जॉन कमेनियस का जीवन परिचय
कमेनियस के माता-पिता की मृत्यु उसकी बाल्यावस्था में ही हो गर्इ थी। पिता के द्वारा छोड़ी गर्इ सम्पति पर उसके संरक्षकों का अधिकार हो गया। अत: कमेनियस को आर्थिक कठिनाइयों का सामना करना पड़ा। उसकी प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के विद्यालय में हुर्इ, जहाँ उसने लिखना-पढ़ना और प्रारम्भिक गणित सीखा। उस काल में लैटिन का ज्ञान शिक्षित व्यक्ति के लिए आवश्यक माना जाता था। कमेनियस ने सोलह वर्ष की अवस्था में लैटिन सीखना प्रारम्भ Reseller जबकि उसके सहपाठी छह-Seven वर्ष के ही थे। परिपक्व होने के कारण कमेनियस ने लैटिन के शिक्षण-अधिगम विधि की कमियों को महसूस Reseller और उसमें सुधार को जरूरी मानने लगा।
कमेनियस ने नासाऊ में कॉलेज ऑफ हरवार्न में उच्च शिक्षा ली। मोरेविया वापस आकर उसने पादरी And अध्यापक के Reseller में कार्य करते हुए कर्इ पुस्तकों की Creation की। प्रोटेस्टेण्ट धर्म के अनुयायी होने के कारण कमेनियस को 1628 र्इ0 में देश निकाला मिला। इसके उपरांत पोलैण्ड में लिस्सा नामक स्थान पर Single जिमनैजियम का निदेशक नियुक्त हुआ। लिस्सा में रहते हुए कमेनियस ने शिक्षा से सम्बन्धित महत्वपूर्ण पुस्तकें ‘दि ग्रेट डाइडेक्टिक’, ‘गेट ऑफ टंग्स अनलॉक्ड’ आदि की Creation की।
कमेनियस शिक्षा सम्बन्धी विचारों के कारण पूरे यूरोप में लोकप्रिय हो चला था। ब्रिटिश संसद उसे Single शोध संस्थान हेतु इंग्लैंड बुलाना चाहती थी पर यह योजना कार्यान्वित नहीं हो सकी। कमेनियस शिक्षा सम्बन्धी कार्यों के सम्पादन हेतु स्वीडन गया जहाँ उसने छह वर्ष के कठिन परिश्रम से लैटिन की स्कूली पुस्तकों को तैयार Reseller। इस क्रम-बद्ध पाठ्यपुस्तकों की श्रृंखला को पूरे यूरोप में ख्याति मिली।
स्वीडन के उपरांत कमेनियस 1650 र्इ0 में हंगरी गया जहाँ उसे Single विद्यालय स्थापित करने हेतु आमंत्रित Reseller गया था। कमेनियस इस विद्यालय को अपने सिद्धान्तों के अनुReseller बनाना चाहता था पर इस कार्य में उसे असफलता ही मिली। जीवन के अन्तिम वर्षों को कमेनियस ने एम्सटर्डम में बिताया जहाँ 1670 र्इ0 में उसकी मृत्यु हो गर्इ।
कमेनियस की प्रमृख कृतियाँ
कमेनियस ने अनेक पुस्तकों की Creation की। इनमें सर्वप्रमुख ‘दि ग्रेट डाइडेक्टिक’ है जो उनकी प्रारम्भिक Creation है। इस काल में कमेनियस के कार्यों पर धर्म का अधिक प्रभाव था। इस पुस्तक में कमेनियस ने ‘‘प्रत्येक व्यक्ति को प्रत्येक विषय पढ़ाने’ सम्बन्धी सिद्धान्त का प्रतिपादन Reseller तथा इसे पढ़ाने की विधि बतलायी। इस पुस्तक का उपशीर्षक कमेनियस की प्रजातांत्रिक विचारधारा को स्पष्ट करता है ‘‘र्इसार्इ साम्राज्य के उपनगर, नगर And गाँव में बिना किसी अपवाद के All लड़के And लड़कियों के लिए ऐसे विद्यालयों की स्थापना करना जहाँ वे शीघ्रता And आनन्द से व्यापक Reseller में विज्ञान, नैतिकता And धार्मिकता में प्रशिक्षित होंगे तथा उन All चीजों में शिक्षित होंगे जिसकी Need वर्तमान And भविष्य में पड़ेगी।’’
कमेनियस की दूसरी प्रसिद्ध पुस्तक है ‘गेट ऑफ टंगस अनलॉक्ड’। इस पुस्तक की Creation लैटिन सीखने वालों के लिए की गर्इ। इसमें इस शास्त्रीय भाषा के संदर्भ में महत्वपूर्ण जानकारी देते हुए इसे सीखने की विधि बनार्इ गर्इ है। स्वेडन प्रवास के दौरान उन्होंने स्कूली बच्चों द्वारा लैटिन सीखने के लिए क्रमिक पाठ्यपुस्तकों की Creation की। इनमें से ‘जनुआ लिंग्वारम’ पूरे विश्व में प्रसिद्ध है और अनेक भाषाओं में प्रकाशन Reseller गया। इसमें 100 अध्याय है। शीर्षक क्रमबद्ध ढ़ंग से दिया गया है, जैसे- संसार की उत्पत्ति, आग, पानी, पत्थर, धातु, वृक्ष तथा फल, जड़ी-बूटी, पशु, Human, उसका शरीर, बाह्य सदस्य, आन्तरिक सदस्य, शरीर का गुण, रोग, अल्सर And घाव, बाह्य इन्द्रियां, आन्तरिक इन्द्रियां, मस्तिष्क, इच्छा, स्नेह, यांत्रिक कला, घर And उसके भाग, विवाह, परिवार, राज्य And नागरिक Meansव्यवस्था, व्याकरण, भाषण कला, द्वन्दवाद तथा ज्ञान की अन्य शाखायें आदि। इस बात का ध्यान रखा गया कि प्रत्येक में व्याकरण की संCreation दी जाये ताकि Single कुशल अध्यापक आगमन पद्धति से व्याकरण का भी संपूर्ण ज्ञान छात्रों में विकसित कर सके।
‘दि लेबरिन्थ ऑफ दि वल्र्ड’ तथा ‘दि पैराडाइज ऑफ दि Means’ में उसने अपने धार्मिक सुधार के सिद्धान्तों का वर्णन Reseller है। दि लेबरिन्थ में उसने विद्यार्थियों को दिए जा रहे अHumanीय दंड का History Reseller है। ‘दि पैराडाइज ऑफ दि Means’ में उन्होंने शिक्षा का उद्देश्य र्इसामसीह के बताये मार्ग का अवलम्बन करना बताया है।
1633 में कमेनियस ने वेस्टिबुलम (द्वार) प्रकाशित Reseller- जो कि First की व्याकरण की पुस्तकों से बहुत सरल था। बाद में Second ग्रंथों की भी Creation की। दि एटरियम दि जनुआ का विस्तार था- उसी योजना को स्वीकार Reseller गया- उन्हीं विषयों का विस्तृत वर्णन Reseller गया तथा व्याकरण पर भी अधिक ध्यान दिया गया। साथ में लैटिन में लिखे व्याकरण का भी उपयोग Reseller जाना था। इस सीरीज की अंतिम पुस्तक दि पैलेस या थेजारस में संक्षेप में लैटिन भाषा में उपलब्ध साहित्य को संकलित Reseller गया।
दि ओरबिस पिक्चस सेन्सुअलियम 1657 में प्रकाशित हुर्इ। इस पुस्तक में परिचय, प्रतीकों या Wordों की जगह- वस्तुओं के चित्रों द्वारा दिया गया है। दि ओरबिस पिक्चस बच्चों हेतु चित्र सहित पहली पाठ्य पुस्तक होने के कारण प्रसिद्ध है। लेकिन वस्तुओं को प्रस्तुत करने की विधि तथा आगमन विधि से सामान्य ज्ञान की ओर बढ़ना और अधिक महत्वपूर्ण है। पाठ्य वस्तु तो जनुआ की ही है पर प्रत्येक अध्याय के प्रारम्भ में अनेक नम्बर सहित चित्र दिए गए है। नम्बर पंक्ति का बोध करता है।
यद्यपि कमेनियस ने 100 से भी अधिक पुस्तकों And पाठ्य पुस्तकों की Creation की पर यह सब उसके Single सैद्धान्तिक कार्य दि डाइडेक्टिक मैग्ना में समाहित है जो 1632 में पूरी हुर्इ- पर इसका लैटिन अनुवाद 1657 तक प्रकाशित नहीं हुआ पाल मुनरो (246) के According यह अब तक शिक्षा से सम्बन्धित लिखे गए सर्वश्रेष्ठ ग्रन्थों में Single है। यह वर्तमान समय में भी अध् यापकों के लिए बेहद उपयोगी है। इसने भावी शैक्षिक विकास की विस्तृत आधारशिला रखी।
विश्वज्ञान (पॉनसोफिक)
कमेनियस का शिक्षा-सुधार का प्रयास धार्मिक उद्देश्यों से प्रेरित था। धर्म के अलावा उसकी रूचि विश्व-ज्ञान या सार्वभौमिक ज्ञान में था। यह विश्व-कोष (इनसाइक्लोपेडिया) के ज्ञान से भिन्न था, जो कि मध्यकाल में Single सामान्य प्रक्रिया थी। इसका उद्देश्य था ‘‘ब्रह्माण्ड की संCreation का उपयुक्त विश्लेषण, All अंगो And शिराओं का विच्छेदन इस तरह से करना कि ऐसा कुछ भी शेष नहीं हो जो दिखे नहीं। बिना किसी भ्रम के, All अंग अपने उपयुक्त स्थल पर दिखेंगे।’’ First विश्वकोष तथ्यों का संकलन मात्र था, लेकिन कमेनियस ने तथ्यों को सार्वभौमिक सिद्धान्तों के परिप्रेक्ष्य में व्यवस्थित Reseller। प्रत्येक कला And विज्ञान विषय में सार्वभौमिक नियम को आधार बनाया। Meansात् जो सर्वाधिक ज्ञात ज्ञान है से प्रारम्भ कर क्रमश: कम ज्ञान या अज्ञात की ओर बढ़ना- तब तक जब तक सारा ज्ञान समाहित न हो जाये। अत: कमेनियस की हर पाठ्यपुस्तक में प्रत्येक अध्याय And पैराग्राफ Single बिन्दु से Second की ओर क्रमबद्ध ढ़ंग से बढ़ता है और इस तरह से उसने सार्वभौमिक सिद्धान्त के आधार पर पाठ्यपुस्तकों की Creation की।
कमेनियस का शिक्षा-सिद्धान्त
कमेनियस ने शिक्षा के All आयामों-उद्देश्य, संCreation, पाठ्यक्रम, शिक्षण-विधि, अनुशासन और दंड पर महत्वपूर्ण विचार प्रकट किये और उन्हें व्यावहारिक बनाने का प्रयास Reseller। वस्तुत: कमेनियस के शिक्षा-सिद्धान्तों में आधुनिक शिक्षा के बीज निहित है।
शिक्षा का उद्देश्य
अपनी प्रसिद्ध पुस्तक ‘दि ग्रेट डाइडेक्टिक’ में कमेनियस ने Human जीवन के मूल उद्देश्य की Discussion करते हुए कहा ‘‘Human का सर्वप्रमुख उद्देश्य है र्इश्वर के साथ शाश्वत खुशी या प्रसन्नता ‘‘शिक्षा का उद्देश्य है इस महान कार्य में सहायता प्रदान करना। यहाँ तक उस समय के All दार्शनिक Agree थे। लेकिन साधन के Reseller में शिक्षा के संप्रत्यय के संदर्भ में भिन्नता थी। कमेनियस के पूर्व के दार्शनिक नैसर्गिक इच्छा, मूल प्रवृत्ति और संवेगो को नियन्त्रित या समाप्त कर मानसिक And नैतिक अनुशासन लाना चाहते थे। कमेनियस ने बिल्कुल दूसरी धारा पर कार्य Reseller- जो आधुनिक शैक्षिक प्रयत्नों का मार्ग बन गया। कमेनियस के According अंतिम या सर्वप्रमुख धार्मिक उद्देश्य की प्राप्ति अपने ऊपर नैतिक नियन्त्रण रखकर Reseller जा सकता है। इसे स्वयं के बारे में ज्ञान तथा Second पदार्थों के बारे में ज्ञान प्राप्त कर हासिल Reseller जा सकता है। कमेनियस के According शिक्षा का उद्देश्य है क्रमश: ज्ञान, सद्गुण तथा धर्मपरायणता को प्राप्त करना। कमेनियस ने संगत Reseller में इन उद्देश्यों को तर्क And मनोविज्ञान के आधार पर Single सूत्र में पिरो दिया। ज्ञान, सदाचार And धर्मपरायणता यही आत्मोन्नयन का क्रम है और यही शिक्षा का उद्देश्य है।
कमेनियस ने अपने First पानसोफिक कार्य (विश्वज्ञान) में कहा कि ज्ञान प्राप्ति के तीन माध्यम हैं: (अ) इन्द्रियाँ (ब) बुद्धि तथा दैविक दृष्टि या दिव्य ज्ञान। Human से गलतियां नहीं होंगी अगर इन तीनों में समन्वय बनाया जाय। अत: शिक्षा का Single महत्वपूर्ण उद्देश्य है ज्ञान के इन तीनों माध्यमों में समन्वय स्थापित कर Human-जीवन को बेहतर बनाना।
कमेनियस सबों को शिक्षा देना चाहते थे क्योंकि उन्हें हर आदमी में अनन्त संभावनायें दिखती थी। साथ ही भाग्य की अनिश्चितता से Human को बचाने हेतु कमेनियस सबों को हर चीज की शिक्षा देने का उद्देश्य रखते हैं। इस तरह से शिक्षा के सार्वजनीकरण का उद्देश्य का आधार धार्मिक था।
कमेनियस का शिक्षा-मनोविज्ञान
कमेनियस पौधों And जन्तुओं के विकास, प्राकृतिक घटनाओं, बच्चों की रूचि, शिल्पों And Humanीय कलाओं के गम्भीर अवलोकनकर्ता थे। उनका मानना था कि बच्चे का प्राकृतिक विकास ही शिक्षा का सही आधार होना चाहिए। वे Human के पाँच इन्द्रियों को आत्मा क द्वार मानते थे। वे इस पुराने कहावत को सही मानते थे ‘‘बुद्धि में ऐसा कुछ भी नहीं होता है जो First इन्द्रियों में न हो।’’ शिशु And वर्नाक्यूलर विद्यालयों की शिक्षा को कमेनियस ने इसी सिद्धान्त पर आधारित Reseller।
कमेनियस ने कल्पना शक्ति को छठी इन्द्रिय कहा। कमेनियस ने बच्चे के ज्ञान तथा अध्यात्मिक पक्ष के विकास के लिए कल्पना शक्ति को आवश्यक माना। उसने यह माना कि याद करने की शक्ति को अभ्यास के द्वारा बढ़ाया जा सकता है। लेकिन याद करने के पूर्व विषय वस्तु की विवेचना And समझ आवश्यक है। अत: उसने श्यामपट्ट, चित्र, रेखाचित्र आदि के उपयोग को आवश्यक बताया। केवल महत्वपूर्ण चीजों को ही याद Reseller जाना चाहिए।
कमेनियस ने तर्क And विवेक को महत्वपूर्ण माना। इसके द्वारा Human को किसी भी चीज को कहाँ और कैसे प्राप्त करने का प्रयास करना चाहिए या उसकी उपेक्षा करनी चाहिए, को तय कर पाता है।
शिक्षा में संवेगो की भूमिका को कमेनियस ने महत्वपूर्ण माना। इसके पूर्व किसी भी शिक्षाशास्त्री ने संवेग को महत्व नहीं दिया था। उसने बच्चे की प्राकृतिक जिज्ञासा को जगाना शिक्षा के लिए लाभदायक माना। उसने संकल्प तथा नैतिक प्रकृति को Human अनुभव में सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना।
कमेनियस ने बच्चों के मध्य की भिन्नता को भी स्वीकार Reseller तथा अध्यापकों को सुझाव दिया कि कक्षा में समूह में शिक्षा देते समय भिन्नता पर भी ध्यान रखा जाय। कमेनियस ने पाठ्यक्रम And शिक्षण कार्य के निर्धारण में बच्चे के विकास के स्तर को सर्वाधिक महत्वपूर्ण माना।
यह शिक्षा को उसका सर्वाधिक महत्वपूर्ण योगदान है। वह विकास के भिन्न-भिन्न स्तरों पर बच्चे की Needओं, रूचियों तथा समझ की शक्ति को महसूस करता था उसी के आधार पर उसने पाठ्यपुस्तकों का निर्माण Reseller। यह कमेनियस की महत्वपूर्ण उपलब्धि थी।
कमेनियस यह नहीं चाहते थे कि छोटे बच्चे लगातार छह से आठ घंटे तक लगातार अध्ययन करें। उन्होंने छोटे बच्चों को Single दिन में चार घंटे और बड़े बच्चों को छह घंटे कार्य करने को कहा। गृह-कार्य न देने की संस्तुति की। बीच में तीस मिटन का अवकाश देने की Need बताया। जिन कार्यों में मस्तिष्क को अधिक लगाने की Need होती है उसे First करने को कहा तथा शेष कार्यों जैसे हस्तकला, संगीत आदि का अभ्यास अपराह्न में करने का सुझाव दिया। यह सब सुझाव दिखाता है कि कमेनियस का आधुनिक शिक्षा में महत्वपूर्ण योगदान है।
कमेनियस के पूर्व बच्चों को व्यक्तिगत Reseller से शिक्षा दी जाती थी। कक्षा का स्वReseller स्थापित नहीं हुआ था। कमेनियस ने Single कक्षा में Single साथ अनेक विद्यार्थियों को शिक्षा देने की प्रक्रिया को प्रारम्भ Reseller। विद्यालयों में हर कक्षा और विषय के लिए अलग-अलग निश्चित पाठ्यपुस्तक की Need पर कमेनियस ने जोर दिया और आगनात्मक पद्धति के According उसने स्वयं पाठ्यपुस्तकों की Creation की।
तत्कालीन शिक्षा व्यवस्था की आलोचना
तत्कालीन प्रचलित शिक्षा व्यवस्था और विद्यालयों की कमेनियस ने कटु आलोचना की। ‘‘विद्यालय लड़को के लिए आतंक है और मस्तिष्क के लिए बूचड़खाना। यहाँ दस वर्ष व्यतीत करने के उपरांत बच्चे उतना ही सीख पाते है जो Single वर्ष में सिखाया जा सकता है। जिस ज्ञान को स्नेहसिक्त कोमलता के साथ दिया जाना चाहिए उसे हिंसक ढ़ंग से शारीरिक दंड के द्वारा दिया जाता है।’’ कमेनियस ने ज्ञान को सरल और स्पष्ट Reseller से देने की Need बतार्इ जबकि अत्यंत ही जटिल और भ्रमित करने वाले Wordों के माध्यम से शिक्षा दी जाती है।
लड़के And लड़कियों-दोनों के लिए शिक्षा
कमेनियस ने अपनी पुस्तक ‘दि ग्रेट डाइडैक्टिक’ लिखा में अमीर-गरीब, सम्मानित-सामान्य, शक्तिशाली-शक्तिहीन, All वर्ग के लड़के-लड़कियों को शिक्षा देनी चाहिए चाहे वह गाँव में रहता हो या कस्बा में या शहर में। हर जगह विद्यालय की व्यवस्था होनी चाहिए। All बच्चे को स्कूल जाना चाहिए- अगर भगवान ने स्वयं उसे बुद्धि या बोध न देकर शिक्षा से वंचित न Reseller हो। लड़कियों की शिक्षा के संदर्भ में कमेनियस ने स्पष्ट Wordों में कहा- ‘‘उनमें लड़के समान ही तेज मस्तिष्क और ज्ञान प्राप्त करने की क्षमता होती है। साथ ही वे सर्वोच्च पदों को प्राप्त कर सकती हैं क्योंकि स्वयं र्इश्वर ने उसे राष्ट्रों पर शासन करने को कहा है। तो क्यों हमलोग उसे अक्षरों के लिए प्रवेश देते हैं पर बाद में पुस्तक से बाहर कर देते है।’’
विद्यालयी शिक्षा का महत्व
कमेनियस के According गृह-शिक्षा से बेहतर विद्यालय द्वारा दी जाने वाली शिक्षा है। विद्यालय अनिवार्य है क्योंकि अभिभावकों में प्राय: शिक्षा देने की योग्यता नहीं होती और न ही उनके पास इसके लिए समय होता है। कमेनियस के According अगर माता-पिता के पास बच्चों को शिक्षा देने हेतु योग्यता And अवकाश भी हो तो भी बच्चों को कक्षाओं में, समूह में शिक्षा देना अधिक लाभदायक है। जब किसी बच्चे को उदाहरण और अभिप्रेरणा के Reseller में सामने रखकर सिखाया जाता है तो अच्छा परिणाम आता है और सीखना भी आनन्दप्रद हो जाता है। जो Second को करते देखते हैं वही हमलोग करते हैं, वहाँ जाना चाहते हैं जहाँ Second लोग जाते है, उनलोगों के साथ चलने का प्रयास करना जो हमसे आगे हैं और उनके आगे रहने का जो हमसे पीछे हैं- ऐसा करना हमारा प्राकृतिक गुण है। उपदेश की तुलना में छोटे बच्चे उदाहरण के द्वारा अधिक प्रभावित होते हैं। अगर अध्यापक उन्हें उपदेश देता है तो यह बच्चों पर अत्यल्प प्रभाव डालता है पर जब अध्यापक उन्हें दिखाता है कि Second ऐसा कर रहे हैं तो वह भी ऐसा करने लगता है। कमेनियस सबों के लिए समान विद्यालय चाहता है। वह कहता है मैं चाहता हूँ All Human को All गुणों की शिक्षा दी जाय, विशेषत: सरलता, समाजिकता तथा विनम्रता की। इस छोटी आयु में वर्ग विभेद को बढ़ावा देकर कुछ विद्यार्थियों को अपने को श्रेष्ठता की दृष्टि से देखना और Second को घृणा की दृष्टि से देखने का अवसर देना अवांछित है।’’
विद्यालय का संगठन
विद्यालय के संगठन के संदर्भ में भी कमेनियस अपने समकालीनों से दो शताब्दी आगे था। कमेनियस ने अपनी पुस्तक ‘दि स्कूल ऑफ दि मर्दस नी’ में माताओं को बच्चों की प्रारम्भिक शिक्षा पर ध्यान देने को कहा है। साथ ही शिशुओं की शारीरिक देखभाल, व्यवहार का प्रशिक्षण, स्थान तथा समय का सामान्य अनुभव तथा विभिन्न घटनाओं के मध्य कार्य-कारण सम्बन्ध का ज्ञान देना चाहिए। इस तरह से नर्सरी विद्यालय की आधारशिला कमेनियस ने तैयार की।कमेनियस विद्यालयों का गठन निम्नलिखित योजना के आधार पर करना चाहते थे-
- मातश् या नर्सरी विद्यालय- जन्म से छह वर्ष की उम्र के बच्चों के लिए।
- वर्नाक्यूलर (जनभाषा) या प्राथमिक विद्यालय – यह छह से बारह वर्ष तक के विद्यार्थियों के लिए प्रत्येक गाँव में होना चाहिए।
- लैटिन या माध्यमिक विद्यालय- यह बारह से अठारह वर्ष तक के विद्यार्थियों की शिक्षा के लिए प्रत्येक नगर में होना चाहिए।
- विश्वविद्यालय- यह सामान्यत: अठारह से चौबीस वर्ष के विद्यार्थियों के लिए प्रत्येक प्रांत में होना चाहिए।
- विश्वविद्यालय से ऊपर ‘कॉलेज ऑफ लाइट’ था जहाँ All विषयों में अन्वेषण Reseller जाता था।
कमेनियस के According Single स्तर से Second स्तर में केवल योग्यता के आधार पर जाने की अनुमति मिलनी चाहिए।
जब बच्चा केवल छह वर्ष का होता है तो यह कहना कठिन होता है कि वह भविष्य में क्या बनेगा, वह बौद्धिक कार्य के लिए उपयुक्त है या शारीरिक परिश्रम के लिए। अत: उनकी रूचि का स्पष्ट ज्ञान इस स्तर पर नहीं हो सकता है। कमेनियस ने लैटिन स्कूल को केवल धनी, प्रभावशाली और प्रKing वर्ग के बच्चों के लिए Windows Hosting रखने का विरोध करते हुए All वर्ग के योग्य बच्चों के लिए इसके द्वार खोलने की वकालत की। विश्वविद्यालय में प्रवेश के नियम कड़े होने चाहिए। केवल योग्यतम विद्यार्थियों को ही विश्वविद्यालय में प्रवेश मिलना चाहिए। चुने विद्याथ्री जो कि Humanों में श्रेष्ठ है, बेहतर प्रगति करेंगे। शेष को अपना ध्यान किसी उद्योग, व्यापार या कृषि में लगाना चाहिए।
पाठ्यक्रम
कमेनियस ने पाठ्यक्रम निर्माण में भी विश्व ज्ञान या पानसोफिया के सिद्धान्त का अनुसरण Reseller। जिसका उदाहरण शिशु या मातश् विद्यालय के लिए सुझाये गये पाठ्यक्रम से स्पष्ट है। वे कहते हैं कि शारीरिक देखभाल, व्यवहार प्रशिक्षण के साथ-साथ शिशुओं को History, भूगोल और यहाँ तक कि धर्म की शिक्षा दी जाये।
वर्नाक्यूलर स्कूल में मातृभाषा की शिक्षा पर जोर देते हुए कमेनियस ने इसे ही शिक्षा का माध्यम बनाने पर जोर दिया। मातृभाषा का अध्ययन प्राचीन भाषाओं- लैटिन, ग्रीक, हिब्रू से अधिक आवश्यक बताया। पाठ्यक्रम में सामान्य गणित, गीत, धर्म, नैतिकता, Meansशास्त्र, राजनीति, सामान्य History And कला को स्थान दिया।
लैटिन स्कूलों का उद्देश्य तर्कशक्ति का विकास करना था। अत: कमेनियस ने इन विद्यालयों के पाठ्यक्रम में तर्कशास्त्र, व्याकरण, अलंकार शास्त्र, विज्ञान And कला को रखा। इस स्तर पर विद्यार्थियों को चार भाषाओं को सीखने की संस्तुति की। ये भाषायें हैं- मातृभाषा, लैटिन, ग्रीक और हिब्रू।
कमेनियस ने लैटिन विद्यालयों का पाठ्यक्रम छह वर्षों को रखा। प्रत्येक वर्ष में शिक्षा देने का Single मुख्य विषय निर्धारित कर कक्षाओं का नामाकरण भी उसी आधार पर Reseller, यथा
First वर्ष – व्याकरण-कक्षा
द्वितीय वर्ष – प्राकृतिक दर्शन-कक्षा
तृतीय वर्ष – गणित-कक्षा
चतुर्थ वर्ष – नीतिशास्त्र-कक्षा
पंचम वर्ष – डाइलेक्टिक-कक्षा
अंतिम वर्ष – अलंकार
शास्त्र-कक्षा इस नामाकरण से यह नहीं समझना चाहिए कि उस वर्ष मात्र उसी विषय की पढ़ार्इ होनी थी। पढ़ार्इ All विषयों की होनी थी- केवल जोर उस विषय पर होना था जिस पर नाम रखा गया।
विश्वविद्यालय स्तर के पाठ्यक्रम में धर्मशास्त्र की शिक्षा का प्रावधान Reseller गया- जिससे युवक आत्मा के सम्पर्क में आ सकें। मस्तिष्क के विकास के लिए दर्शन पढ़ाने की व्यवस्था की गर्इ। स्वास्थ्य की Safty के लिए चिकित्साशास्त्र And सामाजिक सम्बन्धों को बेहतर बनाने हेतु न्यायशास्त्र को भी पाठ्यक्रम में रखने का सुझाव कमेनियस ने दिया। परम्परागत Reseller से तीनों प्रोफेशन- वकील, पादरी And चिकित्सा की भी शिक्षा And प्रशिक्षण देने की व्यवस्था की गर्इ। शासन के संचालन हेतु नेताओं And प्रKingों को भी तैयार करने की जिम्मेदारी विश्वविद्यालयों की ही थी। कमेनियस के According विश्वविद्यालयों को शोध केन्द्र को Reseller में कार्य करना चाहिए। ज्ञान के विकास हेतु कमेनियस ने भ्रमण को महत्वपूर्ण माना। उसके According विश्वविद्यालयी शिक्षा पूर्ण करने के उपरांत व्यक्ति को भ्रमण करना चाहिए, विद्वानों से विचार-विनिमय करना चाहिए ताकि ज्ञान का प्रसार और सृजन हो सके।
कमेनियस ने विश्वज्ञान के संप्रत्यय पर काफी जोर दिया। विश्वज्ञान के प्रमुख विषय हैं: व्याकरण, अलंकार शास्त्र, अंकगणित, खगोल विद्या, भौतिकी, भूगोल, History, नीतिशास्त्र तथा धर्मशास्त्र। History के अध्ययन को कमेनियस अत्यन्त महत्वपूर्ण मानता था। उनका कहना था: Human की शिक्षा में सबसे महत्वपूर्ण तत्व है उसका History से परिचय और यह परिचय उसके सम्पूर्ण जीवन में Third नेत्र के समान है। अत: यह विषय छह कक्षाओं में से प्रत्येक में पढ़ना चाहिए, ताकि हमारे विद्याथ्री अतीत से आज तक की घटनाओं से अनभिज्ञ न रह जाएँ।’’
कमेनियस ने पाठ्यक्रम में उपयोगी विषयों के अध्यापन पर भी जोर दिया। इस संदर्भ में उन्होंने कहा ‘‘जो कुछ भी पढ़ाया जाय वह दैनिक जीवन की व्यावहारिक And निश्चित उपयोगिता को ध्यान में रखकर ही पढ़ाया जाय। कहने का तात्पर्य है कि बालक को यह समझना चाहिए कि जो कुछ सीख रहा है; वह प्लेटो के प्रत्ययों की दुनिया की चीज अथवा काल्पनिक वस्तु ही नहीं है वरन् वह हमारे वातावरण का तथ्य है और उस तथ्य से उसका परिचय जीवन के लिए बड़ा उपयोगी होगा। इस प्रकार उसकी शक्ति And शुद्धता में वृद्धि की जा सकती है।’’
इस प्रकार यह स्पष्ट है कि कमेनियस द्वारा प्रस्तावित पाठ्यक्रम काफी विस्तृत था जिसमें ज्ञान And जीवन के हर पक्ष को समाहित Reseller गया है।
शिक्षण-विधि
कमेनियस ने पिछली गलतियों को समाप्त करने And अपने सिद्धान्तों को कार्यReseller देने हेतु ‘क्रम के सिद्धान्त’ को अपनाने पर दिया। उसके According क्रम का सिद्धान्त (प्रिन्सिपुल ऑफ आर्डर) र्इश्वर And शिक्षा दोनो का First नियम है। अत: कमेनियस के According शिक्षण कला में समय, पढ़ाये जाने वाले विषयों And विधि का उपयुक्त समन्वय होना चाहिए।
कमेनियस के According सही या उपयुक्त शिक्षण-विधि वही है जो प्रकृति के नियमों का पालन करे। सबों को All विषय पढ़ाने हेतु प्राकृतिक क्रियाओं से सही विधि को सीखा जा सकता है। और अगर Single बार यह विधि विकसित हो जाती है तो शिक्षण उतना ही स्वभाविक हो जाता है जितना प्राकृतिक घटनायें। उदाहरण देते हुए कमेनियस कहते है कि चिड़ियाँ अपनी प्रजाति बढ़ाने हेतु प्रजनन क्रिया कष्टकारी शीत ऋतु या दुखदायी ग्रीष्म ऋतु में नहीं करती वरन् जीवनदायी बसन्त ऋतु में करती है, जब सूरज सबमें जीवन और शक्ति वापस लाता है। इसी तरह से माली उपयुक्त ऋतु में ही पौधों को लगाता है। लेकिन विद्यालयों में बौद्धिक कार्य हेतु उपयुक्त समय का चुनाव नहीं Reseller जाता है। कार्यों को विभिन्न सोपानों में विभाजित कर क्रमबद्ध ढंग से नहीं पढ़ाया जाता है। अत: बच्चों की शिक्षा जीवन के बसन्त यानि लड़कपन में प्रारम्भ होनी चाहिए। प्रभात बेला (जीवन के संदर्भ में) शिक्षा हेतु सर्वाधिक उपयुक्त है। पढ़ाये जाने वाले विषयों को इस तरह से क्रमबद्ध कर पढ़ाना चाहिए कि वह बच्चे की उम्र और विकास की अवस्था के अनुReseller हो। ऐसी कोर्इ भी चीज नहीं पढ़ार्इ जानी चाहिए जिसे समझने की अवस्था विद्यार्थियों की नहीं हो। कमेनियस को शिक्षण के कर्इ सूत्रों के विकास का श्रेय जाता है, जैसे:-
- सरल से कठिन: कमेनियस ने अध्यापकों को सुझाव दिया कि जो आसान है उससे प्रारम्भ कर कठिन की ओर बढ़ो।
- विषयों का समन्वय: जो विषय Single Second से सम्बन्धित हैं उन्हें पढ़ाते समय Single-Second के सम्बन्धों के बारे में स्पष्ट ज्ञान देना चाहिए।
- शिक्षण की आगमन-विधि: कमेनियस ने कहा ‘‘नियमों के पूर्व उदाहरण आना चाहिए।’’
- रूचि का सिद्धान्त: कमेनियस ने कहा कि रूचि के बिना सीखना संभव नहीं है अत: अध्यापक को चाहिए कि वह विद्यार्थियों में रूचि जगाने का हर संभव प्रयास करे।
- विकास का सिद्धान्त: कमेनियस के कार्यों में पेस्टालॉजी के मनोवैज्ञानिक सिद्धान्तों के बीज देखे जा सकते है। जिसके According बच्चे को वैसा कुछ भी नहीं पढ़ाया जाना चाहिए जिसके लिए बच्चे की उम्र और मानसिक बौद्धिक शक्ति की माँग न हो।
अनुशासन और दण्ड
कमेनियस अध्यापकों से यह उम्मीद करता है कि वे छात्रों को पुत्रवत मानेंगे। साथ ही वे विद्यालय में कड़ा अनुशासन चाहते हैं। छात्रों में सुधार हेतु कमेनियस शारीरिक दंड देने की भी अनुशंसा करते हैं। वे कहते हैं ‘‘विद्यार्थियों और अध्यापकों को ध्यान और सावधानी की Need है। सावधानी के बावजूद छात्रों में बुरार्इ आ सकती है। अत: अनुशासन हीनता And बुरी प्रवृतियों को रोकने हेतु विद्यार्थियों को शारीरिक दंड भी दिया जाना चाहिए। विद्याथ्री को गलती करते ही दंड देना चाहिए ताकि बुरार्इ को समूल समाप्त Reseller जा सके।’’
यहाँ पर यह तथ्य Historyनीय है कि कमेनियस ने गलती करने वाले छात्रों को ही दण्डित करने को कहा। साथ ही दण्ड का उद्देश्य बच्चों को गलत प्रवृतियों And बुराइयों के शिकार होने से रोकना था। सामान्य स्थिति में तो कमेनियस अध्यापकों से छात्र के लिए स्नेहशील होने की उम्मीद रखता था। कमेनियस ने कहा ‘‘अध्यापकों को चाहिए कि वे अपने बेरूखे व्यवहार से विद्यार्थियों को विलग न करे वरन् पिता की तरह भावनाओं And Wordो के प्रयोग से उन्हें आकृष्ट करें।’’
कमेनियस का शिक्षा पर प्रभाव
कमेनियस के शिक्षा सम्बन्धी कार्यों का शिक्षा के भावी विकास पर व्यापक प्रभाव पड़ा। आधुनिक प्रगतिशील शिक्षा व्यवस्था की नींव कमेनियस ने ही रखी। उन्होंने First बार शिक्षा पर अभिजात्य या प्रभावशाली वर्ग के Singleाधिकार के सिद्धान्त की आलोचना करते हुए शिक्षा को All बच्चों के लिए, चाहे वे अमीर परिवार के हो या गरीब परिवार के, अनिवार्य करने की Need बतार्इ। इस प्रकार शिक्षा में प्रजातांत्रिक पद्धति की शुरूआत करने का श्रेय कमेनियस को जाता है।
बच्चे के विकास के स्तर को ध्यान में रखते हुए शिक्षा देने के सिद्धान्त का प्रतिपादन कर वे अपने समय से काफी आगे की बात कर रहे थे। साथ ही रूचि And अभिप्रेरणा जैसे संप्रत्ययों पर जोर देकर वे आधुनिक प्रगतिशील शिक्षा की नींव रख रहे थे।
विद्यालयों में अनिवार्य शिक्षा, कक्षा का संगठन, शिक्षण-विधि, पाठ्यपुस्तक आदि को कमेनियस ने व्यावहारिक And व्यवस्थित स्वReseller दिया। आधुनिक शिक्षा इन्हीं आधारों पर टिकी है।
शिक्षा में इन्द्रियों, संवेगो, प्रकृति के नियमों आदि को उपयोगी मानकर, परम्परागत मध्यकालीन शिक्षा सिद्धान्तों से भिन्न Single वैज्ञानिक दृष्टिकोण पर आधारित शिक्षा व्यवस्था के विकास में कमेनियस ने महत्वपूर्ण भूमिका निभायी।
भाषा-शिक्षण के क्षेत्र में कमेनियस का योगदान Historyनीय है। लैटिन भाषा को सीखने हेतु उन्होंने अनेक पाठ्यपुस्तकों की Creation की-जिसका विश्व के अनेक भाषाओं में अनुवाद हुआ। साथ ही मातृभाषा का शिक्षा में अधिक से अधिक प्रयोग करने की Need पर जोर देकर कमेनियस ने शिक्षा को मध्यकालीन बन्धनों से मुक्त करने का प्रयास Reseller और उसे Single प्रजातांत्रिक और प्रगतिशील स्वReseller प्रदान करने का प्रयास Reseller।
इस प्रकार हम पाते हैं कि आधुनिक शिक्षा के स्वReseller के निर्धारण में कमेनियस के विचारों और कार्यों की महत्वपूर्ण भूमिका है।