ज्वालामुखी क्या है ?
ज्वालामुखी पदार्थ छिद्र या द्वार के बाहर होकर प्राय: शंकु का आकार ग्रहण करते है। शंकु के ऊपर कीप के आकार का Single गड्ढा होता है जिसे क्रेटर कहते हैं।
ज्वालामुखी के प्रकार
ज्वालामुखी प्रक्रिया के आधार पर ज्वालामुखी को वर्गीकृत Reseller जाता है उद्गार की बारम्बारता, ज्वालामुखी पदार्थों के बाहर निकल कर Earth के धरातल पर आने के ढंग तथा उद्गार की प्रकृति अथवा तरलता वर्गीकरण के प्रमुख आधार हैं। उद्गार की बारम्बारता के आधार पर ज्वालामुखी तीन प्रकार के होते है।
- सक्रिय ज्वालामुखी,
- प्रसुप्त ज्वालामुखी तथा
- विलुप्त ज्वालामुखी।
(1) सक्रिय ज्वालामुखी
वे ज्वालामुखी जिनमें समय-समय पर उद्गार होते रहते है। अथवा वर्तमान में उदगार हो रहे है उन्हें सक्रिय ज्वालामुखी कहते है। इस प्रकार के प्रमुख ज्वालामुखी-भूमध्य सागर में स्ट्रॉमबोली, इंडोनेशिया में क्राकाटोआ, फिलीपाइन्स में मेयोन, हवार्इ द्वीप समूह में मोना लोआ तथा भारत में बैरन द्वीप हैं।
(2) प्रसुप्त ज्वालामुखी
वे है जिनमें वर्तमान काल में उद्गार नहीं हुए है। वास्तव में उन्हें सोये हुए ज्वालामुखी कहा जा सकता है। इटली का विसुवियस तथा दक्षिण अमेरिका का कोटोपेक्सी प्रमुख प्रसुप्त ज्वालामुखी हैं।
(3) विलुप्त ज्वालामुखी
कुछ ऐसे ज्वालामुखी हैं जिनमें ऐतिहासिक काल में उद्गार नहीं हुए। इन्हें विलुप्त ज्वालामुखी कहते है। म्यांमार (बर्मा) का माऊंट पोपा तथा तंजानिया का किलीमंजारों प्रमुख विलुप्त ज्वालामुखी है। किसी भी ज्वालामुखी को प्रसुप्त ज्वालामुखी प्रकार में बांटना आसान नहीं हैं। उदाहरण के लिए विसुवियस तथा क्राकाटोआ हजारों वर्षों तक विलुप्त रहने के बाद उनमें अचानक उद्गार होने लगे और सक्रिय ज्वालामुखी हो गये। उद्गार की रीति के आधार पर ज्वालामुखी दो प्रकार के होते है।,
- केन्द्रीय उद्भेदन ज्वालामुखी तथा
- दरारी उदभेदन ज्वालामुखी।
जब किसी ज्वालामुखी में उद्भेदन Single छिद्र या द्वार से होता है तब उसे केन्द्रीय उद्भेदन ज्वालामुखी कहते है। इस प्रकार के ज्वालामुखी विभिन्न प्रकार के गुम्बदाकार अथवा शंक्वाकार पहाड़ियों का निर्माण करते है। इन पहाड़ियों का आकार ज्वालामुखी से निकलने वाले पदार्थों की प्रकृति पर निर्भर करता है संसार के अधिकांश ज्वालामुखी इस प्रकार के हैं। इस प्रकार के ज्वालामुखी उद्भेदन की Single अन्य विशेषता यह है कि पिघले हुए शैलों व गैसों के यकायक छिद्र या द्वार से निकलने के कारण उद्गार अत्याधिक विस्फोटक होता हैं, विसुवियस तथा फ्यूजीयामा इस वर्ग के प्रमुख ज्वालामुखी हैं।
कभी-कभी, भूकम्पों या भं्रशन से भूपृष्ठ पर गहरी और लंबी दरारें पड़ जाती हैं। मैग्मा इन दरारों से धीरे-धीरे बाहर की ओर निकलने लगता है। इस प्रकार के उद्भेदन को दरारी उद्भेदन कहते हैं। इस प्रकार के ज्वालामुखी उद्गारों से लावा की मोटी-मोटी पर्तें जमा हो जाती हैं और इससे लावा पठार तथा लावा शील्ड का भी निर्माण होता है। भारत में दक्कन का पठार इस प्रकार के उद्गार का Single उदाहरण है। लावा की तरला के आधार पर ज्वालामुखी दो प्रकार के होते है।
- क्षारीय लावा के ज्वालामुखी तथा,
- अम्लीय लावा के ज्वालामुखी।
क्षारीय लावा में धात्विक खनिजों का अनुपात अधिक होता है तथा उनका पिघलन बिंदु नीचा होता है। अत: क्षारीय लावा अधिक तरल होता है। इस प्रकार के ज्वालामुखी उदगारों में लावा दूर-दूर तक शीघ्र तथा तेजी से फैल जाता है। इससे लावा की पतली परतें विस्तृत क्षेत्र में जमा हो जाती है। इस प्रकार के उद्गारों से शील्डों तथा लावा गुम्बदों का निर्माण होता है। प्रशांत महासागर में हवार्इ द्वीप समूह में स्थित शील्ड ज्वालामुखी इस प्रकार का ज्वालामुखी है।
क्षारीय लावा के विपरीत अम्लीय लावा में सिलिका की मात्रा अधिक होती है तथा इसका पिघलन बिंदु अपेक्षाकृत ऊॅंचा होता है। अत: यह अत्यधिक गाढ़ा होता है तथा शीघ्र ही जम जाता है। यही कारण हैं कि अम्लीय लावा ज्वालामुखी सामान्यतया ऊॅंची भू-आकृतियों का निर्माण करते हैं। इन भू-आकृतियों के ढाल तीव्र होते है। अम्लीय लावा शंकु के ढाल क्षारीय लावा शील्डों से अधिक तीव्र होते हैं।