जाति-व्यवस्था के गुण And दोष
जाति-व्यवस्था के गुण And दोष
अनुक्रम
समय-समय पर Indian Customer जाति-व्यवस्था की विभिन्न लेखकों द्वारा आलोचना की गई है। समाज में जितनी बुराइयां हैं, उन सबके लिए जाति-व्यवस्था को दोषी ठहराया गया है। परन्तु Single मात्र यही तथ्य कि इतने आक्षेपों के बावजूद भी यह First की भांति अभी तक चल रही है, इस बात का प्रमाण है कि यह व्यवस्था इतनी बुरी नहीं है, जितनी समझी जाती है। ब्राम्हणों ने 2,000 वर्ष तक अपनी प्रभुता को स्थिर रखा, यह उनकी योग्यता को प्रमाणित करता है।
जाति-व्यवस्था के गुण
- टेंड यूनियन And अनाथालय – जाति-व्यवस्था प्रत्येक व्यक्ति को स्थिर सामाजिक पर्यावरण प्रदान करती है। हटन के Wordों में, फ्व्यक्ति को समितियों का Single स्थायी निकाय मिल जाता है, जो उसके सम्पूर्ण व्यवहार And सम्पर्को को नियंत्रित करते हैं। उनकी जाति विवाह-साथी के चयन में दिशा प्रदान करती है, उसके टेंड यूनियन के Reseller में कार्य करती है। यह उसके लिए क्लब और अनाथालय है, स्वास्थ्य बीमा है तथा Need पड़ने पर दाह-क्रिया तक का प्रबन्मा करती है।
- सहयोग की भावना – जाति-व्यवस्था Single ही जाति के सदस्यों में सद्भावना And सहयोग की भावना का विकास करती है। निर्मान And जरूरतमंदों की सहायता करती है, जिससे राज्य-सहायता की Need नहीं पड़ती। यह ईष्र्या अथवा सुख को कम कर देती है।
- आर्थिक व्यवसायों का निर्धारण – यह व्यक्ति के आर्थिक व्यवसाय का निर्धारण करती है। प्रत्येक जाति का Single विशिष्ट व्यवसाय होता है, जिससे न केवल बच्चे का भविष्य ही निश्चित हो जाता है, अपितु उसे प्रशिक्षु होने का भी उचित अवसर प्राप्त होता है। चूंकि जाति के साथ व्यवसाय का तादात्म्य होता है, जिसमें परिवर्तन की ओर कम ध्यान दिया जाता है, अतएव कारीगरी में गर्व अनुभव होता है। प्राचीन भारत में कारीगरों की कई पीढ़ियां होती थीं, जो अपने कौशल में सिण्हस्त थे। इस प्रकार खेतिहर भी अपने काम में निफण हुआ करते थे।
- प्रजातीय शुद्धता – अन्तर्जातीय विवाहों पर प्रतिबंमा लगाकर इसने उच्च जातियों की प्रजातीय शुद्धता को Windows Hosting बनाए रखा है। इसने सांस्कारिक शुद्धता पर बल देकर सफाई की आकृतों का विकास Reseller है।
- मानसिक निर्माण को प्रभावित करती है – यह व्यक्ति की बौण्कि क्षमता को प्रभावित करती है। चूंकि जाति व्यक्ति को भोजन, संस्कार और विवाह सम्बन्धाी जातिगत नियमों के पालन का आदेश देती है, अत: राजनीतिक And सामाजिक विषयों पर उसके विचार उसकी जातीय प्रथाओं द्वारा प्रभावित हो जाते हैं। इससे समूहों में समानता की भावना का भी विकास होता है।
- देश का Singleीकरण – वर्ग-संघर्ष की वृद्धि किए बिना यह वर्ग-चेतना का विकास करती है। इसने वर्ग-संघर्षो And गुटों को जन्म दिए बिना हिन्दू समाज के दक्ष संगठन को जन्म दिया है। विभिन्न सांस्कृतिक स्तरों के लोगों को Single ही समाज को संगठित करने की यह सर्वोनम युक्ति थी। इसने देश को संघर्षरत प्रजातीय समूहों में विभक्त होने से बचाया। इसने Indian Customer समाज को Single विशाल And बहुरंगी समुदाय में समन्वित Reseller तथा देश को Safty And निरन्तरता का सुनिश्चित आधार प्रदान Reseller, जिससे समाज की स्थिर And व्यवस्थित संCreation सम्भव हो सके।
- विभिन्न कार्यो की व्यवस्था – यह सामाजिक जीवन के लिए आवश्यक विभिन्न कार्यो फ्शिक्षा से लेकर सफाई तक, शासन से लेकर घरेलू सेवा तक का प्रबंमा करती है और यह व्यवस्था धार्मिक विश्वास कर्म सिद्धान्त में विश्वास की संतुष्टि लेकर करती है, जिससे कार्यो के विषम विभाजन को भी संसार का दैवी क्रिधान समझ कर स्वीकार कर लिया जाता है। यह यूरोपीय वर्ग-व्यवस्था की अपेक्षाकृत अधिक उनम-श्रम-विभाजन की व्यवस्था करती है।
- सांस्कृतिक विसरण – जाति-व्यवस्था समूह के अंदर सांस्कृतिक विसरण में सहायता करती है। जातीय प्रथाएं, विश्वास, कौशल, व्यवहार And व्यापारिक रहस्य स्क्रमेय Single पीढ़ी से दूसरी पीढ़ी को हस्तांतरित हो जाते हैं। इस प्रकार संस्कृति Single युग से Second युग में पहुंच जाती है।
- सामाजिक तथा राजनीतिक जीवन का पृथकीकरण – इसने सामाजिक जीवन को राजनीतिक जीवन से पृथक रखकर अपनी स्वतंत्रता को राजनीतिक प्रभावों से मुक्त रखा है। एस. सी. हिल (S-C. Hill) का कहना है, हिन्दुओं का सामाजिक जीवन राजनीतिक अवस्थाओं से पूर्णतया अछूता रहा है। यह Single महान् मन्दिर का कार्य भी करती है तथा जातीय देवताओं की पूजा द्वारा अपनी धार्मिक अवस्था को बनाए रखा है।
जाति-व्यवस्था के दोष
- श्रम की गतिशीलता पर प्रतिबंध – चूंकि व्यक्ति को अपनी जातीय व्यवसाय को ही करना पड़ता है, जिसे वह अपनी इच्छा अथवा अनिच्छा के According बदल नहीं सकता, अतएव इसने श्रम की गतिशीलता को रोका है। इससे गतिहीनता उत्पन्न हुई है।
- अस्पृश्यता – इसने अस्पृश्यता को जन्म दिया है। महात्मा गांधी के According, अस्पृश्यता जाति-व्यवस्था की सबसे अधिक घृणात्मक अभिव्यक्ति है। अधिकांश लोग दासता की स्थिति को पहुंच गए हैं। इसके अतिरिक्त इसने अन्य दोषों, यथा बाल-विवाह दहेज-प्रथा, परदा-प्रणाली और जातिवाद को जन्म दिया है।
- Singleता में बाधक – इसने Single जाति को दूसरी जाति में पृथक करके तथा उनके बीच किसी भी सामाजिक समागम को प्रतिबंधित करके हिंदू समाज में सद्भावना And Singleता के विकास को रोका है। इसने हिंदू समाज का विघटन Reseller तथा इसे निर्बल बना दिया।
- व्यवसाय में अनुपयुक्त व्यक्ति – व्यक्ति को कई बार गलत व्यवसाय को अपनाना पड़ता है। यह आवश्यक नहीं कि पुरोहित का पुत्र भी पुरोहित बनना पसन्द करे अथवा उसमें सफल पुरोहित बनने की योग्यता हो। जाति-व्यवस्था के अन्तर्गत वह अन्य कोई व्यवसाय नहीं अपना सकता, भले ही उसमें तदर्थ योग्यताएं And रुचि हों। यह लोगों की असमर्थता And क्षमताओं का पूर्ण उपयोग नहीं करती, जिससे यह अधिकतम उत्पादन में बाधक सिण् होती है।
- राष्टींय Singleता में बाधक – जाति-व्यवस्था देह में राष्टींय Singleता के विकास में बड़ी भारी बाधक सिण् हुई है। निम्न जातियां अपने प्रति सामाजिक व्यवहार पर असन्तोष महसूस करती हैं। घुरये ने लिखा है, जाति-भक्ति की भावना ने दूसरी जातियों के प्रति घृणा उत्पन्न की इससे Single अस्वस्थ वातावरण पैदा हुआ, जो राष्टींय चेतना के विकास के लिए अनुकूल नहीं था। ई. श्मिट का भी विचार कि जाति-व्यवस्था का सबसे अधिक दुखदायी परिणाम यह है कि इसने सामान्य राष्ट्रीय चेतना के विकास को रोका है।
- सामाजिक प्रगति में बाधक- यह राष्ट्र की सामाजिक And आर्थिक प्रगति में बड़ी भारी बामाक रही है। चूंकि लोग कर्म के सिद्धान्त में विश्वास करते हैं, अतएव वे परम्परावादी हो जाते हैं, और चूंकि उनकी आर्थिक स्थिति निश्चित होती है, इससे उनमें जड़ता आ जाती है तथा उनका उपक्रम And उद्यम समाप्त हो जाता है।
- अप्रजातंत्रीय – अन्त में, जाति-व्यवस्था अप्रजातंत्रीय है, क्योंकि इसमें सबको जाति, रंग अथवा विश्वास के भेदभाव के बिना समान अधिकार नहीं दिए जाते। निम्न जाति के लोगों के मार्ग में विशेषतया सामाजिक रुकावटें खड़ी कर दी जाती हैं, जिन्हें मानसिक And शारीरिक विकास की स्वतंत्रता प्राप्त नहीं होती तथा तदर्थ अवसर भी प्रदान नहीं किए जाते।
- जातिवाद को बढ़ावा – जाति व्यवस्था ने जातिवाद को जन्म दिया है। किसी जाति के सदस्यों में जातिगत भावनाएं होती हैं और वह न्याय, समता, भातृत्व And औचित्य के स्वस्थ सामाजिक मानकों को भुलाकर अपनी जाति के प्रति अंमाभक्ति प्रदर्शित करते हैं। Word ‘ब्राम्हण वाद’, ‘क्षत्रियवाद’ जातिवाद के द्योतक हैं। जातिवाद के प्रभावहीन Single जाति के सदस्य अन्य जाति के सदस्यों के हितों को हानि पहुंचाने से भी नहीं हिचकते। जातिवाद भ्रातृत्व के स्थान पर निरंकुशता को बढ़ावा देता है। राजनीतिज्ञ जातिवाद की भावना का राष्टींय हितों का बलिदान करते हुये अपने लाभ हेतु शोषण करते हैं।
जाति-व्यवस्था के गुणों And दोषों की तुलनात्मक व्याख्या के उपरांत यह स्पष्ट है कि इसके दोष अधिक हैं, गुण कम। जाति-व्यवस्था स्थिर And सुस्त समाज को जन्म देती है। चूंकि प्रस्थिति का निर्धारण जन्म के आधार पर होता है, जिसे व्यक्ति अपने कार्यो से न बदल सकता है और न ही उन्नत कर सकता है, अतएव विशिष्ट प्रयासों को कोई प्रोत्साहन नहीं मिलता। बहुत कम लोग उनसे अपेक्षित काम को पूरा करेंगे और कुछ तो बिल्कुल ही नहीं करेंगे। कुलीन चाहे काम करे या खेले, कुलीन ही रहेगा। भले ही हरिजन व्यक्ति कितना ही परिश्रम करे, वह दासता से बच नहीं सकता। यह Indian Customer जाति-व्यवस्था का बन्द स्वReseller ही है, जिसके कारण भारत के लोगों में उपक्रम का अभाव है तथा समाज समग्र Reseller में जड़ और उदाहरण है।