की असमानता को कम Reseller जा सके। औद्योगिक क्षेत्र में विनियोजन का प्राReseller इस प्रकार विकसित करना होगा जिससे अधिकांश व्यक्तियेां को रोजगार प्राप्त हो सके। शहरी विकास परियोजनायों की प्रभावपूर्ण कार्यान्वति के लिए गैर सरकारी संस्थाओं की भागीदारी बढ़ाने की Need है। इसके अतिरिक्त औद्योगिक Singleाधिकारों की समाप्ति, अनावश्यक सरकारी खर्च/राष्ट्रीय अपव्यय पर नियंत्रण, उद्यमों के लोकतांत्रिक प्रबन्धन जैसे विविध प्रयास नगरीय निर्धनता को कम करने में सहायक सिद्ध होंगे।

(4) कूड़ा निस्तारण And प्रबंधन- 

भारत के नगरों में सड़कों पर जमा कूड़े-कचरे, नालियों से मलमूत्र के उभड़न,े अस्पतालों And अन्य सार्वजनिक स्थलों के आसपास बिखरी हुर्इ गंदगी जैसे दृश्य सहजता से दिखार्इ पड़ते हैं। भारत में प्रतिदिन प्रति व्यक्ति 0.2 से लेकर 0.6 किलोग्राम तक कूड़ा निस्तारित करता है। Indian Customer परिप्रेक्ष्य में कूड़ा निस्तारण Single समस्या इसलिए बन गया है क्योंकि व्यवहार में कूड़े को Single स्थल से उठाकर Second स्थल पर फेंक देने की वर्तमान प्रणाली कूड़े का व्यवस्थित निष्पादन नहीं कर पाती। उर्जा अनुसंधान संस्थान के आकलन के According सन् 2047 तक भारत में नगरीय कूड़ों के निस्तारण हेतु 1400 स्क्वायर किलोमीटर स्थल की Need पड़ेगी। खुले गड््रढों में कूड़ा निस्तारित करने के कारण भूमि प्रदूषण तथा वायु प्रदूषण And नदियों में कूड़ा-कचरा तथा मल-मूत्र बहाने के कारण जल प्रदूषण की समस्या उत्पन्न होती है। पोलिथीन एंव प्लास्टिक जैसे अ-क्षरणीय कूड़े के परिणामस्वReseller मृदा And जल जहरीली होती है तथा टाक्सिक की वृद्धि होती है।

सृष्टि नामक Single स्वयंसेवी संस्था ने 2000 में किये अपने सर्वेक्षण के आधार पर यह निष्कर्ष दिया कि भारत में कूड़ा उत्पादन की वर्तमान दर जो प्रतिवर्ष 40000 मैट्रिक टन से कम है वह सन् 2030 तक 125000 मैट्रिक टन तक बढ़ सकती है।

कूड़े-कचरे के निस्तारण से जुड़े प्रदूषण को व्यवस्थित कूड़ा प्रबंधन के जरिये दूर करने की Need है। कूड़ा प्रबंधन वह प्रक्रिया है जिसमें कूड़े के संग्रह, यातायात, Destroy करने की प्रक्रिया, पुनर्चक्रीकरण And निर्देशन की क्रियायें सम्मिलित हैं। कूड़ा प्रबंधन वस्तुत: उन समस्त वस्तुओं के प्रबन्धन से सम्बद्ध है जिनका उत्पादन Human की गतिविधियों के आधार पर हुआ है तथा जिसके द्वारा Human स्वास्थ्य, पर्यावरण And प्राकृतिक सौन्दर्य पर पड़ने वाले नकारात्मक परिणामों केा कम करने का प्रयास Reseller जाता है। कूड़ा प्रबंधन में ठोस, तरल, And रेडियम प्रभावी समस्त वस्तुएं शामिल हैं। कूड़ा प्रबंधन के जरिये स्रोतों की प्राप्ति भी की जाती है।

कूड़ा प्रबन्धन की समन्वित प्रणाली के विविध पहलू हैं: कूड़ों को पाटने का व्यवस्थित स्वReseller विकसित करना, भस्मीकरण, पुनर्चक्रीकरण, जैवकीय पृथक्करण, उर्जा उत्पादन, कूड़ा उत्पादन में कमी करना, कूड़े के यातायात को Windows Hosting बनाना, आधुनिक प्रौद्योगिकी के इस्तेमाल के जरिये कूड़े का निष्पादन, जनशिक्षा And जनजागरण द्वारा कूड़े के प्रबन्धन को संपोषित करना, इत्यादि। इसके अतिरिक्त भारत में जैव चिकित्सा युक्त कचरे के प्रबन्धन की भी गम्भीर समस्या परिलक्षित होती है। अधिकांश अस्पतालों में उपयोग की गर्इ सूइयों And पिचकारियों, Human अंगों, प्रदूषित पट्टियों तथा पुरानी दवाओं को खुले में फेंकने अथवा कूड़ेदान में संग्रहित करके खुले स्थानों पर स्थानान्तरित करने की घटनाएं सामान्यतया देखी जा सकती है। सन् 2000 के जैव चिकित्सीय अवशेषों के प्रबन्धन And व्यवहार सम्बन्धी नियमों के According Human अंगों के अवशेषों तथा चिकित्सकीय जांच प्रयोगशालाओं के अवशेषों को पीले प्लास्टिक बैग तथा प्रयुक्त सूइयों And पिचकारियों को लाल प्लास्टिक बैग में पृथक-पृथक संग्रहित करके उनका उपयुक्त निस्तारण And भस्मीकरण करना अनिवार्य बनाया गया है ताकि पर्यावरण प्रदूषण न हो। किन्तु व्यवहार में इन निर्देशों का परिपालन अधिकांश स्थलों पर नहीं परिलक्षित होता। इस परिपे्रक्ष्य में कठोर कदम अपनाये जाने की Need है।

राष्ट्रीय नीति के स्तर पर पर्यावरण And वन मंत्रालय ने भारत में सन् 2000 में म्यूनिसिपल कूड़ा प्रबन्धन And निस्तारण नियम बनाया है। किन्तु व्यवहार में इस नियम का संतोषजनक परिणाम नहीं परिलक्षित होता क्योंकि इसमें कूड़े-कचरे के पुनर्चक्रीकरण अथवा कूड़े कचरे को घटाने हेतु आवश्यक प्रविधयों से सम्बद्ध पहलुओं की उपेक्षा की गर्इ है तथा इसमें जनसहभागिता के लिए कोर्इ प्राविधान नहीं शामिल Reseller गया है।

समीक्षात्मक मूल्यांकन 

नगरीकरण आर्थिक वृद्धि की प्रक्रिया का Single अभिन्न अंग है। विश्व के अन्य देशों की भाँति भारत के नगरों का भी देश की Meansव्यवस्था में महत्वपूर्ण योगदान है। भारत में लगभग Single तिहार्इ से कम आबादी युक्त कुल नगरीय क्षेत्रों की सकल घरेलू उत्पाद में दो तिहार्इ हिस्सेदारी And कुल सरकारी आय में 90 प्रतिशत योगदान है।

भारत में नगरीकरण का विस्तार तीव्र गति से हुआ है And आर्थिक अवसरों की तलाश में नगरों में व्यक्तियों के प्रवास की आवृत्ति बढ़ी है। नगरों के कुल आवास में मलिन बस्तियों की हिस्सेदारी लगभग Single चौथार्इ है। भारत में नगरीय विकास की विविध समस्यायें हैं- दुर्बल स्थानीय स्वशासन, कमजोर नगरीय Meansव्यवस्था, अनिर्दिष्ट नगर नियोजन, आधारभूत नगरीय सुविधाओं जैसे जल And विद्युत आपूर्ति का अभाव, पर्यावरण का तीव्र क्षरण, इत्यादि।

प्रमुख नगरीय चुनौतियाँ 

(1) नियोजन 

  1. अधिकांश नगरीय शासन में आधुनिक नियोजन And स्वReseller का अभाव है। 
  2. क्षेत्रीय विविधताएँ सक्षम नियोजन And भूमि के उपयोग को बाधित करती है। 
  3. कठोर मास्टर प्लान And प्रतिबंधित भूकटिबन्ध अधिनियमों के कारण नगरों में बढ़ती हुर्इ Needओं के अनुReseller भवन निर्माण And शहरी क्षमताअेां के विस्तार हेतु भूमि की उपलब्धि का अभाव है। 

(2) आवास 

  1. भवन निर्माण के नियमों And प्रतिबंधों के कारण नगरों में भवन की उपलब्धि सीमित है तथा नगरीय भू सम्पत्ति मूल्य बढ़ा है।
  2. प्राचीन किरायेदारी नियंत्रण अधिनियमों के कारण नगरों में किराये पर भवन की उपलब्धि घटी है तथा नगरीय निर्धनों के समक्ष आवासीय विकल्प सीमित हो गये हैं। 
  3. अल्प आय वाले व्यक्तियों को घर खरीदने, निर्माण करने अथवा पुनरूद्धार करने हेतु लघु वित्त And रेहन वित्तीय उपलब्धि का अभाव है।
  4. नीति, नियोजन And नियंत्रण की अपूर्णताओं के कारण मलिन बस्तियों का विस्तार हुआ है। 
  5. नगरीय स्थानीय स्वशासन And सेवा प्रदाताओं की दुर्बल Meansव्यवस्था के कारण नये क्षेत्रों में भवन निर्माण की संCreation का विस्तार नहीं हो पा रहा है। 

(3) सेवा प्रतिपादन 

  1. नगरीय शासन द्वारा प्रदत्त अधिकांश सेवाओं में स्पष्ट लेखा जोखा का अभाव है। 
  2. संपोषित वित्तीय And पर्यावरणीय सेवाएं प्रदान करने की वजाय भौतिक संCreationओं को बढ़ाने पर बल दिये जाने की प्रवृत्ति है। 
  3. सेवा प्रदाताएँ क्रियान्वयन And रख-रखाव सम्बन्धी व्यय वहन करने में अक्षम हैं तथा वित्तीय सहायता हेतु सरकार पर आश्रित हैं।
  4. टैरिफ निर्धारण, सहायता का निर्णय And सेवा की गुणवत्ता पर बल देने जैसी स्वतंत्र नियामक सत्ता का सामान्यतया अभाव है।

(4) मौलिक संCreation

  1. अधिकांश नगरीय अभिकरणों में नगरीय संCreation के पुनर्नवीकरण हेतु वित्त उत्पादन का अभाव है।
  2. नगरीय यातायात नीति को पूर्णतावादी बनाने की Need है जिसमें सिर्फ गाड़ियों के संचालन के अतिरिक्त बहुसंख्यक पैदल चलने वालों And सार्इकिल सवारों की Needओं को भी पूरा करने का लक्ष्य शामिल है। 

(5) पर्यावरण संरक्षण 

  1. नगरों में बढ़ते हुए प्रदूषण के कारण नगरीय व्यक्तियों का स्वास्थ्य, उत्पादकता And जीवन की गुणवत्ता का हृास हुआ है।
  2.  नगरों में उपभोगवादी संस्कृति के प्रसार के परिणामस्वReseller परम्परागत सामाजिक And सांस्कृतिक मानदंडों And मूल्यों का क्षरण हुआ है। 
  3.  दूसरों से आगे बढ़ने की प्रतिस्पर्धा ने नगरीय जीवन शैली में व्यक्ति निष्ठता को बढ़ाया है तथा पारस्परिक समन्वय And समरसता को घटाया है।

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