गठिया (आर्थराइटिस) के कारण, लक्षण And वैकल्पिक चिकित्सा
आर्थराइटिस अगे्रजी भाषा का Word है इस Word की ममूल उत्पत्ति ग्रीक भाषा से हुर्इ है। आर्थराइटिस ग्रीक भाषा के दो Wordों आथ्रो (Arthro) और आइटिस (Itis) से मिलकर बना है। ग्रीक भाषा में आथ्रो (Arthro) का Means जोड Meansात सन्धियां तथा आइटिस (Itis) का Means सूजन होता है Meansात शाब्दिक Means में वह रोग जिसमें जोडों अथवा सन्धियों में सूजन उत्पन्न होती है, आर्थराइटिस (Arthroitis) कहलाता है। आर्थराइटिस आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में प्रयुक्त होने वाला Word है जबकि प्राचीन काल से हिन्दी भाषा में सन्धि शोथ के नाम इस रोग को described Reseller गया है। आयुर्वेद शास्त्र में आर्थराइटिस रोग के लिए आमवात Word का वर्णन प्राप्त होता है। आयुर्वेद शास्त्र के विभिन्न ग्रन्थों में आमवात रोग का सविस्तार वर्णन प्राप्त होता है जो लक्षणों And कारणों के स्तर पर आर्थराइटिस रोग से मूल समानता रखता है।
इस रोग का प्रारम्भ जोडों में सूजन के साथ होता है, जोडों में सूजन के साथ जोड लाल होने लगते हैं And इन जोडों में सुर्इ सी चुभन उत्पन्न होने लगती है। यही आगे चलकर गठिया में And गठिया आगे चलकर आर्थराइटिस रोग में परिवर्तित हो जाता है। आर्थराइटिस रोग के अलग अलग लक्षण प्रकट होते हैं। इन लक्षणों के आधार पर आधुनिक चिकित्सा विज्ञान में आर्थराइटिस रोग के सौ से भी अधिक प्रकारों को described Reseller गया है। आर्थराइटिस रोग के इन प्रकारों में सबसे अधिक व्यापक रुमेटोयड आर्थराइटिस (आमवातिक संधिषोथ) है। इसके अतिरिक्त ऑस्टियो आर्थराइटिस, सेप्टिक आर्थराइटिस, सोरियाटिक आर्थराइटिस तथा रिSingle्टिव आर्थराइटिस भी आर्थराइटिस रोग के अन्य प्रकार या वर्ग हैं।
अब आपके मन में यह प्रश्न उत्पन्न होना भी स्वाभिक ही है कि आर्थराइटिस रोग की उत्पत्ति कैसे होती है Meansात इस रोग की उत्पत्ति के क्या क्या कारण होते हैं अत: अब आर्थराइटिस रोग की उत्पत्ति के कारणों पर विचार करते हैं –
आर्थराइटिस जोडों से सम्बन्धित रोग है जिसे सामान्य भाशा में गठिया के नाम से जाना जाता है। वर्तमान समय में यह रोग बहुत तेजी से समाज में बढ रहा है। दिल्ली में एम्स के Single अनुमान के According भारत वर्श में हर छह में से Single व्यक्ति आर्थराइटिस रोग से ग्रस्त है। आर्थराइटिस रोग की व्यापकता को जानने के उपरान्त अब आपके मन में यह प्रष्न उपस्थित होना स्वाभाविक ही है कि किन कारणों से यह रोग उत्पन्न होता है And कौन कौन से कारक इस रोग को बढाते हैं, अत: अब हम आर्थराइटिस रोग के कारणों पर विचार करते हैं –
इस प्रकार उपरोक्त कारणों के कारण शरीर आर्थराइटिस रोग से ग्रस्त हो जाता है। अब दस यह कैसे पहचाना जाए कि यह रोग आर्थराइटिस ही है अथवा कोर्इ दूसरा रोग है? इस प्रष्न के उत्तर के लिए हमें आर्थराइटिस रोग के लक्षणों को जानना आवष्यक हो जाता है। यद्यपि जैसा कि आपने पूर्व में ही जान लिया है कि आर्थराइटिस रोग के बहुत सारे प्रकार होते हैं जिनके शरीर में अलग अलग लक्षण प्रकट होते हैं किन्तु आर्थराइटिस रोग के कुछ सामान्य लक्षण इस प्रकार हैं –
- दर्द And सूजन से ग्रस्त जोड का X- ray : शरीर के जिस जोड पर दर्द के साथ सूजन है, उस जोड पर X- ray डाल कर आर्थराइटिस रोग की जॉच की जाती है।
- साइनोवियल फ्लूड की जॉच : दो अस्थियों के जुडनें के स्थान पर साइनोवियल फ्लूड (श्लेष द्रव) उपस्थित होता है जो गति के समय अस्थियों के सिरों को आपस में टकराकर घिसने से बचाने का कार्य करता है। शरीर के जोडों में साइनोवियल फ्लूड (श्लेष द्रव) की कम मात्रा आर्थराइटिस रोग की और संकेत करती है।
- मूत्र में यूरिक एसिड की जॉच: शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा बढ का जोडों में Singleत्र हो जाती है। जोडों में ये यूरिक एसिड के क्रिस्टल जमा होकर दर्द And सूजन उत्पन्न करते हैं अत: मूत्र में यूरिक एसिड की बढी मात्रा आर्थराइटिस रोग की और संकेत करती है।
इस प्रकार आर्थराइटिस रोग से ग्रस्त होने पर रोगी के शरीर में अकडन और जकडन बढती चली जाती है। रोगी के जोडों में दर्द बढता जाता है और हाथों व पैरों की अस्थियों में टेडापन आने लगता है। रोग से पिडित व्यक्ति को पैदल चलने And उठने बैठने में कठिनार्इ होने लगती है। रोगी को एलोपैथी चिकित्सक दर्द निवारक दवार्इयां जैसे ब्रूफेन, पेरासिटामोल, डिक्लोफेन आदि तथा सूजन दूर करने के लिए कोरटिकोस्टिरॉइड जैसे बेटनासॉल आदि का सेवन करने की सलाह देता है। इन दवार्इयों का रोगी को लाभ कम हानि अधिक होती है। इनका लम्बे समय तक तथा अधिक मात्रा में सेवन करने से रोगी के लीवर And वृक्कों पर बहुत नकारात्मक प्रभाव पडता है। इसके अतिरिक्त अग्रेंजी दवार्इयों के अधिक सेवन से शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता बहुत निम्न होने लगती है जबकि इसके विपरित आर्थराइटिस रोग में वैकल्पिक चिकित्सा काफी प्रभावी And लाभकारी सिद्ध होती है। आधुनिक चिकित्सक भी इस तथ्य को स्वीकार करते हैं कि आर्थराइटिस रोगी का वैकल्पिक चिकित्सा द्वारा उपचार करने से उसे रोग में स्थार्इ लाभ प्राप्त होता है अत: अब आर्थराइटिस रोग की वैकल्पिक चिकित्सा पर विचार करते हैं –
आर्थराइटिस रोग की वैकल्पिक चिकित्सा
आर्थराइटिस रोग की वैकल्पिक चिकित्सा में योग चिकित्सा, प्राकृतिक चिकित्सा, आयुर्वेद चिकित्सा, Single्यूप्रेशर चिकित्सा, प्राण चिकित्सा And आहार चिकित्सा द्वारा रोग के उपचार का वर्णन आता है। इस रोग की वैकल्पिक चिकित्सा इस प्रकार है –
1. आर्थराइटिस रोग की योग चिकित्सा
आर्थराइटिस रोग में यौगिक क्रियाओं जैसे आसन, मुद्रा-बंध And प्राणायाम का अभ्यास रोग दूर करने में अत्यन्त प्रभावी सिद्ध होती है। इन क्रियाओं का अभ्यास कराने से रोगी को तुरन्त लाभ मिलने लगता है तथा लम्बे समय तक इन क्रियाओं का नियमित अभ्यास कराने से रोग के रोग पर नियंत्रण प्राप्त होने लगता है। आर्थराइटिस रोग की योग चिकित्सा इस प्रकार है –
- षट्कर्म का प्रभव : षट्कर्मों की छह क्रियाओं धौति, बस्ति, नेति, नौली, त्राटक And कपालभाति का रोग की स्थिति And रोगी की क्षमतानुसार अभ्यास कराने से रोगी के शरीर का शोधन होता है। जिसके परिणाम स्वरुप शरीर में यूरिक एसिड की मात्रा कम होती है और दर्द में आराम मिलता है। इसके अतिरिक्त शरीर शोधन के परिणाम स्वरुप शरीर के अन्य तंत्र जैसे पेशीय तंत्र And अस्थि तंत्र भी स्वस्थ बनते है। जिससे रोग ठीक होता है And रोगी को आराम मिलता है।
- आसन का प्रभाव : आर्थराइटिस रोग के उपचार में आसनों का अभ्यास अत्यन्त लाभकारी होता है। यद्यपि रोगी रोग की त्रीव अवस्था में आसनों का अभ्यास करने में असक्ष्म होता है तथा रोगी को बलपूर्वक आसन कराने से रोगी का दर्द तेजी से बढ जाता है अत: रोगी को अत्यन्त सावधानीपूर्वक हल्के हल्के आसनों और विशेष रुप से संधि संचालन के सुक्ष्म अभ्यासों को कराना चाहिए। रोगी को पैर की उगुलियों, पजों, घुटनों, कुल्हे, हाथ की उगुलियों, कलार्इ, कोहनी, कन्धों And गर्दन को गतिशील बनाने वाले अभ्यासों को बार बार सुबह और शाम दोनों समय अभ्यास कराना से रोग में लाभ मिलता है। उपरोक्त सुक्ष्म अभ्यासों के रोग की त्रीवता कम होने पर रोगी को आसनों के क्रम पर लाते हुए धीरे धीरे And सावधानीपूर्वक आसनों का अभ्यास कराना चाहिए। आर्थराइटिस रोगी को सर्पासन, भुजँगासन, मकारासन, पवनमुक्तासन, उत्तानपादासन, मत्स्यासन, नौकासन, मरकटासन, गोमुखासन, उष्ट्रासन, वक्रासन, अर्द्धचन्द्रासन, गरुडासन, वातायन आसन And शवासन आदि आसनों का अभ्यास कराना चाहिए। इस रोग में आसनों के महत्व को देखते हुए वर्तमान समय में आर्थराइटिस रोगी की फिजियोथैरेपी का प्रचलन भी बढता जा रहा है जिसमें चिकित्सक सहायता देकर रोगी के जोडों को गतिशीलता प्रदान करता है।
- मुद्रा And बन्ध का प्रभाव : आर्थराइटिस रोग का सम्बन्ध वात दोष की विकृति से भी है। शरीर में वात दोष को सम बनाने के लिए मुद्राओं And बन्धों का अभ्यास लाभकारी प्रभाव रखता है। रोगी को उसकी क्षमतानुसार काकी, शाम्भवी व महामुद्राओं आदि मुद्राओं का अभ्यास कराना चाहिए। इसके साथ साथ मूल, उड्डियान And जालंधर बन्धों का अभ्यास भी रोगी को कराना चाहिए।
- प्रत्याहार का प्रभाव : आर्थराइटिस रोग को दूर करने में प्रत्याहार Meansात इन्द्रिय संयम अपनी Single विशेष भूमिका का वहन करता है। प्रत्याहार के अन्र्तगत रोगी द्वारा दिनचर्या, रात्रिचर्या And ऋतुचर्या का अनुशासन से पालन करने से रोग समूल Destroy होता है। इसके साथ खानपान सम्बधीं बुरी आदतों पर नियंत्रण करने से रोग की त्रीवता पर सीधा प्रभाव पडता है And रोग स्वत: ही ठीक होने लगता है।
- प्राणायाम का प्रभाव : आर्थराइटिस रोगी को नाडी शोधन, अनुलोम विलोम, Ultra siteभेदी, उज्जायी And भ्रामरी आदि प्राणायामों का नियमित अभ्यास कराने से लाभ मिलता है। रोगी को साफ स्वच्छ वातावरण में स्थिर मन के साथ प्राणायामों का अभ्यास करना चाहिए। रोगी को प्राणायामों का अभ्यास नियमित रुप से And लम्बी अवधि तक करना चाहिए। प्राणायाम का अभ्यास रोग पर प्रत्यक्ष प्रभाव रखता हुआ रोग को शीघ्र ठीक करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाता है।
- ध्यान And समाधि का प्रभाव : ध्यान And समाधि के अन्र्तगत रोगी नकारात्मक भावों And रोग की नकारात्मकता से हटकर सकारात्मक विचारों And भावों का चिन्तन करता है। वह अपने मन And मस्तिष्क में सकारात्मक चिन्तन को स्थान देता है जिससे उसके शरीर में हार्मोन्स सन्तुलित होते हैं। ध्यान And समाधि में स्थित होने से आन्तरिक रोग प्रतिरोधक क्षमता And जीवनी शक्ति तेजी से विकसित होती है जिससे रोग समूल Destroy होता है। इस प्रकार योग चिकित्सा के द्वारा आर्थराइटिस रोगी के रोग पर नियंत्रण प्राप्त होता है। रोगी को दर्द And सूजन में आराम मिलता है। योग चिकित्सा के साथ साथ प्राकृतिक चिकित्सा द्वारा भी आर्थराइटिस रोग में शीघ्र And स्थार्इ लाभ प्राप्त होता है।
2. आर्थराइटिस रोग की प्राकृतिक चिकित्सा
आर्थराइटिस रोगी को मिट्टी, जल, अग्नि, वायु और आकाश तत्वों द्वारा इस प्रकार चिकित्सा देने से लाभ प्राप्त होता है –
- मिट्टी तत्व चिकित्सा : आर्थराइटिस रोगी को जोडों पर गर्म मिट्टी की पट्टी देने शीघ्र अतिशीघ्र लाभ प्राप्त होता है। गीली मिट्टी को ऑच पर गर्म करने के उपरान्त सहनीय तापक्रम पर रोगी के प्रभावित जोडों पर देने से दर्द And सूजन में लाभ मिलता है।
- जल तत्व चिकित्सा : आर्थराइटिस रोगी की जल चिकित्सा में यह सावधानी विशेष रुप से रखनी चाहिए कि रोगी पर ठण्डे जल का प्रयोग कदापि नही करना चाहिए। आर्थराइटिस रोगी को सम्पूर्ण शरीर का भाप स्नान देने से लाभ रोग में विशेष लाभ प्राप्त होता है। सम्पूर्ण शरीर पर भाप के अतिरिक्त नियमित रुप से जोडों पर स्थानीय भाप देने से भी लाभ प्राप्त होता है। इस रोग में गर्म कटि स्नान, गर्म रीढ स्नान, गर्म पैर स्नान, गर्म बॉह स्नान And सम्पूर्ण शरीर का गर्म स्नान भी लाभकारी प्रभाव रखता है। रोगी को वात दोष का शमन करने वाले औषध गुणों से युक्त द्रव्यों से एनीमा देने से भी रोग में लाभ मिलता है।
- अग्नि तत्व चिकित्सा : आर्थराइटिस रोगी को Ultra site स्नान देने से रोग में विशेष लाभ मिलता है। इसके साथ साथ नारंगी रंग की बोतल में आवेशित जल का सेवन रोगी को कराने And लाल अथवा नारंगी रंग का प्रकाश जोडों पर डालने से रोग ठीक होता है।
- वायु तत्व चिकित्सा : आर्थराइटिस रोगी की जोडों पर अत्यन्त सावधानीपूर्वक हल्के हाथों से धूप में मालिश करने से आराम मिलता है। सरसों के तेल में लहसुन की चार से छह कलिया पकाकर गुनगुने तेल से हल्के हल्के हाथों से जोडों पर मालिश करने से रोगी को अत्यन्त लाभ मिलता है। रोगी को हल्के हाथों से And वैज्ञानिक ढंग से मालिश करने से रक्त संचार त्रीव होता है And दर्द व सूजन में आराम मिलता है।
- आकाश तत्व चिकित्सा : आर्थराइटिस रोगी की छोटे उपवास अथवा कल्प कराने से रोग में लाभ मिलता है। रोगी को उपवास काल में पर्याप्त मात्रा में जल का सेवन करना चाहिए, उपवास काल में गुनगुने जल में नींबू का रस And शहद मिलाकर भी सेवन Reseller जा सकता है।
योग चिकित्सा And प्राकृतिक चिकित्सा के अध्ययन के उपरान्त अब आर्थराइटिस रोगी की आयुर्वेद चिकित्सा पर विचार करते हैं –
3. आर्थराइटिस रोग की आयुर्वेद चिकित्सा
आयुर्वेद शास्त्र में आर्थराइटिस रोग को आमवात के नाम से जाना जाता है। वहां पर आम Word को विषाक्त तत्व के संदर्भ में And वात को वायु के Means में लिया गया है Meansात जब विषाक्त अथवा दूषित वायु जोडों में Singleत्र होकर दर्द And सूजन उत्पन्न करती है, तब वह रोगावस्था “आमवात” कहलाती है। आमवात को ही आधुनिक चिकित्सा विज्ञान आर्थराइटिस रोग कहता है।
आयुर्वेद शास्त्र में विषाक्त दूषित वायु को शरीर से निष्कासन ही इस रोग की मूल चिकित्सा के रुप में described Reseller गया है। इसके लिए रोगी की पंचकर्म चिकित्सा अत्यन्त प्रभावी चिकित्सा है। पंचकर्म के साथ साथ रोगी को निम्न औषध द्रव्यों का सेवन कराने से रोग में आराम मिलता है –
Single से तीन ग्राम गुग्मुल गर्म पानी के साथ रोगी को सेवन कराने से रोग में लाभ मिलता है। रोगी को 1 से 3 ग्राम की मात्रा में पीसी हल्दी का चूर्ण And सौंठ समान मात्रा में मिलाकर सुबह-शाम नियमित सेवन कराने से दर्द And सूजन में लाभ प्राप्त होता है।
5 से 10 ग्राम मैथी दाने का चूर्ण सुबह गर्म जल के साथ सेवन कराने से रोगी को रोग में लाभ प्राप्त होता है।
चार से पांच लहसुन की कलियों को दूध में उबालकर रोगी को पिलाने से रोग में लाभ प्राप्त होता है। लहसुन का रस कपूर में मिलाकर प्रभावित जोडों की मालिश करने से रोगी को आराम मिलता है।
रात्रिकाल में सोने से पूर्व प्रभावित जोडों पर गर्म सिरके से मालिश करने से दर्द And जकडन में आराम मिलता है। रोगी को गर्म जल अथवा गुनगुने दूध के साथ त्रिफला चूर्ण का सेवन कराने से भी रोग में लाभ मिलता है।
11.6.7 आर्थराइटिस रोग की आहार चिकित्सा
आर्थराइटिस रोगी को निम्न लिखित पथ्य और अपथ्य आहार पर ध्यान देना चाहिए –
- पथ्य आहार – सेब, सन्तरा, अंगूर, पपीता, नारियल, तरबूज, खरबूजा, लौकी, कद्दू, गाजर, ककडी, खीरा, चना, मैथी आदि हरी पत्तेदार सब्जियां, अदरक, लहसुन, हरी धनिया, चौकरयुक्त आटा, मौसमी फल, सलाद And पोषक तत्वों से युक्त पौष्टिक आहार रोगी के लिए पथ्य है। इसके साथ साथ रोगी के लिए सब्जियों का सूप And फलों के जूस भी पथ्य है।
- अपथ्य आहार – नमक, चीनी, चाय, कॉफी, सोफ्ट व कोल्ड डिंक्स जैसे पैप्सी व कोक, एल्कोहल, बाजार की मिठार्इयां, चाकलेट, तला भुना चायनीज फूड, फास्ट फूड, जंक फूड, चावल, फूलगोभी, पत्तागोभी, पालक, खट्टी दही, वातवर्धक बासी, रुखा And पोषक तत्व विहीन भोजन रोगी के लिए अपथ्य है। धूम्रपान And एल्कोहल के सेवन से रोगी को पूर्णतया बचाना चाहिए। इस प्रकार उपरोक्त पथ्य And अपथ्य आहार के According रोगी को आहार कराने से रोग में शीघ्र लाभ प्राप्त होता है।
आर्थराइटिस रोगी के लिए सावधानियां And सुझाव
- आर्थराइटिस रोग को बढने नही देना चाहिए अपितु रोग की प्रारम्भिक अवस्था में लक्षण प्रकट होते ही रोग पर ध्यान देते हुए आहार विहार संयम And वैकल्पिक चिकित्सा द्वारा तुरन्त रोग का प्रबन्धन कराना चाहिए।
- रोगी को Single स्थान पर And Single स्थिति में लम्बे समय तक बैठकर कार्य नही करना चाहिए।
- रोगी को अपने कार्य सही मुद्रा में ही करने चाहिए।
- रोगी को प्रात:कालीन भ्रमण करना चाहिए And पैदल चलने की आदत बनानी चाहिए।
- रोगी को नियमित रुप से प्रात:काल धूप स्नान लेना चाहिए।
- रोगी को दर्द निवारक दवार्इयों का लम्बे समय तक सेवन नही करना चाहिए।
- रोगी को आहार में फलों And सब्जियों का अधिक सेवन करना चाहिए तथा वातवर्धक खाद्य पदार्थो के सेवन से बचना चाहिए।
- रोगी को फ्रीज के ठंडे पानी का सेवन पूर्ण रुप से बंद कर देना चाहिए And उबले हुए गुनगुने पानी का ही सेवन करना चाहिए।
- रोगी को नियमित आसन प्राणायाम आदि यौगिक क्रियाओं का अभ्यास करना चाहिए।
- All प्रकार के र्दुव्यसनों को पूर्ण रुप से छोड देना चाहिए। इस प्रकार उपरोक्त सावधानियों को ध्यान में रखने से रोग जल्दी ठीक होता है।