दहेज के कारण, दुष्परिणाम, दहेज प्रथा को रोकने के उपाय
कभी-कभी वर-मूल्य And दहेज में अन्तर Reseller जाता है। दहेज लड़की के माता-पिता स्नेहवश देते हैं, यह पूर्व-निर्धारित नहीं होता और कन्या-पक्ष के सामथ्र्य पर निर्भर होता है, जबकि वर-मूल्य वर के व्यक्तिगत गुण, शिक्षा, व्यवसाय, वुफलीनता तथा परिवार की स्थिति, आदि के आधार पर वर-पक्ष की ओर से मांगा जाता है और विवाह से पूर्व ही तय कर लिया जाता है।
दहेज का प्रचलन प्राचीन काल से ही रहा है। ब्राह्म विवाह में पिता वस्त्र And आभूषणों से सुसज्जित कन्या का विवाह योग्य वर के साथ करता था। रामायण And महाभारत काल में भी दहेज का प्रचलन था। सीता And द्रौपदी आदि को दहेज में आभूषण, घोड़े, हीरे-जवाहरात And अनेक बहुमूल्य वस्तुएं देने का History Reseller है। उस समय दहेज कन्या के प्रति स्नेह के कारण स्वेच्छा से ही दिया जाता था। दहेज का प्रचलन राजपूत काल में तेरहवीं And Fourteenवीं सदी से प्रारम्भ हुआ और कुलीन परिवार अपनी सामाजिक स्थिति के According दहेज की मांग करने लगे। बाद में अन्य लोगों में भी इसका प्रचलन हुआ। उच्च शिक्षा प्राप्त, धनी, अच्छे व्यवसाय या नौकरी में लगे हुए And उच्च कुल के वर को प्राप्त करने के लिए वर्तमान में लड़की के पिता को अच्छा-खासा दहेज देना होता है। शिक्षा And सामाजिक चेतना की वृद्धि के साथ-साथ दहेज का प्रचलन घटने की बजाय बढ़ा दी है और इसने वीभत्स Reseller ग्रहण कर लिया है।
भारतवर्ष इस प्रथा के लिए विश्वभर में बदनाम है। यहाँ जन्म से ही लड़की को पराया धन कहा जाता है उसके पालन-पोषण पर लड़कों से कम ध्यान दिया जाता है। माता-पिता कन्या को पराया धन समझकर उसके साथ उपेक्षापूर्ण व्यवहार करते हैं। लड़की को अपने साथ दहेज नहीं ले जाने पर ससुराल में ताने सुनने पड़ते हैं साथ ही दहेज के कारण लड़कियों को जलाकर मार भी दिया जाता है।
वर्तमान में दहेज And वर मूल्य में विशेष फर्क नहीं समझा जाता है, क्योंकि आजकल अधिकांशत: दहेज का प्रचलन वर-वधु के Reseller में या विवाह की शर्त के शुरू में ही है।
दहेज के कारण
- शिक्षा And सामाजिक प्रतिष्ठा-वर्तमान समय में शिक्षा And व्यक्तिगत प्रतिष्ठा का अधिक महत्त्व होने के कारण प्रत्येक व्यक्ति अपनी कन्या का विवाह शिक्षित And प्रतिष्ठित लड़के के साथ करना चाहता है जिसके लिए उसके काफी दहेज देना होता है क्योंकि ऐसे लड़कों की समाज में कमी पायी जाती है।
- धन का महत्व-वर्तमान में धन का महत्त्व बढ़ गया है और इसके द्वारा व्यक्ति की सामाजिक प्रतिष्ठा निर्धारित होती है। जिस व्यक्ति को अधिक दहेज प्राप्त होता है, उसकी प्रतिष्ठा भी बढ़ जाती है। यही नहीं, बल्कि अधिक दहेज देने वाले व्यक्ति की भी सामाजिक प्रतिष्ठा बढ़ जाती है।
- प्रदर्शन And झूठी प्रतिष्ठा-अपनी प्रतिष्ठा And शान का प्रदर्शन करने के लिए भी लोग अधिकाधिक दहेज लेते And देते हैं।
- सामाजिक प्रथा-दहेज का प्रचलन समाज में Single सामाजिक प्रथा के Reseller में ही पाया जाता है। जो व्यक्ति अपनी कन्या के लिए दहेज देता है वह अपने पुत्र के लिए भी दहेज प्राप्त करना चाहता है।
- दुष्चक्र (Vicious circle)- दहेज Single दुष्कक्र है जिन लोगों ने अपनी लड़कियों के लिए दहेज दिया है वे भी अवसर आने पर अपने लड़कों के लिए दहेज प्राप्त करना चाहते हैं। इसी प्रकार से लड़के के लिए दहेज प्राप्त करके वे अपनी लड़कियों के विवाह के लिए देने के लिए उसे Windows Hosting रखना चाहते हैं।
दहेज-प्रथा के दुष्परिणाम
दहेज-प्रथा के परिणामस्वReseller समाज में अनेक समस्याएं उत्पन्न हुई हैं, इनमें से प्रमुख अग्र प्रकार हैं-
- बालिका वध-दहेज की अधिक मांग होने के कारण कई व्यक्ति कन्या को पैदा होते ही मार डालते हैं। इसका प्रचलन राजस्थान में विशेष Reseller से रहा है, किन्तु वर्तमान में यह प्रथा प्राय: समाप्त हो चुकी है।
- पारिवारिक विघटन-कम दहेज देने पर कन्या को ससुराल में अनेक प्रकार के कष्ट दिये जाते हैं। दोनों परिवारों में तनाव And संघर्ष पैदा होते हैं और पति-पत्नी का सुखी वैवाहिक जीवन उजड़ जाता है।
- हत्या And आत्महत्या-जिन लड़कियों को अधिक दहेज नहीं दिया जाता उनको ससुराल में अधिक सम्मान नहीं होता, उन्हें कई प्रकार से तंग Reseller जाता है। इस स्थिति से मुक्ति पाने के लिए बाध्य होकर कुछ लड़Resellerँ आत्महत्या तक कर लेती हैं। दहेज के अभाव में कन्या का देर तक विवाह न होने पर उसे सामाजिक निन्दा का पात्र बनना पड़ता है, ऐसी स्थिति में भी कभी-कभी लड़की आत्महत्या कर लेती है।
- ऋणग्रस्तता-दहेज देने के लिए कन्या के पिता को रुपया उधार लेना पड़ता है या अपनी जमीन And जेवरात, मकान आदि को गिरवीं रखना पड़ता है या बेचना पड़ता है परिणामस्वReseller परिवार )णग्रस्त हो जाता है। ब्याज की ऊंची दर के कारण उधार लिया हुआ रुपया चुकाना कठिन हो जाता है। अधिक कन्याएं होने पर तो आर्थिक दशा और भी बिगड़ जाती है।
- निम्न जीवन-स्तर-कन्या के लिए दहेज जुटाने के लिए परिवार को अपनी Needओं में कटौती करनी पड़ती है। बचत करने के चक्कर में परिवार का जीवन-स्तर गिर जाता है।
- बहुपत्नी विवाह-दहेज प्राप्त करने के लिए Single व्यक्ति कई विवाह करता है इससे बहुपत्नीत्व का प्रचलन बढ़ता है।
- बेमेल विवाह-दहेज के अभाव में कन्या का विवाह अशिक्षित, वृद्ध, कुReseller, अपंग And अयोग्य व्यक्ति के साथ भी करना पड़ता है। ऐसी स्थिति में कन्या को जीवन भर कष्ट उठाना पड़ता है।
- विवाह की समाप्ति-दहेज के अभाव में कई लोग अपने वैवाहिक सम्बन्ध कन्या पक्ष से समाप्त कर देते हैं। कई बार तो दहेज के अभाव में तोरण द्वार से बारात वापस लौट जाती है और कुछ लड़कियों को कुंआरी ही रहना पड़ता है।
दहेज प्रथा को रोकने के उपाय
- स्त्री-शिक्षा-स्त्री-शिक्षा का अधिकाधिक प्रसार Reseller जाय ताकि वे पढ़-लिखकर स्वयं कमाने लगें। ऐसा होने पर उनकी पुरुषों पर आर्थिक निर्भरता समाप्त होगी तथा इसके परिणामस्वReseller विवाह की अनिवार्यता भी न रहेगी।
- जीवन-साथी के चुनाव की स्वतन्त्रता-लड़के व लड़कियों को अपना जीवन-साथी स्वयं चुनने की स्वतन्त्रता प्राप्त होने पर अपने आप दहेज प्रथा समाप्त हो जायेगी।
- प्रेम-विवाह-प्रेम-विवाह की स्वीकृति होने पर भी दहेज की समस्या समाप्त हो जायेगी।
- अन्तर्जातीय विवाह-अन्तर्जातीय विवाह की छूट होने पर विवाह का दायरा विस्तृत होगा। परिणामस्वReseller दहेज-प्रथा समाप्त हो सकेगी।
- लड़कों को स्वावलम्बी बनाया जाय-जब लड़के पढ़-लिखकर स्वयं अर्जन करने लगेंगे तो योग्य वर का अभाव दूर हो जायेगा, उनके लिए प्रतियोगिता कम हो जायेगी पफलस्वReseller दहेज भी घट जायेगा।
- दहेज विरोधी कानून-दहेज प्रथा की समाप्ति के लिए कठोर कानूनों का निर्माण Reseller जाए And दहेज मांगने वालों को कड़ी-से-कड़ी सजा दी जाए। वर्तमान में ‘दहेज निरोधक अधिनियम, 1961’ लागू है, परन्तु यह अधिनियम अपनी कई कमियों के कारण दहेज-प्रथा को कम करने में असपफल रहा है। वर्तमान में इस अधिनियम को संशोधित कर इसे कठोर बना दिया गया है तथा दो व्यक्तियों को अधिक सजा देने की व्यवस्था की गयी है।