जल संरक्षण व संग्रहण की विधियॉं
जल के प्रकार
जिस जल का हम उपयोग करते हैं वह बहुत ही कम है इसका कारण है विश्व में दो प्रकार के जल होना- 1.लवणीय जल 2.अलवणीय जल
- लवणीय जल – दिये गये मानचित्र में जो भाग नीले रंग से दर्षाया गया है वह लवणीय जल है जो महासागरों व सागरों के रुप में विद्यमान है।विश्व का लगभग 97.5 प्रतिशत जल लवणीय जल है जो कि खारापन लिये होता है।
- अलवणीय जल –ये जल ही हमारे उपयोग हेतु होता है किन्तु यह विश्व में जल के कुल आयतन का केवल 2.5 प्रतिशत है। विश्व में अलवणीय जल का लगभग 70 प्रतिशत भाग अंटार्कटिका ,ग्रीनलैंड व पर्वतीय क्षेत्रों में बर्फ की चादरों और हिमनदों के रुप में मिलता है जबकि 30 प्रतिशत से थोड़ा -सा कम भौमजल के जलभृत के रुप में पाया जाता है।
जल संरक्षण व संग्रहण की विधियॉं
1. वर्षा जल संग्रहण विधि 2.बॉंस ड्रिप सिंचाई प्रणाली 3.गुल अथवा कुल विधि।
वर्षा जल संग्रहण विधि-
वर्षा द्वारा भूमिगत जल की क्षमता में वृद्धि करने की तकनीकि वर्षा जल संग्रहण विधि कहलाती है। इसमें वर्षा ऋतु में वर्षा के पानी को Singleत्रित करके उसका उपयोग शुष्क ऋतु में Reseller जाता है। वर्षा जल को रोकने के लिए विशेश ढॉंचों ,जैसे कुंॅए,गड्ढे, बॉंध आदि का निर्माण Reseller जाता है। इससे न केवल जल का संग्रहण होता है बल्कि जल को भूमिगत होने अनुकूल परिस्थितियॉं प्राप्त होती हैं। इसके अन्र्तगत विधियॉं हैं-
(क).छत वर्षा जल संग्रहण विधि – इस विधि का प्रयोग इस प्रकार Reseller जाता है-
- 1.पी वी सी पाइप का इस्तेमाल करके छत का वर्षा जल Singleत्रित Reseller जाता है।
- 2.रेत And ईट का प्रयोग करके जल का छनन Reseller जाता है
- 3.भूमिगत पाइप द्वारा जल हौज तक ले जाया जाता है जहॉं से तत्काल उसे उपयोग में लाया जा सकता है।
- 4.हौज से अतिरिक्त जल कुए तक ले जाया जाता है।
- 5.कुए से पानी रिसकर भूमिगत जल स्तर में वृद्धि करता है।
- 6.गर्मी के दिनों में इन कुओं के पानी का उपयोग Reseller जा सकता है।
भारत में छत वर्षा जल संग्रहण विधि के दो सफल उदाहरण हैं –
- शिलांग (मेघालय)- मेघालय की राजधानी शिलांग को पीने के पानी की भारी कमी का सामना करना पड़ता है। इस समस्या के समाधान के लिए शिलॉंग के प्रत्येक परिवार ने इा विधि को अपनाया है। इस विधि से प्रत्येक परिवार की जल की कुल Need का 15.25 प्रतिशत भाग की आपूर्ति होती है।
- गंडाथूर(कर्नाटक)- कर्नाटक राज्य के मैसूर जिले के.गंडाथूर गॉंव के लोंग भी इस विधि का प्रयोग करते हैं।गॉंव के लगभग 200 परिवारों ने इस विधि का उपयोग कर जल की कमी की समस्या का समाधान Reseller है।
- खादीन And जोहड़- अर्द्धशुष्क शुष्क और अर्द्धशुष्क क्षेत्रों में वर्षा जल को Singleत्रित करने के लिए गड्ढे बनाये जाते ताकि मृदा को सिंचित Reseller जा सके और संरक्षित जल को खेती के लिए उपयोग में लाया जा सके । राजस्थान के जैसलमेर में इस विधि को ‘खादीन’ व अन्य क्षेत्रों में ‘जोहड़ ‘ कहा जाता है।
- भूमिगत टैंक (टॉंका. )-राजस्थान के अर्द्धाुश्क और शुष्क क्षेत्रों विषेशकर बीकानेर,फलोदी और बाड़मेर में लगभग हर घर में पीने का पानी संग्रहित करने के लिए भूमिगत टैंक अथवा टॉंका हुआ करते थे।इसका आकार Single बडे़ कमरे जितना हो सकता हो सकता है।टॉका यहॉं सुविकसित छत वर्षा जल संग्रहण तंत्र का अभिन्न हिस्सा होता है जिसे मुख्य घर या ऑंगन में बनाया जाता है वे घ्रों की ढलवा छतों से पाइप द्वारा जुड़े होते हैंजिनसे होकर छत से वर्षा जल भूमिगत टांकों तक पहुॅंचता है। टॉंका में वर्षा जल अगली वर्षा ऋतु तक संग्रहित Reseller जा सकता है।
वर्षा जल संग्रहण के उदेश्य
- वर्षा जल को संग्रहित करने से भूमि का जल स्तर ऊॅंचा होता है।
- शुष्क ऋतु में आवश्यक जल की पूर्ति सम्भव हो पाती है।
- जिन स्थानों में वर्षा कम होती है वहॉं पर भी सिंचाई कर पाना सम्भव हो पाता है।जिससे कृषि उत्पादन में वृद्धि होती है।
- नदियों व नालों में आयी बाढ़ पर नियन्त्रण रखा जा सकता है।
- जल का विवेकपूर्ण उपयोग Reseller जा सकता है।
- जिन स्थानों पर जल-दुर्लभता की समस्या हो उनकी समस्या का समाधान Reseller जासकता है .
- जल -प्रदूषण को रोका जा सकता है।
बॉंस ड्रिप सिंचाई प्रणाली-
भारत के मेघालय राज्य में नदियों व झरनों क ेजल को बॉंस के पाइप द्वारा Singleत्रित करके सिंचाई करने की लगभग 200 वर्श पुरानी विधि प्रचलित है।इसे बॉंस ड्रिप सिंचाई प्रणाली कहते हैं इस विधि से लगभग 18 से 20 लीटर पानी सिंचाई के बॉंस पाइपों द्वारा सैकड़ों मीटर की दूरी तक ले जाया जाता है। अन्त में पानी का बहाव 20 से 80बूॅंद प्रति मिनट तक घटाकर पौधे पर छोड़ा जाता है इससे भूमि नम हो जाती हैं।
कुल अथवा गुल विधि-
पहाड़ी और पर्वतीय भागों में लोगों ने नदी की धारा का रास्ता बदलकर खेतों में सिंचाई के लिए ‘गुल’अथवा ‘कुल’ जैसी वाहिकाए बनाई गई हैं। सिंचाई के लिये बनाई गयी कच्ची वाहिकाओं को कुल व पक्की वाहिकाओं को गुल कहा जाता है। इस प्रकार पर्वतीय क्षेत्रों में इस विधि का प्रयोग करके लोग जल संरक्षण करते हैं।