जल संसाधन का महत्व, उपयोगिता And प्रबंधन
भारत में विश्व के कुल जल संसाधनों का 5 प्रतिशत भाग है। प्रो. के.एल.राव के According देश में कम से कम 1.6 किमी लम्बाई की लगभग 10360 नदियाँ है, जिनमें औसत वार्षिक प्रवाह 1869 घन किलोमीटर है। भौगोलिक दृष्टि से अनेक बाधाओं And विषम वितरण के कारण इसमें से केवल 690 अरब घन किमी (32 प्रतिशत) सतही जल का ही उपयोग हो पाता है। इसके अतिरिक्त राष्ट्रीय स्तर पर उपलब्ध पारम्परिक भण्डारण And प्रवाह मोड़कर पुन: आपूर्ति के योग्य लगभग 432 अरब घन मीटर जल है। सतही जल का सर्वाधिक प्रवाह सिंधु, गंगा And बह्मपुत्र में है जो कुल प्रवाह का 60 प्रतिशत है। देश की वार्षिक संभाव्यता 1869.35 घन किमी की विस्तृत तस्वीर से स्पष्ट होता है कि देश में कहाँ जल संसाधनों का अभाव है तथा कहाँ पर्याप्तता And अधिकता है। First बेसिनों के According गंगा, गोदावरी तथा कृष्णा के पास बड़ा क्षेत्र है जहाँ अनेक वर्षा क्षेत्र है। गंगा बेसिन का विस्तार दक्षिण – पश्चिम में चंबल, सिंध, बेतवा व केन तक है। कृष्णा बेसिन में पर्याप्त वर्षा मिलने के उपरान्त भी इनके प्रवाह क्षेत्रों में अनेक शुष्क क्षेत्र अवस्थित है। पूर्व की ओर प्रवाहित अधिकांश नदियाँ पश्चिमी घाट से निकलती है, जो पर्याप्त वर्षा वाले स्त्रोतों से पोषित है, फिर भी पश्चिमी घाट के पूर्व में महाराष्ट्र के धूले से बीजापुर बेलारी तक वृष्टि छाया क्षेत्र पाया जाता है। इसी प्रकार पूर्वी भाग में पर्याप्त जलापूर्ति वाली नदियाँ प्रवाहित होती है।
जल संसाधन की उपलब्धता
भौगोलिक दृष्टिकोण से जल संसाधन का वितरण :-प्रकृति में जल विभिन्न अवस्थाओं में भिन्न – भिन्न स्त्रोतों में वितरित है, जहाँ से उसका परिसंचरण होता रहता है। जल किसी भी स्त्रोत में स्थायी Reseller से नहीं रहता है। जल मण्डल में लगभग 13,84,120000 घन किलोमीटर जल विभिन्न दशाओं में पाया जाता है, –
- महासागर 97.39 प्रतिशत
- हिम टोपियाँ, हिम खण्ड,हिमनद 2.01 प्रतिशत
- भूजल And मृदा नमी 0.58 प्रतिशत
- झीलें तथा नदियाँ 0.02 प्रतिशत
- वायुमण्डल 0.001 प्रतिशत
जल मण्डल में पाया जाने वाला जल Earth पर विभिन्न Resellerों में वितरित है। जल का ज्यादातर भाग 97.39 प्रतिशत लवणीय है, जबकि स्वच्छ जल बहुत कम Meansात 2.61 प्रतिशत ही है। जलीय वितरण में धरातलीय, भूमिगत तथा महासागरीय जल को सम्मिलित करते है। जल का वितरण प्राचीन काल से समान Reseller में नहीं रहा है, Earth का 70.87 प्रतिशत भाग जलीय है।
जल संसाधनों की उपयोगिता
जल Single प्राकृतिक संसाधन है, जिसको Single बार उपयोग के बाद पुन: शोधन कर उपयोग योग्य बनाया जा सकता है। जल ही ऐसा संसाधन है जिसकी हमें नियमित आपूर्ति आवश्यक है जो हम नदियों, झीलों, तालाबों, भू-जल, महासागर तथा अन्य पारस्परिक जल संग्रह क्षेत्रों से प्राप्त करते है। जल का सर्वाधिक उपयोग सिंचाई में 70 प्रतिशत, उद्योगों में 23 प्रतिशत, घरेलु तथा अन्य में केवल 7 प्रतिशत ही उपयोग में लिया जाता है।
- मनुष्य के लिए पेयजल
- पशुधन के लिए पेयजल
- अन्य घरेलु, वाणिज्यिक And स्थानीय निकाय उपयोगार्थ
- कृषि
- ऊर्जा उत्पादन
- पर्यावरण And पारिस्थतिकी उपयोगार्थ
- उद्योग
- अन्य उपयोग जैसे सांस्कृतिक And पर्यटन सम्बन्धी उपयोग
जल संसाधन का महत्व
जल संसाधन का सर्वाधिक उपयोग 70 प्रतिशत सिंचाई में, 23 प्रतिशत उद्योगों में And 7 प्रतिशत घरेलु तथा अन्य उपयोगों में Reseller जाता है। लोगों द्वारा Earth पर विद्यमान कुल शुद्व जल का 10 प्रतिशत से भी कम उपयोग Reseller जा रहा है। जल संसाधन का निम्नलिखित क्षेत्रों में उपयोग Reseller जा रहा है :-
सिंचाई में उपयोग –
जल का सर्वाधिक उपयोग 70 प्रतिशत भाग सिंचाई कार्यो में Reseller जाता है। सिंचाई कार्यो में सतही And भूजल का उपयोग Reseller जा रहा है। सतही जल का उपयोग नहरों And तालाबों द्वारा Reseller जाता है, जबकि भूजल का उपयोग कुओं And नलकूपों द्वारा Reseller जाता है। विश्व का 1/4 भूभाग ऐसी शुष्क दशाओं वाला है, जो पूर्णतया सिंचाई पर निर्भर करता है। सिंचाई से चावल, गेहूँ, गन्ना, कपास, फल, सब्जी आदि का वृहद स्तर पर उत्पादन Reseller जाता है। अधिक जनसंख्या भार वाले क्षेत्रों में चावल की दो-तीन फसले ली जाती है जिसके लिए सिंचाई की Need होती है। इसी प्रकार ग्रीष्मकालीन फसलें लेने के लिए भी सिंचाई में अधिक जल की Need होती है। वर्तमान में जिन देशों ने सिंचाई में सतही जल की अपेक्षा भूजल का अधिक दोहन Reseller है, वहाँ जल संकट उत्पन्न हुआ। संयुक्त राज्य अमेरिका में सिंचाई में 25 प्रतिशत भूजल तथा 75 प्रतिशत सतही जल का उपयोग Reseller जाता है, जबकि भारत जैसे देशों में सिंचाई में भूजल का अन्धाधून्ध उपयोग Reseller जा रहा है। सतही जल का अधिकांश भाग बिना उपयोग किये महासागरों में मिल जाता है और जल संकट गहराता जा रहा है।
उद्योगों में उपयोग –
कुल शुद्व जल का 23 प्रतिशत उद्योगों में उपयोग Reseller जाता है यही कारण है कि अधिकांश उद्योग जलाशयों के निकट स्थापित हुऐ है। उद्योगों में जल का उपयोग भाप बनाने, भाप के संघनन, रसायनों के विलयन, वस्त्रों की धुलाई, रंगाई, छपाई, तापमान नियंत्रण के लिए, लोहा-इस्पात उद्योग में लोहा ठण्डा करने, कोयला धुलाई करने, कपड़ा शोधन तथा कागज की लुगदी बनाने आदि के लिये Reseller जाता है।
घरेलु कार्यो के उपयोग में –
प्रकृति में जल समान Reseller से वितरित नहीं है, लेकिन इसकी उपलब्ध मात्रा के According ही जल उपयोग की विधियां विकसित कर Human ने प्रकृति के साथ समायोजन Reseller है। शुष्क क्षेत्रों में जल का कम मात्रा तथा बहुउद्देषीय उपयोग Reseller जाता है। घरेलु कार्यो में पीने, खाना बनाने, स्नान करने, कपड़े धोने, बर्तन धोने आदि में जल की Need होती है। नदियों के किनारे बसे शहरों के लिये जल के उपलब्ध रहने पर भी समस्या उत्पन्न हो गई है, क्योंकि नगरों द्वारा इन जल स्त्रोतों को प्रदूषित कर दिया है। भारत में गंगा नदी पर बसे कानपुर, वाराणसी, हुगली पर बसे कोलकाता, यमुना पर बसे दिल्ली आदि नगरों में जलापूर्ति की समस्या उत्पन्न हो गई है।
जल विद्युत –
अफ्रीका में संसार की 23 प्रतिशत सम्भावित जल विद्युत ऊर्जा विद्यमान है, लेकिन वहाँ विकसित जल शक्ति संसार की केवल 1 प्रतिशत ही है। इसी प्रकार दक्षिण अमेरिका में जल शक्ति सम्भाव्यता 17 प्रतिशत है तथा विकसित जल शक्ति 4 प्रतिशत ही है। महासागरों का मुख्य उपयोग परिवहन में Reseller जाता है। इसके अतिरिक्त महासागर भविष्य के ऊर्जा भण्डार भी है।
नहरें –
भूसतह की विषमता होने पर नदियों के सहारें नहरों का निमार्ण Reseller जाता है। नहरों का निमार्ण जल के बहुउद्देशीय उपयोग के लिए Reseller जाता है, जिनमें सिंचाई, परिवहन, जल विद्युत, बाढ़ नियंत्रण आदि प्रमुख है।
नौ परिवहन –
नदियों, नहरों तथा झीलों में स्थित सतही जल संसाधन का उपयोग नौ परिवहन में Reseller जाता है। नौ परिवहन में नदी या नहर के पानी की प्रवाह दिशा, जल राषि की मात्रा, मौसमी प्रभाव, नदियों तथा नहरों की लम्बाई की मुख्य भूमिका होती है।
जल संकट And पर्यावरणीय आपदायें
जलवायु परिवर्तन के दौर का सर्वाधिक प्रभाव जल संसाधन पर पड़ा। प्रकृति में उपलब्ध कुल जल संसाधन का लगभग 2 प्रतिशत भाग हिम के Reseller में जमा है तथा केवल Single प्रतिशत से भी कम जल Humanीय उपयोग के लिए उपलब्ध हो पाता है। यह जल भी पर्यावरण आपदाओं And Humanीय क्रियाकलापों द्वारा गुणात्मक And मात्रात्मक हृास की ओर है जबकि अम्ल वर्षा द्वारा शुद्ध जल प्रदूषित हो रहा है। इस प्रकार वर्तमान में प्रकृति में उपलब्ध जल संसाधन को मात्रात्मक And गुणात्मक दृष्टि से जलवायु परिवर्तन, विश्व तापन, अम्ल वर्षा, हिम का पिघलना आदि क्रियाएँ प्रभावित करती है, जिनके फलस्वReseller जल की उपलब्धता निरन्तर घट कर जल संकट को जन्म दे रही है। प्रकृति के साथ मनमानी छेड़छाड़ से सदियों से संतुलित जलवायु के कदम लड़खड़ा गये है। तीव्र औद्योगीकरण And वाहनों के कारण धरती दिन-प्रतिदिन गरमाती जा रही है। जलवायु परिवर्तन के कारण ध्रुवों की बर्फ पिघल रही है। सन् 1988 में संयुक्त राष्ट्र पर्यावरण कार्यक्रम तथा विश्व मौसम विज्ञान संगठन ने वैज्ञानिकों का Single अन्तर्राष्ट्रीय दल-इंटर गवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेंट चेन्ज का गठन Reseller था, जिसके शोध में पाया गया है कि पिछली सदी के दौरान औसत तापमान 0.3 से 0.6 डिग्री सेल्सियस की वृद्धि होने मात्र से ही जलवायु डगमगा गई है और खतरनाक नतीजे सामने आने लगे है। इस दौरान महासागरों का जल स्तर 10.25 सेंटीमीटर ऊँचा हो गया है, जिसमें 2.7 सेंटीमीटर की बढ़ोतरी बढ़े हुए तापमान के कारण पानी के फैलाव से हुई है।
जलवायु Single जटिल प्रणाली है। इसमें परिवर्तन आने से वायुमण्डल के साथ ही महासागर, बर्फ, भूमि, नदियाँ, झीलें तथा पर्वत और भूजल भी प्रभावित होते है। इन कारकों के परिवर्तन से Earth पर पायी जाने वाली वनस्पति और जीव-जन्तुओं पर भी प्रभाव परिलक्षित होता है। सागर के वर्षा वन कहलाये जाने वाले मूंगा की चट्टानों पर पायी जाने वाली रंग-बिरंगी वनस्पत्तियाँ प्रभावित हो रही है।
जलवायु परिवर्तन से सूखा पड़ेगा जिसका प्रत्यक्ष प्रभाव खाद्यान्न उत्पादन पर पड़ेगा। जल की उपलब्धता भी घटेगी क्योंकि वर्तमान समय में कुल स्वच्छ पानी का 50 प्रतिशत Humanीय उपयोग में लाया जा रहा है। अत: कुवैत, जॉर्डन, इजराइल, रवांडा तथा सोमालिया जैसे जलाभाव वाले दशों में भंयकर जल संकट उत्पन्न होगा। अमेरिकी Safty एजेंसी ने अनुमान लगाया है कि कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा दुगुनी होने से उत्पन्न गर्मी के कारण कैलिफोर्निया में पानी की वार्षिक आपूर्ति में Seven से सोलह प्रतिशत की कमी आ सकती है। जलवायु परिवर्तन से कृषि के साथ ही वनों की प्राकृतिक संCreation भी बदल सकती है। सूक्ष्म वनस्पतियों से लेकर विषाल वृक्षों तक का तापमान और नमी का Single विशेष सीमा में अनुकूलन रहता है। इसमें परिवर्तन होने से ये वनस्पित्त्ायाँ तो अपना स्थान परिवर्तित कर लेंगी या सदा के लिए विलुप्त हो जायेंगी। ऐसा अनुमान लगाया जाता है कि बढ़ती जनसंख्या And शहरीकरण के कारण इन्हे दूसरा रास्ता ही अपनाना होगा। इस प्रकार जलवायु परिवर्तन से विश्व के Single-तिहाई वनों को खतरा है। उच्च तापमान से वनाग्नि की घटनायें भी बढ़ रही है। वनाग्नि से वायुमण्डल में कार्बन डाई ऑक्साइड की मात्रा बढ़ सकती है।
प्रकृति में पाये जाने वाले जल के विषम वितरण के कारण ही प्रारम्भिक जल संकट उत्पन्न हुआ है, जो बढ़ती मांग के कारण अधिक गहरा गया है। उदाहरणार्थ एषिया में विश्व की 60 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है, जबकि कुल नदियों का प्रवाह विश्व का 36 प्रतिशत है। दूसरी ओर दक्षिणी अमेरिका में विश्व की 6 प्रतिशत जनसंख्या निवास करती है तथा वहाँ कुल सतही प्रवाह विश्व का 20 प्रतिशत है।
Humanीय उपयोग हेतु उपलब्ध जल संसाधन का अधिकांश भाग भू-सतह पर नदियों व झीलों में स्थित है जो वर्षा के वाष्पीकरण की मात्रा से नियन्त्रित होता है। ये दोनों क्रियाएं जलवायु के तत्वों के Reseller में जलीय चक्र की प्रमुख प्रक्रियाएं है तथा जल के पुनर्वितरण में महत्त्वपूर्ण भूमिका रखती है। 20वीं शताब्दी के अन्तिम दशकों में बढ़ते Humanीय हस्तक्षेप ने काफी हद तक जलीय चक्र की प्रकृति को परिवर्तित Reseller है। भारत में शुष्क भागों में निरन्तर वनोन्मूलन And सम्बन्धित आर्थिक क्रियाओं के कारण मरूस्थलीकरण की प्रक्रिया में तीव्रता आयी जिसके फलस्वReseller वर्षा की मात्रा में कमी आयी है। Indian Customer उप महाद्वीप में जल की वार्षिक उपलब्धता मानसून की संतुलित सक्रियता पर निर्भर करती है जिसका आकर्षण न्यून दाब का केन्द्र थार के मरूस्थल में स्थित है।
भारत में जल संसाधनों का प्रबंधन
जल संसाधनों के प्रबन्ध से तात्पर्य है- ‘‘ऐसा कार्यक्रम बनाना जिससे किसी जल स्त्रोत या जलाषय को क्षति पहुँचाये बिना विभिन्न उपयोगों के लिए अच्छे किस्म के जल की पर्याप्त पूर्ति हो सके।’’ जल संरक्षण के लिए इन बातों को ध्यान में रखने का प्रयास करना चाहिए –
- जल प्रबन्धन के अन्तर्गत भूमिगत जलाषयों का पुनर्भरण और Need से अधिक जल वाले क्षेत्रों से अभाव वाले क्षेत्रों की ओर जल की आपूर्ति करना है।
- भूमिगत जल का पुनर्भरण जल प्रबन्ध का सबसे महत्त्वपूर्ण पहलू है। पर्वतों और पहाड़ों पर जल विभाजक वनस्पति से ढंके होते हैं। जल विभाजक की घास – फूस से ढंकी मृदा से वर्षा का जल अच्छी तरह से अन्दर प्रविष्ट हो जाता है, यहाँ से यह जल जलभर में पहँच जाता है।
- नगरीय And ग्रामीण क्षेत्रों में बरSevenी पानी, इस्तेमाल Reseller हुआ पानी या घरेलू नालियों का पानी, गड्ढ़ों या किसी अन्य प्रकार के गड्ढ़ों में पहुँच जाता है। बाढ़ का पानी गहरे गड्ढ़ों के माध्यम से जलभर में पहुँच जाता है या छोटे – छोटे गड्ढ़ों से खेतों में फैल जाता है।
- घरेलू और नगरीय अपशिष्ट जल के समुचित उपचार से औद्योगिक और कृषि कार्यों के लिए उपयुक्त जल प्राप्त हो सकता है। अपशिष्ट जल के उपचार से प्रदूषकों, हानिकारक जीवाणुओं और विषाक्त तत्वों को हटाया जा सकता है।
- समुद्री जल का विलवणीकरण Reseller जाये। सौर ऊर्जा के इस्तेमाल से समुद्रों के लवणीय जल का आसवान Reseller जा सकता है। जिससें अच्छी किस्म का अलवणीय व स्वच्छ जल प्राप्त हो सकता है। समुद्र जल के विलवणीकरण की इस विधि से जिससे पानी से लवणों को दूर Reseller जाता है, का इस्तेमाल हमारे देश में कुछ स्थानों जैसे गुजरात में भावनगर और राजस्थान में चुरू में Reseller जा रहा है।
- जल के अति उपयोग को कम Reseller जाये। जल के अति उपयोग को कम करना बहुत ही जरूरी है, क्योंकि Need से अधिक जल का इस्तेमाल बहुमूल्य और अपर्याप्त संसाधन की ऐसी बर्बादी है जिसे क्षमा नहीं Reseller जा सकता है। हमारे देश में नलों से पानी रिसने के कारण और नलकर्म की खराबी की वजह से बहुत से जल की बर्बादी होती है। इसी प्रकार अत्यधिक सिंचाई की रोकथाम भी जरूरी है।
- सामान्य प्रवाह से अधिक जल और बाढ़ का पानी उन क्षेत्रों की ओर ले जाया जा सकता है जहाँ इसका अभाव है, इससे न केवल बाढ़ द्वारा नुकसान होने की सम्भावना समाप्त हो जावेगी, बल्कि अभावग्रस्त क्षेत्रों को भी लाभ पहुँचेगा।