ग्रीन हाउस प्रभाव तथा ग्लोबल वार्मिंग क्या है ?
ग्रीन हाउस प्रभाव
ग्रीन हाऊस का Means उस बगीचे या पार्क में उस भवन से है जिसमें शीशे की दीवारें और छत होती हो तथा जिसमें उन पौधों को उगाते हैं जिन्हे अधिक ताप की Need होती है उसे ग्रीन-हाऊस प्रभाव या पौधा घर प्रभाव कहते हैं। इस क्रिया द्वारा Earth का तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है। Ultra site से आने वाली प्रकाश की किरणों में से परा-बैंगनी किरणों को ओजोन परत अवशोषित कर लेती है और अवरक्त कण Earth से टकराकर वायुमंडल में चले जाते है वायुमंडल में कार्बन डाइऑक्साइड गैस द्वारा अवशोषित कर लिए जाते हैं जिससे वायुमण्डल गर्म हो जाता है। Earth के वातावरण में उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड गैस कम्बल का कार्य करती है जो हरित भवन की दीवारों की तरह Earth सतह से परावर्तित दीर्घ तरंग लम्बार्इ के अवरक्त किरणों को वायुमंडल में ही रोक लेती है। वातावरण में हरित भवन पैदा करने वाली प्रमुख गैस हैं :-
- कार्बनडाइऑक्साइड (CO2):- हरित भवन प्रभाव पैदा करने के लिए ये गैस सबसे अधिक जिम्मेदार है Meansात पौधा घर प्रभाव की मुख्य गैस CO2 है। कार्बनडाइऑक्साइड मुख्य Reseller से प्राणियों की श्वसन क्रिया द्वारा छोडी जाती है तथा ये यातायात के साधनों ताप, बिजलीघरों, कारखानों द्वारा भी प्रतिदिन छोडी जा रही है और वातावरण में इसकी मात्रा दिन-प्रतिदिन बढ़ती जा रही है।
- मीथेन गैस:- मीथेन गैस के कारण भी पौधा घर प्रभाव होता है। सन् 1870 से अब इसकी मात्रा 0.7 पी.पी.एम. से बढ़कर 1.65 पी.पी.एम हो गर्इ है।
- नाइट्रस ऑक्साइड :- वायु प्रदूषण से इसकी मात्रा वातावरण में 25 प्रतिशत की दर से बढ रही है।
- क्लोरो फ्लोरो कार्बन गैस – 3 प्रतिशत की दर से इसकी मात्रा वातावरण में बढ़ती जा रही है।
ग्रीन हाऊस प्रभाव के परिणाम –
मनुष्य अपनों Needओं की पूर्ति करने के लिए वनों का दोहन कर रहा है। Meansात हरे-भरे वनों को मारता जा रहा है। पौधा प्रभाव के प्रभाव पड़ते हैं:-
- Earth के ताप में वृद्धि:- पौधा घर प्रभाव से Earth के ताप में वृद्धि होती जा रही हैं जिससे दोनो ध्रुवो पर बर्फ पिघल जाती है और समुद्र के जलस्तर में वृद्धि हो जायेगी परिणाम स्वReseller तमाम समुद्री दीप, सागर के जल में डूब जायेंगे। सन् 1996 में यूरोप के मौसम वैज्ञानिग ने भविष्य वाणी की कि सन् 2015 तक Earth के ताप में 1.5 से 4.50C की वृद्धि हो जायेगी। 22
- मौसम चक्र में परिवर्तन:- ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है कि अगली शताब्दी के मध्य तक 1.5 से 4-50C ताप में वृद्धि हो जायेगी तो समुद्रों में वाष्पीकरण की दर बढ़ जायेगी जिससे वायुमंडल में आदर््रता बढ़ जायेगी और क्षेत्रीय वायुदाव में परिवर्तन आ जायेगा। ताप दाव, और आदर््रता बढ़ जायेगी और क्षेत्रीय वायुदाव में परिवर्तन आ जायेगा। ताप दाव, और आर्द्रता की स्थितियों में परिवर्तन से क्षेत्रीय जलवायु में परिवर्तन होगा जिससे फसलों के उत्पादन व फसल चक्रण में परिवर्तन होगा। इस सब कारणों से विभिन्न देशों की Means व्यवस्था भी बिगड़ जायेगी।
- खाद्यानों के उत्पादन पर प्रभाव:- Earth का तापमान बढ़ने से अलग-अलग देशों में अलग प्रभाव देखा जा सकता है। भारत में ताप बढ़ने से खाद्यानों का उत्पादन बढेगा जबकि अमेरिका में यदि ताप बढ़ता है तो खाद्यानों का उत्पादन घटने की सम्भावना बतार्इ जा रही हैं।
- पारिस्थितिक तंत्र में बदलाव:- ताप वृद्धि से विभिन्न क्षेत्रों की वनस्पतियों पर भी प्रभाव पड़ेगा जैसे ताप बढ़ता है तो घास का पारिस्थितिक तंत्र की घास सूख जायेगी और उपभोक्ता First Meansात पशु-पक्षी जानवर अनुकूल जलवायु वाले क्षेत्र में स्थानान्तरित हो जायेंगे इसके क्षेत्रीय पारिस्थितिक तंत्रों में परिवर्तन हो जायेगा।
ग्रीन हाऊस गैसों में वृद्धि के प्रभाव –
वातावरण में ग्रीन हाऊस गैसों की लगातार वृद्धि हो रही है जिससे कि वातावरण पर इसके दुण्प्रभाव पड़ रहे हैं जो कि हैं:-
- ग्रीन हाऊस गैसों के बढ़ने से Earth के ताप में लगातार वृद्धि होती जा रही है।
- ग्रीन हाऊस गैसों द्वारा वनस्पति जगह पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- इन गैसो से विभिन्न प्रकार के शारीरिक रोग होने की सम्भावना बढ़ जाती है।
- ग्रीन हाऊस गैसें, कृषि उपज पर प्रतिकूल प्रभाव डालती हैं।
- ग्रीन हाऊस गैसों में वृद्धि होने से जल-संसाधनों तक जलाऊ लकड़ी की उपलब्धता पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ता है।
- इन गैसों के कारण ऊर्जा संकट की सम्भावना भी बढ़ जाती है।
- वर्षा कम होती है जिससे वनस्पति की कमी भी हो जाती है।
ग्लोबल वार्मिग –
मुनुष्य के द्वारा Earth के तापमान में वृद्धि हो जाती है इसे ही भूतापन (Global Warming) कहते हैं। वातावरण में ग्रीन-हाऊस गैसें लगातार बढ़ रही हैं जिससे कि भूतापन की समस्या उत्पन्न हो गर्इ है। वैज्ञानिकों के According प्रति दशक विश्व के ताप में 0.20ब् की वृद्धि होती जा रही है। ऐसा अनुमान लगाया जा रहा है, कि शताब्दी के अंत तक Earth के औसत तापमान में 1.5 से 4.50ब् तक की वृद्धि हो सकती है। विश्व के तापमान लगातार बढ़ता जा रहा है जैसे विश्व मौसम संगठन ने खोज कर निकाला कि सन् 1990, 1995, 1997 व 1998 सर्वाधिक गर्म वर्ष रहे।
ग्लोबल वार्मिग के प्रभाव –
ग्लोबल वार्मिंग का Earth पर प्रभाव देखे गये हैं:-
- मनुष्य के ऊपर प्रभाव:- Earth पर तापमान बढ़ने से मध्य And उच्च अक्षांशों में रहने वाली जनसंख्या के स्वास्थ्य पर बुरा प्रभाव पड़ेगा। अनेक लोगों की अकाल मृत्यु होगी व भविष्य में समुद्री तूफानों की संख्या में वृद्धि, बाढ़, अकाल, भुखमरी आदि से अधिक जनहानि की आशंका रहती है।
- जन्तुओं पर प्रभाव:- जब वातावरण का ताप अधिक हो जाता है तो वे प्राणी जो अधिक ताप सहन नहीं कर पाते वे मर जाते हैं। ताप मान अधिक होने से समुद्री जल स्तर में वृद्धि तरवर्ती आंगों के सधन वनों व द्रीपों पर निवास करने वाले प्राणियों का जीवन खतरे में पड़ जायेगा। अनावृष्टि के कारण प्राकृतिक चरागाहों के Destroy होने से चरागाहों पर निर्भर जीवों की हानि होगी।
- कृषि क्षेत्र पर प्रभाव:- वातावरण का ताप बढ़ने से ध्रवों पर बर्फ पिघल जायेगी और समुद्री जल-स्तर में वृद्धि होने तथा समुद्री तूफानों की आवृत्ति बढ़ने से समुद्र तटीय भागों की उपजाऊ भूमि में अनेक जहरीले लवण घुल जायेगे और भूमि बंजर हो जायेगी।
- समुद्रीय जल स्तर में वृद्धि:- वायु प्रदूषण से वायुमंडल के ताप में लगातार वृद्धि होती जा रही है जिससे ध्रुवों पर बर्फ पिघल जायेगी और समुद्री जलस्तर में 1.5 मीटर तक की वृद्धि हो सकती है।
- एलनिनो प्रभाव:- सम्पूर्ण विश्व में जब तापमान बढ़ जाता है तो वायुदाव कम हो जाता है जिससे एलनिनो प्रभाव बढ़ जाता है। ये Single जलवायु चक्र होता है जिसमें वर्ष के निश्चित समय पर पूर्वी प्रशांत महासागर पीरू के पास व गलापागोस द्वीप के चारों और तापमान की वृद्धि होने से समुद्री जल में उफान आ जाता है यदि यह उफान हल्का होता है तो इसके प्रभाव सीमित होता है। यदि उफान तेज होता है तो विस्तृत क्षेत्रों 25 में जलवायु को प्रभावित करता है जैसे कि हिंद महासागर के जल के गर्म होने पर सोमालिया व दक्षिणी इथोपिया में इसके परिणामस्वReseller बाढ़ आ गर्इ थी सन् 1997 -98 में होने वाले एलनिनो से विश्व में लगभग 24000 लोगों की मौत हुर्इ व 340 लाख अमरीकी डॉलर की क्षति हुर्इ।
- हिमनदों पर प्रभाव:- विश्व के तापमान में वृद्धि होने से बर्फ के पिघलने की दर बढ़ती जा रही है। और उनके आकार, लंबार्इ व चौड़ार्इ में कमी आती जा रही है विश्वव्यापी ताप मान बढ़ने से हिमालय के हिमनद हिम झीलों में बदलते जा रहे हैं। सन् 2025 तक हिमालय के All हिमनद Destroy हो जायेगे जिससे विकराल बाढ़ की स्थिति बन जायेगी अन्तर्राष्ट्रीय विज्ञान न्यू सांइसिस्ट के According मार्च 2002 में लंदन के वैज्ञानिको ने सुदूर संवेदन उपग्रह से प्राप्त आंकड़ो के आधार पर बताया है कि अंटार्फटिका के पूर्वी प्रायद्वीपीय भाग से Added लार्सन बी हिमनद टूट गया है। विश्व तापमान बढ़ने से 1250 वर्ग मील क्षेत्रफल तथा 650 फुट मोटार्इ वाली बर्फ की इस चÍान के टूटने को विश्व के लिए खतरा बताया जा रहा है।
- अन्य प्रभाव:- विश्व के तापमान में वृद्धि से जलवायु में परिवर्तन और इस परिवर्तन से तूफान अतिवृष्टि आदि आकस्मिक घटनाएं बढ़ती जाती हैं जिनका प्रभाव मनुष्य के आवास, परिवहन, ऊर्जा स्त्रोत तथा स्वास्थ्य पर पड़ता है।