चोरी बीमा क्या है ?
1. घोषणा –
बीमापत्र के First पृश्ठ पर बीमाकर्ता के नाम और उसके बाद बीमित व्यक्ति का नाम और पता, व्यवसाय आदि लिखा रहता है। बीमा की रकम और प्रव्याजि की रकम भी लिखी रहती है। चोरी से Safty के उपाय अपनाये गये हैं या नहीं, चौकीदार रहता है या नहीं या अन्य ऐसी बातेंजो चोरी की जोखिम को कम करते हों। इन सबके द्वारा प्रव्याजि की दरों में कमी होती है। पिछले समय की हानि, प्रस्ताव की अस्वीकृति या बीमा क्षतिपूर्ति की अस्वीकृति आदि लिखी रहती है। इसमें बीमा की अवधि 5 वर्ष से अधिक नहीं होती है।
2. बीमा समझौता –
बीमा समझौता में यह लिखा रहता है कि बीमाकर्ता Single निश्चित प्रव्याजि के बदले, घोषणा या दी गयी सूचना पर विश्वास करके इसके दायित्व की सीमा के अन्दर निषेध या अतिरिक्त (Exclusion) को छोड़कर शर्तों और बीमापत्र की अवधि के अन्तर्गत बीमित जोखिम होने पर बीमित व्यक्ति को Single निश्चित हानि की क्षतिपूर्ति करेगा। इसमें भी यह लिखारहता है कि कौन-सी जोखिम बीमित है।
बीमा Single या अधिक जोखिम को शामिल कर सकता है और उसी के According भुगतान भी होगा। निषेध या अतिरिक्त तथा शर्तों के According ही भुगतान Reseller जाता है।
3. निषेध या अतिरिक्त –
निषेध वाक्य का लिखा जाना इसलिये आवश्यक है कि किसकी वस्तु का दो जगह से भुगतान न हो सके और इस प्रकार उसे क्षतिपूर्ति की रकम से अधिक न मिल सके।
इनके अलावा बहुत-सी अन्य शर्तों को भी बताया जा सकता है जिससे दोनों पक्षों (बीमाकर्ता और बीमित व्यक्ति) के प्रसंविदा को संचालित Reseller जा सके।
चोरी बीमा के प्रकार
(1) चोरी (कारबार परिसर) प्रसंविदा –
व्यापारिक गृहो (कारबार परिसर) से सम्बन्धित चोरी बीमा पॉलिसी के अन्तगर्त मुख्यत: इन सम्पत्तियों की चोरी की जोखिमो को संवृत Reseller जाता है-(1) बीमादार का व्यापारिक माल, (2) कमीशन या न्यास (Trust) पर रखा हुआ माल, जिसके प्रति बीमादार की जिम्मेदारी हो, (3) व्यापारिक साज-सज्जा, कार्यालय की मशीनें जैसे टाइपराइटर, कैलकुलेटर, इसी प्रकार के अन्य व्यावसायिक उपकरण, तथा (4) तालाबन्द तिजोरी या सेफ में रखा हुआ नकद Resellerया और अन्य बहुमूल्य वस्तुएं। इस पॉलिसी में उपर्युक्त All वस्तुओं के मूल्य यथासम्भव बीमा पॉलिसी में अलग-अलग इंगित किये जाते हैं। इन बीमित वस्तुओं की चोरी होने पर बीमा कम्पनी क्षतिपूर्ति करने को बाध्य होगी। इसके अतिरिक्त यदि चोरी के सिलसिले में उस मकान की भी क्षति हो जहां बीमित सम्पत्ति रखी गर्इ थी और उसकी मरम्मत की जिम्मेदारी बीमादार पर आती हो तब इसकी भी क्षतिपूर्ति की जाती है।
(2) चोरी (निजी आवास) पॉलिसी –
:- निजी आवासगृहों के लिए कम्पनियां पृथक् बीमा पॉलिसी जारी करती है। इस पॉलिसी के अन्तर्गत बीमादार या उसके परिवार के सदस्यों के फर्नीचर, All प्रकार के निजी सामान, गहने, जवाहरात तथा गृहस्थी की अन्य वस्तुओं की चोरी की जाो खिमो काे संवृत Reseller जाता है। सामान्यतया गहने तथा अन्य मूल्यवान वस्तुओं का बीमा कुल बीमित मूल्य के Single-तिहार्इ से अधिक नहीं Reseller जाता जब तक इसके लिए अतिरिक्त प्रीमियम न दिया जाए। यह बीमा पॉलिसी प्राय: मूल्यांकित पॉलिसी (Valued Policy) होती है। पॉलिसी की शर्तों के According बीमित वस्तुएं आवासगृह पर मौजूद रहनी चाहिए तथा वर्ष भर मे 60 दिनों से अधिक के लिए आवासगृह खानी नहीं रहना चाहिए। बीमा पॉलिसी में प्राय: यह शर्त भी रहती है कि मकान या परिसर (जिसकी सम्पत्ति का बीमा हुआ है) निरन्तर किसी जिम्मेदार व्यक्ति की देख-रेख में रहेगा अथवा Single चौकीदार उसका पहरेदार होगा। बीमा कम्पनी वास्तुकला की वस्तुओं, पाडं ुलिपियो, बिल, प्रोनोट, दस्तावजे आदि की चोरी के जोखिमों के प्रति दायित्व नहीं ग्रहण करती।
(3) सम्मिलित अग्नि And चोरी की प्रसंविदा –
यह पॉलिसी आवासगृहो के बीमे में बहुत प्रचलित है। इस पॉलिसी में वे All जोखिम संवृत की जाती है जिनका History हमने ‘‘निजी आवास चोरी पॉलिसी’’ के सिलसिले में Reseller है और इसके अतिरिक्त इसमें बीमित सम्पत्ति का अग्नि बीमा भी हो जाता है जिसके फलस्वReseller बीमा कम्पनी अग्नि, विद्युत्पात या गृहस्थी कार्य के लिए प्रयुक्त बॉयलर या गैस के विस्फोट से हुर्इ हानि या क्षति के लिए दायित्व ग्रहण करती है। अग्नि बीमा की मानक पॉलिसी (Standard Fire Policy) में जो हानियॉं, आपदाएं या वस्तुएं अपवर्जित (Excluded) हैं उनके प्रति बीमा कम्पनी दायी नहीं होती। यह पॉलिसी केवल निजी आवास के लिए ही जारी की जाती है। इसकी सुविधा यह है कि Single ही पॉलिसी के अन्तर्गत बीमित सम्पत्ति की अग्नि और चोरी की आपदाओ से सम्भावित हानि का बीमा हो जाता है।
(4) सर्व जोखिम पॉलिसी –
यह बीमा पॉलिसी गृहस्थी की कतिपय विशिष्ट वस्तुओं के लिए ली जाती है, जैसे, जवाहरात, कैमरा, घड़ियां, पेंटिंग, कलात्मक वस्तुएं, इत्यादि। इन वस्तुओं की हानि या क्षति यदि अग्नि या चोरी के कारण या किसी भी आकस्मिक कारण से होती हो तब बीमा कम्पनी उसकी क्षतिपूर्ति करती है। इस पॉलिसी के अन्तर्गत ‘‘सम्मिलित अग्नि आरै चोरी पॉलिसी’’ द्वारा संवृत जोखिमों के अतिरिक्त उन हानियों को भी संवृत Reseller जाता है जो किसी भी आकस्मिक परिस्थितियों के कारण होती है। इस पॉलिसी में बीमित वस्तुओं का मूल्य पारस्परिक स्वीकृति द्वारा तय Reseller जाता है जिस ‘agreed value’ कहते है। अत: यह पॉलिसी मूल्यांकित पॉलिसी होती है। पॉलिसी में अपवादित जोखिमों का भी description दिया जाता है जिनके द्वारा हानि होने पर कम्पनी का दायित्व नहीं होता। इन अपवादों के कतिपय उदाहरण ये हैं-बीमित वस्तु का घिसार्इ या अन्दरूनी दोश (inherent defect) के कारण हानि, यान्त्रिक गड़बड़ी के कारण हानि, या किसी वस्तु की मरम्मत या सफार्इ कराते समय हुर्इ हानि या क्षति।
(5) अभिवहन मुद्रा पॉलिसी –
‘‘अभिवहन मुद्रा’’ (money-in-transit) का Means है वह नकद मुद्रा, पोस्टल आर्डर, मनीआर्डर, स्टाम्प आदि जो Single स्थान से Second स्थान को ले जाए जाते हो। सामान्य व्यापारिक कोर्यों के सिलसिले में प्राय: ही किसी व्यापारिक संस्थाा द्वारा बैंकों, डाकघरो या अन्य व्यापारिक संस्थाओ में नित्य ही बड़ी-बड़ी रकमें भेजी जाती हैं। इस सिलसिले में इस मुद्रा को कर्मचारियो की देख-रेख में Single स्थान से Second स्थान पर ले जाया जाता है। ऐसी नकद रकम And अन्य मुद्रा को ले जाने के दौरान चोरी की जोखिम रहती ही है। अब तो ऐसी चोरियों के समाचार बहुत ही सामान्य होते जा रहे हैं। इस जोखिम से Safty पाने के उद्देश्य से ही ‘‘अभिवहन मुद्रा बीमा’’ (Money-in-Transit Insurance) कराया जाता है। यह बीमा सामान्यतया वाणिज्य, व्यापार या उद्योग में लगे हुए संस्थानों के लिए होता है।
अभिवहन मुद्रा के Single स्थान से Second स्थान पर ले जाते समय, अथवा बीमादार के संस्थान में रखे गए नकद की यदि चोरी, डाका या किसी अन्य आकस्मिक दुर्घटना द्वारा हानि होती है तब इस पॉलिसी के अन्तर्गत बीमा कम्पनी बीमादार की क्षतिपूर्ति करने की दायी होती है। सामान्यतया बीमा कम्पनी इन कारणों से हुर्इ हानियो के प्रति दायी नहीं होती-(1) गलती या चूक के कारण नकदी की हानि, (2) किसी कर्मचारी की बेर्इमानी के कारण हानि या (3) दंगे आदि के कारण हानि। किन्तु अतिरिक्त प्रीमियम देकर इन हानियों को भी पॉलिसी में संवृत Reseller जा सकताा है।
(6) यात्री सामान पॉलिसी –
यात्रा करने के सिलसिले में लोग सूटकेस, ट्रंक, बिस्तर तथा अन्य सामान साथ ले जाते हैं। इन सामानो की चोरी की जोखिम को संवतृ करने के लिए Single पृथक् पॉलिसी चलन में है जिसे ‘‘यात्री सामान पॉलिसी’’ कहा जाता हे। इन पॉलिसी के अन्तर्गत यात्रा के सिलसिले में बीमित बैगेज के सामान की चोरी या अन्य किसी दुर्घटना द्वारा हानि होने पर बीमा कम्पनी क्षतिपूर्ति करने का दायित्व ग्रहण करती है। यह पॉलिसी प्राय: प्रतिश्ठित व्यक्तियो के लिए ही जारी होती है। यह किसी Single यात्रा के लिए अथवा किसी Single अवधि (प्राय: Single वर्ष) में All स्थानों की यात्रा के लिए जारी की जाती है। बीमादार को अपने साथ ले जाने वाले All सामानों का पूर्ण description देना होता है, तथा परिवहन-साधन, यात्रा मार्ग, और यात्रा के स्थानो को भी बताना होता है। इस पॉलिसी मे यात्री के सामान, घड़ी, आदि का बीमा होता है किन्तु आभूषण, कैमरे, नकद, प्रतिभूतियां, यात्रा-टिकट आदि शामिल नहीं होते। जिन लोगों को प्राय: ही यात्रा करनी होती है उनके लिए यह पॉलिसी उपयोगी होती है। अतिरिक्त प्रीमियम देकर इसमें अग्नि, दंगा, हड़ताल, आतंकवादी कार्यवाही आदि द्वारा हानि की जोखिम भी संवृत की जाती है।
चोरी का बीमा कराने की प्रक्रिया
चोरी का बीमा कराने की प्रक्रिया के प्रकार है-(1) कम्पनी के पास प्रस्ताव पत्र भेजना, (2) उस प्रस्ताव पर कम्पनी द्वारा विचार और निर्णय, तथा (3) जोखिम का आरम्भ और बीमा पॉलिसी का निर्गमन।
(1) प्रस्ताव पत्र –
चोरी बीमा के लिए कम्पनी के छपे हुए प्रस्ताव पत्र में प्रस्ताव भेजना होता है। आवासगृह, कारबार परिसर, अभिवहन मुद्रा, यात्री सामान, आदि के बीमों के लिए पृथक्-पृथक् प्रस्ताव पत्र होते है। सामान्यतया प्रस्ताव पत्र में प्रस्तावक को जोखिम सम्बन्धी ब्यौरे लिखने होते हैं, जैसे, जिस भवन में सम्पत्ति रखी है वह कहां स्थित है, कैसे निर्मित है, उसमें प्रस्तावक का ही अधिकार है या अन्य लोगो का भी, उसके दरवाजे-खिड़Resellerं आदि कैसे हैं, उसमे प्रस्तावक कब से है, वह आवास है या दुकान या फैक्टरी, उसकी देखभाल के लिए रात में चौकीदार रहता है या नहीं, आदि। आवासगृह के चोरी बीमा के प्रसंग में यह भी बताना होता है कि उसमें कितने लागे परिवार के सदस्य हैं, स्थायी Reseller से रहने वाले नौकरो और महे मानों आदि की संख्या कितनी रहती है, आदि। इसके अतिरिक्त, उसमे रखी गर्इ बीमा करार्इ जाने वाली सम्पत्ति के सम्बन्ध में भी ब्योैरे देने होते हैं-क्या मूल्यवान वस्तुएं सेफ में रखी जाती हैं, वह सेफ किस निर्माता का है, सम्पत्तियों का पृथक्-पृथक् आरे सम्मिलित मल्ू य क्या है। इसके अतिरिक्त भूतकालीन बीमों और दावो के ब्यारै े भी देने होते हैं। प्रस्ताव पत्र की इन सूचनाओं के आधार पर कम्पनी जोखिम का आगणन करती है।अभिवहन मुद्रा के बीमा प्रस्तावक को उन स्थानो और दूरियों का ब्यौरा देना होता है जिनके बीच मुद्रा को ले जाना पड़ता है और यह बताना होता है कितने व्यक्ति मुद्रा ले जाते हैं, मुद्रा थैलियों, ट्रंकों, आदि में जाती है या किसी अन्य प्रकार से, क्या उसके साथ सशस्त्र चौकीदार भी रहता है, आदि। इसके अतिरिक्त, भूतकालीन हानियों का भी विरण देना होता है।
(2) कम्पनी द्वारा विचार और निर्णय –
प्रस्ताव पत्र में उल्लिखित सूचनाओं के आधार पर कम्पनी प्रस्तावित बीमे से सम्बन्धित आचारिक तथा भौतिक संकटों को आंकती है और तदनुसार प्रस्ताव को स्वीकार करने के सम्बन्ध में निर्णय करती है। आचारिक संकट के लिए प्रस्तावक की हैसियत, स्थिति, भूतकालीन चरित्र-वृत्त तथा विष्वसनीयता की जांच की जाती है। यदि First भी चोरी के लिए दावा हुआ हो तब उस प्रसंग में यह भी देखा जाता है कि उस चोरी में प्रस्तावक सांठ-गांठ अथवा लापरवाही की कोर्इ आशंका उत्पन्न हुर्इ अथवा नहीं। इसके अतिरिक्त प्रस्तावित बीमे के भौतिक संकट के निर्धारण में इन बातो पर विशेष ध्यान दिया जाता है : (1) भवन की स्थिति, (2) भवन मे प्रवेश द्वार, (3) खिड़कियो, दरवाजों, आदि की विशेषताए, (4) पास-पड़ोस की स्थिति, (5) भवन में रखे हुए माल की प्रकृति, आदि। इसके अतिरिक्त ,Safty के लिए जो तरीके अपनाए जाते हैं उनकी समीक्षा की जाती है।कम्पनी उन प्रस्तावो को अस्वीकृत कर देती है जिनमे (क) प्रस्तावक की ख्याति या विश्वसनीयता उच्च कोटि की न प्रतीत हो, (ख) भवन अधिक समय तक खाली रखा जाता हो, (ग) First अनेक बार चोरियां हो चुकी हो, (घ) मकान बहतु दूरी पर या बस्ती से दूर स्थित हो।
(3) जोखिम का आरम्भ और पॉलिसी –
यदि All दृष्टिकोणाे से प्रस्ताव स्वीकार करने योग्य पाया जाए तब कम्पनी प्रस्तावक के पास अपना स्वीकृति पत्र भेजती है और प्रीमियम घोषित करती है। प्रीमियम अदा होने के बाद बीमा प्रारम्भ हो जाता है। इसके लिए कम्पनी तत्काल बीमादार को ‘‘कवर नोट’’ देती है, जिसमें बीमा सम्बन्धी विरण और जोखिम के आरम्भ होने की तिथि दी जाती है। इसके बाद बीमादार के पास पॉलिसी भेज दी जाती है।