जेरेमी बेन्थम का सिद्धान्त –

जेरेमी बेन्थम का सिद्धान्त


By Bandey

अनुक्रम

जेरेमी बेन्थम का उपयोगितावाद का दर्शन गलत धारणाओं पर आधारित है। बेन्थम ने सुख औरआनन्द को समानाथ्र्ाी मान लिया है। यह अन्तर्विरोधों से ग्रस्त है। यह गुणात्मक पहलू की उपेक्षा करता है। उसका सुखवादीमापन यन्त्र वैज्ञानिक तरीका नहीं है। ‘सबसे बड़ा सुख’ और ‘सबसे बड़ी संख्या’ के मध्य कोई तार्किक सम्बन्ध नहीं है। यह सिद्धान्त बहुमत की निरंकुशता को बढ़ावा देता है। अत: यह सिद्धान्त भ्रान्त, भौतिक व Singleांगी है। इसमें यथार्थवाद वमनोवैज्ञानिकता का पुट नहीं है। इसलिए यह सिद्धान्त अस्पष्ट व अपूर्ण है। लेकिन अनेक दोषों के बावजूद भी यह सिद्धान्त लोक-कल्याणकारी राज्य की उदात्त भावना से प्रेरित है। आधुनिक प्रजातन्त्र में इसका विशेष महत्त्व है।

जेरेमी बेन्थम का सिद्धान्त

उपयोगितावाद का सिद्धान्त

उपयोगितावाद का सिद्धान्त बेन्थम की सबसे महत्त्वपूर्ण And अमूल्य देन है। उसके अन्य All राजनीतिक विचार उसके उपयोगितावाद पर ही आधारित हैं। लेकिन उसे इसका प्रवर्तक नहीं माना जा सकता। रोचक बात यह है कि बेन्थम ने कहींभी उपयोगितावाद Word का प्रयोग नहीं Reseller। बेन्थम के उपयोगितावादी दर्शन का वर्णन उसकी दो पुस्तकों – ‘फ्रैग्मेण्ट्स ऑनदि गवर्नमेंट’ (Fragments on the Government) तथा ‘इण्ट्रोडक्शन टू दॉ पिंसिपल्स ऑफ मॉरल्स एण्ड लेजिस्लेशन’(Introduction to the Principles of Morals and Legislation) में मिलता है।


उपयोगितावाद का विकास

उपयोगितावाद के First आचारशास्त्र के Single सिद्धान्त के Reseller में प्राचीन यूनान के एपीक्यूरियन सम्प्रदाय में ही दर्शन होतेहैं। इस सम्प्रदाय के According मनुष्य पूर्णतया सुखवादी है। वह सुख की ओर भागता है तथा दु:खों से बचना चाहता है। इसकेबाद सामाजिक समझौतावादियों ने भी 17 वीं शताब्दी में इसका कुछ विकास Reseller। हॉब्स ने कहा कि मनुष्य पशुवत आचरणकरने वाला Single सुखवादी प्राणी है। लॉक तथा पाश्चात्य दर्शन के सिरेनाक वर्ग के प्रचारकों ने भी उपयोगितावाद का विकासReseller। डेविड ह्यूम ने भी इसका विकास Reseller। आगे चलकर ह्येसन ने अपनी पुस्तक ‘नैतिक दर्शन पद्धति’ (System of MoralPhilosophy) में उपयोगितावाद के मूलमन्त्र ‘अधिकतम संख्या के अधिकतम सुख’ (The Greatest Happiness of the GreatestNumber) का First बार प्रयोग Reseller। आगे प्रीस्टले ने भी इसी मूलमन्त्र का प्रयोग Reseller। इसके बाद बेन्थम ने भी प्रीस्टलेके निबन्ध ‘Priestley’s Essay on Government’ से उपयोगितावाद की प्रेरणा ग्रहण की। बेन्थम ने बताया कि राज्य की सार्थकतातभी है जब वह अधिकतम लोगों के लिए अधिकतम सुख की व्यवस्था करे।

उपयोगितावाद का Means

उपयोगितावाद राजनीतिक सिद्धान्तों का ऐसा कोई संग्रह नहीं है जिसमें राज्य और सरकार के सिद्धान्तों का प्रतिपादन Resellerगया हो। यह Human आचरण की प्रेरणाओं से सम्बन्धित Single नैतिक सिद्धान्त है। उपयोगितावाद 18 वीं शताब्दी के आदर्शवादके विरुद्ध Single प्रतिक्रिया है जो इन्द्रियानुभववाद की स्थापना करता है। उपयोगितावादियों की दृष्टि में उपयोगितावाद का Means- ‘अधिकतम लोगों का अधिकतम सुख’ है। इसका Means “किसी वस्तु का वह गुण है जो लाभ, सुविधा, आनन्द, भलाई या सुखप्रदान करता है तथा अनिष्ट, कष्ट, बुराई या दु:ख को पैदा होने से रोकता है।” बेन्थम के मतानुसार- “उपयोगिता किसी कार्यया वस्तु का वह गुण है जिससे सुखों की प्राप्ति तथा दु:खों का निवारण होता है।” बेन्थम ने आगे कहा है कि उपयोगितावादकी अवधारणा हमें यह बताती है कि हमें क्या करना चाहिए तथा क्या नहीं करना चाहिए। यह हमारे जीवन के समस्त निर्णयोंकी आधारशिला है। उपयोगितावाद का वास्तविक Means सुख है। व्यक्ति ही नहीं सम्पूर्ण समाज का लक्ष्य भी सुख की प्राप्तिहै।

उपयोगितावाद की विशेषताएँ

बेन्थम के उपयोगितावाद के सिद्धान्त की विशेषताएँ हैं :-

  1. सुख और दु:ख पर आधारित: बेन्थम का उपयोगितावादी सिद्धान्त सुख और दु:खके दो आधारों पर आधारित है। बेन्थम का मानना है कि जो कार्य हमें सुख देता है, उपयोगी है तथा जो कार्य दु:ख पहुँचायाहै, उपयोगी नहीं। बेन्थम का मानना है कि प्रकृति ने मनुष्य को सुख और दु:ख की दो शक्तियों के अधीन रखा है। यहीशक्तियाँ हमें बताती हैं कि मनुष्य को क्या करना चाहिए और क्या नहीं। सही और गलत के मानदण्ड उन शक्तियों सेबँधे हुए हैं।
  2. सुख की प्राप्ति और दु:ख का निवारण : बेन्थम का मत है किजो वस्तु सुख प्रदान करती है, वह अच्छी है और उपयोगी है। जिस कार्य या वस्तु से मनुष्य को दु:ख प्राप्त होता है वहअनुपयोगी है। Human के समस्त कार्यों की कसौटी उपयोगितावाद है। बेन्थम का मानना है कि जिस कार्य से प्रसन्नताया आनन्द में वृद्धि होती है तो वह कार्य उपयोगी है। उससे सुख की प्राप्ति होती है और दु:ख का निवारण होताहै। अत:उपयोगितावाद का सिद्धान्त सुख की प्राप्ति और दु:ख के निवारण का सिद्धान्त है।
  3. सुख व दुु:ख का वर्गीकरण : बेन्थम ने सुख-दु:ख को दो भागों – सरलव जटिल में विभाजित Reseller है। उसके According सरल सुख 14 प्रकार के तथा सरल दु:ख 12 प्रकार के हैं। सरल सुखोंया दु:खों को परस्पर मिलाने से जटिल सुख या दु:ख का जन्म होता है। सरल सुख : (1) मित्रता का सुख (2) इन्द्रिय सुख (3) सहायता का सुख (4) सम्पर्क सुख (5) दया का सुख (6) स्मरण- शक्ति का सुख (7) आशा का सुख (8) सत्ता का सुख (9) धार्मिकता का सुख (10) ईष्र्या का सुख (11) उदारताका सुख (12) सम्पत्ति का सुख (13) कुशलता का सुख (14) यात्रा का सुख सरल दु:ख – (1) अपमान का दुःख (2) धर्मनिष्ठा का दु:ख (3) सम्पर्क का दुःख (4) कल्पना का दु:ख शत्रुताका दुख (6) इन्द्रिय दुःख (7) अभाव का दु:ख (8) स्मरण शक्ति का दुःख (9) उदारता का दु:ख (10) आशा का दु:ख(11) ईर्ष्या का दुःख (12) अकुशलता का दु:ख।
  4. सुख-दुःख के स्रोत : बेन्थम ने सुख-दुःख के चार स्रोत – धर्म, राजनीति, नैतिकतातथा भौतिक मानते हैं। धार्मिक सुख धर्म में आस्था रखने से व धार्मिक व्यवस्था को स्वीकार करने से प्राप्त होता है। जैसेकुम्भ के मेले में स्नान करना। यदि वहाँ कोई अनहोनी हो जाए तो उसे धार्मिक दु:ख कहा जाएगा। राजनीतिक सुख राज्यकी नीतियों व कार्यों से प्राप्त होता है। जैसे सरकार द्वारा धर्मनिरपेक्ष नीति का पालन करना। यदि सरकार कोई ऐसाकार्य करे जो जन-कल्याण के विपरीत हो तो उससे प्राप्त दु:ख राजनीतिक दु:ख होगा। व्यक्ति को नैतिक सुख उसकेनैतिक आचरण से प्राप्त होता है। जैसे दूसरों की सहायता करना। यदि Need पड़ने पर तुम्हें कोई सहायता न मिलेतो उससे प्राप्त दु:ख नैतिक दु:ख कहलाएगा। भौतिक सुख प्राकृतिक वस्तुओं से प्राप्त होता है। जैसे सन्तुलित वर्षा काहोना All को सुख प्रदान करता है। यदि वर्षा अत्यधिक मात्रा में होकर जनजीवन को अस्त-व्यस्त कर दे तो इससेप्राप्त दु:ख भौतिक या प्राकृतिक दु:ख कहलाएगा।
  5. सुखों में मात्रात्मक अन्तर : बेन्थम का मानना है कि All सुखगुणों में Single जैसे होते हैं। इसलिए उनमें गुणात्मक की बजाय मात्रात्मक अन्तर पाया जाता है, उसका कहना है कि “पुष्पिन(बच्चों का खेल) उतना ही अच्छा है जितना कविता पढ़ना” खेलने से भौतिक-सुख प्राप्त होता है जबकि कविता पढ़नेसे मानसिक सुख। दोनों सुखी की मात्रा को मापा जा सकता है। इनकी गणना सम्भव है। बेन्थम ने कहा है कि Singleकील भी उतना ही दर्द करती है जितना कर्कश आवाज। अत: सुखों में मात्रात्मक अन्तर है, गुणात्मक नहीं।
  6. सुखों-दु:खों का मापन : बेन्थम के According सुखों व दु:खों को परिमाणिकतौरपर मापा जा सकता है। इससे कोई अपने सुख या दु:ख को माप सकता है। यह मापन ही किसी वस्तु या कार्य कोसुख-दु:ख के आधार पर अच्छा या बुरा प्रमाणित कर सकता है। ये सुख-दु:ख Humanीय क्रियाओं के आचार व उद्देश्यहोते हैं। इन सुखों को फेलिसिफिक केलकुलस द्वारा मापा जा सकता है।
  7. सुखवादी मापक यन्त्र : बेन्थम का विचार है कि सुख-दु:ख को तुलनात्मक आधार पर परखाजा सकता है। बेन्थम ने सुख-दु:ख के मापन की जो पद्धति सुझाई है, उसे सुखवादी मापक यन्त्र (Felicific Calculus)का नाम दिया गया है। बेन्थम का मानना है कि सुख-दु:ख का गणित के सहारे पारिमाणिक नापतोल (MathematicalComputation), सम्भव है। इस सिद्धान्त के अन्तर्गत तीव्रता (Intensity), अवधि (Duration), निश्चिन्तता (Certainty),अनिश्चित्तता (Uncertainty), सामीप्य (Propinquity), अन्य सुख उत्पन्न करने की क्षमता (Fecundity), विशुद्धता (Purity)व विस्तार (Extent) के आधार पर सुख-दु:ख का मापन Reseller जाता है। बेन्थम ने स्पष्ट Reseller है कि जो सुख तीव्र होताहै, वह अधिक समय तक टिका रहता है। कम तीव्र सुख कम समय तक रहते हैं। निश्चित सुख अनिश्चित की तुलनामें अधिक मात्रा वाला होता है। इस प्रकार अन्य तथ्यों के आधार पर भी सुख-दु:ख का निResellerण Reseller जा सकता है।बेन्थम ने सुख-दु:ख की गणना करते समय सुखों के समस्त मूल्यों को Single तरफ तथा दु:खों के समस्त मूल्यों को दूसरीतरफ जोड़ने का सुझाव दिया है। यदि Single-Second को आपस में घटाने से सुख बच जाए तो वह कार्य उचित है अन्यथाअनुचित। इस प्रकार इस सिद्धान्त के द्वारा बेन्थम ने यह सिद्ध Reseller है कि कोई कार्य उचित है या अनुचित।
  8. परिणामों पर जोर : बेन्थम का उपयोगितावाद का सिद्धान्त परिणामों पर आधारित है, नीयत(Motive) पर नहीं। बेन्थम का मानना है कि सुख और दु:ख स्वयं ही उद्देश्य हैं। इनके होते हुए अच्छे या बुरे इरादों कोमानने की Need नहीं। किसी भी कार्य की अच्छाई या नैतिकता इस बात पर निर्भर नहीं करती कि वह किस उद्देश्यको लेकर Reseller जाता है, बल्कि इस बात पर निर्भर करती है कि उसके परिणाम क्या निकलते हैं। बेन्थम का माननाहै कि किसी भी विधि या संस्था की उपयोगिता की जाँच इस आधार पर ही हो सकती है कि स्त्रियों या पुरुषों पर उनकाक्या प्रभाव पड़ता है। बेन्थम नीयत (Motive) को उसी सीमा तक स्वीकार करता है, जहाँ तक वह परिणाम को निर्धारितकरती है। इस प्रकार उसने नैतिक बुद्धि, ईश्वरीय इच्छा, कानून के नियम आदि को तिलांजलि दे दी। उसने किसी वस्तुके परिणाम को ही सत्य-असत्य, अच्छाई-बुराई का मापदण्ड स्वीकार Reseller है।
  9. राज्य का उद्देश्य अधिकतम लोगों का अधिकतम सुख है : बेन्थम के According राज्य के वे कार्य ही उपयोगी हैं जो व्यक्तियों को लाभ पहुँचाते हैं। All व्यक्तिराज्य के आदेशों का पालन इसलिए करते हैं, क्योंकि वे उनके लिए उपयोगी हैं। राज्य का उद्देश्य किसी Single व्यक्ति कोसुख प्रदान करना नहीं है बल्कि अधिक से अधिक व्यक्तियों को सुख प्रदान करना है। इसलिए बेन्थम कहता है कि व्यक्तिको अधिक से अधिक लोगों के कल्याण में राज्य को सहयोग देना चाहिए।
  10. अनुशस्तियों का सिद्धान्त : बेन्थम का मानना है कि व्यक्ति के अधिकतम सुख तथा व्यक्तियोंके अधिकतम सुख के मध्य संघर्ष की सम्भावना को देखते हुए व्यक्ति पर अंकुश लगाना आवश्यक होता है ताकि वह दूसरोंके सुख को कोई हानि नहीं पहुँचाए। इसलिए दूसरों के सुखों का ध्यान रखने में व्यक्ति को प्रेरित करने के लिए कुछअनुशस्तियों (Sanctions) की Need पड़ती है। सुख की अनुशस्तियाँ शारीरिक, नैतिक, धार्मिक और राजनीतिक 4प्रकार की होती है। धार्मिक अनुशस्ति व्यक्ति के आचरण को ठीक करती है। नैतिक अनुशस्ति व्यक्ति के मन को अनुशासितकरती है। यह सदैव उपयोगी होती है। राजनीतिक अनुशस्ति राज्य द्वारा पुरस्कार और दण्ड के Reseller में व्यक्तियों परलगाई जाती है। इसे कानून अनुशस्ति भी कहा जाता है।

उपयोगितावाद की आलोचनाएँ

बेन्थम ने अपने उपयोगितावाद के सिद्धान्त को सरल और सुबोध बनाने का इतना अधिक प्रयास Reseller कि इस सिद्धान्त में अनेकदोष उत्पन्न हो गए। आलोचकों ने उसके इस सिद्धान्त को भ्रम And विरोधाभास का पिटारा कह दिया। इसकी आलोचना केप्रमुख आधार हैं:-

  1. मौलिकता का अभाव : यह सिद्धान्त बेन्थम की मौलिक देन नहीं है। बेन्थम ने पी्रस्टले के विचारोंको ही नया Reseller देने का प्रयास Reseller है। बेन्थम ने भी प्रीस्टले के ही इस विचार को उधार लिया है कि राज्य का उद्देश्य‘अधिकतम लोगों को अधिकतम सुख’ प्रदान करना है। ‘अधिकतम लोगों का अधिकतम सुख’ का विचार प्रीस्टले के माध्यमसे बेन्थम तक पहुँचा। अत: इसमें मौलिकता का अभाव है।
  2. अमनोवैज्ञानिक सिद्धान्त : बेन्थम ने Human-प्रकृति को कोरा सुखवादी माना है। उसकेAccording मनुष्य घोर स्वार्थी और अपने सुख के लिए प्रयास करने वाला प्राणी है। किन्तु सत्य तो यह है कि मनुष्य स्वार्थीन होकर परोपकारी भी है। वह दूसरों के लिए भी जीवन जीता है। वह सुख की भावना से नहीं बल्कि देश-प्रेम, बलिदान,त्याग आदि भावनाओं से भी प्रेरित होकर कार्य करता है। ईसा मसीह ने मृतयु को गले क्यों लगाया ? राम वन में क्योंगए ? इन सब के पीछे Single ही कारण था – परोपकार। इस प्रकार बेन्थम ने आध्यात्मिक विकास And उच्च आदर्शों कीअवहेलना करके केवल सुख को ही महत्त्व दिया है। अत: यह सिद्धान्त अमनोवैज्ञानिक है जो Human-प्रकृति का गलतचित्रण करता है।
  3. स्पष्टता का अभाव : बेन्थम ने सब कार्यों का आधार ‘अधिकतम संख्या के अधिकतम सुख के विचारको माना है। बेन्थम ने यह स्पष्ट नहीं Reseller है कि प्रधानता व्यक्तियों की संख्या को दी जाएगी या सुख की मात्रा को।उदाहरण के लिए हम मान लें कि कानून बनाने से 10 मिल मालिकों में से प्रत्येक को 1000 रुपये का लाभ होता है किन्तुमजदूरों की मजदूरी में 2 रुपये प्रति मजदूर के हिसाब से 1000 मजदूरों को 2000 रुपये की हानि होती है। मालिकोंको कुल 10000 रुपये का लाभ होता है। इसमें देखा जाए तो 10 मालिकों का लाभ 1000 मजदूरों की हानि से अधिकहै। अत: कानून बनाना उपयोगी है। यदि अधिकतम लोगों की दृष्टि से देखा जाए तो 1000 मजदूरों की हानि को महत्त्वदेकर कानून बनाया जाए। ऐसी अवस्था में अधिकतम संख्या व अधिकतम सुख में अन्तर्विरोध उत्पन्न होता है। इसलिएउपयोगिता का सिद्धान्त यह स्पष्ट नहीं करता कि कानून किसके पक्ष में बनाया जाए। अत: इस विषय में यह सिद्धान्तपद-प्रदर्शन न कर पाने के कारण अस्पष्ट व दोषपूर्ण है।
  4. सुखवादी मान्यता दोषपूर्ण है : बेन्थम केवल सुख को ही Humanीय क्रियाओं का Only प्रेरक कारण मानते हैं।आलोचकों का कहना है कि यदि संसार में केवलमात्र सुख को ही प्रेरक मान लिया जाए तो सुखों की प्राप्ति की होड़लग जाएगी। इससे कर्त्तव्य व स्वार्थ का संघर्ष समाप्त हो जाएगा। यदि भौतिक सुख ही सब कुछ होता तो कवि कविताकी Creation क्यों करता? महात्मा बुद्ध राजसी ठाठबाट का त्याग क्यों करते ? जिस प्रकार सुख की खोज Human-स्वभावका अंग है, वैसे ही देशभक्ति, त्याग, परोपकार आदि उदात्त भावनाएँ भी उसके स्वभाव का अंग है। Human जीवन आदर्शोंपर आधारित है, न कि सुखवादी दृष्टिकोण पर।
  5. सुखवादी मापन यन्त्र दोषपूर्ण है : बेन्थम द्वारा बताई गई इस विधि से सुखों का मात्रा को सही ढंग से मापना असम्भवहै। बेन्थम ने सुख मापन के विभिन्न तत्त्वों की तुलना करने का मूल्यांकन करने की निश्चित पद्धति नहीं बताई है। उदाहरणके लिए यदि Single सुख की प्रगाढ़ता (Intensity) कम तथा अवधि (Duration) अधिक हो तथा Second की प्रगाढ़ता(Intensity) अधिक तथा अवधि (Duration) कम हो तो दोनों सुखों की मात्रा और तारतम्य का निर्धारण कैसे हो ? इसविषय पर बेन्थम कुछ नहीं कह सका। अत: यह अनुपयोगी पद्धति है। व्यक्तियों की रुचि, समय और परिस्थितियों केकारण सुख-दु:ख में भी परिवर्तन आता रहता है। Single समय पर सुख देने वाली वस्तु Second समय दु:ख भी प्रदान करसकती है। रुचि वैचित्रय के कारण अधिकतम व्यक्तियों के अधिकतम सुख का अनुमान लगाना कठिन हो जाता है। अत:सुखवादी मापन यन्त्र में अस्पष्टता तथा अनिश्चितता है।
  6. बहुसंख्यकों की निरंकुशता : बेन्थम का सिद्धान्त प्रत्येक व्यक्ति के सुख पर नहीं बल्कि बहुसंख्या के सुख पर जोर देताहै। यदि बहुसंख्यक अपने आनन्द के लिए अल्पसंख्यकों को दास भी बनाना चाहें तो उचित है। इस दशा में अल्पसंख्यकोंका सुख बहुसंख्यकों के सुख के नीचे हमेशा दफन रहेगा। इस प्रकार अप्रत्यक्ष Reseller से यह सिद्धान्त बहुसंख्यकों केअत्याचार को उचित व न्यायपूर्ण ठहराता है। इसलिए यदि सुख स्वाभाविक प्रवृत्ति है तो उसे प्राप्त करने का अधिकारAll को मिलना चाहिए। अत: यह सिद्धान्त बहुसंख्यकों के अत्याचार व अन्याय को प्रोत्साहन देता है।
  7. नैतिकता की उपेक्षा : बेन्थम ने केवल भौतिक सुखों के आधार पर अपना सिद्धान्त खड़ा Reseller हैं उसने सुख को हीजीवन का चरम लक्ष्य माना है। उसकी दृष्टि में उच्च नैतिक भावना, अन्त:करण और धर्म-अधर्म का कोई महत्त्व नहीं है।उदाहरणार्थ पाँच डाकू Single सज्जन पुरुष को लूटकर उसे जान से मार दें तो इससे अधिकतम का ही लाभ हुआ। उससज्जन व्यक्ति की हानि का कोई महत्त्व नहीं रह जाता है। किन्तु नैतिक Reseller से ऐसा नहीं होना चाहिए। अत: बेन्थमने नैतिकता की घोर उपेक्षा करके अव्यवस्था को ही जन्म देने वाली स्थिति पैदा की है।
  8. सुखों के गुणात्मक भेद की उपेक्षा – बेन्थम की दृष्टि से विभिन्न वस्तुओं और कार्यों से प्राप्त सुख मात्रात्मक होता है,गुणात्मक नहीं। उसका कहना है कि आनन्द का जितनी मात्रा घर पर रहने से मिलती है, उतनी ही घूमने से नहीं मिलतीहै। दोनों सुखों में मात्रात्मक अन्तर होता है। लेकिन सत्य तो यह है कि Single चित्रकार को चित्र बनाने में जो आनन्द प्राप्तहोता है, वह उस चित्र को देखने वाले के आनन्द से अलग होता है। स्वादिष्ट वस्तुओं से मिलने वाला आनन्द, खेलने सेप्राप्त होने वाले आनन्द से भिन्न है। इन सब में मात्रात्मक भेद के साथ-साथ गुणात्मक भेद भी होता है। घर पर लेटेरहना Single निकृष्ट कोटि का आनन्द है, एवरेस्ट पर चढ़ना Single उत्कृष्ट कोटि का आनन्द है। अत: बेन्थम का सिद्धान्तगुणों की उपेक्षा करने के कारण दोषपूर्ण है। बेन्थम के अनुयायी जे0 एस0 मिल ने भी इस भूल को स्वीकार Reseller।
  9. शासन विषयक सिद्धान्त : बेन्थम ने राज्य और सरकार में कोई अन्तर नहीं Reseller है। वह व्यक्ति द्वारा सुख की प्राप्तिके लक्ष्य पर बल देता है। वह मनुष्य के और राज्य के पारस्परिक सम्बन्धों का विवेचन नहीं करता। वह केवल इतनाकहता है कि राज्य को न्यूनतम हस्तक्षेप करना चाहिए। वह केवल शासन कार्यों का विवेचन करता है, राज्य के सैद्धान्तिकपक्ष का नहीं।
  10. अतकर्सगंत : बेन्थम ने Single सुख से Second सुख की उत्पत्ति की बात तो कही है लेकिन इस सुख कके जनक की अवहले नाकी है। प्रत्येक सुख की उत्पत्ति के पीछे कोई न कोई कारण अवश्य होता है। बेन्थम इसका कारण बताने में असफलरहे हैं। अत: यह सिद्धान्त तर्कसंगत नहीं है।
  11. All सुख समान नहीं होते : बेन्थम ने भौतिक सुख और मानसिक सुखों को समान माना है। शरीर और आत्मा कीअनुभूति के उद्देश्य और मात्रा असमान होते हैं। बेन्थम ने मात्रात्मक आधार पर सुखों में अन्तर मानकर मनुष्य को पशुस्तर तक गिरा दिया है। मैक्सी का कहना है- “बेन्थम की धारणा के According मनुष्य सूअर है।”

इस प्रकार हम कह सकते हैं कि बेन्थम का उपयोगितावाद का दर्शन गलत धारणाओं पर आधारित है। बेन्थम ने सुख औरआनन्द को समानाथ्र्ाी मान लिया है। यह अन्तर्विरोधों से ग्रस्त है। यह गुणात्मक पहलू की उपेक्षा करता है। उसका सुखवादीमापन यन्त्र वैज्ञानिक तरीका नहीं है। ‘सबसे बड़ा सुख’ और ‘सबसे बड़ी संख्या’ के मध्य कोई तार्किक सम्बन्ध नहीं है। यहसिद्धान्त बहुमत की निरंकुशता को बढ़ावा देता है। अत: यह सिद्धान्त भ्रान्त, भौतिक व Singleांगी है। इसमें यथार्थवाद वमनोवैज्ञानिकता का पुट नहीं है। इसलिए यह सिद्धान्त अस्पष्ट व अपूर्ण है। लेकिन अनेक दोषों के बावजूद भी यह सिद्धान्तलोक-कल्याणकारी राज्य की उदात्त भावना से प्रेरित है। आधुनिक प्रजातन्त्र में इसका विशेष महत्त्व है।


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