धौति के प्रकार –
धौति के प्रकार
अनुक्रम
धौति Meansात धोना वाहय Reseller से शरीर की शुद्धि के लिए हम तरह−तरह के उपाय करते हैं जैसे स्नान इत्यादि। पर अन्त:करण की सफाई के लिए शरीर को शुद्ध करने के लिए महर्षि घेरण्ड ने घौति कर्म Reseller है। धौति कर्म के माध्यम से योगी विविध तत्वों जल, वायु, अग्नि, के माध्यम से घडे Resellerी शरीर की सफाई करता है। शरीर की शुद्धि के लिए चार प्रकार की धौतियों का वर्णन Reseller है अन्त: धौति,दन्त धौति, ह्द धौति और मूलशोधन के भेद से धौति कर्म चार प्रकार का माना गया है। इसके द्धारा योगी जन अपने शरीर को स्वच्छ कर अच्छा स्वास्थ्य बनाते हैं।
धौति के प्रकार
शरीर की शुद्धि के लिए चार प्रकार की धौतियों का वर्णन Reseller है अन्त: धौति,दन्त धौति, ह्द धौति और मूलशोधन के भेद से धौति कर्म चार प्रकार का माना गया है।
अन्त धौति
वस्तुत: शरीर और मन को विकार रहित बनाने के लिए शुद्धिकरण अत्यन्त आवश्यक है। विविध रोग भी अशुद्धि की अवस्था में ही जन्म लेते हैं। अन्त: धौति का Means है- अन्त: Meansात आन्तरिक या भीतरी तथा धौति का कार्य है धोना Meansात आन्तरिक सफाई के Reseller में अन्त: धौति का प्रयोग Reseller जाता है। अन्त धौति के चार प्रकार हैं।
वातसार अन्त धौति
वात Meansात हवा या वायु और सार का Means है तत्व Meansात वायु तत्व से अन्त:करण की सफाई करना वातसार अन्त: धौति का प्रमुख उददेश्य है। महर्षि घेरण्ड ने घेरण्ड संहिता में वातसार धौति की निम्न विधि बताई है। काकचक्ष्चु वदास्येान पिबेद्धायुं शनै शनै Meansात कौवे की चोंच के समान दोनों ओठों को करके शनै: शनै: वायु को पीयें। पूर्णReseller से पान कर लेने पर पेट में उसका परिचालन करें और फिर उस वायु को निकाल दे।
क्रियाविधि-
- First किसी अभ्यस्थ ध्यान के आसन में बैठ जाये।
- कमर सिर व गर्दन को Singleदम सीधा रखें।
- मुंह से कौवे की चोंच सा आकार बनायें।
- धीरे-धीरे वायु का पान करते हुए पेट में भरने का प्रयत्न करें।
- जब पूरी “वास से पेट भर जाये तब शरीर ढीला कर वायु को उदर में घुमायें
- धीरे.धीरे “वास को दोनों नासाछिद्रों से बाहर निकाल दें।
लाभ –
- इस गोपनीय क्रिया से शरीर निर्मल होता है।
- यह कफ दोश को दूर करती है।
- All रोगों को Destroy करती है।
- पाचन शक्ति को बढाती है तथा जठराग्नि को भी तेज करती है।
- अम्लर पित्त में बेहद लाभकारी है।
सावधानियॉं –
- यह क्रिया हमेशा खाली पेट करें।
- यह अभ्यास अधिकतम पॉंच बार ही करना चाहिए।
- अधिक वृद्ध व्यक्ति कमजोर व्यक्ति यह अभ्यास न करें।
- हृदय रोगी या कोई बडा आपरेशन हुआ हो तो वह व्यक्ति इस अभ्यास को न करे।
वरिसार अन्त: धौति
वारि Meansात जल तथा सार का Means है तत्व इस धौति में जल तत्व से अन्त:करण की सफाई की जाती है अत इसे वारिसार अन्त: धौति कहा जाता है।
क्रियाविधि- इस क्रिया को शंखप्रक्षालन भी कहते हैं।
- Single बाल्टी में गुनगुना पानी लें तथा उसमें स्वादानुसार नमक डाल दें।
- First दो गिलास गुनगुना पानी पीये फिर निम्न पॉंच आसन त्वरित गति से करें। ताडासन • तिर्यक ताडासन • कटि चक्रासन • तिर्यक भुजगांसन • उदराकर्षण
- फिर पुन: 2 गिलास पानी पीकर उपरोक्त आसनों को करें।
- जब तक शौच की इच्छा न हो उन क्रिया दोहराते रहें। (5) 10-15 गिलास पानी पीकर जब उक्त क्रिया हो जाये तो विश्राम करें। (नोट- उक्त यौगिक क्रिया का वर्णन आपको सिर्फ अध्ययन करने के लिये बताया जा रहा है। इस क्रिया को कुशल मार्गदर्शन में ही करें।)
लाभ- यह शरीर की शुद्धि की सबसे महत्वपूर्ण क्रिया है इसके मुख्य लाभ है-ं
- इस क्रिया से समस्त पाचन संस्थान की सफाई होती है।
- शरीर में अपशिष्ट पदार्थ (मल) पूर्ण Reseller से निकल जाता है।
- इस क्रिया से देव देह की प्राप्ति होती है।
- योगी देवता के समान दिव्य, कान्तिमान, ओजस्वी हो जाता है।
- मोटापे को कम करता है तथा शरीर हल्का हो जाता है।
सावधानियॉं –
- इस अभ्यास को हमेशा कुशल, योगगुरू के सलाह में ही करें।
- उच्च रक्तचाप ह्दय रोग में यह अभ्यास सोंफ के पानी के साथ उचित मार्गदर्शन में Reseller जाता है।
- गर्भवती स्त्री, हार्निया से पीडित व्यक्ति बिल्कुल इस अभ्यास को न करें।
- अभ्यास के बाद व First दिन से ही रसाहार पतली खिचडी का सेवन ही करना चाहिए।
- चूंकि वारिसार धौति (शंखप्रक्षालन) से शरीर नाजुक हो जाता है। अत: 40 दिनों तक कोई एलोपैथिक दवाइयों का सेवन ना करें।
अग्निसार अन्तं: धौति
अग्नि Word से आप सर्वविदित होगें और सार का Means है तत्व चूंकि इस अभ्यास से जठराग्नि बढती है तथा पाचन क्रिया बढती है इसलिए इसे अग्निसार अन्त: धौति कहा जाता है।
क्रियाविधि-
- वज्रासन, अर्धपद्मासन या सिंहासन में बैठें।
- रीढ की हडडी Single सीध में रखिए।
- दोनों हाथ को तानकर घुटनों में रखिए।
- मुंह खोलकर जीभ बाहर निकालकर पूरी “वास को बाहर निकाल दीजिए।
- “वास को बाहर रोककर पेट को जल्दी-जल्दी अन्दर-बाहर करें। यह प्रयास रहे कि नाभि प्रदेश पृष्ठ भाग पर लगे।
- कुछ पल आराम के बाद इस क्रिया को पुन: उचित मार्गदर्शन में दोहराये।
लाभ –
- पाचन सम्बन्धी विकारों को Destroy करता है।
- उदर गत मॉसपेशियों को मजबूत बनाता है।
- जठराग्नि को तेज कर पाचक रसों का नियंत्रण करता है।
- मानसिक रोंगों में अवसाद की अन्तर्मुखी अवस्था में लाभकारी है।
- योग के आध्यात्मिक लाभ कुण्डलीनी जागरण में भी सहायक है।
सावधानियॉं –
- वस्तुत: योग की All क्रियायें खाली पेट की जानी हैं। अत: भोजन के बाद इसे नही करें।
- उच्चत चाप व ह्दय रोगी इस अभ्यास को बिल्कुल ना करें।
- अल्सर, हार्नियॉ, दमा के रोगियों के लिए वर्जित है।
- शारीरिक क्षमता के According गुरू के निर्देश में ही करें।
बहिष्कृत अत:धौति
बहिष्कृत का Means त्यागने छोडने या निकालने के Means में प्रयोग होता है। इस धौति में अन्त.करण से अवशिष्ट वायु को गुदा मार्ग से बाहर निकालते हैं। महर्षि घेरण्ड, घेरण्ड संहिता 1/21 में कहते है- Meansात कौवे की चोंच के समान ओठों को करके उनके द्धारा वायु-पान करते हुए उदर को भर लें। उस पान की हुई वायु को आधे प्रहर (1) घंटे तक उदर में रोक कर परिचालित करते हुए अधोमार्ग से निकाल दें। यह परम गोपनीय वहिष्कृत धौति कहलाती है।
क्रियाविधि- यह क्रिया सहज नही की जा सकती Single योग्य शिक्षक की देखरेख में करें अन्यथा परेषानियॉ हो सकती है।
- ध्यान के कोई आसन में बैठ जाये
- दोनों हाथों को घुटने पर रखें।
- काकी मुद्रा (कोवे की चोंच के समान) में वायु का धीरे-धीरे पान करें।
- 1 घंटे वायु का परिचालन पेट पर होने दें। अन्त में अधोमार्ग से उसे बाहर निकाल दें।
लाभ-
- उदरगत विकार दूर होते है।
- शरीर हल्का, कान्तिमान हो जाता है।
- कुण्डलीनी शक्ति जागरण में लाभकारी है।
- प्रजनन संस्थान को बलिष्ठ बनाती हैं।
सावधानियॉ- वही व्यक्ति इस अभ्यास को करे जिसे 1 घंटे “वास रोकने का अभ्यास हो। इसे Single योगी ही कर सकता है। अत: इस अभ्यास में विशेष मार्गदर्शन की Need है।
दन्त धौति
सामान्य Reseller से आप दन्ते धौति का Means दॉतों की सफाई के Reseller में समझ रहे होगें। लेकिन दन्त-धौति को महर्षि घेरण्ड ने शीर्ष प्रदेश की सम्पूर्ण स्वच्छता के Reseller में प्रयुक्त है। इस धौति के प्रकार है।
दन्त मूल धौति
दन्त मूल Meansात दॉतों की जड और धौति का Means है धोना। Meansात इस अभ्यास में दॉतों की जड की स्वच्छता की जाती है।
क्रियाविधि- प्राचीन समय में दन्तमंजन चूर्ण बनाने की विधि आयुर्वेद में बताई गई है। दन्तमंजन चूर्ण के अलावा शुद्ध चिकनी मिट्टी (जिसे घर में लिपने में प्रयोग करते हैं) या खादिर (कत्थे) के रस को मिट्टी में मिलाकर तर्जनी अंगुली से दॉतों की जडों को साफ करते हैं। फिर शुद्ध पानी से कुल्ला कीजिए। यह क्रिया प्रात:काल व सांय भोजन के बाद भी की जा सकती है।
लाभ- नित्य इस अभ्यास को करने से दॉतों की सफाई तो होती ही है साथ ही साथ दॉतों मं फॅसा मल भोजन के टुकडे बाहर निकल जाते है। मुंह में कहीं छाले पडे हो तो खादिर का रस औषधि का काम भी करता है।
सावधानियॉ-
- जिस भी चूर्ण (दंत मंजन, खादिर, मिट्टी) का उपयोग कर रहे हो वह बारीक पीसा गया हो।
- दॉतों में पीब, कीडे या छेद हो तो आयुर्वेदिक औषधि चिकित्सा के बाद ही इस अभ्यास को करें।
विशेष:- दन्त मंजन चूर्ण बनाने की Single सस्ती व सरल प्रक्रिया है। बादाम के छिलकों को आग में जलाकर कोयला बना लें फिर उस कोयले का पाउडर बनाकर उसमें पीसी लोंग, सेंधा नमक, नीम के पत्तों का पाउडर मिला दें। इस चूर्ण का प्रयोग भी दॉतों के लिए लाभकारी है।
जिहवाशोधन धौति
जीभ के शोधन की यह प्रReseller जीभ की लम्बाई बढाने तथा अनेकानेक रोगों में लाभकारी है।
क्रियाविधि- यह Single सहज प्रक्रिया है दोहन क्रिया में जीभ में मक्खन डाल लें। बाजार में प्लास्टिक या स्टील की जिºवा निर्लेखनी मिलती है उससे भी जीभ की सफाई की जा सकती है।
लाभ –
- इस क्रिया से जीभ की लम्बांई बढती है जिससे भाषा की स्पष्टता रहती है।
- जीभ के दोहन से गले व “वास नली में Singleत्र श्लेष्मा निकल जाता है।
- इससे व्याधि, बुढापा व मृत्यु को दूर भगाया जा सकता है।
- खेचरी मुद्रा की सिद्धि में लाभकारी है।
सावधानियॉ-
- जीभ में छाले हो तो इस अभ्यास को नही करें।
- अपनी अंगुलियों को मुंह के ज्यादा अन्दर ना डालें।
- नाखुन अवश्य कटे हो अन्यथा मैल तो जायेगा ही स्वर यंत्र या मुंह में चोट लग सकती है।
कर्णरन्ध्र धौति
चुंकि इससे कान के छिद्रों की सफाई की जाती है इसलिए इसे कर्णरन्ध्र धौति कहते हैं।
क्रियाविधि- तर्जनी या अनामिका अंगुली को गीला कर लें। तद्पश्चात कान के अन्दर डालकर उसे घुमायें अंगुली को गीला करने के लिए सरसों के तेल में लहसुन डालकर उसका उपयोग भी कर सकते हैं।
लाभ- कानों की सफाई होती है दिव्यं नाद की अनुभूति होती है इसलिए इसके अध्यात्मिक लाभ भी हैं।
सावधानियॉ –
- माचिस की तिल्ली से इस क्रिया को ना करें।
- अंगुलियों के नाखुन अवश्य कटें होने चहिए।
कलालरन्ध्र धौति
कपालरन्ध्र Meansात नवजात बच्चे के सिर पर वह स्थान जो पिचकता महसूस होता है उस स्थान की इससे सफाई होती है। अत: इसे कपालरन्ध्र धौति कहते हैं।
क्रियाविधि- इस धौति की विधि स्पष्ट है दाहिने हाथ का कटोरा बनाकर उसमें पानी भरे तथा शीर्ष प्रदेश (ब्रह्मरन्ध्र) पर धीरे-2 थपकी दें।
लाभ –
- मस्तिष्क में शीतलता प्रदान होती है मोतियाबिन्द में लाभकारी है।
- दूर व निकट दृष्टि दोष दूर होते है।
- कफ दोषों (सदÊ, खांसी) में लाभकारी है।
- उच्चरक्त चाप में इस धौति से लाभ मिलता है।
- गर्मियों में इस अभ्यास को करने से शीतलता मिलती है।
सावधानियॉ – इस अभ्यास में विशेष सावधानी की जरूरत नही है फिर भी जाड़ों में इसका प्रयास वर्जित है। छोटे बच्चों को इस अभ्यास कराने के लिए योग शिक्षक से सलाह अवश्य लें।
हृद धौति
हृद का Means है हृद दय और धौति का Means है धोना इस धौति से हृद य प्रदेश, अन्न नलिका, आमाशय की सफाई होती है इसलिए इसे ºदधौति कहते हैं इसके तीन भेद हैं।
दण्ड धौति
दण्ड Meansात ठंडा और धौति Meansात धौना इस धौति में हल्दी केले के मृदु भाग के ठंडे से अन्त: प्रदेश की सफाई की जाती है।
क्रियाविधि- परम्परागत Reseller से दण्ड धौति के लिए केले, बेंत या हल्दी के मृदु भाग को लेते हैं पर आधुनिक समय में रबर की दण्ड भी बाजार में उपलब्ध रहती है। दण्ड धौति को प्रयोग करने से First अच्छीे तरह उबाल लें।
- First 4-5 गिलास स्वच्छ जल (नमकीन) पी लें।
- शनै: शनै: रबर, हल्दी, बेंत की दण्ड (जो उपलब्ध हो) मुंह खोलकर आभाशय तक डालें।
- फिर थोड़ा आगे झुकें पूरा जल दण्ड के अगले छोर से आने लगेगा।
- तदुपरान्त धीरे-2 दण्ड को बाहर निकाले तथा इसके साथ कफ, पित्त, श्लेष्मा, जो भी निकले उसे बाहर थूक दें।
लाभ –
- कफ, पित्त, क्लेद का निष्काषन इस क्रिया से होता है।
- अम्ल पित्त, दवा में यह अभ्यास लाभकारी है।
- फेफड़े की क्षमता बढ़ती है हृदय रोग में भी लाभकारी है।
सावधानियॉ – यहॉ पर दण्ड धौति का वर्णन मात्र Single विधि मानकर Reseller है हर व्यक्ति इस अभ्यास के योग्य नही है योग शिक्षक की देखरेख में ही इस अभ्यास को करें।
वमन धौति
वमन का Means उल्टी करने से है।
क्रियाविधि-
- First बैठकर बिना रूके हुए गुनगुना नमकीन जल इच्छानुसार 5/ 7 / 10 गिलास तक दिये।
- फिर उठकर तर्जनी, मध्यमा व अनामिका ऊंगली को गले तक डालकर वमन करे।
- अंगुलियों को पुन: मुंह के भीतर ले जाये यह क्रिया तब तक दोहरायें जब तक पेट खाली ना हो।
लाभ-
- आभाशय को स्वच्छ कर विकार रहित बनाती है।
- कफ, पित्त, क्लेद को बाहर निकालती है।
- अत्रीर्ण, अम्लपित्त में लाभकारी है।
- दमा के रोगी को कफ के विरेचन हो जाने के कारण लाभ मिलता है।
सावधानियॉ-
- पानी गुनगुना नमक युक्त व स्वच्छ हो।
- हाथ के नाखुन पूरे कटे होने चाहिए।
- हार्निया व कमर दर्द में इस अभ्यास को ना करें।
वासन धौति (वस्त्र धौति)
वासन Meansात वस्त्र (कपडे) की पट्टी से इससे पाचन संस्थान की सफाई की जाती है। इसलिए इसे वस्त्र धौति कहते हैं।
क्रियाविधि –
- चार अंगुल चौढ़ा व 3-4 मीटर लम्बा सूती कपड़ा लीजिए।
- उसे Single पात्र (लोहे गिलास, कटोरी) में रखकर भिगा दें। (
- Single छोर को पकड़कर धीरे-धीरे उसे निगले बीच-बीच में स्वच्छ जल अवश्य पियें।
- जब अन्तिम छोर बचा हो फिर धीरे-धीरे उसे बाहर निकाल दें।
लाभ-
- कफ, क्लेद का निष्कासन होता है।
- दमा के रोगी के लिए यह क्रिया रामवाण है।
- वायु विकार, बुखार, चर्मरोग में लाभकारी है।
- उदरगत व्यांधियॉ दूर होती हैं। जठराग्नि बढ़ती है।
सावधानियॉ –
- यह कठिन क्रिया है इसे योग्य योग शिक्षक के मार्गदर्शन में करे।
- अगर वस्त्र धौति करते हुए 5 मिनट हो जाये तो फिर उसे बाहर निकाल दें अन्यथा व अॉतों की ओर जा सकती है।
- कपड़े को निगलते समय जीभ में सटाकर रखें।
- कोशिश यह करें कि निगलते समय कपड़े में लार अवश्य मिले जिससे निगलने में सुविधा होगी।
मूलशोधन
मूल क्षेत्र Meansात शरीर का मूल भाग (गुदा) की इस अभ्यास से सफाई होती है।
क्रियाविधि:- हल्दी की नरम जड़ से या अनामिका अंगुली में घी लगाकर गुदा क्षेत्र में डालें हल्दी की जड़ रोगाणुरोधक होने के कारण उपयुक्त है दो-चार बार इस क्रिया को दोहरायें।
लाभ-
- उत्सर्जन तन्त्र को बलिष्ठ करता है इस क्रिया से नाड़ी और कोशिकाओं की ओर रक्त संचार तेज होता है।
- कब्ज में यह अभ्यास लाभकारी है।
- अपान वायु का संतुलन करती है।
- इस धौति से पाचन संस्थान के रोगों में भी लाभ मिलता है।
सावधानियॉ-
- अंगुली के नाखून अच्छी तरह काट लें।
- बवासीर के रोंगियो को अंगुली मूल प्रदेश में डालते समय बेहद सावधानी बरतनी चाहिए।
- योग्य गुरू की सलाह में ही इस अभ्यास को करें।